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छत्तीसगढ़ः भाजपा के शासनकाल में ही पत्रकारों की हत्या
काम करने वाले पत्रकारों के लिए
अब किसी कब्रिस्तान से कम नहीं है छत्तीसगढ़
जो इस पागलपन में
शामिल नहीं होंगे
मारे जाएंगे
कटघरे में खड़े कर दिए जाएंगे
जो विरोध में बोलेंगे
जो सच-सच बोलेंगे
मारे जाएंगे.
हिंदी के चर्चित कवि राजेश जोशी की कविता का यह अंश सच बोलकर मौत को निमंत्रण देने वाले लोगों का त्रासदीपूर्ण बयान है और पिछले कुछ समय से यह बयान छत्तीसगढ़ के उन पत्रकारों के सीने पर जा चिपका है जो गंदगी पर चूना छिड़कने वालों की पोल खोलने में लगे हुए हैं.
दिल्ली और दूर-दराज इलाकों के जिन लोगों को लगता है कि लिखने-पढ़ने वाले लेखकों और पत्रकारों के लिए छत्तीसगढ़ की भूमि किसी स्वर्ग से कम नहीं है तो वे किसी भ्रम में हैं. छत्तीसगढ़ में जब कभी भी भाजपा की सरकार काबिज हुई है तब-तब अभिव्यक्ति को दफन करने का काम बड़ी शिद्दत से देखने को मिला है.
इस खबर में जो फोटो आप देख रहे हैं दरअसल यह एक नवनिर्मित सैप्टिक टैंक है और हत्यारों ने इसी सैप्टिक टैक में बस्तर के बीजापुर इलाके के पत्रकार मुकेश चंद्राकर को दफन कर दिया था, लेकिन यह कोई पहली घटना नहीं है. मुकेश के पहले भी प्रदेश के कई पत्रकारों को मौत के घाट उतारा जा चुका है.
वर्ष 2010 में जब प्रदेश में डाक्टर रमन सिंह की सरकार थीं तब न्यायधानी बिलासपुर में पत्रकार सुशील पाठक की हत्या कर दी गई थीं. इस घटना के बाद बवाल मचना स्वभाविक था क्योंकि पाठक एक बड़े अखबार दैनिक भास्कर से जुड़े हुए थे. पुलिस ने इस मामले में जमीन का कारोबार करने वाले बादल खान को गिरफ्तार किया था लेकिन पुलिस बादल खान के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं जुटा पाई तो वह बच गया. बाद में यह मामला सीबीआई को सौंपा गया लेकिन आरोपियों की पकड़-धकड़ करने के बजाय सीबीआई के अफसर संदेहियों से ही पैसा हड़पने के चक्कर में उलझे रहे और सस्पेंड भी हुए.
गरियाबंद के छुरा जैसे कस्बे से नई दुनिया को खबरें मुहैया कराने वाले उमेश राजपूत की गिनती भी निर्भीक पत्रकारों में होती थीं. उमेश की हत्या के समय भी सूबे में डाक्टर रमन सिंह की सरकार थीं. पुलिस ने हत्या के आरोप के शिवकुमार वैष्णव नाम के एक पत्रकार को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया था. इस मामले की जांच भी सीबीआई को सौंपी गई थीं लेकिन अब तक कोई परिणाम सामने नहीं आया है.
तेरह फरवरी 2013 को जब बस्तर के तोंगपाल इलाके के वरिष्ठ पत्रकार नेमीचंद जैन को मौत के घाट उतारा गया तब भी प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज थीं. कहा जाता है कि नेमीचंद जैन को किसी खबर के सिलसिले में कतिपय खनिज माफियाओं ने धमकी दी थीं. जैन के परिवारवालों ने भी तब यह आरोप लगाया था कि हत्या के पीछे खनिज के कारोबार से जुड़े लोगों का ही हाथ है, लेकिन पुलिस अंत तक यहीं मानती रही कि जैन को नक्सलियों ने मौत के घाट उतारा था.
बीजापुर के ही एक अन्य पत्रकार सांई रेड्डी को सरकार ने पहले तो माओवादियों का साथ देने के आरोप में जनसुरक्षा कानून लगाकर जेल में डाल दिया था. लेकिन छह दिसम्बर 2013 को जब नक्सलियों सांई रेड्डी को मौत के घाट उतारा तब भी यह सवाल उठा था कि यदि रेड्डी नक्सलियों के मुखबिर थे तो फिर उन्हें नक्सलियों ने क्यों मारा ? सांई रेड्डी की हत्या के दौरान भी भाजपा की सरकार काबिज थीं.बस्तर के बीजापुर इलाके के एक और पत्रकार पूनेम संतोष को भी नक्सलियों के हाथों जान गंवानी पड़ी थीं. हालांकि खुद को सुरक्षित रखने के लिए पूनेम समाजवादी पार्टी का सहारा लेकर चुनावी समर में भी उतरे थे लेकिन...
बस्तर के कोंडागांव-नारायणपुर और सरगुजा के बलराम इलाके में भी कुछ पत्रकार मारे जा चुके हैं लेकिन उनकी मौत की खबर कोई खबर नहीं बन पाई जैसी बननी चाहिए थीं.
प्रदेश में पत्रकारों पर प्रताड़ना और दर्ज किए गए फर्जी मामलों की सूची इतनी ज्यादा लंबी है कि उसके लिए फैक्ट फाइडिंग टीम का गठन करना पड़ सकता है.
मुकेश की हत्या के मामले में पुलिस की भूमिका संदिग्ध
पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के मामले में पिछले दो दिनों से पुलिस खुद ही अपनी पीठ थपथपा रही है लेकिन वास्तविक कुछ और है. बीजापुर के पत्रकारों ने चर्चा के दौरान बताया कि जब मुकेश के भाई युकेश ने अपने भाई के गुम हो जाने की खबर सोशल मीडिया में पोस्ट की थीं तबसे सारे पत्रकार पतासाजी में जुट गए थे. बीजापुर के ही एक पत्रकार ने ट्रेस करके पुलिस को यह बताया कि मुकेश की अंतिम लोकेशन कहां पर थीं ? पत्रकारों की टीम जब पुलिस को साथ लेकर चट्टानपारा स्थित ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के ठिकाने पर पहुंची तब भी पुलिस गुमराह करती रही. सुरेश ने चट्टानपारा स्थित बस्ती में मजदूरों के रहने के लिए 20 कमरे बनाए हैं. सभी कमरे खाली थे और उन पर ताला लगा हुआ था. पुलिस ने पत्रकारों के सामने कुछ कमरों को खोलकर कहा कि मुकेश वहां मौजूद नहीं है. बीजापुर की एक पत्रकार पुष्पा रोकड़े को वहां किए गए नवनिर्माण पर शक हुआ. उसने आसपास काम करने वाले मजदूरों से पूछा तो उन्होंने बताया कि एक जनवरी की रात तक देर तक काम चला है. पत्रकारों ने थाना प्रभारी दुर्गेश शर्मा से सैप्टिंक टैंक तोड़ने को कहा था तो उन्होंने कई तरह की बहानेबाजी की. पत्रकारों ने तहसीलदार को बुलाया तो तहसीलदार ने भी कहा कि किसी के घर के सैप्टिंक टैक को कानूनन तोड़ना ठीक नहीं होगा. अगर मिथेन गैस निकल गई तो कौन जवाबदार होगा. बहुत ज्यादा दबाव के बाद एक जेसीबी वाला आया तो उसने भी तोड़ने से मना कर दिया. जैसे-तैसे निर्माण टूटा और मुकेश का शव बरामद हुआ.
राजकुमार सोनी