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चंदूलाल चंद्राकर के पोते ने भगवा बिग्रेड पर साधा निशाना-जो कभी नहीं चाहते थे कि छत्तीसगढ़ राज्य बने... वे ही कर रहे हैं विरोध

चंदूलाल चंद्राकर के पोते ने भगवा बिग्रेड पर साधा निशाना-जो कभी नहीं चाहते थे कि छत्तीसगढ़ राज्य बने... वे ही कर रहे हैं विरोध

रायपुर. छत्तीसगढ़ में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय को अब देश के मूर्धन्य पत्रकार रहे चंदूलाल चंद्राकर के नाम कर दिया गया है. इस नामकरण के बाद ऐसे लोग विरोध में उतर आए हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय परिसर को बांटने, छांटने और काटने वाली वैचारिक दुकान में तब्दील कर रखा था. बताते हैं कि परिसर में ऐसे-ऐसे लोगों का जमावड़ा होता था ( शायद अब भी हो... क्योंकि वहां ऐसे लोग तैनात हैं.) जिनका एकमात्र लक्ष्य छात्र-छात्राओं के बीच वैमनस्य का बीज बांटना था. भाजपा शासनकाल के 15 सालों में यहां कई तरह के विचारक यहां अपना ज्ञान बघारने के लिए आते रहे. इन विचारकों में से अधिकतर का लक्ष्य अलगाव को बढ़ावा देना था. एक तरह से यह विश्वविद्यालय नफरत की राजनीति करने वालों का केंद्र बन गया था. इधर कतिपय लोगों के विरोध के बीच चंदूलाल चंद्राकर के पोते अमित चंद्राकर ने फेसबुक पर एक पोस्ट साक्षा की है. इस पोस्ट पर उन्होंने भगवा बिग्रेड पर निशाना साधते हुए कहा है कि जो लोग कभी नहीं चाहते थे कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण हो... वे ही विरोध की राजनीति कर रहे हैं.

अमित चंद्राकर ने लिखा है- जो लोग विश्वविद्यालय के नए नामकरण का विरोध कर रहे हैं उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि घर के जिस पते पर वे छत्तीसगढ़ को लिखते हैं वह चंदूलाल चंद्राकर की ही देन है. वे पहले ऐसे भारतीय पत्रकार थे जिन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन का इंटरव्यूह लिया था. वर्ष 1946 से 47 तक उन्हें नई दिल्ली के बिरला हाउस में महात्मा गांधी के व्याख्यान को कव्हर करने की जिम्मेदारी दी गई थीं. आज से चालीस साल पहले ही उन्होंने लगभग 148 देशों की यात्राएं की थीं. उन्हें देश-दुनिया की गहन जानकारी थीं. वर्ष 1995 में जब उनका देहांत हुआ तब भाजपा के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी की आंखे नम थीं. वाजपेयी ने संसद में कहा था- देश ने ऐसा नेता खो दिया है जिसकी भरपाई शायद ही हो पाए. अमित चंद्राकर ने अपना मोर्चा डॉट कॉम से भी बातचीत में कहा कि चंदूलाल चंद्राकर के नाम के विरोध के पीछे नफरत की राजनीति को बढ़ावा देने वाले तत्व सक्रिय है. ऐसे तत्वों को बेनकाब करना बेहद जरूरी है.

कौन है कुशाभाऊ ठाकरे ?

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे कुशाभाऊ ठाकरे का जन्म मध्यप्रदेश के धार जिले में हुआ था. उनकी शिक्षा-दीक्षा भी छत्तीसगढ़ में नहीं हुई थीं. वे लंबे समय तक संघ के प्रचारक थे और फिर जब भाजपा के शीर्ष पद पर पहुंचे तो संगठन के काम को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ आया करते थे. सोशल मीडिया में लोग कुशाभाऊ ठाकरे के पत्रकारिता में दिए गए योगदान को लेकर सवाल उठा रहे हैं. एक फेसबुक पोस्ट है जिसमें लिखा है- मैं पत्रकारिता का विद्यार्थी हूं. मुझसे आज तक किसी भी प्राध्यापक ने नहीं कहा कि बेटा जीवन में अगर कभी कुछ बनना है तो कुशाभाऊ ठाकरे जैसा पत्रकार बनना.

क्या कुलपति को हटाया जाएगा ?

विश्वविद्यालय के नए कुलपति बलदेव शर्मा को एक खास तरह के विचारक भारतीयता के पोषक तत्व के रुप में प्रचारित करते हैं. श्री शर्मा संघ के मुखपत्र पांचजन्य के संपादक रहे हैं. हालांकि अपनी तैनाती के बाद बलदेव शर्मा ने मीडिया से कहा है- कुलपति किसी पार्टी का नहीं होता. अब उनका एकमात्र लक्ष्य शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ावा देना है. अब यह कैसे और किस तरह से संभव हो पाएगा यह भविष्य की बात है, लेकिन इधर छत्तीसगढ़ सरकार ने विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्तियों को लेकर नया नियम-कानून बना लिया है इसलिए राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा चल पड़ी है कि जल्द ही कुलपति को हटा दिया जाएगा. इसके साथ ही विश्वविद्यालय में नफरत की विचारधारा को बढ़ावा देने वाले प्राध्यापकों पर भी गाज गिर सकती है. बताते हैं कि विश्वविद्यालय में एक ऐसा प्राध्यापक भी तैनात है जो एक संगठन का प्रमुख पदाधिकारी है. कुलपति के पदभार ग्रहण के दौरान विश्वविद्यालय में एक खास दल और उनसे जुड़े लोगों के शक्ति प्रदर्शन को लेकर भी कई तरह की बातें हो रही हैं. पदभार समारोह के दौरान कुछ खबरची लोग भी मौजूद थे. उनका कहना है- पदभार समारोह को देखकर लग रहा था जैसे नेताजी बारात लेकर आ गए हैं. जोरदार ढंग के तमाशे और नारों के बीच खबरची को फिल्म चाइना गेट के जगीरा का संवाद भी याद आ रहा था- हमसे न भिंडियो... मेरे मन को भाया... तो मैं कुत्ता काट के खाया. खबरची के कहने का पूरा भाव यहीं था कि कुछ लोग यह सोचकर धक्का-मुक्की और नारेबाजी कर रहे थे जैसे उन्होंने बहुत बड़ी जंग जीत ली है.

 

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