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साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल से फोन पर हाल-चाल पूछा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने

रायपुर. सामान्य तौर पर सत्ताधीश साहित्यकारों की उपेक्षा ही करते हैं, लेकिन जो राजनीतिज्ञ दूरदर्शी होते हैं वे इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि साहित्य...राजनीति के आगे चलने वाली मशाल का नाम हैं. छत्तीसगढ़ में पुराने निजाम के बदल जाने के साथ ही कई तरह के परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. फिलहाल तो छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बचाए रखने की कवायद जारी है. इधर कोरोना से प्रभावित हरेक शख्स का पूरा ख्याल रखने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गुरुवार को वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल से दूरभाष पर उनका हालचाल जाना. मुख्यमंत्री ने उनसे पूछा कि लॉकडाउन के दौरान उनकी दिनचर्या कैसी है?  वे क्या करते है. कुछ नई कविताएं लिख रहे हैं या नहीं ? जवाब में श्री शुक्ल ने बताया कि वे अल-सुबह उठ जाते हैं और फिर चाय-नाश्ते के बाद लिखने बैठ जाते हैं. शुक्ल ने बताया कि इस बीच उन्होंने कुछ कविताएं लिखी है. मुख्यमंत्री ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए उनके बेहतर स्वास्थ्य और दीघार्यु होने की कामना की.

ज्ञात हो कि श्री शुक्ल यहीं रायपुर के शैलेंद्र नगर में निवास करते हैं. देश में उनकी ख्याति हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार के तौर पर हैं. उनकी एकदम भिन्न साहित्यिक शैली ने परिपाटी को तोड़ते हुए ताज़ा झोकें की तरह पाठकों को प्रभावित किया, जिसको 'जादुई-यथार्थ' के आसपास की शैली के रूप में महसूस किया जा सकता है. उनका पहला कविता संग्रह 1971 में 'लगभग जय हिन्द' नाम से प्रकाशित हुआ. 1979 में 'नौकर की कमीज़' नाम से उनका उपन्यास आया जिस पर फ़िल्मकार मणिकौल ने फिल्म भी बनाई. कई सम्मानों से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। विनोद कुमार शुक्ल हिंदी कविता के वृहत्तर परिदृश्य में अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट और संवेदनात्मक गहराई के लिए जाने जाते हैं। वे कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी हैं। उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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चंदूलाल चंद्राकर के पोते ने भगवा बिग्रेड पर साधा निशाना-जो कभी नहीं चाहते थे कि छत्तीसगढ़ राज्य बने... वे ही कर रहे हैं विरोध

रायपुर. छत्तीसगढ़ में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय को अब देश के मूर्धन्य पत्रकार रहे चंदूलाल चंद्राकर के नाम कर दिया गया है. इस नामकरण के बाद ऐसे लोग विरोध में उतर आए हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय परिसर को बांटने, छांटने और काटने वाली वैचारिक दुकान में तब्दील कर रखा था. बताते हैं कि परिसर में ऐसे-ऐसे लोगों का जमावड़ा होता था ( शायद अब भी हो... क्योंकि वहां ऐसे लोग तैनात हैं.) जिनका एकमात्र लक्ष्य छात्र-छात्राओं के बीच वैमनस्य का बीज बांटना था. भाजपा शासनकाल के 15 सालों में यहां कई तरह के विचारक यहां अपना ज्ञान बघारने के लिए आते रहे. इन विचारकों में से अधिकतर का लक्ष्य अलगाव को बढ़ावा देना था. एक तरह से यह विश्वविद्यालय नफरत की राजनीति करने वालों का केंद्र बन गया था. इधर कतिपय लोगों के विरोध के बीच चंदूलाल चंद्राकर के पोते अमित चंद्राकर ने फेसबुक पर एक पोस्ट साक्षा की है. इस पोस्ट पर उन्होंने भगवा बिग्रेड पर निशाना साधते हुए कहा है कि जो लोग कभी नहीं चाहते थे कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण हो... वे ही विरोध की राजनीति कर रहे हैं.

अमित चंद्राकर ने लिखा है- जो लोग विश्वविद्यालय के नए नामकरण का विरोध कर रहे हैं उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि घर के जिस पते पर वे छत्तीसगढ़ को लिखते हैं वह चंदूलाल चंद्राकर की ही देन है. वे पहले ऐसे भारतीय पत्रकार थे जिन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन का इंटरव्यूह लिया था. वर्ष 1946 से 47 तक उन्हें नई दिल्ली के बिरला हाउस में महात्मा गांधी के व्याख्यान को कव्हर करने की जिम्मेदारी दी गई थीं. आज से चालीस साल पहले ही उन्होंने लगभग 148 देशों की यात्राएं की थीं. उन्हें देश-दुनिया की गहन जानकारी थीं. वर्ष 1995 में जब उनका देहांत हुआ तब भाजपा के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी की आंखे नम थीं. वाजपेयी ने संसद में कहा था- देश ने ऐसा नेता खो दिया है जिसकी भरपाई शायद ही हो पाए. अमित चंद्राकर ने अपना मोर्चा डॉट कॉम से भी बातचीत में कहा कि चंदूलाल चंद्राकर के नाम के विरोध के पीछे नफरत की राजनीति को बढ़ावा देने वाले तत्व सक्रिय है. ऐसे तत्वों को बेनकाब करना बेहद जरूरी है.

कौन है कुशाभाऊ ठाकरे ?

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे कुशाभाऊ ठाकरे का जन्म मध्यप्रदेश के धार जिले में हुआ था. उनकी शिक्षा-दीक्षा भी छत्तीसगढ़ में नहीं हुई थीं. वे लंबे समय तक संघ के प्रचारक थे और फिर जब भाजपा के शीर्ष पद पर पहुंचे तो संगठन के काम को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ आया करते थे. सोशल मीडिया में लोग कुशाभाऊ ठाकरे के पत्रकारिता में दिए गए योगदान को लेकर सवाल उठा रहे हैं. एक फेसबुक पोस्ट है जिसमें लिखा है- मैं पत्रकारिता का विद्यार्थी हूं. मुझसे आज तक किसी भी प्राध्यापक ने नहीं कहा कि बेटा जीवन में अगर कभी कुछ बनना है तो कुशाभाऊ ठाकरे जैसा पत्रकार बनना.

क्या कुलपति को हटाया जाएगा ?

विश्वविद्यालय के नए कुलपति बलदेव शर्मा को एक खास तरह के विचारक भारतीयता के पोषक तत्व के रुप में प्रचारित करते हैं. श्री शर्मा संघ के मुखपत्र पांचजन्य के संपादक रहे हैं. हालांकि अपनी तैनाती के बाद बलदेव शर्मा ने मीडिया से कहा है- कुलपति किसी पार्टी का नहीं होता. अब उनका एकमात्र लक्ष्य शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा देना है. अब यह कैसे और किस तरह से संभव हो पाएगा यह भविष्य की बात है, लेकिन इधर छत्तीसगढ़ सरकार ने विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों को लेकर नया नियम-कानून बना लिया है इसलिए राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा चल पड़ी है कि जल्द ही कुलपति को हटा दिया जाएगा. इसके साथ ही विश्वविद्यालय में नफरत की विचारधारा को बढ़ावा देने वाले प्राध्यापकों पर भी गाज गिर सकती है. बताते हैं कि विश्वविद्यालय में एक ऐसा प्राध्यापक भी तैनात है जो एक संगठन का प्रमुख पदाधिकारी है. कुलपति के पदभार ग्रहण के दौरान विश्वविद्यालय में एक खास दल और उनसे जुड़े लोगों के शक्ति प्रदर्शन को लेकर भी कई तरह की बातें हो रही हैं. पदभार समारोह के दौरान कुछ खबरची लोग भी मौजूद थे. उनका कहना है- पदभार समारोह को देखकर लग रहा था जैसे नेताजी बारात लेकर आ गए हैं. जोरदार ढंग के तमाशे और नारों के बीच खबरची को फिल्म चाइना गेट के जगीरा का संवाद भी याद आ रहा था- हमसे न भिंडियो... मेरे मन को भाया... तो मैं कुत्ता काट के खाया. खबरची के कहने का पूरा भाव यहीं था कि कुछ लोग यह सोचकर धक्का-मुक्की और नारेबाजी कर रहे थे जैसे उन्होंने बहुत बड़ी जंग जीत ली है.

 

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क्या अखबार छूने और पढ़ने से कोरोना फैल जाएगा ?

रायपुर. पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया में यह खबर बड़ी तेजी से फैली है कि अखबार छूने और पढ़ने से कोरोना फैल सकता है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से निकलने वाले एक सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ ने तो बकायदा अपने अखबार का प्रकाशन ही स्थगित कर दिया है. अखबार ने वॉट्सअप, फेसबुक और टिव्हटर के जरिए पाठकों तक पहुंचने की घोषणा की है.कोरोना वायरस से बचाव के लिए संकल्पित कतिपय नागरिकों का भी मानना है कि जो खबरें सोशल मीडिया और टीवी में दिनभर घूमते रहती हैं, कमोबेश वहीं खबरें दूसरे दिन अखबार में देखने को मिलती है. अब अखबार की किसी भी खबर में नई तरह की जानकारी और सूचनाएं नहीं रहती...इसलिए अगर कुछ दिनों तक अखबार के वाचन पर रोक लगा दी जाय तो इसमें बुराई नहीं है.

प्रकाशन को स्थगित रखने के पीछे छत्तीसगढ़ अखबार ने लिखा है- हिंदुस्तानियों की सेहत पर आया यह आज तक का सबसे बड़ा जानलेवा खतरा है जिसके जल्दी टलने के आसार नहीं है. सैकड़ों लोग बेहद सुरक्षित तरीके से अखबार निकालते हैं बावजूद इसे घर-घर तक पहुंचाने में हजारों लोग लगते हैं, और उनकी जिंदगी भी खतरे में आती है. कई ग्राहकों ने कोरोना का खतरा खत्म होने तक हॉकर से अखबार डालने के लिए मना भी किया है, इसलिए हम खतरा टलने तक ऑनलाइन रहेंगे.

वैसे यह बात पूरी तरह से सच है कि रायपुर की कई कॉलोनियों में रहने वाले नागरिकों ने हॉकरों को अखबार डालने से मना कर दिया है. राजधानी के अम्लीडीह स्थित मारुति रेसीडेंसी में अखबार, दूध बांटने वाले और घर में काम करने वाली बाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. वहां निवासरत पत्रकार रेणु नंदी ने बताया कि अखबार वाला गेट पर ही अखबार रखकर चला जाता है. जिस नागरिक को अखबार पढ़ना होता है वह गेट पर जाकर अखबार पढ़ लेता है, लेकिन ज्यादातर लोगों ने अखबार पढ़ना बंद कर दिया है. दुर्ग-भिलाई और बिलासपुर से भी ऐसी खबरें आ रही है कि हॉकरों ने अखबार का वितरण करने से इंकार कर दिया है. इधर कतिपय बड़े अखबार वाले सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि उनका अखबार पूरी तरह से सुरक्षित है क्योंकि वे सैनेटाइजर का छिड़काव करते हुए अखबार का प्रकाशन कर रहे हैं.

अभी चंद रोज पहले कांग्रेस के एक मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने अपने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली है. इस पोस्ट के जरिए श्री शुक्ला ने यह जानना चाहा था कि क्या अखबार भी कोरोना का संवाहक बन सकता है? उनकी इस पोस्ट पर बहुत से लोगों ने टिप्पणी करते हुए यह माना है कि अखबार से भी कोरोना वायरस फैल सकता है. उनकी पोस्ट पर डाक्टर राकेश गुप्ता ने लिखा है- संक्रमित मरीज के संपर्क में आने पर अखबार संक्रमण का शिकार बन सकते हैं. इस बारे में जब हमने भी डाक्टर गुप्ता से चर्चा की. उन्होंने साफ-साफ कहा कि अगर किसी का वायरस ट्रांसफर हो गया है तो संक्रमण फैल सकता है. वैसे अगर कोई हॉकर कोरोना पॉजिटिव हो जाएगा तो वह अखबार बांटने लायक ही नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि अभी हमारे देश का हेल्थ स्ट्रेक्चर बेहद पीछे हैं इसलिए सावधानी और सामाजिक अनुशासन ही कोरोना से बचाव का एकमात्र उपाय है.

सोशल मीडिया में चल रही एक खबर में यूएस सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के हवाले से कहा गया है कि जीवित कोशिकाओं के बाहर ज्‍यादातर सतहों पर कोरोना वायरस बहुत समय तक जिंदा नहीं रहता है. वायरोलॉजिस्‍ट का कहना है कि जब आप अखबार छूते हैं तो संक्रमण फैलने की आशंका तकरीबन न के बराबर होती है. एक खबर में यह भी कहा गया है कि अखबार को असुरक्षित कहने का कोई तर्क नहीं है. अगर आप भीड़भाड़ वाली जगह पर अखबार पढ़ रहे हैं तो संक्रमण फैलने का खतरा ज्‍यादा है. लेकिन, इसकी वजह अखबार नहीं, बल्कि यह है कि आप सामाजिक दूरी बनाकर नहीं चल रहे हैं.

देश के नामी अखबारों में से एक नवभारत टाइम्स ने लिखा है- कोरोना वायरस (कोविड-19) के संकट के दौरान अखबार अपने पाठकों के लिए प्रतिबद्ध हैं. अखबारों के जरिए कोरोना वायरस (कोविड-19) नहीं फैलता. डब्लूएचओ की गाइडलाइंस के मुताबिक, अखबार जैसी चीजें लेना सुरक्षित है. मॉर्डन प्रिंटिंग तकनीक पूरी तरह ऑटोमेटेड है. व्यावसायिक सामान के दूषित होने की संभावना कम है.

 

 

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मंत्री शिव डहरिया और उनकी बेटी को कोरोना हो जाने की खबर निकली भ्रामक

रायपुर. छत्तीसगढ़ के नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया और उनकी पुत्री को कोरोना हो जाने की खबर भ्रामक निकली है. गौरतलब है कि श्री डहरिया राज्यसभा सांसद केटीएस तुलसी का सार्टिफिकेट छोड़ने के लिए दिल्ली गए थे. जब वे दिल्ली से लौट रहे थे तभी उनकी पुत्री ने यह जानकारी दी कि वह भी विदेश से लौट रही है. डहरिया पुत्री के दिल्ली लौट आने के बाद उनके साथ रायपुर लौटे. इस बीच दिल्ली में उनकी पुत्री की थर्मल स्क्रीनिंग की गई जिसमें किसी भी प्रकार के लक्षण परिलक्षित नहीं हुए. इस बीच यह खबर फैल गई कि मंत्री और उनकी पुत्री कोरोना से ग्रसित हो गए हैं. शिव डहरिया ने बताया कि लंदन एयरपोर्ट में सभी तरह की आवश्यक जांच के बाद दिल्ली जाने की अनुमति प्रदान की गई थी. जब पुत्री दिल्ली में उतरी तो भी संपूर्ण जांच की गई जिसमें सभी रिपोर्ट नेगेटिव पाई गई है. उन्होंने बताया कि चूंकि पुत्री विदेश से लौटी है तथा उनकी मुलाकात हुई है इसलिए चिकित्सकों और विशेषज्ञों की सलाह पर होम आइसोलेशन दी गई है. यह आइशोलेन उनके निवास के फ्लोर में अलग से हैं. इसका निरीक्षण योग्य चिकित्सकों के द्वारा करवाया गया है. डहरिया ने बताया कि उनके द्वारा किसी भी प्रकार की कोई जानकारी स्वास्थ्य विभाग से नहीं छिपाई गई है. योग्य स्वास्थ्य अधिकारियों के निर्देशन में हर कार्य किया जा रहा है. मंत्री ने बताया कि उनके लिए देश और देश के लोग पहले हैं. इसलिए उन्होंने स्वयं सुरक्षा का ख्याल रखते हुए परिवार के सांथ सेल्फ क्वेरेंटाइन में 14 दिन तक आइसोलेशन में रहने का निर्णय लिया है.

 

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छत्तीसगढ़ का उद्यानिकी और बागवानी मिशन एक बार फिर बदनाम

रायपुर. अपने कामकाम को लेकर बेहद चाक-चौबंद समझे जाने वाले रविंद्र चौबे के कृषि मंत्री रहने के बाद भी छत्तीसगढ़ का उद्यानिकी एवं बागवानी मिशन बदनाम हो रहा है. गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में दोनों मिशन के कामकाज की सबसे ज्यादा बदनामी तब हुई थीं जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थीं. तब यह बात प्रचलित थीं कि संचालक हरी-भरी सब्जियों के साथ-साथ हरा-हरा नोट चबाता है. इधर एक बार फिर उद्यानिकी और बागवानी मिशन में कमीशन कल्चर जोर मार रहा है.

अभी हाल के दिनों में भांठागांव के गोपी यादव नाम के एक शख्स ने कृषि उत्पादन आयुक्त को उद्यानिकी और बागवानी मिशन में चल रही कमीशनखोरी और गड़बड़ियों को लेकर शिकायत भेजी है. शिकायत करने वाले ने मिशन के संचालक को जबरदस्त ढंग से आड़े हाथों लिया है. शिकायतकर्ता का कहना है कि नए संचालक जब से तैनात हुए हैं तब से हर मामले में कमीशन का खुला खेल चल रहा है.

वर्मी बेड़ के वितरण में घोटाला

शिकायतकर्ता का आरोप है कि राष्ट्रीय उद्यानिकी मिशन के तहत किसानों को केंचुआ खाद बनाने के लिए वर्मी बेड प्रदान किया जाता है. एक वर्मी बेड की कीमत 16 हजार रुपए होती है. इस बेड का आधा खर्चा मिशन के द्वारा वहन किया जाता है तो आधा किसानों को अदा करना होता है, लेकिन नए संचालक ने किसानों से अंश राशि न लेकर घटिया किस्म का वर्मी बेड़ वितरित कर दिया है. किसानों को जो वर्मी बेड़ बांटा गया है उसमें केंचुआ खाद का निर्माण ही नहीं हो रहा है. बाजार में जिस वर्मी बेड़ की कीमत दो से ढाई हजार रुपए हैं उसे प्रति किसान सोलह हजार रुपए के मान से वितरित किया गया है. एक अनुमान है कि अब तक 40 करोड़ रुपए का वर्मी बेड़ बांटा जा चुका है.

आलू बीज घोटाला

उद्यानिकी एवं बागवानी मिशन आलू की खेती को बढ़ावा देने के लिए आलू के बीज का भी वितरण करता है. शिकायतकर्ता का कहना है कि इस बार आलू बीज का वितरण तब किया गया जब बोनी के लिए समय निकल गया. कई किसानों के खेत में आलू सड़ गया. जो बीज वितरित किया गया उसकी गुणवत्ता भी बेहद घटिया थीं जिसके चलते कई किसानों ने उसे अपने खेत में बोने से इंकार कर दिया.

फूल और सब्जी बीज घोटाला

मिशन के द्वारा फूलों की खेती को बढ़ावा देने का काम भी किया जाता है. इस वित्तीय वर्ष में ग्लेडियोलस रजनीगंधा गेंदे के फूल कंद-बीज बोनी का समय निकल जाने के बाद बांटा गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि सप्लायर को फायदा पहुंचाया जा सकें. इस तरह सब्जियों का जो बीज वितरित किया उसमें अंकुरण की स्थिति ही नहीं बन पाई. भिंडी और मिर्ची की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि उन्हें उनके खेतों में उत्पादन हीं नहीं हुआ. शिकायतकर्ता का आरोप है कि उद्यानिकी मिशन ने जिन जगहों पर पाली और नेट हाउस का निर्माण किया है उसकी गुणवत्ता भी बेहद घटिया है. पाली नेट हाउस तेज हवा चलने में फट जाता है.

कमीशन के चलते काम करना मुश्किल

कृषि के क्षेत्र में सामानों का वितरण करने वाले कई सप्लायर कार्यरत है. नाम न छापने की शर्त में सप्लायरों ने भी बताया कि उद्यानिकी एवं बागवानी मिशन में कमीशनबाजी के चलते काम करना कठिन हो गया है. बात-बात पर पैसों की मांग की जाती है. कोई भी सप्लायर दो पैसे कमाना चाहता है, लेकिन घटिया सामाग्री का वितरण कर अपनी फर्म का नाम बदनाम नहीं करना चाहता. सप्लायरों कहना है कि दाल में नमक वाली बात तो समझ में आती है, लेकिन नमक में दाल वाली परम्परा के चलते प्रदेश के अच्छे सप्लायरों ने अपना कामकाज समेट लिया है. अब उद्यानिकी एवं बागवानी मिशन में वहीं सप्लायर काम कर रहे हैं जो घटिया बीज-कंद या अन्य सामान का वितरण करने के खेल में माहिर है.

 

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समाज कल्याण विभाग में कार्यरत महिलाओं ने कहा- एक नंबर का भ्रष्टाचारी है पंकज वर्मा

रायपुर. एक फर्जी संस्था बनाकर करोड़ों रुपए का वारा-न्यारा करने के खेल में फंसे समाज कल्याण विभाग के संयुक्त संचालक पंकज वर्मा पर उनके अपने ही विभाग में कार्यरत महिलाओं ने गंभीर आरोप लगाए हैं. महिलाओं ने उन्हें एक नंबर का भ्रष्टाचारी बताया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राज्यपाल अनसुइयां उइके और महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री अनिला भेड़िया को भेजी गई शिकायत में श्रीमती ललिता लकड़ा, जी सीता, अभिलाषा पण्डा, वैशाली भरड़वार, संगीता सिंह, क्षमा सिंह, सिनीवाली पथिक ने कहा है कि पंकज वर्मा शासकीय योजनाओं की राशि को गबन करने के खेल में माहिर है. महिलाओं का कहना है कि पंकज वर्मा की चल-अचल सभी तरह की संपत्तियों की जांच होनी चाहिए क्योंकि गत 20 सालों से वे भ्रष्टाचार में लिप्त है और उन्होंने अपार संपत्ति बना ली है.

गौरतलब है कि अभी हाल के दिनों में उच्चन्यायालय बिलासपुर ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह माना है कि प्रदेश के अफसरों ने राज्य स्त्रोत केंद्र ( एनजीओ ) खोलकर करोड़ों की राशि का गबन किया है. इस खेल में प्रदेश के कई बड़े अफसरों की भूमिका सामने आई है. उच्चन्यायालय ने इस मामले में सीबीआई को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश भी दिए हैं. समाज कल्याण विभाग में कार्यरत महिलाओं ने जो शिकायत की है उसमें भी इस बात का उल्लेख किया है कि राज्य स्त्रोत केंद्र में करोड़ों का भ्रष्टाचार किया गया है. महिलाओं का कहना है कि पंकज वर्मा राज्य स्त्रोत केंद्र के कार्यकारी निदेशक थे और उनके इस पद में रहने के दौरान ही करोड़ों का गबन हुआ है. महिलाओं का कहना है कि पंकज वर्मा ने संबल एवं स्वाभिमान योजना, आनलाइन सर्वेक्षण योजना, निराश्रित निधि योजना में भी जमकर अफरा-तफरी की है. विभाग में कार्यरत महिलाओं का कहना है कि वर्मा कई संस्थाओं के अकेले प्रभारी अधिकारी बने रहे हैं और व्यापक रुप से भ्रष्टाचार में लिप्त रहे हैं. वे दिव्यांग बच्चों के नाम पर मिलने वाली बड़ी धनराशि भी हड़पते रहे हैं. उन्होंने जिस ढंग से वित्तीय अनियमितता की है उसकी कल्पना कोई नहीं कर सकता. वे हर महीने लाखों रुपए का फर्जी बिल-बाउचर बनाते हैं. विभाग के सभी बाबू उनके दबाव में काम करने को मजबूर है. 

शरदचंद्र तिवारी, भूपेंद्र पांडे और शिखा पर विशेष मेहरबानी

विभाग की महिलाओं ने पंकज वर्मा पर वर्कशॉप मैनेंजर के तौर पर कार्यरत शरद तिवारी, भूपेंद्र पांडे और शिखा पर खास ढंग से मेहरबान होने का आरोप भी लगाया है. महिला कर्मचारियों का कहना है कि जो महिलाएं ईमानदार है उन पर गलत आरोप लगाकर उनका तबादला कर दिया जाता है. वही शरद तिवारी, भूपेंद्र पांडे और शिखा को कई संस्थाओं का प्रभार देकर रखा गया है. ये सभी लोग  पंकज वर्मा की शह पाकर हर माह लाखों रुपए का गबन कर रहे हैं. महिलाओं का आरोप है कि शरद तिवारी खुद को फिजियोथैरिपिस्ट बताता है परन्तु जिस संस्थान में उसकी नियुक्ति की गई थी वहां फिजियोथैरिपिस्ट का कोई पद ही नहीं था. शरद तिवारी को भ्रष्टाचार करने के लिए ही ऑक्यूपेशनलथेरेपिस्ट पद के विरुद्ध नियुक्ति देकर प्रमोट किया गया है. शरद तिवारी की फर्जी नियुक्ति की भी हर हाल में जांच होनी चाहिए.

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हमें घटिया औरत...नौकरानी... कामवाली बाई कहता है पंकज वर्मा...समाज कल्याण विभाग की कामकाजी महिलाओं ने खोला मोर्चा

रायपुर. एक फर्जी संस्थान के जरिए करोड़ों रुपए का वारा-न्यारा करने के आरोपों से घिरे संयुक्त संचालक पंकज वर्मा पर समाज कल्याण विभाग की महिलाओं ने गंभीर आरोप लगाए हैं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, राज्यपाल अनसुइयां उइके और महिला एवं बाल विकास विभाग की मंत्री अनिला भेड़िया को भेजी गई एक शिकायत में श्रीमती ललिता लकड़ा, जी सीता, अभिलाषा पण्डा, वैशाली भरड़वार, संगीता सिंह, क्षमा सिंह, सिनीवाली पथिक ने कहा है कि पंकज वर्मा कई सालों से महिला कर्मचारी एवं अधिकारियों से अशोभनीय और अभद्र व्यवहार कर रहे हैं. महिलाओं का आरोप है कि पंकज वर्मा फर्जी वाउचर पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालते हैं. जो महिला कर्मचारी या अधिकारी ऐसा करने से इंकार करती है उनके साथ सार्वजनिक स्थलों पर गाली-गलौच की जाती है. उन्हें घटिया औरत... कामवाली बाई...  नौकरानी... कहकर लताड़ा जाता है.

अधिकारियों के घर चाकरी

महिला कर्मचारी और अधिकारियों का कहना है कि पंकज वर्मा पूरी तरह से स्त्री विरोधी है. विभाग में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी की महिला कर्मचारियों को काम करने के नाम पर डरा-धमकाकर अधिकारियों के घर भेजा जाता है. समाज कल्याण विभाग की माना स्थित संस्था बहु विकलांग गृह, अस्थि बाधितार्थ बालगृह, वृद्धाश्रम और मानसिक बच्चों की संस्था में कार्यरत बेसहारा विधवा महिलाओं से गलत काम करवाया जा रहा है. कुछ महिलाओं को अधिकारियों ने 15-15 सालों से अपने घर पर रखा हुआ है.

बस्तर भेज देने की धमकी

गलत कामों पर साथ नहीं दिए जाने पर पंकज वर्मा महिला कर्मचारियों को बस्तर भेजने की धमकी देते हैं. विभाग की महिला कर्मचारियों को सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया गया है. बालोद में कार्यरत उपसंचालक बरखा कानू को पहले निलंबित किया गया तो एक शिकायतकर्ता श्रीमती ललिता लकड़ा को सबके सामने निपटाने की धमकी दी गई. विभाग में जब भी कोई अनियमतता होती है तो सबसे पहले महिला कर्मचारियों को ही आरोपी बनाकर उन्हें निलंबित कर दिया जाता है.

फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी

महिला कर्मचारियों ने पंकज वर्मा पर फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल करने का आरोप भी लगाया है. इस आरोप को प्रमाणित करने के लिए कुछ दस्तावेज भी संलग्न किए गए हैं. महिलाओं का आरोप है कि पंकज वर्मा महज दसवी कक्षा पास है. उन्होंने खुद को पढ़ा-लिखा साबित करने के लिए उत्तर प्रदेश से फर्जी प्रमाण पत्र पेश किया है. वे विभाग के अकेले ऐसे व्यक्ति है जिनका धड़ल्ले से प्रमोशन होता रहा है. उन्हें जिस ढंग से पदोन्नति मिलती रही है वह भी जांच का विषय है. उन्हें दिव्यांगों के विषय में न तो कोई ज्ञान है और न ही कोई संवेदनशीलता. सरकार की ओर से द्विव्यांगों के लिए जो धनराशि खर्च की जाती है उसे वे हड़प रहे हैं. महिलाओं ने पंकज वर्मा के कारनामों को लेकर कई पेज की दो शिकायतें भेजी है. दूसरी शिकायत में और भी गंभीर आरोप जड़े गए हैं. आरोपों के संबंध में जब पंकज वर्मा से दूरभाष पर चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि वे कुछ भी बोलना नहीं चाहते. 

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खबरों से चिढ़कर रमन सरकार ने पत्रकार की पत्नी की छीनीं थी नौकरी... भूपेश बघेल ने ससम्मान लौटाई

रायपुर. भूपेश बघेल सरकार ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय कथक नृत्यांगना डॉ. अनुराधा दुबे की पर्यटन मंडल में वापसी पर मुहर लगा दी है. छत्तीसगढ़ में जब भाजपा की सरकार थीं तब पत्रकार राजेश दुबे की पत्नी डॉ. अनुराधा दुबे को पर्यटन अधिकारी के पद से बर्खास्त कर दिया था. पूर्व सरकार के इस कारनामे को अंजाम देने में संविदा में पदस्थ सुपर सीएम के तौर पर विख्यात एक अफसर के अलावा दो अन्य अफसरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस प्रकरण की जांच करवाई और सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए डॉ. अनुराधा दुबे की सेवा को बहाल करने का फैसला किया. मुख्यमंत्री के इस फैसले से मीडिया जगत से जुड़े लोगों ने प्रसन्नता जाहिर की है.

एक दैनिक समाचार पत्र रायपुर में काम करने के दौरान राजेश दुबे ने वर्ष 2011 से 2013 तक रमन सरकार के खिलाफ लगातार कलम चलाई थीं. इनमें बहुचर्चित मीना खलको हत्याकाण्ड, एचएम स्क्वायड की वसूली व गुण्डागर्दी, रोगदा बांध का उद्योगों को बेचा जाना, मुख्यमंत्री के सुरक्षा सलाहकार बनाए गए पंजाब के सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल का बहुचर्चित साक्षात्कार सहित सैकड़ों समाचार शामिल हैं. इन खबरों की वजह से रमन सिंह की सरकार लंबे समय तक असहज रही.

वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव के दौरान जब सरकार में पदस्थ नौकरशाह खबरों को रोकने में सफल नहीं हुए तो उन्होंने अखबार से जुड़े पत्रकारों पर दबाव बनाना प्रारंभ कर दिया. तब अखबार से जुड़े हर शख्स के खिलाफ राज्य के हर जिले में एफआईआर दर्ज करवाई गई. पूर्व सरकार के इस कृत्य की थू-थू होती रही, लेकिन सरकार अनजान बनी रही. इसके बाद भी जब बात नहीं जमी तो नौकरशाह पत्रकारों के घरों की महिलाओं और बच्चों पर हमला करने लगे. किसी पत्रकार की पत्नी का तबादला किया गया तो किसी पत्रकार के बच्चे को झूठे मामले में फंसाकर जेल भिजवाया गया. इस दौरान राज्य में पांच पत्रकारों की हत्या भी हुई.

अफसरों को दी गई थी सुपारी

अनुराधा दुबे को हटाने के लिए सरकार के जिन अफसरों को इस काम के लिए सुपारी दी गई थी, उन्होंने मुख्यमंत्री के जनदर्शन कार्यक्रम एक झूठी शिकायत करवाई. इस शिकायत में यह  लिखा गया था कि पर्यटन मंडल में डॉ. अनुराधा दुबे की नियुक्ति नियम-कायदों के विपरीत की गई है.इसकी जांच करवाई जाए व उसके बाद डॉ. दुबे व संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई सुनिश्चित हो. शिकायत मिलते ही खुन्नस निकालने को तैयार बैठी रमन सरकार हरकत में आ गई और इस बात का परीक्षण किए बिना कि शिकायतकर्ता का कोई वजूद है या नहीं, जांच के आदेश दे दिए और महज पंद्रह से बीस दिनों के भीतर जांच पूरी हो गई. जल्द ही इसकी रिपोर्ट मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को सौंप दी गई.  इस बीच पत्रकार राजेश दुबे ने शिकायत करने वाले की खोजबीन की, लेकिन कोई नहीं मिला. बाद में किसी अज्ञात शख्स ने दुबे के निवास स्थान पर पत्र भेजकर यह जानकारी दी कि आपकी पत्नी को नौकरी से निकाले जाने की योजना मंत्रालय के एक कमरे में बनी थीं जिसमें संविदा में पदस्थ और खुद को देश का सबसे पावरफुल अफसर बताने वाले सुपर सीएम ने बनाई थीं. उनके साथ इस कृत्य दो अन्य लोग शामिल थे. वैसे संविदा में पदस्थ इस अफसर की नियुक्ति खुद ही संदिग्ध थी. इस नियुक्ति को लेकर कुछ लोगों ने अदालत की शरण भी ली थी,  लेकिन अफसर की प्रतापगढ़िया शैली वाली गुंडई के चलते लोग पीछे हट गए. जो लोग नियुक्ति की वैधानिकता को लेकर चुनौती देते रहे उनके परिजनों को झूठे मामलों में फंसाया जाता रहा. अफसर ने अपने बचाव के लिए तरह-तरह की जुगत भी कर रखी थी. उसने कुछ पत्रकारों को वेबसाइट खोलकर सरकार के पक्ष में माहौल बनाते रहने के लिए भरपूर आर्थिक सहायता दी थी और नियम विरुद्ध विज्ञापन भी दिलवाया था. वैसे तो संविदा में पदस्थ इस कथित सुपर सीएम का विरोध आईएएस अफसर भी करते थे, लेकिन लूप लाइन में फेंक दिए जाने के चलते वे मुखर नहीं हो पाए.

संचालक मंडल के अधिकारों पर अतिक्रमण

बताना लाजिमी होगा कि छत्तीसगढ राज्य पर्यटन मंडल एक स्वायत्तशासी संस्था है और उसके संचालक मंडल को सभी प्रकार के फैसले करने का अधिकार है, लेकिन डॉ. अनुराधा दुबे के मामले में पूर्ववर्ती सरकार ने मंडल के अधिकारों पर अतिक्रमण किया और संचालक मंडल को भरोसे में लिए बगैर उन्हें सेवा से पृथक करने का एकतरफा आदेश जारी कर दिया था, जबकि अनुराधा दुबे की नियुक्ति मंडल के नियम-कायदों के अनुरूप की गई, जिसका अनुमोदन तत्कालीन पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल व तत्कालीन सचिव, पर्यटन आरपी जैन ने भी किया था. परंतु इन सबको नजरअंदाज करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निर्देश पर विभाग के तत्कालीन सचिव केडीपी राव व तत्कालीन प्रबंध संचालक संतोष केमिश्रा ने 7 अगस्त 2012 को डॉ. अनुराधा दुबे को सेवामुक्त करने का आदेश जारी किया था. हालांकि यह दोनों अफसर महज निर्देशों को मानने के लिए बाध्य थे. भूपेश सरकार बनने के बाद एक अफसर ने यह माना कि डाक्टर रमन सिंह के कार्यकाल में सुपर सीएम के चलते सभी भयभीत रहते थे. वे जिस काम को करने के लिए बोलते थे उसे हर हाल में करना ही होता था चाहे वह कितना ही गलत क्यों न हो. अफसर ने माना कि राजेश दुबे की पत्नी को नौकरी से निकाले जाने को लेकर बेहद दबाव था.

 मुख्यमंत्री की संवदेनशीलता

भूपेश बघेल जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे वे तब से इस प्रकरण से वाकिफ थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस प्रकरण में विशेष रुचि दिखाई और पूरे मामले की नए सिरे से जांच करवाई. मामले की पूरी छानबीन के बाद उन्होंने इस मामले को राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष रखा और सदस्यों को बताया कि पत्रकार की पत्नी अनुराधा दुबे के साथ  पूर्व सरकार ने जो कुछ किया वह मानवीय नहीं है. मुख्यमंत्री की पहल पर मंत्रिमंडल के सदस्यों ने डॉ. अनुराधा दुबे की छत्तीसगढ राज्य पर्यटन मंडल में वापसी के प्रस्ताव पर मुहर लगाकर यह संदेश भी दिया है कि भूपेश सरकार में अभिव्यक्ति की आजादी का सम्मान बरकरार रहने वाला है. मुख्यमंत्री बघेल के इस फैसले पर राज्य के मीडिया जगत ने हर्ष जाहिर करते हुए उनके प्रति आभार व्यक्त किया है. 

अखबार का दोहरा चरित्र

वैसे जब अनुराधा दुबे नौकरी से हटाई गई तब अखबार ने थोड़े समय तक पत्रकार राजेश दुबे का साथ दिया, लेकिन उसके बाद उनका तबादला कभी कोलकाता, कभी भोपाल तो कभी जगदलपुर किया जाता रहा. सरकार विरोधी खबर लिखने की वजह से अन्य पत्रकारों को भी तबादले में इधर-उधर भेजा जाता रहा. अखबार के मालिक और प्रधान संपादक जब भी रायपुर आते तो प्रेस में कार्यरत सभी पत्रकारों के समक्ष नैतिकता का कंबल ओढ़कर कहते थे- देखिए.... रमन सिंह के लोग खबरों में समझौते के लिए प्रेशर बना रहे हैं, लेकिन न तो मैं झुकूंगा और न ही मेरा अखबार.अफसर मुझसे मिलकर कहते है कि सरकार से समझौता कर लीजिए...खबरों का टोन डाउन कर दीजिए.... लेकिन मैंने भी तय कर लिया है कि जब तक राजेश दुबे की पत्नी की नौकरी वापस नहीं होगी तब तक कोई समझौता नहीं होगा. वैसे अखबार ने जब छत्तीसगढ़ से अपना प्रकाशन प्रारंभ किया था तब खबरों को छापने में बड़ी हिम्मत दिखाई थी, लेकिन वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले अखबार ने अपने तेवर बदले. धीरे- धीरे यह अखबार भगवा लोगों का प्रमुख पत्र बन गया.अब भी अखबार के सभी संस्करणों में भगवा संस्कृति को बढ़ावा देने वाले संपादक और पत्रकार कार्यरत है. छत्तीसगढ़ से निकलने सभी संस्करणों की खबरों से रू-ब-रू होने के बाद यह साफ दिखता है कि अखबार के संपादक और पत्रकार भगवा सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अखबार के मालिक, संपादक और रिपोर्टरों ने जबरदस्त ढंग से भगवा लहर को बढ़ावा देने का काम किया था. शायद अखबार के मालिक से लेकर पत्रकार सभी को यह भरोसा था कि चौथीं बार भी छत्तीसगढ़ में पुरानी सरकार रिपीट हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. केन्द्र में सरकार रिपीट हुई तो अखबार के मालिक ने अपने एक लेख में बड़ी बेशर्मी से यह ऐलान भी किया कि उनके अखबार का हर संस्करण मोदी की सेवा के लिए समर्पित रहेगा.अखबार मालिक के इस भयानक किस्म के संकल्प की हर मंच से तीखी आलोचना हुई. सबने यह माना कि शरणागत होने की दौड़ में अखबार ने सबको पीछे छोड़ दिया है.

 

 

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सीएम से मिला निर्देश और मंडल निकल पड़े बस्तर के धान खरीदी केंद्रों का औचक निरीक्षण करने

रायपुर. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिले निर्देश के बाद राज्य के मुख्य सचिव आरपी मंडल रविवार की अलसुबह बस्तर के जगदलपुर, कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले के धान खरीदी केंद्रों का औचक निरीक्षण करने हेलिकाप्टर से रवाना हो गए हैं. उनके साथ धान खरीदी में गड़बड़ियों को पकड़ने वाला छापामार दस्ता भी चल है. गौरतलब है कि इसके पूर्व मुख्य सचिव ने रायगढ़, जांजगीर-चापा, बिलासपुर और मुंगेली जिलों के धान खरीदी केंद्रों पर छापामार कार्रवाई कर किसानों को राहत दिलवाई थीं.

किसानों से सही मूल्य और सही तौल पर धान खरीदी को लेकर सरकार पूरी तरह से मुस्तैद है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पूरी खरीदी प्रक्रिया की खुद ही मानिटरिंग कर रहे हैं. यह सब इसलिए भी संभव हो रहा पा रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री स्वयं किसान परिवार से हैं. मुख्यमंत्री के अलावा उनके परिवार के लोग आज भी खेती-किसानी करते हैं. किसानों के एक बड़े वर्ग में उनकी पैठ को देखकर भाजपा ने धान खरीदी में कथित गड़बड़ियों को लेकर आरोप लगाया था, लेकिन जल्द ही यह भी साफ हो गया कि सारे आरोप राजनीति से प्रेरित थे. इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एक बार फिर कहा कि किसान अफवाह फैलाने वालों से सावधान रहे. उनकी सरकार किसानों से घोषणा पत्र में किए गए वादे के मुताबिक ही धान की खरीदी करेगी. विपक्ष को इस बात के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है कि इसके लिए आवश्यक धन कहां से आएगा. धान खरीदी के लिए कोई लिमिट भी तय नहीं की गई है.

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खुद को पूर्व चीफ सेक्रेटरी सुनील कुजूर का करीबी बताकर मंत्रालय में घूमता रहता था ठगी का आरोपी मनीष शाह

रायपुर.निजी कंपनी में शेयर होल्डर बनाकर लाभांश दिलाने का झांसा देने वाले मनीष शाह और उनकी पत्नी ऋचा शाह पर पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया है, लेकिन अभी तक आरोपी दंपत्ति की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है. बताते हैं इस दंपत्ति ने शहर के और भी कई नामी-गिरामी लोगों को भी ठगी का शिकार बनाया है. सूत्रों का कहना है कि मनीष शाह ने मंत्रालय में पदस्थ भारतीय प्रशासनिक सेवा के कई अफसरों के बीच खासी पैठ बना रखी थीं. वह खुद को पूर्व चीफ सेक्रेटरी सुनील कुजूर का करीबी बताकर मंत्रालय में घूमता भी रहता था.

पूर्व केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम कौशिक के बेटे दिलीप कौशिक ने मनीष शाह और ऋचा शाह के खिलाफ पुलिस थाने रिपोर्ट दर्ज करवाई है. दिलीप कौशिक  का कहना है कि उसने वर्ष 2013 -14 में लक्ष्य नेचुरल फुड प्राइवेट लिमिटेड में चार करोड़ के आसपास शेयर किया था. इतनी बड़ी रकम शेयर करने के बाद ऋचा शाह और मनीष शाह ने उन्हें लक्ष्य नेचुरल फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, लक्ष्य टेक्नोक्रेट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, सीजी सोया प्राइवेट लिमिटेड में डायरेक्टर बना दिया और यह आश्वासन देते रहे कि जल्द ही मुनाफे के साथ पैसा वापस कर दिया जाएगा, लेकिन जब पैसा वापस नहीं हुआ तब उन्होंने थाने की शरण ली. कौशिक ने बताया कि कंपनी में खेती-किसानी की मशीन व उपकरण तैयार किए जाते हैं. इस कंपनी में 40 से अधिक किसानों का पैसा भी लगा हुआ है. उन्होंने बताया कि इस कंपनी में उन्होंने बैंक से लोन लेकर इनवेस्ट किया था. कौशिक ने जानकारी दी कि शाह दंपत्ति से कई और लोग पीड़ित है.

भाजपा के शासनकाल से चल रहा है शाह का गोरखधंधा

प्रदेश में मनीष शाह और उसकी कथित कंपनी का गोरखधंधा भाजपा के शासनकाल से ही फलता-फूलता रहा है. प्रदेश में जब रमन सिंह की सरकार थी तब शाह ने एक से बढ़कर एक कारनामों को अंजाम दिया. शाह ने सोया मिल्क, बिस्कुट और केटलफिड की बिक्री के नाम पर भी करोड़ों का खेल खेला. ज्ञात हो कि भाजपा के शासनकाल में सरकार ने बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए सोया मिल्क बांटने का फैसला किया था. सरकार की रजामंदी के बाद शाह ने केंद्रीय और राज्य स्तरीय प्रयोगशाला से जांच करवाए बगैर बच्चों को दूध का पैकेट वितरित कर दिया था. कई स्कूलों में जब बच्चे बीमार पड़ने लगे तब थोड़े समय के लिए पैकेट के वितरण में रोक लगी.

बीज निगम से सांठगांठ

रमन सिंह की सरकार में बीज निगम ने जन निजी भागीदारी ( पीपीपी मोड ) के तहत सोया बिस्कुट, सोया मिल्क और केटलफिड की खरीदी की थी. इसके लिए शाह की कंपनियों से अनुबंध किया गया था. इन चीजों की खरीदी के लिए सबसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य शर्त यह थीं कि कंपनी को  छत्तीसगढ़ में अपनी ईकाई स्थापित करनी थी और प्रदेश के किसानों या बाजार से कच्चे माल की खरीददारी करनी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बीज निगम के अधिकारियों ने यह जांचे-परखे कि किसी तरह की कोई ईकाई स्थापित की है या नहीं...शाह को करोड़ों का काम सौंप दिया था. जाहिर सी बात है कि जब ईकाई स्थापित नहीं हुई हो तो स्थानीय बाजार और किसानों से खरीददारी भी नहीं हुई होगी. ऐसा ही हुआ. शाह ने सोया मिल्क के लिए कच्चा सामान पड़ोसी राज्यों से खरीदा और स्कूल शिक्षा विभाग तथा महिला बाल विकास विभाग की ओर से संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में इसकी जमकर सप्लाई की. शाह ने पशु आहार के लिए भी किसी तरह की कोई ईकाई स्थापित नहीं की और गौशालाओं में पशु आहार पहुंचाया जाता रहा. बिस्कुट की ट्रेडिंग नागपुर के सुंदर इंडस्ट्रीज से की गई और स्कूल तथा आंगनबाड़ी केंद्रों में वितरण होता रहा. सूत्रों का कहना है कि जल्द ही बीज निगम के वे अधिकारी भी लपेटे में आएंगे जो शाह के साथ गोरखधंधे में शामिल थे. 

महालेखाकार की आपत्ति

एक शिकायत के बाद महालेखाकार ( कैग ) ने 31 मई 2015 को आपत्ति जताते हुए बीज निगम को नियमों के खिलाफ की जा रही खरीदी और भुगतान पर रोक लगाने को कहा. निगम ने कैग की तमाम आपत्तियों को उस दौरान रद्दी की टोकरी में डाल दिया और बड़े पैमाने पर खरीदी और भुगतान का खेल जारी रखा. वर्ष 2015 से वर्ष 2018 तक यह क्रम जारी रहा. वर्ष 2018 में कैग ने एक बार फिर बीज निगम को खरीदी और पर रोक लगाने को कहा तब बीज निगम ने 11 जनवरी 2019 को खानापूर्ति करते मनीष शाह को एक पत्र लिखा और कहा कि वे जल्द से जल्द प्लांट स्थापित कर लें. अब तक न तो प्लांट लगा है और न ही स्थानीय स्तर पर कच्चे माल की खरीदी होती है. सारा कुछ बाहर से नियंत्रित होता है. अधिकारियों की सांठगांठ से शासन को चूना लगाने का खेल अब तक चल रहा है. बताते हैं कि शाह  ने कृषि विभाग, बीज निगम और शिक्षा विभाग में पदस्थ अधिकारियों से मिली-भगत कर करोड़ों रुपए का काम हथियाया और हर विभाग में घटिया सप्लाई की.

 

 

 

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धान खरीदी में लिमिट को कोरी अफवाह करार दिया खाद्य विभाग ने

रायपुर. खाद्य विभाग के सचिव ने धान खरीदी में लिमिट को कोरी अफवाह करार दिया है. एक पत्रवार्ता में उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में एक से छह दिसम्बर तक महज एक सप्ताह में एक लाख 73 हजार 491 किसानों से 7 लाख 11 हजार 306 मैट्रिक टन धान की खरीदी की गई है और धान विक्रय करने वाले एक लाख 26 हजार 897 किसानों को 700 करोड़ रूपए से अधिक का भुगतान भी किया जा चुका है.

गौरतलब है कि पहले कुछ समय से कतिपय राजनीतिक दलों द्वारा यह अफवाह फैलाई जा रही है कि सरकार लिमिट तय कर धान की खरीदी कर रही है. खाद्य सचिव  के मुताबिक प्रदेश के वास्तविक कृषकों से धान खरीदी सुनिश्चित करने के लिए अवैध धान खपाने की कोशिशों पर लगाम कसने की प्रभावी कार्रवाई की जा रही है. साथ ही दूसरे प्रदेशों से आने वाले धान पर तथा कोचियों, बिचैलियों पर प्रभावी कार्यवाही की जा रही है. उन्होंने बताया कि 7 दिसम्बर 2019 की स्थिति में कुल 2 हजार 270 प्रकरणों में 2 हजार 138 कोचियों और 132 अंतर्राज्यीय प्रकरणों में 29 हजार 170 टन अवैध धान की जप्ती की गई है, जिसमें 260 वाहनों के खिलाफ कार्यवाही की गई है. किसी भी किसान के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है. सभी प्रकरणों में धान खरीदी के ऐसे प्रकरण जिसमें बिना किसी मंडी लाइसेंस अथवा अन्य दस्तावेज जैसे खरीदी पत्रक नहीं होने पर कार्यवाही की गई है. उन्होंने बताया कि प्रदेश में छोटे व्यापारियों द्वारा वैध तरीके से किसानों से धान खरीदने पर कोई प्रतिबंध भी नहीं लगाया गया है.

उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा में की गई घोषणा के अनुरूप एक ही प्रकार के कृषि उपज के संबंध में मंडी अधिनियम के तहत 4 क्विंटल के स्थान पर 10 क्विंटल के संग्रहण की अनुमति छोटे व्यापारियों को दी गई है. प्रदेश में धान खरीदी की अपनी पूरी अवधि 15 फरवरी 2020 तक की जाएगी.  धान खरीदी केन्द्रों के क्षमता के अनुसार किसानों को असुविधा से बचाने के लिए टोकन जारी करने की व्यवस्था प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी गई है. उन्होंने बताया कि धान की खरीदी के लिए छोटे-बड़े सभी किसानों से उनके पंजीकृत रकबे के अनुसार प्रति एकड़ 15 क्विंटल की दर से धान खरीदी सुनिश्चित की जाएगी एवं धान खरीदी के लिए प्रत्येक किसान को अपनी उपज बेचने का अवसर प्रदान किया जाएगा. प्रदेश में धान खरीदी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर की जा रही है। 2500 प्रति क्विंटल की दर से शेष राशि के भुगतान के लिए अन्य राज्यों में प्रचलित योजना का अध्ययन कर पृथक योजना शीघ्र लागू की जाएगी. राज्य शासन द्वारा धान खरीदी के लिए आवश्यक धन राशि तथा बारदानों की व्यवस्था की गई है.

   

 

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विधानसभा में ऊंगली को लेकर बवाल

रायपुर. छत्तीसगढ़ की विधानसभा में मंगलवार को विपक्ष के सदस्य अजय चंद्राकर ने जमकर हंगामा मचाया. दरअसल विधायक वृहस्पति सिंह ने उन्हें ऊंगली दिखाते हुए जवाब दे दिया था. चंद्राकर ने कहा कि वे सम्मानित सदस्य है लेकिन कांग्रेस के सदस्य उन्हें ऊंगली दिखा रहे हैं. चंद्राकर के साथ विपक्ष के अन्य सदस्य भी अपनी जगह से उठकर खड़े हो गए और ऊंगली दिखाए जाने को लेकर हंगामा करने लगे. हंगामे के बीच ही कांग्रेस विधायक अरुण वोरा ने खड़े होकर आपत्ति जताई तो विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत ने उन्हें इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि उन्होंने एक के बजाय चार ऊंगली दिखाई है. विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि अब कोई भी सदस्य ऊंगली दिखाकर चर्चा नहीं करेगा. विधायक वृहस्पति सिंह ने कहा कि चंद्राकर बार-बार व्यवधान उत्पन्न करते हैं यह ठीक नहीं है. जनता कांग्रेस के विधायक धर्मजीत सिंह ने वृहस्पति सिंह को मानव बम बताया. उन्होंने बताया कि सरकार ने विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए मानव बम पैदा कर दिया है.
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सीएम बघेल ने सेक्सोफोन बजाने वालों के साथ ली सेल्फी तो तालियों से गूंज उठा राज्योत्सव का मैदान

रायपुर. कल 3 नवंबर की शाम सेक्सोफोनिस्ट विजेंद्र धवनकर पिंटू, लिलेश, सुनील और उनके साथियों के साथ- साथ संगीत प्रेमियों के लिए भी  एक यादगार शाम थीं. रायपुर के वृंदावन हॉल और भिलाई के प्रतिष्ठित कलामंदिर में अपनी धमाकेदार प्रस्तुति से लोगों के दिलों में खास छाप छोड़ने वाले सेक्सोफोनिस्टों ने जब राज्योत्सव के विशाल मंच में बेशुमार दर्शकों के बीच सेक्सोफोन बजाया तो हर कोई झूम उठा. एक पुरानी छत्तीसगढ़ी फिल्म घर-द्वार के प्रसिद्ध गीत- सुन-सुन मोर मया पीरा... की धुन को बजाते हुए कलाकार जब समारोह के प्रमुख मंच तक पहुंचे तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद को सेल्फी लेने से नहीं रोक पाए. उन्होंने तीन बार अलग-अलग अंदाज से कलाकारों के साथ सेल्फी ली. मुख्यमंत्री का यह अंदाज सबको खूब पंसद आया क्योंकि इसके पहले छत्तीसगढ़ के लोगों ने यहां के मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह को केवल करीना कपूर, सलमान खान और मुंबई के नामचीन कलाकारों के साथ ही सेल्फी लेते हुए देखा था. मुख्यमंत्री द्वारा ली गई सेल्फी की एक खास बात यह भी थीं कि मंच पर विधानसभा अध्यक्ष चरणदास मंहत, सांसद ज्योत्सना महंत, स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव, गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, वन मंत्री मोहम्मद अकबर, संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत, नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया, शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह, लोक स्वास्थ्य मंत्री रूद्र गुरू, महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अनिला भेड़िया, मुख्य सचिव आरपी मंडल, प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी, संस्कृति विभाग के सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी, संचालक अनिल साहू सहित विधायक और वरिष्ठ अफसर मौजूद थे.

राज्योत्सव में कलाकारों ने फिल्म शोले के टाइटल म्यूजिक से जो माहौल बनाया वह अंत तक बरकरार रहा. कलाकारों ने एक से बढ़कर एक धुनें सुनाई. डाक्टर नरेंद्र देव वर्मा लिखित गीत अरपा पैरी के धार की सबसे पहली प्रस्तुति वे भिलाई में दे चुके थे, लेकिन यहां राज्योत्सव में भी जब सेक्सोफोन पर यह गीत गूंजा तो हर कोई यह कहने को मजबूर हो गया कि छत्तीसगढ़ की मिट्टी में जन्में कलाकार अंग्रेजी बाजे में भी अपनी माटी के प्रति सम्मान प्रकट करने का हुनर जानते हैं. कलाकारों ने छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध गढ़बा बाजा को भी सेक्सोफोन पर बजाकर दर्शकों को नाचने के लिए मजबूर कर दिया. सेक्सोफोन बजाने वाले कलाकार जल्द ही अपनी प्रस्तुति अंबिकापुर, राजनांदगांव, रायगढ़, कोरबा, बिलासपुर जैसे बड़े शहरों में भी देंगे.

 

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बस्तर की बेशकीमती सागौन की लकड़ी को लेकर पत्रकार और वन अफसर आमने-सामने

रायपुर. बस्तर के किसी पत्रकार ( दो-चार को छोड़कर ) से पूछो कि क्या वह रायपुर या देश के किसी बड़े मीडिया संस्थान में काम करने का इच्छुक है तो कहेगा- क्यों नहीं...? मगर बस्तर से बाहर नहीं जाऊंगा. बस्तर में रहकर ही अपनी सेवाएं दूंगा. इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं मालूम, लेकिन कहते हैं कि जो पत्रकार एक बार बस्तर जाकर बस गया...वह फिर दोबारा कहीं और काम नहीं करना चाहता. अब यह बस्तर की माटी का खिंचाव है या कुछ और...शोध का विषय है. कमोबेश यही स्थिति नौकरशाहों की भी है. बस्तर को माओवाद प्रभावित और काला पानी-काला पानी कहकर प्रचारित करने वाले अफसर अव्वल तो बस्तर जाना नहीं चाहते, लेकिन जब चले जाते हैं तो फिर लौटना नहीं चाहते. उन्हें भी बस्तर की माटी से प्रेम हो जाता है या फिर आय के साधनों में बढ़ोतरी हो जाती है...इस पर भी जांच करने की आवश्यकता है.

पता नहीं इस खबर में ऊपर लिखे गए इंट्रो का क्या महत्व है, मगर कभी-कभी ऐसा लगता है बस्तर के संसाधनों पर कौन-कौन नजरें गड़ाए बैठा है इस पर तथ्यपरक ढंग से अन्वेषण होना चाहिए. बहरहाल यह खबर एक पत्रकार और एक वन अफसर की भिंडत से संबंधित है. बस्तर के पत्रकार नरेश कुशवाह ने जगदलपुर में पदस्थ वन अफसर आरके  जांगड़े पर गंभीर आरोप लगाते हुए मुख्यमंत्री, वनमंत्री, मुख्य सचिव और प्रधान मुख्य वन संरक्षक को शिकायत भेजी है. पत्रकार का आरोप है कि जांगड़े ने धमतरी के ठेकेदार गिरधारी लाल के साथ मिलकर सागौन लकड़ी की नीलामी में अफरा-तफरी की है. पत्रकार ने अपनी शिकायत में कहा है कि 2 जून 2018 को सागौन की लकड़ियों की नीलामी हुई थीं. ठेकेदार ने सार्वजनिक तौर पर दस लाख छह सौ रुपए की बोली लगाई थीं, लेकिन बीडशीट में सात लाख छह सौ रुपए दर्शाकर ठेकेदार को लाभ दे दिया गया. पत्रकार कुशवाह का कहना है कि नीलामी के दौरान वनोपज व्यापार के तहत शासकीय मुद्रणालय से मुद्रित और वन विभाग से सत्यापित बीडशीट का उपयोग ही किया जा सकता है, लेकिन वनमंडलाधिकारी जांगड़े ने कम्प्युटर से बीडशीट निकाली और उसका उपयोग किया. इस तरह की बीडशीट कभी भी बदली जा सकती है. कुशवाह का यह भी आरोप है कि किसी भी नीलामी के दौरान अंतिम बोली लगाने वाले को सात दिनों के भीतर बोली गई राशि का 25 फीसदी जमा करना होता है. यदि बोलीदार यह राशि जमा नहीं करता है तो बोली निरस्त कर दी जाती है, लेकिन जांगड़े ने ऐसा नहीं किया और राशि जमा करने से पहले ही 30 जून 2018 को लकड़ी उठाने की स्वीकृति प्रदान कर दी. जब रायपुर टिंबर मर्चेंट एसोसिएशन ने इस बारे में प्रधान मुख्य वन संरक्षक को शिकायत भेजी तब मामले की लीपापोती चालू की गई. पत्रकार ने दावा किया कि ठेकेदार से बैक डेट पर चेक भी लिया गया, लेकिन बैंक में चालान जमा करने की तारीख कुछ और है.

इधर वनमंडलाधिकारी जांगड़े का कहना है कि कुशवाह को पत्रकारिता का काम करना चाहिए था, लेकिन वे किसी भारत टिंबर के जरिए खुद ही लकड़ी की खरीददारी के खेल में लगे थे. यह सही है कि लिपिक की त्रुटि के चलते कागजों में राशि गलत अंकित हो गई थीं, लेकिन जैसे ही यह जानकारी मिली उसे सुधार लिया गया. ठेकेदार को किसी भी तरह का कोई लाभ नहीं दिया गया है. ठेकेदार ने नीलामी में जो बोली लगाई थी उसी आधार पर पैसा लिया गया है. जांगड़े ने अपना मोर्चा डॉट कॉम को बताया कि कुशवाह ने इस मामले की शिकायत कई जगह कर रखी है. हर तरफ से जांच हो रही है मगर किसी को कुछ भी नहीं मिल रहा है क्योंकि वे गलत नहीं है.

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तबादले के बाद भी गंभीर आरोपों से घिरे हुए हैं वन अफसर पंकज राजपूत

रायपुर. जो लोग जंगल महकमे से जुड़े हुए हैं वे लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि उनका महकमे का कामकाज कितना बेहतर है और कितना खौफनाक ? यहां कोई थोड़ी सी भी उंटपटांग हरकत करता है तो मंत्रालय के गलियारों में रिकार्ड प्लेयर चालू हो जाता है-जंगल-जंगल बात चली है... पता चला है. अभी कुछ दिनों पहले भोपाल में जो हनी ट्रैप कांड हुआ था उसमें छत्तीसगढ़ के वन विभाग से जुड़े दो अफसरों का नाम प्रमुखता से उभरा, लेकिन राजनीतिक और प्रशासनिक उठापटक के चलते मामला सुलट गया और वे बच गए. बहरहाल इन दिनों पंकज राजपूत नाम के एक वन अफसर की चर्चा जोरों पर है. बताते हैं यह अफसर कभी पूर्व मुख्यमंत्री के सबसे करीबी था और लंबे समय तक राजनांदगांव में ही पदस्थ था.

एक शिकायतकर्ता नरेंद्र ने फिजूलखर्ची और महिलाकर्मियों के साथ व्यवहार को लेकर पंकज के खिलाफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को शिकायत भेजी है. अपनी शिकायत में नरेंद्र ने कहा है कि पकंज राजपूत के पहले राजनांदगांव में बतौर डीएफओ शाहिद साहब पदस्थ थे. शाहिद साहब ने पदस्थ होते ही सबसे पहले अपने बंगले का रंग-रोगन करवाया, एसी और टाइल्स बदलवाया, लेकिन शाहिद साहब के स्थानांतरण होते ही पंकज राजपूत ने भी यही काम किया और एक तरह से सरकारी खजाने का दुरूपयोग किया. फिजूलखर्ची में वे इतने ज्यादा एक्सपर्ट थे कि जिस व्हालीबाल ग्राउंड पर डीएफओ अरुण प्रसाद ने लाखों रुपए फूंके थे उसी व्हालीबाल ग्राउंड पर दोबारा पैसा फूंका गया. इतना ही नहीं कमीशन के खेल में अंग्रेजी में छपी एक किताब सभी रेंजर और लिपिकों को भेजी गई और उनसे कहा गया कि इसका भुगतान करना है. अब न तो बाबू ढंग से अंग्रेजी जानते हैं और न हीं रेंजर... लेकिन साहब ने कहा है कि भुगतान करना है तो भुगतान कर रहे हैं. शिकायतकर्ता का कहना है कि वनमंडल के पुराने फर्नीचर की मरम्मत और पालिश के नाम पर भी लाखों रुपए बरबाद किए गए हैं. डिवीजन के रिकार्ड से लैपटाप, कम्पयूटर, टीवी, एसी गायब है.

महिला कर्मचारी को अटैक

पकंज राजपूत जब तक पदस्थ थे तब तक महिला कर्मचारियों से उनका व्यवहार दोयम दर्जे का था. एक महिला जिसे वे रोज अपमानित करते थे उसे हार्ट अटैक भी आया और उसके इलाज में लाखों रुपए खर्च हुए. वे अपने अधीनस्थ लिपिकों से भी देर रात घर में काम लेते रहे जिसके चलते एक बाबू भी अटैक का शिकार हुआ. इन दिनों वह बाबू लंबी छुट्टी पर है. शिकायतकर्ता का  कहना है कि पंकज राजपूत अपने चहेतों को नियुक्ति देने में भी आगे रहते थे. उन्होंने मोहम्मद अय्यूब शेख नाम के एक वनपाल को सीधे जिला यूनियन में डिप्टी रेंजर बना दिया जबकि अय्यूब ने कभी भी तेंदूपत्ते का काम ही नहीं देखा. इन दिनों अय्यूब दक्षिण मानपुर का प्रभार संभाल रहा है. वनपाल के प्रशिक्षण से वापस आए कर्मचारी शीतल, भुवन चंद्रवंशी, कृष्णालाल, नमिता, कुशल लटियार, संतोष कुसरे को बगैर किसी पदस्थापना के वेतन दिया गया और फिर बाद में इनका स्थानांतरण दूर-दराज कर दिया गया. शिकायत में भंडार क्रय नियमों के उल्लंघन से संबंधित अनेक बिंदु शामिल किए गए गए हैं. कहा गया है कि पंकज जब तक पदस्थ थे तब तक एक ही ठेकेदार से स्टेशनरी खरीदी जाती रही.

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एंटी करप्शन ब्यूरो में पदस्थ दो बड़े अफसरों को दूसरे अफसर ने लपेटा

रायपुर. एंटी करप्शन ब्यूरो में पदस्थ दो बड़े अफसरों की कार्यप्रणाली को लेकर हर रोज नई-नई बातें सामने आ रही है. कुछ समय पहले एंटी करप्शन ब्यूरो में पदस्थ उप पुलिस अधीक्षक स्तर के एक अधिकारी अजितेश कुमार सिंह ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी को एक शिकायत भेजकर गंभीर आरोप लगाए हैं.

अधिकारी अजितेश कुमार का कहना है कि दिनांक 28 जून 2019 को बिलासपुर के सहायक आबकारी आयुक्त दिनेश दुबे के मामले में खात्मा प्रकरण न्यायालय के समक्ष पेश किया गया था. जब मामले का खात्मा हो गया तब उनके द्वारा एसीबी के जिस अफसर को वाट्सअप काल पर सूचना दी उसने पहले तो फोन नहीं उठाया, लेकिन बाद में जब फोन उठाया तो गंदी-गंदी गालियों से नवाजा और सीधे वरिष्ठ अफसर को फोन थमा दिया. वरिष्ठ अफसर ने भी अपशब्दों का प्रयोग करते हुए कहा कि तुमने इस मामले में जानकारी छिपाकर अच्छा नहीं किया. अब तुम्हें बरबाद होने से कोई नहीं बचा सकता. तुम्हारा निलंबन तो होकर रहेगा.

फंसा सकते हैं झूठे मामले में

अफसर ने अपनी शिकायत में अपने जान-ओ-माल की सुरक्षा की गुहार लगाई है. अफसर का आरोप है कि दोनों अफसर सीधे-सादे लोगों को झूठे मामलों में फंसाने की कला में माहिर है.अफसर ने खुद को मानसिक तौर पर प्रताड़ित बताते हुए कहा कि जब से दोनों अफसरों ने उसे धमकाया है तब से वह खुदकुशी करने के बारे में सोच रहा है. अगर कल को उसके द्वारा कोई अप्रिय कदम उठा लिया जाता है तो इसके लिए उसे प्रताड़ित करने वाले अफसर जिम्मेदार होंगे. ( अफसर ने जिन्हें जिम्मेदार बताया है उनका नाम भी लिखा है.)

दूसरी शिकायत और भी गंभीर

इधर एंटी करप्शन ब्यूरो में पदस्थ अफसर की दूसरे अफसर की और भी गंभीर शिकायत मंत्रालय के गलियारों में घूम रही है. यह शिकायत राजेश कुमार बानी नाम के किसी सिविल इंजीनियर ने लिखी है जो वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तब भेजी गई थी जब आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के पुलिस महानिदेशक मुकेश गुप्ता थे. शिकायत में कहा गया है कि अफसर जब धमतरी में पदस्थ था तब वह साहू नाम के एक करीबी पुलिसकर्मी के जरिए हर थाने से मोटी रकम की वसूली करता था. पैसों की वसूली के लिए चालान को रोककर रखा जाता था.

क्लासमेंट को बचाया

शिकायतकर्ता का कहना है कि रायगढ़ जिले घरघोड़ा में सीईओ के पद पर अरूण कुमार शर्मा पदस्थ थे, लेकिन तमाम तरह की छापामार कार्रवाई के बाद उन्हें इसलिए बख्श दिया गया क्योंकि वे पुलिस अफसर के क्लासमेंट थे. इसके अलावा आलोक पांडे, कृष्ण कुमार पाठक, कौशल यादव, श्यामचंद पटेल, राममोहन दुबे को भी जेल जाने से बचा लिया गया. शिकायतकर्ता का कहना है कि अगर सरकार यह जांच करें कि अफसर के नेतृत्व में कब-कब छापामार कार्रवाई की गई है और कितने लोगों का चालान पेश किया गया... कितने बरी हो गए... तो भी सच्चाई सामने आ जाएगी. शिकायत में अफसर के मकान-दुकान समेत अन्य घोषित-अघोषित संपत्तियों का ब्यौरा भी दिया गया है.

 

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