सियासत

रमन सिंह पर नहीं लगेगा दांव... तो फिर छत्तीसगढ़ में भाजपा से कौन होगा सीएम का चेहरा ?

रमन सिंह पर नहीं लगेगा दांव... तो फिर छत्तीसगढ़ में भाजपा से कौन होगा सीएम का चेहरा ?

रायपुर. वैसे तो छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की डुगडुगी 2023 में बजेगी, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा अभी से चल पड़ी है कि क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को फिर से आजमाएगा ? पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्र कहते हैं इस बार भाजपा विधानसभा का चुनाव रमन सिंह के चेहरे को सामने रखकर नहीं लड़ने वाली है. पार्टी को सामाजिक-राजनीतिक और जातीय समीकरण में फिट बैठने वाले एक ऐसे स्पार्किंग चेहरे की तलाश है जो कांग्रेस के लोकप्रिय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुकाबला कर सकने में सक्षम हो.

छत्तीसगढ़ में भाजपा की तरफ से वह सर्वव्यापी चेहरा कौन हो सकता है इसे लेकर कई तरह की बात कहीं जा रही है.भाजपा में जो दो-चार-दस  नेता बचे हैं उन सबका गुट है. हर गुट की अलग-अलग बातें हैं. फिलहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं. प्रदेश में इस वर्ग की आबादी भी सबसे ज्यादा है. कहा जाता है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पिछड़े और आदिवासी वर्ग से ही चमत्कारिक व्यक्तित्व की तलाश कर रहा है. पिछड़े वर्ग से सबसे पहला नाम विजय बघेल का लिया जा रहा है. वैसे तो विजय बघेल वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के परिवार से हैं, लेकिन उन्होंने भाजपा में रहकर अपनी अलग राह बनाई है. सूत्रों का कहना है कि पार्टी सांसद विजय बघेल को सीएम के चेहरे के तौर पर प्रस्तुत करने की योजना पर काम कर रही है.

इसी क्रम में दूसरा बड़ा नाम वरिष्ठ नेता रमेश बैस का भी लिया जा रहा है. फिलहाल बैस छत्तीसगढ़ की राजनीति से दूर है, लेकिन कहा जाता है उन्हें जल्द ही छत्तीसगढ़ में सक्रिय होने के लिए निर्देशित किया जा सकता है. कुछ समय पहले तक नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक का नाम भी सुर्खियों में था,लेकिन उन्हें रमन सिंह गुट का माना जाता है इसलिए सीएम चेहरे के लिए उनकी संभावना क्षीण बताई जाती है. पिछड़े वर्ग के एक नेता अजय चंद्राकर अगर पूरे छत्तीसगढ़ का दौरा कर खुद को मंथने के तैयार होते हैं तो उनकी संभावनाओं को भी पंख लग सकते हैं लेकिन उनके आक्रामक स्वभाव और तेवर के चलते उनकी भूमिका सीमित भी रखी जा सकती है.  

संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े सांसद सुनील सोनी का नाम भी अप्रत्याशित ढंग से लिया जा रहा है. इधर कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में आए ओपी चौधरी को भी एक गुट के लोग सीएम का चेहरा मानकर चल रहे हैं. इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि अगर भाजपा ने इस बार नए लोगों को सामने नहीं किया गया तो फिर से करारी हार का सामना करना पड़ सकता है. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व साहू समाज से भी किसी दमदार नेता की तलाश कर रहा है. गौरतलब है कि इस समाज के लोग भी बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ में निवास करते हैं और राजनीति में उनकी दखल को महत्वपूर्ण माना जाता है.

भाजपा की राजनीति को जानने-समझने वाले राजनीतिक धुरंधर मानते हैं कि अगर आदिवासी वर्ग से सीएम चेहरे को प्रोजेक्ट करने की बात आएगी हैं तो सबसे पहला नाम भाजपा के वरिष्ठ नेता रामविचार नेताम का ही रहने वाला है. नेताम मुखर होने के साथ-साथ दिल्ली दरबार में भी अपनी अच्छी-खासी पकड़ रखते हैं. सीएम चेहरे के लिए इसी वर्ग से दूसरा नाम नंदकुमार साय और विष्णुदेव साय का भी लिया जाता है.

फिलहाल छत्तीसगढ़ में भाजपा के कुल जमा 14 विधायक हैं. इन विधायकों में सबसे ज्यादा मुखर और योग्य बृजमोहन अग्रवाल ही हैं. प्रदेश में उनके समर्थकों की संख्या भी अच्छी-खासी हैं. भाजपा में उनकी गिनती संकट मोचक के तौर पर होती है. लेकिन पार्टी के भीतर का जो गुणा-भाग है उसे समझने के बाद यह लगता नहीं है कि उन्हें कभी सीएम के चेहरे के तौर पर प्रस्तुत भी किया जाएगा. बिलासपुर में निवास करने वाले कुछ पत्रकार गाहे-बगाहे अमर अग्रवाल का नाम भी उछालते रहते हैं, लेकिन अमर अग्रवाल के कट्टर समर्थकों की तरफ से कभी यह दावा सामने नहीं आया है कि अमर अग्रवाल किसी पोस्टर में अपनी बड़ी सी फोटू देखने के इच्छुक हैं. कमोबेश यही स्थिति भाजपा नेत्री सरोज पांडे और प्रेमप्रकाश पांडे की है. दोनों राजनीतिज्ञ जिस वर्ग से आते हैं वहां से उनकी संभावना नहीं के बराबर है.

कुछ लोग यह सवाल भी उठाते हैं कि जब 15 सालों तक डाक्टर रमन सिंह मुख्यमंत्री रह सकते हैं तो पार्टी उन्हें दोबारा मौका क्यों नहीं दे सकती ? पार्टी के एक जिम्मेदार सूत्र का कहना है कि वर्ष 2018 में रमन सिंह के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा गया था, तब करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इस पराजय के बाद से ही शीर्ष नेतृत्व को यह अहसास हो गया था कि  रमन सिंह की लोकप्रियता का ग्राफ काफी गिर गया है. भाजपा आलाकमान अब कोई रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है.अगर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनकी क्षमता पर भरोसा करता तो उनके बेटे को राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मौका अवश्य दिया जाता. फिलहाल इस क्षेत्र के सांसद संतोष पांडे हैं. भले ही डाक्टर रमन सिंह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें मार्गदर्शक मंडल में शामिल होने वाली स्थिति में लाकर छोड़ दिया है. पार्टी में रमन सिंह की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें यूपी जैसे महत्वपूर्ण चुनाव में प्रचार के लिए भी आमंत्रित नहीं किया गया है. तमाम तरह की कवायद के बावजूद छत्तीसगढ़ में भाजपा भूपेश बघेल सरकार को घेर सकने वाली स्थिति से दूर हैं. फिलहाल छत्तीसगढ़ में कोई नहीं हैं टक्कर में...कहां लगे हो चक्कर में जैसा स्लोगन गुंजायमान हो रहा है. इस स्लोगन के लोकप्रिय होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि छत्तीसगढ़ की भीतरी तहों में छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की आंधी चल रही है. अब सतना और रीवा की ठकुराई यहां शायद ही चल पाय.

 

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