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शैलेंद्र को कविराज पुष्किन कहते थे राजकपूर

शैलेंद्र को कविराज पुष्किन कहते थे राजकपूर

मनोहर महाजन

14 दिसबंर, 1966...मेरा नाम जोकर की शूटिंग चल रही थी.सेट पर सभी लोग राज कपूर के जन्मदिन जश्न मना रहे थे. जश्न के शोर-शराबे के बीच कई बार फ़ोन बज चुका था. इस फ़ोन को लगातार कर रहे थे महान गायक मुकेश.आखिरकार फ़ोन उठाया गया और उन्होंने राज कपूर बताया कि उनके जिगरी दोस्त शैलेंद्र नहीं रहे.43 वर्ष की यंग ऐज में दुनिया को अलविदा कह देने वाले शैलेंद्र की अचानक मौत से राज कपूर को हिला कर रख दिया.

फ़िल्मी दुनिया में हम अक़सर मनमुटावों और सेलेब्स के प्रतियोगी स्वभाव और काम निकलवाने वाली दोस्ती की कहानियां ही सुनते हैं. लेकिन फ़िल्मी दुनिया में कई ऐसी जोड़ियां भी हुई हैं,जिनका याराना आम लोगों के लिए एक मिसाल है. कुछ ऐसा ही दोस्ताना था एक्टर,डायरेक्टर प्रोड्यूसर राज कपूर और गीतकार शैलेंद्र का था. दोनों के बीच दोस्ती के अलावा एक कलात्मक डोर थी,जिसने अनेकानेक क्लासिक और लोकप्रिय कृतियों को जन्म दिया. शैलेंद्र ने अपने करियर की शुरुआत indian People s Theatre Association (IPTA) में लिखने से की. IPTA के ही एक समारोह में शैलेंद्र, राज कपूर से मिले. राज कपूर ने शैलेंद्र की मशहूर कविता जलता है पंजाब को सुना.विभाजन पर लिखी गई ये कविता राज कपूर के दिल को छू गई थी. राज कपूर ने शैलेंद्र को अपनी डेब्यू फिल्म आग (1948) के गाने लिखने का ऑफ़र दिया.शैलेंद्र उस वक़्त भारतीय रेल में काम करते थे और उन्होंने राज कपूर का ऑफ़र ठुकरा दिया. फिर वो समय भी आया जब राज कपूर बरसात के प्रोडक्शन में व्यस्त थे तब शैलेंद्र आर्थिक संकट से जूझ रहे शैलेन्द्र को राजकपूर के पास काम मांगने जाना पड़ा.राजकपूर ने उन्हें हाथों हाथ लिया.500 रुपये प्रति गाना लिखने का ऑफर दिया.शैलेन्द्र ने उसी समय बरसात का टाइटल-सांग बरसात में हमसे मिले तुम ओ सजन तुमसे मिले हम और पतली कमर है तिरछी नज़र है... लिखकर उनके हवाले किया.दोनों ही गाने सुपरहिट हुए.इसके बाद इस जोड़ी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

राज कपूर-शैलेंद्र ने 21 फिल्मों में साथ काम किया जिनमें मेरा नाम जोकर, तीसरी कसम, सपनों का सौदागर, संगम,अनाड़ी और जिस देश में गंगा बहती है शामिल थीं. राज कपूर का शैलेंद्र के घर पर आना-जाना लगा रहता था. राज कपूर शैलेंद्र को पुष्किन या कविराज बुलाते थे.जब भी शैलेंद्र कोई गीत लिखते तो राज कपूर कहते- वाह पुष्किन! क्या गाना लिखा है!

एक बार शैलेंद्र का लिखा गाना सुन रो पड़े थे राज कपूर

ये बात उस दौर की है जब फिल्म अनाड़ी (1959) का गाना सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी...रिकॉर्ड किया जा रहा था. यह गाना राज कपूर के पसंदीदा शैलेंद्र ने ही लिखा था. उस दिन वो रिकॉर्डिंग पर स्टूडियो नहीं पहुंचे थे. राज कपूर ने उस गाने की कॉपी अपने घर मंगवाई ताकि सुकून से उसे सुन सकें. वह कई घंटों तक लगातार इस गाने को सुनते रहे लेकिन जब उनसे रहा नहीं गया तो वह रात दो बजे शैलेंद्र से मिलने उनके घर पहुंच गए. वहां राज कपूर शैलेंद्र को गले लगाकर रो पड़े और कहने लगे-क्या गाना बना दिया शैलेंद्र, मेरे आंसू नहीं थम रहे. आवारा हूं.., मेरा जूता है जापानी.., रमैया वस्तावैया.., दोस्त दोस्त ना रहा.., प्यार हुआ इकरार हुआ.., सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है.., ये रात भीगी भीगी…, पान खाए सैंया हमारो…, सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी…,हर दिल जो प्यार करेगा वो गाना गाएगा…, चलत मुसाफिर मोह लियो रे पिंजरे वाली मुनियां,जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां…. राज कपूर के ऐसे पचासों सुपरहिट गाने हैं, जिनके बिना राज कपूर का सिनेमा अधूरा सा लगता है, और ये सभी गाने शैलेंद्र ने लिखे थे. गीतकार गुलजार साहब शैलेंद्र को हिंदी-सिनेमा का आज तक का सबसे बड़ा गीतकार मानते हैं.वो कहते हैं: उनके गीतों को खुरच कर देखें तो आपको सतह के नीचे दबे नए अर्थ प्राप्त होंगे. उनके एक ही गीत में न जाने कितने गहरे अर्थ छिपे होते थे. शैलेंद्र की मौत से टूट गए थे राज कपूर. फिल्मफेयर मैगज़ीन में अपने दोस्त शैलेंद्र की असमय मौत से दुखी राजकपूर ने एक ओपन लैटर लिखा था और कहा था: ऐसा लगता है कि जैसे मेरी आत्मा का एक हिस्सा चला गया.यह सही नहीं हुआ.मैं रो रहा हूं और चीख रहा हूं कि मेरी बगिया के सबसे खूबसूरत गुलाब को कोई तोड़ ले गया. वह बेहतरीन इंसान थे और मेरी ज़िन्दगी का अभिन्न अंग थे जो अब नहीं हैं.मैं केवल शोक मना सकता हूं और उनकी यादों में खो सकता हूं। 

 

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