विशेष टिप्पणी

जिस पत्रकार को थाने में नंगा खड़ा किया गया  उसकी बेटी आंखों में आंसू लेकर पूछ रही है सवाल ?

जिस पत्रकार को थाने में नंगा खड़ा किया गया उसकी बेटी आंखों में आंसू लेकर पूछ रही है सवाल ?

मध्यप्रदेश के सीधी जिले में पत्रकार कनिष्क तिवारी को पुलिस ने जिस तरह से थाने में नंगा खड़ा कर तस्वीरों को वायरल किया वह बेहद शर्मनाक है. पढ़े-लिखे और समझदार लोग मान रहे हैं कि थाने में पत्रकार को नहीं बल्कि लोकतंत्र को नंगा किया गया है. शिवराज सिंह की पुलिस ने लोकतंत्र की पीठ पर चमड़े की बेल्ट से वार भी किया है. पत्रकार ने खुद एक वीडियो जारी कर बताया है कि उसे और उसके साथियों को पुलिस ने किस निर्ममता से मारा-पीटा है. इधर खबर और तस्वीरों के वायरल होने के बाद जब पत्रकार की बेटी ने एक अखबार में अपने पिता की तस्वीर देखी तो वह रो पड़ी. बेटी के आंसूओं में कुछ सवाल उमड़ रहे थे जिसे कनिष्क तिवारी ने महसूस कर फेसबुक पर शेयर किया है.

 

मैं कनिष्क तिवारी सच्चे मन से सामाजिक मुद्दे को उठाता हूं उठाता रहूंगा. मरते दम तक लडूंगा और लड़ता रहूंगा. लेकिन मेरी कुछ पारिवारिक जिम्मेदारी भी है. मेरी 10 साल की एक बेटी है. उसे यह सब नहीं मालूम है कि  पत्रकार किन परिस्थितियों में सामाजिक मुद्दों को उठाते हैं ? क्या परिस्थितियां होती हैं ? क्या हालात होते हैं?  जब कई बार लगता रहा है कि यह सब छोड़ के कुछ और किया जाए. बीते दिन ऐसा ही कुछ हुआ. जब प्रताड़ना की पराकाष्ठा को पार कर दिया गया. मेरे सामाजिक सम्मान को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया गया. आज अखबारों में जब यह खबर छपी और साथ में वह तस्वीर भी छपी जिसे पुलिस के द्वारा विधायक के कहने पर खींचकर वायरल किया गया था तब शायद विधायक और उसके पुत्र खूब खुश हुए हो. उन्हें अपनी जीत का एहसास भी हुआ हो, लेकिन एक पत्रकार समाज का आईना है. उस सामाजिक आईने को कैसे चूर चूर किया गया. उसका हौसला तोड़ा गया उसे मजबूर किया गया. साथ ही मान सम्मान को ऐसी ठेस पहुंचाई गई कि कल्पना मात्र से ही आंखों से आंसू निकल आते हैं.

आज सुबह 8 तारीख को जब अखबार घर आया तो मेरी 10 साल की बेटी ने अखबार में मेरी अर्धनग्न तस्वीर देखी तो रोते हुए पूछा कि पापा यह क्या है ? मेरे आंखों से आंसू छलक आए और मैंने सिर्फ यही कहा कि बेटा यह आपके पापा के द्वारा पत्रकारिता के रूप में किए गए काम का इनाम है. मैंने यह भी समझाया जब सच की लड़ाई लड़ी जाती है तो इंसान अकेले होता हैं, लेकिन यदि सच के साथ हमेशा खड़ा रहा जाए तो धीरे-धीरे कारवां बढ़ता जाता है.

धन्यवाद राष्ट्रीय मीडिया. धन्यवाद प्रादेशिक मीडिया. धन्यवाद सभी शुभचिंतकों को जिन्होंने मेरे अपमान को अपना अपमान समझा. यह एक पत्रकार का अपमान नहीं था बल्कि पत्रकार बिरादरी का अपमान था. यदि न्याय नहीं मिलता तो कभी पत्रकार किसी गरीब और दबे कुचले की आवाज ही नहीं उठा पाएंगे. बेटी धीरे-धीरे बड़ी होगी तब शायद उसे सब कुछ पता चल जाएगा, लेकिन शायद जो जख्म मुझे मिला है वह कभी नहीं भर सकता. बहुत कुछ लिखना चाहता हूं मगर आंखों से आंसू निकल रहे हैं. आंसू लिखने की हिम्मत तोड़ देते हैं. फिर भी मैं वादा करता हूं कि आखिरी दम तक इस लड़ाई को लड़ता रहूंगा ताकि हर पत्रकार के मान और सम्मान की रक्षा हो सकें. फिर किसी दूसरे कनिष्क तिवारी इस तरह से बेइज्जत ना होना पड़े.

 

 

 

 

 

 

 

 

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