अंदरखाने की बात

विजय बघेल का राजनीतिक भविष्य खतरे में ?

अभी हाल के दिनों में जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री जोगी की मेहरबानी से डॉ. रमन सिंह तीन बार सत्ता पर काबिज रहे तो जोगी कांग्रेस और भाजपा में थोड़ी हलचल नजर आई, लेकिन कांग्रेसियों को जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ. कांग्रेसी हमेशा से यह मानते रहे हैं कि अजीत जोगी और रमन सिंह अच्छे दोस्त थे और ऐन-केन-प्रकारेण एक-दूसरे की मदद ही किया करते थे.

इधर जबसे भाजपा ने छत्तीसगढ़ में 21 सीटों पर टिकटों का ऐलान किया है तबसे नारंगी संपादक और संवाददाता इस प्रचार में जुट गए हैं कि विजय बघेल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कड़ी टक्कर देने वाले हैं. जबकि राजनीति को सही ढंग से जानने-समझने वाले प्रेक्षक मानते हैं कि चाचा ( भूपेश बघेल ) के खिलाफ भतीजे ( विजय बघेल ) को चुनाव समर में उतारकर भाजपा ने एक तरह से विजय बघेल के राजनीतिक सफर को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म करने का ही काम किया है.

जिस भूपेश बघेल की अगुवाई में कांग्रेस पूरे प्रदेश का चुनाव लड़ने जा रही है उसे हारने के लिए भाजपा ने जिस भतीजे का इस्तेमाल किया है उसका ट्रैक थोड़ा गड़बड़ है. सब जानते हैं कि वर्ष 2003 में विजय बघेल ने पहली बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ा था और अपने चाचा से ही शिकस्त खाई थीं. इस चुनाव में पराजित होने के बाद विजय बघेल ने भाजपा का दामन थामा और 2008 में जीत हासिल की. यह वह समय था जब कांग्रेसजन यह जानने लगे थे कि उनके बीच ही कोई ऐसा शख्स मौजूद है जो लगातार भाजपा की मदद कर रहा है. ( इस शख्स की महान करतूतों का पता लोगों को तब चला जब अंतागढ़ के उपचुनाव में एक टेप वायरल हुआ. ) बताते है कि वर्ष 2008 के चुनाव में पाटन विधानसभा में एक घटना घटी थीं. यहां एक कार्यक्रम के दौरान छत्तीसगढ़ के एक महान संत-महात्मा की तस्वीर को मंच से फेंक दिया गया था. जानकारों का कहना है कि यह कार्रवाई दो बड़े नेताओं की मिली-भगत का परिणाम थीं. तब पाटन विधानसभा में यह संदेश बड़ी तेजी से फैला कि संत-महात्मा के अपमान के पीछे भूपेश बघेल का हाथ है. हालांकि यह बात पूरी तरह से झूठी थीं, लेकिन रातों-रात गणेश जी दूध पिलाने की कला में माहिर लोग अपने मकसद में कामयाब हो गए. एक वर्ग विशेष का वोट कटा और भूपेश बघेल पराजित हो गए. इस पराजय के बाद भी भूपेश बघेल पाटन क्षेत्र में डटे रहे और फिर 2013 के चुनाव में उन्होंने भतीजे को चुनाव समर में पराजित किया.

2018 विधानसभा चुनाव में विजय बघेल को भाजपा ने टिकट नहीं दी. अब जबकि वे एक बार फिर भूपेश बघेल से मुकाबले के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं तब यह कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हाथों से पराजित होने के बाद क्या भाजपा उन्हें दोबारा लोकसभा के चुनावी समर में मौका देगी ? क्या पराजित व्यक्ति पर कोई दांव लगाता है? और अब तो अंतागढ़ टेपकांड का वह नायक भी इस दुनिया में उपस्थित नहीं है तो फिर मदद कौन करेगा?

राजकुमार सोनी

98268 95207

 

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...तो इस अफसर को अब कुछ दिखाई नहीं दे रहा है ?

जो भी अच्छे राजनेता और अफसर होते हैं वे पत्रकारों को दोस्त बनाकर चलते हैं. जो राजनेता और अफसर जीवन के इस कटु सत्य की अवलेहना करते हैं उन्हें एक न एक दिन सिर पीटने वाले परिणाम से गुजरना ही पड़ता है. छत्तीसगढ़ में आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में गिरफ्तार किए गए पुलिस अफसर के बारे में जो कुछ भी छप रहा है उससे तो यह साफ नजर आ रहा है कि अफसर की इज्जत को पाव-भाजी बनाकर पूड़े में लपेट दिया गया है. हो सकता है अफसर ने कभी किसी पत्रकार से पंगा लिया हो ? अब पत्रकार भी अफसर के पीछे लग गया है कि बेटा... बचकर कहां जाओगे ? अफसर की एक-एक गतिविधि पर नजर रखी जा रही है. बहरहाल अफसर को लेकर बड़ी मनोरंजक खबरें छप रही है. थोड़ी बानगी देखिए-

जैसे ही अफसर से एसीबी की टीम पूछताछ करती है वे कहने लगते हैं- मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. फिर कहने लगते हैं- मुझे कंपकपी लग रही है. कभी कहते हैं दस्तावेज मेरा है. कभी कहते हैं- कौन गदहे का बच्चा बोलता है कि दस्तावेज मेरा है. मैं साइन नहीं करूंगा. अच्छा जल्दी बोलो... कहां साइन करना है ?

जो खबर छप रही है उसे पढ़कर लगता है कि अफसर के साथ एसीबी की टीम कौन बनेगा करोड़पति जैसा कोई गेम खेल रही है. अफसर को हां या ना वाली प्रश्नावली लिखकर दी गई है. उसका फार्मेंट इस तरह से बनाया गया है कि अफसर को केवल हां या ना में टिक लगाकर ही जवाब देना है.लेकिन अफसर कौन बनेगा करोड़पति के खेल को भी खेलने के लिए तैयार नहीं है.    ( वैसे हां या ना में उत्तर नहीं दिए जाने के पीछे का एक कारण यह भी हो सकता है कि अफसर उगाही के पैसों से शायद पहले से ही करोड़पति बन चुका है. )

अफसर को लेकर दो दिन पहले यह खबर भी छपी थीं कि वे सुबह एक घंटे और शाम को एक घंटे... इस प्रकार कुल दो घंटे वाकिंग भी करते हैं. मानना पड़ेगा भाई को अफसर को. अरे भाई फिट रहोगे तभी तो हिट रहोगे.

यह सब लिखते हुए एक छोटी सी कहानी याद आ रही है. एक बार एक पत्रकार कुश्ती देखने गया. अखाड़े में मौजूद पहलवान हर किसी को जमीन पर पटक-पटककर मार रहा था. जब सब हार गए तो पहलवान ने ललकारा- और कोई है जो कालू पहलवान से मुकाबला करेगा ? अरे कोई है ? पत्रकार को इस ललकार पर गुस्सा आ गया और वह कालू पहलवान से जा टकराया. पहलवान ने पत्रकार को भी जमकर धोया. कालू से पराजित होकर पत्रकार अपने दफ्तर गया और उसने जो खबर बनाई वह हतप्रभ कर देने वाली थीं. पत्रकार ने हेडिंग लगाई- एक रोचक मुकाबले में सिंगल हड्डी पत्रकार ने कालू पहलवान को याद दिलाई उसकी नानी...खबर छपने के बाद कालू पहलवान पत्रकार को खोजते हुए उसके दफ्तर गया. उसने पत्रकार से पूछा- बेटा...जीता तो मैं था... तूने मुझे हराया कैसे ? तूने तो कालू पहलवान की इज्जत का भाजी-पालक कर दिया. पत्रकार ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया- कालू भाई...वो तुम्हारा अखाड़ा था... ये मेरा अखाड़ा है.

( स्मरण रहे कानून की धाराओं में आप किसी को लपेट तो सकते हो...लेकिन जब वक्त की धारा विपरीत होती है तो कोई सिंगल हड्डी पत्रकार भी आपको लपेट सकता है. )

 

 

 

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खुद को तोपचंद समझने वाले नेताजी का ऑडियो वायरल

छत्तीसगढ़ में इन दिनों एक नेता जी का ऑडियो जबरदस्त ढ़ंग से वायरल हो रहा है. ऑडियो में नेताजी यह कहते हुए सुनाई दे रहे हैं कि उन्होंने रायपुर के दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से कन्हैया अग्रवाल नाम के प्रत्याशी को इसलिए टिकट दिलवाई थीं ताकि भाजपा के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को जिताया जा सकें. ऑडियो में नेताजी यह भी कह रहे हैं कि उनके लिए पैसा कौड़ी कोई मायने नहीं रखता. जब 20 लाख बोलता हूं...20 लाख मिल जाता है. अपनी पहुंच और ताकत का हवाला देते हुए वे आगे कहते हैं कि उनके एक मैसेज से ही काम हो जाता है.इसके लिए उनको किसी भी नेता को माला पहनाने की जरूरत नहीं पड़ती. नेता जी की बात को सुनकर एक सीमेंट कंपनी का विज्ञापन याद आता है. इस विज्ञापन में राजेंद्र गुप्ता अपनी करारी आवाज़ में कहते हैं- इस सीमेंट में जान है. ( नेता जी की बात को सुनकर भी यहीं लगता है उनसे बड़ा तोपचंद कोई दूसरा नहीं है. ) गौरतलब है कि नेताजी की करतूतों को लेकर जगदलपुर की एक एनजीओ संचालिका ने भी मुख्यमंत्री के पास लिखित शिकायत भेजी है. अपनी शिकायत में महिला ने कहा है कि नेताजी के दो गुर्गे उन्हें लगातार प्रताड़ित और ब्लैकमेल कर रहे हैं. खबर है महिला की शिकायत के बाद नेताजी ने एक पत्रकार को भी धमकी-चमकी दी है. पत्रकार ने भी नेताजी की आवाज़ रिकॉर्ड कर ली है. छत्तीसगढ़ कांग्रेस के संगठन से जुड़े बड़े नेताओं को नेताजी पर अंकुश लगाना चाहिए.स्मरण रहे कि चुनाव के समय सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए इसी तरह के टेप-टॉप उपयोग में लाए जाते हैं. अभी से चेत जाना ज्यादा ठीक होगा.
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बंटी-बबली के पुस्तक मेले में संघी लेखकों और विघ्नसंतोषियों का जमावड़ा

रायपुर.छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी इलाके को कालांतर से ही प्रयोगशाला समझा जाता है.जो कोई भी इस इलाके में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता हैं, प्रयोग करना प्रारंभ कर देता है. अफसर आते हैं तो आदिवासियों के देसी मुर्गें को गटककर कड़कनाथ नस्ल को बगीचे में उगाने की सलाह देने लगते हैं. कोई नीलगिरी का पेड़ लगाकर दावा करता है कि बस...अब- तब में पेड़ से शहद टपकने लगेगा और काजू गिरने लगेगा. नीलगिरी के पेड़ से काजू....वाह भाई वाह. मतलब यह कि जिसकी जैसी मर्जी होती हैं वह करते चलता हैं. बहरहाल धुर नक्सलवाद से प्रभावित इस आदिवासी इलाके में बंटी-बबली...अनुदान के जरिए एक भव्य पुस्तक मेला लगाने की तैयारी कर रहे हैं. इस मेले के लिए भारी-भरकम आर्थिक सहयोग देने का मन बना चुके प्रशासन के अफसरों को शायद यह नहीं मालूम होगा कि आयोजनकर्ता बंटी और बबली ने मेले में जिन बड़े-बड़े लेखकों को आमंत्रित किया है उनमें से अधिकांश को पता ही नहीं है उन्हें छत्तीसगढ़ कब आना है और क्यों आना है ? बंटी-बबली ने सूची में देश के कई बड़े लेखकों का नाम शामिल तो कर दिया हैं, लेकिन उन सभी से किसी तरह की कोई स्वीकृति नहीं ली गई है. एक लेखिका जो पिछले कुछ दिनों से अमेरिका में हैं उसका नाम भी आमंत्रितों की सूची में शामिल कर दिया गया है. और तो और सूची में एक दर्जन से ज्यादा ऐसे लेखकों और सृजनकर्मियों के नाम शामिल किए गए हैं जो संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं. कुछ शुद्ध किस्म के कलावादी हैं जिनका झुकाव दक्षिणपंथ की तरफ हैं तो कुछ ऐसे भी लेखकों भी बुलाया गया हैं जो सीधे-सीधे संघ की विचारधारा को पल्लवित और पोषित करने का काम करते हैं. प्रदेश का एक सेवानिवृत्त अफसर जो हमेशा से खाकी निक्कर गैंग को बढ़ावा देता रहा हैं उसने पिछले साल ही बंटी-बबली के गैंग को ज्वाइन किया है. इस अफसर ने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद संविदा पाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, लेकिन सरकार में बैठे कुछ समझदार लोगों की वजह से अफसर के मसूंबों पर पानी फिर गया. यह अफसर पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की बात तो करता है, लेकिन निक्कर विचारधारा से ओतप्रोत पुस्तकों की संस्कृति को. बताते हैं कि यह सेवानिवृत्त संघी अफसर भी बंटी-बबली के साथ आदिवासी इलाके में सक्रिय हैं. बाकी छत्तीसगढ़ सरकार के खिलाफ फेसबुक पर लिखकर खुद को तुर्रमखां समझने वाला नन्हा जासूस बबलू तो जी जान से लगा ही हुआ है. खबर है कि मेले में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने वाले कई बड़े प्रकाशकों ने इंकार कर दिया है. इसके बाद बंटी-बबली ने प्रकाशकों को बुलाने के लिए हैदराबाद का रुख किया है. हैदराबाद से याद आया कि अरसा पहले इसी आदिवासी इलाके में जहां अब पुस्तक मेला होने जा रहा है वहां एक बुक डिपो के मालिक ने पुस्तक मेला आयोजित किया था. जब पुस्तक मेले में हैदराबाद से प्रकाशित नक्सली साहित्य की बिक्री होने लगी तो जमकर हंगामा मचा. हो-हंगामे के बाद आयोजनकर्ता को थाने में बिठा दिया गया था.जानकारों का मानना है कि विघ्नसंतोषियों और संघियों के जमावड़े से इस पुस्तक मेले में भी बवाल कटना तय है. राज्य अभी कालीचरण के तमाशे को नहीं भूल पाया है.जो बवाल होगा उसकी जवाबदारी किसकी होगी ? किस अफसर पर गाज गिरेगी...गिरेगी भी या नहीं ? फिलहाल यह साफ नहीं है. सब कुछ समय के गर्भ में हैं.
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बंटी...बबली और पुस्तक मेला

हर फील्ड में बंटी और बबली होते हैं. छत्तीसगढ़ में भी एजुकेशन के फील्ड में कार्यरत एक जोड़ी पति-पत्नी को बंटी और बबली कहा जाता है.दरअसल इनका असली नाम तो कुछ और ही हैं... लेकिन देश और राज्य के भुक्तभोगी लेखकों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों के बीच इनकी प्रसिद्धि बंटी-बबली के तौर पर ही बनी हुई हैं. 

अब आप सोच रहे होंगे कि जिस बंटी-बबली का जिक्र यहां हो रहा है क्या ये लोग भी ताजमहल बेचने के खेल में लगे हुए हैं. हालांकि इन लोगों ने अभी तक ताजमहल की तरफ आंख उठाकर नहीं देखा है, लेकिन तय हैं कि जिस रोज़ भी ताजमहल के आसपास कुछ शैक्षणिक गतिविधियां प्रारंभ हो जाएगी उस रोज़ ताजमहल की ईंट से ईंट बिक जाएगी. जैसा कि मैंने आपको बताया है कि इनकी फील्ड एजुकेशन से जुड़ी हुई हैं.

बहरहाल छत्तीसगढ़ में कार्यरत बंटी-बबली की जोड़ी पुस्तक मेले का आयोजन करवाती हैं. गत दो साल से इनके साथ कुछ धुरंधर लोग जुड़े थे, लेकिन जैसे-जैसे लोग-बाग बंटी-बबली के कारनामों से वाकिफ होते गए वैसे-वैसे अलग होते गए.

यदि कोई इनके कारनामों पर अपनी असहमति या आपत्ति दर्ज करता है तो ये लोग आपके दिमाग में दही जमा सकते हैं. बेहद मासूमियत के साथ उनका जवाब होता है- आप लोग पुस्तक संस्कृति का विरोध करते हो.आप लोग नहीं चाहते कि पुस्तकें बिके.आप लोग इस राज्य के लोगों को पढ़ने-लिखने से रोकना चाहते हो. वगैरह-वगैरह.

अरे महोदय और महोदया... मोदी के विचारहीन भक्त और लंपट समुदाय को छोड़ दें तो शायद ही कोई ऐसा होगा जो किताबों से नफरत करता होगा. कोई भी किताबों से नफरत नहीं करता. कम से राज्य का समझदार और पढ़ा-लिखा इंसान तो बिल्कुल भी किताबों नफरत नहीं करता. लोगों की आपत्ति पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने को लेकर नहीं ब्लकि बंटी-बबली के तौर-तरीकों से हैं. 

जो लोग आपसे जुड़े थे उन लोगों ने देखा है कि आप लोग किस तरह से दूर-दराज से आए हुए लेखकों और साहित्यकारों का अपमान करते हैं.

मुझे याद हैं पुस्तक मेले में देश के एक नामचीन पत्रकार की पत्नी जो स्वयं भी बहुत बड़ी लेखिका है वह रायपुर आई थीं. जब वह रायपुर एयरपोर्ट पहुंची तो वहां उन्हें कोई रिसीव करने वाला नहीं था.जैसे-तैसे लेखिका टैक्सी लेकर होटल पहुंची तो होटल वाले ने कह दिया- मैडम...चाय-पानी-भोजन का चार्ज अलग से देना होगा. मैडम ने पुस्तक मेले पहुंच कर आयोजन कमेटी से जुड़े लोगों के सामने अपनी पीड़ा बताई थीं. यह पीड़ा केवल लेखिका की नहीं थीं. बहुत से लेखक, साहित्यकार ऑटो रिक्शा और रिक्शा लेकर इधर-उधर भटकते पाए गए थे.

छत्तीसगढ़ के कुछ साहित्यकार कड़कड़ाती ठंड में मेले के भारी-भरकम मंच ( जिसके सामने दो-चार श्रोता ही होते थे ) वहां पर कविता पढ़ने पहुंचे थे. वहां किसी ने चाय के लिए भी नहीं पूछा. एक  साहित्यकार ने आयोजकों को गरियाते हुए फेसबुक पर पोस्ट लिख मारी थीं कि किस तरह से उनका अपमान हुआ है.

देश के एक बड़े कथाकार उद्घाटन समारोह के दिन पहुंचे थे. जब उन्होंने मंच के सामने दो-चार श्रोताओं और पांच-छह सौ खाली कुर्सियों को देखा तो उनकी आत्मा चीत्कार उठी थीं. उन्होंने भरे मंच से कहा-मैं शीत से भरी हुई खाली कुर्सियों को प्रणाम करता हूं. यह खबर एक स्थानीय अखबार में इसी शीर्षक के साथ प्रकाशित भी हुई थीं.

पिछली बार देश की एक नामचीन लेखिका जो छत्तीसगढ़ में ही निवास करती हैं वह भी गलती से बंटी-बबली से जुड़ गई थीं. उनका अनुभव भी बेहद खराब रहा. एक बैठक में उन्होंने बंटी से यहां तक कह दिया था- तुम्हारी प्रवृत्तियों की वजह से सब लोग कट गए हैं. ज्यादा बात मत करो...नहीं तो झापड़ खा जाओगे. दरअसल हुआ यूं था कि पिछली बार कोरोना काल में जब सही ढंग से किताबों की बिक्री नहीं हुई. प्रकाशकों ने स्टाल का किराया कम करने को कहा तो आयोजक ने प्रकाशकों को बंधक बना लिया.जब तक पाई-पाई का हिसाब नहीं कर लिया गया तब तक किसी को भी छोड़ा नहीं गया. आयोजकों की इस हरकत से नाराज दिल्ली के कुछ प्रकाशकों ने एक लिखित शिकायत मुख्यमंत्री के पास भेजी थीं.

साहित्यिक पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ राज्य एक प्रतिष्ठित पत्रकार भी कुछ समय तक बंटी-बबली से जुड़ा हुआ था, लेकिन जल्द ही उसने बंटी-बबली के व्यवहार से त्रस्त होकर खुद को अलग कर लिया. पिछली बार के पुस्तक मेले को सफल बनाने के लिए इस पत्रकार ने  जी-जान लगा दिया था, लेकिन उसका अनुभव भी बेहद खराब रहा.अगर कोई इस पत्रकार के खराब अनुभव को सुनकर कुछ अच्छा-बुरा समझने की इच्छा रखता है उसे मोबाइल नंबर उपलब्ध करवाया जा सकता है. पिछले साल पुस्तक मेले की एक हैरतअंगेज घटना यह भी थीं कि एक लेखक की पुस्तक का विमोचन करवाने के लिए आयोजक ने एक लाख रुपए हड़प लिए थे. धर्मेंद्र टाइप की टोपी पहनने वाले एक फिल्मी कलाकार को बुलाया गया. कलाकार आया और विमोचन करके चलते बना... लेकिन लेखक को जबरदस्त सदमा लगा और फिर कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई. चंद रोज़ पहले एक अखबार के संपादक के साथ छत्तीसगढ़ के कुछ साहित्यकार अंडमान की यात्रा पर गए थे. इस यात्रा में प्रत्येक सदस्य को टिकट व अन्य व्यवस्थाओं के लिए कुछ राशि का भुगतान करना था. इस यात्रा में जैसे-तैसे बंटी-बबली भी शामिल हो गए.संपादक को सबने अपने हिस्से का भुगतान कर दिया है...केवल बंटी-बबली को छोड़कर. अब संपादक फोन लगा-लगाकर परेशान है. एक बार संपादक बकाया पैसों को हासिल करने लिए बंटी-बबली के घर भी जा चुका है...मगर घर के बाहर ताला लटका मिलता है और कमरे के भीतर से किसी डरावने टाइप के कुत्ते के भौंकने की आवाज़ आती हैं.

देश के किसी भी हिस्से में होने वाला पुस्तक मेला सुधि पाठकों और अच्छे साहित्य में रुचि रखने वाले साहित्यिक जनों के लिए होता है, लेकिन मेले की आड़ में जब सारी सीमाओं से परे जाकर घर भरने वाली धंधेबाजी होने लगती है तो स्थिति विस्फोटक होती जाती है. दूर-दराज के लेखक जब अपने-अपने ठिकानों पर पहुंचकर इधर-उधर की गोष्ठियों में शिरकत करते हैं तो फिर छत्तीसगढ़ के खराब अनुभव को लेकर तरह-तरह की चर्चा करते हैं. पिछली फासिस्टवादी सरकार के समय यह बदनामी स्वाभाविक ढंग से हुआ करती थीं. पाठकों को याद होगा कि भाजपा सरकार के समय जनसंपर्क विभाग ने एक भव्य साहित्यिक मेला करवाया था. लेखकों से दोयम दर्जे के व्यवहार के चलते पूरा आयोजन विवादों में घिर गया था. लेखकों ने सभी स्तरों पर बेढंगे साहित्यिक आयोजन की आलोचना की थीं. देश की अमूमनन हर पत्र- पत्रिका में आयोजन को लेकर लेखकों का गुस्सा देखने  को मिला था. छत्तीसगढ़ में अब फासिस्टवादियों की सरकार नहीं है.अब सरकार में बौद्धिक और समझदार लोगों की टीम मुस्तैदी से काम कर रही है तो सतर्कता के साथ बंटी और बबली जैसी प्रवृति रखने वाले लोगों को चिन्हित करने की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है. बंटी-बबली के साथ संघ की विचारधारा को पल्लवित और पोषित करने वाला एक पूर्व अफसर भी जुड़ा हुआ है. एक नन्हा जासूस बबलू भी जोरदार ढंग से सक्रिय है. ये वहीं बबलू है जो अपने फेसबुक में हर दूसरे दिन छत्तीसगढ़ सरकार के बारे में तथ्यों से परे जाकर अनाप-शनाप पोस्ट करते रहता है.

अभी हाल के दिनों में देश के बहुत से प्रकाशकों ने दिल्ली में आयोजित होने वाले पुस्तक मेले से यह कहकर हाथ खींच लिया है कि आयोजकों ने स्टाल का रेट बढ़ा दिया है. बहुत से लेखकों ने इसलिए भी दिल्ली के पुस्तक मेले में जाना स्थगित कर दिया क्योंकि वहां भी उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होने  लगा था. बहरहाल छत्तीसगढ़ के बंटी और बबली इन दिनों एक आदिवासी इलाके में पुस्तक मेले का आयोजन करने के लिए जुटे हुए हैं. उन्हें उम्मीद है कि शासन और प्रशासन से तगड़ा अनुदान मिल जाएगा. वे अब तक सारे मेले-ठेले अनुदान हासिल करने के लिए ही तो करते आए हैं. सारे खेल के पीछे शासकीय अनुदान ही है. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं रहता कि साहित्यकार सम्मानित होता है या अपमानित. वे अपना काम बनता तो भाड़ में जाय जनता...मुहावरे को चरितार्थ करते हुए बेहद निर्विकार भाव से चलते रहते हैं. राजधानी के अमूमन सारे अच्छे लेखकों की ओर से किनारा कर लिए जाने के बाद बंटी और बबली आदिवासी क्षेत्र में जबरदस्त ढंग से सक्रिय है. खबर है कि पुस्तक मेला करने को लेकर कुछ लेखकों के साथ दो-तीन बैठकें  भी हो चुकी है. अब आदिवासी इलाके के लेखकों को यह तो नहीं मालूम है कि बंटी और बबली किस बला का नाम है ? जब पता चलेगा...सिर पीटेंगे. बंटी-बबली का क्या है, वे तो किसी नए इलाके का रुख कर लेंगे. ऐसा कोई सगा नहीं जिसको बंटी-बबली ने ठगा नहीं....जय हो.

राजकुमार सोनी

3 जनवरी 2022

 

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छत्तीसगढ़ की कंगना रनौत ?

कौन ऐसा है जो कंगना को नहीं जानता ? जो कोई भी समझदार शख्स कंगना को जान लेता हैं... फिर वह पतली गली से बचकर निकलना चाहता है. ऐसा भी नहीं है कि लोग कंगना को जवाब नहीं दे सकते.उसे हिंदी में समझा नहीं सकते...मगर ज्यादातर लोग स्त्री शक्ति का सम्मान करते हैं. अगर कंगना ने पलटकर थूक दिया... या हाथ चला दिया तब ? तब तो इज्जत का भाजी-पालक हो जाएगा ?

बहरहाल छत्तीसगढ़ में भी दो-तीन के महिलाओं के भीतर कंगना की आत्मा का प्रवेश हो चुका है. लोग बताते हैं कि एक कंगना बिलासपुर में रहती हैं और दूसरी रायपुर में. दोनों कंगना राजनीतिक दलों से जुड़ी हुई हैं. एक कंगना की पार्टी ए हैं तो दूसरी बी पार्टी से जुड़ी हुई है. तो एबी पार्टी की दोनों कंगना खूब जोर-जोर से चिल्लाती है. तू-तड़ाक करती हैं. कल एक वकील साहब बता रहे थे कि कंगना ने कोर्ट परिसर में उसकी इज्जत का फालूदा बनाने की भरपूर कोशिश की...लेकिन वे खामोश रहकर सब कुछ सुनते और सहते रहे. काली जुबान रखने वाले चरण ने गांधी जी को लेकर जो अपशब्द कहे थे उसके बाद तो उसे सज़ा मिलनी ही थीं... लेकिन कोर्ट परिसर में लोग-बाग कंगना की हरकत देखकर हैरान रह गए.जमकर तू-तड़ाक चली.वकील साहब बेहद दुःखी हो गए थे.उनका कहना था-जिन लोगों के साथ उन्हें काम करते हुए 30 साल हो गए... वे सभी लोग लामबंद होकर ऐसा चीख रहे थे जैसा कि मैंने कोई अपराध कर दिया हो ? पता नहीं यह नफरत देश को कहां लेकर जाने वाली हैं ?

जब काली जुबान रखने वाले चरण को लेकर कोर्ट में हलचल थीं तब वहां लोग-बाग दिल को दहला देने वाली कंगना की मौजूदगी को देखकर घबरा गए थे. थोड़ी देर के लिए ऐसा लग रहा था कि कंगना की गाली सुनकर ही दो-चार लोगों को हार्ट-अटैक आ जाएगा. शुक्र हैं ऐसा कुछ नहीं हुआ.पुलिस प्रशासन ने सब कुछ संभाल लिया. बहरहाल छत्तीसगढ़ की दोनों कंगना  को लेकर जबरदस्त चर्चा कायम है. ( इन्हें पदमश्री तो नहीं मिलेगी... क्योंकि इनके आका खुद नहीं चाहते हैं कि पद्मश्री दिलवाई जाय. ) लेकिन कंगनाओं के पीछे एक तमगा जरूर जोड़ा जा रहा है. वह तमगा हैं-शेरनी हैं... शेरनी... ऐसी शेरनी-वैसी शेरनी. पहले इस्तेमाल करो...फिर विश्वास करो...यानी घड़ी डिटरजेंट वाली शेरनी ? लोग-बाग सब समझ रहे हैं. एक 56 इंच वाला शेर पालना ही कितना महंगा पड़ रहा है...ऊपर से शेरनी ? बाप रे बाप ! हे...शेरनियों... आपकी चीख-चिल्लाहट से भरी प्रतिभा का सम्मान हैं...लेकिन इसका इस्तेमाल गरीब और मज़लूमों को न्याय दिलाने के लिए हो तो कितना अच्छा हो ? जोर से बोलो- संतोषी माता की............. जय. सारे बोलो...जय माता दी.

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छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल में पदस्थ अफसर को लेकर महिला ने कहा- मुझे फोन करके अकेले में बुलाते हैं और...

रायपुर. छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल इन दिनों सुर्खियों में हैं. कई तरह की उठापटक और शिकायतों के बीच कोरबा के हसदेव ताप विद्युत संयंत्र में कार्यरत एक महिला सुरक्षाकर्मी ने वहां पदस्थ एक अतिरिक्त मुख्य अभियंता पर गंभीर आरोप जड़ते हुए दर्री थाने में शिकायत दी. हालांकि बाद में समझाइश के बाद महिला ने शिकायत वापस ले ली. दर्री थाने के प्रभारी राजेश जांगडे ने बताया कि महिला ने एक अफसर को लेकर शिकायत दी थी. शिकायत में महिला ने आरोप लगाया था कि अफसर उनके प्रति दुराग्रह रखते हैं और फोन करके बार-बार अकेले में मिलने के लिए बुलाते हैं. जांगड़े ने बताया कि महिला की शिकायत को गंभीरता से लेकर जांच-पड़ताल प्रारंभ की गई थीं. अभियंता को भी पूछताछ के लिए बुलाया गया था, लेकिन अचानक महिला ने अपनी शिकायत वापस ले ली. जांगड़े ने कहा कि अब महिला पर किसी का दबाव था या कोई और कारण... वे कुछ नहीं कह सकते, लेकिन यह साफ है कि अगर महिला अपनी शिकायत पर कायम रहती तो एफआईआर दर्ज हो जाती.

इधर अतिरिक्त मुख्य अभियंता का कहना है कि उन्होंने कभी किसी के साथ खराब व्यवहार नहीं किया. अगर महिला सच्ची होती तो अपने आरोपों पर कायम रहती है. महिला को मालूम था कि वह झूठे आरोप लगा रही है इसलिए उसने शिकायत वापस ले ली. लेकिन लगता है किसी ने महिला को मेरे खिलाफ भड़काया है. अभियंता ने बताया कि वे अपने स्तर पर इसकी जांच-पड़ताल करवा रहे हैं. जो कोई भी इस घिनौने खेल के पीछे होगा जल्द ही उसका चेहरा बेनकाब कर दिया जाएगा. ( खबर में अफसर के नाम का खुलासा इसलिए नहीं किया जा रहा है क्योंकि एफआईआर दर्ज नहीं हुई. महिला ने अपनी शिकायत भी वापस ले ली है. ) 

इधर सूत्रों का कहना है कि अफसर को ताप विद्युत संयंत्र में पदस्थ कार्यपालक निदेशक और राजधानी रायपुर में बैठे कुछ अफसरों का संरक्षण प्राप्त है. बड़े अफसरों के संरक्षण की वजह से उसका हौसला बढ़ता जा रहा है. ताप विद्युत संयंत्र में पदस्थ सूत्रों का कहना है कि अफसर लंबे समय से कोरबा में ही पदस्थ हैं. अपने मातहतों के साथ बदसलूकी करना उसकी फितरत में शामिल हैं.बताया जाता है कि जैसी शिकायत महिला सुरक्षाकर्मी ने की है...वैसी शिकायत तीन-चार बार पहले भी हो चुकी है. हर बार अफसर अपने रसूख के चलते बच निकलता है.

 

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मुंह मांगी कीमत पर होती है ओम, आर्या ट्रेडर्स और टेक्निकल टूल्स सेल्स से बिजली उपकरणों की खरीदी

रायपुर. छत्तीसगढ़ के बिजली घरों में बिजली के उपकरणों की सप्लाई बहुत से सप्लायर यानि अधिकृत विक्रेता करते हैं, लेकिन हाल-फिलहाल कोरबा के ओम ट्रेडर्स, आर्या ट्रेडर्स और टेक्निकल टूल्स सेल्स के सप्लायरों का दबदबा कायम है. छत्तीसगढ़ राज्य की बिजली उत्पादन कंपनी ने अब तक उक्त तीन सप्लायरों से ही सर्वाधिक खरीदी की है. बिजली के उपकरणों की खरीदी खुली निविदा में सस्ते दर पर हो सकती थीं, लेकिन यह काम सिंगल टेण्डर के माध्यम से ही किया जा रहा है. चूंकि अधिकांश खरीदी छत्तीसगढ़ राज्य बिजली उत्पादन कंपनी ने ही की है इसलिए सभी सिंगल टेण्डर की जांच की मांग भी उठ गई है.

...तो इस वजह से बढ़ जाते हैं रेट

कभी एक आदेश को जारी करने में महीनों लग जाते थे, लेकिन ओम, आर्या और टेक्निकल टूल्स से जुड़े लोगों को दस-बारह दिन में ही उपकरणों की सप्लाई का आर्डर दिया जाना अफसरों को उपकृत किए जाने की तरफ इशारा करता है. अंदरखाने की खबर हैं कि उक्त सप्लायरों को अमूमन हर हफ्ते उपकरणों की सप्लाई का आदेश थमा दिया जाता है. बताते हैं कि जो सप्लायर OEM ( मूल उपकरण उत्पादक ) यानि कंपनी का ओरिजनल पार्ट सप्लाई करते हैं वे हर साल उपकरणों की कीमत बढ़ा देते हैं. यदि किसी बिजली घर के किसी हिस्से का कोई पार्ट खराब हो गया तो खराब पार्ट को तब बदला जाता है जब ओरिजनल उपकरण की सप्लाई हो जाती है. बाजार में जो उपकरण दीगर कंपनियों का सस्ते और अच्छे दर पर मिलता है, वही मंहगे रेट पर खरीदा जाता है. कंपनियों के अधिकृत सप्लायर रेट बढ़ोतरी दर्शाकर अपना मुनाफा कमाते हैं. सूत्रों का कहना है कि कई बार पार्ट खराब भी नहीं होता है तब भी उसे खराब कर दिया जाता है या खराब बता दिया जाता है. बहरहाल ओम,आर्या ट्रेडर्स  टेक्निकल टूल्स सेल्स पर बिजली अफसरों की खास मेहरबानी को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं. छत्तीसगढ़ राज्य बिजली उत्पादन कंपनी के पूर्व एमडी राजेश वर्मा के जाने के बाद सभी तरह की खरीदी को लेकर जांच की मांग की जा रही है.

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साहबों का भी साहब है छत्तीसगढ़ के परिवहन विभाग का एक ड्राइव्हर

साला मैं तो साहब बन गया

अरे साहब बनके कैसा तन गया

ये सूट मेरा देखो... ये बूट मेरा देखो

जैसा गोरा कोई लंदन का

मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा हुआ यह गीत फिल्म सगीना में यूसुफ खान साहब यानि दिलीप कुमार पर फिल्माया गया था. वैसे तो पूरी  फिल्म मजदूर आंदोलन के आसपास घूमती थी. यह गीत फिल्म में तब आता है जब युसूफ खान साहब चिढ़ाते हैं कि देखो मैं साहब बन गया हूं... मेरा सूट देखो... मेरा बूट देखो. 

इस गाने का ख्याल इसलिए आया कि क्योंकि छत्तीसगढ़ के परिवहन विभाग में कार्यरत एक ड्राइव्हर युसूफ साहब के अंदाज में ये गीत गाकर हर रोज अफसरों को चिढ़ाता है. विभाग के अफसर ड्राइव्हर की ठाठबाजी से हतप्रभ और परेशान रहते हैं. ड्राइव्हर की ऊपरी कमाई और ठाठबाट देखकर अफसर भी उसे लाट साहब मानने के लिए विवश हो चले हैं. अफसरों की जुबान में कहें तो ड्राइव्हर साहबों का भी बड़ा साहब है.

परिवहन विभाग भारतीय प्रशासनिक और पुलिस सेवा के कई नामचीन और विवादास्पद अफसरों की पदस्थापना होती रही है,लेकिन किसी भी अफसर ने विभाग के इस युसूफ खान को गाड़ी चलाते हुए नहीं देखा. विभाग के अफसर कहते हैं- अरे भाई जिस ड्राइव्हर को घोषित-अघोषित तौर-तरीकों से विभाग चलाने की शक्तियां दे दी गई हो वह भला गाड़ी क्यों चलाएगा ? बताते हैं कि विभाग का युसूफ खान राज्य निर्माण से लेकर अब तक विभाग को चला रहा है. अब आप भी सोच रहे होंगे कि भला एक ड्राइव्हर परिवहन विभाग जैसे बड़े विभाग को कैसे चला सकता है, तो हकीकत यह है कि ड्राइव्हर चला नहीं रहा... बल्कि चरा रहा है. विभाग का युसूफ खान रायपुर फ्लाइंग स्कावड का सर्वेसर्वा है. इसे फ्लाइंग स्कावड का सर्वे-सर्वा किसने बनाया इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है. बस... है तो है.

फ्लाइंग स्कावड में ड्राइव्हर क्या कर रहा है... पूछने पर अफसर खामोश हो जाते हैं. कोई भी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि फ्लाइंग स्कावड़ में ड्राइव्हर का क्या रोल है?  बताते हैं कि यह ड्राइव्हर एक नंबर का वसूली मास्टर है. वसूली के तगड़े अभियान को अंजाम देते रहने की वजह से कोई भी अफसर इस वाहन चालक को डिस्टर्ब नहीं करता. हालांकि परिवहन विभाग में पदस्थ कुछ बेहतर अफसर वसूली प्रथा के खिलाफ है और चाहते भी है कि ड्राइव्हर को ड्राइव्हर का काम करने के लिए बोला जाय. वे कुछ एक्शन लेने की सोच ही रहे होते कि मंत्रालय और पुलिस मुख्यालय में पदस्थ आईएएस और आईपीएस अफसरों का फोन आ जाता है- अरे भाई... युसूफ खान साहब को डिस्टर्ब मत करिए... विभाग की मर्यादा और परम्परा से ज्यादा छेड़छाड़ ठीक नहीं है. एक्शन लेने वाले अफसर हाथ बांधकर खड़े हो जाते हैं.

अब आपको यह जान लेना जरूरी है कि यह ड्राइव्हर एकाएक साहब कैसे बन गया. दरअसल जब छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण हुआ था तब अजीत जोगी के कार्यकाल में इस ड्राइव्हर ने पूरे सिस्टम को समझने में खूब मेहनत की. भाजपा की सरकार आते ही ड्राइव्हर ने मंत्री जी को पकड़ लिया और खुद को श्रेष्ठ इंतजाम अली साबित कर दिखाया. ( अब भी यह ड्राइव्हर पूर्व मंत्री का सबसे करीबी बना हुआ है.) कहा तो यह जाता है कि लोग बेगारी से बचते हैं, लेकिन यह लाट साहब ड्राइव्हर चाहता है कि उसके हिस्से बेगारी आते रहे और वह अफसरों को उपकृत करता रहे. अगर परिवहन विभाग के युसूफ साहब ने किसी अफसर के पीछे एक लाख रुपए खर्च किए तो फिर समझिए बाहर से 20 लाख की वसूली तय है. वह यह काम कैसे करता है यह तकनीक और शोध का विषय है. ( इसका खुलासा फिर कभी ) रायपुर आरटीओ में सालों-साल से कई कर्मचारी और बाबू पदस्थ है. बताते हैं कि उसने हर स्टाफ के लिए इतना कुछ कर रखा है कि हर कोई उसके कब्जे में हैं. कुछ समय पहले परिवहन में पदस्थ एक वरिष्ठ अफसर दुर्ग आरटीओ की कार्यप्रणाली से खफा थे. वे इस अफसर को सस्पेंड करना चाहते थे, लेकिन ऐन वक्त पर ड्राइव्हर साहब कूद गए और आरटीओ महोदय बच निकले. अब बताइए जो ड्राइव्हर बड़े-बड़े अफसरों के काले-पीले कारनामों पर पर्दा डालने में सहायक साबित होता हो तो वह जादूगर आनंद का बाप तो होगा ही ? पलक झपकी और फाइल गायब ?? पलक झपकी और इधर का साइन उधर और उधर का दस्तखत इधर.

कुछ समय पहले एक नए आरटीओ ने रायपुर का चार्ज संभाला. उनकी इच्छा थी कि बरसो से एक ही टेबल पर कार्यरत कर्मचारियों और बाबूओं की टेबल बदली जाय. शाखा में परिवर्तन हुआ तो आंदोलन प्रारंभ हो गया. पता चला कि आंदोलन के पीछे भी ड्राइव्हर साहब थे. बताते हैं कि अब भी यह ड्राइव्हर अपने पंसदीदा इंस्पेक्टरों की जहां चाहे वहां पोस्टिंग करवा लेता है. सूत्र बताते हैं कि यह ड्राइव्हर ( माफ करिएगा साहब ) कभी आफीस नहीं आते... अपने कामकाज को सुचारू रुप से संचालित करने के लिए इन्होंने लालपुर रोड़ स्थित एक महंगी सोसायटी में  वातानुकूलित दफ्तर खोल रखा है. परिवहन मंत्री मोहम्मद अकबर तो शंकर नगर स्थित अपने सरकारी मकान, प्रभात टाकीज और पुराने काफी हाउस के पास के पुराने से दफ्तर में लोगों की समस्याओं का निराकरण करते हैं मगर... परिवहन विभाग के युसूफ साहब बड़े से बड़े सूटकेस धारकों की समस्याओं का निदान लालपुर स्थित दफ्तर में ही करते हैं. इनकी और कोई दूसरी ब्रांच नहीं है. सरकार का जनदर्शन हफ्ते में एक बार ही होता है मगर लालपुर के महंगे दफ्तर में जनदर्शन 24 घंटे चलता है. 

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बाबा की छवि को दागदार करने में लगे अफसर

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री टीएस सिंहदेव की छवि अब तक तो साफ-सुथरी बनी हुई है, लेकिन लगता नहीं है कि उनके विभाग के अफसर बहुत ज्यादा दिनों तक उनकी छवि को साफ- सुथरा रहने देंगे. विभाग में पदस्थ एक वरिष्ठ अफसर का कारनामा इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. बताते हैं कि अफसर ने छोटी-बड़ी हर सड़क पर कुदाल चलाने का निर्देश दे रखा है. सड़कों की जांच के लिए अफसर ने अपना एक स्कावड गठित कर रखा है. स्कावड के सदस्य बगैर किसी सूचना के सड़क की जांच के लिए निकल जाते हैं और फिर जहां मन करता है सड़क का पोस्टमार्टम कर दिया जाता है स्कावड की जांच-पड़ताल से सड़क निर्माण के काम में लगे ठेकेदार बेहद परेशान चल रहे हैं. पिछले चार महीनों में गुणवत्ता जांचने के नाम पर जरूरत से ज्यादा सड़कों का पोस्टमार्टम किया चुका है. विभागीय लोगों का कहना है कि अगर प्रदेश की सड़कें जरूरत से ज्यादा खराब है तो फिर हर सड़क की जांच रिपोर्ट सार्वजनिक होनी चाहिए, लेकिन ऐसा भी नहीं हो रहा है.

अफसर से विभाग में बहुत से लोग प्रताड़ित भी चल रहे हैं. बताते हैं उन्होंने मंत्री और सचिव से पूछे बगैर ही कतिपय अफसरों का तबादला भी कर दिया है. जिस किसी एक्जीक्यूटिव इंजीनियर का तबादला करना होता है उसके आदेश में स्थानांतरण न लिखकर प्रभार लिख दिया जाता है. विभाग में दूर-दराज के बहुत से अधिकारी प्रभार में ही काम कर रहे हैं. अफसर ने ब्रिज के कामकाज को देखने वाले एक अधिकारी को जरूरत से ज्यादा पावर भी दे रखा है. ब्रिज को संभालने वाला अफसर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के काम को भी देख लेता है जबकि इस काम को देखने का जिम्मा किसी दूसरे अफसर का है. जानकारों का कहना है कि अफसर पहले अपने आपको भाजपा के एक सांसद का रिश्तेदार बताया करता था. इन दिनों वह खुद को कांग्रेस के परिवार का सदस्य बताता है. हालांकि विभाग में चारों तरफ कैमरे लगे हैं, लेकिन सूत्रों का कहना है कि चंदा उस जगह पर लिया जा रहा है जहां कैमरा नहीं होता. सूत्रों का कहना है कि अफसर ने चुनाव के समय अपने मातहत अफसरों को एक बड़ा लक्ष्य दिया था. लक्ष्य की ठीक-ठाक पूर्ति नहीं हो पाई तो अब तक उगाही चल रही है. विभाग के मंत्री टीएस सिंहदेव गुरुवार को एक बड़ी बैठक लेने वाले हैं. इस बैठक में सभी जिलों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी सहित अन्य अन्य कई प्रमुख लोग शामिल होंगे. उम्मीद की जानी चाहिए वे उस अफसर को पहचानने में देर नहीं करेंगे. वैसे इस बार बैठक बड़ी होटल में नहीं बल्कि निमोरा के एक प्रशिक्षण केंद्र में हो रही है.

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भाजपा के लिए 70 सभाएं करने वाले कवि का बेटा...प्रोफेसर बनकर मचा रहा है उत्पात

कवि हर जगह पाए जाते हैं मगर बेमतलब की बात पर हास्य कविता लिखने वाले हास्य कवि कुकुरमुत्तों की तरह पाए जाते हैं. कुकुरमुत्ते के बारे यह बात विख्यात है कि वह कहीं भी उग जाता है. खैर... देश के अन्य हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में एक हास्य कवि है. इस हास्य कवि की विशेषता यह है कि जब जोगी की सरकार थी तब वह जोगी की जय-जयकार करता था. जब भाजपा की सरकार बनी तो कहने लगा- जोगी हम सब ला एक दिन  मर.....वाही. ( ज्ञात हो कि मरवाही जोगी का विधानसभा क्षेत्र है. ) 

देश के लिखने-पढ़ने वाले लेखक और कवि इस हास्य कवि से बेहद चिढ़ते हैं. इस चिढ़ की वजह यह नहीं है कि कवि की कविताएं सर्वोत्तम है और साहित्यकार अपनी लकीर बड़ी नहीं कर पा रहे हैं. वजह यह है कि सारी रचनाएं बी और सी ग्रेड की फिल्मों जैसी है कवि की  हरकतें सी ग्रेड फिल्मों के खलनायक जोगेंद्रर जैसी.  

जोगेंद्रर को नहीं पीढ़ी नहीं जानती. ( जोगेंद्रर वह खलनायक है जो बलात्कार के दृश्य में पीले और गंदे दांत निकालकर हंसता है और हिरोइन के कपड़े तार-तार कर देता है. ) कुछ वामपंथी साहित्यकारों का मानना है कि हास्य कवि के भीतर भी एक जोगेंद्रर बैठा हुआ है जो हर रचना और उसकी आत्मा को तार-तार करते रहता है. कविता की इज्जत लूटकर कवि जोंगेद्रर हंसता है... खुद ही हंसता है... और सोचता है जनता ताली बजा रही है. वामपंथी साहित्यकार इस कवि को घटिया कवि कहने से भी नहीं चूकते. मंचों पर कविता पढ़ने के लिए जोड़-तोड़ और नेतागिरी करने वाले अन्य कवियों का कहना है कि इस कवि ने भाजपा के शासनकाल में जमकर मलाई छानी और अब सत्ताधारी दल के करीब जाने की जुगत कर रहा है.

वैसे विधानसभा चुनाव के ठीक पहले इस कवि की चमचई को देखकर यह अहसास हो गया था कि एक न दिन कवि का भाजपा प्रवेश हो जाएगा. भाजपा में प्रवेश कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि इस कवि से पहले भी कुछ कवि और साहित्यकार भाजपा प्रवेश कर चुके थे. दुर्ग में एक स्थूल काया रखने वाले कवि ने तो बकायदा अपने बाल-बच्चों के साथ भाजपा प्रवेश किया था और अपने समाज और मोहल्ले वालों को लंगर भी खिलाया था.इस हास्य कवि ने जब भाजपा प्रवेश किया तब शायद भाजपा वालों को लगा होगा कि जिस कवि को सुनने के लिए भारी भीड़ जुटती है उस कवि की वजह से वोटों की बारिश होगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. कवि ने विधानसभा चुनाव के दौरान लगभग 70 सभाएं की, और जहां-जहां भी सभाएं हुई वहां-वहां भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा.

बहरहाल इस कवि का एक बेटा इन दिनों एक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है. अंदरखाने की बात यह है कि जब विश्वविद्यालय में भर्ती चल रही थी तब अंतिम तिथि में कवि के बेटे ने अपनी नियुक्ति के लिए आवेदन जमा किया था. सूत्र कहते हैं कि एक लड़की जो कवि के बेटे से ज्यादा योग्य थी उसे जगह नहीं मिली और कवि के बेटे का चयन कर लिया गया. अब सुनिए... कवि के सुपुत्र जिस विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं वहां एमबीए में वे एकमात्र प्रोफेसर है. अब उन्हें पढ़ने-पढ़ाने में कोई रुचि नहीं थी तो उन्होंने प्रतिनियुक्ति की राह पकड़ ली. अब साहबजादे प्रशासन अकादमी में कार्यरत है. साहबजादे की यह प्रतिनियुक्ति तब हुई थी जब विश्वविद्यालय में भाजपाइयों को कब्जा था. नई सरकार के गठन के बाद हालात बदले तो खुलासा हुआ कि साहबजादे विश्वविद्यालय परिसर में ही नेतागिरी के काम में भी लगे रहते थे. इधर खबर है कि विश्वविद्यालय के कुल सचिव ने उनकी प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने के लिए प्रशासन अकादमी को लेटर लिख दिया है. अब साहबजादे बच्चों को पढ़ाने लौटते हैं या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन कवि महोदय अपने योग्य पुत्र की बेहतरी के लिए तमाम बड़े-बड़े लोगों से मिल-जुल रहे हैं और फोन करवा  रहे हैं. इधर कवि पुत्र की नियुक्ति और प्रतिनियुक्ति को लेकर जांच की मांग भी उठ खड़ी हुई है, लेकिन कवि महोदय का पुत्र कहता फिर रहा है- जब तक पापा है तब तक कोई कुछ नहीं कर पाएगा. कवि पुत्र का उत्पात जारी है. 

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छत्तीसगढ़ को लूटने वाले दो बदनाम अफसर वारासिवनी पहुंचे और फिर...

सोमवार 13 मई को मिली एक ताजा सूचना के अनुसार छत्तीसगढ़ को लूटने वाले दो बदनाम अफसर मध्यप्रदेश जिले के वारासिवनी  पहुंचे और फिर वहां उनके साथ छत्तीसगढ़ के चंद अफसरों ने मुलाकात की. मुलाकात के लिए इस जगह का चयन इसलिए किया गया क्योंकि बदनाम अफसरों में से एक कभी बालाघाट में पदस्थ था. जानकार सूत्र बताते हैं कि दोनों अफसरों के खाने-पीने और ठहरने का इंतजाम वारासिवनी और बालाघाट की पुलिस ने किया. अब आप सोच रहे होंगे कि इस मुलाकात में क्या खबर है. भई... यह देश सबका है. कोई कही भी... कभी मुलाकात कर सकता है, लेकिन जरा सोचिए कि बदनाम अफसर छत्तीसगढ़ में रहकर क्यों नहीं मिलना चाहते. दरअसल अफसरों को भय है कि छत्तीसगढ़ में वे कभी भी गिरफ्तार किए जा सकते हैं. कोर्ट से जब राहत मिलेगी तब मिलेगी, गिरफ्तारी तो कभी भी हो सकती है.

वैसे छत्तीसगढ़ की पावन धरती ऐसी धरती है वह जब तक आदर देती है तब तक आदर देती है, और जब निष्कासित करती है फिर दोबारा सिर छिपाने की जगह नहीं देती. राजनीतिज्ञों और घमंड से भरे हुए अफसरों के पतन के यहां सैकड़ों उदाहरण देखने को मिलते हैं. यहां यह बताना लाजिमी है कि अब से कुछ महीने पहले तक जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थीं तब दोनों अफसरों की तूती बोलती थी. एक अफसर जो संविदा में था वह जिसे फंसाना चाहता था उसके खिलाफ केस कर देता था और दूसरा उस बंदे को गिरफ्तार कर लेता था. दोनों अफसरों ने एक से बढ़कर एक कांड किए जिसके चलते रमन सिंह की सरकार पन्द्रह सीटों पर आकर सिमट गई. सरकार के बनते ही एक अफसर इस्तीफा देकर भाग खड़ा हुआ जबकि सरकार ने कहा ही नहीं था कि नौकरी छोड़िए. नई सरकार के गठन के साथ ही पोल खुलनी लगी तो भाजपाइयों ने कहा- सरकार बदलापुर की राजनीति चल रही है. अब जाकर भाजपाइयों को भी समझ में आने लगा कि कानून अपना काम कर रहा है और कानून को अपना काम करने देना चाहिए. अब कोई भी भाजपाई यह नहीं कहता कि भ्रष्ट अफसरों पर शिकंजा नहीं कसा जाना चाहिए.

छत्तीसगढ़ की मेहनतकश और गरीब जनता की कमाई को लूटकर दिल्ली जा बसे एक अफसर पर भूपेश सरकार ने एक के बाद कई केस लाद दिए हैं. एक अभी बचा हुआ है... लेकिन देर-सबेर उसकी गर्दन भी नापी जाएगी यह तय है. करोड़ों रुपए की प्रापर्टी और माल-मत्ता होने के बावजूद दोनों अफसर इस बात से भयभीत है कि कही छत्तीसगढ़ पहुंचते ही सरकार गिरफ्तार न कर लें. उनका भय स्वाभाविक भी है, क्योंकि दोनों अफसरों ने संत आशाराम और राम-रहीम का हश्र देखा है. देश के इन अतुलनीय संतों के पास अरबों-खरबों की प्रापर्टी है. आज भी दोनों के शिष्य भूखे -प्यासे लोगों के लिए  भंडारे का आयोजन करते हैं बावजूद इसके लोगों की दुआएं उन्हें जेल से रिहा नहीं करवा पा रही है. छत्तीसगढ़ के ये दोनों अफसर इतने ज्यादा कुकर्म में शामिल रहे हैं कि  उनका जेल जाना बेहद अनिवार्य माना जा रहा है. आम छत्तीसगढ़ियों की भावना भी यही है कि बघेल सरकार दोनों को जेल भेजें. अगर भूपेश सरकार दोनों को जेल पहुंचाने में कामयाब हो जाती है तो निश्चित रुप से जनता के बीच सरकार की वाह-वाह तय है. वैसे दोनों अफसरों पर सरकार ने इतने बेहतर ढंग से शिकंजा कसा है कि अब उनका बच निकलना मुश्किल ही माना जा रहा है. हालांकि एक अफसर ने छुटभैय्ये पत्रकारों के पास सूचना छोड़ रखी थी कि वह पर्णिकर से जुड़ गया है. केंद्रीय गृहमंत्रालय में फिट हो रहा है. मगर बाद में साफ हुआ कि यह अफवाह जानबूझकर फैलाई गई थीं. बहरहाल प्रदेश की भूपेश सरकार को लेकर पब्लिक का रियेक्शन यही है कि भई... चाहे जो हो... जिसको रमन ने बचाया... उसको भूपेश बघेल ने दमदारी से निपटाया. अंदरखाने की खबर है कि छत्तीसगढ़ के अफसरों से वारासिवनी में मिलने वाले अफसरों ने भूपेश बघेल के बारे में जमकर फीडबैंक लिया है. इस फीडबैंक के एवज में चार अफसरों को यह कहते हुए नोटों की गड्डियां भी थमायी गई कि आधा अभी रख लो... आधा काम होने के बाद. छत्तीसगढ़ के जयचंद अफसरों ने भी यह कहते हुए गड्डियां रख ली कि सर... जरूरत तो पड़ती है और फिर नोट तो छत्तीसगढ़ का ही है.

 

 

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बिजली कंपनियों के चेयरमैन शुक्ला को हटाने के लिए चल रही है साजिश

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के गनियारी में जन्मे शैलेंद्र शुक्ला इन दिनों बिजली कंपनियों के चेयरमैन है, लेकिन इस छत्तीसगढ़िया का चेयरमैन बन जाना भाजपाइयों और उनसे सांठगांठ कर चलने वाले कतिपय अफसरों को बर्दाश्त नहीं हो रहा है. उनके बारे में तरह-तरह की कहानियां प्रचारित की जा रही है. जो लोग राजनीति और प्रशासन में दखल रखते हैं उन्हें दिख रहा है कि कैसे एक छत्तीसगढ़ी मूल के इस अफसर के खिलाफ सोची-समझी मुहिम चल रही है.कभी कहा जा रहा है कि जबसे वे चेयरमैन बने हैं तब से सुबह-शाम बिजली गुल हो रही है तो कभी यह बात प्रचारित की जाती है कि वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर नहीं है. अभी हाल के दिनों में यह खबर भी फैलाई गई है कि चूंकि बिजली वितरण कंपनी का चेयरमैन एक आईएएस है तो बिजली कंपनियों का चेयरमैन भी किसी आईएएस को  ही होना चाहिए. फिलहाल उनको हटाने की साजिश में एक ऐसा अफसर भी शामिल है जिसने पिछले पन्द्रह सालों में छत्तीसगढ़ को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इस अफसर ने अपने काले-पीले कारनामों से अकूत संपत्ति अर्जित कर रखी है. इस अफसर का काला धन देश-विदेश में कई जगहों पर लगा हुआ है. यहां तक न्यूज झूठी खबरें फैलाने वाली वेबसाइटों पर भी. इस शख्स की पूरी कोशिश छत्तीसगढ़ को धान के कटोरे के बजाय भीख के कटोरे में बदलने की थी, लेकिन भला हुआ कि सरकार बदल गई अन्यथा छत्तीसगढ़ियों के खून-पसीने की कमाई का बड़ा हिस्सा दुबई के किसी फ्लैट में लगा होता. खबर है कि इस अफसर का अकूत धन विदेश के बैंकों में जमा है. अब जब भूपेश सरकार ने सख्ती दिखाई है तो मियां जी... दिल्ली में रिमोट कंट्रोल लेकर चैनल बदल रहे हैं.

पाठक सोच रहे होंगे कि जो अफसर छत्तीसगढ़ को लूटकर दिल्ली में जा बसा भला अब उसका छत्तीसगढ़ से क्या लेना-देना.... लेकिन ऐसा नहीं है. अफसर का लेना भी है और देना भी. अब भी अफसर और वर्ष 2005 बैच के उनके चेले-चपाटी आईएएस अफसरों को लग रहा है कि नई सरकार को बदनाम करके ही वे भाजपा सरकार को ला सकते हैं.सख्ती पर सख्ती देखकर वे नई सरकार को फेल करने की कसरत में लगे हुए हैं. यह मामला कुछ इसी तरह का है कि सरकार पुल बनाना चाहती है तो बनाए, लेकिन हम पुल के नीचे बम लगा देंगे. बिजली गुल नहीं हो रही है तो कोई बात नहीं हम ट्रांसफार्मर पर पत्थर फेंक देंगे तो ट्रांसफार्मर खराब हो जाएगा. शैलेंद्र शुक्ला को लेकर पूरा मामला ठीक वैसे ही चल रहा है जैसे चुनाव के दिनों में होता है. यह बताना लाजिमी है कि किसानों की कर्ज माफी के बाद भूपेश सरकार का सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट हर उपभोक्ता का बिजली बिल हाफ करना है. इस प्रोजेक्ट को कामयाबी न मिले इसलिए यह सवाल उठाया जा रहा है कि रहने दीजिए.... पहले बिजली तो दीजिए... फिर बिल हाफ करिए... बत्ती बुझाकर क्या माफ कर रहे हो.

अभी हाल के दिनों में फेणी तूफान की वजह से कुछ जिलों में बिजली की व्यवस्था चरमराई थी, लेकिन उसे समय रहते ठीक कर लिया गया. कुछ दिन पहले बस्तर, दुर्ग, राजनांदगांव और रायपुर में बिजली गायब रही है तो दिल्ली में बैठे अफसर के चमचों से यह प्रचारित करने को कहा कि भले ही बिजली का बिल हाफ मत करिए... कम से कम बिजली तो गुल मत करिए. ऐसा भी नहीं है कि बिजली के क्षेत्र में 37 वर्षों का अनुभव रखने वाले शैलेंद्र शुक्ला इस सारे खेल वाकिफ नहीं है. उन्हें पता है कि कौन सा अफसर कहां जाकर लूज टाक कर रहा है और कौन कलाकारी में लगा हुआ है. सूत्र कहते हैं कि उन्होंने दस्तावेजों के साथ पूरी जानकारी तैयार भी कर रखी है, लेकिन अभी उनकी पहली प्राथमिकता बिजली के मसले पर सरकार के एजेंडे को सही ढंग से लागू करना है. वैसे बिजली कंपनी हमेशा विवादों में घिरी रही है. बिजली विभाग को सबसे ज्यादा नुकसान तब हुआ था जब उसका विघटन हुआ है. उससे ज्यादा नुकसान की स्थिति तब बनी जब बोर्ड कई कंपनियों में तब्दील हो गया है. सबसे ज्यादा खराब स्थिति भाजपा सरकार में ही बनी जब घटिया ट्रांसफार्मरों की बड़े पैमाने पर खरीदी की गई. अब ये सारे घटिया ट्रांसफार्मर ही प्रदेशवासियों को रुला रहे हैं. पिछली सरकार का एक बड़ा कारनामा यह भी था कि जिस मढ़वा प्रोजेक्ट को छह हजार करोड़ रुपए में बनकर तैयार हो जाना था वह प्रोजेक्ट अब तक तैयार नहीं हुआ और उसका बजट 9 हजार करोड़ रुपए हो गया. बहरहाल भेड़िया धसान वाले मुहावरे को चरितार्थ करने वाली स्थिति से घिरे हुए शैलेंद्र शुक्ला कब तक टिके रह पाते हैं यह देखना दिलचस्प होगा. साजिश तो उन्हें बुरी तरह से फंसा देने की भी चल रही है. खबर है कि दिल्ली में बैठे शातिर अफसर ने दिल्ली की ही कुछ प्रोफेशनल लड़कियों को बदनाम करने वाली योजना का हिस्सा भी बनाया है. यह लड़कियां केवल शैलेंद्र शुक्ला को ही नहीं कुछ दूसरे विश्वासपात्र अफसरों को भी निशाना बनाने के लिए  दिल्ली में ट्रेनिंग ले रही है.  

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भूपेश सरकार को बदनाम करने के लिए होटल में बैठक

किसी ने सच ही कहा है कि जिस किसी को भी हराम की कमाई खाने का शौक चढ़ जाता है फिर वह चाहे जैसे भी हो... लूट-खसोट के नए-नए तौर-तरीके ढूंढते रहता है. छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के साथ ही बहुत से अफसर खुश हैं और पूरी मेहनत-लगन और प्रतिबद्धता के साथ अपने काम को अंजाम दे रहे हैं, लेकिन चंद अफसर ऐसे भी है जो इस बात के लिए खफा है कि भूपेश बघेल ने उनकी अवैध कमाई की पाइप लाइन को काट दिया है. ऐसे चंद अफसर पुरानी सरकार के साथ स्वामी भक्ति का परिचय देते हुए एयरपोर्ट मार्ग पर स्थित एक होटल में आए दिन बैठक कर रहे हैं. जाहिर सी बात है कि अफसर होटल में जाएंगे तो भजन-कीर्तन नहीं करेंगे. जब खाने के पहले छककर पीने का उपक्रम चलता है तो फिर बात पर बात निकलती है और दूर तलक जाती है........।

अंदरखाने की खबर यह है कि पिछले दिनों होटल में चंद अफसर केवल इस बात के लिए ही जुटे कि भूपेश सरकार को बदनाम कैसे किया जाय. इस बैठक में मंत्रालय के लोक निर्माण विभाग में लंबे समय से पदस्थ वन विभाग के एक अफसर के अलावा वह शख्स भी शामिल था जिसे लेकर हाल के दिनों में ईओडब्लू ने प्रकरण दर्ज करने की अनुमति मांगी है. खबर हैं कि इस बैठक का नेतृत्व सेवानिवृति के बाद संविदा में पदस्थ एक आईएएस अफसर ने की थी. बताते हैं कि इस बैठक के बाद ही चिप्स का सर्वर डाउन हो गया था. बैठक में सुकमा में पदस्थ रहे अफसर के भी शामिल होने की बात सामने आई है. हालांकि सर्वर डाउन होने के खेल में केवल यहीं एक अफसर नहीं है. इस खेल में लंबे समय से व्यापमं में जमी एक देवी और एक महाराज की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. बैठक में अवैध कमाई पर विराम लग जाने से आहत एक अफसर ने कहा- पुरानी सरकार को हम लोग जैसा चाहे वैसा चलाते थे. कहीं कोई तकलीफ नहीं थीं. अब तो एसआईटी का डर बैठ गया है. पता नहीं कब तक चलेगा ऐसा. बैठक में एक नाम के पीछे राजिम शब्द को चस्पा करके चलने वाले एक अफसर को लेकर भी बात हुई. इस अफसर के बारे में अन्य अफसरों ने कहा कि देखिए... भले ही अफसर शाखा में जाता है, लेकिन क्या जबरदस्त समन्वय है. एक साथ कई विभाग संभाल रहा है. एक अफसर ने कहा- सरकारें तो आती-जाती रहती है. यदि राजनीतिक एप्रोच तगड़ी हो हर कोई ईओडब्लू का नेगी बन सकता है. जानकार बताते हैं कि ईओडब्लू में कोई नेगी नाम का अफसर है जो किसी  पूर्व मंत्री का करीबी है और एक ही जगह पर लंबे समय से पदस्थ है. वैसे प्रशासनिक हल्कों में यह चर्चा है कि पुलिस विभाग के चंद वरिष्ठ अफसर सरकार के साथ डबल गेम खेल रहे हैं. वे सरकार के साथ भी है और निलंबित आईपीएस को गोपनीय सूचनाएं देने के काम-धंधे में भी लगे हुए हैं. ( हालांकि निलंबित आईपीएस के पत्रकार बिरादरी के दो संपादक भी शामिल है. ) खबर है कि  दिल्ली में जा बसे सुपर सीएम अब भी अपनी धौंसपट्टी अफसरों पर झाड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं. वे बार-बार यहीं कहते हैं- भूलो मत कि मैंने तुमको ऊपर उठाया है. मैंने तुमको बनाया है. सुपर सीएम की गैंग में शामिल भारतीय प्रशासनिक सेवा वर्ष 2005 बैच के बहुत से अफसर अब भी छोटी सी छोटी जानकारी सुपर सीएम तक पहुंचा रहे हैं.

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शिक्षामंत्री के निवास पर गोपीचंद जासूस

आदिवासी सीधे और सरल ही होते हैं सो शिक्षामंत्री भी सीधे और सरल हैं. हर कोई उनकी सरलता और सहजता का फायदा उठाना चाहता है. आप कभी शिक्षामंत्री के बंगले जाइए... वहां का नजारा देखकर आपका माथा घूम जाएगा. कोई मंत्री को इस कोने में ले जाकर बात करते मिलेगा तो कोई दूसरे कोने में. हर कोई उनसे बड़ी आसानी से कोन्टागिरी कर लेता है. इधर उनके स्टाफ के कर्मठ लोग इस बात को लेकर परेशान है कि बंगले में जो कुछ भी घटता है उसकी खबर बाहर कैसे लीक हो जाती है. काफी खोजबीन के बाद मंत्री जी के करीबी यह पता लगाने में कामयाब हो गए हैं कि आखिर वह गोपीचंद जासूस कौन है. अंदरखाने की खबर है यह कि शिक्षा विभाग को लेकर विशेष रुचि रखने वाले एक मूर्धन्य ने बंगले में अपना जासूस तैनात करवा दिया है. यहां बताना लाजिमी है कि शिक्षा विभाग में हर दूसरे-तीसरे महीने सैकड़ों तरह के काम जारी होते हैं. कभी प्रश्नपत्र की छपाई का तो कभी टेबल-कुर्सी की सप्लाई का. प्रकाशक और ठेकेदार तो काम हासिल करने के लिए दौड़-भाग करते ही है, लेकिन इधर खबर है कि आनन-फानन दर पर सामानों की सप्लाई में रुचि रखने वाले एक शख्स ने पल-पल की खबरें हासिल करने के लिए बंगले में अपने खास आदमी को फिट कर दिया है. अब जासूस अल-सुबह आ जाता है. मंत्री जी का पैर छूता है और फिर तभी घर वापस जाता है जब सभी फाइलें आलमारी में जाकर सो जाती है. कब... किस वक्त क्या होता है... कौन सी फाइल आगे बढ़ रही है. किस फाइल पर आपत्ति लगी है आदि-आदि यानी पल-पल की खबर संबंधित को पहुंचते रहती है. 

पाठकों को याद होगा कि अभी चंद रोज पहले एक खबर कुछ जगह पर छपी थीं.इस खबर में कहा गया था कि मंत्री के एक अत्यंत करीबी ने सभी जिलों के डीओ को किसी खास व्यक्ति से ही सामानों की खरीदी करने का निर्देश दिया है. बाद में पता चला कि यह खबर भी जशपुर के रोशनलाल नामक एक साइकिल विक्रेता और डीओ के साथ मिलकर जासूस ने ही फैलाई थीं. रोशनलाल भाजपा के शासनकाल में भी सप्लाई का काम करता था, लेकिन इधर जब उसकी दाल गलनी बंद हो गई तब उसने जासूस के साथ एक और एक मीडियाकर्मी का सहारा लेकर यह खबर फैला दी कि सारे जिले के डीओ परेशान है. खबर है कि रोज सुबह-सुबह हाजिरी बजाने वाला जासूस बंगले में आने-जाने वाले प्रत्येक शख्स का अच्छे ढंग से हिसाब-किताब  रखता है. मनीष पारख कौन है. उसे कुल कितने का काम मिला है. अशोक और कुमार साहब ने कितने कार्यकर्ताओं को कितने करोड़ का काम बांटा. किसको किसके कहने पर उपकृत किया. वैभव अग्रवाल को दस जिलों में प्रश्नपत्र की छपाई का काम कैसे मिला. धर्मेंद्र और शैलेश पांडे ने अपने किस प्रिय को बगैर प्रिटिंग मशीन के कैसे काम दिलवाया. कोरबा का पंकज कब बंगले आएगा... आएगा तो क्या लाएगा. जासूस की जासूसी और निष्ठा देखकर लगता है कि मंत्री का विभाग हथियाने के लिए कोई शख्स गहरी साजिश रच रहा है. अब मंत्री जी जितनी जल्दी समझ जाय तो उतना अच्छा है. मंत्री जी को याद रखना होगा कि कमल छाप वालों इसी तरह की जासूरी के चलते कांग्रेस को पन्द्रह साल तक सत्ता से दूर रखा था. कमल से बचकर रहना ही ठीक होगा अन्यथा कमल की परिक्रमा मंत्री जी को भारी पड़ सकती  है. 

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छत्तीसगढ़ के संपादक परेशान, लेकिन पत्रकार खुश

छत्तीसगढ़ के अमूमन सभी ( इक्का-दुक्का को छोड़कर ) अखबारों और चैनलों के संपादक इन दिनों परेशान चल रहे हैं. उनकी परेशानी की वजह यह नहीं है कि काम का बोझ बढ़ गया है. बल्कि वे इसलिए परेशान चल रहे हैं कि अब उन्हें मुख्यमंत्री सचिवालय से किसी चमन-फमन सिंह का फोन नहीं आ रहा है. अब से ठीक दो-ढाई महीने पहले तक स्थिति काफी बुरी थीं. मुख्यमंत्री सचिवालय से हर दूसरे-तीसरे दिन संपादकों ( कई बार तो मालिकों के पास ) खबर को रोक देने... फलांनी खबर को ढिकांनी कर देने... मतलब एंगल बदल देने, अमकां रिपोर्टर को ठिकाने लगा देने के लिए फोन आया करता था. संपादक और मालिक इस बात के लिए आत्ममुग्ध रहते थे कि चलो चमन सिंह ने उन्हें अपने बगीचे का फूल तो माना. वैल्यू बनी रहती थीं तो फोकट फंट में हवाई जहाज की टिकट से लेकर और भी दस तरह के काम वे करवा लेते थे, लेकिन उनकी वैल्यू के चक्कर में रिपोर्टर को बलि चढ़ जाती थीं. अब संपादकों को बलि चढ़ाने का मौका नहीं मिल रहा है. पिछले दो-ढाई महीनों से अखबारों और चैनलों में पिछले पन्द्रह साल से चल रही बलि प्रथा पर विराम लग गया है.

अंदरखाने की खबर यह है कि पिछले दिनों कुछ संपादकों ने एक जगह एकत्र होकर इस बात के लिए विचार-विमर्श किया कि वैल्यू में इजाफा कैसे और किस तरह से किया जाय. पूर्व मुख्यमंत्री भी वैल्यू एडीशन पर काफी जोर दिया करते थे सो एक संपादक ने सुझाव दिया- अब तक मुख्यमंत्री जी संपादकों को आमंत्रित करते थे... क्यों न इस बार सारे संपादक मिलकर  मुख्यमंत्री को लंच पर आमंत्रित करें. एक ने कहा- यह काम अलग-अलग रहकर भी किया जा सकता है. सब अपने-अपने अखबार में आमंत्रित करते हैं. एक ने पकी-पकाई सलाह दी- क्यों ने मुख्यमंत्री को एक दिन का एडिटर बना दिया जाय. जिस रोज वे एडिटर बनेंगे उस रोज सारी खबरें वे तय करेंगे यहां तक हैडिंग भी. सुझाव देने के लिए मशहूर एक संपादक ने अपना दर्द बयां किया- यार... हर रिपोर्टर आंख दिखाता है. कहता है- खबर छापना है तो छापो... नहीं तो भाड़ में जाओ... कोई भी अखबार दशा और दिशा तय नहीं करता है. अब अखबार से ज्यादा सोशल मीडिया हावी है. एक संपादक की पीड़ा थीं- रिपोर्टरों पर पकड़ तब तक रहती है जब तक उनके भीतर नौकरी का डर रहता है. थोड़ा-बहुत भी समझाओ तो रिपोर्टर कहता है- अभी वेज बोर्ड के हिसाब से वेतन नहीं मांगा है. हम किसी खबर पर कार्रवाई करने के बारे में सोचते ही रहते हैं उससे पहले सरकार ही निपटा देती है. साला... खबर का असर लिखने का मौका भी नहीं मिल पा रहा है.

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