विशेष टिप्पणी

राष्ट्रीय एकता के नाम पर अश्लीलता !

राष्ट्रीय एकता के नाम पर अश्लीलता !

देश के प्रख्यात कथाकार मनोज रुपड़ा अपनी बेहद छोटी किंतु महत्वपूर्ण टिप्पणी में बता रहे है कि वे अवसाद में क्यों चले गए ? उनका मानना है कि देश में राष्ट्रीय एकता के नाम पर अश्लीलता हावी है.

कुछ दिनों से ऐसा लग रहा है , जैसे मैं कोई वास्तविक जीवन नहीं जी रहा हूं , बल्कि किसी कहानी में  जी रहा हूं. एक ऐसी फैंटेसी में जो ‘’ अंधेरे में ‘’ से भी ज्यादा भयानक और अकल्पनीय है.

इसमें सिर्फ किसी महामारी के संक्रमण का डर नहीं है, बल्कि समूचे भारतीय समाज के सामूहिक अवचेतन को निगलने का उपक्रम ज्यादा नजर आ रहा है. इतने बड़े पैमाने पर समूहिक मूर्खता का प्रदर्शन  मैंने पहले कभी नहीं देखा था. इतना विवेकहीन जन समूह भी कभी नहीं देखा था.

लेकिन याद रहे कि पहले ताली और थाली बजाने  का और अब दीया–बत्ती जलाने का आव्हान सिर्फ उनके लिए है , जिनके पास छत और बालकनी है. किराए का ही सही पक्का मकान है. छप्पर और टप्पर के नीचे जीने वाले निम्न वर्ग के लिए तो ये आव्हान बिल्कुल भी नहीं है ( दिखावे के लिए उनके लिए, लेकिन वास्तविक रूप में उनके लिए  नहीं )क्योंकि साधारण लोग जो टप्पर और छप्पर के नीचे रहते हैं , वे मनुष्य नहीं , कसाई खाने के पशु हैं. वे केवल तब उपयोगी हो सकते हैं , जब वे सत्ता विरोधी शक्तियों को मुश्किल में डालने के काम में आते हैं. यानी उनका उपयोग चुनाव  में वोट देने जुलूस  या चुनावी जन-सभा में भीड़ बढ़ाने तक सीमित है और जब उनका उपयोग नहीं रह जाता तो उनकी बलि चढ़ा दी जाती है.

दिल्ली से पलायन करते मजदूरों को देखकर यही लगा था कि वे कसाईबाड़े  की तरफ बढ़ते पशु हैं या ऐसे अनुपयोगी जानवर जिन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है. 

जिस डरावनी फैंटेसी में मैं जी रहा हूं उसमें एक तरफ सड़क पर भटकती भीड़ है और अपने छप्परों और टप्परों में राशन और खाने के पैकेट की भीख का इंतजार करते लाखों लोग हैं और दूसरी तरफ राष्ट्रीय एकता के नाम पर की जाने वाली अश्लीलता. ये वही स्वयंसेवक हैं जो ताली और थाली बजाने के पर्व में शामिल थे और अब खाने के पेकेट बांट रहे हैं. एक तरफ  ये अश्लील तमाशा और दूसरी तरफ़  सड़क पर भटकते हजारों मजदूर और रातों रात भिखारी बना दिए गए लाखों लोग मेरे दुःस्वप्न में गुथ्थम-गुत्था हो रहे हैं इस गुथ्थ्त्म- गुत्थी से कोई बड़ा सामाजिक विस्फोट हो या न हो, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मुझे इस फैटेंसी ने अवसाद में डाल  दिया है.

 

 

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