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छॉलीवुड निर्माताओं के लिए शर्म शब्द का प्रयोग उचित नहीं

छॉलीवुड निर्माताओं के लिए शर्म शब्द का प्रयोग उचित नहीं

जाने कब शर्म आएगी छत्तीसगढ़ के फिल्मकारों को... शीर्षक से लिखे गए एक लेख के बाद छत्तीसगढ़ के सिने दर्शकों की ओर से अच्छा प्रतिसाद मिला है. ज्यादातर लोगों ने मुझे निजी तौर पर  सूचना भेजकर कहा है कि यहां के निर्माता-निर्देशकों ने छत्तीसगढ़ी सिने दर्शकों की भावनाओं का मुरब्बा बनाकर रख दिया है. बहुत से लोगों को लगता है कि वे पापुलर सिनेमा बना रहे हैं तो किसी महान कार्य में जुटे हुए हैं. नीचे दी गई टिप्पणी छत्तीसगढ़ के एक फिल्मकार योग मिश्रा से प्राप्त हुई है. हालांकि यह अपेक्षित था कि इस मामले में स्वयं योग मिश्रा कोई सार्थक लेख लिखेंगे, लेकिन उन्होंने विजय कुमार शाही नाम के एक फिल्म अभिनेता, लेखक और शिक्षक की यह टिप्पणी भेज दी. छत्तीसगढ़ के एक बड़े निर्माता-निर्देशक सतीश जैन और संतोष जैन ने मेरे फेसबुक वॉल पर कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणी की है जिसमें उनकी असहमति है. सुधि पाठक और दर्शक इन टिप्पणियों को वहां जाकर भी पढ़ सकते हैं. बहरहाल योग मिश्रा द्वारा प्रेषित टिप्पणी को जस का तस यहां प्रस्तुत कर रहा हूं. अपना मोर्चा डॉट कॉम आप सबका है. इसमें आप सबकी सहमति और असहमति का सम्मान है. अपनी टिप्पणी/ सहमति/ असहमति अपनी तस्वीर के साथ आप इस मेल पर भेज सकते हैं- [email protected]  ( राजकुमार सोनी ) 

( विजय कुमार शाही ) अपने लेख में लेखक राजकुमार सोनी ने छॉलीवुड निर्माताओं के लिए अमर्यादित रूप से शर्म आना जैसे वाक्यांश का प्रयोग किया है, यह सर्वथा अनुचित माना जाएगा.लेखक का आरोप है कि यहां की फिल्में बॉलीवुड की फिल्मों की खास कर गोविंदा की फिल्मों की नकल होती हैं, इस संदर्भ मे मैं कहना चाहता हूँ कि इसे नकल नहीं प्रेरणा कहा जाता है क्योंकि बॉलीवुड की भी अधिकतर फिल्में साऊथ की फिल्मों से या हॉलीवुड की फिल्मों से प्रेरित होती हैं या रीमेक होती हैं. ऐसी फिल्मों के नाम सभी को पता ही है.

हॉलीवुड की फिल्में भी फ्रेंच, जर्मन इतालवी अरबी फिल्मों से प्रेरित हैं, अतएव इसमें बुराई नहीं है, हां, यह जरूरी है कि अपनी मौलिकता भी बनाकर रखनी चाहिए और छॉलीवुड ने समयानुसार रखी भी है. हां इतना जरूर है कि कुछेक फिल्में अपने स्तर के अनुरुप नहीं रही हैं, तो यह नौसिखिया लोगों के कारण हो सकता है, इस पर लेखक के द्वारा ऐसी टिप्पणी सही नही है, आखिर काम करते हुए ही काम को भी सीखा जाता है |छॉलीवुड की फिल्में जब मल्टीप्लेक्स सहित सभी सिनेमाघरों में चलेंगी तभी निर्माता भी जोखिम लेकर मौलिक चींजे दे सकते हैं क्योंकि आर्थिक लाभ सर्वोपरि है, केवल कला के लिए फिल्में बनाकर इंडस्ट्री को जीवित नहीं रखा जा सकता,ऐसा मेरा विचार है. फिल्म मंदराजी का हार्दिक स्वागत है, भविष्य में ऐसी और भी फिल्में बनेगी क्योंकि छत्तीसगढ़ी भाषा, परंपरा तथा सामाजिक चेतना को जानने वाले कई सक्षम निर्माता, निर्देशक तथा अभिनेता मौजूद हैं. अभी केवल इंडस्ट्री को आर्थिक रूप से सक्षम बनाना ही सबका लक्ष्य होना चाहिए.

 

 

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