कला

अखर गया रंगकर्मी उषा गांगुली का यूं ही चले जाना

अखर गया रंगकर्मी उषा गांगुली का यूं ही चले जाना

अख्तर अली आमानाका रायपुर 9826126781

उषा गांगुली नहीं रही ..... कुछ समाचार ऐसे होते हैं जिन पर सहसा विश्वास नहीं होता ध्यान तुरंत इस बात पर जाता है कि कहीं यह फेक न्यूज़ तो नहीं है ? आज सुबह जब विख्यात रंगकर्मी उषा गांगुली के निधन का समाचार मिला तो सम्पूर्ण नाट्य जगत हिल गया. कोई भी इस सच को स्वीकार करने के लिए तैयार नही था. हर कोई इस खबर की सत्यता जानने में इस उम्मीद के साथ व्यस्त हो गया कि अभी उसे कोई बताएगा  कि - नही, उषा जी तो एकदम स्वस्थ है, लेकिन इस दुनियां के रंगमंच में हमारी पसंद को ध्यान में रख कर कथानक नही बुना जाता, कथ्य और शिल्प उस सर्व शक्तिमान के द्वारा ही रचे जाते है ,लेखन और निर्देशन दोनों ईश्वर का होता है.

आज प्रातः उषा की किरणों के साथ रंगमंच की यह उषा निशा हो गई . कोलकाता के लिए ही नही बल्कि पूरे देश के रंगमंच में बहुत से दा के बीच यह दी अपनी नाट्य प्रस्तुतियों से लगातार रंगमंच को समृद्ध कर रही थी. उषा गांगुली आधुनिक रंगमंच की महत्वपूर्ण स्तंभ थी. उषा जी ने साबित किया था कि नाटक लिखने के कारण नही खेलने के कारण स्वीकार किए  जाते हैं. नाटक का शिल्प ही उसके कथ्य को स्थापित करता है.

जिन लोगों ने उषा जी का नाटक "काशीनामा" देखा है वे स्वीकारते हैं कि यह वह नाटय प्रस्तुति थी जिसे देखने के बाद सैकड़ों लोगों ने रंगकर्मी बनना चाहा. काशीनामा सिर्फ एक नाटय प्रस्तुति भर नही थी, यह अपने आप में एक प्रशिक्षण शिविर थी जिसे देख कर नये रंगकर्मियों ने जाना कि स्किप्ट के साथ निर्देशक का ट्रीटमेंट कैसा होना चाहिए. दृश्यों की बुनावट, सजावट कैसी हो, अभिनेता को दृश्य में प्रवेश कैसा कराया जाए. प्रकाश के बिम्ब और संगीत के ज़रिए प्रस्तुति को किस तरह उंचाई प्रदान की जा सकती है इन सब का बहुत अच्छा उदाहरण थी उषा गांगुली की नाटय प्रस्तुति " काशीनामा "

रूदाली एक अन्य ऐसी नाट्य प्रस्तुति साबित हुई जिसने अभिनय के नये आयाम पेश किए. अभिनय मे शरीर के इस्तेमाल का क्या महत्व होता है , संवाद की अदायगी में स्वर का कैसा उतार चढ़ाव हो. घटना के अनुसार वाणी का लहजा कैसे परिवर्तित किया जाए. मंच पर जब वो रोती है तो उनके शरीर का हर अंग रोता और  जब वह गरजती तो उनका अंग अंग गरजता . जब उषा जी मंच पर होती तो यह साबित कर देती थी कि अभिनय के कार्य में बुद्धि मालिक और शरीर  नौकर होता है.  

एक और नाटक जिसे हिंदी रंगमंच में पिछले दो तीन दशकों  से बहुत सम्मान मिल रहा है वह है " कोर्ट मार्शल " , उषा जी के निर्देशन में जब यह नाटक खेला  गया तो  फिर इस नाटक को खेलने की होड़ मच गई थी.  हर रंगकर्मी की ख़्वाहिश हो गई थी कि वह कोर्ट मार्शल का हिस्सा बने. ऐसे ही एक अन्य नाटक ने उषा जी ने खूब उंचाई दी थी वह था "महाभोज". उषा जी के सम्पूर्ण रंगमंच का अध्ययन किया जाये तो यह बात साफ़ नज़र आती है कि उन्होंने प्रसिद्ध नाटकों का मंचन ही नहीं किया बल्कि उषा जी के नाटक करने की वजह से कई नाटक प्रसिद्ध हुए.

उषा गांगुली के नाटकों की चर्चा में सिर्फ उसके कलात्मक पक्ष की ही बात करेगे तो बात अधूरी रह जायेगी. जब हम उनके स्किप्ट चयन पर ध्यान देते हैं तो पाते हैं कि उनका विचारात्मक पक्ष भी काफी महत्वपूर्ण है. उनके लिए रंगकर्म मात्र कला का प्रदर्शन नही था बल्कि नाटकों के माध्यम से वे सामाजिक ज़िम्मेदारियों  का निर्वाह भी करती थीं.

 

 

 

 

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