अंदरखाने की बात

छत्तीसगढ़ को लूटने वाले दो बदनाम अफसर वारासिवनी पहुंचे और फिर...

छत्तीसगढ़ को लूटने वाले दो बदनाम अफसर वारासिवनी पहुंचे और फिर...

सोमवार 13 मई को मिली एक ताजा सूचना के अनुसार छत्तीसगढ़ को लूटने वाले दो बदनाम अफसर मध्यप्रदेश जिले के वारासिवनी  पहुंचे और फिर वहां उनके साथ छत्तीसगढ़ के चंद अफसरों ने मुलाकात की. मुलाकात के लिए इस जगह का चयन इसलिए किया गया क्योंकि बदनाम अफसरों में से एक कभी बालाघाट में पदस्थ था. जानकार सूत्र बताते हैं कि दोनों अफसरों के खाने-पीने और ठहरने का इंतजाम वारासिवनी और बालाघाट की पुलिस ने किया. अब आप सोच रहे होंगे कि इस मुलाकात में क्या खबर है. भई... यह देश सबका है. कोई कही भी... कभी मुलाकात कर सकता है, लेकिन जरा सोचिए कि बदनाम अफसर छत्तीसगढ़ में रहकर क्यों नहीं मिलना चाहते. दरअसल अफसरों को भय है कि छत्तीसगढ़ में वे कभी भी गिरफ्तार किए जा सकते हैं. कोर्ट से जब राहत मिलेगी तब मिलेगी, गिरफ्तारी तो कभी भी हो सकती है.

वैसे छत्तीसगढ़ की पावन धरती ऐसी धरती है वह जब तक आदर देती है तब तक आदर देती है, और जब निष्कासित करती है फिर दोबारा सिर छिपाने की जगह नहीं देती. राजनीतिज्ञों और घमंड से भरे हुए अफसरों के पतन के यहां सैकड़ों उदाहरण देखने को मिलते हैं. यहां यह बताना लाजिमी है कि अब से कुछ महीने पहले तक जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थीं तब दोनों अफसरों की तूती बोलती थी. एक अफसर जो संविदा में था वह जिसे फंसाना चाहता था उसके खिलाफ केस कर देता था और दूसरा उस बंदे को गिरफ्तार कर लेता था. दोनों अफसरों ने एक से बढ़कर एक कांड किए जिसके चलते रमन सिंह की सरकार पन्द्रह सीटों पर आकर सिमट गई. सरकार के बनते ही एक अफसर इस्तीफा देकर भाग खड़ा हुआ जबकि सरकार ने कहा ही नहीं था कि नौकरी छोड़िए. नई सरकार के गठन के साथ ही पोल खुलनी लगी तो भाजपाइयों ने कहा- सरकार बदलापुर की राजनीति चल रही है. अब जाकर भाजपाइयों को भी समझ में आने लगा कि कानून अपना काम कर रहा है और कानून को अपना काम करने देना चाहिए. अब कोई भी भाजपाई यह नहीं कहता कि भ्रष्ट अफसरों पर शिकंजा नहीं कसा जाना चाहिए.

छत्तीसगढ़ की मेहनतकश और गरीब जनता की कमाई को लूटकर दिल्ली जा बसे एक अफसर पर भूपेश सरकार ने एक के बाद कई केस लाद दिए हैं. एक अभी बचा हुआ है... लेकिन देर-सबेर उसकी गर्दन भी नापी जाएगी यह तय है. करोड़ों रुपए की प्रापर्टी और माल-मत्ता होने के बावजूद दोनों अफसर इस बात से भयभीत है कि कही छत्तीसगढ़ पहुंचते ही सरकार गिरफ्तार न कर लें. उनका भय स्वाभाविक भी है, क्योंकि दोनों अफसरों ने संत आशाराम और राम-रहीम का हश्र देखा है. देश के इन अतुलनीय संतों के पास अरबों-खरबों की प्रापर्टी है. आज भी दोनों के शिष्य भूखे -प्यासे लोगों के लिए  भंडारे का आयोजन करते हैं बावजूद इसके लोगों की दुआएं उन्हें जेल से रिहा नहीं करवा पा रही है. छत्तीसगढ़ के ये दोनों अफसर इतने ज्यादा कुकर्म में शामिल रहे हैं कि  उनका जेल जाना बेहद अनिवार्य माना जा रहा है. आम छत्तीसगढ़ियों की भावना भी यही है कि बघेल सरकार दोनों को जेल भेजें. अगर भूपेश सरकार दोनों को जेल पहुंचाने में कामयाब हो जाती है तो निश्चित रुप से जनता के बीच सरकार की वाह-वाह तय है. वैसे दोनों अफसरों पर सरकार ने इतने बेहतर ढंग से शिकंजा कसा है कि अब उनका बच निकलना मुश्किल ही माना जा रहा है. हालांकि एक अफसर ने छुटभैय्ये पत्रकारों के पास सूचना छोड़ रखी थी कि वह पर्णिकर से जुड़ गया है. केंद्रीय गृहमंत्रालय में फिट हो रहा है. मगर बाद में साफ हुआ कि यह अफवाह जानबूझकर फैलाई गई थीं. बहरहाल प्रदेश की भूपेश सरकार को लेकर पब्लिक का रियेक्शन यही है कि भई... चाहे जो हो... जिसको रमन ने बचाया... उसको भूपेश बघेल ने दमदारी से निपटाया. अंदरखाने की खबर है कि छत्तीसगढ़ के अफसरों से वारासिवनी में मिलने वाले अफसरों ने भूपेश बघेल के बारे में जमकर फीडबैंक लिया है. इस फीडबैंक के एवज में चार अफसरों को यह कहते हुए नोटों की गड्डियां भी थमायी गई कि आधा अभी रख लो... आधा काम होने के बाद. छत्तीसगढ़ के जयचंद अफसरों ने भी यह कहते हुए गड्डियां रख ली कि सर... जरूरत तो पड़ती है और फिर नोट तो छत्तीसगढ़ का ही है.

 

 

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