विशेष टिप्पणी
अब तो बाजारों में लोग कहने लगे हैं-कन्हैया अग्रवाल को टिकट मिलती तो जीत जाते !
एक शादी समारोह में छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेता कन्हैया अग्रवाल के बारे में चर्चा चल रही थीं.समारोह में उपस्थित पत्रकारों का मानना था कि अगर कांग्रेस ने दक्षिण विधानसभा सीट में कन्हैया अग्रवाल पर दांव आजमाया होता तो भाजपा के सुनील सोनी को विधायक बनने का अवसर नहीं मिल पाता.
चर्चा में कुछ और बातें जुड़ने ही वाली थीं कि कन्हैया अग्रवाल भी अपनी पत्नी के साथ समारोह में पहुंच गए. पत्रकारों ने लंबी उम्र का हवाला दिया और एक बार फिर से दोहराया कि वास्तव में कन्हैया अग्रवाल को दोबारा मौका मिलता तो फतह निश्चित थीं.
कन्हैया अग्रवाल की पत्नी मीनाक्षी अग्रवाल एक फीकी सी मुस्कान के साथ पत्रकारों की बातों को सुन रही थीं.उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा. बस...एक दो-बार आंचल को समेटा.आकाश में विराजमान नीली छत्तरी वाले की तरफ देखा और हाथ जोड़कर प्रार्थना की मुद्रा बनाई. इस प्रार्थना में किसी तरह की कोई शिकायत शामिल थीं...दर्द या अफसोस...कुछ भी कह पाना थोड़ा मुश्किल है.
बातों-बातों में पता चला कि अब कन्हैया अग्रवाल जहां कहीं भी जा रहे हैं लोग कह रहे हैं-कन्हैया भाई... अगर आपको टिकट मिलती तो आप निश्चित तौर पर जीत जाते.
लोगों के ऐसा कहने की कई वजह है. सबसे बड़ी वजह तो यह है कि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल से 17 हजार 496 मतों से पराजित हो जाने के बावजूद कन्हैया अग्रवाल दक्षिण विधानसभा में पूरे पांच साल सक्रिय थे. वे लगातार आंदोलन कर रहे थे और लोगों को यह बता रहे थे कि जो विकास पश्चिम विधानसभा सीट पर नजर आता है वह दक्षिण विधानसभा सीट पर गायब है. वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में उन्हें उम्मीद थीं कि कांग्रेस उन्हें कम से कम एक बार और अवश्य मौका देगी, लेकिन कांग्रेस ने महंत रामसुंदर दास को आजमाया. महंत रामसुंदर दास हार गए.
बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बन जाने के बाद जब दक्षिण सीट पर उपचुनाव की बारी आई तो एक बार फिर लगा कि कांग्रेस उन्हें आजमाएगी...लेकिन पार्टी ने युवक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आकाश शर्मा को मौका दिया. आकाश शर्मा की पराजय के साथ ही राजनीतिक प्रेक्षक यह कहने को मजबूर हुए हैं कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को पैर पर कुल्हाड़ी नहीं बल्कि कुल्हाड़ी पर पैर मारने में ही आनंद हासिल होता है.
अचानक जुड़ा आकाश का नाम
दक्षिण सीट से कांग्रेस का प्रत्याशी कौन होगा..? इसे लेकर दो-तीन तरह के सर्वे हुए थे. सभी सर्वे में कन्हैया अग्रवाल और प्रमोद दुबे का नाम प्रमुखता से रखा गया था. बताते हैं कि एक अंतिम सर्वे में आकाश शर्मा का नाम जुड़ा. इस सर्वे में कन्हैया अग्रवाल पूरी तरह से गायब कर दिए गए जबकि प्रमोद दुबे का नाम रह गया...लेकिन नाम पर अंतिम मुहर लगने से पहले प्रमोद दुबे भी सूची से नदारत थे. सूत्र कहते हैं कि 20 अक्टूबर की रात को एक होटल में बैठक हुई तब कांग्रेस के बड़े नेता किसी भी एक नाम पर सहमत नहीं थे. एक वरिष्ठ नेता ने ज्ञानेश शर्मा को योग्य प्रत्याशी बताया तो दूसरे बड़े नेता ने प्रमोद दुबे को जीतने वाला प्रत्याशी माना. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष दीपक बैजआकाश शर्मा को टिकट दिए जाने को लेकर अड़े हुए थे वहीं वरिष्ठ कांग्रेस नेता धनेंद्र साहू ने पूरी डिटेल के साथ कन्हैया अग्रवाल की पैरवी की और कन्हैया को दोबारा मौका देने के लिए जोर लगाया.अततः प्रदेश अध्यक्ष की सुनी गई और आकाश शर्मा का नाम फायनल कर दिया गया.
दीपक बैच की क्षमता पर उठे सवाल ?
अब जबकि आकाश शर्मा भाजपा के सुनील सोनी से 46 हजार से अधिक मतों से पराजित हो चुके हैं तब प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज की प्रत्याशी चयन क्षमता को लेकर सवाल उठ रहे हैं. वैसे तो बैज जबसे प्रदेश अध्यक्ष के पद पर काबिज हुए हैं तब से उनकी योग्यता और क्षमता को लेकर कांग्रेस के अंदरखानों में सवाल ही उठ रहे हैं. कतिपय कांग्रेसियों का कहना है कि उनमें वो स्पार्क नहीं है जो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल के पास मौजूद है. कुछ कांग्रेसियों का कहना है कि दीपक बैज बोलते बहुत अच्छा है...लेकिन उनको देखकर लगता है कि जैसे वे अभी-अभी हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास करके निकले हैं. कांग्रेसियों के एक धड़े का मानना है कि उनके भीतर कांग्रेस में जान फूंक देने वाला मटेरियल मौजूद नहीं है.
चुनाव के बाद पलटकर नहीं देखते कांग्रेसी
दक्षिण विधानसभा सीट के बारे में एक बात बड़ी मशहूर है. कहा जाता है कि इस सीट पर जितने अधिक भाजपा के कार्यकर्ता है उससे कहीं ज्यादा फूलछाप कांग्रेसी विद्यमान है.अब इस बात में कितनी सच्चाई यह तो नहीं मालूम लेकिन राजनीति के गलियारों में यह चर्चा हमेशा कायम रहती है कि दक्षिण विधानसभा सीट पर कांग्रेस की टिकट पर कौन लड़ेगा यह कांग्रेसी नहीं बल्कि बृजमोहन अग्रवाल तय करते हैं. वैसे एक बात सत्य है कि कांग्रेस ने भाजपा के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल के सामने हर बार नए प्रत्याशी को मैदान पर उतारा है.हर प्रत्याशी दमखम के साथ चुनाव समर में उतरता है लेकिन जब पराजित हो जाता है तो फिर दक्षिण विधानसभा सीट की तरफ पलटकर नहीं देखता.केवल कन्हैया अग्रवाल ही ऐसे थे जिनकी सक्रियता बनी हुई थीं. दक्षिण रायपुर सीट पर कांग्रेस की तरफ से अब तक स्वरुपचंद जैन,राजकमल सिंघानिया, पारस चोपड़ा, गजराज पगारिया,योगेश तिवारी, किरणमयी नायक और महंत रामसुंदरदास चुनाव मैदान में उतर चुके हैं. बृजमोहन अग्रवाल के हाथों पराजित होने के बाद स्वरुपचंद जैन ने खल्लारी विधानसभा सीट से टिकट मांगी थीं. राजकमल सिंघानिया बिल्लईगढ़ और कसडोल शिफ्ट हो गए. गजराज पगारिया की इच्छा जगदलपुर से चुनाव लड़ने की थीं. बताते हैं कि उनकी टिकट फायनल भी हो गई थीं लेकिन फिर नाम कट गया. योगेश तिवारी जब तक अजीत जोगी के साथ थे तब तक ताबड़तोड़ आंदोलन करते थे. उनके बारे में यह भ्रम भी फैल गया था कि वे ही एकमात्र प्रत्याशी है जो बृजमोहन अग्रवाल को टक्कर दे सकते हैं लेकिन वे 25 हजार वोटों से हार गए और इन दिनों भाजपा में हैं. किरणमयी नायक धरसींवा से लड़ने की इच्छुक थीं और महंत रामसुंदर दास पराजित होने के बाद पार्टी छोड़कर घर बैठ गए हैं. राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि कांग्रेस ने दक्षिण सीट पर रहने वाले मतदाताओं के मन को कभी भी ठीक ढंग से टटोलने का काम नहीं किया. इस सीट के मतदाता भी बढ़ते हुए अपराध.. बिजली की बढ़ी हुई दर... खराब सड़क... खेल का ठीक-ठाक मैदान... सौ बिस्तर वाला सरकारी अस्पताल नहीं होने से परेशान है. मतदाता भी बदलाव के पक्षधर है, लेकिन जब उनके सामने कोई श्रेष्ठ विकल्प दिखाई नहीं देता तो फिर वे उस प्रत्याशी को भी चुन लेते हैं जिसके ऊपर निष्क्रिय होने का ठप्पा लगा हुआ है.
नी मामा से काणा मामो अच्छो.
इस कहावत का अर्थ तो जानते हैं न आप ?
राजकुमार सोनी
98268 95207