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साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल से फोन पर हाल-चाल पूछा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने

साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल से फोन पर हाल-चाल पूछा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने

रायपुर. सामान्य तौर पर सत्ताधीश साहित्यकारों की उपेक्षा ही करते हैं, लेकिन जो राजनीतिज्ञ दूरदर्शी होते हैं वे इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि साहित्य...राजनीति के आगे चलने वाली मशाल का नाम हैं. छत्तीसगढ़ में पुराने निजाम के बदल जाने के साथ ही कई तरह के परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं. फिलहाल तो छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बचाए रखने की कवायद जारी है. इधर कोरोना से प्रभावित हरेक शख्स का पूरा ख्याल रखने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने गुरुवार को वरिष्ठ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल से दूरभाष पर उनका हालचाल जाना. मुख्यमंत्री ने उनसे पूछा कि लॉकडाउन के दौरान उनकी दिनचर्या कैसी है?  वे क्या करते है. कुछ नई कविताएं लिख रहे हैं या नहीं ? जवाब में श्री शुक्ल ने बताया कि वे अल-सुबह उठ जाते हैं और फिर चाय-नाश्ते के बाद लिखने बैठ जाते हैं. शुक्ल ने बताया कि इस बीच उन्होंने कुछ कविताएं लिखी है. मुख्यमंत्री ने प्रसन्नता जाहिर करते हुए उनके बेहतर स्वास्थ्य और दीघार्यु होने की कामना की.

ज्ञात हो कि श्री शुक्ल यहीं रायपुर के शैलेंद्र नगर में निवास करते हैं. देश में उनकी ख्याति हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार के तौर पर हैं. उनकी एकदम भिन्न साहित्यिक शैली ने परिपाटी को तोड़ते हुए ताज़ा झोकें की तरह पाठकों को प्रभावित किया, जिसको 'जादुई-यथार्थ' के आसपास की शैली के रूप में महसूस किया जा सकता है. उनका पहला कविता संग्रह 1971 में 'लगभग जय हिन्द' नाम से प्रकाशित हुआ. 1979 में 'नौकर की कमीज़' नाम से उनका उपन्यास आया जिस पर फ़िल्मकार मणिकौल ने फिल्म भी बनाई. कई सम्मानों से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल को उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए 'साहित्य अकादमी' पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। विनोद कुमार शुक्ल हिंदी कविता के वृहत्तर परिदृश्य में अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट और संवेदनात्मक गहराई के लिए जाने जाते हैं। वे कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी हैं। उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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