देश

युवाओं...अपने नेताओं से पूछो- “आपके बच्चे कहां हैं ”

युवाओं...अपने नेताओं से पूछो- “आपके बच्चे कहां हैं ”

डॉ. दीपक पाचपोर

कुछ समय पहले अफगानिस्तान में तख्तापलट के बाद आतंकवादी अपने हाथों में आधुनिकतम हथियार थामे ट्रैफिक व्यवस्था को सम्हालते, सड़कों पर पहरा देते, परीक्षाएं संचालित करते या कार्यालयों में बैठे नज़र आये थे। तब भारत सहित लोकतांत्रिक प्रणाली में आस्था रखने वाले लोगों के दिल दहल गये थे। कई लोगों ने उन दृश्यों की हंसी भी उड़ायी थी। सोचने की बात यह है कि क्या उनके हाथों में ये बड़े व आधुनिक हथियार एकाएक आ गये या रातों-रात वे इसे चलाने में माहिर हो गये होंगे। बिलकुल नहीं! दुनिया की सारी चीजों या विचारों की तरह यह भी क्रमिक विकास का ही एक पड़ाव था जिसकी शुरुआत निश्चित रूप से छोटे स्तर व लघुतर पैमाने पर हुई होगी। वहां के नौजवानों ने अतिवादी विचारों के फेर में पड़कर पहले छोटे हथियार हाथों में लिये होंगे। खुद के हाथों में हथियार थामने का रोमांच, भीड़ प्रदत्त सुरक्षा व पहचान में न आने की आभासी आश्वस्ति के चलते वहां के युवाओं के हाथों में छोटे से बड़े एवं पुरातन से आधुनिक हथियार आये होंगे। ये वे लोग थे जिनकी पढ़ाई-लिखाई छुड़ाकर उन्हें इस्लामी दुनिया बनाने में योगदान देने के लिये आमंत्रित किया गया होगा। वहां भी राजनीति में धर्म के घालमेल ने यह परिस्थिति बनाई है। 

कौन सोच सकता था कि जल्दी ही इसके प्रारम्भिक रूप या कहें कि उसके मिनिएचर भारत के शहरों महानगरों, कस्बों अथवा गांवों में भी देखने को मिल सकते हैं। पूरे समाज ने अगर इसे अभी ही न रोका तो आश्चर्य नहीं कि आज हमारे युवाओं के हाथों में जो छोटे-मोटे व कुछ मायने में प्रतीकात्मक अथवा गैर कारगर किस्म के हथियार दिख रहे हैं, आगे चलकर उनकी जगह बड़े व घातक हथियार ले सकते हैं। राजनीति एवं युवाओं के हाथों में हथियार के अंतर्संबंध क्या हैं? राजनीति के इस षडयंत्र को युवा जितनी जल्दी समझ लें, यह स्वयं उनके और देश के लिये उतना ही अच्छा होगा। उन्हें चाहिये कि वे केवल यह न देखें कि किनके हाथों में हथियार हैं, बल्कि यह भी देखें कि उनके नेताओं के किन बच्चों के हाथों में हथियार नहीं हैं? वे यह भी मत देखें कि कौन लोग इस भीड़ में शामिल हैं, वरन इस पर गौर करें कि जो लोग आपके हाथों में हथियार थमाकर आपको जुलूस में लेकर आये थे, उनके अपने बच्चे कहां हैं और क्या कर रहे हैं? अगर उनके बच्चे आपके साथ हथियार नहीं लहरा रहे हैं तो समझ जाएं कि आपका निरा राजनैतिक, धार्मिक व आपराधिक उपयोग हो रहा है जिसकी मलाई तो आपके नेतागण खाएंगे लेकिन जीवन भर के लिये अपराध व हिंसा आपका पीछा नहीं छोड़ेगी। आपका नाम उस सूची में शामिल होगा जो हर थानेदार तबादले के वक्त अगले अधिकारी को इस सलाह के साथ देकर जायेगा कि “इस पर नज़र रखे रहना!” जब तक आपकी चहेती पार्टी की सरकार है तब तक तो ठीक है, पर सत्ता स्थायी नहीं होती। परिवर्तन होते ही संरक्षण देने वाले आपको एकदम लावारिस छोड़कर स्वयं सत्ताधारी दल के साथ या तो मिल जायेंगे या उनसे संबंध सुधार लेंगे। आपके या तो स्कूल-कॉलेज छूट जायेंगे अथवा पढ़ाई में आपकी रुचि समाप्त हो जायेगी। नौकरियां तो मिलने से रहीं!

यह महज संयोग नहीं कि कई ऐसे लोग आपको सोशल मीडिया पर जहर उगलते मिलेंगे लेकिन उनके बच्चे इससे दूर हैं। वे शहर-कस्बे के सबसे अच्छे स्कूल-कॉलेजों में पढ़ते हैं, कोचिंग हब में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियां करते हैं, ऊंची शिक्षा के लिये देश के बड़े शहरों में जाते हैं और नौकरी भी वहीं करते हैं अथवा विदेशों में बस जाते हैं। वे अपने बच्चों के हाथों में न तो हथियार थमाते हैं और न ही ऐसे जुलूसों या शोभायात्राओं का उन्हें हिस्सा बनाते हैं जिसमें हिंसा होने अथवा उनकी पहचान उजागर होने का खतरा होता है। वे जानते हैं कि इससे उनका केरियर बर्बाद हो जायेगा। इसलिये कथित ऊंची कही जाने वाली जातियों के बच्चे इनमें कम दिखलाई देते हैं। अगर हैं भी, तो जान लीजिये कि वह युवा या छात्र उसी शहर में अपने मां-बाप या किसी गॉडफादर के मार्गदर्शन में अपना ‘राजनैतिक केरियर’ ही बना रहा है। अधिकतर युवा कथित निचली जातियों, पिछड़े वर्गों आदि के होते हैं जो जोश-जोश में धर्म-राजनीति-अपराध की सीढ़ियां चढ़ते हुए खुद नेता बनना चाहते हैं। उन्हें गैरकानूनी कृत्यों, हिंसा या प्रदर्शनों में शामिल करने के लिये कई बातें सिखलाई जाती हैं। यों कहा जाये कि दिमाग में भर दी जाती हैं। पहला यह कि ‘उनका धर्म खतरे में है।’ दूसरे, अन्य धर्म वाले कट्टर होते हैं इसलिये उनका मुकाबला कट्टरता से ही सम्भव है। तीसरे, नयी शिक्षा पद्धति ने हमारे धर्म व संस्कृति को बर्बाद कर दिया है। फिर, अन्य मजहबियों की बढ़ती जनसंख्या से वे देश पर कब्जा कर लेंगे, उनके कारण आपको नौकरी नहीं मिलती, अन्य धर्मावलम्बियों के कारण अपनी जान को खतरा...आदि...आदि। धर्म व राजनीति की दोहरी जहरखुरानी उन पर ऐसा असर करती है कि वह अपने अभिभावकों की तकलीफें, उनकी हसरतें, केरियर, भावी जीवन, पारिवारिक जिम्मेदारियों का ख्याल नहीं रख पाते। वे यह भी सोचते हैं कि उनके नेता उन्हें बचा लेंगे लेकिन उन पर मुकदमे लम्बे चलते हैं। उनके हाथों अगर कोई गंभीर कृत्य होता है तो उन्हें बचाने वाला कोई नहीं होता और न ही उनके जीवन संवर पाते हैं। युवकों को नहीं पता कि वे नेताओं के लिये खाद-पानी हैं। असंख्य युवाओं के जीवन को बर्बाद करने से ही मुट्ठी भर नेताओं की संतानों की राजनीति चमकती है। 

नफ़रती व हिंसक राजनीति के प्रति आकर्षित करने के लिये आवश्यक है कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन, उसके मूल्यों, आदर्शों एवं प्रदेयों के प्रति घृणा भाव बढ़ाया जाए क्योंकि वर्तमान भारत स्वतंत्रता की भावना, सर्व धर्म समभाव, लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत असहमति के प्रति भी सहिष्णुता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विपक्ष का सम्मान, नागरिक अधिकार, समानता, बन्धुत्व आदि के सिद्धांतों पर टिका हुआ है। इन मूल्यों के प्रति घृणा भाव से ही इतिहास बोध से शून्य लोग आकर्षित हो सकते हैं। इसी भावना के तहत नागरिकता कानून या किसान आंदोलन में शामिल लोगों को ‘पाकिस्तानी’ या ‘खालिस्तानी’ बतलाया जाता है, तो वहीं श्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों को बदनाम व बर्बाद किया जाता है। युवाओं को यह समझना होगा कि अगर आप अहिंसा के बदले हिंसा, सहिष्णुता की जगह पर असहिष्णुता, समावेशी की बजाये विभाजनकारी, समानता नहीं गैर बराबरी, अभिव्यक्ति के स्थान पर आवाज दबाने, बहुलतावाद की बजाये बहुसंख्यकवाद को तरजीह देंगे और वैसी दुनिया बनाने की कोशिश करेंगे तो एक हथियारबन्द समाज में कल आपको ही विचरना है। ऐसे समाज की कल्पना ही भयावह है जिसमें आपका मूल्यांकन आपके ज्ञान, प्रतिभा, कौशल को देखकर नहीं बल्कि आपके हाथों-कंधों पर टंगे असलहे से होगा। अगर आपकी हिंसा आपको अपने से कमजोर पर प्रतिष्ठित करेगी तो कोई न कोई आपसे अधिक हिंसक व शक्तिशाली आपको दबायेगा; और ख्याल रखें कि वह किसी दूसरे धर्म या सम्प्रदाय से नहीं बल्कि आपके अपने समाज से निकलेगा; सम्भव है कि वह आपका कोई सहयोगी, रिश्तेदार या मित्र ही हो । अपने लिये मत बनाइये ऐसी दुनिया! 

युवाओं को अगर एक खुशगवार संसार चाहिये तो उसे खुद का निःशस्त्रीकरण करना होगा। मानव ने ‘लोकतंत्र’ नामक न्याय पाने-देने की एक मुकम्मल व कारगर प्रणाली पहले ही विकसित कर ली है। इसके जरिये युवा अपने लिये एक खुशहाल, सम्पन्न एवं आधुनिक समाज का निर्माण कर सकते हैं। 

 

ये भी पढ़ें...