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छत्तीसगढ़ विधानसभा सचिवालय की गोपनीय फाइलों की फोटोकॉपी करने वाले अफसर से छीना गया सभी शाखाओं का प्रभार....लेकिन ? ? ?
रायपुर. प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण और सूबे के अन्य ज्वलंत मसलों पर सार्थक विमर्श की वजह से छत्तीसगढ़ की विधानसभा ने हमेशा से शानदार मापदंड स्थापित किया है, लेकिन कई बार वहां पदस्थ अफसरों की करतूतों की वजह से विधानसभा की चर्चा कुछ अलग ढंग से यानी ऐसा भी होता है क्या ? वाले अंदाज में होने लगती है.
अब से कुछ अरसा पहले तक विधानसभा में एक सचिव हुआ करते थे. कुछ अलग तरह के कारनामों और फरमानों की वजह विधानसभा के छोटे-बड़े सभी तरह के कर्मचारी उनसे परेशान रहा करते थे.( यहां जिस सचिव की बात हो रही है उनके बैंक लॉकर पर से चोरों ने जब हाथ साफ किया तब पता चला कि सचिव महोदय तो आय से अधिक संपत्ति के मालिक थे और एक से बढ़कर एक बेशकीमती आभूषण धारण करने के शौकीन थे.) बताते हैं कि विवादों से नाता से रखने वाले सचिव महोदय ने जब पिंड छोड़ा तब विधानसभा में कार्यरत कर्मचारियों ने एक-दूसरे को मिष्ठान खिलाकर जश्न मनाया था.
खैर...सचिव महोदय तो जैसे-तैसे रुखसत हो गए...लेकिन इधर वैमन्स्य से भरी हुई कार्यशैली चलते पूर्व सचिव को टक्कर देने वाले एक अन्य अफसर की चर्चा भी इन दिनों जबरदस्त ढंग से बनी हुई है. बताते हैं कि शासन के कई विभागों में प्रतिनियुक्ति पर काम कर चुके इस अफसर को विधानसभा सचिवालय ने योग्य और प्रतिभाशाली अफसर मानते हुए कई महत्वपूर्ण शाखाओं का प्रभार दे दिया था लेकिन एक रोज वे विधानसभा सचिवालय की गोपनीय फाइलों की फोटोकॉपी करते हुए रंगे हाथों पकड़े तब उनसे सभी तरह का प्रभार छीन लिया गया.
जानकारों का कहना है कि विवादों से नाता रखने वाला अफसर विधानसभा सचिवालय में प्रतिनियुक्ति और संविलियन के पूर्व मूल रुप से रोजगार अधिकारी था. वर्ष 2002 में अफसर की सेवाएं प्रथम श्रेणी के प्रशासकीय अधिकारी के तौर पर ली गई थीं और वर्ष 2005 में इसी पद पर उनका संविलियन भी किया गया था. अफसर को इस बात की उम्मीद थीं कि एक रोज वह विधानसभा में सचिव बन जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. यह जानते हुए भी कि अफसर नियमानुसार कभी सचिव नहीं बन पाएगा तो भी उसकी उठा-पटक जारी है.
दरअसल विधानसभा सचिवालय में प्रशासकीय अधिकारी का पद निज सचिव से पदोन्नति का पद होता है. कोई सचिव बनता है या नहीं बनता...यह विधानसभा अध्यक्ष की पसन्द का मामला भी होता है. बताते हैं कि जब रोजगार अधिकारी ने विधानसभा में प्रथम श्रेणी अधिकारी के तौर पर इंट्री ली तब विधानसभा के कर्मचारियों और अधिकारियों ने आपत्ति दर्ज करवाई थीं. एक कर्मचारी ने तो इस संबंध में बकायदा हाईकोर्ट में याचिका भी दायर कर दी थीं.
योग्यता और दक्षता पर उठे सवाल
अफसर की योग्यता और क्षमता प्रारंभ से ही सवालों के घेरे में रही है. छत्तीसगढ़ विधानसभा सचिवालय में एक मर्तबा अधिकारियों और कर्मचारियों ने हड़ताल का रुख कर लिया था. हालांकि इस हड़ताल के मूल में पूर्व सचिव की कार्यप्रणाली महत्वपूर्ण थीं,लेकिन यह भी माना जाता है कि हड़ताल के पीछे रोजगार अधिकारी ने ही मुख्य भूमिका निभायी थीं. जानकार बताते हैं कि अफसर का जब विधानसभा सचिवालय में संविलियन हो गया तो उन्हें उनके मूल विभाग जनशक्ति नियोजन से त्यागपत्र दे देना था, लेकिन उन्होंने लंबे समय तक ऐसा नहीं किया. हड़ताल के लिए कर्मचारियों और अधिकारियों को भड़काने की वजह से विधानसभा सचिवालय ने उनकी सेवाएं जनशक्ति नियोजन विभाग को लौटा भी दी थीं. बाद में उन्हें माओवाद प्रभावित दंतेवाड़ा जिले का रोजगार अधिकारी बनाकर भेजा गया, लेकिन दंतेवाड़ा में अपनी पदस्थापना को अफसर ने बतौर सजा मानकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर दी थी. हालांकि हाईकोर्ट में याचिका के बाद अफसर को थोड़ी राहत तो मिल गई, लेकिन तब तक उनकी कार्यप्रणाली इतनी ज्यादा विवादित हो गई कि विधानसभा सचिवालय ने उन्हें किसी भी तरह का महत्वपूर्ण काम देने के काबिल नहीं समझा.
अफसर के बारे में यह भी बताया जाता है कि वे वर्ष 2014 से 2017 तक संस्कृति विभाग में प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे. इस विभाग के मूल कर्मचारियों और अधिकारियों को भी वे अलग तरह के तौर-तरीकों से प्रताड़ित करने लगे. नतीजा यह हुआ कि संस्कृति विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों ने उनके खिलाफ आंदोलन का रास्ता अख्तियार कर लिया था. वर्ष 2017 में जब वे एक बार फिर विधानसभा सचिवालय लौटे तो वहां पदस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों ने असंतोष जाहिर किया. नतीजा यह हुआ कि उन्होंने एक बार फिर प्रतिनियुक्ति की राह पकड़ ली और चिकित्सा शिक्षा विभाग में चले गए. वर्ष 2018 में उनका विधानसभा सचिवालय लौटना हुआ और फिर इस बात की चर्चा ने जोर पकड़ा कि वे विधानसभा संभाग के लोक निर्माण विभाग, हार्टिकल्चर विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को डरा-धमकाकर आर्थिक भयादोहन कर रहे हैं. अफसर को अब भी उम्मीद है कि हथकंडों के जरिए वे विधानसभा के सचिव बन ही जाएंगे सो उनकी उठा-पटक जारी है. इधर अफसर हथकंड़ों से परेशान विधानसभा के अधिकारी और कर्मचारी जल्द ही उच्चस्तरीय शिकायत करने की तैयारी में हैं.
राजकुमार सोनी
98268 95207
झीरम की घटना के बाद मुकेश चंद्रकार की हत्या से छत्तीसगढ़ के दामन पर लगा बदनामी का दाग
बीजापुर के पुलिस कप्तान जितेन्द्र यादव और थानेदार दुर्गेश शर्मा को हटाने की मांग
रायपुर. 25 मई 2013 को प्रदेश के नक्सल प्रभावित इलाके झीरम में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं की मौत के बाद पत्रकार मुकेश चंद्रकार की हत्या ने देशभर के लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के अलावा आम नागरिक को हिलाकर रख दिया है. हत्यारों ने जिस नृशंस तरीके से मुकेश चंद्रकार को मौत के घाट उतारा है उसके बाद हर कोई यह कहने को विवश हुआ है कि कहीं छत्तीसगढ़ यूपी और बिहार के रास्ते पर तो नहीं चला जाएगा ? इस बीच बीजापुर के पत्रकारों ने पुलिस कप्तान जितेंद्र यादव और थानेदार दुर्गेश शर्मा की कार्यप्रणाली को लेकर गहरी नाराजगी जताते हुए उन्हें जिले से हटाने की मांग की है.
पत्रकारों का कहना है कि पत्रकारों ने अपने साथी को खोजने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था लेकिन पुलिस का रवैय्या बेहद टरकाऊ किस्म का था. अगर पत्रकार नवनिर्मित सैप्टिंक टैंक को तोड़ने पर जोर नहीं देते तो शायद ही कभी मुकेश के बारे में पता चल पाता. बताते हैं कि जब मुकेश के भाई युकेश ने अपने भाई के गुम हो जाने की खबर सोशल मीडिया में पोस्ट की थीं तबसे सारे पत्रकार पतासाजी में जुट गए थे. बीजापुर के ही एक पत्रकार ने ट्रेस करके पुलिस को यह बताया कि मुकेश की अंतिम लोकेशन कहां पर थीं ? पत्रकारों की टीम जब पुलिस को साथ लेकर चट्टानपारा स्थित ठेकेदार सुरेश चंद्रकार के ठिकाने पर पहुंची तब भी थानेदार गुमराह करते रहे. सुरेश ने चट्टानपारा स्थित बस्ती में मजदूरों के रहने के लिए 20 कमरे बनाए हैं. सभी कमरे खाली थे और उन पर ताला लगा हुआ था. पुलिस ने पत्रकारों के सामने कुछ कमरों को खोलकर कहा कि मुकेश वहां मौजूद नहीं है. बीजापुर की एक पत्रकार पुष्पा रोकड़े को वहां किए गए नवनिर्माण पर शक हुआ. उसने आसपास काम करने वाले मजदूरों से पूछा तो उन्होंने बताया कि एक जनवरी की रात तक देर तक काम चला है. पत्रकारों ने थाना प्रभारी दुर्गेश शर्मा से सैप्टिंक टैंक तोड़ने को कहा था तो उन्होंने कई तरह की बहानेबाजी की. पत्रकारों ने तहसीलदार को बुलाया तो तहसीलदार ने भी कहा कि किसी के घर के सैप्टिंक टैक को कानूनन तोड़ना ठीक नहीं होगा. अगर मिथेन गैस निकल गई तो कौन जवाबदार होगा. बहुत ज्यादा दबाव के बाद एक जेसीबी वाला आया तो उसने भी तोड़ने से मना कर दिया और भाग खड़ा हुआ. जैसे-तैसे निर्माण टूटा और मुकेश का शव बरामद हुआ. हैरत की बात यह भी है कि जिस स्थल पर मुकेश की हत्या हुई वहां से थाना बेहद नजदीक है. घटना के बाद पुलिस ने उस जगह को पिकनिक स्थल में बदल दिया है. वहां आने-जाने वालों को ताता लगा हुआ है. पता नहीं वहां सबूत सुरक्षित रह पाएगा या नहीं?
इधर सोशल मीडिया में बीजापुर के पुलिस कप्तान जितेंद्र यादव और पूर्व कलेक्टर अनुराग पांडे की एक तस्वीर जबरदस्त ढंग से वायरल हो रही है. तस्वीर में पूर्व कलेक्टर और वर्तमान पुलिस कप्तान हत्या के आरोपी सुरेश चंद्रकार को पुरस्कृत करते हुए नजर आ रहे हैं. बताया जाता है कि मुकेश का भाई युकेश जब अपने भाई की खोज-खबर के लिए गुहार लगा रहा था तब पुलिस कप्तान उसे यह कहकर हड़काया था कि ज्यादा ऊपर से फोन मत करवाओ... मैं तुम्हारे कहने पर अपना काम नहीं करूंगा. जब पत्रकारों ने सैप्टिंक टैंक को तोड़ने का निवेदन किया तब भी पुलिस कप्तान की भाषा बेहद अभद्र थीं. पुलिस कप्तान का कहना था कि कोई यह नहीं सिखाए कि काम कैसे किया जाता है.
कौन है सुरेश चंद्रकार
बताया जाता है कि सुरेश चंद्रकार पत्रकार मुकेश चंद्रकार का रिश्तेदार ही है. सुरेश का भाई रितेश चंद्राकर पत्रकार मुकेश का दोस्त था लेकिन सुरेश के अवैध कामों में लिप्त रहने की वजह से मुकेश ठेकेदार से बात नहीं करता था. ठेकेदार के बारे में यह बात भी विख्यात है जब छत्तीसगढ़ में सलवा-जुडूम के बहाने आदिवासियों को मौत के घाट उतारने और उन्हें बेघर करने का खौफनाक दौर प्रारंभ हुआ था तब वह एसपीओ बन गया था. एसपीओ बनने के एवज में उसे कुछ हजार ही मिला करते थे. एसपीओ रहने के दौरान ही सुरेश चंद्रकार ने पुलिसवालों से अपने संबंध प्रगाढ़ बना लिए थे और थानों में कंटीले तारों को लगाने का ठेका हासिल कर लिया था. खबर है कि पुलिस महकमा इस काम के लिए सुरेश चंद्रकार को बहुत अधिक भुगतान भी करता था. जब ठेकेदार के पास जरूरत से ज्यादा पैसा हो गया तो उसने अफसरों से सांठगांठ कर सड़क निर्माण का ठेका भी हासिल कर लिया था. यह वहीं ठेकेदार है जिसकी शादी बेहद चर्चा में थीं. सुरेश ने अपनी शादी में दुल्हन को लाने के लिए हेलिकाप्टर का इस्तेमाल किया था. बताया जाता है कि जब उसने शादी का कार्ड बांटा था तो उस कार्ड की चर्चा भी खूब हुई थीं क्योंकि एक कार्ड की कीमत दस हजार रुपए थीं. यह मंहगा कार्ड हर किसी को वितरित नहीं किया गया था. कार्ड में कीमती आभूषण थे जो लोगों को उनकी हैसियत के हिसाब से दिए गए थे. इधर बीजापुर में मुकेश चंद्रकार की हत्या के बाद यह चर्चा भी कायम है कि ठेकेदार ने लोक निर्माण विभाग के एक एसडीओ को इस काम के लिए लगाया था कि वह मुकेश को तीन लाख रुपए देकर मामला सुलटा लें. लेकिन वह खबरों के लिए प्रतिबद्ध पत्रकार ने बिकने से इंकार कर दिया था.
इधर भले ही आरोपी सुरेश चंद्रकार की हैदराबाद से गिरफ्तारी हो गई है लेकिन हत्या के आरोपी सुरेश चंद्रकार के साथ कप्तान साहब के मधुर संबंधों की जबरदस्त चर्चा कायम है. आरोपी के साथ कप्तान साहब की हंसती-मुस्कुराती हुई फोटो देखकर यह लगता तो नहीं है कि मुकेश के हत्यारों को कभी सजा मिल पाएगी और न्याय मिल पाएगा. लग तो यही रहा है कि आरोपी को बचाने की कवायद जारी है.
राजकुमार सोनी
98268 95207
छत्तीसगढ़ः भाजपा के शासनकाल में ही पत्रकारों की हत्या
काम करने वाले पत्रकारों के लिए
अब किसी कब्रिस्तान से कम नहीं है छत्तीसगढ़
जो इस पागलपन में
शामिल नहीं होंगे
मारे जाएंगे
कटघरे में खड़े कर दिए जाएंगे
जो विरोध में बोलेंगे
जो सच-सच बोलेंगे
मारे जाएंगे.
हिंदी के चर्चित कवि राजेश जोशी की कविता का यह अंश सच बोलकर मौत को निमंत्रण देने वाले लोगों का त्रासदीपूर्ण बयान है और पिछले कुछ समय से यह बयान छत्तीसगढ़ के उन पत्रकारों के सीने पर जा चिपका है जो गंदगी पर चूना छिड़कने वालों की पोल खोलने में लगे हुए हैं.
दिल्ली और दूर-दराज इलाकों के जिन लोगों को लगता है कि लिखने-पढ़ने वाले लेखकों और पत्रकारों के लिए छत्तीसगढ़ की भूमि किसी स्वर्ग से कम नहीं है तो वे किसी भ्रम में हैं. छत्तीसगढ़ में जब कभी भी भाजपा की सरकार काबिज हुई है तब-तब अभिव्यक्ति को दफन करने का काम बड़ी शिद्दत से देखने को मिला है.
इस खबर में जो फोटो आप देख रहे हैं दरअसल यह एक नवनिर्मित सैप्टिक टैंक है और हत्यारों ने इसी सैप्टिक टैक में बस्तर के बीजापुर इलाके के पत्रकार मुकेश चंद्राकर को दफन कर दिया था, लेकिन यह कोई पहली घटना नहीं है. मुकेश के पहले भी प्रदेश के कई पत्रकारों को मौत के घाट उतारा जा चुका है.
वर्ष 2010 में जब प्रदेश में डाक्टर रमन सिंह की सरकार थीं तब न्यायधानी बिलासपुर में पत्रकार सुशील पाठक की हत्या कर दी गई थीं. इस घटना के बाद बवाल मचना स्वभाविक था क्योंकि पाठक एक बड़े अखबार दैनिक भास्कर से जुड़े हुए थे. पुलिस ने इस मामले में जमीन का कारोबार करने वाले बादल खान को गिरफ्तार किया था लेकिन पुलिस बादल खान के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं जुटा पाई तो वह बच गया. बाद में यह मामला सीबीआई को सौंपा गया लेकिन आरोपियों की पकड़-धकड़ करने के बजाय सीबीआई के अफसर संदेहियों से ही पैसा हड़पने के चक्कर में उलझे रहे और सस्पेंड भी हुए.
गरियाबंद के छुरा जैसे कस्बे से नई दुनिया को खबरें मुहैया कराने वाले उमेश राजपूत की गिनती भी निर्भीक पत्रकारों में होती थीं. उमेश की हत्या के समय भी सूबे में डाक्टर रमन सिंह की सरकार थीं. पुलिस ने हत्या के आरोप के शिवकुमार वैष्णव नाम के एक पत्रकार को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया था. इस मामले की जांच भी सीबीआई को सौंपी गई थीं लेकिन अब तक कोई परिणाम सामने नहीं आया है.
तेरह फरवरी 2013 को जब बस्तर के तोंगपाल इलाके के वरिष्ठ पत्रकार नेमीचंद जैन को मौत के घाट उतारा गया तब भी प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज थीं. कहा जाता है कि नेमीचंद जैन को किसी खबर के सिलसिले में कतिपय खनिज माफियाओं ने धमकी दी थीं. जैन के परिवारवालों ने भी तब यह आरोप लगाया था कि हत्या के पीछे खनिज के कारोबार से जुड़े लोगों का ही हाथ है, लेकिन पुलिस अंत तक यहीं मानती रही कि जैन को नक्सलियों ने मौत के घाट उतारा था.
बीजापुर के ही एक अन्य पत्रकार सांई रेड्डी को सरकार ने पहले तो माओवादियों का साथ देने के आरोप में जनसुरक्षा कानून लगाकर जेल में डाल दिया था. लेकिन छह दिसम्बर 2013 को जब नक्सलियों सांई रेड्डी को मौत के घाट उतारा तब भी यह सवाल उठा था कि यदि रेड्डी नक्सलियों के मुखबिर थे तो फिर उन्हें नक्सलियों ने क्यों मारा ? सांई रेड्डी की हत्या के दौरान भी भाजपा की सरकार काबिज थीं.बस्तर के बीजापुर इलाके के एक और पत्रकार पूनेम संतोष को भी नक्सलियों के हाथों जान गंवानी पड़ी थीं. हालांकि खुद को सुरक्षित रखने के लिए पूनेम समाजवादी पार्टी का सहारा लेकर चुनावी समर में भी उतरे थे लेकिन...
बस्तर के कोंडागांव-नारायणपुर और सरगुजा के बलराम इलाके में भी कुछ पत्रकार मारे जा चुके हैं लेकिन उनकी मौत की खबर कोई खबर नहीं बन पाई जैसी बननी चाहिए थीं.
प्रदेश में पत्रकारों पर प्रताड़ना और दर्ज किए गए फर्जी मामलों की सूची इतनी ज्यादा लंबी है कि उसके लिए फैक्ट फाइडिंग टीम का गठन करना पड़ सकता है.
मुकेश की हत्या के मामले में पुलिस की भूमिका संदिग्ध
पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के मामले में पिछले दो दिनों से पुलिस खुद ही अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन वास्तविक कुछ और है. बीजापुर के पत्रकारों ने चर्चा के दौरान बताया कि जब मुकेश के भाई युकेश ने अपने भाई के गुम हो जाने की खबर सोशल मीडिया में पोस्ट की थीं तबसे सारे पत्रकार पतासाजी में जुट गए थे. बीजापुर के ही एक पत्रकार ने ट्रेस करके पुलिस को यह बताया कि मुकेश की अंतिम लोकेशन कहां पर थीं ? पत्रकारों की टीम जब पुलिस को साथ लेकर चट्टानपारा स्थित ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के ठिकाने पर पहुंची तब भी पुलिस गुमराह करती रही. सुरेश ने चट्टानपारा स्थित बस्ती में मजदूरों के रहने के लिए 20 कमरे बनाए हैं. सभी कमरे खाली थे और उन पर ताला लगा हुआ था. पुलिस ने पत्रकारों के सामने कुछ कमरों को खोलकर कहा कि मुकेश वहां मौजूद नहीं है. बीजापुर की एक पत्रकार पुष्पा रोकड़े को वहां किए गए नवनिर्माण पर शक हुआ. उसने आसपास काम करने वाले मजदूरों से पूछा तो उन्होंने बताया कि एक जनवरी की रात तक देर तक काम चला है. पत्रकारों ने थाना प्रभारी दुर्गेश शर्मा से सैप्टिंक टैंक तोड़ने को कहा था तो उन्होंने कई तरह की बहानेबाजी की. पत्रकारों ने तहसीलदार को बुलाया तो तहसीलदार ने भी कहा कि किसी के घर के सैप्टिंक टैक को कानूनन तोड़ना ठीक नहीं होगा. अगर मिथेन गैस निकल गई तो कौन जवाबदार होगा. बहुत ज्यादा दबाव के बाद एक जेसीबी वाला आया तो उसने भी तोड़ने से मना कर दिया. जैसे-तैसे निर्माण टूटा और मुकेश का शव बरामद हुआ.
राजकुमार सोनी
रामा बिल्डकॉन के करतूतों की आंच में झुलसेंगे छत्तीसगढ़ में धोखाधड़ी करने वाले नामचीन बिल्डर
रायपुर.अमलीडीह की सरकारी जमीन को अपने रसूख से हड़पने का कारनामा करने वाले रामा बिल्डकॉन की करतूतों की आंच में वे बिल्डर भी झुलस सकते हैं जो छत्तीसगढ़ में लंबे समय से नियम विरुद्ध काम को अंजाम दे रहे हैं. जनता के साथ धोखाधड़ी कर मुनाफा कमाने की होड़ में शामिल बिल्डरों की सैकड़ों कहानियां अब छनकर सामने आने लगी है.
छत्तीसगढ़ में कई जगह पर मॉल और केवल धनाढ्य लोगों के लिए मकान निर्माण वाले एक नामी बिल्डर का कचना के पास एक प्रोजेक्ट है. बताते हैं कि बिल्डर ने नाले की जमीन को दबाकर उसके किनारे प्लाट कटिंग कर दिया है. इतना ही नहीं बिल्डर ने आने-जाने के लिए नाले पर पुल भी बना दिया है. जबकि पुल बनाने के लिए बिल्डर को राजस्व विभाग से अनुमति लेनी चाहिए थीं,लेकिन ऐसा नहीं किया गया. बताते हैं कि बिल्डर ने नाले को चाक-चौबंद करने के लिए बकायदा हिम पाइप का इस्तेमाल भी किया है.आसपास के ग्रामीणों ने काफी पहले नाले की जमीन को दबाए जाने का विरोध किया था लेकिन इधर एक बार फिर यह मामला तूल पकड़ने जा रहा है. छत्तीसगढ़ के एक बिल्डर ने कुछ अरसा पहले पत्रकारों के आवास के लिए गठित की गई मीडिया सिटी के एक बड़े भू-भाग को दबाने की साजिश रची थीं,लेकिन मीडियाकर्मियों के आक्रोश और सजगता की वजह से बिल्डर को अपने कदम पीछे हटाने पड़े थे.
बहरहाल छत्तीसगढ़ में जहां कहीं भी बिल्डर चमकीले ब्रोशर के साथ अपनी दुकान खोलकर बैठे हैं उन सबके द्वारा कहीं न कहीं से छत्तीसगढ़ भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा) के अधिनियम और प्रावधानों का उल्लंघन ही किया जा रहा है.छत्तीसगढ़ सरकार के जनसंपर्क विभाग ने ही 24 अक्टूबर 2024 को अपनी वेबसाइट में यह जानकारी दी है कि प्रावधानों का उल्लंघन करने के आरोप में रेरा ने प्रदेश के 412 बिल्डरों को नोटिस जारी किया है. जिन बिल्डर्स को नोटिस जारी किया गया उनमें से अधिकांश ने त्रैमासिक और वार्षिक लेखा परीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं किया था. जिन बिल्डरों ने निर्धारित समयावधि के बाद भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं किया था उन्हें भी नोटिस थमाया गया था.
अपराधिक पृष्ठभूमि के बिल्डरों से सावधान
छत्तीसगढ़ में कुछेक अच्छे बिल्डरों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश बिल्डरों के हाथ में सोने का मोटा कंगन और गले में सोने की मोटी चेन नजर आएगी. ऐसे सभी बिल्डरों की पृष्ठभूमि अपराधिक ही पाई जाती है. इधर पिछले एक-डेढ़ साल में ही यह खबर कुछ ज्यादा ही पढ़ने को मिल रही है कि बिल्डर ने ग्रामीण आदिवासियों की जमीन हड़प ली है. सरकारी अफसरों से मिली-भगत कर जमीन पर कब्जा जमा लेने के तो सैकड़ों मामले देखने को मिल रहे हैं. ( जल्द ही हम यह खबर भी प्रकाशित करेंगे कि छत्तीसगढ़ के किन बिल्डरों पर एफआईआर दर्ज है. )
बहरहाल अगर आप किसी निजी कंस्ट्रक्शन कंपनी, बिल्डर से प्लाट अथवा भवन खरीदने की सोच रहे हैं तो कई तरह की पूछ-परख और जांच-पड़ताल के बाद ही अपनी सौदाबाजी को अंजाम देना चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि जीवन भर की जमापूंजी खर्च करने के बाद आपको पछतावा हो. दरअसल भवनों का निर्माण करने वाले बिल्डर और उनकी कंस्ट्रक्शन कंपनियां अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन और आकर्षक पोस्टरबाजी से ग्राहकों को लुभा तो लेती है, लेकिन फिर वह सुविधांए नहीं दे पाती जिस पर ग्राहकों का अधिकार है.
लगभग चार साल पहले छत्तीसगढ़ भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण ( रेरा ) में अकेले रायपुर जिले में ही 109 बिल्डर और प्रमोटरों के खिलाफ 318 शिकायतें दर्ज की गई थीं जबकि बिलासपुर में 14 बिल्डरों के खिलाफ 30 शिकायतें सामने आई थीं. हालांकि यह दावा भी सामने आया था कि अधिकांश हितग्राहियों की शिकायतों का निराकरण कर लिया गया है, लेकिन हितग्राहियों का कहना था कि प्रमोटर और बिल्डरों ने एक तरह से उनके साथ धोखा ही किया है. किसी ने अनुबंध के अनुसार आधिपत्य नहीं सौंपा तो किसी ने ब्रोशर के मुताबिक सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई. कुछ बिल्डरों और प्रमोटरों का निर्माण कार्य ही गुणवत्ता विहीन था.
इन नामचीन कंस्ट्रक्शन कंपनियों की शिकायत मिली थीं रेरा को
कंस्ट्रक्शन कंपनी पार्थिवी के खिलाफ सुनीता बसाक, सुनीता मुदलियार, श्रीमती निधि साव, पीतेश जोशी, मोहम्मद अनवर खान, रचित अग्रवाल, मुबारक खान, श्रीमती ईला तिवारी, श्री योगी राज पाण्डेय, इंद्रानिल चट्टोपाध्याय, श्रीमती रुपाली श्रीवास्तव सहित कुल 11 लोगों ने शिकायत दर्ज करवाई थीं. वात्सल्य बिल्डर्स एंड डेव्हलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर पुरुषोत्तम राव गडगे के खिलाफ आजीम खान, श्रीमती शारदा पटेल, सुनीता पटेल, संदीप सिंह चौहान, श्रीमती सरस्वती वर्मा, एमआर सिद्दकी, ब्रम्हादेव चौधरी, विशाल सिंह, अभिषेक राजपूत, श्रीमती इंद्रावती द्विवेदी ने शिकायत की थीं. वालफोर्ट प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर पंकज लाहोटी के खिलाफ अमितेश साहू, श्रीमती ब्लेस्सी मैथ्य, बैजनाथ पांडे, कुमुद अग्रवाल, वैशाली कुंभाकर, अनंत प्रकाश सिंह, प्रीति कुमारी, नीता पटले, श्रीमती नवदीप कौर ढिल्लन की शिकायत रेरा तक पहुंची थीं. मेसर्स गोल्डब्रिक्स इन्फास्ट्राक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड ( जेसीसी ग्रुप ) के डायरेक्टर के खिलाफ अतुल अग्रवाल, सुमीत अग्रवाल, अतीत कुमार अग्रवाल, सत्यनारायण अग्रवाल, आशीष कुमार अग्रवाल, श्रीमती शारदा देवी अग्रवाल, श्रीमत अनिता सिन्हा, सुजीत कुमार दास, अभिताभ सिन्हा, नहर सिंह यादव, अशोक कुमार सिंह, श्रीमती सरिता श्रीवास्तव, अनुपम पांडेय, सुरेश कुमार पटनायक, श्रीमती श्वेता श्रीवास्तव, योगेंद्र सिंह, अपर्णा पनवार, अमित शर्मा, श्रीमती डी लक्ष्मी, कमलेश कुमार जैन ने शिकायत की थीं. सांई कृष्णा बिल्डर्स एण्ड प्रमोटर्स के खिलाफ अमर कुलकर्णी, लिखेश्वर साहू, मनोज जैन की शिकायत थीं. मेसर्स अबीर बिल्डकान प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर अफताब सिद्दकी के खिलाफ संदीप राठौर, राहुल जैन, कमलेश दास, श्रीमती कविता श्रीमाली, आशीष कुमार भदराजा, गौरव टंडन, सचिन कुमार गुप्ता की शिकायत रेरा तक पहुंची थीं. रायपुर में गणपति हाइटस बनाने वाले गणपति डेव्हलपर्स के खिलाफ सुंदर दास खत्री, अनीता बाई, श्रीमती नीतू कुकरेजा ने शिकायत दर्ज करवाई थीं. इंद्रपस्थ प्रोजेक्ट के कर्ताधर्ता मेसर्स पंचामृत इंटरटेनमेट प्राइवेट लिमिटेड के गौतमचंद जैन की दो शिकायतें थीं.वहीं इम्प्रेशिया इलाइट का निर्माण करने वाले मेसर्स आरएस ड्रीम लैंड प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ गिरधारी लाल पंजवानी की शिकायत रेरा तक पहुंची थीं. इसी तरह केएससी इंटरप्राइजेस प्राइवेट लिमिटेड और डीएमबी इन्फ्राटेक के डायरेक्टर सुनील साहू के खिलाफ ग्यासुद्दीन, मनोज ठाकुर ने शिकायत की थीं. डालफीन प्रमोटर्स एण्ड बिल्डर्स और ब्रांड क्रियेशन के हरमीत सिंह होरा के खिलाफ मधु बलानी की शिकायत रेरा तक पहुंची थीं. रायपुर हाउसिंग एण्ड डेव्हलपर्स के किशोर नायक और कौस्तुभ मिश्रा के खिलाफ विपिन श्रीवास, त्रिलोकीनाथ शर्मा, पन्नालाल चौधरी, नरेश देवीदास, उत्तम कुमार सोनी, पीतेश चार्वे की शिकायत शामिल थीं. लोट्स टॉवर बनाने वाले ढेबर के खिलाफ श्रीमती सुप्रिया मजूमदार ने शिकायत की थीं. रेरा में अन्य जिन कंस्ट्रक्शन कंपनियों के खिलाफ शिकायत हो चुकी है उनमें मेसर्स एम आहूजा, ओम सांई डेव्हलपर्स, अनुराधा कंस्ट्रक्शन, मेसर्स अभिलाषा बिल्डर्स ( पार्टनर अमरजीत सिंह दत्ता, विरेंद्र सिंह दत्ता ), नवभारत डवेलिंग प्राइवेट लिमिटेड डायरेक्टर रोहित श्रीवास्तव, नेक्सस देवकॉन प्राइवेट लिमिटेड के तरुण मरवाहा, मेसर्स ग्रीनअर्थ इन्फ्रावेन्चर्स, महालक्ष्मी सिटी होम्स के डायरेक्टर श्याम सुंदर अग्रवाल, पुरन्दर प्रमोटर्स डेव्हलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर ऋषि सिंह वाधवा, आरए रियल स्टेट के डायरेक्टर राकेश अग्रवाल का नाम शामिल है. बिलासपुर में मेसर्स सुपरटेक प्रोजेक्ट एंड कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर आशीष जयवाल, प्रधुमन साहू, अनता इन्फ्रामार्ट, रविशंकर सोनी, श्रीमती सुधा गुप्ता, प्रमोद सिंह ठाकुर के खिलाफ शिकायत हो चुकी है.
राजकुमार सोनी
98268 95207
मॉब लिंचिंग थीं या नहीं...पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने में क्यों कांप रहे हैं पुलिस के हाथ पांव ?
आरटीआई कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने की मुख्य सूचना आयुक्त से शिकायत
रायपुर. छत्तीसगढ़ के आरंग इलाके के महानदी पुल पर मुस्लिम समुदाय के तीन लोगों की मौत के मामले में पुलिस ने भले ही चार्जशीट दाखिल कर दी है, लेकिन अब भी कई सवाल ऐसे हैं जो पुलिसिया कार्रवाई को संदेह के कटघरे में खड़ा करते हैं. इस मामले की तह तक जाने के लिए आरटीआई कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने सूचना के अधिकार के तहत मृतकों की पोस्टपार्टम रिपोर्ट की प्रमाणित छाया प्रति मांगी थीं, लेकिन उन्हें जानकारी नहीं दी गई है. कुणाल शुक्ला का कहना है कि पुलिस इस बड़े मामले में घटना के पहले दिन से ही पर्दा डाल रही है और अब उन्हें जानकारी देने के बजाय घुमाया जा रहा है. उन्होंने रायपुर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में पदस्थ जनसूचना अधिकारी ज्योत्सना चौधरी की शिकायत राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त से की हैं. कुणाल का कहना है कि अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिली तो वे न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाएंगे. कुणाल ने बताया कि उन्होंने पोस्टमार्टम रिपोर्ट की छाया प्रति हासिल करने के लिए 10-10 रुपए का तीन पोस्टल आर्डर भेजा था. जब इस पर भी जानकारी नहीं दी गई तब बैंक के माध्यम से चालान भेजा, लेकिन जानकारी अप्राप्त है.
गौरतलब है कि इसी साल सात जून को सहारनपुर इलाके के गुड्डू खान, चांद मियां खान और सद्दाम कुरैशी मवेशियों को जा रहे थे तभी भीड़ ने गौ-तस्कर समझकर उनका पीछा किया और फिर वे मृत पाए गए. इस हत्या के बाद जब देशभर में बवाल मचा तब कई तरह कहानियां सामने आई. इलाके में जाकर फैक्ट फाइडिंग करने वाले कई संगठनों एवं मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया था कि एक संगठन विशेष से जुड़े लोगों ने मॉब लिंचिंग की थीं और इसमें वे लोग शामिल थे जो संगठन के बड़े पदाधिकारी थे. इधर बीते जुलाई महीने में पुलिस ने जो चार्जशीट दाखिल की है उसमें दावा किया है कि कुछ लोगों ने करीब 53 किलोमीटर तक तीन लोगों का पीछा किया था, लेकिन जो लोग मृत पाए गए उनकी मौत नदी में कूदने की वजह से हुई थीं उनके साथ किसी भी तरह की मारपीट नहीं हुई थी.
कुणाल शुक्ला पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट हासिल करने के बाद यहीं जानना चाहते थे कि वास्तव में मारपीट की घटना हुई थीं या नहीं थीं. मृतकों के शरीर में कहां-कहां कुल कितने चोट के निशान थे ? कुणाल का कहना है कि अगर कोई कूद कर अपने आपको मौत के हवाले करता तो ज्यादा से ज्यादा दो-तीन जगहों पर ही चोट के निशान हो सकते हैं.
वैसे घटना के बाद चांद और सद्दाम के चचेरे भाई एवं शिकायतकर्ता शोहेब खान ने भी आरोप लगाते हुए कहा था कि जब भीड़ हमला कर रही थीं तब सद्दाम ने एक शख्स जिसका नाम मोहसिन है उसे बचाने के लिए फोन किया था. मोहसिन असहाय था क्योंकि वह बहुत दूर था लेकिन वह बड़ी देर तक फोन पर आरोपियों की आवाजें सुनता रहा.
आखिरकार रामा बिल्डकॉन पर क्यों मेहरबान है छत्तीसगढ़ सरकार ?
रायपुर. छत्तीसगढ़ के कतिपय बड़े बिल्डरों में राजेश अग्रवाल उर्फ बुतरु का नाम शुमार है. बताते है कि राजेश अग्रवाल पहले कोरबा में रहते थे और दवाईयों के कारोबार से जुड़े थे, लेकिन अब रामा बिल्डकॉन में एक भागीदार है. वैसे छत्तीसगढ़ में बिल्डरों का एक धड़ा अंग्रेजी में RAMA को उल्टा यानी AMAR करके भी पढ़ता है. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि इस बिल्डकॉन को एक पूर्व मंत्री का संरक्षण मिलता रहा है. लोग यह बात इसलिए भी कहते हैं क्योंकि पूर्व मंत्री ने बिल्डकॉन की ओर से बनाए गए एक फार्म हाउस में ही अपने किसी निजी आयोजन को धूमधाम से संपन्न किया था. पूर्व मंत्री के बिल्डकॉन के सभी कर्ताधर्ताओं से गहरे तालुकात है. इधर बीते एक हफ्ते से सोशल मीडिया में ( जिन्हें विज्ञापन मिलता है उस मीडिया में नहीं ) रामा बिल्डकॉन के कारनामों को लेकर तरह-तरह की खबरें चल रही है. खबर है कि सरकार के राजस्व विभाग ने राजधानी रायपुर के बेशकीमती इलाके अमलीडीह में कॉलेज के लिए आरक्षित 3.203 हेक्टेयर यानी करीब नौ एकड़ जमीन रामा बिल्डकॉन को सौंप दी है. खबर एकदम सही है क्योंकि सोशल मीडिया में राजस्व विभाग की तरफ से नियमों और शर्तों के साथ रामा बिल्डकॉन के लिए जारी किया गया आदेश भी तैर रहा है.
मचा हुआ है बवाल
बताते हैं कि कांग्रेस के शासनकाल में विधायक सत्यनारायण शर्मा की पहल पर अमलीडीह की बेशकीमती जमीन को सरकारी नवीन महाविद्यालय बनाने के लिए आरक्षित किया गया था, लेकिन सत्ता के परिवर्तन होते ही इसी साल 28 जून को बेशकीमती जमीन रामा बिल्डकॉन के राजेश अग्रवाल को सौंप दी गई. जानकारों का कहना है कि किसी को इसकी भनक न लगे इसलिए पूरी प्रक्रिया में बेहद गोपनीयता रखी गई, लेकिन जमीन आवंटन की जानकारी ग्रामीणों को मिल ही गई. फिलहाल ग्रामीणों ने बिल्डर के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. ग्रामीणों ने जमीन को वापस लेने के लिए बकायदा धरना-प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी सौंपा है.
उठ रहे हैं कई सवाल
इधर ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार ने जमीन को निजी बिल्डर को आवंटित किए जाने वाले मामले की जांच की जिम्मेदारी रायपुर संभाग के आयुक्त महादेव कावरे को सौंप दी है. महादेव कावरे ने अपना मोर्चा को बताया कि उन्हें गुरुवार को जांच का जिम्मा दिया गया है. जल्द ही वे यह तथ्य जुटा लेंगे कि सरकारी जमीन का आवंटन कैसे और किन नियमों के तहत किया गया है.जमीन आवंटन की प्रक्रिया सही है या गलत है. इधर जमीन के कारोबार से जुड़े कुछ अन्य बिल्डरों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कभी भी कोई सरकारी जमीन निजी बिल्डरों को सौंपी नहीं जाती. अगर सरकार ने किसी जमीन को सौंपने का फैसला भी किया है तो उसे पारदर्शिता के लिए जमीन की नीलामी करनी चाहिए थीं. इधर जमीन आवंटन मामले को लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार को विधानसभा के शीतकालीन सत्र में घेरने का निर्णय ले लिया है. एक कांग्रेस नेता का कहना है कि सरकार ने सवालों के जवाब से बचने के लिए संभाग आयुक्त को जांच का जिम्मा सौंपा है. जब विधानसभा में विपक्ष का कोई नेता सवाल पूछेगा तो कुछ इसी तरह का जवाब आ सकता है-सरकार ने मामले के संज्ञान में आते ही त्वरित गति से जांच का निर्णय लिया है. फिलहाल जांच चल रही है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि उनकी सरकार ने अमलीडीह क्षेत्र के नागरिकों की मांग पर एक महाविद्यालय के लिए जिस जमीन को आरक्षित किया था उसे डबल इंजन सरकार ने जून महीने में रामा बिल्डकॉन को सौंप दिया है. सुना है कि इसमें किसी बड़े भाजपा नेता का हित भी जुड़ा हुआ है. वैसे रायपुर ग्रामीण से भाजपा के विधायक मोतीलाल साहू भी रामा बिल्डकॉन को सरकारी जमीन आवंटित करने के खिलाफ है. उनका कहना है कि जो जमीन महाविद्यालय के लिए आरक्षित थीं उसे किसी भी निजी बिल्डर को नहीं सौंपना चाहिए था. साहू का कहना है कि उन्होंने इस सिलसिले में शासन से पत्राचार किया था लेकिन कलेक्टर ने गुपचुप तरीके से आवंटन की अनुशंसा कर फाइल सरकार को भेज दी है. भाजपा के पूर्व विधायक नंद कुमार साहू का कहना है कि अगर शिक्षण संस्थाओं के लिए ही जमीन नहीं बचेगी तो बच्चे पढ़ेंगे कैसे ? उन्होंने कहा कि बिल्डर को गलत तरीके से जमीन का आवंटन किया गया है.
क्या सही में होगी सही जांच ?
रामा बिल्डकॉन ने रामा के नाम से बिलासपुर और रायपुर में कई जगहों पर बड़ी प्रापर्टी खड़ी की है. रामा ग्रीन सिटी, रामा वैली, रामा मैग्नेटो माल, रामा चैंबर... आदि.
राजधानी रायपुर में विधानसभा से कुछ पहले स्वर्ण भूमि भी रामा बिल्डकॉन के द्वारा निर्मित किया गया है. बताते हैं कि स्वर्ण भूमि में प्रदेश के कई कलेक्टरों और बड़े अफसरों ने बंगले ले रखे हैं. ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या रामा बिल्डकॉन के खिलाफ सही ढंग से कोई जांच हो पाएगी?
अफसरों ने किस रेट पर खरीदी जमीन और बनवाया बंगला...जांच का विषय
सरकारी गाइड लाइन के हिसाब से स्वर्णभूमि में जमीन की कीमत सात सौ रुपए से लेकर एक हजार रुपए के बीच ही है. अफसरों ने इस जगह पर किस रेट पर जमीन खरीदी और बंगला बनवाया है यह भी जांच का विषय है. जानकारों का कहना है इस इलाके में कई धनाढ्य लोगों ने कच्चे के पैसों को खपाया है. जानकारों का कहना है कि स्वर्णभूमि के सामने जो चौड़ी सड़क दिखाई देती है वह भी केंद्र के हाथकरघा विभाग की थीं जिस पर कब्जा कर लिया गया है.
एक्सप्रेस वे में विशाल गेट के पीछे कौन
छत्तीसगढ़ के आरटीआई और सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने पिछले दिनों एक्स हैंडल में एक पोस्ट के जरिए गंभीर सवाल उठाया था. उन्होंने लिखा था- राजधानी रायपुर में रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट को जोड़ने वाले एक्सप्रेस- वे के ठीक बीचों-बीच रामाग्रीन के बिल्डर राजेश अग्रवाल के द्वारा विशालकाय गेट बनवाया जा रहा है क्योंकि उन्होंने एक्सप्रेस- वे के पीछे जमीन खरीद ली है. गाड़ियां जब अचानक से कालोनी में इंट्री के लिए मुडेंगी तो एक्सप्रेस वे का क्या मतलब रह जाएगा. नियमतः एक्सप्रेस- वे पर किसी निजी बिल्डर का कोई गेट बन जाय... ऐसा होता नहीं है. कुणाल ने लिखा है कि गेट के लिए बिल्डर ने मंत्री और अफसरों को रिश्वत दी है. आरटीआई लगाकर जानकारी मांगी गई है.
उपरोक्त सारे मामलों में रामा बिल्डकॉन के भागीदार राजेश अग्रवाल का पक्ष जानने के लिए फोन लगाया गया लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया. वे अपना पक्ष रखना चाहेंगे तो उसे भी प्रकाशित किया जाएगा.
छत्तीसगढ़ के बिजली घरों में उपकरणों की सप्लाई करने वाले चंद सप्लायरों पर अफसर मेहरबान...उठी जांच की मांग
रायपुर. छत्तीसगढ़ के बिजली घरों में उपकरणों की सप्लाई करने वाले चंद सप्लायरों पर बिजली मुख्यालय के बड़े अफसर मेहरबान है. सप्लायरों से अफसरों के विशेष प्रेम ने कई तरह की चर्चाओं को जन्म दे दिया है.
गौरतलब है कि कोरबा वेस्ट,कोरबा ईस्ट और मढ़वा-जांजगीर के मुख्य अभियंता कार्यालय के अंर्तगत कार्यरत बायलर, टरबाइन, स्टोर डिवीजन, इलेक्ट्रिक मेंटेनेंस डिवीजन, सीएंडआई, टेस्टिंग, फ्यूल मैनेजमेंट,कोयला हैंडलिंग प्लांट, फायर एंड सेफ्टी आपरेशन, कम्युनिकेशन जैसे सभी शाखाओं में बिजली उपकरणों की आवश्यकता होती है. सामान्य तौर पर उपकरणों की सप्लाई के लिए नोटिस बोर्ड में सूचना चस्पा की जाती है अथवा टेंडर निकाला जाता है, लेकिन कई बार सूचना भी चस्पा नहीं होती और चहेते सप्लायरों को उपकरण सप्लाई का काम सौंप दिया जाता है.
कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ( ऊर्जा मंत्री ) को भी इस संबंध में एक शिकायत सौंपी गई है. शिकायत में यह कहा गया है कि बिजली सामानों की सप्लाई करने वाले चंद विशेष सप्लायरों और अधिकारियों की मिली-भगत से भारी घपला और भ्रष्टाचार किया जा रहा है. शिकायत में उल्लेखित है कि रायपुर मुख्यालय से खानापूर्ति कर नोटिस बोर्ड में टेंडर चस्पा करने का फरमान जारी किया जाता है, लेकिन इस फरमान को स्थानीय अभियंताओं के द्वारा दबा दिया जाता है. कार्यालय के अधीक्षक अथवा बड़े बाबू दो से पांच हजार रुपए लेकर टेंडर छिपा जाते हैं और नोटिस बोर्ड में चस्पा नहीं करते. फिलहाल जो शिकायत है उसमें दो से पांच लाख तक की राशि वाले उपकरणों की खरीदी में गड़बड़झाला किए जाने का उल्लेख है, लेकिन जानकारों का कहना है कि प्रदेश में कुछ ऐसे बड़े सप्लायर भी है जो छत्तीसगढ़ राज्य बिजली उत्पादन कंपनी में पदस्थ अफसरों का संरक्षण पाकर लंबा खेल खेल रहे हैं. सामान्य तौर पर बिजली के उपकरणों की खरीदी खुली निविदा में सस्ते दर पर हो सकती है, लेकिन कुछ खरीदी सिंगल टेण्डर के माध्यम से भी की गई है. चूंकि अधिकांश खरीदी छत्तीसगढ़ राज्य बिजली उत्पादन कंपनी ने ही की है इसलिए सभी सिंगल टेण्डर की जांच की मांग भी उठ गई है.
खबर हैं कि चंद विशेष सप्लायरों को अमूमन हर हफ्ते उपकरणों की सप्लाई का आदेश थमाया जा रहा है. बताते हैं कि जो सप्लायर OEM ( मूल उपकरण उत्पादक ) यानि कंपनी का ओरिजनल पार्ट सप्लाई करते हैं वे हर साल उपकरणों की कीमत बढ़ा देते हैं. यदि किसी बिजली घर के किसी हिस्से का कोई पार्ट खराब हो गया तो खराब पार्ट को तब बदला जाता है जब ओरिजनल उपकरण की सप्लाई हो जाती है. बाजार में जो उपकरण दीगर कंपनियों का सस्ते और अच्छे दर पर मिलता है, वही मंहगे रेट पर खरीदा जाता है. कंपनियों के अधिकृत सप्लायर रेट बढ़ोतरी दर्शाकर अपना मुनाफा कमाते हैं. सूत्रों का कहना है कि कई बार पार्ट खराब भी नहीं होता है तब भी उसे खराब कर दिया जाता है या खराब बताकर सप्लायरों को आर्डर थमा दिया जाता है.
इन फर्मों पर मेहरबानी
बताया जाता है कि बिजली मुख्यालय में पदस्थ बड़े अफसर विवादों और फर्जीवाड़े में घिरी फर्म टेक्नीकल टूल्स के साथ-साथ राखड़ फीलिंग के नाम पर करोड़ों का वारा-न्यारा करने वाली हेम्स कार्पोरेशन पर सबसे ज्यादा मेहरबान है. बताया जाता है कि इन फर्मों को बीते कुछ सालों में नियम-कायदे से परे जाकर उपकरणों की सप्लाई का बहुत सा आर्डर दिया गया है. सूत्रों का कहना है कि अगर उक्त कंपनियों के चेन सिस्टम की गंभीरता से जांच की जाएगी तो बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है. इधर छत्तीसगढ़ के स्थानीय बेरोजगार सप्लायर काम के लिए तरस रहे हैं, लेकिन कलकत्ता की दो कंपनी सुमीत ट्रेडिंग और मां संतोषी इंडस्ट्रियल कार्पोरेशन लंबे समय से उपकरणों की सप्लाई का आर्डर हासिल कर रही है. बताते हैं कि यूनिक सप्लाई, अमार इंटरप्राइजेस, राहुल इंटरप्राइजेस, एसडी इंस्ट्रडी, तनु ट्रेडिंग सहित कई फर्मों के कर्ताधर्ता सप्लायर भी लगातार उपकृत हो रहे हैं. इन फर्मों में यूनिक और अमार इंटरप्राइजेस की कार्यप्रणाली को लेकर जबरदस्त चर्चा कायम है. जानकार कहते हैं कि बिजली उपकरणों की सप्लाई का आर्डर हासिल करने के लिए कुछ फर्मों ने अपने भाई-भतीजों के नाम से भी फर्में खोल ली है.
जोरदार घमासान के बीच पीयूसीएल का चुनाव संपन्न...जूनस तिर्की बने अध्यक्ष, महासचिव कलादास डहरिया
रायपुर. अब तो यह देख और सोच पाना बहुत मुश्किल हो चला है कि किन संगठनों में द्वंद-अंर्तद्वंद और लोकतंत्र जिंदा है. ज्यादातर वैचारिक संगठनों में मठाधीश काबिज रहते हैं तो उनके वैचारिक पिसलन की वजह से संगठन में टूट-फूट होती रहती है. कई बार टूट-फूट से नया मार्ग प्रशस्त होता है तो कई मर्तबा संगठन का भट्ठा बैठ जाता है. मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे लोक स्वातंत्र्य संगठन ( पीयूसीएल ) ने भी अपने प्रारंभिक दिनों से लेकर अब तक कई तरह के उतार-चढ़ाव देखें है.यह संगठन टूटता और बिखरता रहा है तो नए सिरे से बनता भी रहा है. इसमें कोई दो मत नहीं कि यह देश का एकमात्र ऐसा संगठन है जहां द्वंद-अंर्तद्वंद और लोकतंत्र ( हांफते हुए ही सही ) नजर आता है. विगत दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पीयूसीएल के राज्य सम्मेलन और नई ईकाई के गठन के दौरान जबरदस्त वैचारिक घमासान देखने को मिला. घमासान के बीच यह भी लगा कि कहीं मामला झूमा-झटकी और हाथापाई तक तो नहीं पहुंच जाएगा ?
लेकिन...शोर-शराबे और हो-हंगामें के बीच स्थिति भाजपा-कांग्रेस या आम आदमी पार्टी की बैठकों जैसी नहीं बन पाई. मतलब यह था कि किसी ने किसी के ऊपर कुर्सी नहीं फेंकी और सिर नहीं फोड़ा.
सम्मेलन के दौरान पीयूसीएल की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव और कई प्रबुद्धजनों की मौजूदगी कायम थीं तो मामला संभल गया.
इससे पहले कि इस खबर के पाठक पूरे विवरण से वाकिफ हो... उन्हें यह बताना बेहद आवश्यक है कि इस भयावह और खतरनाक समय में मुठभेड़ के लिए छत्तीसगढ़ की पीयूसीएल ने नए अध्यक्ष और महासचिव के साथ ही नई कार्यकारिणी का चयन कर लिया है. पीयूसीएल छत्तीसगढ़ के नए अध्यक्ष जूनस तिर्की बनाए गए हैं जो आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के पास के ही एक गांव भगोरा के रहने वाले हैं. संगठन का महासचिव छत्तीसगढ़ मुक्तिमोर्चा से जुड़े प्रसिद्ध लोक कलाकार कलादास डहरिया को बनाया गया है.पीयूसीएल में उपाध्यक्ष के तीन पदों पर क्रमशः सुधा भारद्वाज,गुरुघासीदास सेवादार संघ के प्रमुख लाखन सुबोध और पूर्व विधायक जनकलाल ठाकुर की नियुक्ति की गई है.
चुनाव के दौरान मौजूद सदस्यों ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि देश की प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज को सीधे अध्यक्ष पद पर नामित क्यों नहीं किया जा रहा है.संगठन की एक सदस्य ने बताया कि उन्होंने फिलहाल उपाध्यक्ष पद पर काम करने की सहमति प्रदान की है. संयुक्त सचिव पद पर अमित वर्मा, संगठन सचिव दीपक साहू और वीएन प्रसाद राव का चयन किया गया है. कोषाध्यक्ष एपी जोशी बनाए गए हैं. कार्यकारिणी सदस्यों में छत्तीसगढ़ ईकाई के पूर्व अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान, आशीष बेक, हिडमे मरकाम, सुनीता पोट्टाम, सोनसिंह जाली, चोवाराम साहू, बसन्त साहू,रुपदास टंडन, राजीव लकरा, किशोर नारायण, गायत्री सुमन, सरस्वती, ममता कुजूर, गौतम बंद्योपाध्याय, शमां, श्रेया के, आलोक शुक्ला, रचना डहरिया, तुहिन देव, असित सेनगुप्ता, इंदु नेताम,कल्याण पटेल, चंद्रप्रकाश टंडन, दिनेश सतनाम और अखिलेश एडगर को शामिल किया गया है. नेशनल कौंशिल में शालिनी गेरा, सोनी सोरी, रिनचिन, जेकब कुजूर, जय प्रकाश नायर और केशव सोरी को शामिल किया गया है.
ब्राम्हणवाद पर तीखी बहस
पीयूसीएल के दो दिवसीय सम्मेलन में ब्राम्हणवाद को लेकर तीखी बहस देखने को मिली. कुछ सदस्यों का यह मानना था कि अगर वे ऊंची जाति में पैदा हो गए हैं तो यह उनकी गलती नहीं है. व्यक्ति का काम देखा जाना चाहिए. वहीं कुछ का कहना था कि ब्राम्हणवाद का अर्थ केवल ऊंची जाति से नहीं है बल्कि ऊंची जाति वाली श्रेष्ठता बोध से हैं. सामाजिक कार्यकर्ता रिनचिन का कहना था कि पीयूसीएल में जेंडर को लेकर व्यापकता देखने को मिल रही है. जब शोषित वर्ग के लोग कुछ शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो श्रेष्ठ वर्ग के लोगों को ठेस पहुंचती है. जब देश में दलित-आदवासी और स्त्री विमर्श चल रहा है तो ब्राम्हणवाद पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए. यह एक ऐसा मसला है जिसे सबको समझने की आवश्यकता है. मानवाधिकार कार्यकर्ता लाखन सुबोध का कहना था कि जब पीयूसीएल के संविधान में ही यह साफ है कि संगठन से सभी वर्ग और विचारधारा के लोग जुड़ सकते हैं तो फिर भेदभाव कैसे किया जा सकता है? सम्मेलन के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब देश की नामचीन अधिवक्ता रजनी सोरेन भावुक हो गई. उनका कहना था कि उन्होंने और उनकी टीम ने बेहद निष्ठा और ईमानदारी से कार्य किया है...बावजूद इसके उन्हें बदनाम किया गया है. रजनी ने कहा कि कोई कुछ भी कहें लेकिन वह जीवनभर श्रेष्ठता बोध का विरोध जारी रखेंगी. सामाजिक कार्यकर्ता डिग्री चौहान का कहना था कि हमारे बारे में सोची-समझी योजना के तहत यह प्रचारित किया गया कि हम लोगों ने सुधा भारद्वाज का विरोध किया. उनका सम्मान नहीं किया. जबकि यह सच नहीं है. उन्होंने सम्मेलन के दौरान यह भी साफ किया कि कुछ लोग दलित-आदिवासी नेतृत्व को टारगेट करने के खेल में जुटे हुए थे. डिग्री ने कहा कि वे प्रतिरोध स्वरुप किसी भी पद को स्वीकार नहीं करेंगे और आवश्यता होगी तो न्यायालय में भी दस्तक देंगे. सम्मेलन में कुछ सदस्यों ने इस बात पर आपत्ति जताई कि सदस्यता सूची से उनका नाम काट दिया गया है. पीयूसीएल की सदस्य श्रेया ने बताया कि जिन सदस्यों ने रिनीवल के लिए अनुमति नहीं दी थीं केवल उन्हीं सदस्यों का नाम अलग किया गया था.
35 हजार से ज्यादा सामाजिक बहिष्कार के प्रकरण
सम्मेलन में महासचिव आशीष बेक ने प्रतिवेदन पेश किया जिसमें चर्चा की गई. उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने कई तरह के ज्वलंत मुद्दों पर कार्य किया है. एक बड़ा मसला गांवों में होने वाले सामाजिक बहिष्कार का भी था. बेक ने बताया कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2011 से लेकर अब तक 35 हजार से ज्यादा सामाजिक बहिष्कार के प्रकरण देखने को मिले है. कुछ मामले ही सामने आ पाए जबकि कई मामले दब गए. महासचिव ने यह भी बताया कि 2018 के पहले पीयूसीएल में पारदर्शिता का अभाव था...लेकिन अब स्थिति एकदम उलट है. अब पीयूसीएल में लोकतंत्र स्थापित है. उन्होंने बताया कि जब बस्तर के सिलगेर वाले मामले की रिपोर्ट पेश की गई तब केवल एक जगह ब्राम्हणवाद पर सवाल उठाया गया,लेकिन पूरे देश में यह प्रचारित किया गया कि पीयूसीएल ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को ब्राम्हणवादी बोला है.
कैसे लोगों को जोड़ा जाय?
दो दिवसीय सम्मेलन में इस बात को लेकर भी चर्चा हुई कि किस तरह के लोग संगठन से जुड़ सकते हैं.सफाई कर्मचारियों के बीच संघर्षरत जेपी नायर ने कहा कि जोड़े जाने वाले किसी भी व्यक्ति की गतिविधियों को कम से कम एक साल तक देखना-परखना चाहिए. संगठन में देश को बांटने वाले लोगों को बिल्कुल भी नहीं जोड़ा जाना चाहिए. जनकलाल ठाकुर का कहना था कि बस्तर में सैन्यीकरण एक बड़ा मसला है जिस पर गंभीरता से विचार की आवश्यकता है.राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने चुने गए सभी पदाधिकारियों को बधाई दी और कहा कि जब दक्षिणपंथी ताकतें कांग्रेस के लोगों को अर्बन नक्सल बोलने से नहीं चूक रही है तो हमारी स्थिति क्या है आसानी से समझा सकता है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ हमेशा से चुनौतियां रही है और चुनौतियों का मुकाबला करके ही आगे बढ़ा जा सकता है. सम्मेलन की समाप्ति के बाद इस बात को लेकर भी चर्चा होती रही कि संगठन की नई ईकाई के पदों पर महिलाओं को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया है. कुछ सदस्यों ने कहा कि संगठन में अब तक ब्राम्हणवाद को लेकर बहस चलती रही है लेकिन अब पितृसत्ता को बढ़ावा दिए जाने को लेकर विमर्श चलता रहेगा. नाराज चल रहे कुछ पूर्व पदाधिकारियों ने यह भी कहा कि वे नया संगठन बनाने के बारे में मंथन कर रहे हैं.
जब छत्तीसगढ़ में चोर पुलिस वालों का घर नहीं छोड़ रहे हैं...तो आपकी और हमारी क्या बिसात ?
जब छत्तीसगढ़ में चोर पुलिस वालों का घर नहीं छोड़ रहे हैं...तो आपकी और हमारी क्या बिसात ?
रायपुर.अगर आप छत्तीसगढ़ के किसी शहर...कस्बे या गांव में रहते हैं तो आपको हमेशा सचेत और सर्तक रहने की आवश्यकता है. छत्तीसगढ़ में कानून और व्यवस्था की स्थिति इतनी ज्यादा खराब है कि कभी भी किसी के भी साथ अप्रिय घटना घटित हो जाती है. यदि आप शराफत के साथ मोटर साइकिल पर कहीं जा रहे हैं तो हो सकता है कि कोई लफंडर आपका मोबाइल छीनकर भाग जाय. अगर आप किसी पेड़ की छांव में खड़े होकर सिगरेट पी रहे हैं तो यह भी संभव है कि कोई माचिस मांगने के बहाने चाकू टिका दें और सब कुछ लूटकर रफूचक्कर हो जाय. छत्तीसगढ़ की धरती फिलहाल छिनतई...लूटपाट और चोरी करने वालों के लिए स्वर्ग बनी हुई है. छत्तीसगढ़ में जब चोर सेंट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो में पदस्थ अफसरों और पुलिस वालों के घर में चोरी करना नहीं छोड़ रहे हैं तो हमारी और आपकी क्या बिसात है ? अपने घर और परिवार को अपने बूते और अपने दम पर सुरक्षित रखिए. छत्तीसगढ़ की पुलिस के भरोसे मत रहिए. छत्तीसगढ़ की पुलिस हर तरह के अपराधों को रोकने में नकारा और निकम्मी साबित हो रही है.
रायपुर में दो-तीन दिन पहले ही चोरों ने सेंट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी के एक बड़े अधिकारी के घर पर चोरी की घटना को अंजाम दिया है. यह घटना उस कॉलोनी में हुई है जहां बेहद हाई प्रोफाइल लोग रहते हैं. रायपुर की वॉलफोर्ट पैराडाइज कॉलोनी में देश और राज्य के बड़े अफसरों के अलावा फिल्म स्टार और आर्थिक रुप से संपन्न लोग ही निवास करते हैं. इसी कॉलोनी में सेंट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो में पदस्थ प्रवीण कुमार सिवान का भी मकान है. इसी महीने 19 अक्टूबर को प्रवीण कुमार सिवान अपने परिवार के साथ अपने मूल निवास दिल्ली गए हुए थे. इस बीच 23 अक्टूबर को उनके पड़ोसी रामकिशोर प्रजापति ने बताया कि उनके घर का ताला टूटा हुआ है. प्रवीण कुमार जब दिल्ली से रायपुर लौटे तो पता चला कि चोरों ने लॉकर से डायमंड लगा सोने का ब्रेसलेट, दो सोने के कंगन, तीन सोने की चेन, चांदी की पायल, चांदी के कीमती सामान और 50 हजार नगदी के साथ-साथ कुल चार लाख पचास हजार के सामान से हाथ साफ कर दिया है. फिलहाल चोरी की घटना को किसने अंजाम दिया है इसका पता नहीं चल पाया है क्योंकि चोर जाते-जाते सीसीटीवी का डीवीआर भी ले गए हैं.
कुछ समय पहले चोरों ने छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी के नाम से विख्यात कोरबा में निवास कर रहे एक एएसआई राकेश गुप्ता के घर पर भी धावा बोला था. जब पुलिसकर्मी का परिवार कोरबा मॉल में शॉपिंग करने गया था तब चोरों ने घर का ताला तोड़कर चोरी की वारदात को अंजाम दिया था. इसी तरह छत्तीसगढ़ के दुर्ग शहर के सूर्य नगर सिकोला भाठा में रहने वाली महिला एएसआई प्रीति जायसवाल के घर भी लाखों रुपए की चोरी हो गई थीं. बताया जाता है कि महिला एएसआई प्रीति जायसवाल पहले सीआईडी यानी Crime Investigation Department में पदस्थ थी. जिस रोज चोरी की घटना हुई तब वह रायपुर में पदस्थ थीं और रायपुर से ही दुर्ग आना-जाना किया करती थीं.
शातिर चोर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पूजा अग्रवाल के भाई के घर को भी निशाने पर ले चुके हैं. कोरबा में ठीक सिटी कोतवाली के पीछे अग्रोहा मार्ग पर पूजा अग्रवाल का परिवार निवास करता है. पूजा का भाई श्याम गोयल जब परिवार के साथ बाहर घूमने गया तब चोरों ने नगदी और जेवरातों पर से हाथ साफ कर दिया था.यहां भी चोरों ने सीसीटीवी कैमरा और डीवीआर गायब कर दिया था. बीते दिनों चोरों ने कोरबा के पास ही बालको नगर कालोनी में स्थित एक मकान से भी लाखों रुपए के जेवरात और नगदी को पार कर दिया था. बाद में पता चला कि जिस मकान में चोरी हुई थीं वह मकान थाना प्रभारी सनत सोनवानी का था.
चोरों के हौसले बुलंद
छत्तीसगढ़ में हर रोज किसी न किसी घर का ताला टूट रहा है. पहले तो चोर आउटअर के सूने मकानों को ही अपना निशाना बनाते थे, लेकिन अब भीड़-भाड़ वाले इलाकों पर भी बेखौफ धावा बोल रहे हैं. पुलिस भी मानती है कि जो चोरियां हो रही है उसका पैर्टन एक जैसा है. चोर...अपनी पहचान छिपाने के लिए मुंह पर कपड़ा बांधते हैं. घातक हथियारों से लैस होकर सूने मकान को निशाना बनाते हैं और भी जाते-जाते सीसीसीटीवी और डीवीआर लेकर चले जाते हैं. छत्तीसगढ़ में विशेषकर राजधानी रायपुर में चोरों का कौन सा गैंग सक्रिय है...फिलहाल पुलिस इसकी शिनाख्त नहीं कर पाई है. क्या चोरों का वास्ता उत्तर प्रदेश,राजस्थान, बिहार या मध्यप्रदेश से है अथवा चोर छत्तीसगढ़ के ही है…यह साफ नहीं हो पाया है ? कोई इसे माने या न माने लेकिन यह सच है कि चोरों के आंतक की वजह से छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार जबदस्त ढंग से बदनाम हो रही है. चोरों की दहशत ने आमजन का जीना हराम कर रखा है.
छत्तीसगढ़ में जिस सब इंजीनियर की दो बच्चियों के साथ गलत हुआ...उसकी पहचान सार्वजनिक करने वाले दो अधिकारियों के खिलाफ जांच प्रारंभ
छत्तीसगढ़ में जिस सब इंजीनियर की दो बच्चियों के साथ गलत हुआ...उसकी पहचान सार्वजनिक करने वाले दो अधिकारियों के खिलाफ जांच प्रारंभ
शिकायतकर्ता सब इंजीनियर ने बच्चियों के नाम का दुरुपयोग करने वालों के आवाज की सीडी पुलिस को सौंपी
कार्यपालन अभियंता और उप अभियंता पर गिर सकती है गाज
रायपुर. जो कोई भी कानून का जानकार है वह इस बात को भली-भांति जानता है कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण के लिए बनाए गए पास्को एक्ट में बच्चों के साथ-साथ उनके अभिवावक, परिवार, बच्चों के स्कूल, रिश्तेदार और पास-पड़ोस की सुरक्षा और गोपनीयता बेहद महत्वपूर्ण होती है. जो कोई भी इस सुरक्षा को तोड़ता है यानी बच्चों या उनके अभिभावक का नाम सार्वजनिक करता है तो ऐसा कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है और इसके लिए बकायदा जेल की सजा का भी प्रावधान है, लेकिन छत्तीसगढ़ में ग्रामीण सड़कों को बनाने वाले विभाग में पदस्थ एक कार्यपालन अभियंता और एक उप अभियंता ने सुरक्षा घेरे को तोड़ने का कृत्य कर डाला है. इस मामले में पीड़ित सब इंजीनियर ने राज्यपाल से शिकायत की थीं जिसके बाद पुलिस ने जांच प्रारंभ कर दी है.
ग्रामीण इलाकों में सड़कों का निर्माण करने वाले विभाग में पदस्थ एक सब इंजीनियर की दो बच्चियां जिस स्कूल में पढ़ती थीं वहां उन बच्चियों के साथ गलत हुआ था. मामले की जानकारी होने के बाद सब इंजीनियर ने कुछ पालकों के साथ मिलकर स्कूल प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोला और अपराधी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया,लेकिन इस बीच एक दुखद घटना घट गई. हादसे की शिकार सब इंजीनियर की एक बच्ची ने दम तोड़ दिया जबकि दूसरी बच्ची बीमार होकर गुमसुम रहने लगी. सब इंजीनियर ने अपनी बच्चियों के इलाज के लिए इधर-उधर खूब दौड़-धूप की और लगभग 27 लाख रुपए का कर्ज लेकर इलाज भी करवाया. होना तो यही चाहिए था कि विभाग के लोग पीड़ित परिवार के साथ खड़े रहते...लेकिन ऐसा नहीं हुआ. विभाग में पदस्थ कार्यपालन अभियंता के कारनामों का खुलासा करने करने की वजह से सब इंजीनियर का तबादला बीजापुर कर दिया गया. सब इंजीनियर ने तबादले में संशोधन के लिए इधर-उधर खूब हाथ-पांव मारे लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. विभागीय मंत्री ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए नोटशीट भी लिखी...लेकिन अफसरों ने सोची-समझी योजना के तहत सब इंजीनियर को राहत नहीं मिलनी दी.
सब इंजीनियर विभागीय प्रताड़ना से त्रस्त था ही कि एक रोज कुरुद इलाके में पदस्थ एक उप अभियंता ने रात में फोन कर कहा कि वह ( सब इंजीनियर ) अपनी बेटियों के नाम का गलत इस्तेमाल करते हुए फायदा उठा रहा है. यहां तक जिस स्कूल में बच्चियों के साथ घटना घटी थीं उस स्कूल से भी पैसे लेकर मामले को सेट कर लिया गया है. निश्चित रुप से यह आपत्तिजनक टिप्पणी थीं. सब इंजीनियर ने उप अभियंता सहित अन्य कई लोगों की टिप्पणियों को टेप कर लिया था. बहरहाल टेप की गई आवाज की सीडी पुलिस को सौंप दी गई है. कानून के जानकार कहते हैं कि अगर यह प्रमाणित हो जाता है कि कार्यपालन अभियंता और उप अभियंता ने पीड़ित बच्चियों और उनके परिवार के नाम का दुष्प्रचार किया है तो उन पर गाज गिर सकती है. सूत्र कहते हैं कि पुलिस ने पीड़ित सब इंजीनियर और उनकी पत्नी के अलावा कार्यपालन अभियंता और उप अभियंता का बयान दर्ज कर लिया है.
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में गड़बड़झाला: पैसा नहीं दिया तो रोक दिया गया ट्रांसफर में संशोधन !
पैसा नहीं दिया तो रोक दिया गया ट्रांसफर में संशोधन
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सब इंजीनियर का गंभीर आरोप
पंचायत विभाग प्रमुख सचिव के निज सहायक धनजंय वर्मा सहित कई लोगों ने मांगे पैसे
रायपुर. पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग दुर्ग में पदस्थ धीरेंद्र सोनी नाम के एक सब इंजीनियर ने अपने ही विभाग के कार्यपालन अभियंता राहुल कश्यप और उप अभियंता प्रवीण तिवारी पर गंभीर आरोप लगाया है. धीरेंद्र सोनी का कहना है कि कार्यपालन अभियंता राहुल कश्यप और उप अभियंता प्रवीण तिवारी उनसे विद्वेष रखते हैं. अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर दोनों ने पहले उनका तबादला बीजापुर करवाया और फिर जब उनके द्वारा तबादले में संशोधन के लिए प्रयास किया तब भी राहत नहीं मिली. मुख्यमंत्री और राज्यपाल को भेजी गई एक शिकायत में सोनी ने कहा कि उनकी पत्नी स्वयं एक शासकीय शिक्षक है और दुर्ग में पदस्थ है. नियम तो यही कहता है कि तबादले के दौरान पति और पत्नी को साथ रखा जाय, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
सोनी का कहना है कि अपनी व्यथा और परेशानी को लेकर उन्होंने उपमुख्यमंत्री और पंचायत मंत्री विजय शर्मा से व्यक्तिगत तौर पर कई बार मुलाकात की थी. मंत्री जी ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए 14 मार्च 2024 को बकायदा तबादले में संशोधन के लिए पंचायत विभाग की प्रमुख सचिव को निर्देशित भी किया था, लेकिन मंत्रालय में पदस्थ छोटे-बड़े स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों ने उनसे पैसों की मांग की. यहां तक की पंचायत विभाग की प्रमुख सचिव के निज सहायक धनजंय वर्मा ने भी वाट्सअप काल करके पैसे मांगे. धीरेंद्र सोनी की शिकायत में मंत्री के बंगले में भी पैसों की डिमांड का उल्लेख है, लेकिन वह मंत्री कौन है इसका उल्लेख नहीं है.
कार्यालय में चलता है जुआ-सट्टा
सब इंजीनियर ने पंचायत विभाग के अधीन ग्रामीण सड़क विकास अभिकरण में पदस्थ अफसरों द्वारा विद्वेष रखने की वजह भी बताई है. सब इंजीनियर का कहना है कि कुछ समय पहले दफ्तर से कुछ आवश्यक दस्तावेज गायब हो गए थे. अभिकरण में पदस्थ कुछ लोगों ने गायब हुए दस्तावेजों के लिए उसे फंसाने की कोशिश की थी, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए. ऐसा इसलिए हो पाया कि क्योंकि उसने दफ्तर में जुआ और सट्टा खेलते हुए अधिकारी और कर्मचारियों की फोटो खींच ली थीं. धीरेंद्र सोनी ने बताया कि दफ्तर में रात के 11-12 बजे तक बाहरी लोगों का आना-जाना लगा रहता था. जब उन्होंने सबूत के तौर पर फोटोग्राफ्स प्रस्तुत किए तबसे जुआ-सट्टा खेलने वाले अधिकारी और कर्मचारी उनके खिलाफ हो गए. इसके अतिरिक्त धीरेंद्र सोनी ने बताया कि दुर्ग में उनके पास गौरव पथ का चार्ज था. वरिष्ठ अफसर चाहते थे कि सड़क में चार-साढ़े चार लाख रुपया मैं उन्हें कमाकर दूं... लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. सड़क 70 लाख में बननी थीं लेकिन 65 लाख में ही बन गई तो मैंने शेष पैसा अभिकरण को लौटा दिया.
इधर ग्रामीण विकास संभाग छत्तीसगढ़ ग्रामीण सड़क विकास अभिकरण में पदस्थ कार्यपालन अभियंता राहुल कश्यप ने जामुल के थाना प्रभारी को एक शिकायत देकर धीरेंद्र सोनी पर कार्यवाही की मांग की है. ( शिकायत की प्रति अपना मोर्चा के पास उपलब्ध है. ) कार्यपालन अभियंता का कहना है कि धीरेंद्र सोनी का तबादला प्रशासनिक स्तर पर किया गया है जिसके लिए वे उन्हें और प्रवीण तिवारी को जिम्मेदार मानते हैं. दिनांक 30 अगस्त 2024 को धीरेंद्र सोनी ने RDD UNION V 2.0 वाट्सअप ग्रुप में परिवार सहित आत्महत्या करने की धमकी दी है. कार्यपालन अभियंता ने अपनी शिकायत में यह भी लिखा है कि स्थानांतरण करना शासन की एक नियमित प्रक्रिया है. यह किसी एक व्यक्ति विशेष का कार्य नहीं है. अगर धीरेंद्र सोनी किसी भी तरह का अनैतिक कदम उठाता है तो इसके लिए वे जिम्मेदार नहीं रहेंगे.
मुझे कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी है
धीरेंद्र सोनी के प्रकरण से पूरा विभाग अवगत है. उनके द्वारा कई स्तरों पर मेरे और प्रवीण तिवारी के खिलाफ शिकायत की गई है. मैं उचित फोरम पर ही जवाब देना आवश्यक समझता हूं. मुझे फिलहाल कोई सफाई नहीं देनी है.
राहुल कश्यप ( कार्यपालन अभियंता )
मुझे कुछ नहीं कहना है
धीरेंद्र सोनी के कृत्य से परेशान होकर हमने जामुल थाने में एक शिकायत दी है. इसके अलावा मुझे और कुछ नहीं कहना है.
प्रवीण तिवारी ( उप अभियंता )
राखी थाने में शिकायत
धीरेंद्र सोनी एक परिचित के माध्यम से मेरे पास आए थे. उन्होंने अपनी पारिवारिक और निजी दुविधाओं का जिक्र भी किया था. विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों ने पूरी संवेदनशीलता के साथ उनके प्रकरण को सुना था. उनके द्वारा यह कहना कि मैंने तबादले के लिए पैसों की मांग की है पूरी तरह से गलत है. उनके आरोप सही नहीं है. उल्टा धीरेंद्र सोनी ने परिवार सहित आत्महत्या करने की धमकी थीं. मामले की शिकायत राखी थाने में कर दी गई है जिस पर जांच चल रही है.
धनजंय वर्मा ( निज सहायक प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग )
छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में एक हजार करोड़ का वारा-न्यारा
छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में एक हजार करोड़ का वारा-न्यारा
ठेकेदारों द्वारा जमा की गई 228 करोड़ की सुरक्षा निधि का भी नहीं चल पा रहा पता
पूर्व मुख्य कार्यपालन अभियंता अरविन्द राही और मुख्य अभियंता रियाजुल बारी की भूमिका कटघरे में
रायपुर. छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंर्तगत सड़क विकास अभिकरण में तैनात अफसर इन दिनों गुम हो चुकी कई महत्वपूर्ण फाइलों और दस्तावेजों की खोजबीन में लगे हुए हैं. दरअसल जिन फाइलों और दस्तावेजों को खोजा जा रहा है उनमें एक हजार करोड़ के व्यारे-न्यारे का खेल छिपा हुआ है. फिलहाल जो गड़बड़ी सामने आई है उसमें पूर्व मुख्य कार्यपालन अभियंता अरविन्द राही ( वर्तमान में मंत्रालय में अटैच ) और सेवानिवृत हो चुके मुख्य अभियंता रियाजुल बारी की भूमिका बताई जा रही है.विभागीय सूत्र कहते हैं कि कुछ ऐसे सबूत मिले हैं जिससे पता चलता है कि राही और बारी ने ही एक बड़े अफसर के मौखिक आदेश पर पैसों के आवंटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थीं. जानकार कहते हैं कि दोनों अफसरों पर विभाग की तरफ से एफआईआर दर्ज करने की तैयारी भी चल रही है.
दिसम्बर में नई सरकार के गठन के बाद जब पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में फेरबदल हुआ तब चार्ज लेने वाले अफसरों को पता चला कि लगभग छह सौ करोड़ का टेंडर तो बिना बजट के ही जारी कर दिया गया था. यह एक बड़ी गड़बडी थीं.इसके अलावा जिन ठेकेदारों ने काम लेने के एवज में सुरक्षा निधि जमा की थीं उसका भी पता नहीं चल पा रहा है. बताते है कि अभी चंद रोज पहले प्रदेश के लगभग 85 ठेकेदारों ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के दफ्तर पहुंचकर अफसरों से सुरक्षा निधि वापस करने की गुहार लगाई है. अफसरों ने जब सुरक्षा निधि से संबंधित दस्तावेज और बैंक खातों को खंगाला तो ज्ञात हुआ कि लगभग 228 करोड़ की सुरक्षा निधि ( जिसका उपयोग नहीं हो सकता था ) इधर-उधर के अन्य कामों में व्यय कर दी गई है.
अब अफसर इस बात को लेकर पशोपेश में हैं कि सुरक्षा निधि कैसे लौटाई जाय ? खबर है कि ठेकेदारों ने सुरक्षा निधि की वापसी के लिए मुख्यमंत्री एवं पंचायत मंत्री से भी मिलने का मन बनाया है. इधर नाम ना छापने की शर्त पर विभाग के एक वरिष्ठ अफसर ने यह स्वीकारा है कि ठेकेदार अपनी सुरक्षा निधि की वापसी के लिए हर रोज दफ्तर आ रहे हैं. ठेकेदारों का पैसा कैसे और किस ढंग से वापस होगा... अभी कुछ बताया नहीं जा सकता है.
संघी अफसरों के हाथों में कमान...फिर भी नहीं बदली पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की सूरत
संघी अफसरों के हाथों में कमान...फिर भी नहीं बदली पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की सूरत
अब भी कई जिलों में अपात्र बने हुए हैं कार्यपालन अभियंता
रायपुर. यह कोई नई बात नहीं है. जिस किसी भी सरकार होती है तो वह गिन-गिनकर हर विभाग में अपने लोगों की तैनाती पर जोर देता है. सूबे में भूपेश सरकार के जाने और साय सरकार के आने के बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में संघ की पृष्ठभूमि को मानने-जानने वाले अफसरों का वर्चस्व कायम हो गया है. ऐसे सभी अफसर जो कभी लूप लाइन में थे विभाग में काबिज हो गए हैं. संघी पृष्ठभूमि वाले अफसरों की तैनाती के बावजूद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की सूरत जस की तस है. यह विभाग अब भी घपलों-घोटालों... एक ही बारिश में बह जाने वाली खराब सड़कों और काला-पीला करने वालों ठेकेदारों के कारनामों के लिए मशहूर है. विभाग के बारे में कहा जाता है कि यहां जो ना हो जाय वह कम है.
ताजा मामला 17 अक्टूबर 2024 को पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के उप अभियंताओं और सहायक अभियंताओं ( सिविल ) के पद पर पदोन्नति से जुड़ा हुआ है. मजे की बात यह है कि जिन्हें उप अभियंता से सहायक अभियंता के पद पर प्रमोशन दिया गया हैं वे बरसो से कई जिलों में प्रभारी कार्यपालन अभियंता बने हुए थे.
जो पदोन्नति सूची जारी हुई है उसमें नरेंद्र कुमार देशमुख सहित कई लोगों का नाम शामिल है. नरेंद्र कुमार देशमुख 31 मई 2022 को सेवानिवृत हो चुके हैं और अपनी सेवानिवृति से पहले वे बलौदाबाजार जिले में प्रभारी कार्यपालन अभियंता भी रह चुके हैं. यानी कि जो व्यक्ति कार्यपालन अभियंता रह चुका है वह अब जाकर सहायक अभियंता के पद पर पदोन्नत हुआ है वह भी सेवानिवृति के बाद.
सहायक अभियंता के पद पदोन्नति पाने वालों में एक नाम देवेंद्र सिंह कश्यप का भी है. कश्यप भी 30 अप्रैल 2024 को सेवानिवृत हुए हैं, लेकिन सेवानिवृति से पहले वे भी राजनांदगांव में कार्यपालन अभियंता के तौर कार्य कर चुके हैं.पदोन्नति पाने वालों में एक नाम वायके शुक्ला का भी है. वाय के शुक्ला लंबे समय से अंबिकापुर में ही पदस्थ है और उन्हें लेकर कई तरह की गंभीर शिकायतें भी है. कहा जाता है कि राजनीतिक व प्रशासनिक वरदहस्त के चलते वायके शुक्ला को अंबिकापुर से हटाया नहीं जाता. बहरहाल वायके शुक्ला अभी सेवानिवृत नहीं हुए हैं लेकिन अंबिकापुर में ही कार्यपालन अभियंता के तौर पर उनकी तैनाती बनी हुई है.
गौरतलब है कि वर्ष 2013 में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा में प्रमोशन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी तब एक सब इंजीनियर ने प्रक्रिया को गलत बताते हुए कोर्ट की शरण ले ली थीं. कोर्ट ने नए सिरे से पदोन्नति का आदेश दिया लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी कई अपात्र जो महज सहायक अभियंता थे वे प्रभारी कार्यपालन अभियंता बना दिए गए. विभाग में कार्यरत वे लोग जो नियम-कानून और कायदे पर यकीन रखते हैं उन्हें लग रहा था कि नई सरकार के बनने पर सब कुछ ठीक-ठाक हो जाएगा. यानी कि रिव्यू डीपीसी में ही होगी और योग्य लोगों को मौका मिलेगा लेकिन अब भी राजनांदगांव, कांकेर, अंबिकापुर और कोरबा सहित कई जिलों में कई अपात्र ग्रामीण यांत्रिकी सेवा एवं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में कार्यपालन अभियंता और सहायक अभियंता के पद जमे हुए हैं. इस खबर के साथ जिस आदेश को यहां चस्पा किया गया है उसे अगर गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि उप अभियंता से सहायक अभियंता के लिए पदोन्नति का आदेश निकाले जाने के दौरान नाम के आगे बड़ी चालाकी से केवल पदस्थापना कार्यालय का नाम ही दिया गया है. पदस्थापना कार्यालय के कालम में इस बात का उल्लेख नहीं है कि संबंधित व्यक्ति किस पद पर कार्यरत है.
छत्तीसगढ़ में नोट उड़ रहा है...नोट बटोरना चाहते हैं तो झोला लेकर घर से निकल जाइए
रायपुर.कांग्रेस नेता अजीत जोगी जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब एक वरिष्ठ पत्रकार को इंटरव्यूह देते हुए उन्होंने कहा था-छत्तीसगढ़ की धरती अमीर है...लेकिन यहां के लोग गरीब है.
तब यह स्लोगन बहुत मशहूर हुआ था-
अमीर धरती...गरीब लोग
लेकिन इधर छत्तीसगढ़ के धुर माओवाद प्रभावित इलाके भानुप्रतापपुर से वायरल हुए एक वीड़ियो को देखकर लग रहा है कि छत्तीसगढ़ की धरती पहले गरीब थीं अब बहुत अमीर हो चुकी है. यहां के बाशिन्दे इतने ज्यादा धनवान हो गए हैं कि खुलेआम नोटों से भरी हुई टोकरी लेकर घूम रहे हैं. वीडियो को देखकर तो मन में पहला भाव तो यहीं उत्पन्न हो रहा है कि छत्तीसगढ़ में नोट उड़ रहा है... बस... पकड़ने वाला चाहिए. वीडियो को देखकर यह भी महसूस हो रहा है कि कांग्रेसी और वामपंथी फालतू में ताना मारते रहते हैं कि जबसे केंद्र में मोदी की सरकार आई है तबसे रुपया गिर रहा है.
अरे...कहां गिर रहा है. छत्तीसगढ़ में सिर्फ खाली झोला लेकर आइए... यहां तो नोट उड़ रहा है.
जो वीडियो वायरल हुआ है उसमें भानुप्रतापपुर में रहने वाला आकाश सोलंकी नाम का युवक का एक कार में नोटों का बंडल लेकर कहीं जाता हुआ दिखाई दे रहा है. बीच-बीच में युवक अपनी मूंछों को ताव देता हुआ भी नजर आता है. बैकग्राउंड से एक छपरी टाइप का रैप सांग भी बज रहा है-
नामुमकिन जैसी कोई भी चीज नहीं
जो खुद ना बने वो कोई भी नसीब नहीं
मिलेगी मंजिल चाहे गरीब नहीं
मैं हूं दिल का अमीर भाई गरीब नहीं
कोई भी लकीर नहीं ऐसी जो
कह दें तूझे....तेरी तकदीर नहीं
युवक का वीडियो वायरल होने के बाद प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक्स हैंडल पर लिखा है-
क्या बात है! @vishnudsai जी
आपका ”सुशासन” तो गाड़ियों में नोट बनकर छलक रहा है.
पहचाना इन्हें जो नोट की गड्डियों के साथ मूछों में ताव दे रहे हैं?
लीजिए, आसान कर देता हूं, ये भानुप्रतापपुर भाजपा युवा मोर्चा के मंडल अध्यक्ष आकाश सोलंकी हैं.
सुना है बेरोजगार है.सामान्य परिवार से आते हैं.
अब ये बताइए कि सुशासन में इसकी जांच होगी या वाशिंग मशीन वाला फार्मूला लगेगा ?
इधर इंडियन नेशनल कांग्रेस ने भी एक्स हैंडल पर गंभीर बातें उठाई है-
मंडल अध्यक्ष के पास इतने बंडल कैसे?
भानुप्रतापपुर युवा मोर्चा का मंडल अध्यक्ष आकाश सोलंकी जो कि कुछ ही महीने पर बेरोजगार था,वह 70 से 80 लाख रुपए नकद का खुलेआम दिखावा कर रहा है.
छोटे से भाजपा कार्यकर्ता के इस दौलत से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनके बड़े नेता क्या गुल खिला रहे होंगे.
क्या भाजपा सरकार की पुलिस, ईडी, आईटी कोई कार्यवाही करेगी या फिर सिर्फ निर्दोष कांग्रेसियों को ही सताया जाएगा.
इधर आकाश सोलंकी ने अपना मोर्चा को बताया कि जो पैसा कार में दिख रहा है वह उसके परिवार का है. उसके जीजा जी ने बोर करने वाली गाड़ी बेची थीं. जिस पार्टी को गाड़ी बेची थीं वह उनसे पैसा लाने गया था. आकाश सोलंकी ने कहा कि वह हर तरह की जांच के लिए तैयार है. नादानी में वीडियो बना दिया था. उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था.
नोटों के बंडलों के साथ आकाश सोलंकी का वीडियो वायरल हो जाने के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा है कि वीडियो को वेरीफाई कर रहे हैं. आजकल फेंक वीडियो भी बहुत चल रहा है. कुछ लोग सरकार और हमारे लोगों को बदनाम करने की साजिश कर रहे हैं.
अब कुछ सवाल
1-क्या वाकई आकाश के जीजा जी ने गाड़ी बेची है? यदि हां तो लगभग 20 लाख रुपए नकद ( आकाश सोलंकी के बताए अनुसार ) भुगतान देने वाली पार्टी ने पूरा भुगतान नकद ही किया है?
2- जिस पार्टी ने गाड़ी खरीदी है क्या उसने पूरा भुगतान एक नम्बर के पैसों के जरिए किया है?
3-क्या छत्तीसगढ़ में तैनात ईडी और आयकर विभाग ने अब तक कोई संज्ञान लिया है?
4- क्या पुलिस महकमे को किसी शिकायत का इंतजार है. क्या पुलिस महकमा यह जानने की कवायद करेगा कि आखिरकार धुर माओवाद प्रभावित इलाके की एक कार में लाखों रुपए उसके प्रदर्शन की हकीकत क्या है?
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आदिवासी नेता भगत ने कहा- भाजपा मुझे गोली मरवा दें
रायपुर.छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के वरिष्ठ और प्रमुख आदिवासी नेता अमरजीत भगत भी हाल के दिनों में आयकर विभाग की छापामार कार्रवाई का शिकार हुए हैं. सोमवार को मीडिया से चर्चा के दौरान भगत ने कहा है कि वे कांग्रेस में है और आदिवासी समुदाय से आते हैं इसलिए उन्हें मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया.भगत ने कहा कि देश की राष्ट्रपति आदिवासी हैं और छत्तीसगढ़ में सीएम भी आदिवासी है बावजूद इसके एक आदिवासी नेता पर अत्याचार हो रहा है मगर दोनों देख रहे हैं.भगत ने कहा कि आदिवासी ईमानदार होता है कभी गलत काम नहीं करता.अगर आदिवासी होना अपराध है और भाजपा को आदिवासी वर्ग के नेता से इतनी ही चिढ़ है तो मुझे गोली मरवा दें.
भगत ने कहा कि झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर इतना अधिक दबाव डाला गया कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. उन्हें जेल में डाल दिया गया. जिस दिन हेमंत सोरेन से इस्तीफा लिया जा रहा था उसी रोज मेरे घर भी छापामार कार्रवाई की गई. यह महज संयोग नहीं है बल्कि आदिवासी नेतृत्व को बदनाम करने की गंभीर साजिश है. भाजपा नहीं चाहती है कि वंचित वर्ग के लोग नेतृत्व करें इसलिए हर जगह और हर राज्य में गैर भाजपाई नेताओं को साजिश के तहत फंसाया जा रहा है.
भगत ने कहा कि भाजपा केंद्र सरकार के माध्यम से केंद्रीय एजेंसियों पर दबाव डालकर विपक्षी दलों के नेताओं को जान-बुझकर परेशान कर रही है. विपक्ष के नेताओं को राजनीतिक तौर पर परेशान और बदनाम करना भाजपा का खास शगल बन गया है. यह किसी से छिपा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में चुनाव के पहले कैसे मुख्यमंत्री के करीबी लोगों के यहां केंद्रीय एजेंसियों ने तांडव किया था. मुझे राहुल गांधी की यात्रा का संयोजक बनाया गया था. भाजपा नहीं चाहती कि राहुल गांधी की यात्रा सही ढंग से हो पाए इसलिए केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल किया गया. इधर लोकसभा का चुनाव सामने है. इस वजह से भी छत्तीसगढ़ सहित देश के अनेक राज्यों के विपक्षी दलों के नेताओं को निशाने पर लिया जा रहा. भगत ने मीडिया को जानकारी दी कि आईटी की छापामार कार्रवाई के दौरान उनको और उनके परिजनों को मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया.रोजमर्रा के दैनिक कामों को भी नहीं करने दिया गया.आईटी के लोगों ने मेरे निजी सचिव से बेहूदा व्यवहार किया. हमारे घर से कुछ भी अघोषित नहीं मिला. जो मिला वह हमारे रिकार्ड में है जिसे हमने पहले ही घोषित कर रखा था. भगत ने कहा कि सबको पता है कि हमने जन सहयोग से एक मंदिर का निर्माण करवाया है. अब भाजपा को मंदिर निर्माण का भी हिसाब चाहिए. मुझसे पूछा जा रहा है कि मंदिर कैसे बना ?
ग्रीन अर्थ सिटी इन्फ्रावेन्चर्स प्राइवेट लिमिटेड पर रेरा ने लगाया पांच लाख का जुर्माना
जमीन बेचने और मकान निर्माण के गोरखधंधे में जुटे कई बिल्डर निशाने पर
रायपुर. छत्तीसगढ़ में भाजपा की नई सरकार बनने के बाद जमीन बेचने और मकान निर्माण का गोरखधंधा करने वाले कई बिल्डर निशाने पर आ गए हैं.अभी हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण ( रेरा ) ने ग्रीन अर्थ सिटी फेस-2 के प्रमोटर ग्रीनअर्थ इन्फ्रावेन्चर्स प्राइवेट लिमिटेड पर अनियमितताओं और कालोनी के रहवासियों को समुचित सुविधा प्रदान नहीं किए जाने के मामले में संज्ञान लेते हुए पांच लाख का जुर्माना लगाया है. अमलेश्वर की कॉलोनाइजर कंपनी ग्रीन अर्थ इंफ्रावेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड को रेरा ने यह चेतावनी भी दी है कि यदि जुर्माने की राशि दो माह के भीतर जमा नहीं की गई तो कठोर कार्रवाई की जाएगी.
रेरा ने अपने आदेश में साफ-साफ कहा है कि अधिनियम 2016 के प्रावधानों के अनुसार प्रमोटर्स को रियल एस्टेट प्रोजेक्टस में आबंटितियों से प्राप्त राशि का उपयोग रेरा के विनिर्दिष्ट खाते के माध्यम से करना अनिवार्य था, लेकिन ऐसा नहीं कर वित्तीय अनियमितता जारी रखी गई. ग्रीन अर्थ सिटी अमलेश्वर में निवासरत लोगों द्वारा भी लगातार ग्रीन अर्थ इंफ्रावेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड को कॉलोनी में समुचित सुविधाओं के लिए अनुरोध किया जाता रहा है जिस पर भी बिल्डर की तरफ से ध्यान नही दिया गया.
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में जमीन बेचने और मकान निर्माण का कारोबार करने वाले बिल्डरों का गोरखधंधा पिछले कई सालों से बदस्तूर जारी है. बिल्डर पहले तो लोक-लुभावन ब्रोशर के जरिए ग्राहकों को लुभाते हैं और बाद में अपने वादे से मुकर जाते हैं. छत्तीसगढ़ में केवल दो-चार बिल्डरों को छोड़ दें तो ज्यादातर केवल अवैध ढंग से पैसा कमाने में ही जुटे हुए हैं. छत्तीसगढ़ में कई आवासीय कालोनियां ऐसी हैं जहां ढंग से सड़क, पानी, बिजली, बाग-बगीचे, कल्ब हाउस सहित अन्य आवश्यक सुविधाएं मुहैय्या नहीं हैं.
इन इलाकों में मकान का निर्माण.... हो जाइए सावधान
छत्तीसगढ़ में हाल-फिलहाल कई बिल्डर विधानसभा और उसके आसपास सस्ती जमीन के चलते प्लाट बेचने और मकान निर्माण के काम में जबरदस्त ढंग से सक्रिय है. विधानसभा के आसपास का पूरा इलाका नरदहा गांव के पास स्थित ग्राम संकरी में कचरा डम्प करने की वजह से वैसे ही बरबाद और बदनाम हो चुका है उस पर बिल्डरों की मनमानी देखने को मिल रही है. यहां यह बताना भी आवश्यक है कि नरदहा के पास स्थित ग्राम सकरी में रायपुर शहर का सारा कचरा डंप होता है. कचरे की बदबू से सकरी, जोरा, पिरदा, लोहरा भाठा,आमासिवनी, बाराडेरा, तुलसी, पचेड़ा, कंचना और सड्डू के रहवासी बुरी तरह से परेशान है. इन इलाकों में पहुंचने वाली हवा में इतने विषैले कीटाणु मौजूद रहते हैं कि यहां रहने वाले लोग चर्म रोग और दमा के शिकार होते जा रहे हैं. कई बार तो हवा इतनी ज्यादा विषाक्त हो जाती है कि भोपाल गैस कांड की याद ताजा हो जाती है और दम घुटने लगता है. ( यदि इस खबर को पढ़ने वाला कोई एक पाठक भी इन इलाकों में सक्रिय बिल्डरों से प्लाट खरीदकर मकान बनवाने का इच्छुक है तो उसे सचेत हो जाना चाहिए. यहां जमीन खरीदकर मकान निर्माण करना खुद के साथ-साथ परिवार को भी मौत के कुएं में धकेलने जैसा है. )
अभी हाल के दिनों में एक बिल्डर ने ग्राम नरदहा-सकरी के पास स्थित एक सोसायटी की बिजली काटकर पानी की सप्लाई बंद कर दी है. रहवासी ठंड के दिनों में टैंकरों से पानी मंगवा रहे हैं. सोसायटी में अंधेरा होने की वजह से जहरीले सांप और बिच्छू भी निकल रहे हैं जिससे अप्रिय स्थिति कायम होने की संभावना बनी हुई है. बिल्डर की मनमानी से त्रस्त रहवासियों ने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मुलाकात कर गुहार लगाने का विचार किया है.