देश
छत्तीसगढ़ में आंख फोड़वा कांड-2 ओड़िशा के जिस व्यक्ति के इलाज में मेडिकल उपकरण का उपयोग किया गया...उसी का इस्तेमाल हुआ मोतियाबिंद के आपरेशन में
बालोद के बाद अब दंतेवाड़ा में आंख फोड़वा कांड-2
ओड़िशा के जिस व्यक्ति के इलाज में मेडिकल उपकरण का उपयोग किया गया...उसी का इस्तेमाल हुआ मोतियाबिंद के आपरेशन में
जिस कक्ष में आपरेशन हुआ वहां था मकड़ियों का जाला
रायपुर. पता नहीं क्यों...लेकिन यह सच है कि छत्तीसगढ़ में जब कभी भी भाजपा की सरकार काबिज होती है तो एक न बार आंखफोड़वा कांड की पुनरावृति अवश्य होती है. छत्तीसगढ़ में 22 सितम्बर 2011 को घटित आंखफोड़वा कांड को लोग अब भी नहीं भूले हैं. छत्तीसगढ़ में इस काली तारीख को बालोद, बागबहरा, राजनांदगांव और कवर्धा के मोतियाबिंद ऑपरेशन कैंप में सरकारी महकमे की लापरवाही की वजह से 48 ग्रामीणों के आंखों की रोशनी चली गई थीं. अभी चंद रोज पहले दंतेवाड़ा में हुए कैंप में भी 15 ग्रामीणों की आंख की रोशनी पूरी तरह से खत्म हो जाने की बात सामने आई है. इधर मामले की जांच के लिए कांग्रेस की तरफ से गठित की गई कमेटी के संयोजक लखेश्वर बघेल ने बताया कि मरीजों की आंखों के ऑपरेशन में गंभीर किस्म की लापरवाही देखने को मिली है. जांच कमेटी के समक्ष यह तथ्य सामने आया कि डाक्टरों ने फंगस से ग्रसित ओड़िशा के एक व्यक्ति के ऑपरेशन के लिए जिस मेडिकल उपकरण का इस्तेमाल किया था... उसी उपकरण का दोबारा इस्तेमाल मोतियाबिंद के आपरेशन के दौरान किया गया. फंगस से लबरेज ओड़िशा के व्यक्ति का इलाज भी उसी कक्ष में किया गया जहां मोतियाबिंद से पीड़ित अन्य मरीज एडमिट किए गए थे. बघेल ने बताया कि चिकित्सकों को यह साफ निर्देश है कि उन्हें प्रत्येक दिन मोतियाबिंद का ऑपरेशन करना है, लेकिन वे थोक भाव में ऑपरेशन करते हैं. जाहिर सी बात है कि जब एक ही दिन में बहुत से लोगों का ऑपरेशन होगा तो लापरवाही होगी.
जांच कमेटी के एक अन्य सदस्य रेखचंद जैन ने बताया कि दंतेवाड़ा जिला अस्पताल के जिस कक्ष को ऑपरेशन थिएटर बनाया गया था वह कमरा कई दिनों से बंद था. कमरे को सैनिटाइज नहीं किया गया.यहां तक मरीजों के बीपी...शुगर की जांच नहीं की गई. अब तो किसी भी ऑपरेशन के दौरान कोविड़ टेस्ट की जांच होती है,लेकिन दंतेवाड़ा के जिला अस्पताल में कोविड़ की किट ही उपलब्ध नहीं है.
केवल नेत्र चिकित्सक और सहायकों को निलंबित करने से क्या होगा ?
छत्तीसगढ़ की सरकार ने भी यह मान लिया है कि ऑपरेशन के दौरान गंभीर किस्म की लापरवाही हुई है. सरकार ने इस मामले में नेत्र सर्जन गीता नेताम, सहायक नेत्र चिकित्सा अधिकारी दीप्ति टोप्पो और स्टाफ नर्स ममता वेदे को निलंबित कर दिया है. लेकिन इस निलंबन के साथ यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या केवल चिकित्सकों और मेडिकल स्टाफ का निलंबन पर्याप्त है. नियमानुसार किसी भी बड़े नेत्र शिविर में ऑपरेशन के पूर्व जिले के कलेक्टर, सिविल सर्जन और मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी को जांच-पड़ताल और निरीक्षण करना अनिवार्य होता है,लेकिन यहां किसी भी जिम्मेदार ने ऐसा नहीं किया.
स्टेट की नोडल ऑफिसर डॉ निधि अग्रवाल का कहना है कि ऑपरेशन के दौरान आंखों में डालने वाली दवाईयों के कारण इंफेक्शन हुआ है या किसी और कारणों से इसका पता लगाया जा रहा है. हालांकि दंतेवाड़ा में चार माइक्रोबायोलॉजिस्ट होने के बावजूद मोतियाबिंद ऑपरेशन के ओटी में फंगस इंफेक्शन फैल गया यह भी जांच का विषय है. इधर कांग्रेस के चिकित्सा प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डॉ राकेश गुप्ता के नेतृत्व में एक दल ने मरीजों से मुलाकात की है. डॉ गुप्ता का कहना है कि किसी भी तरह की जल्दबाजी में डॉक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ को निलंबित करना गलत है. कई बार दवाइयों में खराबी के चलते भी समस्या उत्पन्न हो जाती है. खबर है कि घटना के बाद से स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से लगातार जानकारी ले रहे हैं. वहीं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी पूरे मामले पर नजर रखे हुए हैं.