सियासत
इधर अमित शाह जारी कर रहे थे आरोप पत्र उधर...टिव्हटर पर ट्रेंड कर रहा था अडानी का घोटाला
रायपुर. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह शुक्रवार को जब छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ आरोप पत्र जारी कर रहे थे तब टिव्हटर पर गौतम अडानी का घोटाला ट्रेंड कर रहा था. सोशल मीडिया के ज्यादातर प्लेटफार्म पर यह सवाल भी पूछा जा रहा था कि सेल कंपनियों में लगे हुए 20 हजार करोड़ रुपए किसके हैं ? जिस अजित पवार पर 25 हजार करोड़ से अधिक रकम के घोटाले का आरोप है वह महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे की सरकार में उपमुख्यमंत्री कैसे बन बैठा ? क्या भाजपा ज्वाइन करते ही सारे भ्रष्टाचारी निरमा वाशिंग पाउडर से धुलकर साफ हो जाते हैं.
केंद्रीय गृहमंत्री की तरफ से जारी किए गए आरोप पत्र में उन बातों को ही जगह दी गई है जो प्रदेश के भाजपा नेताओं के बयान के रुप में स्थानीय अखबारों में पहले छप चुके हैं. मतलब आरोपों में नया कुछ भी नहीं है जो चौकाता हो. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भाजपा स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव, अमानक सड़कों, दिव्यागों की नियुक्ति में लापरवाही, गौठानों में घोटाले, शराब-कोयला घोटाले और भेंट-मुलाकात कार्यक्रम में युवाओं को छलने सहित अन्य कई विषयों पर आरोप मढ़ती रही है. आरोप पत्र में सभी छपे-छपाए आरोपों को एकजाई कर दिया गया है.
वामपंथी पत्रकार के चित्र का इस्तेमाल
भाजपा के समर्थकों की तरफ से टिव्हटर ( अब एक्स ) पर चार्ज शीटेड- कांग्रेस शीर्षक से कुछ पोस्ट शेयर की गई है. हालांकि ज्यादातर पोस्ट एक जैसी है, लेकिन एक पोस्ट में यह लिखा गया है- छत्तीसगढ़ में पत्रकारों को डरा-धमका और मारपीट कर उनका अधिकार छीना जा रहा है. इस पोस्ट में धुंधले स्वरुप में वाम विचारों से प्रभावित एक पत्रकार के चित्र का इस्तेमाल किया गया है. अब चित्र के इस्तेमाल के लिए पत्रकार की अनुमति ली गई है इसका खुलासा तो नहीं हो पाया है, लेकिन इसे लेकर कई तरह की बातें कहीं जा रही है. सवाल उठ रहा है कि चित्र के इस्तेमाल को लेकर क्या वामपंथी पत्रकार की तरफ से कोई आपत्ति दर्ज की जाएगी या फिर खामोशी अख्तियार कर ली जाएगी. वामपंथी खेमों में भी जबरदस्त हलचल देखी जा रही है. कुछ वामपंथी नेताओं का कहना है कि पत्रकार को भाजपा नेताओं पर अदालती कार्यवाही करनी चाहिए ?
इधर कांग्रेस ने केंद्रीय गृहमंत्री की तरफ से जारी किए गए आरोप पत्र को झूठ का पुलिंदा बताया है. कांग्रेस संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि भूपेश बघेल की सरकार ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति, तीज-त्योहार और कला को महत्व दिया है. इधर 15 सालों तक भाजपा ने जिस छत्तीसगढ़ी बोली-बानी और संस्कृति को दबाकर रखा था अब आरोप पत्र बनाने के दौरान उसी छत्तीसगढ़ी भाषा का इस्तेमाल किया गया है. शुक्ला का कहना है कि जो अमित शाह खुद ही आरोपों से घिरे हुए हैं उन्हें आरोप पत्र जारी करना शोभा नहीं देता. संचार प्रमुख ने कहा कि आरोप पत्र में जिस कार्टून का इस्तेमाल किया गया है उससे साबित होता है कि भाजपा छत्तीसगढ़ में ईडी और आईटी को गली-मोहल्ले में घुमवा रही है. ईडी और आईटी ने 200 से ज्यादा मामलों में झूठी कार्यवाईयां की, लेकिन किसी भी एक मामले को साबित करने की स्थिति में नहीं है. ईडी के माध्यम से पटकथा जरूर तैयार की गई है, लेकिन वह काल्पनिक और सतही साबित हुई है.
शुक्ला ने एक बयान में कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रमन सरकार के दौरान हुए 36000 करोड़ के नान घोटाले, 6000 करोड़ के चिटफंड घोटाले, पनामा पेपर मामले की जांच के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था जिसकी जांच अब तक नहीं की गई है. सब जानते है कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में रमन सिंह के खिलाफ प्रधानमंत्री कार्यालय को दस्तावेजी सबूत के साथ शिकायत भेजी गई थी लेकिन अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है. भाजपा का आरोप पत्र यहां किसान-मजदूर और मेहनतकश लोगों का अपमान है.
छत्तीसगढ़ में भाजपा के घोषित प्रत्याशी बदले जाएंगे ?
क्या भाजपा के ईमानदार कार्यकर्ता मोटे-ताजे नेताओं को
समोसा खिलाने...दरी बिछाने और उठाने के लिए ही बने हैं ?
रायपुर. छत्तीसगढ़ में भाजपा ने कांग्रेस से हारी हुई 21 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा तो कर दी है, लेकिन कई सीटों पर प्रत्याशियों के खिलाफ जबरदस्त विरोध देखने को मिल रहा है वहीं कुछ सीटों पर भीतरघात की संभावना जताई जा रही है. राजनीति में कब क्या हो जाय कुछ कहा नहीं जा सकता सो यह माना जा रहा है कि प्रखर विरोध की स्थिति में भाजपा प्रत्याशियों की टिकट बदल भी सकती है.
प्रदेश की सबसे हाईप्रोफाइल सीट पाटन से भाजपा ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ उनके सगे भतीजे विजय बघेल को चुनाव मैदान में उतारा है. विजय बघेल के चुनाव समर में शामिल होने की घोषणा के साथ यह कहा जा रहा है कि भाजपा संगठन से जुड़े कुछ बड़े नेताओं ने तेज-तर्रार नेत्री सरोज पांडे के लिए दुर्ग लोकसभा के चुनाव समर में उतरने का रास्ता साफ कर दिया है. विजय बघेल की तुलना अजीत जोगी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके नंदकुमार साय से भी की जा रही है. कहा जा रहा है कि भाजपा में एक लॉबी अनुसूचित जाति-जनजाति और पिछड़ा वर्ग से जुड़े नेताओं को कभी उभरने नहीं देती है. कहा जा रहा है कि चुनाव में पराजित होने के बाद विजय बघेल को लोकसभा चुनाव में दोबारा मौका नहीं मिलेगा और वे घर बिठा दिए जाएंगे.
भाजपा ने अभनपुर से वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर साहू की टिकट काट दी है. हालांकि उनकी टिकट कटने से अभनपुर इलाके में हश्रमिश्रित प्रतिक्रिया भी देखने को मिल रही है. ज्यादातर लोगों का कहना है कि अभनपुर पिछले कई सालों से कांग्रेस के धनेंद्र साहू और भाजपा के चंद्रशेखर साहू के बीच ही मुकाबला देखते रहा है. इस बार भाजपा ने बेद्री गांव के दूसरी बार के सरपंच इंद्रकुमार साहू को टिकट दी है तो समीकरण बदलेगा. अभनपुर में असंतुष्टों का एक धड़ा चंद्रशेखर साहू की टिकट कटने से बेहद खुश भी है. प्रेक्षक मानते हैं कि इस इलाके में भाजपा के नए प्रत्याशी के खिलाफ जबरदस्त भीतरघात संभावित है.
सरायपाली विधानसभा क्षेत्र से एक डाक्टर की पत्नी श्रीमती सरला कोसरिया को टिकट दिए जाने का भी विरोध होने लगा है. गाड़ा समाज के अध्यक्ष जगदीश का कहना है कि इलाके में 40 हजार से ज्यादा मतदाता है. यदि समय रहते प्रत्याशी नहीं बदला गया तो भाजपा से जुड़े गाड़ा समाज के कार्यकर्ता सामूहिक इस्तीफा दे सकते हैं.
लूंड्रा से भाजपा ने आदिवासी उरांव समाज के प्रबोध मिंज को प्रत्याशी बनाया है.खबर है कि यहां आरएसएस इंदर भगत को प्रत्याशी बनाने के पक्ष में था. यहां से अब भी पूर्व विधायक विजयनाथ की दावेदारी बनी हुई है सो यह माना जा रहा है कि मिंज की टिकट खतरे में पड़ सकती है. भटगांव से जिला पंचायत की सदस्य लक्ष्मी राजवाड़े को टिकट दी गई है. यहां से पूर्व मंत्री शिवप्रताप सिंह के पुत्र सत्यनारायण भी दावेदार थे. इस सीट पर भी भीतरघात की संभावना जताई जा रही है. प्रतापपुर से पूर्व गृहमंत्री रामसेवक पैकरा प्रबल दावेदार थे, लेकिन यहां शकुंतला पोर्ते को चुनाव मैदान में उतारा गया है. यहां भी भाजपा प्रत्याशी की राह आसान नहीं रहने वाली है. रामानुजगंज से भाजपा प्रत्याशी रामविचार नेताम वैसे तो राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं,लेकिन उन्हें भी तगड़े विरोध का सामना करना पड़ सकता है. प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि भाजपा ने इंदिरा बैंक के घोटाले में करोड़ों रुपए की घूस लेने वाले तथा गृहमंत्री रहते हुए नक्सलियों को चंदा देने वाले रामविचार नेताम को प्रत्याशी बना दिया है. रामविचार नेताम के परिजनों के ऊपर राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा की जमीन को कूटरचित दस्तावेज और षड्यंत्र कर अपने नाम में करने का भी आरोप है.
राजनांदगांव की जिला पंचायत सदस्य गीता घासी साहू ने करीब तीन साल पहले ही अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की थी. अब कांग्रेस वर्तमान विधायक छ्न्नी साहू को दोबारा रिपीट करती है या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन गीता घासी साहू की राह भी आसान नहीं रहने वाली है. भाजपा ने राजिम से उस रोहित साहू को टिकट दी है जो कभी अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस से जुड़े थे. उन्हें टिकट दिए जाने के बाद यह चर्चा भी चल पड़ी है कि क्या भाजपा के मेहनतकश और ईमानदार कार्यकर्ता केवल दरी बिछाने- दरी उठाने और भाजपा के मोटे-ताजे नेताओं को समोसा खिलाने के लिए ही बने हैं.
यूपी में भाजपा की होगी करारी हार... बनेगी सपा और कांग्रेस सरकार
नई दिल्ली. वैसे तो अधिकृत तौर पर यह 10 मार्च को ही साफ हो पाएगा कि उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, लेकिन हाल- फिलहाल वैकल्पिक और सोशल मीडिया ने भाजपा की करारी हार सुनिश्चत कर दी है. चुनाव को यू ट्यूब चैनल और अन्य मीडिया के लिए कव्हर कर रहे पत्रकारों और राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि इस बार उत्तर प्रदेश में बदलाव की बयार बह रही है. यूपी में सपा और कांग्रेस ने मिल-जुलकर सरकार बनाने वाली स्थिति को हासिल कर लिया है.
यूपी में चुनाव के चार चरण हो चुके हैं. पहले चरण के चुनाव के बाद ही यह साफ हो गया था कि भाजपा की राह आसान नहीं रहने वाली है. दूसरे-तीसरे और चौथे चरण तक पहुंचते-पहुंचते फिजा ऐसी बनी है कि लोग-बाग खाली डिब्बा... खाली बोतल ले-ले मेरे यार... जैसा गाना गुनगुनाने लगे हैं. भाजपा को यह अहसास हो गया है कि चार चरणों के चुनाव में वह बुरी तरह से पिछड़ गई है. भाजपा अब इसकी भरपाई शेष बचे तीन चरणों पर पूरी ताकत के साथ लड़कर करना चाहती है. भाजपा अब काशी प्रांत की 71 सीटों पर जोर लगा रही है जहां उसे बढ़त मिलने की उम्मीद है. भाजपा मायावती की तारीफ कर उसे अपनी तरफ लाना चाहती है. क्योंकि उसे पता है कि अगर पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो बसपा का समर्थन लिया जा सकता है. यही एक वजह है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह को एक सभा में यह कहना पड़ा है कि अभी बसपा का जनाधार खत्म नहीं हुआ है. हालांकि पूरे चुनाव में बसपा उस जोशों-खरोश के साथ नहीं लड़ रही है जैसा वह लड़ती रही है. राजनीति के धुंरधरों का कहना है कि इस चुनाव में बसपा के प्रत्याशी पिछले चुनाव की अपेक्षा थोड़े कमजोर है.
सोशल मीडिया में जहां देखिए वहां जनता भाजपा के प्रत्याशियों को दौड़ा-दौड़ाकर मारते हुए नजर आ रही है तो कुछ प्रत्याशी भरी सभा में कान पकड़कर उठक-बैठक करते हुए भी नजर आ रहे हैं. यूपी चुनाव को कव्हरेज कर रहे एक स्वतंत्र पत्रकार का दावा है कि इस चुनाव में भाजपा सौ सीटों को भी क्रास नहीं कर पाएगी. राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबेमानते हैं है कि तीन चरण के मतदान में भाजपा को पचास फ़ीसदी का नुक़सान हो चुका है. यह आगे भी बरकरार रहने वाला ही दिखता है. वैसे राजनीति के गलियारों में यह चर्चा भी आम है कि मोदी और अमित शाह ही योगी आदित्यनाथ की लुटिया डुबोने में लगे हुए हैं. यह बात भी लंबे समय से प्रचारित हैं कि संघ अगले पीएम के तौर पर अब योगी आदित्यनाथ को देखना चाहता है. इस प्रचार से मोदी समर्थक नाराज बताए जाते हैं. वैसे तो बंगाल चुनाव में ममता बेनर्जी के हाथों पराजय के बाद से ही भाजपा ढलान पर आ गई थीं. बंगाल चुनाव को जीतने के लिए मोदी और उनकी टीम ने पूरा लाव-लश्कर झोंक दिया था. वहां यूपी पैर्टन आजमाने की भरपूर कोशिश की गई, लेकिन बंगाल के पढ़े-लिखे समझदार मतदाताओं ने यूपी पैर्टन को खारिज कर दिया. प्रेक्षक मानते हैं कि यूपी चुनाव में अब खुद यूपी का पैर्टन चल नहीं पा रहा है. इस चुनाव के बाद सही मायनों में भाजपा की उलटी गिनती प्रारंभ हो जाएगी जिसका असर वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव में देखने को मिलेगा. यूपी चुनाव की एक खास बात यह भी है कि कल तक जो मुख्यधारा का मीडिया ( मतलब गोदी मीडिया ) अखिलेश और प्रियंका गांधी को सही ढंग से कव्हरेज नहीं करता था. अब वही मीडिया दोनों नेताओं को ठीक-ठाक जगह दे रहा है. कुछ बड़े अखबार और पत्रिकाओं ने तो बकायदा विशेष अंक भी प्रकाशित कर दिए हैं. द वीक और इंडिया टुडे ने अभी से स्थिति भांप ली है.गोदी मीडिया के बदलते व्यवहार को लेकर देश के प्रख्यात पत्रकार रवीश कुमार ने अपने फेसबुक वॉल पर एक बेहद जोरदार टिप्पणी लिखी है. यह टिप्पणी यह बताने के लिए काफी है कि ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है.
कवरेज से गायब विपक्ष कवर पर आने लगा है... अखिलेश आ रहे हैं क्या ?
विपक्ष कवर पर आने लगा है. पूरे चुनाव के दौरान यूपी के दो अख़बारों का कवरेज देखता रहा. ऐसा लगता था कि सपा के अखिलेश यादव पाँच सीट पर ही चुनाव लड़ रहे हैं. गोदी मीडिया ने अखिलेश को ग़ायब कर दिया. अगर अखिलेश चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें इन अख़बारों को मंगा कर पढ़ना चाहिए. उससे पता चलेगा कि वे यूपी में इतने बड़े नेता नहीं थे कि अख़बार उनकी पार्टी को जगह देते और यह भी पता चलेगा कि बिना मीडिया के चुनाव जीत सकते हैं. अगर नए मुख्यमंत्री में यह आत्मविश्वास आ जाएगा तो सरकार के पैसे से गोदी मीडिया का लालन पालन बंद हो जाएगा और जनता का पैसा बचेगा.
सबक योगी के लिए भी है. हारने पर भी और जीतने पर भी. गोदी मीडिया के एंकरों ने घटिया सवाल पूछ कर जनता की नज़र में उनकी हैसियत गिरा दी. योगी को यह खेल तब समझ नहीं आया होगा. उन्हें लगा होगा कि गोदी को चेक चला गया है तो ऐंकर हंसी ठिठोली कर रही है लेकिन इससे मोदी से भी बड़ा नेता बनने का सपना देखने वाले योगी की छवि ख़राब हो गई. गोदी एंकरों के सवालों ने फ़िक्स कर दिया कि उनके इंटरव्यू से कुछ ठोस न निकले. योगी का क़द छोटा होता रहे.
योगी को भी पता है कि परीक्षा में अच्छे अंक मुश्किल सवालों को हल करने पर मिलते हैं न कि अंदाज़ी टक्कर टिक मार्क करने पर. अगर योगी नहीं जीतते हैं तो सबसे पहले उन्हें गोदी मीडिया के हमले का ही सामना करना होगा. गोदी मीडिया उनकी हार को मोदी शाह का मास्टर स्ट्रोक बताएगा. कहेगा कि मोदी ने अपनी राह से काँटा निकाल दिया. योगी को यक़ीन नहीं होगा कि जिस गोदी मीडिया को इतने टुकड़े फेंके वह उनका मज़ाक़ उड़ा रहा है. योगी की हार पर पाला बदल रहा है.
अगर योगी जीत गए तब तो कोई बात नहीं. गोदी मीडिया को लेकर अपनी ग़लतियाँ जारी रखेंगे. फिर भी मुख्यमंत्री बनने पर योगी इतना तो समझ सकेंगे कि उनके विज्ञापनों का क्या हुआ. कवरेज से ग़ायब विपक्ष कवर पर कैसे आ गया?
क्या अखिलेश आ रहे हैं ?
पत्रकार प्रदीप कुमार लिखते हैं-
यही इंडिया टुडे है जिसने 10 साल पहले अखिलेश यादव पर कवर स्टोरी की थी और तफसील से बताया था की कैसे अखिलेश यादव उन दिनों कैबिनेट की मीटिंग में भी स्मार्ट फोन लेकर बिजी रहते थे.
कैसे बताया था कि लगभग तीन साल उन्हें समझ ही नही आया कि चल क्या रहा है सरकार में. सब नौकरशाह करते रहे . सब कुछ उनके इर्द गिर्द घेरा बनाए चापलूस मंडली निर्धारित करती रही.
आज उसी इंडिया टुडे ने अखिलेश यादव पर पॉजिटिव कवर स्टोरी की है तो लगता है बदलाव तय है इस बार.
जैसे मौसम बदलने का अंदाजा पशुओं पक्षियों के बरताव से लगाया जाता है उसी तरह इन मीडिया वाले चूहों से राजनीति की दिशा का अंदाजा लगाना कोई खास मुश्किल नहीं है.
रमन सिंह पर नहीं लगेगा दांव... तो फिर छत्तीसगढ़ में भाजपा से कौन होगा सीएम का चेहरा ?
रायपुर. वैसे तो छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की डुगडुगी 2023 में बजेगी, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा अभी से चल पड़ी है कि क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को फिर से आजमाएगा ? पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्र कहते हैं इस बार भाजपा विधानसभा का चुनाव रमन सिंह के चेहरे को सामने रखकर नहीं लड़ने वाली है. पार्टी को सामाजिक-राजनीतिक और जातीय समीकरण में फिट बैठने वाले एक ऐसे स्पार्किंग चेहरे की तलाश है जो कांग्रेस के लोकप्रिय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुकाबला कर सकने में सक्षम हो.
छत्तीसगढ़ में भाजपा की तरफ से वह सर्वव्यापी चेहरा कौन हो सकता है इसे लेकर कई तरह की बात कहीं जा रही है.भाजपा में जो दो-चार-दस नेता बचे हैं उन सबका गुट है. हर गुट की अलग-अलग बातें हैं. फिलहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं. प्रदेश में इस वर्ग की आबादी भी सबसे ज्यादा है. कहा जाता है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पिछड़े और आदिवासी वर्ग से ही चमत्कारिक व्यक्तित्व की तलाश कर रहा है. पिछड़े वर्ग से सबसे पहला नाम विजय बघेल का लिया जा रहा है. वैसे तो विजय बघेल वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के परिवार से हैं, लेकिन उन्होंने भाजपा में रहकर अपनी अलग राह बनाई है. सूत्रों का कहना है कि पार्टी सांसद विजय बघेल को सीएम के चेहरे के तौर पर प्रस्तुत करने की योजना पर काम कर रही है.
इसी क्रम में दूसरा बड़ा नाम वरिष्ठ नेता रमेश बैस का भी लिया जा रहा है. फिलहाल बैस छत्तीसगढ़ की राजनीति से दूर है, लेकिन कहा जाता है उन्हें जल्द ही छत्तीसगढ़ में सक्रिय होने के लिए निर्देशित किया जा सकता है. कुछ समय पहले तक नेता प्रतिपक्ष धर्मलाल कौशिक का नाम भी सुर्खियों में था,लेकिन उन्हें रमन सिंह गुट का माना जाता है इसलिए सीएम चेहरे के लिए उनकी संभावना क्षीण बताई जाती है. पिछड़े वर्ग के एक नेता अजय चंद्राकर अगर पूरे छत्तीसगढ़ का दौरा कर खुद को मंथने के तैयार होते हैं तो उनकी संभावनाओं को भी पंख लग सकते हैं लेकिन उनके आक्रामक स्वभाव और तेवर के चलते उनकी भूमिका सीमित भी रखी जा सकती है.
संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े सांसद सुनील सोनी का नाम भी अप्रत्याशित ढंग से लिया जा रहा है. इधर कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में आए ओपी चौधरी को भी एक गुट के लोग सीएम का चेहरा मानकर चल रहे हैं. इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि अगर भाजपा ने इस बार नए लोगों को सामने नहीं किया गया तो फिर से करारी हार का सामना करना पड़ सकता है. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व साहू समाज से भी किसी दमदार नेता की तलाश कर रहा है. गौरतलब है कि इस समाज के लोग भी बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ में निवास करते हैं और राजनीति में उनकी दखल को महत्वपूर्ण माना जाता है.
भाजपा की राजनीति को जानने-समझने वाले राजनीतिक धुरंधर मानते हैं कि अगर आदिवासी वर्ग से सीएम चेहरे को प्रोजेक्ट करने की बात आएगी हैं तो सबसे पहला नाम भाजपा के वरिष्ठ नेता रामविचार नेताम का ही रहने वाला है. नेताम मुखर होने के साथ-साथ दिल्ली दरबार में भी अपनी अच्छी-खासी पकड़ रखते हैं. सीएम चेहरे के लिए इसी वर्ग से दूसरा नाम नंदकुमार साय और विष्णुदेव साय का भी लिया जाता है.
फिलहाल छत्तीसगढ़ में भाजपा के कुल जमा 14 विधायक हैं. इन विधायकों में सबसे ज्यादा मुखर और योग्य बृजमोहन अग्रवाल ही हैं. प्रदेश में उनके समर्थकों की संख्या भी अच्छी-खासी हैं. भाजपा में उनकी गिनती संकट मोचक के तौर पर होती है. लेकिन पार्टी के भीतर का जो गुणा-भाग है उसे समझने के बाद यह लगता नहीं है कि उन्हें कभी सीएम के चेहरे के तौर पर प्रस्तुत भी किया जाएगा. बिलासपुर में निवास करने वाले कुछ पत्रकार गाहे-बगाहे अमर अग्रवाल का नाम भी उछालते रहते हैं, लेकिन अमर अग्रवाल के कट्टर समर्थकों की तरफ से कभी यह दावा सामने नहीं आया है कि अमर अग्रवाल किसी पोस्टर में अपनी बड़ी सी फोटू देखने के इच्छुक हैं. कमोबेश यही स्थिति भाजपा नेत्री सरोज पांडे और प्रेमप्रकाश पांडे की है. दोनों राजनीतिज्ञ जिस वर्ग से आते हैं वहां से उनकी संभावना नहीं के बराबर है.
कुछ लोग यह सवाल भी उठाते हैं कि जब 15 सालों तक डाक्टर रमन सिंह मुख्यमंत्री रह सकते हैं तो पार्टी उन्हें दोबारा मौका क्यों नहीं दे सकती ? पार्टी के एक जिम्मेदार सूत्र का कहना है कि वर्ष 2018 में रमन सिंह के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा गया था, तब करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इस पराजय के बाद से ही शीर्ष नेतृत्व को यह अहसास हो गया था कि रमन सिंह की लोकप्रियता का ग्राफ काफी गिर गया है. भाजपा आलाकमान अब कोई रिस्क लेने की स्थिति में नहीं है.अगर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनकी क्षमता पर भरोसा करता तो उनके बेटे को राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का मौका अवश्य दिया जाता. फिलहाल इस क्षेत्र के सांसद संतोष पांडे हैं. भले ही डाक्टर रमन सिंह राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें मार्गदर्शक मंडल में शामिल होने वाली स्थिति में लाकर छोड़ दिया है. पार्टी में रमन सिंह की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें यूपी जैसे महत्वपूर्ण चुनाव में प्रचार के लिए भी आमंत्रित नहीं किया गया है. तमाम तरह की कवायद के बावजूद छत्तीसगढ़ में भाजपा भूपेश बघेल सरकार को घेर सकने वाली स्थिति से दूर हैं. फिलहाल छत्तीसगढ़ में कोई नहीं हैं टक्कर में...कहां लगे हो चक्कर में जैसा स्लोगन गुंजायमान हो रहा है. इस स्लोगन के लोकप्रिय होने की एक बड़ी वजह यह भी है कि छत्तीसगढ़ की भीतरी तहों में छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की आंधी चल रही है. अब सतना और रीवा की ठकुराई यहां शायद ही चल पाय.
चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता विश्वविद्यालय की घोषणा...जनभावना का सम्मान
परदेशीराम वर्मा
छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने जनभावना के अनुरूप निर्णय लिया है.राजिम में राजिम मेला प्रारंभ कर इस तीर्थ को पुनः छत्तीसगढ़ी परंपरा से जोड़ दिया गया. गांव गंध से जुड़े आयोजन की सफलता और जन स्वीकृति से यह स्पष्ट हो गया है कि छत्तीसगढ़ के लोग अपने प्रदेश की पहचान के लिए भीतर ही भीतर छटपटा रहे थे. भूपेश बघेल और उनके साथियों ने इस छटपटाहट को दशकों पहले जान- समझ लिया था. वे प्रतिपक्ष मे थे तब भी छत्तीसगढ़ी परंपराओं की स्थापना के लिए संघर्ष की राजनीति करते थे. तभी छत्तीसगढ़ के आमजन को लग गया था कि जब छत्तीसगढ़ की असल पहचान के लिए संकल्पित राजनीतिक दल को सत्ता मे आने का अवसर मिलेगा तब छत्तीसगढ़ की आत्मा की पहचान की दिशा मे ठोस निर्णय होंगे.
पत्रकारिता विश्वविद्यालयका नाम चंदूलाल च॔द्राकर के सिवाय किस विभूति के नाम पर रखा जा सकता है यह सोचकर ही लोग थक जाते हैं दूसरा कोई ही नहीं सूझता. इसका कारण है यह है कि चंदूलाल जी ऐसे पहले छत्तीसगढ़ी सपूत हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ के एक गांव से निकलकर देश में एक श्रेष्ठ पत्रकार के रूप में पहचान बनाई. वे 148 देशों मे घूमे. छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के ऐतिहासिक और निर्णायक दौर में उन्होंने नेतृत्व किया. इसकी उन्होंने कीमत भी चुकाई. वे प्रवक्ता के पद पर थे. उनसे यह पद छीन लिया गया.
वे दिल्ली और दुनिया में साक्षात जीवंत छत्तीसगढ़ी माने जाते थे. एक अच्छे छत्तीसगढ़ी की तरह सहिष्णु- परोपकारी और अहिंसक थे. उनके नेतृत्व में छत्तीसगढ़ राज्यआंदोलन को जो ऊंचाई मिली उसी का सुखद परिणाम रहा कि हमें बेहद शांतिपूर्ण तौर-तरीकों से अपना छत्तीसगढ़ राज्य मिल गया. मैं मानता हूं कि पत्रकारिता विश्वविद्यालय का गौरव उनके नाम के जुड़ने से ही बढ़ गया है. यहां किसी को कमतर आंकने का भाव नही है. सोचना यह चाहिए कि निर्णय के पीछे भाव क्या है ? छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार छत्तीसगढ़ के गौरव को बढ़ाने और बचाने का संकल्प लेकर ही सत्ता मे आई है. वह तमाम साहसिक निर्णय यूं ही नही ले रही है. ये निर्णय आकांक्षा और प्रतिबद्धता को समझने की उसकी क्षमता का परिचायक है. छत्तीसगढ़ राज्य की अपनी विशिष्ट पहचान बने यह प्रयत्न करना और सत्ता में आकर लंबे समय तक बने रहने की अनिवार्य शर्त का ह पहला पाठ भी है. उस पाठ को लगातार पढ़ और समझकर जिन लोगों ने सही राजनीति की हैं वे सत्ता में आ गए हैं. ऐसे निर्णय से वे बंधे और वचनबद्ध हैं.
आम आदमी ईमान और संकल्प के साफ और बड़े अक्षरों मे लिखे हुए घोषणा पत्र पढ़ पाता है. वह दांव- पेंच नही समझना चाहता. छत्तीसगढ़ियों ने भी सब कुछ जान-परख कर इस सरकार को मौका दिया है. भूल सुधार करते चलना इस सरकार का कर्तव्य है. अगर कोई पुरानी भूल हुई है तो उसे सुधार लेना अच्छी बात है.
चंदूलालजी के साथ वासुदेव च॔द्राकर को नमन कर सरकार ने अपना मान बढ़ाया है. छत्तीसगढ़ मे आज राजनीति क्षेत्र के जगमग कांग्रेसी सितारों को आसमान में स्थापित करने मे सफल रहे दाऊ वासदेव च॔द्राकर से जुड़कर कामधेनु विश्वविद्यालय का यश बढ़ गया है. वासुदेव चंद्राकर ही थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत को समझकर राजनीति करने का गुरूमंत्र अपने शिष्यों को दिया था. वे संकल्प लेकर और ताल ठोंककर राजनीतिक घोषणा करते थे. वासुदेव चंद्राकर संस्कृति प्रेमी धर्मनिष्ठ दूरदृष्टि सम्पन्न राजनेता थे. छतीसगढ़ के ऐसे दिग्गज गुरू के अप्रतिम प्रतिभाशाली शिष्यसिद्ध हुए भूपेश बघेल. वर्तमान मंत्रिमंडल के अमूमन सभी सदस्यों को दाऊ जी से मार्गदर्शन और स्नेह मिलता रहा है. पुरखों के सपनों का छत्तीसगढ़ बनाना जिनकी वचनवद्धता का हिस्सा है वे आगे बढ़ रहे हैं. कुछ नारे यूं ही नही बनते.
अभी तो यह अंगड़ाई है
आगे और
लड़ाई है.
भाजपा ने किया कुशाभाऊ ठाकरे का अपमान
भिलाई. भिलाई की प्रथम महापौर सुश्री नीता लोधी ने चंदूलाल चन्द्राकर पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय नामकरण का स्वागत करते हुए इसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा छत्तीसगढिय़ा अस्मिता का सम्मान बताया है. उन्होंने कहा कि कुशाभाऊ ठाकरे भारतीय जनता पार्टी अथवा राष्ट्रीय स्वयं संघ के लिए उल्लेखनीय व्यक्तित्व हो सकते हैं, लेकिन उनका नाम पत्रकारिता विश्वविद्यालय से जोड़ कर भारतीय जनता पार्टी ने ही उनका अपमान किया है। क्या भाजपा-संघ के विचारक बता सकते हैं कि स्व. ठाकरे का पत्रकारिता में क्या योगदान था?
उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार के इस कदम का विरोध करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि नाम बदलने की परिपाटी भारतीय जनता पार्टी की रही है, जिसने छत्तीसगढ़ में 2003 में अपनी सरकार बनाते ही खुर्सीपार भिलाई के राजीव गांधी स्टेडियम का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय खेल परिसर कर दिया था. जबकि वहां भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की प्रतिमा पहले ही स्थापित की जा चुकी थी और इसका लोकार्पण तत्कालीन मुख्यमंत्री के हाथों किया जा चुका था. आज भी लोग यह नहीं भूले हैं, जब विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी तब भी बुद्धिजीवी वर्ग ने इस नामकरण पर आपत्ति जताई थी. सुश्री नीता लोधी ने कहा कि नाम बदलने की परिपाटी भाजपा की रही है जिसमें न सिर्फ खुर्सीपार खेल परिसर का नाम बदला गया था बल्कि इंदिरा शहरी धरोहर योजना,राजीव आश्रय योजना और इंदिरा हरेली सहेली योजना तक का नाम बदल दिया गया था. क्या मध्यप्रदेश या देश के दूसरे हिस्से में बैठे भाजपा-संघ के विचारक तब इससे अंजान थे? आज पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर धमकी भरे अंदाज में कह रहे हैं कि भाजपा सरकार आएगी तो गांधी-नेहरू जैसी विभूतियों के नाम हटा देगी, तो यह उनका वैचारिक सतहीपन दर्शाता है. छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार ने पिछले 15 साल में विभूतियों के नाम में परिवर्तन करने का काम खूब किया है.
सुश्री नीता लोधी ने कहा कि पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नामकरण अगर दिग्गज पत्रकार स्व. चंदूलाल चंद्राकर के नाम पर किया गया है तो यह बिल्कुल सही कदम है. पिछली सरकार की गलती को सुधार कर छत्तीसगढ़ की अस्मिता की रक्षा कर माटी को सम्मानित कर एक अच्छी सरकार होने का दायित्व निभाया है. चंदूलाल चंद्राकर छत्तीसगढ़ की मिट्टी से जुड़े व्यक्तित्व थे और कांग्रेस के घोषणापत्र में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना का संकल्प शामिल करवाने वाले स्व. चंद्राकर ही थे.अगर स्व. चंद्राकर छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्वदलीय मंच का गठन कर आंदोलन नहीं छेड़ते तो शायद ही कभी छत्तीसगढ़ का निर्माण हो पाता.
जहां तक स्व. चंदूलाल चंद्राकर के पत्रकारिता में योगदान का प्रश्न है तो यह किसी से छिपा नहीं है कि छत्तीसगढ़ की माटी से निकले वे आज तक भी एकमात्र पत्रकार हैं, जिन्होंने ओलंपिक खेलों से लेकर युद्ध तक की रिपोर्टिंग 100 से ज्यादा देशों में की है. महात्मा गांधी की अंतिम प्रार्थना सभा में भी वे मौजूद थे और बापू की हत्या की कायराना वारदात की उन्होंने रिपोर्टिंग की थी. हिंदुस्तान जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र में संपादक होने वाले भी वह छत्तीसगढ़ की इकलौती विभूति हैं. अगर ऐसे माटीपुत्र को सम्मान दिया जा रहा है तो इसका स्वागत होना चाहिए.
नीता लोधी ने अन्जोरा के कामधेनु विश्वविद्यालय का नाम प्रख्यात किसान नेता एवं सहकारिता नेता स्व. वासुदेव चंद्राकर के नाम पर रखे जाने का भी स्वागत किया श्री चंद्राकर किसानों की समस्या को लेकर आवाज उठाते रहे है. सत्ता पक्ष मे रहते हुए भी उन्होने समय समय पर आंदोलन किए और वर्ष 2002 में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की शुरूआत किए जाने पर उनके योगदान को भुलाया नही जा सकता.
एक्शन लेने वाले सीएम के साथ अमेठी में सुशील ओझा भी
रायपुर. कांग्रेस आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर जबरदस्त भरोसा जताया है. आने वाले दिनों में भूपेश उत्तर प्रदेश की कई सभाओं में हिस्सेदारी दर्ज करेंगे. फिलहाल बघेल ने कल गुरुवार से ही अमेठी में डेरा डाल दिया है. उनके साथ गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुशील ओझा भी गए हुए हैं. बघेल 26 अप्रैल को अमेठी के बरसण्डा बाजार में एक सभा को संबोधित करेंगे. उसके बाद वे तिरहुत बल्दिराय सुल्तानपुर जाएंगे. इसी दिन वे रायबरेली के गांव सांगो और सरांवा में भी आम सभा को संबोधित करेंगे. गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में बंपर जीत के बाद बघेल की लोकप्रियता में जमकर इजाफा हुआ है. फिलहाल जिन तीन राज्यों में कांग्रेस को जीत मिली है वहां सबसे अच्छी पोजीशन छत्तीसगढ़ की मानी जा रही है. भूपेश की पहचान एक्शन लेने वाले मुख्यमंत्री के तौर बन गई है. उनके एक के बाद लिए गए एक्शन को लेकर देशव्यापी चर्चा भी चल रही है.
भूपेश, रमन और जोगी 7 फरवरी को एक मंच पर
रायपुर. राजनीति के तीन धुर विरोधी सात फरवरी को एक मंच पर नजर आने वाले हैं. ऐसे समय जब भाजपा सत्ता से बाहर है और कांग्रेस की सरकार है तब आईएनएच चैनल ने टाटा स्काई पर के लांचिग अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बतौर मुख्य अतिथि, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को मुख्य वक्ता और पन्द्रह सालों तक प्रदेश में काबिज रहने वाले रमन सिंह को कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया है. जाहिर सी बात है कि जब तीनों नेताओं से अनुमति मिल गई होगी तभी कार्ड में नाम भी छापा गया है. मीडिया से जुड़े लोग और राजनीति के पंड़ित इस कार्यक्रम का अलग-अलग अर्थ ढूंढ रहे हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि तीन महारथियों का एक साथ मंच पर मौजूद रहना कार्यक्रम को दिलचस्प बना सकता है.
वैसे राजनीति के धुंरधरों को एक मंच पर लाना आसान नहीं होता, लेकिन यह कमाल कर दिखाया है हरिभूमि के प्रधान संपादक हिमांशु द्विवेदी ने.यहां यह बताना भी जरूरी है कि श्री द्विवेदी पिछले कुछ समय से अपने नाम के आगे डाक्टर लिखते हैं, लेकिन वे वैसे वाले डाक्टर नहीं है जैसे रमन सिंह है. वे नाड़ी देखकर पर्ची में छोटी-छोटी सफेद गोली लिखने वाले आयुर्वेदिक चिकित्सक नहीं है, उन्हें जनता और विशेषकर राजनीति की नब्ज को तपासने में मास्टरी हासिल है. फिलहाल उनके मुकाबले में कोई दूसरा खड़ा हो भी नहीं पाया. ( हालांकि कोशिश कई मूर्धन्यों ने की मगर वे थक-हारकर बैठ गए ) उनका हर काम ( कार्यक्रम ) चर्चा के केंद्र में रहता है. प्रदेश के तमाम स्वनामधन्य अखबार के मालिक और उनके वरिष्ठ संवाददाता नई सरकार के बनते ही जब यह सोच रहे थे कि अब- तब में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का इंटरव्यूह कर लेंगे तब हिमांशु द्विवेदी आईएनएच पर बघेल का इंटरव्यूह कर रहे थे. उधर आईएनएच में इंटरव्यूह प्रसारित हो रहा था और इधर राजधानी के कई इलाकों में मौजूद अखबार और चैनलों के दफ्तरों के आसपास की झाड़ियों में भीषण आग लगी हुई थी. राजनीति, प्रशासन और मीड़िया के बहुत से मूर्धन्यअब भी यह जानने के लिए माथा-पच्ची कर रहे हैं कि आखिरकार यह कमाल हुआ तो हुआ कैसे. बहरहाल अंतागढ़ टेपकांड, झीरम घाटी सहित अन्य कई मामलों में जांच प्रारंभ होने और बदलापुर-बदलापुर जैसी चीख-पुकार के बीच सात फरवरी को नेताओं के चेहरों के हाव-भाव को देखना-पढ़ना और उन्हें सुनना एक अलग तरह का अनुभव हो सकता है.
जोकर है कुरुद का लबरा अजय चंद्राकर
रायपुर. छत्तीसगढ़ की विधानसभा में सोमवार को अजीब नजारा देखने को मिला. सदन के भीतर विपक्ष के मुट्ठी भर सदस्य इस बात को लेकर हंगामा मचा रहे थे कि धारा 144 लागू होने के बाद भी विधानसभा गेट के सामने प्रदर्शन हो रहा है, लेकिन विपक्षी यह बताने को तैयार नहीं थे कि प्रदर्शन क्यों और किस बात के लिए हो रहा था और प्रदर्शनकारी कौन थे. जैसा कि आप इस खबर के साथ चित्र को देख सकते थे. चित्र में साफ दिख रहा है कि लोगों के हाथों में तख्तियां है और तख्तियों में लिखा है- जो वादा किया है वह निभाना पड़ेगा. कुरुद का लबरा अजय चंद्राकर जोकर है... आदि-आदि. सामान्य तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ही डाक्टर रमन सिंह को लबरा और मिठलबरा कहते रहे हैं, लेकिन पहली बार तख्तियों में यह तंज पूर्व पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर के लिए भी देखा गया.
इसलिए हुआ प्रदर्शन
दरअसल जब कांग्रेस के भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थीं तब पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर ने सोशल मीडिया में यह पोस्ट डाली थी कि अगर कांग्रेस दस दिनों के भीतर किसानों का कर्ज माफ कर देगी तो वे विधायक पद से इस्तीफा दे देगें. कांग्रेस ने दस दिनों में यह काम कर दिखाया तो चंद्राकर से इस्तीफा मांगने वालों की संख्या में इजाफा हो गया. चंद्राकर के इस्तीफे के सवाल पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना था- अब यह उनके विवेक पर निर्भर करता है कि वे इस्तीफा देते हैं या नहीं. इधर चंद्राकर से इस्तीफा मांगने के लिए दबाव बढ़ता ही जा रहा है. प्रदर्शनकारियों ने तय किया है कि अब अजय चंद्राकर जिस किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में हिस्सेदारी दर्ज करेंगे उनके खिलाफ प्रदर्शन किया जाएगा और इस्तीफा मांगा जाएगा.
क्यों है इतनी बौखलाहट
विपक्ष के सदस्यों ने जब धारा 144 के उल्लंघन को लेकर हंगामा मचाया तो संसदीय कार्यमंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि हमने अच्छे ढंग से देखा है कि पन्द्रह सालों में कितनी बार संसदीय परम्पराओं का पालन किया गया है. विपक्षी सदस्य बार-बार खड़े होकर आपत्ति जताने लगे तो मुख्यमंत्री ने यह कहकर टोका कि बोलने के पहले आसंदी से अनुमति ले लेनी चाहिए. मुख्यमंत्री ने कहा कि विपक्ष के भीतर बौखलाहट देखने को मिल रही है. सदन के बाहर भी जब पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह ने पुलिस अफसर कल्लूरी की नियुक्ति को लेकर नसीहत दी तो बघेल ने कहा- पन्द्रह सालों में नौकरशाहों ने जो कुछ किया है वह किसी से छिपा नहीं है. सवाल घुड़सवारी का है. पिछली सरकार नौकरशाहों के भरोसे चलती थी उनकी सरकार नौकरशाहों से कैसे काम लेना है यह अच्छी तरह से जानती है.
पेट्रोल-डीजल के दामों में जारी है गिरावट का दौर, जानें आज का भाव
नई दिल्ली: पेट्रोल और डीजल के दाम में रविवार को लगातार 11वें दिन गिरावट का सिलसिला जारी रहा. पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में आई गिरावट के बाद पेट्रोल और डीजल के दाम में उपभोक्ताओं को थोड़ी और राहत मिल सकती है.
ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने दिल्ली और कोलकाता में पेट्रोल के भाव में 30 पैसे प्रति लीटर की कटौती की, जबकि मुंबई में पेट्रोल के दाम में 29 पैसे और चेन्नई में 32 पैसे प्रति लीटर की कटौती की गई. दिल्ली और कोलकाता में डीजल के दाम में 33 पैसे, जबकि मुंबई और चेन्नई में 35 पैसे प्रति लीटर की कटौती की गई.
इंडियन ऑयल की वेबसाइट के अनुसार, दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई में रविवार को पेट्रोल के भाव क्रमश: 72.23 रुपये, 74.25 रुपये, 77.80 रुपये और 74.94 रुपये प्रति लीटर दर्ज किए गए. चारों महानगरों में डीजल की कीमतें क्रमश: 67.02 रुपये, 68.75 रुपये, 70.15 रुपये और 70.77 रुपये प्रति लीटर दर्ज की गईं.
एंजेल ब्रोकिंग हाउस के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट अनुज गुप्ता (रिसर्च कमोडिटी व करेंसी) की मानें तो पेट्रोल और डीजल के दाम में दो से तीन रुपये की कमी हो सकती है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम में तीन अक्टूबर के बाद करीब 27 डॉलर प्रति बैरल की कमी आई है.
इंडियन ऑयल का कहना है कि पेट्रोल और डीजल का दाम तय करते समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनके पिछले 15 दिन के औसत मूल्य और साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर को गणना में लिया जाता है.
आगे और मिल सकती है राहत
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट जारी है जिसका असर यहां भारत में देखने को मिल रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर माह क्रूड ऑयल के लिए पिछले 10 वर्ष का सबसे खराब वर्ष रहा. शुक्रवार को वायदा ब्रेंट क्रूड 60 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गया.
अजित जोगी की तबियत फिर खराब, मुम्बई के अस्पताल में भर्ती
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री व जनता कांग्रेस के संस्थापक मुखिया अजित जोगी की तबियत एक बार फिर खराब हो गई है उन्हें इलाज के लिए बॉम्बे अस्पताल में भर्ती कराया गया है. बताया जा रहा है की अजित जोगी को साँस लेने में दिक्कत हो रही है सूत्रों ने बताया की उनकी हालत में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है और वह 5-7 दिसंबर तक रायपुर आ सकते हैं ।
12वीं पास हैं तो यहां है ट्रेनिंग करने का मौका, सफल होने के बाद 21,700 रुपए की सैलरी दी जाएगी
एजेंसी
न्यूक्लियर पावर कॉरपेरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने ट्रेनी ऑपरेटर और ट्रेनी मेंटेनर के पदों के लिए आवेदन मंगाए हैं. NPCIL इस नोटिफिकेशन के माध्यम से 122 पदों पर भर्तियां करने वाला है. इच्छुक और योग्य व्यक्ति 14 नवंबर तक ऑफिशियल वेबसाइट npcilcareers.co.in पर जाकर ऑनलाइन अप्लाई कर सकते हैं.
- 12वीं पास, साइंस और मैथ्स में 50 प्रतिशत अंक या आईएससी (साइंस सब्जेक्ट).
- एसएससी लेवल की परीक्षा में एक विषय के रूप में इंग्लिश भाषा की पढ़ाई की हो.
ट्रेनी मेंटेनर
- एचएससी में 50 प्रतिशत अंकों के साथ साइंस-मैथ्स. इसके अलावा इलेक्ट्रोनिक, इलेक्ट्रिशियन, मशीनिस्ट, टर्नर, फिटर तथा वेल्डर में 2 साल का आईआईटी सर्टिफिकेट, जिन ट्रेड्स में पाठ्यक्रम की अवधि 2 साल से कम है उनमें कैंडिडेट्स के पास कोर्स खत्म करने के बाद एक साल का एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट होना चाहिए.
- एसएससी लेवल की परीक्षा में इंग्लिश एक सबजेक्ट के रूप में पढ़ा हो.
आयु सीमा-
उम्मीदवारों की उम्र 18 साल से 24 साल के बीच होनी चाहिए. आरक्षित वर्गों को आयु सीमा में छूट भी दी जाएगी. अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाकर ऑफिशियल नोटिफिकेशन देख लें- https://npcilcareers.co.in/RAPSST2018/documents/advt.pdf
सैलरी-
सफल उम्मीदवारों को स्टाइपेंड दिया जाएगा. पहले साल 10500 रुपए प्रतिमाह और दूसरे साल 12500 रुपए प्रतिमाह दिया जाएगा. ट्रेनिंग खत्म होने के बाद 21, 700 रुपए की सैलरी दी जाएगी.
10वीं पास के लिए RBI में निकली वैकेंसी , 30 नवंबर तक करें आवेदन
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने सिक्योरिटी गार्ड के पद पर 270 वैकेंसी निकाली हैं। इन पदों को लिए www.rbi.org.in पर जाकर आवेदन किया जा सकता है। वैकेंसी देश के 18 शहरों के लिए निकाली गई हैं। ऑनलाइन आवेदन की अंतिम तिथि 30 नवंबर, 2018 है। ऑनलाइन फीस पेमेंट 30 नवंबर 2018 तक की जा सकती है। पटना में 13. लखनऊ में 9, कानपुर में 12, जयपुर में 16, नई दिल्ली में 5, चंडीगढ़ में 7, अहमदाबाद में 11, भोपाल में 7, मुंबई में 80 वैकेंसी हैं। कुल 270 में से 30 सीटें एससी, 37 एसटी और 52 सीटें ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित रखी गई हैं।
योग्यता
आयु सीमा - 18 से 25 वर्ष। ओबीसी वर्ग को तीन वर्ष और एससी, एसटी वर्ग को पांच की छूट दी जाएगी। (आयु की गणना 01/11/2018 से की जाएगी।
शैक्षणिक योग्यता
10वीं पास उम्मीदवार इन भर्तियों के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- ग्रेजुएट्स व उससे ऊपर की क्वालिफिकेशन रखने वाले युवा इस भर्ती के लिए आवेदन नहीं कर सकते। उम्मीदवार 01/11/2018 तक अंडरग्रेजुएट हो।
वेतनमान - 10940-380 (4)-12460- 440(3) -13780-520(3)-15340-690 (2)-16720- 860(4) – 20160-1180 (3)- 23700 (20 वर्ष) एवं अन्य भत्ते
चयन
उम्मीदवार की सबसे पहले ऑनलाइन लिखित परीक्षा होगी। इसके बाद शॉर्टलिस्ट उम्मीदवारों का फिजिकल टेस्ट होगा। फिजिकल टेस्ट केवल क्वालिफाई करना होगा। इसके नंबर फाइनल मेरिट में नहीं जुड़ेंगे। फाइनल मेरिट लिस्ट ऑनलाइन लिखित परीक्षा के आधार पर बनेगी।