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राजनांदगांव सीट : भूपेश बघेल के दोस्त होने का फायदा मिल सकता है गिरीश देवांगन को ?

राजनांदगांव सीट : भूपेश बघेल के दोस्त होने का फायदा मिल सकता है गिरीश देवांगन को ?

रायपुर. राजनांदगांव सीट से कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी गिरीश देवांगन और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कभी कॉलेज में एक साथ पढ़ा करते थे. जाहिर सी बात है कि एक सच्चा दोस्त अपने दोस्त की बेहतरी के लिए हमेशा बेहतर ही सोचता है. हर सुख-दुख और मुसीबत में साथ रहने वाले गिरीश देवांगन लंबे समय तक संगठन में महत्वपूर्ण जवाबदारी संभालते रहे हैं. वर्ष 2018 में जब पहली बार भूपेश बघेल की सरकार बनी तब उन्हें  खनिज विकास निगम का अध्यक्ष बनाया गया और अब उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के खिलाफ चुनाव समर में उतार दिया गया है.

गिरीश देवांगन के समर में उतरने के साथ ही कई तरह की चर्चा चल पड़ी है. एक पक्ष जो भाजपा की जीत देखना चाहता है उनका कहना है कि रमन सिंह लोकसभा चुनाव में मोतीलाल वोरा, विधानसभा चुनाव में उदय मुदलियार और अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को परास्त कर चुके हैं तो गिरीश देवांगन की क्या बिसात ? गिरीश देवांगन को बाहरी प्रत्याशी के तौर पर भी प्रचारित किया जा रहा है.

दूसरी तरफ गिरीश देवांगन के पक्षधरों का कहना है कि जेड प्लस सुरक्षा से घिरे रहने वाले रमन सिंह भी कवर्धा के रहने वाले हैं. देखा जाय तो वे भी बाहरी प्रत्याशी है और उतने भी कद्दावर नहीं है कि उन्होंने कभी हार का सामना ही ना किया हो. रमन सिंह एक मर्तबा कवर्धा सीट पर कांग्रेस के योगेश्वरराज सिंह से शिकस्त खा चुके हैं.कांग्रेस के तर्कशास्त्री मानते हैं कि चुनाव में कभी यह नहीं देखा जाना चाहिए कि कोई प्रत्याशी छोटा है और कोई बड़ा ? चुनाव का अपना गणित होता है जो मतदान के अंतिम समय तक चलते रहता है. यदि सारे बड़े और कद्दावर प्रत्याशियों की जीत सुनिश्चित होती है तो फिर कभी कोई चुनाव हारता ही नहीं. प्रदेश के कद्दावर नेता वीसी शुक्ल पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी से परास्त हो गए थे तो अजीत जोगी ने महासमुंद संसदीय सीट पर उस चंदूलाल साहू से शिकस्त खाई थीं जो राजनीति में ज्यादा लोकप्रिय नहीं थे.

कांग्रेसजन मानते हैं कि वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा ने रमन सिंह के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा था और महज 15 सीटों पर सिमट कर रह गई थीं. जिस रमन सिंह ने वर्ष 2008 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी उदय मुदलियार से 32 हजार 389 मतों से जीत हासिल की थीं उसी रमन सिंह ने झीरम की घटना के बाद हुए वर्ष 2013 के चुनाव में 35 हजार 866 वोट हासिल किए थे. इस तरह से वे विपरीत परिस्थितियों में भी 3 हजार 477 अधिक मत हासिल करने में सफल रहे थे, लेकिन 2018 के चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला से मात्र 16 हजार 933 वोट से जीत दर्ज कर पाए थे. बाहरी प्रत्याशी का तमगा लगे रहने के बावजूद करुणा शुक्ला ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थीं. परिणाम के दिन तो कई बार ऐसे भी क्षण आए जब करुणा शुक्ला मतों की गिनती में आगे चलती रही.

कांग्रेसजन मानते हैं कि एक तरह से गिरीश देवांगन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की परछाई है. मुख्यमंत्री ने वहां से अपने सबसे विश्वसनीय साथी को भविष्य की रणनीति के तहत ही अवसर प्रदान किया है. कांग्रेसजनों के अलावा एक बड़ी आबादी का मानना है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार रिपीट होने जा रही है. जब सरकार रिपीट ही हो रही है तो राजनांदगांव की सीट भी भाजपा के पास क्यों रहे ? गिरीश देवांगन मुख्यमंत्री के सबसे करीबी दोस्त है तो जाहिर सी बात है कि क्षेत्र की जनता उन्हें जो भी काम बोलेगी उसे सीधे मुख्यमंत्री से कहा गया काम ही माना जाएगा.

वैसे राजनीति के गलियारों में यह चर्चा भी चल रही है कि राजनांदगांव विधानसभा सीट पर टिकट के लिए कई दावेदार सक्रिय थे. सब आपस में लड़ ही रहे थे. उदय मुदलियार के पुत्र जितेंद्र मुदलियार टिकट की चाहत रखते थे तो वर्तमान महापौर हेमा देशमुख की दावेदारी भी मजबूत बनी हुई थीं. कांग्रेस नेता निखिल द्विवेदी, पूर्व महापौर नरेश डाकलिया, जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कुलबीर छाबड़ा और जिला साहू संघ के अध्यक्ष भागवत साहू ने भी ताल ठोंक रखी थीं. ऐसे में गिरीश देवांगन को चुनाव समर में उतारने का एक गुणा-भाग यह भी है कि अब सभी दावेदार कांग्रेस के लिए एकजुट होकर काम कर पाएंगे. यदि किसी स्थानीय को टिकट दे दी जाती तो भीतरघात की संभावनाएं बढ़ सकती थीं. जहां तक इलाके में जातिगत समीकरण की बात है तो शहरी क्षेत्र में व्यापारिक समुदाय की अधिकता है तो ग्रामीण इलाकों में पिछड़े वर्ग का बोलबाला है. वैसे इस सीट पर हर बार कांग्रेस शहरी क्षेत्र से ही पिछड़ती रही है. गिरीश देवांगन पिछड़े वर्ग से हैं, इसलिए यह भी माना जा रहा है कि उन्हें पिछड़े वर्ग का समर्थन मिल सकता है. वैसे कांग्रेस के एक दावेदार भागवत साहू जिला साहू संघ के अध्यक्ष भी है. अगर भागवत साहू गिरीश देवांगन का साथ देने को तैयार हो जाते हैं तब भी रमन सिंह के लिए खतरे की घंटी बज सकती है. इस इलाके में साहू समाज की बहुलता भी है. विधानसभा क्षेत्र में कोष्टा समाज ( जहां से गिरीश देवांगन आते हैं ) और सिक्ख समुदाय का समर्थन भी प्रत्याशी को मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर सकता है. शहरी क्षेत्र से जैन समाज का समर्थन रमन सिंह को मिलेगा या गिरीश देवांगन को...यह अभी साफ नहीं है. माना जा रहा है कि जैसे-जैसे चुनाव का दिन करीब आता जाएगा वैसे-वैसे रंग चढ़ता जाएगा.

 

  • राजकुमार सोनी
  • 98268 95207

 

 

 

 

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