संस्कृति

खुशहाली और पर्यावरण का पर्व हरेली

खुशहाली और पर्यावरण का पर्व हरेली

एलडी मानिकपुरी

‘हरेली ह हमर छत्तीसगढ़ कृषि संस्कृति के पहली तिहार हवय. गांव-गंवई के जिनगी म खेती के महत्ता महतारी अइसन होथे. खेती ह कोख ले पैदा करे महतारी अइसन हमर भरन-पोसन करथे. ए तिहार ह जन-जन के जिनगी ले जुड़ जथे. हरेली ह धरती माता के हरियाली के संदेस लेके आथे, अउ संग में हमर संस्कृति के घलो संदेस लाथे. हमर आघू ए बेरा चुनौती हे के हम अपन संस्कृति ल कइसे बचान. आप मन के सरकार ह इही बात ला सोच के ’हरेली तिहार’ म छुट्टी देके फैसला करीस हे. छत्तीसगढ़ के जम्मो दाई-दीदी, सियान-जवान, नोनी-बाबू, संगी मन ल जय जोहार अउ ‘हरेली तिहार’ के झारा-झारा बधाई व शुभकामनाएं. ’ यह संदेश प्रदेश के ठेठ छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के है.

सचमुच अपनी बोली-भाषा, त्यौहार, संस्कृति, खेलकूद का कितना महत्व है, उक्त संदेश में साफ-साफ झलक रहा है. छत्तीसगढ़ राज्य के इतिहास में पहली बार राज्य सरकार ने जिन पांच सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की है, उनमें हरेली तिहार भी है. ’धान के कटोरा’ के रूप में विख्यात छत्तीसगढ़ का यह एक ऐसा त्यौहार है, जो छत्तीसगढ़ी संस्कृति, कृषि संस्कृति, परम्परा, लोक पर्व एवं पर्यावरण की महत्ता को दर्शाता है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक व्यवस्था में खेती-किसानी का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है.  खरीफ मौसम छत्तीसगढ़ की खेती का प्राण है. यह त्यौहार साल का पहला त्यौहार इसलिए कहलाता है कि हरेली सावन माह की अमावस्या तक खेती-किसानी का बड़ा काम पूरा होना माना जाता है.

आज के दिन कृषि उपकरणों, पशुधन का धन्यवाद दिया जाता है, जिसके कारण बोवाई का काम पूरा हुआ तथा नई फसल की बेहतर शुरूआत हुई.  परंपरागत रूप से पर्यावरण को समर्पित यह त्यौहार छत्तीसगढ़ के लोगों के प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाता है. हिंदी के ‘हरियाली’ शब्द से ‘हरेली’ शब्द की उत्पत्ति मानी जाती है. आज जब समूचा विश्व पर्यावरण असंतुलन को लेकर चिंतित है, तब छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ’नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी’ के संरक्षण तथा संर्वधन के लिए जो कारगर कदम उठाए गए हैं वे आने वाली पीढ़ी के लिए खूबसूरत तोहफा साबित होंगे, ऐसे में ’हरियाली त्यौहार’ की महत्ता और बढ़ जाती है. देश के प्रमुख पर्वों में शामिल हरेली कृषि पर आधारित त्यौहार है. लिहाजा किसान भाई-बहनों द्वारा हरेली के दिन सुबह से ही कुलदेवताओं की पूजा की जाती है. कृषि औजारों की साफ-सफाई करने के बाद परंपरागत रूप से नया मुरूम डालकर पूजा स्थल तैयार करते हैं और यहां घर के सभी सदस्य खेती-किसानी के उपयोग में लाए जाने वाले सभी औजारों की बारी-बारी से पूजा करते हैं, मीठा चीला से भोग लगाया जाता है तथा मंदिरों में चढ़ाया जाता है. मवेशियों को नमक और बगरंडा की पत्ती एक साथ मिला लोंदी बनाकर (गेहूं आटा से बना) खिलाया जाता है ताकि वे बीमारी से बचे रहें और मवेशियों की पूजा भी की जाती है. इसके अलावा किसान भाई-बहन अपने खेत जाकर नीम और भेलवा की टहनी डालते हैं. घर के दरवाजे, गौशाला पर नीम की पत्ती तथा चौखट में कील लगाई जाती है, ऐसा करने वालों को दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि दान के रूप में भी प्राप्त होते हैं.

हरेली और अंधविश्वास

बारिश के मौसम में आए इस त्यौहार को कुछ लोग अंधविश्वास से जोड़ते हैं. जैसा कि आज के दिन घर के दरवाजे पर नीम की पत्तियां लगाने और लोहे की कील ठोकने की परंपरा है. प्रदेश में जरूर इन परंपराओं का पालन यह बोल कर किया जाता है कि इससे आपके घर से नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं, लेकिन इन परंपराओं के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण हैं. बारिश के दिनों में गढ्ढो-नालों में पानी भर जाने से बैक्टीरिया, कीट व अन्य हानिकारक वायरस पनपने का खतरा पैदा हो जाता है और दरवाजे पर लगी नीम और लोहा उन्हीं हानिकारक वायरस को घर में घुसने से रोकने का काम करते हैं. छत्तीसगढ़ संस्कृति में घर के बाहर गोबर लीपने की वैज्ञानिक वजह भी हानिकारक वायरस से बचना ही है, इसलिए छत्तीसगढ़ के पहले त्यौहार को अंधविश्वास से जोड़ना किसी मायने में सही नहीं है. हरेली और गेड़ी हरेली के साथ गेड़ी का मजा अलग ही है। क्योंकि हरेली पर्व का मुख्य आकर्षण गेड़ी होती है, जो हर उम्र के लोगों को लुभाती है। यह बांस से बना एक सहारा होता है, जिसके बीच में पैर रखने के लिए खाँचा बनाया जाता है. गेड़ी की ऊँचाई हर कोई अपने हिसाब से तय करता है कई जगहों पर 10 फीट से भी ऊँची गेड़ी देखने को मिलती है। हरेली के दिन से गेड़ी चढ़ने से शुरू हुआ ग्रामीण खेलों का सिलसिला भादो माह में तीजा-पोला के दिन तक चलता है.  खेलां का आनंद हरेली में गाँव व शहरों में नारियल फेंक, फुगड़ी, पोसम-पा, पिट्टूल, मटकी फोड़, बांटी, उलान-बाटी, कुश्ती, खो-खो, कबड्डी, लंगड़ी, बित्ता कूद, गिल्ली-डंडा, घांदी-मुंदी, बिल्लस, भौंरा के अलावा अन्य खेल प्रतियोगिताएं होती हैं. सुबह पूजा-अर्चना के बाद गाँव के चौक-चौराहों पर युवाओं की टोली जुटती है और खेल प्रतियोगिताओं तथा एक-दूसरे को बधाई देने का सिलसिला रात तक चलता है. राज्य सरकार ने विगत छह-सात माह में अनेक योजनाएं शुरू की तथा उपलब्घियां भी हासिल की है.

पेशे से किसान, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसानों, ग्रामीणों के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, उसे संक्षिप्त में बताना भी उचित होगा. सरकार बनने के तुरंत बाद किसानों से 2500 रू. प्रति क्विंटल में धान खरीदी की गई. प्रदेश के इतिहास में पहली बार किसानों के लिए व्यापक ऋण माफी योजना पर अमल की किया गया. 19 लाख किसानों के लगभग 11 हजार करोड़ रूपए से अधिक का कर्ज माफ किया. किसानों के नानपरफार्मिग खातों के वन टाइम सेटलमेंट का निर्णय लिया गया, जिससे राज्य शासन पर 6सौ करोड़ रू. का व्यय भार आया. करीब 15 वर्षों से 15 लाख किसानों की 207 करोड़ रूपए की सिंचाई कर माफ किया गया. ‘नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी’ के तहत 1,947 गौठान स्वीकृत किए हैं और 445 गौठान पूर्णतः की ओर है. 1,927 ग्रामों में चारा उगाये जाने संबंधी कार्यवाही, गौठानों में ट्रेन्चिग, कोटना, चारे की व्यवस्था, सोलर पम्प, जल उपलब्धता, वर्मी कम्पोस्ट जैसे अनेक कार्य प्रगति पर हैं. स्व-सहायता समूह द्वारा सीमेन्ट पोल, चेन लिंक फेन्स, फ्लाई ऐश ब्रिक्स, जैविक खाद, गौ-मूत्र से जैविक कीटनाशक निर्माण व गैस प्लांट संचालन आदि कार्य प्रारम्भ किया गया है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत स्वीकृत सड़कों में 89 प्रतिशत उपलब्धि के कारण राज्य को देश में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है. 5 डिसमिल से कम भू-खण्डों की खरीदी-बिक्री से रोक हटाई गई, जिसके कारण लगभग 56 हजार भू-खण्डों की रजिस्ट्री हुई है. प्रत्येक गरीब परिवारों को 35 किलो चावल, 5 सदस्य से अधिक होने पर प्रति सदस्य 7 किलो चावल साथ ही एपीए ल परिवारों को भी 10रू. किलो में चावल देने जैसे अनेक निर्णय ने 2 करोड़ 80 लाख छत्तीसगढ़ियों के मन में एक नया विश्वास पैदा किया है।

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