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आखिरकार रामा बिल्डकॉन पर क्यों मेहरबान है छत्तीसगढ़ सरकार ?
रायपुर. छत्तीसगढ़ के कतिपय बड़े बिल्डरों में राजेश अग्रवाल उर्फ बुतरु का नाम शुमार है. बताते है कि राजेश अग्रवाल पहले कोरबा में रहते थे और दवाईयों के कारोबार से जुड़े थे, लेकिन अब रामा बिल्डकॉन में एक भागीदार है. वैसे छत्तीसगढ़ में बिल्डरों का एक धड़ा अंग्रेजी में RAMA को उल्टा यानी AMAR करके भी पढ़ता है. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि इस बिल्डकॉन को एक पूर्व मंत्री का संरक्षण मिलता रहा है. लोग यह बात इसलिए भी कहते हैं क्योंकि पूर्व मंत्री ने बिल्डकॉन की ओर से बनाए गए एक फार्म हाउस में ही अपने किसी निजी आयोजन को धूमधाम से संपन्न किया था. पूर्व मंत्री के बिल्डकॉन के सभी कर्ताधर्ताओं से गहरे तालुकात है. इधर बीते एक हफ्ते से सोशल मीडिया में ( जिन्हें विज्ञापन मिलता है उस मीडिया में नहीं ) रामा बिल्डकॉन के कारनामों को लेकर तरह-तरह की खबरें चल रही है. खबर है कि सरकार के राजस्व विभाग ने राजधानी रायपुर के बेशकीमती इलाके अमलीडीह में कॉलेज के लिए आरक्षित 3.203 हेक्टेयर यानी करीब नौ एकड़ जमीन रामा बिल्डकॉन को सौंप दी है. खबर एकदम सही है क्योंकि सोशल मीडिया में राजस्व विभाग की तरफ से नियमों और शर्तों के साथ रामा बिल्डकॉन के लिए जारी किया गया आदेश भी तैर रहा है.
मचा हुआ है बवाल
बताते हैं कि कांग्रेस के शासनकाल में विधायक सत्यनारायण शर्मा की पहल पर अमलीडीह की बेशकीमती जमीन को सरकारी नवीन महाविद्यालय बनाने के लिए आरक्षित किया गया था, लेकिन सत्ता के परिवर्तन होते ही इसी साल 28 जून को बेशकीमती जमीन रामा बिल्डकॉन के राजेश अग्रवाल को सौंप दी गई. जानकारों का कहना है कि किसी को इसकी भनक न लगे इसलिए पूरी प्रक्रिया में बेहद गोपनीयता रखी गई, लेकिन जमीन आवंटन की जानकारी ग्रामीणों को मिल ही गई. फिलहाल ग्रामीणों ने बिल्डर के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. ग्रामीणों ने जमीन को वापस लेने के लिए बकायदा धरना-प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी सौंपा है.
उठ रहे हैं कई सवाल
इधर ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार ने जमीन को निजी बिल्डर को आवंटित किए जाने वाले मामले की जांच की जिम्मेदारी रायपुर संभाग के आयुक्त महादेव कावरे को सौंप दी है. महादेव कावरे ने अपना मोर्चा को बताया कि उन्हें गुरुवार को जांच का जिम्मा दिया गया है. जल्द ही वे यह तथ्य जुटा लेंगे कि सरकारी जमीन का आवंटन कैसे और किन नियमों के तहत किया गया है.जमीन आवंटन की प्रक्रिया सही है या गलत है. इधर जमीन के कारोबार से जुड़े कुछ अन्य बिल्डरों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कभी भी कोई सरकारी जमीन निजी बिल्डरों को सौंपी नहीं जाती. अगर सरकार ने किसी जमीन को सौंपने का फैसला भी किया है तो उसे पारदर्शिता के लिए जमीन की नीलामी करनी चाहिए थीं. इधर जमीन आवंटन मामले को लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार को विधानसभा के शीतकालीन सत्र में घेरने का निर्णय ले लिया है. एक कांग्रेस नेता का कहना है कि सरकार ने सवालों के जवाब से बचने के लिए संभाग आयुक्त को जांच का जिम्मा सौंपा है. जब विधानसभा में विपक्ष का कोई नेता सवाल पूछेगा तो कुछ इसी तरह का जवाब आ सकता है-सरकार ने मामले के संज्ञान में आते ही त्वरित गति से जांच का निर्णय लिया है. फिलहाल जांच चल रही है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि उनकी सरकार ने अमलीडीह क्षेत्र के नागरिकों की मांग पर एक महाविद्यालय के लिए जिस जमीन को आरक्षित किया था उसे डबल इंजन सरकार ने जून महीने में रामा बिल्डकॉन को सौंप दिया है. सुना है कि इसमें किसी बड़े भाजपा नेता का हित भी जुड़ा हुआ है. वैसे रायपुर ग्रामीण से भाजपा के विधायक मोतीलाल साहू भी रामा बिल्डकॉन को सरकारी जमीन आवंटित करने के खिलाफ है. उनका कहना है कि जो जमीन महाविद्यालय के लिए आरक्षित थीं उसे किसी भी निजी बिल्डर को नहीं सौंपना चाहिए था. साहू का कहना है कि उन्होंने इस सिलसिले में शासन से पत्राचार किया था लेकिन कलेक्टर ने गुपचुप तरीके से आवंटन की अनुशंसा कर फाइल सरकार को भेज दी है. भाजपा के पूर्व विधायक नंद कुमार साहू का कहना है कि अगर शिक्षण संस्थाओं के लिए ही जमीन नहीं बचेगी तो बच्चे पढ़ेंगे कैसे ? उन्होंने कहा कि बिल्डर को गलत तरीके से जमीन का आवंटन किया गया है.
क्या सही में होगी सही जांच ?
रामा बिल्डकॉन ने रामा के नाम से बिलासपुर और रायपुर में कई जगहों पर बड़ी प्रापर्टी खड़ी की है. रामा ग्रीन सिटी, रामा वैली, रामा मैग्नेटो माल, रामा चैंबर... आदि.
राजधानी रायपुर में विधानसभा से कुछ पहले स्वर्ण भूमि भी रामा बिल्डकॉन के द्वारा निर्मित किया गया है. बताते हैं कि स्वर्ण भूमि में प्रदेश के कई कलेक्टरों और बड़े अफसरों ने बंगले ले रखे हैं. ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या रामा बिल्डकॉन के खिलाफ सही ढंग से कोई जांच हो पाएगी?
अफसरों ने किस रेट पर खरीदी जमीन और बनवाया बंगला...जांच का विषय
सरकारी गाइड लाइन के हिसाब से स्वर्णभूमि में जमीन की कीमत सात सौ रुपए से लेकर एक हजार रुपए के बीच ही है. अफसरों ने इस जगह पर किस रेट पर जमीन खरीदी और बंगला बनवाया है यह भी जांच का विषय है. जानकारों का कहना है इस इलाके में कई धनाढ्य लोगों ने कच्चे के पैसों को खपाया है. जानकारों का कहना है कि स्वर्णभूमि के सामने जो चौड़ी सड़क दिखाई देती है वह भी केंद्र के हाथकरघा विभाग की थीं जिस पर कब्जा कर लिया गया है.
एक्सप्रेस वे में विशाल गेट के पीछे कौन
छत्तीसगढ़ के आरटीआई और सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल शुक्ला ने पिछले दिनों एक्स हैंडल में एक पोस्ट के जरिए गंभीर सवाल उठाया था. उन्होंने लिखा था- राजधानी रायपुर में रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट को जोड़ने वाले एक्सप्रेस- वे के ठीक बीचों-बीच रामाग्रीन के बिल्डर राजेश अग्रवाल के द्वारा विशालकाय गेट बनवाया जा रहा है क्योंकि उन्होंने एक्सप्रेस- वे के पीछे जमीन खरीद ली है. गाड़ियां जब अचानक से कालोनी में इंट्री के लिए मुडेंगी तो एक्सप्रेस वे का क्या मतलब रह जाएगा. नियमतः एक्सप्रेस- वे पर किसी निजी बिल्डर का कोई गेट बन जाय... ऐसा होता नहीं है. कुणाल ने लिखा है कि गेट के लिए बिल्डर ने मंत्री और अफसरों को रिश्वत दी है. आरटीआई लगाकर जानकारी मांगी गई है.
उपरोक्त सारे मामलों में रामा बिल्डकॉन के भागीदार राजेश अग्रवाल का पक्ष जानने के लिए फोन लगाया गया लेकिन उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया. वे अपना पक्ष रखना चाहेंगे तो उसे भी प्रकाशित किया जाएगा.