सियासत
नितिन भंसाली बने नागपुर साउथ विधानसभा में कॉर्डिनेटर
रायपुर. छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता एवं कांग्रेस नेता नितिन भंसाली को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने हाल के दिनों में बड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है. भंसाली को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विदर्भ की विधानसभा साउथ नागपुर का कॉर्डिनेटर नियुक्त किया गया है.गौरतलब है कि कांग्रेस और उसकी विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध श्री भंसाली इसके पहले भी कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का सफलतापूर्वक निर्वाह कर चुके हैं. नितिन भंसाली ने इस जिम्मेदारी के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी एवं छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के प्रति आभार प्रकट किया है.
मुझे कवर्धा में एक भी रोहिंग्या मुसलमान दिखाओ...भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए झूठी कहानी का इस्तेमाल किया- मोहम्मद अकबर
मोहम्मद अकबर कहते हैं, "हालांकि (ईवीएम के बारे में) संदेह हैं, लेकिन अगर हम अभी मुद्दा उठाएंगे तो लोग तेलंगाना की जीत के बारे में हमसे सवाल करेंगे।"
छत्तीसगढ़ के पूर्व कानून मंत्री मोहम्मद अकबर ने 2018 में राज्य के दुर्ग क्षेत्र की कवर्धा सीट 59,284 वोटों से जीती, जो कि जीत का सबसे बड़ा अंतर है. इस बार वह भाजपा के विजय शर्मा से 39,592 वोटों से हार गए। The Indian Express को दिए एक साक्षात्कार में वह अपनी हार पर विचार करते हैं, ईवीएम पर अपनी पार्टी के नेताओं के बारे में बात करते हैं.
सवाल- पिछली बार आप सबसे ज्यादा अंतर से जीते थे। इस बार आपकी हार किस कारण हुई?
जवाब- मैं हार के लिए किसी को दोष नहीं देना चाहता। मैंने राज्य में चौथा सबसे ज्यादा वोट हासिल किया.इस बार 1.05 लाख मिले (2018 में अकबर को 1.36 लाख वोट मिले, जबकि भाजपा उम्मीदवार को 77,000 वोट मिले) भविष्य में मैं मतदाताओं को यह समझाने की कोशिश करूंगा कि वोट देते समय उनकी प्राथमिकताएं विकास और भाईचारा होनी चाहिए.
सवाल- ऐसी अफवाहें थीं कि रोहिंग्या मुसलमान आपके निर्वाचन क्षेत्र में बस गए हैं.
वाब- ये तो बस राजनीति है. जो लोग यह आरोप लगा रहे हैं उनसे पूछिए कि कवर्धा में एक भी रोहिंग्या मुस्लिम दिखा दें.
सवाल- कांग्रेस को 60-75 सीटें मिलने की उम्मीद थी. लेकिन पार्टी 35 सीटों पर सिमट गई?
जवाब- मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि हम हार गए.छत्तीसगढ़ के लिए पहली बार सभी एग्जिट पोल पूर्वानुमान गलत निकले.नुकसान के कई कारण हैं. हमारी सरकार ने कृषि ऋण माफी, यूनिवर्सल राशन कार्ड और धान खरीद जैसे कई अच्छे काम किए, जो भारत में सबसे ज्यादा थे. इसके अलावा, हमारा घोषणापत्र भाजपा से बेहतर था. हालांकि वे फिर भी जीत गए. आगे देखें कि क्या वे अपने वादे निभाते हैं, खासकर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के मामले में...वह भी एक ही किस्त में.
सवाल-मध्य प्रदेश और राजस्थान में ईवीएम को लेकर खूब हंगामा हो रहा है?
जवाब- हालांकि इसकी कार्यप्रणाली पर संदेह है, लेकिन अगर हम अभी मुद्दा उठाएंगे तो लोग हमसे तेलंगाना की जीत के बारे में सवाल करेंगे.
सवाल- नुकसान के बाद आप उस कोर ग्रुप का हिस्सा थे जिसने राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की थी समीक्षा के लिए. वहां किन मुद्दों पर चर्चा हुई?
जवाब- मेरे साथियों ने ईवीएम का मुद्दा उठाया और इस पर चर्चा शुरू हुई. हम लोकसभा चुनावों के लिए मतपत्रों को वापस लाने की मांग कर सकते हैं. हमने अपने घोषणापत्र और अपनी सरकार द्वारा किए गए कामों पर भी विस्तार से चर्चा की.नेतृत्व ने हमें लोकसभा चुनाव पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है.
सवाल- चाहे साजा हो या कवर्धा, भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाया. इसमें आरोप लगाया गया है कि कांग्रेस तुष्टिकरण की राजनीति करती है?
जवाब-वे चुनाव जीतने के लिए इस झूठी कहानी का सहारा लेते हैं और इस बार भी यही हुआ.
सवाल- कांग्रेस ने भी अन्य चीजों के अलावा राम वन गमन पथ को विकसित करके नरम हिंदुत्व का रुख अपनाया. क्या आपको लगता है कि इससे पार्टी की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा?
जवाब- राम वन गमन पथ को विकसित करने में क्या गलत है? जबकि भाजपा वालों को यह करना चाहिए था.इसके कारण हम चुनाव नहीं हारे.
सवाल- क्या आपको लगता है कि नरम हिंदुत्व के कारण दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक कांग्रेस से दूर हो गए?
जवाब- इस पर टिप्पणी करना अभी जल्दबाजी होगी.
सवाल- प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं द्वारा आपके खिलाफ सांप्रदायिक कार्ड का इस्तेमाल करने के बावजूद चुप रहना क्या कांग्रेस का निर्णय सही था?
जवाब- मेरा मानना है कि उन पर प्रतिक्रिया न देना ही बेहतर है. मैं अपनी राजनीति की शैली नहीं बदलूंगा, जो कि धर्मनिरपेक्ष है.मैं अपने काम को लेकर आश्वस्त हूं और नहीं मानता कि सांप्रदायिक राजनीति कोई मुद्दा बनेगी.पाटन के बाद कवर्धा में काफी विकास हुआ.आखिरकार लोग ही निर्णय लेते हैं कि किस मुद्दे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
छत्तीसगढ़ में साय सरकार की पहली कैबिनेट की बैठक के बाद जनता में निराशा
रायपुर. छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की साय सरकार ने गुरुवार को कैबिनेट की पहली बैठक तो ली...लेकिन बैठक में लिए गए फैसलों के बाद जनता में निराशा में गहन निराशा छा गई है.यह कहना है प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का.एक पत्रवार्ता में उन्होंने कहा कि फिलहाल प्रदेश में में धान खरीदी प्रारंभ है. चुनाव के दरम्यान भाजपा ने वादा किया था कि प्रत्येक किसान से 31 सौ रुपए के भाव से प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की खरीदी की जाएगी. इसके अलावा भाजपा ने यह वादा भी किया था धान खरीदी केन्द्रों और गांव में ही एकमुश्त नगद भुगतान किया जाएगा, लेकिन कैबिनेट की बैठक में इस बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया. यह एक ऐसा विषय है जिसमें तुरंत निर्णय लेने की आवश्यकता है.
संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने एक बार फिर उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा के वायरल हो चुके वीडियो का ज़िक्र किया. उन्होंने कहा कि विजय शर्मा सहित कई भाजपा नेताओं ने किसानों का दो लाख रुपए तक तक क़र्ज़ माफ़ करने का वादा भी किया था, लेकिन इस वादे के बारे में भी कोई फैसला नहीं लिया गया. उल्टा किसानों से लिकिंग में क़र्ज़ की वसूली प्रारंभ कर दी गई है. कर्ज माफी पर तुरंत आदेश की जरूरत है ताकि किसानों से वसूली बंद सकें.
सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि भाजपा ने चुनाव के दरम्यान 70 लाख से अधिक माताओं-बहनों से फार्म भरवाकर यह वादा किया था कि सरकार बनते ही उन्हें एक हज़ार रुपए प्रति माह दिया जाएगा.सरकार को महतारी वंदन योजना के तहत महिलाओं को 12 हजार रुपए की जो धनराशि देनी है उस पर भी कैबिनेट में कोई फैसला नहीं लिया गया. इसके साथ ही पांच सौ रुपए में गैस सिलेंडर दिए जाने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई.
प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष ने कहा कि कैबिनेट की पहली ही बैठक के बाद से यह लगने लगा है कि भाजपा वादा खिलाफी के लिए जमीन तैयार करने में लग गई है.
चुनाव दरम्यान मोदी की गारंटी लागू करने का वायदा किया था.अब कहा जा रहा है कि पांच साल में गारंटी लागू होगी.कोई सरकार 24 घंटे में ही अपने वायदे से मुकर जाएगी इसका बड़ा उदाहरण भाजपा की सरकार ने पेश कर दिया है.
रमन सिंह पर नहीं लगेगा दांव... तो फिर छत्तीसगढ़ में भाजपा से कौन होगा सीएम का चेहरा ?
रायपुर. वैसे तो छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की डुगडुगी 2023 में बजेगी, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा अभी से चल पड़ी है कि क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को फिर से आजमाएगा ? पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्र कहते हैं इस बार भाजपा विधानसभा का चुनाव रमन सिंह के चेहरे को सामने रखकर नहीं लड़ने वाली है. पार्टी को सामाजिक-राजनीतिक और जातीय समीकरण में फिट बैठने वाले एक ऐसे स्पार्किंग चेहरे की तलाश है जो कांग्रेस के लोकप्रिय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुकाबला कर सकने में सक्षम हो.
छत्तीसगढ़ में भाजपा की तरफ से वह सर्वव्यापी चेहरा कौन हो सकता है इसे लेकर कई तरह की बात कहीं जा रही है.भाजपा में जो दो-चार-दस नेता बचे हैं उन सबका गुट है. हर गुट की अलग-अलग बातें हैं. फिलहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं. प्रदेश में इस वर्ग की आबादी भी सबसे ज्यादा है. कहा जाता है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पिछड़े और आदिवासी वर्ग से ही चमत्कारिक व्यक्तित्व की तलाश कर रहा है. पिछड़े वर्ग से सबसे पहला नाम विजय बघेल का लिया जा रहा है. वैसे तो विजय बघेल वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के परिवार से हैं, लेकिन उन्होंने भाजपा में रहकर अपनी अलग राह बनाई है. सूत्रों का कहना है कि पार्टी सांसद विजय बघेल को सीएम के चेहरे के तौर पर प्रस्तुत करने की योजना पर काम कर रही है.
इसी क्रम में दूसरा बड़ा नाम वरिष्ठ नेता रमेश बैस का भी लिया जा रहा है. फिलहाल बैस छत्तीसगढ़ की राजनीति से दूर है, लेकिन कहा जाता है उन्हें जल्द ही छत्तीसगढ़ में सक्रिय होने के लिए निर्देशित किया जा सकता है. कुछ समय पहले तक नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक का नाम भी सुर्खियों में था,लेकिन उन्हें रमन सिंह गुट का माना जाता है इसलिए सीएम चेहरे के लिए उनकी संभावना क्षीण बताई जाती है. पिछड़े वर्ग के एक नेता अजय चंद्राकर अगर पूरे छत्तीसगढ़ का दौरा कर खुद को मंथने के तैयार होते हैं तो उनकी संभावनाओं को भी पंख लग सकते हैं लेकिन उनके आक्रामक स्वभाव और तेवर के चलते उनकी भूमिका सीमित भी रखी जा सकती है.
संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े सांसद सुनील सोनी का नाम भी अप्रत्याशित ढंग से लिया जा रहा है. इधर कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में आए ओपी चौधरी को भी एक गुट के लोग सीएम का चेहरा मानकर चल रहे हैं. इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि अगर भाजपा ने इस बार नए लोगों को सामने नहीं किया गया तो फिर से करारी हार का सामना करना पड़ सकता है. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व साहू समाज से भी किसी दमदार नेता की तलाश कर रहा है. गौरतलब है कि इस समाज के लोग भी बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ में निवास करते हैं और राजनीति में उनकी दखल को महत्वपूर्ण माना जाता है.
भाजपा की राजनीति को जानने-समझने वाले राजनीतिक धुरंधर मानते हैं कि अगर आदिवासी वर्ग से सीएम चेहरे को प्रोजेक्ट करने की बात आएगी हैं तो सबसे पहला नाम भाजपा के वरिष्ठ नेता रामविचार नेताम का ही रहने वाला है. नेताम मुखर होने के साथ-साथ दिल्ली दरबार में भी अपनी अच्छी-खासी पकड़ रखते हैं. सीएम चेहरे के लिए इसी वर्ग से दूसरा नाम नंदकुमार साय और विष्णुदेव साय का भी लिया जाता है.
फिलहाल छत्तीसगढ़ में भाजपा के कुल जमा 14 विधायक हैं. इन विधायकों में सबसे ज्यादा मुखर और योग्य बृजमोहन अग्रवाल ही हैं. प्रदेश में उनके समर्थकों की संख्या भी अच्छी-खासी हैं. भाजपा में उनकी गिनती संकट मोचक के तौर पर होती है. लेकिन पार्टी के भीतर का जो गुणा-भाग है उसे समझने के बाद यह लगता नहीं है कि उन्हें कभी सीएम के चेहरे के तौर पर प्रस्तुत भी किया जाएगा. बिलासपुर में निवास करने वाले कुछ पत्रकार गाहे-बगाहे अमर अग्रवाल का नाम भी उछालते रहते हैं, लेकिन अमर अग्रवाल के कट्टर समर्थकों की तरफ से कभी यह दावा सामने नहीं आया है कि अमर अग्रवाल किसी पोस्टर में अपनी बड़ी सी फोटू देखने के इच्छुक हैं. कमोबेश यही स्थिति भाजपा नेत्री सरोज पांडे और प्रेमप्रकाश पांडे की है. दोनों राजनीतिज्ञ जिस वर्ग से आते हैं वहां से उनकी संभावना नहीं के बराबर है.
कुछ लोग यह सवाल भी उठाते हैं कि जब 15 सालों तक डाक्टर रमन सिंह मुख्यमंत्री रह सकते हैं तो पार्टी उन्हें दोबारा मौका क्यों नहीं दे सकती ? पार्टी के एक जिम्मेदार सूत्र का कहना है कि वर्ष 2018 में रमन सिंह के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा गया था, तब करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इस पराजय के बाद से ही शीर्ष नेतृत्व को यह अहसास हो गया था कि रमन सिंह की लोकप्रियता का ग्राफ काफी गिर गया है. भाजपा आलाकमान अब कोई रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है.अगर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनकी क्षमता पर भरोसा करता तो उनके बेटे को राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मौका अवश्य दिया जाता. फिलहाल इस क्षेत्र के सांसद संतोष पांडे हैं. भले ही डाक्टर रमन सिंह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें मार्गदर्शक मंडल में शामिल होने वाली स्थिति में लाकर छोड़ दिया है. पार्टी में रमन सिंह की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें यूपी जैसे महत्वपूर्ण चुनाव में प्रचार के लिए भी आमंत्रित नहीं किया गया है. तमाम तरह की कवायद के बावजूद छत्तीसगढ़ में भाजपा भूपेश बघेल सरकार को घेर सकने वाली स्थिति से दूर हैं. फिलहाल छत्तीसगढ़ में कोई नहीं हैं टक्कर में...कहां लगे हो चक्कर में जैसा स्लोगन गुंजायमान हो रहा है. इस स्लोगन के लोकप्रिय होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि छत्तीसगढ़ की भीतरी तहों में छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की आंधी चल रही है. अब सतना और रीवा की ठकुराई यहां शायद ही चल पाय.
चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता विश्वविद्यालय की घोषणा...जनभावना का सम्मान
परदेशीराम वर्मा
छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने जनभावना के अनुरूप निर्णय लिया है.राजिम में राजिम मेला प्रारंभ कर इस तीर्थ को पुनः छत्तीसगढ़ी परंपरा से जोड़ दिया गया. गांव गंध से जुड़े आयोजन की सफलता और जन स्वीकृति से यह स्पष्ट हो गया है कि छत्तीसगढ़ के लोग अपने प्रदेश की पहचान के लिए भीतर ही भीतर छटपटा रहे थे. भूपेश बघेल और उनके साथियों ने इस छटपटाहट को दशकों पहले जान- समझ लिया था. वे प्रतिपक्ष मे थे तब भी छत्तीसगढ़ी परंपराओं की स्थापना के लिए संघर्ष की राजनीति करते थे. तभी छत्तीसगढ़ के आमजन को लग गया था कि जब छत्तीसगढ़ की असल पहचान के लिए संकल्पित राजनीतिक दल को सत्ता मे आने का अवसर मिलेगा तब छत्तीसगढ़ की आत्मा की पहचान की दिशा मे ठोस निर्णय होंगे.
पत्रकारिता विश्वविद्यालयका नाम चंदूलाल च॔द्राकर के सिवाय किस विभूति के नाम पर रखा जा सकता है यह सोचकर ही लोग थक जाते हैं दूसरा कोई ही नहीं सूझता. इसका कारण है यह है कि चंदूलाल जी ऐसे पहले छत्तीसगढ़ी सपूत हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ के एक गांव से निकलकर देश में एक श्रेष्ठ पत्रकार के रूप में पहचान बनाई. वे 148 देशों मे घूमे. छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के ऐतिहासिक और निर्णायक दौर में उन्होंने नेतृत्व किया. इसकी उन्होंने कीमत भी चुकाई. वे प्रवक्ता के पद पर थे. उनसे यह पद छीन लिया गया.
वे दिल्ली और दुनिया में साक्षात जीवंत छत्तीसगढ़ी माने जाते थे. एक अच्छे छत्तीसगढ़ी की तरह सहिष्णु- परोपकारी और अहिंसक थे. उनके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ राज्यआंदोलन को जो ऊंचाई मिली उसी का सुखद परिणाम रहा कि हमें बेहद शांतिपूर्ण तौर-तरीकों से अपना छत्तीसगढ़ राज्य मिल गया. मैं मानता हूं कि पत्रकारिता विश्वविद्यालय का गौरव उनके नाम के जुड़ने से ही बढ़ गया है. यहां किसी को कमतर आंकने का भाव नही है. सोचना यह चाहिए कि निर्णय के पीछे भाव क्या है ? छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार छत्तीसगढ़ के गौरव को बढ़ाने और बचाने का संकल्प लेकर ही सत्ता मे आई है. वह तमाम साहसिक निर्णय यूं ही नही ले रही है. ये निर्णय आकांक्षा और प्रतिबद्धता को समझने की उसकी क्षमता का परिचायक है. छत्तीसगढ़ राज्य की अपनी विशिष्ट पहचान बने यह प्रयत्न करना और सत्ता में आकर लंबे समय तक बने रहने की अनिवार्य शर्त का ह पहला पाठ भी है. उस पाठ को लगातार पढ़ और समझकर जिन लोगों ने सही राजनीति की हैं वे सत्ता में आ गए हैं. ऐसे निर्णय से वे बंधे और वचनबद्ध हैं.
आम आदमी ईमान और संकल्प के साफ और बड़े अक्षरों मे लिखे हुए घोषणा पत्र पढ़ पाता है. वह दांव- पेंच नही समझना चाहता. छत्तीसगढ़ियों ने भी सब कुछ जान-परख कर इस सरकार को मौका दिया है. भूल सुधार करते चलना इस सरकार का कर्तव्य है. अगर कोई पुरानी भूल हुई है तो उसे सुधार लेना अच्छी बात है.
चंदूलालजी के साथ वासुदेव च॔द्राकर को नमन कर सरकार ने अपना मान बढ़ाया है. छत्तीसगढ़ मे आज राजनीति क्षेत्र के जगमग कांग्रेसी सितारों को आसमान में स्थापित करने मे सफल रहे दाऊ वासदेव च॔द्राकर से जुड़कर कामधेनु विश्वविद्यालय का यश बढ़ गया है. वासुदेव चंद्राकर ही थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत को समझकर राजनीति करने का गुरूमंत्र अपने शिष्यों को दिया था. वे संकल्प लेकर और ताल ठोंककर राजनीतिक घोषणा करते थे. वासुदेव चंद्राकर संस्कृति प्रेमी धर्मनिष्ठ दूरदृष्टि सम्पन्न राजनेता थे. छतीसगढ़ के ऐसे दिग्गज गुरू के अप्रतिम प्रतिभाशाली शिष्यसिद्ध हुए भूपेश बघेल. वर्तमान मंत्रिमंडल के अमूमन सभी सदस्यों को दाऊ जी से मार्गदर्शन और स्नेह मिलता रहा है. पुरखों के सपनों का छत्तीसगढ़ बनाना जिनकी वचनवद्धता का हिस्सा है वे आगे बढ़ रहे हैं. कुछ नारे यूं ही नही बनते.
अभी तो यह अंगड़ाई है
आगे और
लड़ाई है.
भाजपा ने किया कुशाभाऊ ठाकरे का अपमान
भिलाई. भिलाई की प्रथम महापौर सुश्री नीता लोधी ने चंदूलाल चन्द्राकर पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय नामकरण का स्वागत करते हुए इसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा छत्तीसगढिय़ा अस्मिता का सम्मान बताया है. उन्होंने कहा कि कुशाभाऊ ठाकरे भारतीय जनता पार्टी अथवा राष्ट्रीय स्वयं संघ के लिए उल्लेखनीय व्यक्तित्व हो सकते हैं, लेकिन उनका नाम पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जोड़ कर भारतीय जनता पार्टी ने ही उनका अपमान किया है। क्या भाजपा-संघ के विचारक बता सकते हैं कि स्व. ठाकरे का पत्रकारिता में क्या योगदान था?
उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार के इस कदम का विरोध करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि नाम बदलने की परिपाटी भारतीय जनता पार्टी की रही है, जिसने छत्तीसगढ़ में 2003 में अपनी सरकार बनाते ही खुर्सीपार भिलाई के राजीव गांधी स्टेडियम का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय खेल परिसर कर दिया था. जबकि वहां भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की प्रतिमा पहले ही स्थापित की जा चुकी थी और इसका लोकार्पण तत्कालीन मुख्यमंत्री के हाथों किया जा चुका था. आज भी लोग यह नहीं भूले हैं, जब विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी तब भी बुद्धिजीवी वर्ग ने इस नामकरण पर आपत्ति जताई थी. सुश्री नीता लोधी ने कहा कि नाम बदलने की परिपाटी भाजपा की रही है जिसमें न सिर्फ खुर्सीपार खेल परिसर का नाम बदला गया था बल्कि इंदिरा शहरी धरोहर योजना,राजीव आश्रय योजना और इंदिरा हरेली सहेली योजना तक का नाम बदल दिया गया था. क्या मध्यप्रदेश या देश के दूसरे हिस्से में बैठे भाजपा-संघ के विचारक तब इससे अंजान थे? आज पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर धमकी भरे अंदाज में कह रहे हैं कि भाजपा सरकार आएगी तो गांधी-नेहरू जैसी विभूतियों के नाम हटा देगी, तो यह उनका वैचारिक सतहीपन दर्शाता है. छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार ने पिछले 15 साल में विभूतियों के नाम में परिवर्तन करने का काम खूब किया है.
सुश्री नीता लोधी ने कहा कि पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नामकरण अगर दिग्गज पत्रकार स्व. चंदूलाल चंद्राकर के नाम पर किया गया है तो यह बिल्कुल सही कदम है. पिछली सरकार की गलती को सुधार कर छत्तीसगढ़ की अस्मिता की रक्षा कर माटी को सम्मानित कर एक अच्छी सरकार होने का दायित्व निभाया है. चंदूलाल चंद्राकर छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़े व्यक्तित्व थे और कांग्रेस के घोषणापत्र में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना का संकल्प शामिल करवाने वाले स्व. चंद्राकर ही थे.अगर स्व. चंद्राकर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच का गठन कर आंदोलन नहीं छेड़ते तो शायद ही कभी छत्तीसगढ़ का निर्माण हो पाता.
जहां तक स्व. चंदूलाल चंद्राकर के पत्रकारिता में योगदान का प्रश्न है तो यह किसी से छिपा नहीं है कि छत्तीसगढ़ की माटी से निकले वे आज तक भी एकमात्र पत्रकार हैं, जिन्होंने ओलंपिक खेलों से लेकर युद्ध तक की रिपोर्टिंग 100 से ज्यादा देशों में की है. महात्मा गांधी की अंतिम प्रार्थना सभा में भी वे मौजूद थे और बापू की हत्या की कायराना वारदात की उन्होंने रिपोर्टिंग की थी. हिंदुस्तान जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र में संपादक होने वाले भी वह छत्तीसगढ़ की इकलौती विभूति हैं. अगर ऐसे माटीपुत्र को सम्मान दिया जा रहा है तो इसका स्वागत होना चाहिए.
नीता लोधी ने अन्जोरा के कामधेनु विश्वविद्यालय का नाम प्रख्यात किसान नेता एवं सहकारिता नेता स्व. वासुदेव चंद्राकर के नाम पर रखे जाने का भी स्वागत किया श्री चंद्राकर किसानों की समस्या को लेकर आवाज उठाते रहे है. सत्ता पक्ष मे रहते हुए भी उन्होने समय समय पर आंदोलन किए और वर्ष 2002 में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की शुरूआत किए जाने पर उनके योगदान को भुलाया नही जा सकता.
एक्शन लेने वाले सीएम के साथ अमेठी में सुशील ओझा भी
रायपुर. कांग्रेस आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर जबरदस्त भरोसा जताया है. आने वाले दिनों में भूपेश उत्तर प्रदेश की कई सभाओं में हिस्सेदारी दर्ज करेंगे. फिलहाल बघेल ने कल गुरुवार से ही अमेठी में डेरा डाल दिया है. उनके साथ गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुशील ओझा भी गए हुए हैं. बघेल 26 अप्रैल को अमेठी के बरसण्डा बाजार में एक सभा को संबोधित करेंगे. उसके बाद वे तिरहुत बल्दिराय सुल्तानपुर जाएंगे. इसी दिन वे रायबरेली के गांव सांगो और सरांवा में भी आम सभा को संबोधित करेंगे. गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में बंपर जीत के बाद बघेल की लोकप्रियता में जमकर इजाफा हुआ है. फिलहाल जिन तीन राज्यों में कांग्रेस को जीत मिली है वहां सबसे अच्छी पोजीशन छत्तीसगढ़ की मानी जा रही है. भूपेश की पहचान एक्शन लेने वाले मुख्यमंत्री के तौर बन गई है. उनके एक के बाद लिए गए एक्शन को लेकर देशव्यापी चर्चा भी चल रही है.
भूपेश, रमन और जोगी 7 फरवरी को एक मंच पर
रायपुर. राजनीति के तीन धुर विरोधी सात फरवरी को एक मंच पर नजर आने वाले हैं. ऐसे समय जब भाजपा सत्ता से बाहर है और कांग्रेस की सरकार है तब आईएनएच चैनल ने टाटा स्काई पर के लांचिग अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बतौर मुख्य अतिथि, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को मुख्य वक्ता और पन्द्रह सालों तक प्रदेश में काबिज रहने वाले रमन सिंह को कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया है. जाहिर सी बात है कि जब तीनों नेताओं से अनुमति मिल गई होगी तभी कार्ड में नाम भी छापा गया है. मीडिया से जुड़े लोग और राजनीति के पंड़ित इस कार्यक्रम का अलग-अलग अर्थ ढूंढ रहे हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि तीन महारथियों का एक साथ मंच पर मौजूद रहना कार्यक्रम को दिलचस्प बना सकता है.
वैसे राजनीति के धुंरधरों को एक मंच पर लाना आसान नहीं होता, लेकिन यह कमाल कर दिखाया है हरिभूमि के प्रधान संपादक हिमांशु द्विवेदी ने.यहां यह बताना भी जरूरी है कि श्री द्विवेदी पिछले कुछ समय से अपने नाम के आगे डाक्टर लिखते हैं, लेकिन वे वैसे वाले डाक्टर नहीं है जैसे रमन सिंह है. वे नाड़ी देखकर पर्ची में छोटी-छोटी सफेद गोली लिखने वाले आयुर्वेदिक चिकित्सक नहीं है, उन्हें जनता और विशेषकर राजनीति की नब्ज को तपासने में मास्टरी हासिल है. फिलहाल उनके मुकाबले में कोई दूसरा खड़ा हो भी नहीं पाया. ( हालांकि कोशिश कई मूर्धन्यों ने की मगर वे थक-हारकर बैठ गए ) उनका हर काम ( कार्यक्रम ) चर्चा के केंद्र में रहता है. प्रदेश के तमाम स्वनामधन्य अखबार के मालिक और उनके वरिष्ठ संवाददाता नई सरकार के बनते ही जब यह सोच रहे थे कि अब- तब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का इंटरव्यूह कर लेंगे तब हिमांशु द्विवेदी आईएनएच पर बघेल का इंटरव्यूह कर रहे थे. उधर आईएनएच में इंटरव्यूह प्रसारित हो रहा था और इधर राजधानी के कई इलाकों में मौजूद अखबार और चैनलों के दफ्तरों के आसपास की झाड़ियों में भीषण आग लगी हुई थी. राजनीति, प्रशासन और मीड़िया के बहुत से मूर्धन्यअब भी यह जानने के लिए माथा-पच्ची कर रहे हैं कि आखिरकार यह कमाल हुआ तो हुआ कैसे. बहरहाल अंतागढ़ टेपकांड, झीरम घाटी सहित अन्य कई मामलों में जांच प्रारंभ होने और बदलापुर-बदलापुर जैसी चीख-पुकार के बीच सात फरवरी को नेताओं के चेहरों के हाव-भाव को देखना-पढ़ना और उन्हें सुनना एक अलग तरह का अनुभव हो सकता है.