कला

जब भी अंतिम सांस लूं...तो पहली खबर छत्तीसगढ़ से ही छपनी चाहिए- नायकर

जब भी अंतिम सांस लूं...तो पहली खबर छत्तीसगढ़ से ही छपनी चाहिए- नायकर

गिरीश पंकज

ऐसा कौन होगा जिसने स्टैण्डप कॉमेडी के बादशाह केके नायकर का नाम न सुना हो? नायकर साहब 27 जनवरी 2020 को रायपुर आ रहे हैं. उनके आगमन से पहले प्रख्यात साहित्यकार गिरीश पंकज ने अपना मोर्चा डॉट कॉम के पाठकों के लिए एक खास लेख भेजा है. यह लेख नायकर साहब की जिंदादिली को जानने-समझने के लिए काफी है.

जबलपुर शहर हिंदी व्यंग्य सम्राट हरिशंकर परसाई के लिए जाना जाता है। उसी तरह यह शहर कुछ हास्य कलाकारों के लिए भी जाना जाता है। इसमें दो नाम बेहद महत्वपूर्ण हैं। एक हैं केके नायकर और दूसरे कुलकर्णी-बन्धु । इन दोनों ने देशभर में अपनी हास्य प्रतिभा से जबरदस्त धूम मचाई। लेकिन केके नायकर (कृष्णकुमार नायकर) की अपनी अलग से विशिष्ट पहचान है क्योंकि उन्होंने हास्य की विशुद्ध एकल प्रस्तुतियां ही दीं। नायकर हास्यकला की वन मैन आर्मी कहे जा सकते हैं। 'स्टैण्डप कॉमेडी' यानी खड़े होकर मिमिक्री या हास्य कार्यक्रम प्रस्तुत करने का चलन तो टीवी के माध्यम से जोर पकड़ा लेकिन नई पीढ़ी को शायद पता न हो कि यह सिलसिला पाँच दशक पहले केके नायकर ने ही शुरु किया था । वर्ष 1968 में पहली बार उन्होंने जबलपुर के एक सार्वजनिक मंच  पर अपना कार्यक्रम दिया था।  फिर वह सिलसिला आज तक नहीं रुका । अकेले दो घंटे मंच पर खड़े होकर लोगों को हँसाना, मिमिक्री करना बहुत बड़ी बात है। और वह भी  विशुद्ध मौलिकता के साथ। आज हिंदी के कवि सम्मेलनों में तथाकथित कवि चुटकुले सुनाकर लोगों को हँसाते हैं लेकिन केके नायकर ने कभी चुटकुलों का सहारा नहीं लिया। वरन उन्होंने चुटकुले या कथाएँ खुद गढ़ी और उन्हें बेहद कलात्मक तरीके से भाव भंगिमाओं के साथ प्रस्तुत किया। केके नायकर जी ने अपने शिष्ट हास्य के बल पर पूरे देश में अपनी पहचान बनाई। जो एकदम नए युवा है, वे उनके नाम से भले परिचित न हो लेकिन जिनकी उम्र चालीस और उसके बाद की है, वे  नायकर को सुनकर बड़े हुए हैं । मेरे जैसे अनेक लोग केके नायकर का नाम सुनकर  उनको सुनने जाते रहे और हंसते- हंसते लोटपोट होते रहे हैं।  नायकरजी की विशेषता यही है कि वे खुद नहीं हँसते, उनकी साभिनय प्रस्तुति पर लोग हँसते हैं। उनकी प्रस्तुति, अभिनय की अदा, कहने का ज़बरदस्त अंदाज  हँसने पर मजबूर कर देता है । कभी वह बच्चों की आवाज निकालते हैं, कभी बूढ़ों की, तो कभी लड़कियों की । पशु -पक्षियों की आवाजें और विभिन्न सामाजिक चरित्रों की जीवंत -सटीक आवाजें भी। यह कला उनमें बचपन से ही आ गई थी, जब फिल्मी कलाकारों की आवाजें निकालकर वे अपने मित्रों को सुनाया करते थे।  गुपचुप के ठेले पर खड़ी लड़कियों की बातचीत जब नायकर प्रस्तुत करते हैं, तब ऐसा लगता है कि वह आंखों देखा हाल ही प्रस्तुत कर रहे हैं । एक कलाकार की सूक्ष्म दृष्टि देखनी हो तो नायकर जी की प्रस्तुतियों में  देखी जा सकती है। केके नायकर के जितने भी आइटम होते हैं, उनमें जबरदस्त हास्य तो रहता ही है मगर हास्य के पीछे व्यंग्य की अंतरधारा भी प्रवहमान रहती है। 

नायकर...  नाम ही काफी है

मेरा सौभाग्य है कि केके नायकर जी से पिछले दिनों आत्मीय परिचय हुआ। उसके पीछे बड़ा कारण यह रहा कि एक बार मैंने जन कवि आनंदीसहाय शुक्ल पर एक लंबा लेख लिखा था। वह लेख मंच के सुपरिचित कवि सुरेश उपाध्याय के माध्यम से केके नायकर तक पहुंचा, तो उन्होंने मुझे बधाई देने के लिए फोन लगाया।" मैं केके नायकर बोल रहा हूं" यह सुनकर ही मैं अभिभूत हो गया। उन्होंने बहुत देर तक मुझसे बातें की और और आनंदीसहाय शुक्ल पर लेख लिखने की भूरि- भूरि प्रशंसा की । उसके बाद उनसे संवाद का सिलसिला शुरू हो गया। मैंने बातों-बातों में उनसे कुछ और जानने की जिज्ञासा व्यक्त की, तो उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें बताई, जिसमें से कुछ यहां प्रस्तुत करना चाहता हूं। एक रोचक किस्सा नायकर जी ने मुझे बताया कि बहुत पहले की बात है। उनकी बहन को नौकरी के सिलसिले में इंटरव्यू देने भोपाल जाना था।  बहन का साथ देने के लिए  नायकर भी भोपाल पहुंच गए। बहन को इंटरव्यू के लिए कक्ष में बुलाया गया । नायकर बाहर ही बैठे रहे । इंटरव्यू लेने वाले ने उनकी बहन के नाम के साथ नायकर देखा तो उन से पूछा, " क्या आप केके नायकर को जानती हैं ?" तो उनकी बहन ने कहा कि  "वे मेरे भाई हैं । बाहर ही बैठे हैं"।  इतना सुनना था कि इंटरव्यू लेने वाला उछल गया और बोला, "उन्हें फौरन बुलाइए"।  केके नायकर भीतर आए और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। इंटरव्यू लेने वाले ने उनसे आग्रह किया कि अपने एक- दो आइटम यहां पेश कीजिए। नायकर जी ने आइटम पेश किए। जिसे सुनकर के वहां बैठे सब लोग बड़े प्रसन्न हुए । उसके बाद इंटरव्यूकर्ता ने उनकी सिस्टर से कहा, " ठीक है । अब आप जा सकती हैं "। बाहर निकल कर के  बहन ने भाई से कहा कि " मेरा तो इंटरव्यू हुआ ही नहीं। पता नहीं मेरी नौकरी का क्या होगा?"  नायकर  जी ने मुस्कुरा कर कहा, "तुम चिंता मत करो। तुम्हारा सिलेक्शन हो जाएगा।" और कुछ दिन बाद बहन का सिलेक्शन डिप्टी कलेक्टर के रूप में हो गया। यह घटना यह समझने के लिए पर्याप्त है कि केके नायकर की लोकप्रियता का आलम क्या था। ऐसी अनेक घटनाएं नायकर जी  के साथ जुड़ी हुई है। उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर एक बार हाजी मस्तान ने भी उन्हें कार्यक्रम पेश करने के लिए मुंबई बुलाया था।

नौकरी छोड़कर स्वतंत्र जीवन

केके नायकर जी ने बताया कि वे रेलवे में वेलफेयर इंस्पेक्टर थे । सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन एक बार एक उच्चाधिकारी की किसी बात से वे  आहत हुए  और 1983 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद उनके सामने घर परिवार चलाने की चुनौती थी, लेकिन यह वह दौर था, जब उनकी डिमांड काफी थी। सो जगह-जगह जाकर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करने लगे। वह सिलसिला लंबे समय तक निरंतर बना रहा । नायकर अमीन सयानी को अपना आदर्श मानते हैं।वह भावुक हो कर कहते हैं "अमीन सयानी प्रसारण जगत के महात्मा गांधी है" ।  नायकर इस बात को लेकर संतुष्ट हैं कि आज भी नई पीढ़ी के कुछ हास्य कलाकार उनको आदर सम्मान देते हैं । टीवी के आने के बाद नायकर जी धीरे धीरे लोकप्रियता के नेपथ्य में जरूर चले गए लेकिन कहावत है कि शेर जितना भी बूढ़ा हो जाए दहाड़ना नहीं भूल सकता। शेर का महत्व कम नहीं होता । उसी तरह नायकरजी का भी महत्व कम नहीं हुआ है ।आज भी लोगों के निमंत्रण पर वे कार्यक्रम प्रस्तुत करने जाते हैं और उनकी मिमिक्री हंसा हंसा कर लोटपोट कर देती है। उन्हें इस बात की पीड़ा है कि उन्हें जितना सम्मान मिलना चाहिए था, नहीं मिल सका। खासकर सरकारों की ओर से । वह बताते हैं कि अनेक मंत्री उनसे मिलते रहे, उनकी तारीफ भी करते रहे, लेकिन कभी उनको वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। लेकिन नायकर जी ने कहीं जाकर आग्रह नहीं किया।  जनता से उन्हें जो सम्मान मिला,वह उनके लिए सर्वोच्च है।  बातों बातों में उन्होंने कहा कि "मैं पूरी तरह से मौलिक कलाकार हूं। लेकिन आजकल नक्कालों का जमाना है । अब लोग गोबर खाद नहीं यूरिया पसंद करते हैं। औरतें भी नकली सोना पहन कर खुश हो लेती हैं । नकलीपन हमारे जीवन के केंद्र में आ गया है ।असल के प्रति लोगों का मोहभंग हो चुका है ।"

छत्तीसगढ़ से गहरा लगाव

केके नायकर ने  बीते दिनों को याद करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ से उन्हें जबरदस्त प्रेम मिला। इसलिए मैं छत्तीसगढ़ को कभी भूल नहीं सकता। उनके इस कथन से  मैं क्या सभी सहमत होंगे क्योंकि मैंने  और तमाम मित्रों ने सैकड़ों बार उनको छत्तीसगढ़ में विभिन्न मंचों से  मिमिक्री पेश करते हुए सुना ही है।  छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वे छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा अध्यक्ष पंडित राजेंद्र शुक्ला के निमंत्रण पर नायकर रायपुर पधारे थे और अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया था।  मुझसे बात करते हुए उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि "जब भी मैं अंतिम सांस लूं, तो पहली खबर छत्तीसगढ़ से ही छपनी चाहिए ।" यह कथन उनके अटूट छत्तीसगढ़ प्रेम को दर्शाता है। जीवन के सत्तर बसंत पार कर चुके नायकरजी  की आवाज में आज भी वही कोमलता है, जो पाँच दशक पहले थी। हिंदी साहित्य जगत में पंडित गोपालप्रसाद व्यास को 'हास्य रसावतार' कहा जाता है, लेकिन मंच के 'हास्यवतार' के रूप में मैं केके नायकर का नाम लूँगा। यह कुछ अतिश्योक्ति लग सकती है लेकिन सच्चाई यही है कि मंच के माध्यम से अगर किसी एक व्यक्ति ने अकेले खड़े होकर ज़बरदस्त मिमिक्री  पेश की, तो उसका नाम है, केके नायकर। वे इसी तरह निरन्तर  हँसाते-गुदगुदाते रहें, यही हम सब की शुभकामना है।

 

ये भी पढ़ें...