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झीरम की घटना के बाद मुकेश चंद्रकार की हत्या से छत्तीसगढ़ के दामन पर लगा बदनामी का दाग
बीजापुर के पुलिस कप्तान जितेन्द्र यादव और थानेदार दुर्गेश शर्मा को हटाने की मांग
रायपुर. 25 मई 2013 को प्रदेश के नक्सल प्रभावित इलाके झीरम में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं की मौत के बाद पत्रकार मुकेश चंद्रकार की हत्या ने देशभर के लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के अलावा आम नागरिक को हिलाकर रख दिया है. हत्यारों ने जिस नृशंस तरीके से मुकेश चंद्रकार को मौत के घाट उतारा है उसके बाद हर कोई यह कहने को विवश हुआ है कि कहीं छत्तीसगढ़ यूपी और बिहार के रास्ते पर तो नहीं चला जाएगा ? इस बीच बीजापुर के पत्रकारों ने पुलिस कप्तान जितेंद्र यादव और थानेदार दुर्गेश शर्मा की कार्यप्रणाली को लेकर गहरी नाराजगी जताते हुए उन्हें जिले से हटाने की मांग की है.
पत्रकारों का कहना है कि पत्रकारों ने अपने साथी को खोजने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था लेकिन पुलिस का रवैय्या बेहद टरकाऊ किस्म का था. अगर पत्रकार नवनिर्मित सैप्टिंक टैंक को तोड़ने पर जोर नहीं देते तो शायद ही कभी मुकेश के बारे में पता चल पाता. बताते हैं कि जब मुकेश के भाई युकेश ने अपने भाई के गुम हो जाने की खबर सोशल मीडिया में पोस्ट की थीं तबसे सारे पत्रकार पतासाजी में जुट गए थे. बीजापुर के ही एक पत्रकार ने ट्रेस करके पुलिस को यह बताया कि मुकेश की अंतिम लोकेशन कहां पर थीं ? पत्रकारों की टीम जब पुलिस को साथ लेकर चट्टानपारा स्थित ठेकेदार सुरेश चंद्रकार के ठिकाने पर पहुंची तब भी थानेदार गुमराह करते रहे. सुरेश ने चट्टानपारा स्थित बस्ती में मजदूरों के रहने के लिए 20 कमरे बनाए हैं. सभी कमरे खाली थे और उन पर ताला लगा हुआ था. पुलिस ने पत्रकारों के सामने कुछ कमरों को खोलकर कहा कि मुकेश वहां मौजूद नहीं है. बीजापुर की एक पत्रकार पुष्पा रोकड़े को वहां किए गए नवनिर्माण पर शक हुआ. उसने आसपास काम करने वाले मजदूरों से पूछा तो उन्होंने बताया कि एक जनवरी की रात तक देर तक काम चला है. पत्रकारों ने थाना प्रभारी दुर्गेश शर्मा से सैप्टिंक टैंक तोड़ने को कहा था तो उन्होंने कई तरह की बहानेबाजी की. पत्रकारों ने तहसीलदार को बुलाया तो तहसीलदार ने भी कहा कि किसी के घर के सैप्टिंक टैक को कानूनन तोड़ना ठीक नहीं होगा. अगर मिथेन गैस निकल गई तो कौन जवाबदार होगा. बहुत ज्यादा दबाव के बाद एक जेसीबी वाला आया तो उसने भी तोड़ने से मना कर दिया और भाग खड़ा हुआ. जैसे-तैसे निर्माण टूटा और मुकेश का शव बरामद हुआ. हैरत की बात यह भी है कि जिस स्थल पर मुकेश की हत्या हुई वहां से थाना बेहद नजदीक है. घटना के बाद पुलिस ने उस जगह को पिकनिक स्थल में बदल दिया है. वहां आने-जाने वालों को ताता लगा हुआ है. पता नहीं वहां सबूत सुरक्षित रह पाएगा या नहीं?
इधर सोशल मीडिया में बीजापुर के पुलिस कप्तान जितेंद्र यादव और पूर्व कलेक्टर अनुराग पांडे की एक तस्वीर जबरदस्त ढंग से वायरल हो रही है. तस्वीर में पूर्व कलेक्टर और वर्तमान पुलिस कप्तान हत्या के आरोपी सुरेश चंद्रकार को पुरस्कृत करते हुए नजर आ रहे हैं. बताया जाता है कि मुकेश का भाई युकेश जब अपने भाई की खोज-खबर के लिए गुहार लगा रहा था तब पुलिस कप्तान उसे यह कहकर हड़काया था कि ज्यादा ऊपर से फोन मत करवाओ... मैं तुम्हारे कहने पर अपना काम नहीं करूंगा. जब पत्रकारों ने सैप्टिंक टैंक को तोड़ने का निवेदन किया तब भी पुलिस कप्तान की भाषा बेहद अभद्र थीं. पुलिस कप्तान का कहना था कि कोई यह नहीं सिखाए कि काम कैसे किया जाता है.
कौन है सुरेश चंद्रकार
बताया जाता है कि सुरेश चंद्रकार पत्रकार मुकेश चंद्रकार का रिश्तेदार ही है. सुरेश का भाई रितेश चंद्राकर पत्रकार मुकेश का दोस्त था लेकिन सुरेश के अवैध कामों में लिप्त रहने की वजह से मुकेश ठेकेदार से बात नहीं करता था. ठेकेदार के बारे में यह बात भी विख्यात है जब छत्तीसगढ़ में सलवा-जुडूम के बहाने आदिवासियों को मौत के घाट उतारने और उन्हें बेघर करने का खौफनाक दौर प्रारंभ हुआ था तब वह एसपीओ बन गया था. एसपीओ बनने के एवज में उसे कुछ हजार ही मिला करते थे. एसपीओ रहने के दौरान ही सुरेश चंद्रकार ने पुलिसवालों से अपने संबंध प्रगाढ़ बना लिए थे और थानों में कंटीले तारों को लगाने का ठेका हासिल कर लिया था. खबर है कि पुलिस महकमा इस काम के लिए सुरेश चंद्रकार को बहुत अधिक भुगतान भी करता था. जब ठेकेदार के पास जरूरत से ज्यादा पैसा हो गया तो उसने अफसरों से सांठगांठ कर सड़क निर्माण का ठेका भी हासिल कर लिया था. यह वहीं ठेकेदार है जिसकी शादी बेहद चर्चा में थीं. सुरेश ने अपनी शादी में दुल्हन को लाने के लिए हेलिकाप्टर का इस्तेमाल किया था. बताया जाता है कि जब उसने शादी का कार्ड बांटा था तो उस कार्ड की चर्चा भी खूब हुई थीं क्योंकि एक कार्ड की कीमत दस हजार रुपए थीं. यह मंहगा कार्ड हर किसी को वितरित नहीं किया गया था. कार्ड में कीमती आभूषण थे जो लोगों को उनकी हैसियत के हिसाब से दिए गए थे. इधर बीजापुर में मुकेश चंद्रकार की हत्या के बाद यह चर्चा भी कायम है कि ठेकेदार ने लोक निर्माण विभाग के एक एसडीओ को इस काम के लिए लगाया था कि वह मुकेश को तीन लाख रुपए देकर मामला सुलटा लें. लेकिन वह खबरों के लिए प्रतिबद्ध पत्रकार ने बिकने से इंकार कर दिया था.
इधर भले ही आरोपी सुरेश चंद्रकार की हैदराबाद से गिरफ्तारी हो गई है लेकिन हत्या के आरोपी सुरेश चंद्रकार के साथ कप्तान साहब के मधुर संबंधों की जबरदस्त चर्चा कायम है. आरोपी के साथ कप्तान साहब की हंसती-मुस्कुराती हुई फोटो देखकर यह लगता तो नहीं है कि मुकेश के हत्यारों को कभी सजा मिल पाएगी और न्याय मिल पाएगा. लग तो यही रहा है कि आरोपी को बचाने की कवायद जारी है.
राजकुमार सोनी
98268 95207