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जोरदार घमासान के बीच पीयूसीएल का चुनाव संपन्न...जूनस तिर्की बने अध्यक्ष, महासचिव कलादास डहरिया
रायपुर. अब तो यह देख और सोच पाना बहुत मुश्किल हो चला है कि किन संगठनों में द्वंद-अंर्तद्वंद और लोकतंत्र जिंदा है. ज्यादातर वैचारिक संगठनों में मठाधीश काबिज रहते हैं तो उनके वैचारिक पिसलन की वजह से संगठन में टूट-फूट होती रहती है. कई बार टूट-फूट से नया मार्ग प्रशस्त होता है तो कई मर्तबा संगठन का भट्ठा बैठ जाता है. मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे लोक स्वातंत्र्य संगठन ( पीयूसीएल ) ने भी अपने प्रारंभिक दिनों से लेकर अब तक कई तरह के उतार-चढ़ाव देखें है.यह संगठन टूटता और बिखरता रहा है तो नए सिरे से बनता भी रहा है. इसमें कोई दो मत नहीं कि यह देश का एकमात्र ऐसा संगठन है जहां द्वंद-अंर्तद्वंद और लोकतंत्र ( हांफते हुए ही सही ) नजर आता है. विगत दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पीयूसीएल के राज्य सम्मेलन और नई ईकाई के गठन के दौरान जबरदस्त वैचारिक घमासान देखने को मिला. घमासान के बीच यह भी लगा कि कहीं मामला झूमा-झटकी और हाथापाई तक तो नहीं पहुंच जाएगा ?
लेकिन...शोर-शराबे और हो-हंगामें के बीच स्थिति भाजपा-कांग्रेस या आम आदमी पार्टी की बैठकों जैसी नहीं बन पाई. मतलब यह था कि किसी ने किसी के ऊपर कुर्सी नहीं फेंकी और सिर नहीं फोड़ा.
सम्मेलन के दौरान पीयूसीएल की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव और कई प्रबुद्धजनों की मौजूदगी कायम थीं तो मामला संभल गया.
इससे पहले कि इस खबर के पाठक पूरे विवरण से वाकिफ हो... उन्हें यह बताना बेहद आवश्यक है कि इस भयावह और खतरनाक समय में मुठभेड़ के लिए छत्तीसगढ़ की पीयूसीएल ने नए अध्यक्ष और महासचिव के साथ ही नई कार्यकारिणी का चयन कर लिया है. पीयूसीएल छत्तीसगढ़ के नए अध्यक्ष जूनस तिर्की बनाए गए हैं जो आदिवासी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के पास के ही एक गांव भगोरा के रहने वाले हैं. संगठन का महासचिव छत्तीसगढ़ मुक्तिमोर्चा से जुड़े प्रसिद्ध लोक कलाकार कलादास डहरिया को बनाया गया है.पीयूसीएल में उपाध्यक्ष के तीन पदों पर क्रमशः सुधा भारद्वाज,गुरुघासीदास सेवादार संघ के प्रमुख लाखन सुबोध और पूर्व विधायक जनकलाल ठाकुर की नियुक्ति की गई है.
चुनाव के दौरान मौजूद सदस्यों ने इस बात पर भी हैरानी जताई कि देश की प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता सुधा भारद्वाज को सीधे अध्यक्ष पद पर नामित क्यों नहीं किया जा रहा है.संगठन की एक सदस्य ने बताया कि उन्होंने फिलहाल उपाध्यक्ष पद पर काम करने की सहमति प्रदान की है. संयुक्त सचिव पद पर अमित वर्मा, संगठन सचिव दीपक साहू और वीएन प्रसाद राव का चयन किया गया है. कोषाध्यक्ष एपी जोशी बनाए गए हैं. कार्यकारिणी सदस्यों में छत्तीसगढ़ ईकाई के पूर्व अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान, आशीष बेक, हिडमे मरकाम, सुनीता पोट्टाम, सोनसिंह जाली, चोवाराम साहू, बसन्त साहू,रुपदास टंडन, राजीव लकरा, किशोर नारायण, गायत्री सुमन, सरस्वती, ममता कुजूर, गौतम बंद्योपाध्याय, शमां, श्रेया के, आलोक शुक्ला, रचना डहरिया, तुहिन देव, असित सेनगुप्ता, इंदु नेताम,कल्याण पटेल, चंद्रप्रकाश टंडन, दिनेश सतनाम और अखिलेश एडगर को शामिल किया गया है. नेशनल कौंशिल में शालिनी गेरा, सोनी सोरी, रिनचिन, जेकब कुजूर, जय प्रकाश नायर और केशव सोरी को शामिल किया गया है.
ब्राम्हणवाद पर तीखी बहस
पीयूसीएल के दो दिवसीय सम्मेलन में ब्राम्हणवाद को लेकर तीखी बहस देखने को मिली. कुछ सदस्यों का यह मानना था कि अगर वे ऊंची जाति में पैदा हो गए हैं तो यह उनकी गलती नहीं है. व्यक्ति का काम देखा जाना चाहिए. वहीं कुछ का कहना था कि ब्राम्हणवाद का अर्थ केवल ऊंची जाति से नहीं है बल्कि ऊंची जाति वाली श्रेष्ठता बोध से हैं. सामाजिक कार्यकर्ता रिनचिन का कहना था कि पीयूसीएल में जेंडर को लेकर व्यापकता देखने को मिल रही है. जब शोषित वर्ग के लोग कुछ शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो श्रेष्ठ वर्ग के लोगों को ठेस पहुंचती है. जब देश में दलित-आदवासी और स्त्री विमर्श चल रहा है तो ब्राम्हणवाद पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए. यह एक ऐसा मसला है जिसे सबको समझने की आवश्यकता है. मानवाधिकार कार्यकर्ता लाखन सुबोध का कहना था कि जब पीयूसीएल के संविधान में ही यह साफ है कि संगठन से सभी वर्ग और विचारधारा के लोग जुड़ सकते हैं तो फिर भेदभाव कैसे किया जा सकता है? सम्मेलन के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब देश की नामचीन अधिवक्ता रजनी सोरेन भावुक हो गई. उनका कहना था कि उन्होंने और उनकी टीम ने बेहद निष्ठा और ईमानदारी से कार्य किया है...बावजूद इसके उन्हें बदनाम किया गया है. रजनी ने कहा कि कोई कुछ भी कहें लेकिन वह जीवनभर श्रेष्ठता बोध का विरोध जारी रखेंगी. सामाजिक कार्यकर्ता डिग्री चौहान का कहना था कि हमारे बारे में सोची-समझी योजना के तहत यह प्रचारित किया गया कि हम लोगों ने सुधा भारद्वाज का विरोध किया. उनका सम्मान नहीं किया. जबकि यह सच नहीं है. उन्होंने सम्मेलन के दौरान यह भी साफ किया कि कुछ लोग दलित-आदिवासी नेतृत्व को टारगेट करने के खेल में जुटे हुए थे. डिग्री ने कहा कि वे प्रतिरोध स्वरुप किसी भी पद को स्वीकार नहीं करेंगे और आवश्यता होगी तो न्यायालय में भी दस्तक देंगे. सम्मेलन में कुछ सदस्यों ने इस बात पर आपत्ति जताई कि सदस्यता सूची से उनका नाम काट दिया गया है. पीयूसीएल की सदस्य श्रेया ने बताया कि जिन सदस्यों ने रिनीवल के लिए अनुमति नहीं दी थीं केवल उन्हीं सदस्यों का नाम अलग किया गया था.
35 हजार से ज्यादा सामाजिक बहिष्कार के प्रकरण
सम्मेलन में महासचिव आशीष बेक ने प्रतिवेदन पेश किया जिसमें चर्चा की गई. उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने कई तरह के ज्वलंत मुद्दों पर कार्य किया है. एक बड़ा मसला गांवों में होने वाले सामाजिक बहिष्कार का भी था. बेक ने बताया कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2011 से लेकर अब तक 35 हजार से ज्यादा सामाजिक बहिष्कार के प्रकरण देखने को मिले है. कुछ मामले ही सामने आ पाए जबकि कई मामले दब गए. महासचिव ने यह भी बताया कि 2018 के पहले पीयूसीएल में पारदर्शिता का अभाव था...लेकिन अब स्थिति एकदम उलट है. अब पीयूसीएल में लोकतंत्र स्थापित है. उन्होंने बताया कि जब बस्तर के सिलगेर वाले मामले की रिपोर्ट पेश की गई तब केवल एक जगह ब्राम्हणवाद पर सवाल उठाया गया,लेकिन पूरे देश में यह प्रचारित किया गया कि पीयूसीएल ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को ब्राम्हणवादी बोला है.
कैसे लोगों को जोड़ा जाय?
दो दिवसीय सम्मेलन में इस बात को लेकर भी चर्चा हुई कि किस तरह के लोग संगठन से जुड़ सकते हैं.सफाई कर्मचारियों के बीच संघर्षरत जेपी नायर ने कहा कि जोड़े जाने वाले किसी भी व्यक्ति की गतिविधियों को कम से कम एक साल तक देखना-परखना चाहिए. संगठन में देश को बांटने वाले लोगों को बिल्कुल भी नहीं जोड़ा जाना चाहिए. जनकलाल ठाकुर का कहना था कि बस्तर में सैन्यीकरण एक बड़ा मसला है जिस पर गंभीरता से विचार की आवश्यकता है.राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने चुने गए सभी पदाधिकारियों को बधाई दी और कहा कि जब दक्षिणपंथी ताकतें कांग्रेस के लोगों को अर्बन नक्सल बोलने से नहीं चूक रही है तो हमारी स्थिति क्या है आसानी से समझा सकता है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ हमेशा से चुनौतियां रही है और चुनौतियों का मुकाबला करके ही आगे बढ़ा जा सकता है. सम्मेलन की समाप्ति के बाद इस बात को लेकर भी चर्चा होती रही कि संगठन की नई ईकाई के पदों पर महिलाओं को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया है. कुछ सदस्यों ने कहा कि संगठन में अब तक ब्राम्हणवाद को लेकर बहस चलती रही है लेकिन अब पितृसत्ता को बढ़ावा दिए जाने को लेकर विमर्श चलता रहेगा. नाराज चल रहे कुछ पूर्व पदाधिकारियों ने यह भी कहा कि वे नया संगठन बनाने के बारे में मंथन कर रहे हैं.