अंदरखाने की बात

भाजपा के लिए 70 सभाएं करने वाले कवि का बेटा...प्रोफेसर बनकर मचा रहा है उत्पात

भाजपा के लिए 70 सभाएं करने वाले कवि का बेटा...प्रोफेसर बनकर मचा रहा है उत्पात

कवि हर जगह पाए जाते हैं मगर बेमतलब की बात पर हास्य कविता लिखने वाले हास्य कवि कुकुरमुत्तों की तरह पाए जाते हैं. कुकुरमुत्ते के बारे यह बात विख्यात है कि वह कहीं भी उग जाता है. खैर... देश के अन्य हिस्सों की तरह छत्तीसगढ़ में एक हास्य कवि है. इस हास्य कवि की विशेषता यह है कि जब जोगी की सरकार थी तब वह जोगी की जय-जयकार करता था. जब भाजपा की सरकार बनी तो कहने लगा- जोगी हम सब ला एक दिन  मर.....वाही. ( ज्ञात हो कि मरवाही जोगी का विधानसभा क्षेत्र है. ) 

देश के लिखने-पढ़ने वाले लेखक और कवि इस हास्य कवि से बेहद चिढ़ते हैं. इस चिढ़ की वजह यह नहीं है कि कवि की कविताएं सर्वोत्तम है और साहित्यकार अपनी लकीर बड़ी नहीं कर पा रहे हैं. वजह यह है कि सारी रचनाएं बी और सी ग्रेड की फिल्मों जैसी है कवि की  हरकतें सी ग्रेड फिल्मों के खलनायक जोगेंद्रर जैसी.  

जोगेंद्रर को नहीं पीढ़ी नहीं जानती. ( जोगेंद्रर वह खलनायक है जो बलात्कार के दृश्य में पीले और गंदे दांत निकालकर हंसता है और हिरोइन के कपड़े तार-तार कर देता है. ) कुछ वामपंथी साहित्यकारों का मानना है कि हास्य कवि के भीतर भी एक जोगेंद्रर बैठा हुआ है जो हर रचना और उसकी आत्मा को तार-तार करते रहता है. कविता की इज्जत लूटकर कवि जोंगेद्रर हंसता है... खुद ही हंसता है... और सोचता है जनता ताली बजा रही है. वामपंथी साहित्यकार इस कवि को घटिया कवि कहने से भी नहीं चूकते. मंचों पर कविता पढ़ने के लिए जोड़-तोड़ और नेतागिरी करने वाले अन्य कवियों का कहना है कि इस कवि ने भाजपा के शासनकाल में जमकर मलाई छानी और अब सत्ताधारी दल के करीब जाने की जुगत कर रहा है.

वैसे विधानसभा चुनाव के ठीक पहले इस कवि की चमचई को देखकर यह अहसास हो गया था कि एक न दिन कवि का भाजपा प्रवेश हो जाएगा. भाजपा में प्रवेश कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि इस कवि से पहले भी कुछ कवि और साहित्यकार भाजपा प्रवेश कर चुके थे. दुर्ग में एक स्थूल काया रखने वाले कवि ने तो बकायदा अपने बाल-बच्चों के साथ भाजपा प्रवेश किया था और अपने समाज और मोहल्ले वालों को लंगर भी खिलाया था.इस हास्य कवि ने जब भाजपा प्रवेश किया तब शायद भाजपा वालों को लगा होगा कि जिस कवि को सुनने के लिए भारी भीड़ जुटती है उस कवि की वजह से वोटों की बारिश होगी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. कवि ने विधानसभा चुनाव के दौरान लगभग 70 सभाएं की, और जहां-जहां भी सभाएं हुई वहां-वहां भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा.

बहरहाल इस कवि का एक बेटा इन दिनों एक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है. अंदरखाने की बात यह है कि जब विश्वविद्यालय में भर्ती चल रही थी तब अंतिम तिथि में कवि के बेटे ने अपनी नियुक्ति के लिए आवेदन जमा किया था. सूत्र कहते हैं कि एक लड़की जो कवि के बेटे से ज्यादा योग्य थी उसे जगह नहीं मिली और कवि के बेटे का चयन कर लिया गया. अब सुनिए... कवि के सुपुत्र जिस विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं वहां एमबीए में वे एकमात्र प्रोफेसर है. अब उन्हें पढ़ने-पढ़ाने में कोई रुचि नहीं थी तो उन्होंने प्रतिनियुक्ति की राह पकड़ ली. अब साहबजादे प्रशासन अकादमी में कार्यरत है. साहबजादे की यह प्रतिनियुक्ति तब हुई थी जब विश्वविद्यालय में भाजपाइयों को कब्जा था. नई सरकार के गठन के बाद हालात बदले तो खुलासा हुआ कि साहबजादे विश्वविद्यालय परिसर में ही नेतागिरी के काम में भी लगे रहते थे. इधर खबर है कि विश्वविद्यालय के कुल सचिव ने उनकी प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने के लिए प्रशासन अकादमी को लेटर लिख दिया है. अब साहबजादे बच्चों को पढ़ाने लौटते हैं या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन कवि महोदय अपने योग्य पुत्र की बेहतरी के लिए तमाम बड़े-बड़े लोगों से मिल-जुल रहे हैं और फोन करवा  रहे हैं. इधर कवि पुत्र की नियुक्ति और प्रतिनियुक्ति को लेकर जांच की मांग भी उठ खड़ी हुई है, लेकिन कवि महोदय का पुत्र कहता फिर रहा है- जब तक पापा है तब तक कोई कुछ नहीं कर पाएगा. कवि पुत्र का उत्पात जारी है. 

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