संस्कृति

बैलबाटम की दुनिया...

बैलबाटम की दुनिया...

क्या आपने कभी बैलबाटम को पहना है. यह फैशन भारत में कब आया इस बारे में कोई एक राय नहीं है. कोई कहता है कि हिप्पियों की वजह से यह फैशन भारत पहुंचा था तो किसी का कहना है देवानंद, राजेश खन्ना और अभिताभ बच्चन ने बैलबाटम को लोकप्रिय बनाया. अब सही क्या है इस बारे एक पाठक की हैसियत से आप सब भी रोशनी डाल सकते हैं. बहरहाल जब मैं कक्षा तीसरी में था तब बैलबाटम मार्केट में चुका था. सेक्टर छह भिलाई के ए और बी मार्केट में इक्का-दुक्का टेलर मास्टर थे, लेकिन सभी के सभी बैलबाटम स्पेशलिस्ट थे. एक दुकान में यह भी लिखा था-यहां आर्डर देने पर लड़कियों के लिए भी बैलबाटम तैयार किया जाता है.

हमारे समय के पिताजी यह मानते थे कि जो भी बच्चें स्कूल में पढ़ते हैं उन्हें सिर्फ़ हाफ पैट पहनने का ही हक है. उन दिनों- यह आराम का मामला है जैसा कोई विज्ञापन लोकप्रिय नहीं हुआ था इसलिए हमारी अंदरूनी तकलीफों से कोई भी वाकिफ नहीं था.केवल लड़कियों को ही नहीं हम लोगों को भी अपनी इज्जत बेहद प्यारी थीं और हम लोग अपनी इज्जत का खास ख्याल भी रखते थे. बैलबाटम और पूरे बांह वाली शर्ट पहनने का अधिकार उन बच्चों को ही मिल पाता था, जो कक्षा ग्यारहवीं यानी मैट्रिक पास कर लेते थे. पड़ोस में एक बिहारी परिवार रहता था. उस परिवार में एक ही लड़का था जो दिन- रात पढ़ता रहता था. लड़का गणित में तेज था और उस परिवार की बस एक ही चाहत थीं कि लड़के को किसी भी तरह से भिलाई इस्पात संयंत्र में नौकरी मिल जाय. लड़के के पिता अपने बेटे की हर चाहत पूरी करते थे.एक रोज लड़के ने बैलबाटम की फरमाइश की तो उसके पिताजी उसे साइकिल के डंडे पर बिठाकर ले गए. वापस लौटकर उन्होंने पूरे ब्लाक वालों को बताया कि टेलर मास्टर ने कहा है- अभी बच्चा छोटा है. आठवीं में पढ़ता है... बैलबाटम अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन अब कौन समझाए. एक हफ्ते बाद बैलबाटम आ जाएगा.

एक हफ्ते के बाद जब बैलबाटम आया तो हम सबने उसे प्रत्याशा में देखा. हमें लगा एक न एक दिन हम सब भी बैलबाटम पहनेंगे. अब लड़का एक निश्चित समय में शाम को ही बैलबाटम पहनकर स्ट्रीट के दो चक्कर मारता. शायद उसका मकसद यहीं था कि सबको पता चल जाए उसके पास बैलबाटम है. लड़का सड़क के छोर पर मौजूद एक खंभे के पास जाता. फिल्म कभी-कभी में जैसे अभिताभ बच्चन पेड़ पर टिककर गाता है- कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है... ठीक वैसे ही वह भी खंबे पर टिक जाता. कुछ बुदबुदाता और फिर लौट जाता. एक रोज मैंने उससे पूछा कि खंबे के पास जाकर क्या करते हो? उसने बताया गणित का फार्मूला याद करता हूं. बहुत बाद में हमारी स्ट्रीट में कई लोगों के पास बैलबाटम आ गया था. इतनी लंबी इंची वाले बैलबाटम थे कि पूछिए मत. जब नीचे से पैंट घिसने की शिकायत में इजाफा हुआ तो हील वाले जूतें आ गए और जो चेन पोस्ट आफीस बंद करने के काम में आती थीं उसका उपयोग बैलबाटम के नीचे होने लगा. बैलबाटम को पहनकर साइकिल चलाना थोड़ा जोखिम भरा होता था.अक्सर साइकिल की चेन में फंसकर बैलबाटम का काम तमाम हो जाता था. फिर भी उन दिनों बहुत से होशियार चंद थे जो पैरों को आड़ा-तेड़ा करके सायकिल चलाना जानते थे और सिनेमा हाल तक पहुंच जाया करते थे. जब बैलबाटम का फैशन खत्म हुआ तो उसका झोला बनने लगा. मैंने खुद अपनी आंखों से कई तरह के बैलबाटम में सब्जियों को घर में आते देखा है.

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