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महासमुंद वनमंडल में वन अपराधों में इजाफा... हो रहा है जानवरों का शिकार...धड़ल्ले से काटा जा रहा है जंगल

महासमुंद वनमंडल में वन अपराधों में इजाफा... हो रहा है जानवरों का शिकार...धड़ल्ले से काटा जा रहा है जंगल

वन अपराध के मामले में महासमुंद वनमंडल ने तोड़ा रिकॉर्ड 

रायपुर. वैसे तो छत्तीसगढ़ के सभी वनमंडलों में वन अपराध बढ़ गया है, लेकिन महासमुंद वनमंडल ने अपराध के मामले में रिकॉर्ड तोड़ दिया है. इस इलाके में बतौर वनमंडलाधिकारी पंकज राजपूत 10 दिसम्बर 2020 से अब तक यानी कुल साढ़े चार सालों से पदस्थ है. उनकी लंबी पदस्थापना को लेकर प्रशासनिक गलियारों में यह चर्चा भी होती है कि उन्हें किसी बड़े राजनेता से सरपरस्ती मिली हुई है और सरपरस्ती की वजह से ही कई तरह की गंभीर शिकायतों के बावजूद महासमुंद वनमंडल में काबिज है. नाम न छापने की शर्त पर कुछ वन अफसर यह भी बताते हैं कि जब प्रदेश में भूपेश बघेल की सरकार थीं तब उन्हें शिकायतों के आधार पर ही वन मुख्यालय में पदस्थ किया गया था, लेकिन फिर इधर-उधर की जोड़-तोड़ और दबाव के चलते महासमुंद का प्रभार दे दिया गया. अब खबर यह भी है कि पंकज राजपूत बस्तर जाने के इच्छुक है. जानकार सूत्रों का कहना है कि उन्होंने बस्तर के कांकेर, जगदलपुर या दंतेवाड़ा में से किसी एक जगह पर अपनी पदस्थापना की इच्छा जताई है. बहरहाल महासमुंद वनमंडल में पंकज राजपूत की पदस्थापना के बाद से ही अवैध ढंग से पेड़ों की कटाई और वन्य प्राणियों के शिकार के मामले में लगातार इजाफा देखने को मिल रहा है. अभी हाल के दिनों में बागबहरा वन परिक्षेत्र के खल्लारी वृत कक्ष क्रमांक 182 में एक बायसन और एक तेंदुए की मौत हो गई थी जबकि बुंदेली इलाके के कक्ष क्रमांक 221 में शिकारियों ने पानी में जहर मिलाकर एक चीतल को मौत के घाट उतार दिया है. कुछ समय पहले खपरा खोल में भी जंगली सूअर के शिकार का मामला सामने आया था.

वन्यजीवों के शिकार में इजाफा लेकिन...

अभी हाल के दिनों में एक पत्रकार ने सूचना के अधिकार के तहत वन्यजीवों के शिकार और शिकारियों पर की गई कार्रवाई के संबंध में जानकारी मांगी तो लिखित में यह बताया गया कि साढ़े चार सालों में वन्यप्राणियों के शिकार के कुल 20 प्रकरण दर्ज किए गए हैं. पत्र के जरिए यह सूचना भी दी गई कि वन अभियोजन की प्रक्रिया में अड़चन पैदा हो जाने की वजह से वन अपराध  प्रकरणों की डिटेल नहीं दी जा सकती है. जबकि होना यह चाहिए था कि अवैध ढंग से शिकार करने वालों के नामों को उजागर किया जाता. ग्रामीण इलाकों में शिकारियों की तस्वीरें चस्पा होती तो ग्रामीण भी सचेत होते. वन और वन्यजीव मामलों के जानकार नितिन सिंघवी का कहना है कि वन्यजीवों के शिकार के मामले में महासमुंद वनमंडल का बागबहरा, बारनवापारा, पिथौरा का पूरा इलाका हॉट स्पॉट बना हुआ है. सिंघवी ने बताया कि एक मर्तबा उन्होंने वन विभाग के जिम्मेदार अफसरों को यह बताया भी था कि बारनवापारा इलाके में हर तरह के वन्यजीवों का मांस मिल जाता है,लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया. सिंघवी का कहना है कि जंगलों पानी की कमी की वजह से जब जानवर बाहर निकलते हैं तब शिकारियों को शिकार करने का मौका मिल जाता है. वन विभाग अपने करोड़ों के बजट में इस बात का ध्यान ही नहीं रख पाता है कि वन्यजीव भी भूखे और प्यासे हो सकते हैं. सिंघवी ने माना कि नाकामी के उजागर होने से बचने के लिए वन अफसर वन कटाई और वन्यजीवों के शिकार के बहुत से मामले छिपा भी लेते हैं.

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई

महासमुंद वनमंडल ही एक ऐसा वनमंडल है जहां वनमाफिया सबसे ज्यादा सक्रिय है. इस इलाके के पिथौरा वन परिक्षेत्र के लोहरिन डोंगरी, सांकरा, बुंदेली, जम्हर, किशनपुर, सुखीपाली खपराखोल में अंधाधुध ढंग से पेड़ों की कटाई होती रही है. पिथौरा इलाके में रहने वाले पर्यावरण संरक्षक लोचन कुमार चौहान ने अपना मोर्चा डॉट कॉम को बताया कि कुछ समय पहले गिरना बीट के कक्ष क्रमांक 230 में तीन हेक्टेयर क्षेत्र में करीब एक हजार से अधिक पेड़ काट दिए गए थे. जब शिकायत की गई तो वन विभाग के अफसर पूरे मामले को दबाने में लग गए. खूब हो-हल्ला मचने पर पिथौरा में पदस्थ उपमंडलाधिकारी उदयराम बंसत ने जांच दल का गठन किया तो कटाई के प्रकरण में लिप्त फारेस्ट गार्ड लेखराम ध्रुव ने जमकर बवाल मचाया और जांच टीम को वापस लौटना पड़ा. लोचन चौहान ने मामले की शिकायत सीसीएफ राजू आगसमिनी से भी की थी. उन्होंने मौके पर जांच के लिए उड़नदस्ते को भेजा लेकिन उड़दस्ते के साथ वहीं फारेस्ट गार्ड सक्रिय था पेड़ कटाई के प्रकरण में लिप्त था. लोचन चौहान का आरोप है कि गिरना में एक हजार से ज्यादा पेड़ काट दिए गए थे लेकिन जांच टीम को केवल 70 स्थानों पर ही ठूंठ नजर आए. चौहान ने बताया के अवैध ढंग से पेड़ों की कटाई का सिलसिला अब भी थमा नहीं है. कुछ समय पहले खपराखोल इलाके में बड़ी संख्या में खैर प्रजाति की लकड़ियों को काटा गया था. उन्होंने बताया कि खैर प्रजाति अब विलुप्त होने के कगार पर है. इस प्रजाति की लकड़ी वजनी होने के साथ-साथ बेहद उपयोगी होती है.

बाप रे बाप...

सामान्य तौर पर जब कोई हैरतअंगेज बात होती है तो मुंह से बाप रे बाप जैसा शब्द निकलता ही है. एक पत्रकार ने महासमुंद वन मंडल में पंकज राजपूत की पदस्थापना के बाद से अब तक पेड़ों की कटाई के संबंध में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी तो उसे 91 हजार 408 रुपए जमा करने को कहा गया. यह भी बताया गया कि 10 दिसम्बर 2020 से 28 फरवरी 2025 तक के अभिसंधानित प्रकरणों की जानकारी देने के लिए छोटे साइज के 20 हजार 218 पेज लगेंगे. इसके लिए कुल  40 हजार 436 रुपए जमा करने होंगे जबकि  एवं बड़े साइज के 12 हजार 743 पेज के लिए पचास हजार 972 रुपए जमा करना होगा. यानी इलाके के कटे हुए पेड़ों की जानकारी को हासिल करने के लिए लगभग एक लाख रुपए का भुगतान करना होगा. अब इस सूचना से यह अंदाजा तो लग ही जाता है कि पूरे इलाके में किस धड़ल्ले से पेड़ काटे गए हैं. यदि जानकारी हासिल करने के लिए ही एक लाख रुपए देने हैं तो कम से कम दो लाख पेड़ तो कटे ही होंगे ? वनमंडल में बारबेड वायर, फेसिंग पोल सहित अन्य मदों से खरीदी में अनियमिता का मामला अलग है. इस वनमंडल में एडवांस्ड नैचुरल रिजेनरेशन कामों पर व्यय की गई राशि में अफरा-तफरी के चलते  वन अफसर श्रीमती शालिनी रैना, श्रीमती सतोवीसा समजदार, कौलेंद्र कुमार ने जांच रिपोर्ट भी तैयार की है. खबर है कि इस रिपोर्ट को भी फिलहाल अफसरों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. वन मामलों के जानकारों का कहना है कि यदि सही ढंग से रिपोर्ट प्रस्तुत हो गई तो सुकमा वनमंडल में पदस्थ रहे वनमंडलाधिकारी अशोक पटेल की  की तरह ही पकंज राजपूत पर भी गाज गिर जाएगी.

पूरे मामले में वनमंडलाधिकारी पंकज राजपूत से उनका पक्ष जानने के लिए मोबाइल पर संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने फोन उठाना आवश्यक नहीं समझा. यदि उनका कोई पक्ष मिलता है तो उसे भी प्रकाशित किया जाएगा.

 

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