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राहुल की भारत जोड़ो यात्रा से भाजपा में घबराहट
कुछ होगा
कुछ तो होगा
अगर मैं बोलूंगा
टूटे न टूटे तिलिस्म सत्ता का
मेरे भीतर का कायर तो टूटेगा...
-रघुवीर सहाय
भेड़िया गुर्राता है
तुम मशाल जलाओ
उसमें और तुममें
यहीं बुनियादी फर्क है
भेड़िया मशाल नहीं जला सकता.
-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
रघुवीर सहाय और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यह कविताएं गहन-घुप्प अंधेरे में लालटेन वाली रोशनी का काम करती है. इन कविताओं की तरह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से भी यह उम्मीद जगती है कि आताताईयों के हजारों-हजार कोशिशों के बावजूद अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है. अभी तारों का टिमटिमाना बाकी है.
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने जब यह ऐलान किया कि 7 सितम्बर 2022 से राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा प्रारंभ करने वाले हैं तब हमेशा की तरह उन्हें पप्पू कहने वालों ने मजाक उड़ाते हुए यह प्रचारित किया था कि वे कितना भी हाथ-पांव मार लें...उनका कोई दांव सफल नहीं होने वाला है. लेकिन अब जबकि कन्याकुमारी से प्रारंभ हुई यात्रा ने सफलतापूर्वक एक सौ आठ दिन पूरे कर लिए हैं तब स्थिति यह हो चली है कि हर कोई भारत जोड़ो यात्रा का हिस्सा बनना चाहता है. वैसे तो यात्रा में स्वेच्छा से कोई भी शामिल हो सकता है, लेकिन विधिवत रजिस्ट्रेशन के जरिए शामिल होने वालों की सूची बेहद लंबी है. यह सूची लगातार बढ़ती ही जा रही है.
आखिर ऐसा क्या है जिसके चलते एक बड़ी आबादी इस यात्रा का हिस्सा बनने के लिए बेचैन दिख रही है. दरअसल इस बेचैनी का एक बड़ा कारण वह अंधकार और अवसाद है जो मोदी सरकार के आने के बाद अमूमन हर दूसरे शख्स के भीतर घर कर गया है. हिन्दू-हिन्दू की रट लगाने वाले अंधभक्ति में लीन समर्थकों को छोड़ दिया जाय तो ज्यादातर लोग यह मान बैठे हैं कि देश की फिजा में काफी बदलाब आ गया है. दंगे-फसाद तो पहले भी होते रहे हैं,लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. अब हर कोई शंका के कटघरे में खड़ा है और एक-दूसरे को शत्रु समझता है. हताशा, निराशा और प्रत्येक पहर होने वाली हिन्दू-मुस्लिम डिबेट ने हर उस शख्स को भीतर तक तोड़कर रख दिया है जो प्यार-मोहब्बत, भाई-चारे पर यकीन करता है और अमन-चैन के साथ जीने की तमन्ना रखता है.
तरक्की और अमन पसंद आबादी भारत जोड़ो यात्रा से जुड़कर अपने जिंदा होने का अर्थ तलाश रही है. यह यात्रा उन लोगों के सपनों को पूरा कर रही है जो साझी संस्कृति-साझी विरासत को बढ़ावा देने पर भरोसा रखते हैं. ये वे लोग है जिनके घर के चूल्हों पर प्यार और मोहब्बत की रोटियां ही पकाई जाती है.
इसी महीने 24 दिसम्बर को यात्रा ने दिल्ली में एक पड़ाव के बाद अल्प समय का विराम लिया है. अब यात्रा नए साल में तीन जनवरी से प्रारंभ होगी, लेकिन अब तक इस यात्रा में छात्रों, नौजवानों के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि क्षेत्र से जुड़े हजारों-हजार लोग अपनी भागीदारी दर्ज कर चुके हैं. एक समय भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के जरिए कांग्रेस का विरोध करने वाले प्रशांत भूषण, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेघा पाटकर, पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल रामदास, रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी, प्रसिद्ध विचारक पुरुषोत्तम अग्रवाल यात्रा का हिस्सा बन चुके हैं तो फिल्मी दुनिया से पूजा भट्ट, सुशांत, स्वरा भास्कर, रश्मि देसाई, रिया सेन, आकांक्षा पुरी के अलावा दिग्गज अभिनेता अमोल पालेकर और कमल हासन भी अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं. इस यात्रा में डाक्टर, इंजीनियर के अलावा कॉमनवेल्थ गेम्स की गोल्ड मेडलिस्ट कृष्णा पूनिया ओलिंपिक शूटर दिव्यांश परमार, एशियन गोल्ड मेडलिस्ट भूपिंदर सिंह. ओलिंपिक में खेल चुके रेस वॉकर सपना पूनिया, तीरंदाज श्याम, धूलचंद दामोर जैसे खिलाड़ी भी शामिल हो चुके हैं. यात्रा में बॉक्सर विजेंदर सिंह भी शामिल हुए थे जिसकी तस्वीर खुद राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर शेयर की थी. इसके साथ उन्होंने लिखा- मूछों पर ताव, बाज़ुओं में दम, फौलादी इरादे, जोशीले कदम.
यात्रा से भाजपा में घबराहट
भले ही भाजपा के नेता कह रहे हैं कि राहुल गांधी की यात्रा से भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला... लेकिन सच्चाई थोड़ी अलग है. यात्रा की सफलता से भाजपा के एक खेमे में बेचैनी है तो दूसरी ओर वह तबका खुश है जो नफरत की राजनीति से परेशान चल रहा है. जब फिल्मी सितारों ने यात्रा में दिलचस्पी दिखाई तब महाराष्ट्र के भाजपा नेता नितेश राणे को यह कहना पड़ गया कि फिल्मी कलाकारों को यात्रा में हिस्सेदारी दर्ज करने के लिए पैसे दिए जा रहे हैं. उनके इस बयान पर अच्छी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली. लोगों ने यह माना कि उनका बयान किसान आंदोलन में शामिल होने वाली दादी को बदनाम करने जैसा था. राहुल की यात्रा से परेशान कुछ भाजपाइयों ने वह तस्वीर भी शेयर की जिसमें वे कुछ बच्चियों और महिलाओं का हाथ थामे चल रहे हैं. सोशल मीडिया में यह सवाल उठाया गया कि भारत को जोड़ने के लिए बच्चियों और महिलाओं का हाथ पकड़ना कहां तक उचित है. भाजपाइयों के इस टिव्हट के बाद सोशल मीडिया में प्रतिक्रियाओं की बाढ़ सी आई. बहुत से लोगों ने लिखा कि राहुल जिन बच्चियों और महिलाओं के हाथ को थामकर चल रहे हैं जब उन बच्चियों और महिलाओं को आपत्ति नहीं है तो फिर अंधभक्तों को परेशानी क्यों हो रही है ? राहुल की यात्रा को बदनाम करने के लिए बात टी-शर्ट और जूते पर भी आकर टिकी. कहा गया कि राहुल जिस जूते को पहनकर चल रहे हैं वह महंगा है. टी-शर्ट की कीमत ज्यादा है.
इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया की एक चिट्ठी से बवाल मच गया है. मांडविया ने राहुल गांधी को लिखा है-अगर यात्रा में कोविड प्रोटोकॉल संभव नहीं है तो इसे स्थगति कर दें. इसके जवाब में राहुल गांधी ने कहा है कि वे लोग ( भाजपा ) भारत के अन्य भागों में जितनी चाहें उतनी जनसभाएं कर सकते हैं, लेकिन जहां से भी भारत जोड़ो यात्रा गुजर रही है सिर्फ वहां कोविड नजर आता है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री पत्र लिखकर बता रहे हैं कि कोविड वापस आ गया है, यात्रा बंद करो. वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश का भी कहना है कि भारत जोड़ो यात्रा को रोकने के लिए भाजपा लगातार हथकंड़े अपना रही है. जो लोग भी यात्रा में शामिल हो रहे हैं उनके घरों की बिजली काटी जा रही है. यात्रा में शामिल हर व्यक्ति का टीकाकरण हो चुका है. हर यात्री कोरोना वैक्सीन की डबल डोज ले चुका है. कुछ लोग तो बूस्टर डोज भी ले चुके हैं बावजूद इसके बाधा पैदा की जा रही है.
यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने छोटी-बड़ी कई सभाओं को संबोधित किया है. यात्रा के दौरान उनका यह दो वक्तव्य बेहद महत्वपूर्ण है-
( एक )
यात्रा में सौ दिन से ज्यादा चल चुका हूं. यात्रा में हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, सभी जातियों के लोग, महिला-पुरुष, बच्चे सब शामिल हुए हैं. लाखों लोग चले हैं,कभी किसी ने किसी से नहीं पूछा कि तुम्हारा धर्म क्या है ? कहां से आए हो ? कौन सी भाषा बोलते हो ? सभी ने एक-दूसरे का आदर किया. कभी किसी ने किसी से नफरत नहीं की. यात्रा ने दिखा दिया है कि यह देश किसी से नहीं डरता है. जिस दिन यह देश एक साथ खड़ा हो गया उस दिन ये नफरत और हिंसा खत्म हो जाएगी.
( दो )
सात-आठ साल तक मोदी जी ने मुझे और कांग्रेस को बदनाम करने के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च किए.मैं एक शब्द नहीं बोला. जो कुछ भी झूठ बोला उन्होंने मेरे बारे में, मैं एक शब्द नहीं बोला मैं चुप रहा. मैंने कभी खुद को बचाने की कोशिश नहीं की. जब यात्रा को भरपूर समर्थन मिला तब पूरे देश ने देखा कि इस आदमी ( राहुल ) को केवल अपने देश के किसानों, श्रमिकों और किसानों से प्यार है.भाजपा और आरएसएस ने भारत को बांटने और नफरत फैलाने का काम किया है. कन्याकुमारी से यात्रा की शुरुआत करने से पहले मैंने सोचा था कि पूरे देश में नफरत है. मैं डरा हुआ था. लेकिन जब मैंने शुरुआत की, तो मुझे एक बात पता चली, लोग नफरत नहीं चाहते हैं, वे सिर्फ प्यार और मोहब्बत चाहते हैं.
- राजकुमार सोनी
98268 95207
दर्द की एक दवा और राजेश्वर सक्सेना
राजकुमार सोनी
इसी महीने 10 और 11 दिसम्बर की बात है.
मैं छत्तीसगढ़ साहित्य अकादमी की ओर से देश के गहन अध्येता राजेश्वर सक्सेना पर आयोजित राजेश्वर सक्सेना एकाग्र कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए बिलासपुर गया हुआ था. इसमें कोई दो मत नहीं कि आलोचना, दर्शन, इतिहास, आधुनिकता-उत्तर आधुनिकता और मार्क्स की गहरी समझ रखने वाले राजेश्वर सक्सेना पर आयोजित कार्यक्रम कई मायनों में बेजोड़ था. अकादमी के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त और उनकी टीम ने राजेश्वर सक्सेना की रचनाशीलता के विभिन्न पक्षों को रेखांकित करने के लिए देश के कई प्रमुख विद्वानों को आमंत्रित किया था. आयोजन में उनके रचनाकर्म पर गंभीर विमर्श देखने-सुनने को मिला. जब कहीं कोई एक सार्थक आयोजन होता है तो बहुत से लोग विचार के स्तर पर समृद्ध होते हैं. इस आयोजन की भी बड़ी सफलता यही थी कि बहुत से लोगों ने यह महसूस किया कि राजेश्वर सक्सेना को पढ़ा जाना क्यों जरूरी है.
जो लोग राजेश्वर सक्सेना को जानते हैं वे इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि वे आत्म प्रचार से दूर रहने वाले एक जबरदस्त साधक हैं. उनको देखकर, सुनकर और उनकी किताबों से गुजरकर लगने लगता है कि अभी कितना कुछ जानना-समझना बाकी है. हम कितने अज्ञानी है. हमने दुनिया को कितना थोड़ा जाना है?
राजेश्वर सक्सेना...86 साल के सबसे युवा प्रोफेसर है.
अब आप कहेंगे कि 86 साल का कोई बूढ़ा
भला युवा कैसे हो सकता है?
इस बात का जवाब कुछ ऐसा है कि जब 25-30 साल के युवा झड़ते हुए बालों के साथ बूढ़े हो सकते हैं तो हमारे समय का उत्साह से लबरेज एक बूढ़ा जवान क्यों नहीं हो सकता ?
अगर आपको यकीन ना हो तो कभी बिलासपुर जाइए. वहां नेहरू नगर के एलआईजी 52 में राजेश्वर सक्सेना रहते हैं. उनसे मिलिए. अपनी पसंद के किसी भी विषय पर बात करिए और फिर अपने दिमाग की बत्ती को जलते और गुल होते देखिए.
वे एक ऐसे प्रोफेसर हैं जो देश-दुनिया के किसी भी विषय पर तर्कसम्मत तरीके से आपसे बहस कर सकते हैं. उनसे मिलने के लिए देश-दुनिया के लेखक और विचारक बिलासपुर आते रहते हैं.जो लेखक और विचारक नहीं है वे लोग भी इस युवा प्रोफेसर से मिलते हैं और अपने दिमाग में जमी हुई काई को साफ कर लेते हैं.
दरअसल...प्रोफेसर राजेश्वर सक्सेना इसलिए भी युवा है क्योंकि वे अब भी कई-कई घंटों तक अध्ययनरत रहते हैं. सोशल मीडिया के इस भयावह दौर में जब हर इंसान ने पढ़ना-लिखना छोड़ दिया है तब वे हिन्दू, टाइम्स आफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स सहित चार अंग्रेजी अखबारों को पढ़ते हैं.
नए जमाने के नौजवानों के साथ उनका संवाद निरन्तर जारी रहता है. ( उनके साथ सक्रिय रहने वाले युवाओं के बारे में आगे चर्चा होगी )
उनके दो बच्चे हैं. एक बेटा प्रणव...कामकाज के सिलसिले में बैंगलोर रहता है. एक बेटी गुड्डी थीं जिसकी शादी हो गई है. कुछ साल पहले जब उनकी पत्नी गीता सक्सेना का निधन हुआ तो उनके पैर का एक हिस्सा भी अचानक खराब हो गया. उन्हें व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ा. बेटे प्रणव ने चाहा कि वे उनके साथ रहे, लेकिन यह संभव नहीं हो पाया. बिलासपुर को यूं ही अलविदा नहीं कहने का एक बड़ा कारण यह भी था कि वहां उनकी जड़ें मौजूद थीं. यहीं रहकर उन्होंने जीवन का महत्वपूर्ण रचनात्मक हिस्सा गुजारा है. पता नहीं मुझे क्यों लगता है कि बिलासपुर से नाता रखने की एक बड़ी वजह दो छोटे कमरों का वह मकान भी है जिसे उन्होंने अपनी गाढ़ी-बेशकीमती कमाई से मात्र 27 हजार रुपयों में खरीदा था. अब तो इस मकान के आसपास गगन को चुंबन देने वाली कई बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी हो गई है, लेकिन राजेश्वर सक्सेना का मकान ज्यो का त्यो है. मकान कई जगहों से झर रहा है. दीवालों से पपड़ी निकल रही है. सच तो यह भी है कि एक ईमानदार और प्रतिबद्ध लेखक के घर की दीवारों से पपड़ी नहीं तो क्या सोने और चांदी की ईंटें निकलेंगी ?
बहरहाल व्हील चेयर में आ जाने के बाद राजेश्वर सक्सेना की पूरी देख-रेख मुदित मिश्रा और उनके लोक प्रबोधन टीम से जुड़े युवा साथी कर रहे हैं. मुदित के साथ आदित्य सोनी, उपासना, कृष्णा, शिवानी, वीनू, मोनिका, विवेक, शिवम, सत्यम, वीशू, युवराज, आदर्श, कान्हा, धनराज, योगेंद्र, गौरव, धीरज, निहाल और नीरज शामिल है.
बिलासपुर में रहने वाले इन युवाओं के साथ एक अच्छी बात यह है कि इनमें से कोई भी युवा सक्सेना सर के कालेज का विद्यार्थी नहीं है. लेकिन सभी युवा ज्ञान अर्जन को लेकर जिज्ञासु है. टीम के सारे सदस्य पढ़ना-लिखना और बोलना चाहते हैं, लेकिन वे यह भी चाहते हैं कि उनका ज्ञान थोथा साबित न हो. इन युवाओं का एक अच्छा पक्ष यह भी है कि इन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी, भाजपा की बीटीम आम आदमी पार्टी और हिन्दू-मुस्लिम के जरिए नफरत फैलानी वाली विभाजनकारी ताकतों से अब तक अपने आपको बचाकर रखा है. टीम से जुड़े सभी सदस्य संवेदनशील है इसलिए मानवीय मूल्यों के पक्षधर है.
टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य मुदित मिश्र कहते हैं- फिलहाल हमारी टीम राजेश्वर सक्सेना जी की देख-रेख कर रही है, लेकिन सर मतलब राजेश्वर दयाल सक्सेना से पहले भी हमारी टीम के लोग बिलासपुर के शिवपुरी होटल में काम करने वाले बुजुर्ग दशरथ प्रसाद की सेवा किया करते थे. उनके निधन के बाद हम रंगकर्मी मनीष दत्त से जुड़े. वे भी अकेले रहते थे. मनीष दत्त जी के निधन के पश्चात हमें सर के अकेलेपन के बारे में पता चला. अब हमारे साथी बारी-बारी से तीन-तीन घंटे सर के साथ गुजारते हैं. एक साथी आदित्य सोनी हर रोज सुबह आठ बजे सर के घर उनकी दैनिक क्रिया को संभालने के लिए पहुंच जाता है. एक लड़की उपासना 24 घंटे उनके घर पर रहती है. जब वह गांव चली जाती है तो टीम का कोई न कोई सदस्य अपनी सेवा देने के लिए उपस्थित हो जाता है.टीम के सदस्यों ने राजेश्वर सक्सेना जी के घर एक सीसीटीवी कैमरा लगा रखा है. जो कोई भी उनसे मिलने आता है सब कैमरे में कैद होता है. उन्हें कोई जरूरत होती है तो वे घंटी बजा देते हैं. कोई उनकी कंघी करता है तो कोई उन्हें स्वेटर पहनाता है. कोई कोट तो कोई मफलर ठीक करता है. किसी प्रोफेसर ( वह भी सेवानिवृत ) का युवाओं के साथ ऐसा पारस्परिक संबंध फिलहाल कहीं देखने में नजर नहीं आता है. कुछेक व्यावसायिक फिल्मों में ऐसा दृश्य मैंने अवश्य देखा है.
दर्द की एक दवा...
बिलासपुर जल संसाधन विभाग परिसर के प्रार्थना भवन में 11 दिसम्बर को एक सत्र का विषय था-संस्मरणों के आलोक में राजेश्वर सक्सेना. इस सत्र में लोक प्रबोधन टीम के आदित्य सोनी ने कहा- सर की रचनाओं से तो बहुत कुछ सीखा ही जा सकता है, लेकिन सर के व्यक्तित्व से भी खुद को बेहतर मनुष्य बनाया जा सकता है. सर न केवल अपने आस-पड़ोस की...बल्कि पूरी दुनिया की चिन्ता करते है. जहां कहीं भी अन्याय दिखता है... सर दुखी हो जाते है. एक बाल काटने वाला उनके घर आता है. सर उसे भी ज्यादा भुगतान अदा करते है. सर मानते हैं कि मेहनतकश मजदूरों को उनका वाजिब हक मिलना ही चाहिए. मैं तो कुछ भी नहीं था. एक बार सर ने मुझे कैमरा खरीदकर दिया और कहा- तुम बेहद कल्पनाशील हो. अपनी कल्पना को कैमरे में कैद करना सीखो, लेकिन अकेले कल्पनाशील होने से क्या होगा जब तक कल्पना को मूर्तरूप न मिले. मैं तुम्हें कैमरा नहीं... एक ऐसा यंत्र दे रहा हूं जो तुम्हारी कल्पना को व्यक्तिनिष्ठता के बजाय वस्तुनिष्ठता में परिवर्तित करेगा. सर का पूरा जोर रुपातंरण पर रहता है.आज मैं फोटोग्राफर बन गया हूं. एक बार मैंने देखा कि सर देर रात तक जाग रहे थे. वे कुछ पढ़ रहे थे. मैं चुपके से उनके कमरे में गया और उनकी एक तस्वीर लेकर बाहर आ गया. बाद में मैंने पूछा- सर... आप सोये नहीं. सर ने कहा- जब भी पैर में दर्द होता है तो मैं किताब पढ़ता हूं. किताब पढ़ने से दर्द का पता नहीं चलता.
पहली बार मैंने जाना कि दर्द की एक दवा का नाम किताब भी है.
अगुस्ता हेलिकाफ्टर की खरीदी में क्या था पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह का रोल... उठी जांच की मांग
रायपुर. सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला और अभिषेक प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से अगुस्ता हेलिकाफ्टर खरीदी में हुए घोटाले की जांच करवाने की मांग की है. एक बयान में दोनों ने कहा कि पुराने और खस्ताहाल हेलिकाफ्टर की वजह से कैप्टन गोपाल कृष्ण पांडा एवं डीजीसीए के ट्रेनर पायलट कैप्टन एपी श्रीवास्तव को अपनी जान गंवानी पड़ी है. यह एक प्रकार से हत्या का मामला है. इस हत्या के लिए जो भी दोषी है उसे कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई अन्य ऐसा अपराध करने की हिम्मत नहीं कर सके. उन्होंने कहा कि सरकारी अगुस्ता हेलीकॉप्टर की खरीदी में घोटाला हुआ था इसकी आशंका बनी हुई है. उन्होंने दावा किया कि घोटाले का पैसा पनामा की किसी शैल कंपनी के खाते में जमा किया था फलस्वरूप निम्न बिंदुओं पर जांच होनी चाहिए.
1 हेलीकॉप्टर की निविदा प्रक्रिया की जांच.
2. निविदाकरों के आपसी संबंध /व्यावसायिक लेनदेन की जांच.
3 अन्य राज्य सरकारों को अगुस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर में समतुल्य तकनीक के बाद प्राप्त क्रय दर की जांच.
4 अन्य कंपनी के हेलिकॉप्टर निर्माताओं को निविदा में भाग लेने से रोकने हेतु निविदा में अधिरोपित शर्त तथा बिंदुओं की जांच.
5 तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह एवं उनके कार्यालय के भूमिका की जांच.
6 जांच की जाय जिस कंपनी/व्यक्ति/एजेंट से हेलीकॉप्टर खरीदा गया था उसकी पृष्ठभूमि तथा एविएशन के सेक्टर में उसका अनुभव क्या था?
7 छत्तीसगढ़ सरकार को अगुस्ता वेस्टलैंड का स्पेसिफिक मॉडल ही खरीदना है. यह तय करने के लिए क्या कोई समिति बनी थी अगर समिति बनी थी तो उसके सदस्य कौन कौन थे और समिति का निर्णय क्या था?इस तथ्य की जांच की जाय.
8 तकनीकी विशेषज्ञ से जांच करवाई जाए क्या छत्तीसगढ़ की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए अगुस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर ही सबसे उपयुक्त था? अगर नहीं तो फिर दूसरे हेलीकॉप्टर निर्माता कंपनियों के मॉडल पर क्यों विचार नहीं किया गया ?
क्या छत्तीसगढ़ के भाजपा नेता एक मई को खा पाएंगे बोरे-बासी ?
मजदूर दिवस के दिन चलेगा बोरे बासी का जोर
छत्तीसगढ़ के लोग बोरे बासी खाकर करेंगे श्रम का सम्मान
रायपुर. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राज्य की कला, संस्कृति, आहार के संरक्षण और संवर्धन को लेकर जो कुछ भी कर रहे हैं उसका सीधा और साकारात्मक प्रभाव ठेठ छत्तीसगढ़ियों में साफ-साफ दिखाई दे रहा है. स्थानीयता की रंगत लिए हुए छत्तीसगढ़ के अनेक त्योहारों को पूरी आत्मीयता के साथ मनाकर मुख्यमंत्री ने भारतीय जनता पार्टी की शहरी संस्कृति को सीधे तौर पर चुनौती दे डाली है. मुख्यमंत्री की कार्यशैली से सर्वाधिक परेशानी भारतीय जनता पार्टी के उन नेताओं को हो रही हैं जो मूल रुप से छत्तीसगढ़ के नहीं है. सूबे की सत्ता में लंबे समय तक काबिज रहे भाजपा के नेता गत साढ़े तीन सालों से संस्कृति संवाहक भूपेश बघेल की काट ढूंढने में ही लगे हुए हैं, लेकिन कोई काट नहीं मिलते देखकर वे भी अब ऐती-ओती चारों कोती जय छत्तीसगढ़-जय छत्तीसगढ़ करने लगे हैं. इधर भूपेश बघेल ने एक मई को मजदूर दिवस के मौके पर देश-दुनिया में बसे छत्तीसगढ़ के लोगों को, सांसदों, विधायकों, जनप्रतिनिधियों और युवा पीढ़ी से बोरे बासी खाने का अनुरोध किया है. उनके इस अनुरोध के बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या भाजपा के नेता बोरे-बासी खाकर अपने छत्तीसगढ़िया होने का परिचय देंगे ? हर रोज सुबह नाश्ते में काजू-कतली का सेवन करने वाले नेता क्या बोरे बासी खाना पंसद करेंगे ? मुख्यमंत्री ने बोरे-बासी खाने वाले सभी लोगों से सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों में फोटो शेयर करने और श्रम दिवस को गौरव का दिवस मनाने की अपील भी की है. मुख्यमंत्री की इस अपील से आम छत्तीसगढ़िया तो खुश हैं, लेकिन यह देखना मजेदार होगा कि छत्तीसगढ़ की चिन्ता करने वाले कौन-कौन से नेता बोरे बासी खाकर फोटो अपलोड़ करते हैं. वैसे दिल्ली दौरे से लौटे भाजपा के वरिष्ठ नेता धरमलाल कौशिक ने साफ कर दिया है कि उनका इरादा बोरे बासी खाने का नहीं है. पत्रकारों से बातचीत में कौशिक ने कहा कि बोरे बासी मुख्यमंत्री को मुबारक हो. वे खाएं और उनके मंत्री खाएं
क्या है बोरे बासी
बोरे-बासी छत्तीसगढ़ का ऐसा भोजन है जो बचे हुए चावल को पानी में भिगोकर रात भर रख कर बनाया जाता है. फिर सुबह उसमें हल्का नमक डालकर टमाटर की चटनी या अचार और कच्चे प्याज के साथ खाया जाता है. छत्तीसगढ़ के लोग प्रायः सुबह बासी का ही नाश्ता करते हैं. बोरे बासी खाने से न सिर्फ गर्मी और लू से राहत मिलती है, बल्कि बीपी कंट्रोल रहता है डि-हाइड्रेशन की समस्या नहीं होती है.
मुख्यमंत्री को मिली बधाई
मुख्यमंत्री की अपील पर छत्तीसगढ़ होटल एवं रेस्टोरेन्ट एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बधाई दी है. एसोसिएशन ने कहा है कि एक मई मजदूर दिवस पर हमारे संस्थान में कार्यरत कर्मचारी जिनकी मेहनत एवं कर्तव्य निष्ठा से हमारे व्यापार को मजबूती मिलती है उनके सम्मान और उनके परिजनों व साथियों के लिए हम बोरे बासी व्यंजन की व्यवस्था करने जा रहे हैं. आपने स्थानीय खान पान को छत्तीसगढ़िया सम्मान के साथ जोड़कर हमारी संस्कृति, विरासत और परंपरा को संजोने का जबरदस्त काम किया है. आपने कहा था कि हर श्रमिक, किसान और काम करने वाली बहनों के पसीने में बासी की महक है. यह वास्तव में आपकी संवेदना और आपके मन में श्रमिकों के सम्मान को दर्शाता है। इसके लिए हम आपके हृदय से आभारी है.
डाक्टर खूबचंद बघेल की कविता वायरल
छत्तीसगढ़ के स्वप्ननदृष्टा और महान समाज सुधारक लेखक डाक्टर खूबचंद बघेल छत्तीसगढ़ की कला-संस्कृति और रीति-रिवाजों की महक में किस तरह से रचे बसे थे, इसका अंदाजा छत्तीसगढ़ के जायकेदार व्यंजन बोरे-बासी पर उनके द्वारा लिखी गई शानदार कविता को देखकर लगाया जा सकता है. उनकी यह कविता भी खूब वायरल हो रही है.
बोरे बासी
बासी के गुण कहूं कहां तक, इसे ना टालो हांसी में
गजब बिटामिन भरे हुए हैं छत्तीसगढ़ के बासी में
नादानी से फूल उठा मैं, ओछो की शाबाशी में
फसल उन्हारी बोई मैंने, असमय हाय मटासी में
अंतिम बासी को सांधा, निज यौवन पूरन मासी में
बुद्ध-कबीर मिले मुझको, बस छत्तीसगढ़ के बासी में
विद्वतजन को हरि दर्शन मिले, जो राजाज्ञा की फांसी में
राजनीति भर देती है यह, बूढ़े में सन्यासी में
विदुषी भी प्रख्यात यहां थीं, जो लक्ष्मी थीं झांसी में
स्वर्गीय नेता की लंबी मूंछे भी बढ़ी हुई थी बासी में
खैरागढ़ उपचुनाव...फिलहाल कांग्रेस का पलड़ा भारी
रायपुर. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ में इसी महीने 12 अप्रैल को होने वाले उपचुनाव के लिए जंग तेज हो गई है. प्रदेश में भूपेश बघेल की सरकार बनने के बाद दंतेवाड़ा, चित्रकोट और मरवाही के उपचुनाव में जीत का परचम फहरा चुकी कांग्रेस के हौसले फिलहाल बुलंद नजर आ रहे हैं तो दूसरी ओर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए अंतिम लड़ाई लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह और उनकी चिर-परिचित टीम का जोर-शोर भी चुनाव में देखने को मिल रहा है.
वैसे तो खैरागढ़ की अपनी एक सांस्कृतिक पहचान है. यहां मौजूद इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय की ख्याति पूरी दुनिया में फैली हुई है. इलाके की अपनी सांस्कृतिक महत्ता होने के बावजूद यह क्षेत्र कई तरह की समस्याओं से जूझता रहा है. इलाके के लोग लंबे समय से खैरागढ़ को जिला बनाने की मांग करते रहे हैं. उनकी इस मांग पर पहली बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह कहते हुए मुहर लगा दी है कि कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव जीत जाने के 24 घंटे के भीतर खैरागढ़ जिला बन जाएगा. मुख्यमंत्री की इस घोषणा के साथ ही बाजी ही पलट गई है. भाजपा के लोग भी अब दबे स्वर में यह मानने लगे हैं कि मुख्यमंत्री ने जिले की घोषणा के जरिए एक तरह से ब्रम्हास्त्र चला दिया है. हालांकि भाजपा यह प्रचार करने में भी जुटी है कि मुख्यमंत्री ने पहले भी बड़ी-बड़ी घोषणाएं की थीं, लेकिन एक भी घोषणा पूरी नहीं हो पाई है. जनता को उनके वादे पर यकीन नहीं करना चाहिए. एक तरह से भाजपा कांग्रेस की इस घोषणा का विरोध करते हुए ही दिख रही है. भाजपा के इस विरोध का परिणाम भी यह हुआ है कि कई गांव के रहवासियों ने पोस्टर-बैनर में यह लिखकर तान दिया है कि जो लोग भी खैरागढ़ को जिला बनाने का विरोध कर रहे हैं वे लोग कृपया हमारे गांव में प्रवेश ना करें.
जहां तक मुख्यमंत्री की घोषणा और वादे की बात है तो लोग जिला बन जाने की बात पर यकीन कर रहे हैं. इलाके के रहवासियों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने अब तक जनता के सामने जो कुछ भी कहा है उसे समय रहते पूरा किया है. सरकार के गठन के तुरन्त बाद मुख्यमंत्री ने किसानों का कर्ज माफ करते हुए उन्हें बोनस दे दिया था. यह सिलसिला अब भी चल रहा है. अभी पिछले महीने ही किसानों के खाते में अच्छी-खासी धनराशि स्थानांतरित की गई है. इसके अलावा भाजपा के शासनकाल में जिन आदिवासियों की जमीन हथिया ली गई थीं उसे भी लौटा दिया गया है. खैरागढ़ का पूरा चुनाव अब प्रत्याशियों की मौजूदगी का ना होकर मुख्यमंत्री की ओर से किए गए वादे की धुरी बनकर रह गया है.
खैरागढ़ के पत्रकार प्रशांत सहारे कहते हैं-इलाके के नागरिक अपनी छोटी-बड़ी सभी तरह की समस्याओं के निराकरण के लिए 40 किलोमीटर दूर राजनांदगांव आना-जाना करते थे, लेकिन जैसे ही खैरागढ़ को जिला बनाने की घोषणा हुई है वैसे ही वे उत्साह से भर गए हैं. इलाके में गोधन न्याय योजना का लाभ भी किसानों को मिल रहा है तो स्वाभाविक ढंग से पूरा चुनाव कांग्रेस की तरफ टर्न हो गया है.यशोदा वर्मा के चुनाव जीतने से कम से कम खैरागढ़ जिला तो बन ही जाएगा. अंबागढ़ चौकी के पत्रकार हरदीप छाबड़ा भी मानते हैं कि खैरागढ़ को जिला बनाने की घोषणा ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है. छाबड़ा कहते हैं- वर्ष 2018 के चुनाव में जोगी कांग्रेस के प्रत्याशी देवव्रत सिंह मात्र 870 वोट से ही भाजपा के प्रत्याशी कोमल जंघेल से जीत हासिल कर पाए थे. पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थीं. साल्हेवारा का वह क्षेत्र जहां 52 बूथ हैं वहां पिछली बार भाजपा मात्र 12 में ही आगे थीं, शेष पर देवव्रत सिंह ने बढ़त बनाई थीं, लेकिन इस बार लगता है कि साल्हेवारा में कांग्रेस मजबूत होकर उभरेगी. गंडई के नागरिक रोहित देवांगन का कहना है कि इलाके में लोधी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है. दोनों प्रमुख पार्टियों ने लोधी समाज के प्रत्याशी को ही मैदान में उतारा है. कांग्रेस की प्रत्याशी यशोदा वर्मा को भाजपा प्रत्याशी कोमल जंघेल अच्छी टक्कर दे रहे हैं. कई बार यह समझना मुश्किल हो जाता है कि दोनों में से कौन जीत हासिल कर पाएगा ? रोहित आगे कहते हैं- भाजपा के कार्यकर्ताओं की जबरदस्त मेहनत के बावजूद गांव-गांव में यह संदेश फैल गया है कि अगर कोमल जंघेल जीत भी गए तो 18 महीने के विधायक बनकर क्षेत्र के विकास के लिए भला क्या कर पाएंगे ? गंडई के ही रवि जंघेल का कहना है कि कोमल जंघेल पहले भी दो बार चुनाव हार चुके हैं. वे जब विधायक थे तब भी उन्होंने क्षेत्र के विकास के लिए कोई महत्वपूर्ण काम नहीं किया था. अब तीसरी बार उन्हें इसलिए मैदान में उतारा गया है ताकि 2023 के चुनाव से उन्हें तीन बार का हारा हुआ प्रत्याशी बताकर बाहर किया जा सकें. रवि कहते हैं- देखिएगा अगली बार भाजपा के बड़े नेता खैरागढ़ से किसी के बेटे, भतीजे-भांजे या राजपरिवार के सदस्य पर दांव लगाएंगे. बाजार अतरिया के सुरेश वर्मा का कहना है कि कोमल जंघेल को लेकर यह अंडर कंरट भी चल रहा है कि चूंकि वे दो बार चुनाव हार चुके हैं इसलिए इस बार उन्हें चुनाव जीता देना चाहिए.
खैरागढ़ में वर्तमान में कुल मतदाताओं की संख्या 2 लाख 11 हजार 540 हैं, जिसमें से एक लाख छह हजार 290 पुरूष मतदाता एवं एक लाख पांच हजार 250 महिला मतदाता है. इन मतदाताओं में कितने लोग अपने मतदान का प्रयोग करेंगे यह फिलहाल साफ नहीं है. चुनाव में कुल दस प्रत्याशी मैदान में हैं. पिछली बार जोगी कांग्रेस ने यहां से जीत हासिल की थीं लेकिन इस मर्तबा जोगी कांग्रेस का प्रत्याशी मैदान में अवश्य है,किंतु उसकी चर्चा नहीं के बराबर है. कुछ प्रत्याशी वोटकांटू भी हैं. सीधे तौर पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है. अगर यह चुनाव कांग्रेस के पक्ष में जाता है यह 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेसजनों में दोगुने उर्जा का संचार करेगा. भाजपा की जोर आजमाइश भी इसलिए चल रही है कि उसे अपने बुझे और थके हुए कार्यकर्ताओं को बुस्टअप करना है. चुनाव में जीत हासिल करने के लिए हर रोज नए-नए पैंतरे आजमाए जा रहे हैं. बीजेपी के लगभग 40 से ज्यादा आला नेता खैरागढ़ में प्रचार कर रहे हैं जबकि अन्य नेताओं के साथ मुख्य रुप से प्रचार-प्रसार की बागडोर भूपेश बघेल ने संभाल रखी हैं. उनकी ठेठ छत्तीसगढ़ी को सुनने के लिए लोग एकत्रित हो रहे हैं. उनकी हर सभा में कोई न कोई यह कहते हुए मिल ही जाता है- झन चिंता कर...अरे...कका जिंदा हे.
राजकुमार सोनी
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विपक्ष की पिच पर भूपेश बघेल की बैटिंग
रायपुर. छत्तीसगढ़ विधानसभा के हर सत्र में विपक्षी सदस्य भूपेश बघेल को घेरने के लिए मुस्तैद दिखाई देते रहे हैं, लेकिन पता नहीं क्यों उनकी मुस्तैदी शून्य बटे सन्नाटे जैसे स्लोगन में तब्दील होती रही है. हर सत्र में विपक्ष के सदस्य फार्म में दिखाई देते हैं. खेलने के लिए पिच पर दौड़ा-भागी करते हुए भी नजर आते हैं, लेकिन अचानक भूपेश बघेल बैट लेकर आते हैं और चौका-छक्का जड़कर निकल जाते हैं. विधानसभा के बजट सत्र में इस बार भी यही सब देखने को मिला है. विपक्ष लेंथ से हटकर गेंद फेंकता रहा और गेंद बाउंड्री के बाहर जाती रही. भीतर से टूटा और बिखरा हुआ विपक्ष इस बार भी कोई कमाल नहीं कर पाया.
फिल्म कश्मीर फाइल्स के प्रदर्शन से उभरे ज्वार के बाद विपक्षी सदस्यों को यह लगा था कि वे फिल्म को टैक्स फ्री करने के बहाने प्रदेशवासियों को राष्ट्रवाद का चूरन चटाने में सफल हो जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. विपक्ष ने सदन में इस बात के लिए हो-हल्ला मचाया कि छत्तीसगढ़ की सरकार को फिल्म टैक्स फ्री क्यों नहीं कर रही है? मुख्यमंत्री ने तुरन्त इरादों को भांपकर सदन में ही घोषणा कर दी कि वे फिल्म देखने जा रहे हैं. उन्होंने विपक्ष के सदस्यों को भी साथ चलकर फिल्म देखने का निवेदन किया. जाहिर सी बात है कि उनके इस आमंत्रण के पीछे का मकसद साफ था कि जब तक फिल्म नहीं देख लेते तब-तक फिल्म के टैक्स फ्री होने की घोषणा कैसे कर सकते थे. मुख्यमंत्री ने राज्य के गणमान्य नागरिकों और पत्रकारों के साथ फिल्म को देखा और हाल के बाहर पत्रकारों से कहा कि फिल्म में आधा-अधूरा सच ही दिखाया गया है. मुख्यमंत्री के आग्रह के बाद भी विपक्षी सदस्य फिल्म देखने नहीं पहुंचे. अब वे उस हाल में नहीं जा रहे हैं जहां उनका कार्यकर्ता फ्री फंट की टिकट लेकर खड़ा है.
विपक्ष उन्हें बड़े भवनों और सड़कों के निर्माण न होने पर घेरना चाहता था लेकिन मुख्यमंत्री ने साफ कहा कि जब सरकार बनी और कैबिनेट की पहली बैठक हुई तब मैंने मुख्य सचिव, सचिव, कलेक्टर और अन्य अधिकारियों से पूछा कि प्रदेश में इतनी बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बन गई. या बना दी गई है. एक बात बताइए इन बिल्डिंगों से मेरे आदिवासियों भाइयों और खदान प्रभावित क्षेत्र के रहवासियो के जीवन क्या परिवर्तन आया है ? बैठक में उपस्थित एक भी अधिकारी यह बताने की स्थिति में नहीं था कि कोई परिवर्तन आया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि डीएमएफ का मद आदिवासी परिवारों और खदान प्रभावित परिवारों पर भी खर्च होना चाहिए. अगर डीएमएफ मद से मिले हुए पैसों से वह अपनी पंसद की चप्पल ले लेगा. अपनी पसंद का कपड़ा खरीद लेगा. अपनी पसंद के हास्पिटल में जाकर इलाज करवा लेगा तो किसी को क्या समस्या है. अगर प्रभावितों के जीवन में परिवर्तन नहीं आता है तो फिर योजनाओं का कोई मतलब नहीं है. मुख्यमंत्री का कहना था कि आदिवासी इलाकों में पहले सड़कों को फोर्स को जाने के लिए बनाया जाता था, लेकिन अब सड़के आदिवासियों की मांग पर बनती है.
इसमें कोई दो मत नहीं कि भाजपा के शासनकाल में बस्तर के दूरस्थ इलाकों में मौजूद घोटुल को माओवादियों और सरकार के उपक्रम ने खत्म कर दिया था. फोर्स घोटुलों में इस शक पर छापा मारती थीं कि गांव के आदिवासी लड़के और लड़कियां घोटुलों में नक्सलियों को पनाह देते हैं. जबकि वस्तुस्थिति ऐसी नहीं थीं. घोटुलों में मौजूद युवा अपनी संस्कृति और परम्परा का निर्वाह करने के लिए एकत्रित होते थे. एक बार फिर बस्तर के घोटुलों में मांदर की थाप और महुए की गंध लौट आई है. सदन में विपक्ष ने मुख्यमंत्री को संस्कृति के मसले पर भी घेरने की कोशिश की, लेकिन संस्कृति के संरक्षण के लिए सजग रहने वाले मुख्यमंत्री ने बताया कि घोटुल की संस्कृति एक बार फिर जीवित हो उठी है. बस्तर के युवक और युवतियां उन्हें राजधानी रायपुर आकर धन्यवाद दे चुके हैं.
गौरतलब है कि पिछले दिनों प्रदेश के ही एक मंत्री ने एक जिले में पदस्थ कलेक्टर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थीं. विपक्ष ने जब इस मसले पर सवाल उठाए तो मुख्यमंत्री बघेल ने कहा- डाक्टर साहब अपना अनुभव साझा कर रहे थे. वे नगद के बजाय गोल्ड वगैरह लेते थे, यह सुनते थे. ससुराल वाले, समधी, ये वो. बहुत सुना करते थे. बहुत चर्चाएं भी होती थीं, लेकिन मैं जिम्मेदारी के साथ कहता हूं कि अगर किसी भी अधिकारी-कर्मचारी की पोस्टिंग के बारे में किसी तरह के रेट वगैरह की जानकारी है तो अवश्य दीजिए. चाहे विधायक हो या मंत्री. आप सभी जनप्रतिनिधि हैं. आपकी बात सुर्खियों में आती है.केवल सुर्खियां बटोरने के लिए यह सब न करें. अगर आपके पास जानकारी है तो तथ्यात्मक ढंग से सामने रखिए. पूरी कार्यवाही होगी. निष्पक्ष कार्यवाही होगी और सजा भी मिलेगी. हमारी सरकार में दो-दो एडिशनल डीजी के खिलाफ कार्यवाही हुई है. मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछली सरकार में पूर्व मुख्यमंत्री के समधी के भ्रष्टाचार का मामला सामने आया था. हमारे लाख प्रतिरोध के बावजूद समधी को बचा लिया गया. अपने विभाग पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने सिलसिलेवार जवाब तो दिया ही. उन्होंने विनियोग विधेयक पर भी तथ्यों और आंकड़ों के साथ बेहद दमदार तरीके से अपनी बात रखीं. विपक्ष खामोशी से सुनता रहा. भूपेश बघेल के पास अपनी सरकार के बारे में बताने के लिए बहुत कुछ था लेकिन विपक्ष के 14 सदस्यों में से एक की यह मांग थी कि सरकार भांग के नशे को बढ़ावा देने के लिए कुछ सार्थक प्रयास करें. विपक्ष के सदस्य कृष्णमूर्ति बांधी का कहना था कि नशा चाहिए...नशा...ड्रग से चाहिए या अफीम से चाहिए. मुख्यमंत्री को केंद्र के पास प्रस्ताव भेजना चाहिए. मुख्यमंत्री जी भांग के लिए तो कुछ कर ही सकते हैं. भांग के सेवन से अपराध की प्रवृति खत्म होती है. मुख्यमंत्री ने कृष्णमूर्ति बांधी से कहा कि इसके लिए तो अशासकीय संकल्प लाना पड़ जाएगा. कृष्णमूर्ति बांधी ने कहा कि जब भी अशासकीय संकल्प लाया जाएगा मैं उसका समर्थन करूंगा. आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने बांधी से पूछा कि आपको होली में कुछ मिला था या नहीं ? बांधी ने कहा- मिला था...लेकिन कम था.सदन में विपक्ष के सदस्य अजय चंद्राकर, धर्मजीत सिंह और बृजमोहन अग्रवाल प्रदर्शन संतोषजनक था, लेकिन ये तीन खिलाड़ी कितना खेल सकते थे ?
राजकुमार सोनी
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जब मुख्यमंत्री ने अजय चंद्राकर की तरफ मुखातिब होकर कहा- मैं आपसे बहुत कमजोर हूं...मगर किस मामले में... ये सत्यनारायण जी बताते रहते हैं
रायपुर. छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र के दूसरे दिन प्रदेश के युवाओं को नौकरी देने के मामले में सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच नोंक-झोंक देखने को मिली. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सधी हुई तैयारी के साथ जवाब दे रहे थे, लेकिन विपक्ष के सदस्य टोका-टाकी करते रहे. वरिष्ठ सदस्य अजय चंद्राकर ने जब दो-तीन बार हस्तक्षेप कर मामले को गंभीर बताया तब मुख्यमंत्री बघेल ने कहा- अजय जी...मैं आपके मामले में बहुत कमजोर हूं. मगर किस मामले में कमजोर हूं ये सत्यनारायण जी हमको बताते रहते हैं. मुख्यमंत्री के इस कथन के बाद सदन में हंसी का फव्वारा छूट पड़ा. प्रश्नकाल की समाप्ति के बाद मुख्यमंत्री के इस कथन के निहितार्थ ढूंढे जाते रहे.
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने यह जानना चाहा था कि प्रदेश में जनवरी 2019 से 31 जनवरी 2022 तक कुल कितने लोगों को नौकरी दी गई है. उन्होंने अनियमित, संविदा में पदस्थ कर्मचारियों और दैनिक वेतनभोगियों की नियुक्ति का मामला भी उठाया. जवाब में मुख्यमंत्री ने बताया कि हर कार्य की एक प्रक्रिया होती है. सभी तरह की नियुक्तियों के संबंध में प्रक्रिया जारी है. बघेल ने बताया कि जनवरी 2019 से लेकर 31 जनवरी 2022 तक 20 हजार 291 लोग नियुक्ति पा चुके हैं, शेष के लिए प्रक्रिया जारी है. अनियमित, संविदा और दैनिक वेतनभोगी को नियमित किए जाने को लेकर सामान्य प्रशासन विभाग ने विधि विभाग से अभिमत मांगा है जबकि विधि विभाग ने महाधिवक्ता का अभिमत प्राप्त होने के बाद जानकारी देने की बात कहीं है. मुख्यमंत्री ने सदन को बताया कि युवाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिले इसे लेकर वाणिज्य विभाग के प्रमुख सचिव और सार्वजनिक उपक्रम विभाग की अध्यक्षता में एक कमेटी भी गठित की गई है. मुख्यमंत्री ने बताया कि कमेटी की एक बैठक में विभागाध्यक्ष कार्यालय, निगम मंडल, संस्था में पूर्व से कार्यरत अनियमित दैनिक वेतनभोगियों और संविदा में कार्यरत कर्मचारियों की जानकारी चाही गई है. अभी तक 33 विभागों ने जानकारी दी है. शेष विभागों से भी जल्द ही जानकारी देने को कहा गया है. मुख्यमंत्री ने कहा कि नियमितिकरण की मांग को लेकर सरकार काफी गंभीर है तभी इसे घोषणा पत्र में शामिल किया गया है.
भाजपा नेता शिवरतन शर्मा ने आरोप लगाया कि सरकार रोजगार देने के मामले में गलत आंकड़े पेश कर रही है. उन्होंने वित्त विभाग की ओर से 40 हजार 35 पदों पर भर्ती की स्वीकृति को लेकर जानकारी चाही. मुख्यमंत्री ने कहा कि सदस्य का प्रश्न काफी विस्तृत हैं जिस पर एक लाइन में जवाब देना संभव नहीं है. मुख्यमंत्री ने सदन में वर्षवार दी गई नौकरियों के आंकड़े पढ़कर सुनाए. मुख्यमंत्री की ओर से दी जाने वाली इस जानकारी के बाद भी विपक्ष के सदस्य टोका-टाकी करने लगे तो आसंदी की ओर से कहा गया कि सब जानकारी परिशिष्ट में उपलब्ध है. माननीय सदस्य वहां से पढ़ सकते हैं. विपक्ष के शोरगुल के बीच कांग्रेस के सदस्य मोहन मरकाम ने कहा कि जो लोग 15 साल में ठीक ढंग से किसी को भी रोजगार नहीं दे पाए वे लोग हमसे रोजगार पर जवाब मांग रहे हैं. विपक्ष ने सरकार के जवाब से असंतुष्ट होकर वाकआउट भी किया.
यूपी चुनाव में नहीं चला हिन्दू-मुस्लिम खेला
नवम्बर 2021 को जब यह तस्वीर वायरल हुई थीं तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने टिव्हटर पर लिखा था-
हम निकल पड़े हैं प्रण करके
अपना तन-मन अर्पण करके
जिद है एक सूर्य उगाना है.
अम्बर से ऊँचा जाना है
एक भारत नया बनाना है.
इस तस्वीर के वायरल होते ही राजनीति के गलियारों में यह चर्चा चल पड़ी थीं कि योगी और मोदी के बीच किसी भी तरह की कोई दूरी नहीं है. योगी को मोदी का भरपूर साथ मिल रहा है. इधर यूपी चुनाव के पांच चरणों के चुनाव के बाद तस्वीर थोड़ी पलट गई है. खबरें बताती है कि चुनाव के दौरान किसी पोस्टर से योगी का चेहरा गायब था तो कहीं पर मोदी की तस्वीर गायब थीं. उत्तर प्रदेश की राजनीति को देखने समझने वाले राजनीतिक प्रेक्षक बताते हैं कि चुनावी रैलियों के दौरान भी योगी और मोदी के बीच विभाजन साफ-साफ देखने को मिला है. यानि जिस रैली में मोदी थे वहां योगी नहीं थे और जहां योगी रैली कर रहे थे वहां मोदी अनुपस्थित थे.अमूमन ऐसा होता नहीं है. किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री अपने शीर्ष नेतृत्व के आगमन पर पलक पावड़े बिछाकर खड़ा रहता है,लेकिन यूपी में यह परम्परा एक सिरे से ओझल थीं.
बहरहाल यूपी में किसकी सरकार बनेगी इसका खुलासा तो 10 मार्च को ही होगा जब परिणाम घोषित होंगे, लेकिन भाजपा की राजनीति को पसंद करने वाला एक बड़ा धड़ा मानता है कि चाहे जो परिस्थिति हो... सरकार भाजपा की बनने वाली है जबकि बहुत से लोग ऐसे हैं जो मान रहे हैं कि इस बार यूपी में बदलाव की बयार बह रही है. मोदी और योगी मौजूदगी को महत्वपूर्ण मानने वाले एक प्रेक्षक की राय है कि यूपी में कई तरह के फैक्टर काम कर रहे हैं. हर सीट का अपना गणित है और हर गणित को हल करने मास्टर टीवी और यू ट्यूब चैनल पर अपनी राय व्यक्त कर रहे हैं. एक धड़े की राय है कि प्रदेश में ठाकुरवाद के हावी होने के बाद से ब्राम्हण लॉबी पूरी तरह से नाराज चल रही थीं सो यह लॉबी भाजपा को सबक सिखाने के पक्ष में हैं. यूपी में पूर्वांचल का एक बड़ा धड़ा जो भूमिहार है वह ब्राम्हणों की उपेक्षा से नाराज चल रहा है. यह धड़ा 2024 को होने वाले आम चुनाव में मोदी को तो वोट देने की कसम तो खाता है लेकिन योगी को सबक सिखाने की बात भी कहता है.
चुनाव से ठीक पहले यह समझा जा रहा था कि यूपी में हिन्दू-मुस्लिम का कार्ड जोरदार ढंग से चल जाएगा और सफल भी होगा,लेकिन बंगाल की तरह यह कार्ड यहां भी लगभग फेल हो गया है. पश्मिमी उत्तर प्रदेश में पूरी कोशिश यहीं थीं कि जाट और मुस्लिम मतदाताओं के बीच एका ना हो पाए... लेकिन यह कोशिश बेकार साबित हुई. यूपी के अयोध्या में जहां भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बन रहा है वहां समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी अभय सिंह पांडे की स्थिति मजबूत बताई जा रही है. अगर भाजपा के हाथ से अयोध्या निकल जाती है तो 2024 के आम चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है. हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव में अभय सिंह पहले भी चुनाव जीत चुके हैं. खबर तो यह भी है कि कौशांबी जिले की सिराथू सीट से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या चुनाव हार रहे हैं.
हालांकि अभी तीन और सात मार्च को कुल दो चरण में चुनाव का होना बाकी है. राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि छठवें चरण के बाद ही यह साफ हो पाएगा कि यूपी में भाजपा अपने को संभाल पाने की स्थिति में हैं या नहीं ? प्रेक्षक मानते हैं कि इस चुनाव में किसानों और छात्रों की नाराजगी का असर भी देखने को मिल रहा है. इन वर्गों का वोट सीधे तौर पर समाजवादी पार्टी की तरफ शिफ्ट हुआ है जबकि प्रियंका गांधी के धुंआधार प्रचार के चलते महिलाओं की एक बड़ी आबादी ने कांग्रेस को वोट देना मुनासिब समझा है. प्रेक्षक मान रहे हैं कि सपा प्रमुख अखिलेश ने राजभर और निषाद समाज को जोड़कर बाजी अपने पक्ष में कर ली है. पिछले चुनाव में मुस्लिम वोटर बसपा की तरफ चला गया था, लेकिन इस बार वह समाजवादी पार्टी की तरफ बताया जा रहा है. वैसे सपा के पास यादव समाज का बड़ा वोंट बैंक पहले से ही मौजूद है. शहरी इलाकों में मतदान कम होने को लेकर यह बात भी सामने आई है कि चुनाव में भाजपा के कट्टर मतदाताओं ने किसी भी पार्टी को वोट नहीं दिया है. ( यहां तक अपनी पार्टी को भी नहीं ) चुनावी विश्लेषकों की माने तो ऐन-केन-प्रकारेण सत्ताधारी दल को लाभ पहुंचाने वाली औवेसी की जादूगरी भी इस चुनाव में फेल हो गई है. विश्लेषक मानते हैं कि इस बार मुस्लिम वोटरों ने इधर-उधर भागने के बजाय सीधे तौर पर यह तय कर लिया है कि भाजपा प्रत्याशी को छोड़कर किसी भी दल के उस प्रत्याशी को ही वोट करना है जो जीतने की स्थिति में हैं. यहीं स्थिति पिछड़ा व अन्य वर्ग के वोट देने वाले वोटरों के बीच भी कायम है.
बहरहाल जनता से बातचीत के आधार पर किया गया हर सर्वेक्षण समाजवादी पार्टी के वोट और सीट बढ़ने की रायशुमारी दिखा रहा है. मोटे तौर पर यह तो माना ही जा रहा है कि भाजपा की सीटें बुरी तरह से घटने जा रही है. उत्तर प्रदेश में एक बार फिर हिंदू-मुस्लिम की जगह समुदाय विशेष और जाति की राजनीति का डंका बजने जा रहा है.
यह टिप्पणी यूपी की राजनीति को बेहद नजदीक से देखने-समझने वाले
राजनीतिक विश्लेषकों से की गई बातचीत पर आधारित है
पुरंदेश्वरी को हटाने की कवायद...सौदान सिंह की वापसी के लिए पैंतरेबाजी
छत्तीसगढ़ में वर्ष 2018 के चुनाव के बाद महज 14 सीटों में सिमटकर रह गई भाजपा की हालत अस्पताल में मरीजों को दी जाने वाली पतली दाल से भी ज्यादा पतली हो चली है. हालांकि यहां इस खबर में जेलों में दी जाने वाली दाल की उपमा भी दी सकती थीं, लेकिन छत्तीसगढ़ की जेलों में इन दिनों कैदियों को प्रोटीनयुक्त दाल परोसे जाने लगी है. एक वजह यह भी है कि प्रदेश की अधिकांश जेलों में एक से बढ़कर एक वीआईपी इतनी शक्ति हमें देना दाता...मन का विश्वास कमजोर हो ना...ये मालिक तेरे बंदे हम...ऐसे हो हमारे करम...जैसा दिल को छू लेने वाला भजन गा रहे हैं. जो वीआईपी भजन नहीं गा पा रहे हैं वे बासी हो चुके पेपर को कई-कई बार पढ़कर दिन गुजार रहे हैं.
जैसा कि ऊपर शीर्षक में उल्लेखित हैं कि छत्तीसगढ़ से भाजपा की प्रभारी डी पुरंदेश्वरी को हटाने की कवायद चल रही है तो यह दावा हमारा नहीं है बल्कि छत्तीसगढ़ के कर्मठ और नाराज चल रहे कार्यकर्ताओं का है. ऐसे सभी कार्यकर्ता पिछले कई दिनों लगातार यह महसूस कर रहे हैं कि भाजपा की एक तगड़ी लॉबी डी पुरंदेश्वरी को हटाने के खेल में लगी हुई है.
कार्यकर्ताओं का कहना है कि अनिल जैन और सौदान सिंह से जब राज्य को मुक्ति मिली तब आम कार्यकर्ताओं ने राहत का अनुभव किया था. जिस रोज से डी पुरंदेश्वरी छत्तीसगढ़ की प्रभारी बनी है उस रोज़ से वह बेहद उम्दा कार्य कर रही है, लेकिन प्रदेश में पार्टी को अपनी बपौती समझने वाले कतिपय नेता पुरंदेश्वरी को रुखसत करने के गुणा- भाग में लगे हुए हैं.
वे लोग कौन है...यह पूछे जाने पर कार्यकर्ताओं ने कहा कि कोई एक नाम हो तो बताया जाय ? प्रदेश में पूरी पार्टी मात्र 30 लोगों के आसपास ही घूमती हैं. इन तीस लोगों में से चार-पांच ने पार्टी को बरबादी के कगार पर पहुंचा दिया है. नाम न छापने की शर्त पर एक कार्यकर्ता ने बताया कि पैसों का हिसाब-किताब रखने वाले एक शख्स ने पार्टी में अपनी मनमर्जी चला रखी है. इस शख्स के साथ नान घोटाले में लिप्त एक कद्दावर नेता जुड़े हुए हैं. उनके साथ उनका पिल्लर है जिसे लोग रतलामी सेव कहते हैं. यह सेव आए दिन गाली-गलौच करते रहता है. इस सेव की वजह से पार्टी बैकपुट पर आ गई है. कार्यकर्ता ने कहा कि जिन नेताओं को बस्तर के चिन्तन शिविर में शामिल होने लायक नहीं समझा गया वे लोग इन दिनों कोर कमेटी में शामिल है. पार्टी में किसी भी जमीनी कार्यकर्ता को कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है.
सबको लगता है कि जमीनी लोगों का अवतरण केवल दरी उठाने और बिछाने के लिए ही हुआ हैं. पूरी पार्टी से अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग का नेतृत्व गायब है. पार्टी के एक-दो नेताओं को छोड़ दे तो कोई भी नेता ठेठ ढंग से ना तो छत्तीसगढ़िया दिखाई देता है और ना ही छत्तीसगढ़ी बोल पाता है. सबको देखकर लगता है कि ये लोग सुबह और शाम राजभोग और काजू-कतली का नाश्ता करने के लिए ही इस धरती पर आए हैं. जब से भूपेश बघेल की सरकार आई है तब से ठेठरी-खुरमी और चीले का जोर चल रहा है... यानी छत्तीसगढ़ की कला-संस्कृति और परम्परा की बात हो रही हैं लेकिन इधर भाई लोग अब भी राजस्थानी भोजनालय की थाली और अलग से घी लगी रोटी मंगवाकर जिम रहे हैं.
कार्यकर्ता ने नाराजगी भरे लहजे में कहा- जो शख्स विधानसभा के चार कार्यकर्ताओं के बीच स्वीकार्य नहीं है पार्टी उसे लेकर प्रदेशभर में आंदोलन करने की योजना बनाती है तो कैसे चल पाएगा ? नाराज कार्यकर्ता ने कहा है कि जिन कथित बड़े नेताओं को बस्तर के चिन्तन शिविर में आमंत्रित नहीं किया गया था वे और उनसे जुड़े हुए लोग लगातार पुरंदेश्वरी को हटाने के लिए माहौल बना रहे हैं.
इधर पुरंदेश्वरी को प्रभारी बनाए रखने के लिए कार्यकर्ताओं ने भी शीर्ष नेतृत्व को चिट्ठी-पत्री भेजने का काम प्रारंभ कर दिया है. कार्यकर्ता ने बताया कि पुरंदेश्वरी ने जिले का दौरा करने की इच्छा जताई थीं, लेकिन संगठन ने अब तक उनका दौरा कार्यक्रम ही नहीं बनाया है. सबको मालूम है कि जैसे ही पुरंदेश्वरी जिले के कार्यकर्ताओं से मिलेगी वैसे ही बमबारी प्रारंभ हो जाएगी. वैसे बमबारी की शुरूआत तो चिन्तन शिविर में ही हो गई थीं जब एक जिम्मेदार नेता ने कहा था- मुंहलगे अफसरों ने पार्टी की बैंड बजाकर रख दी थीं. पार्टी अब भी ऐसे लोगों को साथ लेकर चल रही है जिनका कोई जनाधार नहीं है. पार्टी को अनुसूचित जाति-जनजाति, पिछड़े और अन्य वर्ग का साथ नहीं मिल पा रहा है. बहरहाल पार्टी के भीतर खुद के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए उम्र दराज लोगों की एक लॉबी जबरदस्त संघर्ष कर रही है. यह लॉबी इसलिए भी संघर्षरत हैं क्योंकि भीतर के खानों में इस बात की जबरदस्त चर्चा है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में घर के सारे फ्यूज ब्लब बदल दिए जाएंगे. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चूके हुए कारतूसों से निज़ात पाने का मन बना चुका है.
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राजकुमार सोनी
गोड़से वाली राजनीति को छत्तीसगढ़ की धरा से उसूल का तमाचा जड़ेंगे राहुल गांधी
राजकुमार सोनी / रायपुर
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी तीन फरवरी को रायपुर आ रहे हैं. उनका यह दौरा कई मायनों में देश और राज्य की राजनीति में दूरगामी संदेश देने वाला साबित हो सकता है. राहुल गांधी कल नवा रायपुर के राज्योत्सव स्थल में वर्धा आश्रम की तर्ज पर सेवाग्राम का भूमिपूजन करेंगे. छत्तीसगढ़ में सेवाग्राम के शिलान्यास का मतलब ही गोड़से वाली राजनीति पर उसूल का तमाचा जड़ने जैसा है. यह वक्त की जरूरत भी है क्योंकि अब भी एक धड़े के लोग सांप्रदायिकता की राजनीति को सब कुछ मानकर चल रहे हैं. इस धड़े को लगता है कि जब तक कांट-छांट और बंटवारे का खेल जारी रहेगा तब तक उनकी राजनीति फलते-फूलती रहेगी. जिस जगह पर सेवाश्रम का भूमिपूजन होना है वहां अब तक हुए राज्योत्सव में भाजपा की सरकार केवल नाच और गाने का प्रोग्राम ही आयोजित करती रही है. यहां कभी करिश्मा कपूर आती रही है तो कभी देश की समरसता में नफरत का बीज बोने वाली अभिनेत्री कंगना रनौत को लेकर सेल्फीबाजी होती रही है.
राहुल गांधी साइंस कॉलेज मैदान में सरकार की महत्वाकांक्षी राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना की पहली किश्त भी जारी करेंगे. इस योजना के तहत भूमिहीन मजदूरों को हर साल सम्मानजनक राशि देने का प्रावधान है. यह राशि सीधे उनके खाते में जाएगी. वैसे तो छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार को किसानों की सरकार माना जाता है. प्रदेश के किसानों का एक बड़ा तबका उनकी कार्य प्रणाली से खुश भी दिखाई देता है. ऐसे में भूमिहीन कृषि मजदूरों के लिए यह योजना राहत का ही काम करेगी.
अमर जवान ज्योति की नींव रखेंगे
राहुल गांधी छत्तीसगढ़ की सशस्त्र बल की चौथी बटालियन के माना स्थित मुख्यालय में अमर जवान ज्योति की नींव भी रखने जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल की सरकार ने इस ज्योति को शहीद जवानों के स्मृति केंद्र के तौर पर बनाने का फैसला किया है. इस स्थल पर शहीद जवानों के नामों की पट्टिका भी लगी रहेगी. देर-सबेर जो लोग भी इस ज्योति के दर्शन को आएंगे तो वे इस बात की चर्चा तो अवश्य करेंगे कि जब केंद्र की मोदी सरकार ने इंडिया गेट से अमर जवान ज्योति का विलय करवाया तब छत्तीसगढ़ की सरकार ने उनकी पावन स्मृति को बचाए रखने का उपक्रम जारी रखा.
विदित हो कि नई दिल्ली के इंडिया गेट पर पिछले 50 साल से अमर जवान ज्योति जल रही थीं, लेकिन पिछले दिनों इस ज्योति का राष्ट्रीय समर स्मारक की ज्योति के साथ विलय कर दिया गया. हालांकि यह नहीं भी किया जाता तो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था,लेकिन इस ज्योति के विलय के साथ ही केंद्र की मोदी सरकार निशाने पर आ गई. ज्यादातर लोगों ने यह माना कि यह ज्योति इसलिए बुझाई गई या विलय की गई क्योंकि सरकार गौरवशाली इतिहास को मिटाने पर तुली हुई है. बता दें कि अमर जवान ज्योति का निर्माण 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में जान गंवाने वाले भारतीय सैनिकों के लिए एक स्मारक के रूप में किया गया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी, 1972 को इसका उद्घाटन किया था. 1971 में भारत-पाक युद्ध में भारत की विजय हुई थी और बांग्लादेश का गठन हुआ था. तब से लेकर अब तक यह ज्योति पिछले पांच दशकों से लगातार जल रही थीं. हर साल राष्ट्रीय उत्सवों पर शहीदों को नमन करने के लिए कृतज्ञ देशवासी वहां जमा होते थे.
बहरहाल आने वाले कुछ दिनों में पांच राज्यों में चुनाव है. चुनाव आयोग का डंडा केवल उन्हीं राज्यों में ही चल रहा है जहां विपक्ष रैली और सभाएं करता है. अब छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी किसी कार्यक्रम में शिरकत कर लेंगे तो चुनाव आयोग क्या कर लेगा ? निश्चित रुप से राहुल गांधी मजदूर-किसानों के लिए बनाई गई योजनाओं, अमर जवान ज्योति और सेवाग्राम शिलान्यास के जरिए दूर तक निशाना साधने में सफल हो सकते हैं. बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी... बहरहाल इस सार्थक रणनीति के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को देश का निष्पक्ष मीडिया ( गोदी मीडिया नहीं ) अभी से बधाई भी दे रहा है. सांप्रदायिक ताकतों से लगातार लोहा लेने वाले देश के कई नामचीन लेखक और पत्रकार छत्तीसगढ़ की धरा पर गत दो दिनों से मौजूद है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक तीर से कई शिकार वाली कार्य योजना को अमली जामा पहना दिया है. यदि कोई इस योजना को नजर अंदाज करता है तो यह उसकी नासमझी ही समझी जाएगी.
भूपेश बघेल ने कर दिखाया...रमन सिंह तो कर्मचारियों से वादा करके भूल गए थे
रायपुर. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गणतंत्र दिवस के मौके पर जो सौगात दी है उसकी जबरदस्त चर्चा हो रही है. विशेषकर मुख्यमंत्री की उस घोषणा को सराहा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा है कि अब प्रदेश के सभी कर्मचारियों को हफ्ते में दो दिन का अवकाश दिया जाएगा. यहां बता दें कि कर्मचारियों को दो दिन अवकाश दिए जाने की मांग तब उठी थीं जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थीं. तब मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह ने कर्मचारियों की समस्याओं को देखकर वादा किया था कि उन्हें दो दिन का अवकाश दिया जाएगा. तब कर्मचारी के सामने यह शर्त रखी गई थीं कि अगर उन्हें दो दिन का अवकाश चाहिए तो सुबह जल्दी आना होगा और एक घंटे अधिक काम करना होगा. रमन सरकार में कार्यरत अफसरों ने अपनी जिद में यह भी नहीं देखा कि प्रदेश में बड़ी संख्या में महिला कर्मचारी भी कार्य करती हैं. महिलाओं ने सरकार की शर्त पर आपत्ति जताई तो उनकी यह मांग ठंडे बस्ते में डाल दी गई.
बहरहाल रमन सिंह कर्मचारियों से वादा करके भूल गए थे, लेकिन भूपेश बघेल ने बगैर वादे के कर्मचारियों को सौगात दे डाली. भूपेश सरकार के इस फैसले से कर्मचारियों के बीच हर्ष देखा जा रहा है. मंत्रालीयन कर्मचारी शीघ्र लेखक संघ के अध्यक्ष डीएल भारती ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है. भारती का कहना है कि केंद्र में काम करने वाले कर्मचारियों को दो दिन का अवकाश मिलता है. काफी पहले मध्यप्रदेश की सरकार ने कर्मचारियों को यह सौगात दे दी थीं, लेकिन यहां छत्तीसगढ़ में उनकी मांग 2012 से लंबित थीं. भूपेश बघेल की सरकार ने कर्मचारियों को राहत देकर दिल जीत लिया है.
वैसे तो मुख्यमंत्री ने कई बड़ी घोषणाएं की है लेकिन एक दूसरी बड़ी बात श्रमिक परिवारों की बेटियों को मुख्यमंत्री नोनी सशक्तिकरण सहायता योजना के तहत सहायता देने की भी है. इस योजना के तहत श्रमिकों की पहली दो बेटियों के बैंक खाते में 20-20 हजार रुपये की राशि का एकमुश्त भुगतान किया जाएगा. यह योजना श्रमिक परिवार की बेटियों को राहत देने का काम करेगी.
सरकार ने आम जन की सुविधा का ख्याल रखते हुए लर्निंग लायसेंस की प्रक्रिया को भी सरल करने की घोषणा की है.भूपेश सरकार ने तय किया है कि रोजगार बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में परिवहन सुविधा केंद्र बनाए भी स्थापित किए जाएंगे. सरकार सभी अनियमित भवन निर्माण के नियमितीकरण हेतु इसी साल कानून भी लाने जा रही है.इसके अलावा पेंशन के लिए अंशदायी पेंशन योजना के तहत राज्य का अंशदान 10% से बढ़ाकर 14% करने का ऐलान किया गया है.सरकार ने खरीफ सीजन 2022-23 से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग, उड़द, अरहर जैसी फसलें / दाल आदि को खरीदने का फैसला भी किया है. मुख्यमंत्री ने वृक्ष कटाई अनुमति के नियमों का सरलीकरण करते हुए नागरिकों के हित में नियमों में आवश्यक संशोधन किए जाने की घोषणा की है.
अन्य पिछड़ा वर्ग में उद्यमिता विकास हेतु 10% भूखंड होंगे आरक्षित
मुख्यमंत्री ने कहा है कि शहरी क्षेत्रों की तरह ग्रामीण क्षेत्रों में शासकीय पट्टे की भूमि फ्री होल्ड की जाएगी. इसके लिए औद्योगिक नीति में आवश्यक संशोधन कर अन्य पिछड़ा वर्ग में उद्यमिता विकास हेतु 10 प्रतिशत भूखंड आरक्षित किए जाएंगे. प्रदेश में तीरंदाजी को प्रोत्साहित करने हेतु जगदलपुर में 'शहीद गुण्डाधुर राज्य स्तरीय तीरंदाजी अकादमी शुरु की जाएगी. इसके साथ ही मुख्यमंत्री शहरी स्लम स्वास्थ्य योजना प्रदेश के सभी नगरीय निकायों में भी शुरू की जाएगी.
हर जिले में महिला सुरक्षा प्रकोष्ठ का गठन
सरकार ने ऐलान किया है कि हरी क्षेत्रों की तरह ग्रामीण क्षेत्रों में शासकीय पट्टे की भूमि फ्री होल्ड की जाएगी. छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार नल कनेक्शन प्रक्रिया आसान बनाते हुए हुए इसे डिजिटल किया जाएगा. सरकार की घोषणा के अनुसार नगर निगम के बाहर निवेश क्षेत्रों में 500 वर्गमीटर के भूखंड हेतु डिजिटली भवन अनुज्ञा जारी की जाएगी. कहा गया है कि रिहायशी क्षेत्रों में संचालित व्यवसायिक गतिविधियों के नियमितीकरण हेतु आवश्यक प्रावधान किए जाएंगे. इसके साथ ही महिला सुरक्षा के लिए हर जिले में महिला सुरक्षा प्रकोष्ठ का गठन किया जाएगा.
नहीं मिली बेल...जीपी को जेल
रायपुर. छत्तीसगढ़ में आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो और एंटी करप्शन ब्यूरो के प्रमुख रहे पुलिस अफसर जीपी सिंह को आखिरकार बेल नहीं मिल पाई. कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक रिमांड पर जेल भेज दिया है. छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार भारतीय पुलिस सेवा का कोई अफसर जेल में रहेगा. इसके पहले भारतीय प्रशानिक सेवा के अफसर बाबूलाल अग्रवाल जेल की हवा खा चुके हैं.
आय से अधिक संपत्ति रखने और कई तरह के विवादित कारनामों के चलते जीपी सिंह को इसी महीने की 11 जनवरी को पुलिस ने दिल्ली से गिरफ्तार किया था. उन्हें दो बार रिमांड पर लेकर पूछताछ की जा रही थीं. उनकी बेशुमार संपत्ति के बारे में पुलिस के पास तो पुख्ता सबूत हैं, लेकिन खबर है कि जीपी ने किसी भी संपत्ति को अपना मानने से इंकार कर दिया है. रिमांड की अवधि समाप्त होने के बाद पुलिस ने मंगलवार को एक बार फिर उन्हें विशेष न्यायाधीश लीना अग्रवाल की कोर्ट में पेश किया जहां दोनों पक्षों के बीच लगभग पचास मिनट की बहस के बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. हालांकि जीपी सिंह के वकील इस बात के लिए प्रयासरत रहे कि जमानत मिल जाय, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. जीपी के परिजनों की ओर से उनके गिरते स्वास्थ्य का हवाला दिया गया था, लेकिन कोर्ट में स्वास्थ्य का मसला भी इसलिए कारगर साबित नहीं हुआ क्योंकि जीपी सिंह के बारे में यह कहा जा रहा था कि वे कस्टडी में रहने के दौरान सुबह-शाम लगभघ दो घंटे तक व्यायाम और वाकिंग किया करते थे.
यहां यह बताना लाजिमी है कि अपने कारनामों के लिए चर्चित जीपी सिंह पर राजद्रोह सहित कई तरह की गंभीर धाराएं लगी हुई है. उन्हें छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार का तख्ता पलटने के खेल में भी संलिप्त पाया गया था. पिछले साल जुलाई के महीने में जब आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की टीम ने उनके ठिकानों पर छापा मारा तब टीम को अनुपात्तहीन संपत्ति की जानकारी के साथ-साथ एक डायरी के कुछ पन्नों में यह तथ्य भी मिला था कि वे संवैधानिक रूप से गठित सरकार के खिलाफ घृणा और असंतोष को बढ़ावा के लिए चक्रव्यूह रच रहे थे. जानकार बताते हैं कि डायरी के पन्नों में यह उल्लेखित था कि सरकार को गिराने के लिए विभिन्न समाज के लोगों को कैसे भड़काया जा सकता है. कांग्रेस के विधायकों को पराजित करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है ? सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए कौन सी कार्ययोजना उपयुक्त हो सकती है? पुलिस ने उन्हें अवैध ढंग से उगाही का भी दोषी माना है.
छापेमारी में मिला था यह सब
- 1 जुलाई 2021 की सुबह 6 बजे एसीबी और ईओडब्लू की टीम ने जीपी सिंह के रायपुर, राजनांदगांव और ओडिशा के ठिकानों पर छापा मारा था.
- रायपुर में एक युवक से मारपीट, भिलाई में सरेंडर करने वाले नक्सल कमांडर से रुपयों का लेन-देन, रायपुर में एक केस में आरोपी की मदद करने का इल्जाम भी जीपी सिंह पर लगा है. इन पुराने केस की फिर से जांच की जा रही है.
- . IPS के बैंक मैनेजर दोस्त मणि भूषण के घर से एक 2 किलो सोने की पट्टी जिसकी कीमत लगभग एक करोड़ है.
- कारोबारी प्रीतपाल सिंह चंडोक के बेडरूम से 13 लाख रुपए के बंडल. प्रीतपाल सिंह जीपी सिंह के करीबी है.
- राजनांदगांव में चार्टर्ड अकाउंटेंट राजेश बाफना के ऑफिस से जीपी सिंह की पत्नी और बेटों के नाम 79 बीमा दस्तावेज.
- एक से अधिक एचयूएफ अकाउंट जिनमें 64 लाख रुपए हैं. 17 बैंक खाते जिनमें 60 लाख जमा हैं. पीपीएफ अकाउंट जिनमें 10 लाख रुपए हैं.
- मल्टीनेशनल कंपनियों में 1 करोड़ से अधिक की राशि जमा की गई है.
- जीपी सिंह की पत्नी और बेटे के नाम पर डाकघर में 29 अकाउंट हैं जिनमें 20 लाख से अधिक की राशि जमा है.
- जीपी सिंह के परिवार ने 69 बार शेयर और म्युचुअल फंड्स में बड़ी राशि 3 करोड़ का इंवेस्टमेंट किया.
- उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर हाईवा, जेसीबी, कांक्रीट मिक्सचर जैसी 65 लाख की गाड़ियां खरीदी गई हैं.
- जीपी सिंह के नाम पर दो प्लॉट, एक फ्लैट, उनकी पत्नी के नाम पर दो मकान, मां के नाम पर 5 प्लॉट एक मकान, पिता के नाम पर 10 प्लॉट, 2 फ्लैट मिले हैं.
- लगभग 49 लाख के डेढ़ दर्जन से अधिक लैपटॉप, कंप्यूटर, आईपैड और महंगे मोबाइल फोन मिले हैं.
सांप्रदायिकता और उसकी चुनौतियों से मुकाबले के लिए लामबंद हुए छत्तीसगढ़ के एक्टिविस्ट, पत्रकार, साहित्यकार और रंगकर्मी
रायपुर. देश के अन्य हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में भी सांप्रदायिक ताकतें गाहे-बगाहे अपने पैर को पसारने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते रहती हैं, लेकिन सांप्रदायिकता और उसकी चुनौतियों से मुकाबले के लिए छत्तीसगढ़ के एक्टिविस्ट, पत्रकार, साहित्यकार और रंगकर्मी भी लामबंद हो गए हैं. रविवार को यहां राजधानी के होटल कोटियार्ड में राष्ट्र सेवा दल के बैनर तले आयोजित एक कार्यक्रम में बुद्धिजीवियों ने संकल्प लिया कि चाहे जो परिस्थिति हो जाए...छत्तीसगढ़ की शांत फिजा में नफरत की फसल उगाने वालों को किसी भी सूरत में पनपने नहीं दिया जाएगा. इस मौके पर राष्ट्र सेवा दल की राज्य ईकाई का गठन किया गया. सर्वसम्मति से उमा प्रकाश ओझा को ईकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
राष्ट्र सेवा दल के प्रबंधकीय प्रभारी कपिल पाटिल अपने साथी सचिन बनसोड़े और रोहित ढाले के साथ मुंबई से यहां पधारे थे. कार्यक्रम के प्रारंभ में उन्होंने राष्ट्र सेवा दल के गठन के पीछे के मकसद और कार्यों की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह दल देश के भीतर सांप्रदायिक सदभाव, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा, वैज्ञानिक सोच के साथ संविधान पर आधारित कार्य के लिए ही जाना जाता है. उन्होंने बताया कि 28 दिसम्बर 1936 को साने गुरुजी ने इस दल की स्थापना की थी. तब उनके आह्वान पर 60 हजार से ज्यादा सेवा दल सैनिकों ने अगस्त क्रांति में अपनी हिस्सेदारी दर्ज की थीं. उन्होंने बताया कि 4 जून 1941 को दल का पुर्नगठन किया गया तब उसकी जिम्मेदारी एसएम जोशी ने संभाली थीं. यह दल तब से लेकर आज तक न्याय और समानता के लिए ही संघर्षरत रहा है.
अपने संबोधन में कथाकार कैलाश बनवासी ने सांप्रदायिकता की चुनौतियों से निपटने के लिए हमख्याल साथियों की एकजुटता को महत्वपूर्ण बताया. वेबसाइट विकल्प विमर्श के संचालक और पत्रकार जीवेश चौबे ने कहा कि देश को नफरत की आग में झोंकने वालों का सभी स्तर पर मुकाबला करना होगा. आलोचक सियाराम शर्मा ने सांप्रदायिकता के महीन से महीन रेशों को समझने की जरूरत बताई. कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार और कई चर्चित कृतियों के लेखक आनंद बहादुर का कहना था कि लड़ाई लंबी है, लेकिन डटे रहना होगा. सामाजिक कार्यकर्ता उमा प्रकाश ओझा ने नई पीढ़ी को जागृत करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि स्कूलों और महाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं के बीच जाकर यह बताना होगा कि वैमस्यता और भाई-चारे को खत्म करने वालों का मुख्य मकसद क्या है. पत्रकार राजकुमार सोनी ने कहा कि सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने वालों ने संचार क्रांति के अत्याधुनिक साधनों को प्रमुख औजार बना लिया है. हमें भी इन साधनों का जबरदस्त और सकारात्मक उपयोग करना चाहिए. साहित्य, कला, संस्कृति सहित सभी क्षेत्रों से आवाजें उठनी चाहिए. कार्यक्रम में मनमोहन अग्रवाल, कवि अंजन कुमार, बिजेंद्र तिवारी, रंगकर्मी सुलेमान खान, अप्पला स्वामी, संतोष बंजारा ने भी अपने विचार व्यक्त किए. इस मौके पर आलोचक सियाराम शर्मा द्वारा लिखित पुस्तिका ( किसानों के अस्तित्व संघर्ष ) वितरित की गई. सभी ने कपिल पाटिल के द्वारा लिखित पुस्तिका- आजादी क्या भीख में मिली है... और राष्ट्र सेवा दल के कैंलेडर का विमोचन किया. इस दौरान यह भी तय हुआ कि राष्ट्र सेवा दल की छत्तीसगढ़ ईकाई से जुड़े हुए सदस्य सभी क्षेत्रों से सांप्रदायिकता के खिलाफ मुखर रहने वाले लोगों को लामबंद करेंगे.
भूपेश सरकार का तख्ता पलटना चाहते थे जीपी सिंह...खुद पलट गए
रायपुर. यह आज की नहीं...बहुत पुरानी कहावत है कि जो दूसरों के लिए गढ्ढे खोदता है वह एक न एक दिन खुद उस गढ्ढे में गिर जाता है. देश की राजधानी दिल्ली से गिरफ्तार कर यहां रायपुर लाए गए पुलिस अफसर जीपी सिंह पर यह कहावत एकदम फिट बैठती है. जीपी सिंह छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार का तख्ता पलटना चाहते थे, लेकिन खुद पलट गए. पिछले साल जुलाई के महीने में जब आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो की टीम ने उनके ठिकानों पर छापा मारा तब टीम को अनुपात्तहीन संपत्ति के साथ-साथ एक डायरी के पन्नों में यह तथ्य भी मिला था कि वे संवैधानिक रूप से गठित सरकार के खिलाफ घृणा और असंतोष को बढ़ावा के लिए चक्रव्यूह रच रहे थे. जानकार बताते हैं कि डायरी के पन्नों यह उल्लेखित था कि सरकार को गिराने के लिए विभिन्न समाज के लोगों को कैसे भड़काया जा सकता है. कांग्रेस के विधायकों को पराजित करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है ? सरकार के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए कौन सी कार्ययोजना उपयुक्त होगी ? जीपी सिंह यह सब साजिश किस राजनेता के इशारे पर रच रहे थे फिलहाल साफ नहीं है, लेकिन समझा जाता है कि वे किसी बड़े और खौफनाक किस्म के खेल को अंजाम देने में लगे हुए थे.
छत्तीसगढ़ में जब पहली बार जब अजीत जोगी की सरकार बनी थीं तब उन्हें जी पापाजी कहकर संबोधित करने वाले अफसरों की पूरी फौज एक पैर में खड़ी रहती थीं. राजनीति के जानकार इस बात को बखूबी जानते हैं कि सरकार में बहुमत होने के बावजूद जोगी ने भाजपा के 12 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाया था. इन सबके पीछे बस्तर में विवादित रहे एक पुलिस अफसर के अलावा जीपी सिंह की भूमिका को भी काफी अहम माना गया था. बताते हैं कि 12 विधायकों के घूमने-फिरने और उनके ठहरने का पूरा प्रबंध जीपी सिंह ने ही करवाया था. तब जीपी सिंह सत्ता के इतने ज्यादा करीब थे कि उनकी हर बात सुनी जाती थीं. प्रशासनिक गलियारों में उन्हें सरकार की नाक का बाल भी समझा जाता था. सत्ता से मिले प्रश्रय के चलते जीपी सिंह अपने वरिष्ठ और मातहत अफसरों को भी प्रताड़ित किया करते थे. पाठकों को याद होगा कि बस्तर में एक वरिष्ठ पुलिस अफसर एमडब्लू अंसारी बतौर आईजी पदस्थ थे. एक बार उनके एक गार्ड ने किसी से लूटपाट कर दी. हालांकि इस लूटपाट में अंसारी की कोई संलिप्तता नहीं थीं. बताया जाता है कि तब पुलिस अधीक्षक के तौर पर तैनात जीपी सिंह ने अपने संपर्कों का फायदा उठाते हुए एक चैनल में यह खबर चलवा दी थीं कि लूट का पैसा आईजी अंसारी के घर से बरामद हुआ है. इस घटना के बाद अंसारी हटा दिए गए. अब अंसारी कहते हैं- जिसने मेरे साथ षड़यंत्र रचा... अब वह खुद अपने षड़यंत्रों में फंस गया है. ईश्वर... अल्लाह...खुदा जो कुछ भी कह लीजिए. थोड़ी देर जरूर होती हैं, लेकिन अंधेर नहीं हैं.
अफसर का टोना-टोटका
जो कोई भी अफसर बनता है उससे उम्मीद की जाती हैं कि वह अंधविश्वास से दूर रहता होगा, लेकिन जब जीपी सिंह के ठिकानों पर ईओडब्लू ने छापामार कार्रवाई की तब एक अखबार ने लिखा था-
टीम के अफसरों को यहां से कुछ डायरियां और डायरियों के फटे पन्ने मिले हैं. इस डायरी में जादू-टोने से जुड़ी बातें लिखी हुई हैं. कुछ ऐसा अजीबो-गरीब सामान भी सिंह के यहां से मिला है जो अमूमन तंत्र-मंत्र के काम आता है. एक डायरी में कोड वर्ड में कुछ अफसरों के बारे में अजीब बातें लिखी हैं. जादू-टोने की बातें ये पुलिस महकमे के ही बड़े अधिकारियों के बारे में हैं. डायरी में लिखा है- वह थाईलैंड से 20 पैर वाला कछुआ मंगवा चुका है. उसकी बलि देने के बाद कुछ भी कर सकेगा. इनमें से एक अफसर का नाम "छोटा टकला" लिखा गया है. लिखा है कि छोटे टकले ने एक अफसर का बाल काट लिया है, इसलिए सब कुछ बिगाड़ सकता है. ऐसा अनुमान है कि छोटा टकला प्रदेश के ही एक सीनियर अफसर का कोड वर्ड है.ये फिलहाल कई मामलों में फंसे हुए हैं और इनके खिलाफ जांच जारी है. दो और अफसरों के लिए अनोपचंद- तिलोकचंद लिखा हुआ है. कुछ आईएएस अधिकारियों, सचिव स्तर के अफसरों, कांग्रेस-भाजपा के नेताओं का नाम भी कोड वर्ड में लिखा है.
विवादों से नाता
जीपी सिंह जहां कहीं भी पदस्थ रहे विवादों से घिरे रहे हैं.बता दें कि कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ की राजधानी में काफी भूचाल मचा था. भूचाल मचने की वजह यह थीं कि लगभग सौ नक्सलियों ने एक साथ समर्पण किया था. इस समर्पण के बाद जब कुछ अखबारनवीसों ने पतासाजी की तो मालूम हुआ कि जिस किसी को भी नक्सली बनाकर पेश किया गया है वे सबके सब साधारण ग्रामीण थे. गैलंट्री अवार्ड पाने के चक्कर में तब कारनामा भी जीपी सिंह ने किया था.
बिलासपुर के एक पुलिस अधीक्षक राहुल शर्मा की आत्महत्या के पीछे भी जीपी सिंह को जिम्मेदार माना जाता है. हालांकि उन्हें न्यायालय की तरफ से क्लीन चिट मिल गई थीं, लेकिन राहुल शर्मा के परिजनों के अलावा बहुत से लोग यह बात मानने को तैयार नहीं है कि जीपी सिंह पाक-साफ है. बहुत से लोग यह मानते हैं कि राहुल शर्मा एक नेक और ईमानदार अफसर थे. जब उन्हें बहुत अपमानित किया गया तब उन्होंने आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाया था. बातों-बातों में लोग यह भी कहते हैं कि अब राहुल शर्मा की आत्मा जीपी सिंह का पीछा कर रही है.
बताते हैं कि जीपी सिंह ने राजधानी में अपनी पदस्थापना के दौरान एक गैंग तैयार कर रखा था. यह गैंग विवादास्पद जमीन की खोजबीन में लगा रहता था. किसी जमीन पर अगर कोई रसूखदार कब्जा कर लेता था तो पीड़ित पक्ष को कमीशन के आधार पर उसकी जमीन वापस दिलवाने की गांरटी दी जाती थीं.
दुर्ग में आईजी रहने के दौरान 23 अगस्त 2018 को जीपी सिंह ने एक पत्रवार्ता की थीं. इस पत्रवार्ता में उन्होंने बताया था कि 47 लाख का इनामी नक्सली कमांडर पहाड़ सिंह गिरफ्तार कर लिया गया है. पहाड़ सिंह नक्सलियों के शहरी नेटवर्क का भी हिस्सा था. नक्सलियों की भर्ती अभियान का तो वह प्रमुख तो था ही, उनके पैसों का हिसाब भी रखता था. जब उसने सरेंडर किया उस समय नोटबंदी हो गई थी. नक्सली नोटबंदी की दिक्कत से जूझ रहे थे.ऐसे में नक्सलियों ने अपने पुराने नोट बदलने के लिए पहाड़ सिंह के जरिए बाहर भेजे थे. चर्चा थी कि पहाड़ ने लगभग 6 करोड़ रुपए कवर्धा, राजनांदगांव और दुर्ग के कुछ बड़े कारोबारियों को बदलने के लिए दिए थे.पुलिस ये पता लगाने में जुटी रही कि आखिर 6 करोड़ किस-किस कारोबारी को दिए गए. जीपी सिंह और व्यापारियों के सौंपे गए पैसों का क्या कनेक्शन हो सकता है यह अभी साफ होना बाकी है. बहरहाल एंटी करप्शन ब्यूरो और ईओडब्ल्यू की टीम ने उन्हें दो दिन की रिमांड पर ले लिया है. फिलहाल वे एसीबी के उसी दफ्तर में कैद हैं जहां के प्रमुख हुआ करते थे.कहते हैं वक्त से बड़ा कोई सिकन्दर कभी पैदा नहीं हुआ. जीपी की गिरफ्तारी के बाद पुलिस विभाग के एक पूर्व अफसर ने कहा- पुलिस विभाग में कार्यरत या सेवानिवृत्त बहुत थोड़े से लोगों को ही अच्छा जीवन नसीब हो पाता है. जब कोई अफसर बड़े पद में बैठकर रसूखदार बन जाता है तो वह सबसे पहले शोषित-पीड़ित और वंचितों को कीड़ा-मकोड़ा समझने लगते है. जो कोई भी बेकसूरों और गरीबों को सताता हैं उसे हाय लगती हैं. जो भी अफसर गरीबों को प्रताड़ित करता हैं उन्हें रात की तन्हाई में यह जरूर सोचना चाहिए कि वह अच्छा कर रहा हैं या बुरा ? सच तो यह है कि बेकसूर गरीबों की हाय कभी खाली नहीं जाती.
जीपी सिंह के यहां छापे में यह सब मिला था
. जीपी सिंह के बैंक मैनेजर दोस्त मणि भूषण के घर से एक 2 किलो सोने की पट्टी जिसकी कीमत लगभग एक करोड़ है.
- कारोबारी प्रीतपाल सिंह चंडोक के बेडरूम से 13 लाख रुपए के बंडल.
- राजनांदगांव में चार्टर्ड अकाउंटेंट राजेश बाफना के ऑफिस से जीपी सिंह की पत्नी और बेटों के नाम 79 बीमा दस्तावेज.
- एक से अधिक एचयूएफ अकाउंट जिनमें 64 लाख रुपए हैं. 17 बैंक खाते जिनमें 60 लाख जमा हैं. पीपीएफ अकाउंट जिनमें 10 लाख रुपए हैं.
- मल्टीनेशनल कंपनियों में 1 करोड़ से अधिक की राशि जमा की गई है.
- जीपी सिंह की पत्नी और बेटे के नाम पर डाकघर में 29 अकाउंट हैं जिनमें 20 लाख से अधिक की राशि जमा है.
- जीपी सिंह के परिवार ने 69 बार शेयर और म्युचुअल फंड्स में बड़ी राशि 3 करोड़ का इंवेस्टमेंट किया.
- उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर हाईवा, जेसीबी, कांक्रीट मिक्सचर जैसी 65 लाख की गाड़ियां खरीदी गई हैं.
- जीपी सिंह के नाम पर दो प्लॉट, एक फ्लैट, उनकी पत्नी के नाम पर दो मकान, मां के नाम पर 5 प्लॉट एक मकान, पिता के नाम पर 10 प्लॉट, 2 फ्लैट मिले हैं.
- लगभग 49 लाख के डेढ़ दर्जन से अधिक लैपटॉप, कंप्यूटर, आईपैड और महंगे मोबाइल फोन मिले हैं.
निलंबित आईपीएस जीपी सिंह को पुलिस ने दिल्ली में दबोचा... मुकेश गुप्ता का नंबर भी लगेगा
रायपुर. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बधाई.आज उनकी सरकार की पुलिस ने एक बार फिर असंभव को संभव कर दिखाया है. जिस पुलिस अफसर की कभी पूरे छत्तीसगढ़ में तूती बोलती थीं. लोग-बाग उस अफसर के बारे में कुछ भी बोलने और कहने से डरते थे...उस अफसर को छत्तीसगढ़ की पुलिस ने दिल्ली ( गुरुग्राम ) में दबोच लिया है. जी हां...यह सच है. आय से अधिक संपत्ति रखने, सरकार के खिलाफ साजिश रचने, हेट स्पीच और उगाही के मामले में निलंबित पुलिस अफसर जीपी सिंह को ईओडब्ल्यू की टीम ने गिरफ्तार कर लिया है. निलंबित आईपीएस की गिरफ्तारी के साथ ही प्रशासनिक गलियारों में यह चर्चा भी तेज हैं कि जल्द ही एक और निलंबित अफसर मुकेश गुप्ता का नंबर भी अब-तब में लग सकता है.
वैसे छत्तीसगढ़ का यह पहला मामला है जब भारतीय पुलिस सेवा का कोई अफसर पुलिस के हत्थे चढ़ा है. अलबत्ता आर्थिक गड़बडिय़ों के एक मामले में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर बाबूलाल अग्रवाल काफी पहले गिरफ्तार हो चुके हैं. बता दें कि कल से सोशल प्लेटफार्म व अन्य माध्यमों में यह खबर बड़ी तेजी से फैली थीं कि निलंबित आईपीएस अफसर जीपी सिंह को गिरफ्तार करने के लिए जो टीम दिल्ली गई है उन सबको कोरोना ने जकड़ लिया है. लेकिन यह शायद पुलिस की रणनीति का ही हिस्सा था. इधर देर शाम यह खबर आई कि कथित तौर पर कोरोना से ग्रसित टीम ने ही जीपी सिंह को तब दबोचा जब वे एक बाज़ार के पास घूम रहे थे.
बताना लाजिमी होगा कि गिरफ्तारी से बचने के लिए जीपी सिंह ने पहले हाईकोर्ट और फिर बाद में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थीं.कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थीं. गौरतलब है कि जीपी सिंह पहली बार तब चर्चा में आए थे जब उन्होंने बस्तर में अपनी पदस्थापना के दौरान कुछ आदिवासियों को नक्सली बताकर समर्पण का खेल खेला था. दूसरी बार वे तब विवादों में घिरे जब एक पुलिस अफसर राहुल शर्मा ने आत्महत्या कर ली थीं. लगातार चिर-परिचित हथकंडों की आजमाइश के बाद भी छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार ने उन्हें सुधरने का मौका दिया था. उन्हें ईओडब्ल्यू की जवाबदारी दी गई थीं. लेकिन यहां भी प्रमुख रहने के दौरान उन्होंने अपना खेल जारी रखा. उन पर यह आरोप भी लगा कि वे केस को कमजोर करने के लिए अपने गुर्गों के जरिए उगाही करते हैं. पिछले साल जब आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने उनके ठिकानों पर छापा मारा तब पता चला कि वे संवैधानिक रूप से गठित सरकार के खिलाफ घृणा और असंतोष को बढ़ावा देने के खेल में लगे हुए थे.
बहरहाल जीपी सिंह की गिरफ्तारी के साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दमदारी को लेकर भी जबरदस्त चर्चा हो रही है. वैसे भूपेश बघेल ने जब विवादास्पद आईपीएस मुकेश गुप्ता के खिलाफ भी कठोर एक्शन लिया था तब भी एक बड़ी आबादी के बीच हर्ष की लहर देखी गई थी. मुकेश गुप्ता पर एफआईआर दर्ज होने के बाद भाजपा के कई नेताओं ने भी यह माना था कि जिस अफसर को पूर्व मुख्यमंत्री ने प्रश्रय देकर सिर पर बिठा दिया था... उस अफसर पर कार्रवाई करके बघेल ने एक बड़ा काम किया है. बहरहाल कई गंभीर धाराओं में गिरफ्तार जीपी सिंह को संभवतः बुधवार को न्यायालय में पेश किया जाएगा. पुलिस पूछताछ के लिए उन्हें रिमांड पर भी ले सकती हैं.
हे राम... की वेदना को समझना जरूरी
रायपुर.धर्म संसद में नाथूराम गोडसे को सलाम बजाने वाले कालीचरण की गिरफ्तारी के बाद यहां छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कांग्रेसजनों ने गांधी हमारे अभिमान कार्यक्रम का आयोजन किया. इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी शिरकत की और गांधी के मूल्यों-आदर्शों और सिद्धांतों को आत्मसात कर उसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए कांग्रेसजनों को शपथ दिलवाई.
इस मौके पर मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि गांधी जी ने कभी भी देश को तोड़ने की बात नहीं की. देश के विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका सावरकर और जिन्ना ने निभाई थीं. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ गांधी के बताए हुए मार्ग पर चल रहा है. जो कोई भी देश को तोड़ने के लिए नफरत फैलाने का काम करेगा उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
बघेल ने उस भ्रमित तथ्य को भी साफ किया जिसमें यह कहा जा रहा था कि धर्म संसद का आयोजन कांग्रेसियों ने किया था. बघेल ने कहा कि किसी भी तरह के धार्मिक आयोजन में शिरकत करना एक परम्परा है. दो दिन का धर्म संसद था जिसमें धार्मिक बातें होती हैं. हम किसी की आलोचना नहीं करते. सुधार की बात करते, लेकिन वहां अपशब्दों का प्रयोग किया गया. सुभाष चंद्र बोस के विचार भी महात्मा गांधी से अलग थे. उनमें वैचारिक मतभेद था, लेकिन उन्होंने रंगून से रेडियो के जरिए महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था. बघेल ने कहा कि देश को तोड़ने की नाकाम कोशिशों में लगे हुए लोग यह नहीं जानते कि महापुरूषों ने गांधी जी को लेकर कितनी महत्वपूर्ण बातें कहीं हैं. आइंस्टीन ने गांधी जी को लेकर कहा था कि भविष्य की पीढ़ियों को इस बात का यकीन करने में मुश्किल होगी कि हाड़ मांस से बना कोई व्यक्ति भी था. विवेकानंद ने शिकागो में आयोजित धर्म संसद में कहा था कि हमने विश्व के सभी धर्मों को अंगीकार किया है, हमने सताए हुए लोगों को अपने यहां जगह दी है. विवेकानंद को विवेकानंद बनाने में छत्तीसगढ़ की माटी का भी योगदान है. नफरत फैलाने वालों से सावधान रहने की जरूरत है, ऐसे लोग समाज के लिए बदनुमा दाग हैं. बघेल ने कहा कि अभी कोरोना का काल खत्म नहीं हुआ है.ऐसे समय आर्थिक मदद करने की आवश्यकता है ना कि धर्म को लेकर लड़ाई करने की.मुख्यमंत्री बघेल ने कालीचरण की गिरफ्तारी के लिए छत्तीसगढ़ की पुलिस को भी बधाई दी.
इस खबर में प्रतीक के तौर पर 1963 में mark robson के निर्देशन में बनी फिल्म Nine hours to rama के एक दृश्य के स्थिर चित्र का इस्तेमाल किया गया है. 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में जब गांधी जी की बूढ़ी काया पर नाथूराम गोडसे ने गोलियां चलाई थीं तब उसके हाथ जरा भी नहीं कांपे थे. गांधी जी के अंतिम शब्द थे- हे राम. दुर्भाग्यजनक बात यह है कि आज जय-सियाराम... हे राम और राम-राम जी जैसे पावन शब्द को दहशत में डाल देने वाले जय-जय श्रीराम के नारे में बदल दिया गया है.