अंदरखाने की बात
...तो इस अफसर को अब कुछ दिखाई नहीं दे रहा है ?
जो भी अच्छे राजनेता और अफसर होते हैं वे पत्रकारों को दोस्त बनाकर चलते हैं. जो राजनेता और अफसर जीवन के इस कटु सत्य की अवलेहना करते हैं उन्हें एक न एक दिन सिर पीटने वाले परिणाम से गुजरना ही पड़ता है. छत्तीसगढ़ में आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में गिरफ्तार किए गए पुलिस अफसर के बारे में जो कुछ भी छप रहा है उससे तो यह साफ नजर आ रहा है कि अफसर की इज्जत को पाव-भाजी बनाकर पूड़े में लपेट दिया गया है. हो सकता है अफसर ने कभी किसी पत्रकार से पंगा लिया हो ? अब पत्रकार भी अफसर के पीछे लग गया है कि बेटा... बचकर कहां जाओगे ? अफसर की एक-एक गतिविधि पर नजर रखी जा रही है. बहरहाल अफसर को लेकर बड़ी मनोरंजक खबरें छप रही है. थोड़ी बानगी देखिए-
जैसे ही अफसर से एसीबी की टीम पूछताछ करती है वे कहने लगते हैं- मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. फिर कहने लगते हैं- मुझे कंपकपी लग रही है. कभी कहते हैं दस्तावेज मेरा है. कभी कहते हैं- कौन गदहे का बच्चा बोलता है कि दस्तावेज मेरा है. मैं साइन नहीं करूंगा. अच्छा जल्दी बोलो... कहां साइन करना है ?
जो खबर छप रही है उसे पढ़कर लगता है कि अफसर के साथ एसीबी की टीम कौन बनेगा करोड़पति जैसा कोई गेम खेल रही है. अफसर को हां या ना वाली प्रश्नावली लिखकर दी गई है. उसका फार्मेंट इस तरह से बनाया गया है कि अफसर को केवल हां या ना में टिक लगाकर ही जवाब देना है.लेकिन अफसर कौन बनेगा करोड़पति के खेल को भी खेलने के लिए तैयार नहीं है. ( वैसे हां या ना में उत्तर नहीं दिए जाने के पीछे का एक कारण यह भी हो सकता है कि अफसर उगाही के पैसों से शायद पहले से ही करोड़पति बन चुका है. )
अफसर को लेकर दो दिन पहले यह खबर भी छपी थीं कि वे सुबह एक घंटे और शाम को एक घंटे... इस प्रकार कुल दो घंटे वाकिंग भी करते हैं. मानना पड़ेगा भाई को अफसर को. अरे भाई फिट रहोगे तभी तो हिट रहोगे.
यह सब लिखते हुए एक छोटी सी कहानी याद आ रही है. एक बार एक पत्रकार कुश्ती देखने गया. अखाड़े में मौजूद पहलवान हर किसी को जमीन पर पटक-पटककर मार रहा था. जब सब हार गए तो पहलवान ने ललकारा- और कोई है जो कालू पहलवान से मुकाबला करेगा ? अरे कोई है ? पत्रकार को इस ललकार पर गुस्सा आ गया और वह कालू पहलवान से जा टकराया. पहलवान ने पत्रकार को भी जमकर धोया. कालू से पराजित होकर पत्रकार अपने दफ्तर गया और उसने जो खबर बनाई वह हतप्रभ कर देने वाली थीं. पत्रकार ने हेडिंग लगाई- एक रोचक मुकाबले में सिंगल हड्डी पत्रकार ने कालू पहलवान को याद दिलाई उसकी नानी...खबर छपने के बाद कालू पहलवान पत्रकार को खोजते हुए उसके दफ्तर गया. उसने पत्रकार से पूछा- बेटा...जीता तो मैं था... तूने मुझे हराया कैसे ? तूने तो कालू पहलवान की इज्जत का भाजी-पालक कर दिया. पत्रकार ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया- कालू भाई...वो तुम्हारा अखाड़ा था... ये मेरा अखाड़ा है.
( स्मरण रहे कानून की धाराओं में आप किसी को लपेट तो सकते हो...लेकिन जब वक्त की धारा विपरीत होती है तो कोई सिंगल हड्डी पत्रकार भी आपको लपेट सकता है. )