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अब कोरबा के ग्रामीण हाट बाजारों में भी होगा आदिवासियों का इलाज

कोरबा. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की हाट बाजारों में ग्रामीणों को ईलाज की निःशुल्क सुविधा देने की योजना कोरबा जिले के आदिवासी बाहुल्य वनांचलों के लिए संजीवनी साबित होगीं। कोरबा जिले में लगभग 41 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासी समुदाय की है। परंपरागत रीति रिवाजों को मानने वाले इस समुदाय में पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, गोड़, राजगोड़, बिंझवार, धनवार प्रमुख जनजातियां हैं। जिले में गांवों का दुरस्थ जगहों तक फैलाव चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार के लिए बड़ी चुनौती है। जिले के 45 सामुदायिक एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डाक्टरों के 18 पद खाली पड़े हैं ऐसे में लोगों को समय पर उपयुक्त ईलाज की सुविधा देना एक अतिरिक्त चुनौती है। जिले के ग्रामीण इलाकों में नियत स्थान पर सप्ताह में लगभग सभी दिन हाट बाजारों लगते हैं और उनमें आसपास के गांवों के लोग साग-सब्जी, तेल नून के साथ अपनी दैनिक जरूरतों की चीजें भी खरीदने आते हैं। हाट बाजारों में मोबाइल अस्पताल से निःशुल्क ईलाज की सुविधा हो जाने से लोगों को बीमारी के दौरान दूर अस्पतालों तक नहीं जाना पड़ेगा। 

      कोरबा जिले में कोयला खदानों और बड़े उद्योगों के कारण प्रदूषण का स्तर भी सामान्य से कुछ अधिक है। जिले के ढाई सौ से अधिक गांव खनन प्रभावित क्षेत्रों में है। ऐसे में लोग सामान्य सर्दी-खांसी, एलर्जी या चर्म रोग जैसी बीमारियों को भी अस्पताल दूर होने के कारण नजरअंदाज कर देते हैं। अब हाट बाजार में डाक्टरों की  जांच से इन सामान्य बीमारियों का प्राथमिक स्तर पर ही ईलाज संभव हो सकेगा। आदिवासी बाहुल्य कोरबा जिले में कुपोषण भी 22.42 प्रतिशत है। जिले की दस बाल विकास परियोजना क्षेत्रों में से  कुछ क्षेत्रों में यह प्रतिशत 25 से भी अधिक है। छोटे बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण की बेहतरी के लिए भी इन हाट अस्पतालों से अच्छा परिणाम आ सकता है। बच्चों के स्वास्थ्य की हर हफ्ते हाट बाजार में लगे अस्पताल में ही जांच हो सकेगी उन्हें जरूरी दवाएं और पोषक आहार मिलेंगे। इसके साथ ही सेहत में होने वाले सुधार की मानिटरिंग भी हर हफ्ते हो पायेगी।  

      कोरबा जिले के आदिवासी अंचलों की महिला अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा जागरूक नहीं हैं। कमजोरी, खून की कमी या महिलाओं को होने वाले अन्य रोगों की स्थिति में भी वे तत्काल अस्पताल जाना पसंद नहीं करतीं और धीरे-धीरे उनकी बीमारी जानलेवा हो जाती है। ग्रामीण अंचलों की महिलाओं की स्वस्थ्य सुधार में चलित हाट अस्पतालों की भूमिका अत्याधिक महत्वपूर्ण होगी।  बाजार में पहुंचकर जरूरत का सामान खदीदने के साथ ही डाक्टरों से अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराने पर बीमारियों का प्रारंभिक अवस्था में ही पता चल पायेगा और उनका समुचित ईलाज हो सकेगा। ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी के कारण बीमार लोगों को ईलाज के लिए कई बार बड़े अस्पतालों को रिफर करना पड़ता है। हर हफ्ते हाट अस्पताल में विशेषज्ञ डाक्टर से जांच और ईलाज की सुविधा भी ऐसे मरीजों को त्वरित रूप से मिल सकेगी। जिले में ग्रामीण क्षेत्रों में पैथोलाजी प्रयोगशालाएं नहीं होने के कारण मरीजों को छोटी-छोटी जांचों के लिए भी शहरी क्षेत्रों या कोरबा तक आना पड़ता है। पैथोलाजी लैबों में जांचें बहुत महंगी पड़ती हैं। अब हाट बाजार में ही रक्तचाप, मधुमेंह, सिकलसेल, एनीमिया, हीमोग्लोबिन, मलेरिया, टाईफाईड जैसी बीमारियों के लिए खून की जांच निःशुल्क हो सकेगी। जिससे लोगों का बीमारी की स्थिति में त्वरित ईलाज भी हो सकेगा।

 

 

 

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भाजपाई अफवाह फैलाते रहे और इधर 22 घंटे बिजली देने वाले 5 राज्यों में शामिल हो गया छत्तीसगढ़

रायपुर. छत्तीसगढ़ स्टेट पाॅवर कंपनीज द्वारा विद्युत अधोसंरचना को सुदृढ़ बनाने के लिये अत्याधुनिक टेक्नालाजी का उपयोग किया जा रहा है, फलस्वरूप शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में निर्बाध बिजली आपूर्ति हो रही है। प्रदेश में स्थापित विद्युत प्रणालियों में आने वाली खराबी तथा इससे उत्पन्न विद्युत व्यधान को न्यूनतम समय में पूरा करने में कामयाबी मिली है। उक्त जानकारी देते हुए  पाॅवर कम्पनी अध्यक्ष शैलेन्द्र शुक्ला ने बताया कि भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय द्वारा अपने वेबपोर्टल में विभिन्न प्रदेशों की बिजली व्यवस्था का मूल्यांकन कर राज्यों को उनके उत्कृष्ट कार्य हेतु रेटिंग किया गया। इस सूची में छत्तीसगढ़ राज्य के बिजली व्यवस्था को देष के उत्कृष्ट श्रेणी में अंकित किया गया। केन्द्र सरकार द्वारा जारी सेफी (सिस्टम एवरेज इंटरप्शन फ्रिक्वेंसी इंडेक्स) के रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य के डिवीजनों के फीडरों का भी मूल्यांकन किया गया। इस प्रतिवेदन के अनुसार छत्तीसगढ़ के फीडरों को टाॅप थ्री में स्थान दिया गया है। अध्यक्ष श्री शुक्ला ने उक्त संदर्भ में जानकारी देते हुए बताया कि देश भर के विभिन्न राज्यों के ग्रामीण फीडरों में बिजली की उपलब्धता 9 प्रतिशत 14 प्रतिशत 17 प्रतिशत और 22 प्रतिशत रही। इसकी तुलना में छत्तीसगढ़ राज्य में औसतन प्रतिदिन 22 घण्टे बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित की गई। ग्रामीण अंचलों में बिजली की आवश्यकता कृषि कार्यों में सर्वाधिक होता है। कृषि पम्पों के लिए पृथक किए गए ग्रिड में निश्चित समय के लिए बिजली बंद की जाती है अन्यथा ऐसे फीडर, जिनमें कृषि पम्पों के साथ अन्य कनेक्शन भी हैं, उनमें निरन्तर विद्युत प्रवाह सुनिश्चित किया जाता है। केवल आंधी-तूफान व भारी वर्षा के समय ब्रेकडाउन अथवा मरम्मत कार्यों के लिए शटडाउन लेने पर बिजली सप्लाई प्रवाहित होती है। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि कम से कम समय में बिजली सप्लाई पुनः चालू कर ली जाए. प्रदेशभर में ग्रामीण अंचलों व आदिवासी क्षेत्रों में बिजली की सतत् आपूर्ति के लिए कंपनी प्रबंधन निरन्तर प्रयासरत है। राज्य शासन की रीति-नीति के अनुरूप सभी योजनाओं का लाभ उपभोक्ताओं को प्राप्त हो रहा है।  

 ट्रांसमीशन नेटवर्क विस्तार में बना नया कीर्तिमान

प्रदेश में गुणवत्तापूर्ण बिजली की आपूर्ति हेतु पारेषण प्रणाली को सुदृढ़ बनाने का कार्य पाॅवर ट्रांसमिशन कम्पनी द्वारा युद्धस्तर पर किया जा रहा है। इस दिशा में नये सबस्टेशनों की स्थापना, लाईनों का विस्तार, ट्रांसफार्मरों का ऊर्जीकरण एवं पारेषण क्षमता में वृद्धि जैसे अनेक कार्य किये जा रहे हैं। 

विदित हो कि बस्तर में सतत् बिजली आपूर्ति हेतु हेतु वर्तमान में 400 के0व्ही0 का एक सबस्टेशन क्रियाशील है। 33/11 के.व्ही. एवं 11/04 के.व्ही. के सैंक़ड़ों उपकेन्द्रों के माध्यम से बस्तर क्षेत्र में निरन्तर बिजली सप्लाई की जा रही है। नई सरकार के गठन उपरान्त धरसीवाँ कुथरेल में 220 के.व्ही. सबस्टेशन में 160 एमव्हीए का नया ट्रांसफार्मर स्थापित किया गया है। पारेषण क्षमता अब बढ़कर 7 हजार एमव्हीए हो गई है, जिसमें से 10 प्रतिशत वृद्धि इस 6 माह की है। औद्योगिक क्षेत्रों को बढ़ावा देने हेतु रायपुर के समीप उरला में सेक्टर-ए के लिए 40 एमव्हीए का तथा सेक्टर सी के लिए 40 एमव्हीए का नया ट्रांसफार्मर लगाया गया। इससे पारेषण क्षमता में वृद्धि के साथ ही पूर्व से लम्बित आवेदनों का निराकरण किया गया एवं उपभोक्ताओं को नये कनेक्शन तीव्रता से प्रदान किये गये हैं। 

पाॅवर कंपनी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार  जून, 2019 में ही 220 के.व्ही उपकेन्द्र भिलाई स्थित सबस्टेशन में 160 एमव्हीए का नया ट्रांसफार्मर ऊर्जीकृत किया गया, जिससे अब इस पारेषण सबस्टेशन की कुल क्षमता 695 एमव्हीए हो गई है और इस क्षेत्र में निरन्तर बिजली सप्लाई के लिए पर्याप्त है। इस ट्रांसफार्मर के लगने से 220 के.व्ही. उपकेन्द्र की क्षमता में वृद्धि हुई है और संबंधित क्षेत्र के रहवासियों को ओवर लोडिंग जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलेगा। 

प्रदेश में अप्रैल माह के आंकड़ों के अनुसार पारेषण प्रणाली की सुदृढ़ीकरण हेतु प्रयास किये गये है जिससे पाॅवर कंपनी के अति उच्चदाब उपकेन्द्रों की संख्या 118 नग हो चुकी है तथा अति उच्चदाब लाईनों की लंबाई 12300 सर्किट किलोमीटर तक पहंुच चुकी है। इसी प्रकार 33/11 के.व्ही. उपकेन्द्रों की संख्या 1248 नग हो चुकी है एवं 33 केव्ही लाईनों की लंबाई 22088 किलोमीटर तक विस्तार कर लिया गया है। 11/04 उपकेन्द्रों की संख्या भी बढ़कर डेढ़ लाख से अधिक हो गई है। 11 के.व्ही. लाईनों की लंबाई 1 लाख 12 हजार तक पहुंच चुकी है। इसी के साथ-साथ निम्नदाब लाइनों की लंबाई में एक लाख 90 हजार तक वृद्धि हुई है। 

बिजली बिल हाफ का बढ़ने लगा लाभ

सभी घरेलू उपभोक्ताओं को उनके द्वारा खपत की गई चार सौ यूनिट पर हाफ बिजली बिल स्कीम का लाभ देने का निर्णय छत्तीसगढ़ राज्य शासन द्वारा लिया गया था। शासन के इस जनहितैषी निर्णय को छत्तीसगढ़ स्टेट पाॅवर कंपनी द्वारा 01 मार्च से प्रभावषील कर दिया गया, जिसका लाभ प्रदेश के घरेलू उपभोक्ताओं को मिलने लगा है।

प्रदेश के नवगठित सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘बिजली बिल हाफ‘ का लाभ उपभोक्ताओं को मिल रहा है। साथ ही लाभान्वित उपभोक्ता इस योजना से संतुष्ट होकर समय पर बिजली बिल जमा कर रहे है। पाॅवर कंपनी के अध्यक्ष श्री शैलेन्द्र शुक्ला ने बताया कि बिल भुगतान के आंकड़ों का मूल्यांकन करने पर ज्ञात हुआ कि अप्रैल माह में केवल 29 लाख उपभोक्ता इस योजना से लाभान्वित हुए थे, जिन्होंने निर्धारित तिथि पर बिल का भुगतान किया। दूसरे माह में लाभान्वित उपभोक्ताओं की संख्या बढ़कर 35 लाख हो गई। तुलनात्मक अध्ययन में विगत माह में लाभान्वित उपभोक्ताओं में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

आगे श्री शुक्ला ने बताया कि इस योजना से राज्य के समस्त बी.पी.एल. एवं फ्लैट रेट योजना के अंतर्गत शामिल अन्य घरेलू श्रेणी के उपभोक्ताओं को इससे बड़ी राहत मिली है। प्रदेश में 19 लाख 93 हजार से अधिक बीपीएल. कनेक्शन देकर गरीब तबके के लोगों को बिजली की मूलभुत सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। 

बिजली बिल हाफ योजना का लाभ उठाते हुए उपभोक्ताओं में भी निर्धारित तिथि के पूर्व बिजली बिल जमा करने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। प्रदेश के अधिकांश घरेलू उपभोक्ता योजना का लाभ लेने हेतु समय पर बिजली बिल भुगतान कर रहे है। जिससे पाॅवर कंपनी को भी समय पर राजस्व का लाभ मिल रहा है। जिससे इस योजना से पाॅवर कंपनी के साथ उपभोक्ता भी लाभान्वित हो रहे हैं और उन्हें सरचार्ज भी नहीं देना पड़ रहा है।  

6 माह में बनाए गए 116 विद्युत उपकेन्द्र,ट्रांसफार्मर क्षमता

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के दिशा निर्देशों के अनुरूप पाॅवर कम्पनी द्वारा प्रदेश की विद्युत प्रणाली में अनवरत् सुधार कार्य किये जा रहे हैं। पूर्व के कार्यों का आकलन कर नई कार्ययोजना तैयार की गई है। पूर्ववर्ती राज्य सरकार द्वारा नये कनेक्शन दिये जाने का वादा तो किया गया किन्तु उसके अनुरूप ट्रांसफार्मरों की संख्या, उनकी क्षमता में वृद्धि एवं ग्रिड के संचालन का कार्य उसके अनुपात में नहीं किया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि देवभोग एवं गरियाबंद जैसे क्षेत्रों में लो वोल्टेज एवं प्रणालियों पर बार-बार ओवरलोड की समस्या उत्पन्न होने लगी। इसके निराकरण हेतु प्रदेश की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने विगत पांच महिनों में ही मुख्यमंत्री ऊर्जा प्रवाह योजना अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 33/11 केव्ही के 34 नये उपकेन्द्र की स्थापना के कार्य को प्राथमिकता से किया जा रहा है। साथ ही शहरी क्षेत्रों में 33/11 केव्ही के 9 उपकेन्द्र स्थापित किये गये। 

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में स्थापित 33 सबस्टेशनों में अतिरिक्त ट्रांसफार्मर लगाकर क्षमता वृद्धि करते हुये बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्णय लिया गया है। पूर्व में संचालित पाॅवर ट्रांसफार्मर में 40 नये एवं उन्नत क्षमता के ट्रांसफार्मर लगाकर ग्रिड को मजबूती प्रदान करने का प्रस्ताव है। इस प्रकार कुल 116 सबस्टेषन में नवीन स्थापना क्षमता, उन्नयन कार्य किया गया। इसका लाभ बलोदाबाजार के राजदेवरी, कटगी, गिधपुरी, बलरामपुर के महावीरगंज, पास्ता, जांजगीर-चांपा के कचन्दा, कोेसी, लखानी व गरियाबन्द के मालगाँव एवं डोंगरीगाँव जैसे अनेकों दूरस्थ ग्रामों को मिला।

प्रथम चरण में प्रदेश के दूरस्थ ऐसे स्थानों का चयन किया गया है, जहाँ तक बिजली पहुँचा दी गई थी, किन्तु बिजली की सतत् आपूर्ति एवं वोल्टेज़ को मेंटेन करने में बहुत कठिनाईयाॅ आ रही थी। पाॅवर कम्पनी द्वारा ऐसे क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है एवं सतत् बिजली आपूर्ति हेतु स्थायी समाधान करने के लिए प्रयासरत किये जा रहे हैं। 

19 साल बाद रौशन सरगुजा के 174 गांव

छत्तीसगढ़ को पॉवर हब चाहे जब घोषित कर दिया गया हो, परंतु सरगुजा के जनकपुर क्षेत्र के 174 गांवों तक असल उजाला 19 साल बाद अब जाकर पहुंचा है। बिजली का भरपूर उत्पादन करने वाले छत्तीसगढ़ के इन गांवों के हजारों लोग इतने वर्षों तक सिर्फ इसलिए समस्याओं से जूझते रहे, क्योंकि उन तक उनके अपने प्रदेश की बिजली पहुंच ही नहीं पाई थी। मध्यप्रदेश से इन गांवों को ऊंची कीमत पर बिजली की आपूर्ति हो रही थी। अब जाकर इस समस्या का स्थायी समाधान हो पाया है।*   केवल साढ़े 3 महीने के रिकार्ड समय में नयी सरकार ने 60 किलोमीटर नयी विद्युत लाइन बिछाकर छत्तीसगढ़ से ही बिजली पहुंचाने का इंतजाम कर दिया है।

मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की जानकारी में जब जनकपुर क्षेत्र की समस्या लाई गई तो उन्होंने इसके तत्काल समाधान का निर्देश दिया। राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ ने विद्युत उत्पादन के मामले में हालांकि सरप्लस राज्य के रूप में पहचान बनाई, लेकिन अधोसंरचना के मामले में अनेक सीमावर्ती उपेक्षित रह गए। जनकपुर क्षेत्र भी इन्हीं में से एक था। 19 सालों में भी इस क्षेत्र को छत्तीसगढ़ के निकटतम विदुयत उपकेंद्र से कनेक्ट नहीं किया गया। मध्यप्रदेश से जिस 33 केवी लाइन से विद्युत आपूर्ति की जा रही थी, उसकी लंबाई 100 किलोमीटर है। इसीलिए इस क्षेत्र के गांवों को न तो निर्बाध बिजली मिल पा रही थी, और न ही सही वोल्टेज। 

4178 उपभोक्ताओं वाले जनकपुर क्षेत्र में आए दिन बिजली गुल रहा करती थी। लाइन में खराबी आने पर सुधार के लिए मध्यप्रदेश के अधिकारियों-कर्मचारियों के भरोसे रहना पड़ता था। समय पर सुधार नहीं हो पाने के कारण अक्सर कई-कई दिनों तक बिजली बाधित रहती थी। 

मध्यप्रदेश से बिजली की व्यवस्था किए जाने से जहां ग्रामीण परेशान थे, वहीं छत्तीसगढ़ को हर महीने बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा था। हाल के दिनों तक छत्तीसगढ़ को मध्यप्रदेश से हर महीने 1.14 मिलियन यूनिट बिजली खरीदनी पड़ रही थी। इसके ऐवज में छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत वितरण कंपनी द्वारा औसत प्रति यूनिट 7 रुपए 21 पैसे की दर से हर महीने 82 लाख रुपए का भुगतान मध्यप्रदेश को किया जा रहा था। अब जबकि छत्तीसगढ़ से बिजली आपूर्ति की व्यवस्था हो गई है, मात्र 5 रुपए 43 पैसे की दर से बिजली उपलब्ध हो जाएगी। इस तरह 20 लाख 30 हजार रुपए की बचत हर महीने होगी।

         जनकपुर क्षेत्र के लिए 33 केवी की 60 किलोमीटर लंबी नयी लाइन बिछाने का काम मात्र साढ़े तीन महीने के रिकार्ड समय में पूरा कर लिया गया है, बावजूद इसके कि यह पूरी लाइन जंगल क्षेत्र से होकर गुजरती है। छत्तीसगढ़ के केल्हारी 33/11 केवी सब स्टेशन से जनकपुर क्षेत्र तक यह लाइन बिछाई गई है। इसमें 13 करोड़ 88 लाख रुपए खर्च हुए हैं। नयी लाइन के जरिये अब 174 गांवों को भरपूर वोल्टेज के साथ निर्बाध बिजली मिल पाएगी। लाइन में किसी तरह की खराबी या बाधा आने पर वे छत्तीसगढ़ के ही           अधिकारियों-कर्मचारियों से शिकायत कर उसे तुरत ठीक करा पाएंगे। जनकपुर क्षेत्र को मध्यप्रदेश से 33 केवी लाइन पर लगभग 23 केवी वोल्टेज प्राप्त हो रहा था, नई लाइन के चालू होने पर वोल्टेज बढ़कर 27 केवी हो गया है। 

देवभोग के 200 गांवों में रोशनी की राह

अधोसरंचना की खामियों की वजह से बिजली की समस्याओं से जूझ रहे देवभोग क्षेत्र के 200 गांवों को जल्द राहत मिल जाएगी। इस क्षेत्र को अच्छी गुणवत्ता के साथ निर्बाध बिजली की आपूर्ति करने के लिए भूपेश सरकार 67 करोड़ रुपए खर्च करने जा रही है। इस राशि से इंदा गांव में एक नये सब स्टेशन का निर्माण कराया जाएगा। 132 केवी की 68 किलोमीटर लंबी नयी विद्युत लाइन नगरी से बिछाने की तैयारी कर ली गई है। बीते वर्षों में देवभोग क्षेत्र में विद्युत कनेक्शनों की संख्या जिस रफ्तार से बढ़ी, उस रफ्तार से अधोसंरचना में सुधार का काम नहीं हो पाया। क्षेत्र की विद्युत संबंधी दिक्कतें संज्ञान में आने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अधोसंरचना संबंधी खामियों को जल्द से जल्द दूर करने के निर्देश अधिकारियों को दिए थे। इस समय गरियाबंद के 132 केवी सब स्टेशन से देवभोग को बिजली की आपूर्ति की जाती है। देवभोग तक बिजली पहुंचाने वाली 33 केवी की लाइन 140 किलोमीटर लंबी है। लंबाई अधिक होने की वजह से 33 केवी उपकेंद्रों में 33 केवी की जगह मात्र 21-22 केवी वोल्टेज प्राप्त हो पा रहा है। इसीलिए क्षेत्र के गांवों को लो-वोल्टेज की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। खेती-किसानी के मौसम में पंप चलने के कारण फीडर में लोड बहुत ज्यादा बढ़ जाता है, जिसके कारण अक्सर तार टूटने की घटनाएं होती रहती हैं। इन सब की वजह से अक्सर गांवों में बिजली गुल रहती है। 

          देवभोग क्षेत्र के 33 हजार से ज्यादा उपभोक्ता पिछले 8 सालों से इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। अब छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड ने इंदा गांव में 40 एमवीए क्षमता के 132/33 केवी विद्युत उपकेंद्र के निर्माण की तैयारी शुरू कर दी है। 13 करोड़ रुपए लागत वाले इस विद्युत उपकेंद्र के लिए राज्य नियामक आयोग से अनुमति प्राप्त की जा चुकी है। नगरी से जो नयी विद्युत लाइन बिछाई जाएगी, उसमें 54 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इस तरह इस पूरे काम में 67 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। सब स्टेशन के निर्माण के लिए टेंडर की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। जुलाई से काम शुरू होने की संभावना है। इस उपकेंद्र के निर्माण के बाद देवभोग क्षेत्र में विद्युत आपूर्ति करने वाली 33 केवी लाइन की लंबाई मात्र 50 किलोमीटर रह जाएगी, जिससे क्षेत्र में लो वोल्टेज तथा तार टूटने की वजह से विद्युत-बाधा की समस्या हल हो जाएगी.

   

 

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बिजली को लेकर भाजपा के अफवाह की हवा निकाली विद्युत प्राधिकरण ने

रायपुर. छत्तीसगढ़ में बिजली को लेकर भाजपाइयों का अफवाह तंत्र लगातार सक्रिय है. इस बीच केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने भाजपाई अफवाह की हवा निकाल दी है. प्राधिकरण के पोर्टल में साफ दिख रहा है कि  बिजली की उपलब्धता सहित विद्युत प्रणालियों की सुदृढ़ता के कारण छत्तीसगढ़ में बिजली सप्लाई की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर बनी हुई है. केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण, नई दिल्ली द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य में माह जनवरी से मई 2019 तक विद्युत की उपलब्धता 97.62 प्रतिशत दर्ज हुई. उक्त जानकारी पावर कंपनी के विगत पांच  महीनों में विद्युत की उपलब्धता मांग के अनुरूप बनी हुई है. केन्द्र शासन के ऊर्जा विभाग द्वारा जारी आकड़ों के अनुसार इस स्थिति को उत्कृष्ट श्रेणी में रखा गया है.

ऊर्जा मंत्रालय के वेबपोर्टल के अनुसार विगत पांच माह जनवरी से मई 2019 तक प्रदेश में मांग के अनुरूप बिजली की आपूर्ति रही. जनवरी, 2019 में बिजली की मां 1990 मिलियन यूनिट थी, जिसके विरूद्ध 1983 मिलियन यूनिट बिजली आपूर्ति की गई. मांग के अनुपात में आपूर्ति में मात्र 0.4 प्रतिषत् कमी दर्ज की गई. सतत् मानीटरिंग और युद्धस्तर पर बिजली व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण के फलस्वरूप माह फरवरी और मार्च में यह कमी घटकर मात्र 0.3 प्रतिशत पहुंच गई. बिजली कर्मचारियों के लगातार प्रयासों से माह अप्रैल और मई, 2019 में छत्तीसगढ़ राज्य ने नया कीर्तिमान स्थापित किया, जिसमें मांग के विरूद्ध शत्-प्रतिशत विद्युत प्रदाय किया गया, अर्थात ’’शून्य‘‘ प्रतिशत कमी दर्ज हुई, यह स्थिति राष्ट्रीय स्तर पर मांग और उपलब्धता के औसत से कहीं बेहतर है, यही कारण है कि पिछले 5 महीनों में नेशनल पावर पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार बिजली सप्लाई की विश्वसनीयता 97.62 प्रतिशत रही।

पावर कंपनी के विद्युत गृहों की बेहतर कार्यनिष्पत्ति एवं सतत् मानिटरींग की जा रही है जिससे विद्युत उत्पादन की स्थिति संतोषजनक बनी हुई है.  बढ़ती गर्मी तथा उपभोक्ताओं की संख्या में लगातार वृद्धि के बावजूद पावर कंपनी अपने उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण विद्युत आपूर्ति करने में सफल रही।

 

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जंगल कटता रहेगा तो एक दिन झुलसकर मर जाएंगे हम सब

नंद कुमार कश्यप

हम प्रत्येक वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं, परंतु उसके साथ ही यह भी सच्चाई है कि उपभोक्ता वादी व्यवस्था के चलते हमारी ऊर्जा खपत बढ़ने से पृथ्वी गर्म हो रही है और धीरे धीरे यह संकट बढ़ता ही जा रहा है। आवश्यक जंगलों को बचाने की जगह समारोह पूर्वक वृक्षारोपण कार्य में करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं परंतु उनके रखरखाव के अभाव में वे नन्हे पौधे वृक्ष नहीं बन पाते। दूसरी ओर लोग एक दिनी समारोह के बाद प्रर्यावरण की चिंता छोड़ देते हैं। वास्तविकता यह है कि आज का संकट वृक्षारोपण की औपचारिकताओं से बहुत बड़ा है। हमारे देश की आबादी की तुलना में शुद्ध जल बहुत सीमित है और हिमालय क्षेत्र के बाद विशुवत (कर्क रेखा क्षेत्र) रेखा के वनों से निकलने वाली नदियां शुद्ध जल का मुख्य स्रोत हैं। परंतु आज विभिन्न खनिजों के खासकर कोयले और बाक्साईट के दोहन के लिए इन वनों को काटा जा रहा है। नतीजा यह है कि एक ओर मध्य और मध्य पश्चिम भारत में तापमान पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ते जा रहा है और पेयजल का भीषण संकट खड़ा हो गया है। सरकारों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जगह मिथकीय भटकावों की ओर जाने से यह संकट गहराया है। दुनिया की ओर देखें तो जिन देशों में आस्था के ऊपर वैज्ञानिक दृष्टिकोण है वहां की नदियां साफ सुथरी हैं और वहां पानी का संकट नहीं है लेकिन जहां विज्ञान पर आस्था और मिथक हावी है वहां नदियां कचरे के ढेर में बदल गई हैं और जंगल नष्ट हो रहे हैं। इसलिए आइए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हमारे प्रर्यावरण के लिए सोचें।

पृथ्वी को ठंडा रखने में उष्ण कटिबंधीय जंगलों की भूमिका और उत्तरी छत्तीसगढ़ के घने जंगल

 

Ecosystem restoration is the alpha and omega of managing this little spaceship we call Earth.

We lose an acre and half of every forest, every second. Almost 15 billion trees a year.

 

जैसा कि हम सभी जानते हैं वृक्ष दिन में आक्सीजन छोड़ते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड खींचते हैं। पृथ्वी के गर्म होने के बड़े कारणों में एक ग्रीनहाउस गैसों का अति उत्सर्जन और लगभग प्रति सेकेंड डेढ़ एकड़ जंगलों की कटाई है, मतलब साल भर में लगभग 15 अरब वृक्षों की कटाई। एक ओर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और दूसरी ओर जंगलों की कटाई,इसने पृथ्वी के पर्यावास को ही असंतुलित कर दिया है। मार्च 2017 में ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि जंगलों की भूमिका सिर्फ कार्बन अवशोषण तक सीमित नहीं है वरन् वे पृथ्वी की सतह और वातावरण के बीच जल और उर्जा संचरण को भी नियंत्रित करते हैं इसलिए जंगलों को बचाना अति आवश्यक कर्त्तव्य है।

 

(Trees impact climate by regulating the exchange of water and energy between Earth surface and the atmosphere,an important influence that should be considered as policymakers contemplate effort to conserve forested land , said the author's of an international study)

 

इस अध्ययन के शोधकर्ताओं ने पाया कि एक ओर ये उष्णकटिबंधीय जंगल भूमध्य रेखा की ओर की धरती को बड़ी मात्रा में ठंडा करते हैं तो वहीं दूसरी ओर ऊपर ध्रुवों की ओर के वातावरण को गर्म रखते हैं।यह इस बात की तस्दीक करता है कि उष्ण कटिबंधीय वन पृथ्वी के एयरकंडीशनर हैं। यद्यपि उष्णकटिबंधीय मिश्रित वर्षावन पूरी पृथ्वी के 7% भूभाग में है परंतु वह पृथ्वी के 50% वन और जैव विविधता को धारण करते हैं, साथ ही विश्व के दो तिहाई सूक्ष्म जीव जंतुओं को, लगभग 30 लाख प्रजात के जीव जंतु इन वनों में पाए जाते हैं।

आइए जानें कि उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र क्या है और उनका ऐतिहासिक महत्व क्या है।ट्रापिक या विषुवत रेखा पृथ्वी पर वो काल्पनिक रेखाएं हैं जिन्हें सूर्य की गति और ताप वितरण मापने के लिए 2000 साल पहले नाम दिया गया था।उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा और दक्षिणी गोलार्ध में मकर रेखा। ये रेखाएं भूमध्य रेखा से लगभग 23.5 डिग्री पर हैं। चूंकि सूर्य भी अपने अक्ष से 23अंश झुका हुआ है इसलिए विषुवत रेखाओं पर सूर्य पूरे वर्ष अपनी रोशनी और गर्मी देता है। लगातार रोशनी और फोटो सिंथेसिस ने करोड़ों वर्षों में इन क्षेत्रों में सघन वन विकसित किए जिसके कारण पृथ्वी का तापमान जीवन के अनुकूल हुआ, और जो आज तक बना हुआ है। मकर रेखा से लगे हुए अमेज़न के जंगल और नदी विशव  ट्रापिकल जंगल का सबसे बड़ा क्षेत्र है जो दो महाद्वीपों तक फैला हुआ है। अमेज़न के जंगल जहां 55 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं वहीं अमेज़न बेसिन 70लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

भारत में कर्क रेखा देश के लगभग बीचों-बीच पार करती है। उत्तर पूर्व में मिज़ोरम के चंफई 23.45°अक्षांश , त्रिपुरा के उदयपुर 23.53°अक्षांश नदी गोमती, बंगाल कृष्ण नगर 23.4° अक्षांश जलंगी नदी, झारखंड लोहरदगा 23.43°अक्षांश कोएल नदी, छत्तीसगढ़ सोनहत 23.47°अक्षांश हसदेव नदी, मध्यप्रदेश शाजापुर 23.43°अक्षांश पार्बती नदी कालीसिंध बेसिन, राजस्थान कलिंजर 23.43°अक्षांश माही नदी एवं गुजरात जसडन 22.03°अक्षांश माही नदी कर्क रेखा को दो बार पार करती है वह मध्यप्रदेश के धार झाबुआ से होते हुए राजस्थान के बांसवाड़ा से लौटते हुए गुजरात के जसडेन से होते हुए अरब सागर में मिलती है। गुजरात से छत्तीसगढ़ के सोनहत तक कर्क रेखा के क्षेत्र न सिर्फ सघन वन क्षेत्र हैं वरन् यह आदिवासी बहुल इलाके भी हैं। सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला के अमरकंटक से नर्मदा और सोन जैसी दो राष्ट्रीय नदियों के साथ साथ अनेक छोटी बड़ी नदियां निकलती हैं जिनमें हसदेव अहिरन आदि महत्वपूर्ण नदियां हैं। छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य क्षेत्र सघन वन क्षेत्र है है। इसके साथ ही साथ यह क्षेत्र देश के मानसून की प्रगति के लिए बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। छत्तीसगढ़ दक्षिण पश्चिम मानसून के मध्य, उत्तर, उत्तर पश्चिम भारत की ओर जाने का प्रवेश द्वार है।हम जानते हैं कि सूर्य किरणें  कर्क रेखा पर जून में सीधी पड़तीं है, और उसके आसपास के तापमान को यही सघन वन कम रखते हैं। अमरकंटक क्षेत्र में बाक्साईट और हसदो अरण्य क्षेत्र में कोयले के खनन से इस क्षेत्र के वनों का बड़ा हिस्सा काट दिया गया इस कारण क्षेत्र का मई जून महीनों का तापमान पिछले 25 वर्षों में औसतन 5°सेल्सियस से ज्यादा बढ़ा है।हम यह भी जानते हैं कि यदि सतह का तापमान बढ़ता है तो उपरी हवा काफी ऊंचाई तक पहुंच मानसूनी बादलों को आगे उड़ा ले जाती है। उत्तर छत्तीसगढ़ के वनों के विनाश से न सिर्फ बड़ी नदियां मर जाएंगी ,बड़ी संख्या में आदिवासियों का विस्थापन होगा वरन् मानसून के बादल छत्तीसगढ़ मध्य भारत छोड़कर सीधे हिमालय क्षेत्र में कहर बरपा रहें हैं। इसलिए यह जरूरी है कि सरकारें और योजना बनाने वाले लोग हसदेव अरण्य क्षेत्र का व्यापक अध्ययन कर देश के प्रर्यावरण को केंद्र में रखकर योजना बनाएं और तब तक इस क्षेत्र में नये खनन की अनुमति नहीं दें। बिलासपुर शहर भी 22.8° अक्षांश पर बसा हुआ है इसलिए आसपास के जंगलों के कटने और शहर के भीतर 100 पुराने सिरिस के पेड़ कटने से लगभग 10 करोड़ लीटर सतही भूजल से वंचित हो गया। इसलिए आज बिलासपुर शहर का तापमान लगातार बढ़ रहा है और शहर पानी के संकट से जूझ रहा है।

   

 

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आइए लहलहाएं अपने हिस्से की हरियाली

एल.डी. मानिकपुरी ( सूचना सहायक, मुख्यमंत्री सचिवालय मंत्रालय ) 

आज यहां महात्मा गांधी जी की एक लेख ‘की टू हेल्थ’ (स्वस्थ कुंजी) का जिक्र करना चाहूंगा, जिसमें गांधी जी ने कहा था कि शरीर को तीन प्रकार के प्राकृतिक पोषण की आवश्यकता होती है हवा, पानी और भोजन, लेकिन साफ हवा सबसे आवश्यक है।। गांधी जी कहते हैं कि प्रकृति ने हमारी जरूरत के हिसाब से पर्याप्त हवा फ्री में दी है. लेकिन उनकी पीड़ा थी कि आधुनिक सभ्यता ने इसकी भी कीमत तय कर दी है। वह कहते हैं कि किसी व्यक्ति को कहीं दूर जाना पड़ता है तो उसे साफ हवा के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है। आज से करीब 101 साल पहले 1 जनवरी 1918 को अहमदाबाद में एक बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने भारत की आजादी को तीन मुख्य तत्वों वायु, जल और अनाज की आजादी के रूप में परिभाषित किया था। उन्होंने 1918 में जो कहा और किया था उसे अदालतें आज जीवन के अधिकार कानून की व्याख्या करते हुए साफ हवा, साफ पानी और पर्याप्त भोजन के अधिकार के रूप में परिभाषित कर रही हैं।.

पूरा विश्व ‘पर्यावरण’ को लेकर 1972 में जो चिंता व चिंतन किया वह 47 बरस बाद ‘भंयकर चिंता’ बन गया है। यह चिंता जायज भी है, लेकिन चिंता ही काफी नहीं है। आज हमारे आस-पास विकास के नाम पर हो रहे पर्यावरण के नुकसान का असर यह हो रहा है कि आने वाली पीढ़ी को सिर्फ और सिर्फ एक ऐसा संसार देने जा रहे हैं, जहां आधुनिक संचार माध्यमों से ही उन्हें बता पाएंगे कि पहले देखो कि कितना साफ-सुथरा तालाब, नदियां, घने जंगल, रंग-बिरंगी पक्षियां, जीव-जंतु, वन्य प्राणी, उपजाऊ जमीन और चमकता आसमान हुआ करता था, और अब.......। बुढ़ापे में हम अपने सगे-संबंधी, नाती-पोतों को कहानी के माध्यम से ऐसे वातावरण से परिचित करा पाएंगे।
वैसे तो भारत में प्राचीनकाल से वन संस्कृति, ऋषि संस्कृति, कृषि संस्कृति चला आ रहा है। हमें अपने पूर्वजों को धन्यवाद देना चाहिए कि जिनके बदौलत ही हमें वृक्ष, तालाब, नदियां, घने जंगल, वन्य प्राणी देखने को मिल जाता है। हमें धन्यवाद देना चाहिए ऐसे महान लोगों को जिन्होंने धरती की सेवा करते-करते अपने जीवन व्यतीत कर दिया। पर्यावरण व जैव-विविधता के कमी होने से प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, सूखा, साल-दर-साल बारिश का कम होना, भूजल स्तर कम होना और इसके विपरीत गर्मी की तपन बढ़ते जाना और तूफान आदि आने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है। लाखों विशिष्ट जैविक की कई प्रजातियों के रूप में पृथ्वी पर जीवन उपस्थित है और हमारा जीवन प्रकृति का अनुपम उपहार है। प्रमुख विचारक स्टीवर्ट उडैल ने कहा था-‘हवा और पानी को बचाने, जंगल और जानवर को बचाने वाली योजनाएं असल में मनुष्य को बचाने की योजनाएं हैं’। इसी तर्ज पर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने विगत तीन चार दिनों से तपती धूप में छत्तीसगढ़ के दूरस्थ अंचल बस्तर एवं सरगुजा जाकर न सिर्फ जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर रहे हैं बल्कि ‘नरवा-गरवा-घुरवा-बाड़ी’ के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के साथ-साथ, पेड़-पौधे, पानी व ताजा हवा के महत्व को बताते हुए आम व खास लोगों से पेड़ की छांव में चौपाल लगाकर उनकी समस्याएं सुन रहे हैं तथा उसे छांव तले उनकी समस्याओं को हल भी कर हैं। पेड़ की महत्ता, शुद्ध वातावरण में जो निर्णय ले रहे हैं वह अपने आप में एक सराहनीय कदम है। 
छत्तीसगढ़ की धरती के नीचे और ऊपर प्रकृति के अनमोल भण्डार तो है ही पर्यावरण, जैव-विविधिता तथा वन व वन्य जीव भी अधिक हैं। वन संसाधन में राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 44 प्रतिशत भाग में वनों का विस्तार है। छत्तीसगढ़ वन आवरण के दृष्टिकोण से देश में तीसरे स्थान पर है। राज्य के 59,772 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वनों का विस्तार है जो देश के कुल वन क्षेत्र का लगभग 7.77 प्रतिशत है। 
वन्य प्राणियों के संरक्षण तथा संवर्धन के लिए उचित प्रयास व उचित रखरखाव के विभिन्न पहलुओं पर तेजी के साथ राज्य सरकार काम करने लगी है। वैसे तो छत्तीसगढ़ में पक्षियों की कई लुप्तप्राय प्रजातियां पाई गई हैं। राज्य में लेसर एडजुटेंट स्टॉर्क जैसे पक्षियों की उपस्थिति बताती है कि राज्य की आबो-हवा इन लुप्तप्राय प्रजातियों के लिये अनुकूल होने के कारण भारत में पाई जाने वाली कुल 1300 विभिन्न प्रजातियों में से 400 से अधिक पक्षियों का रहवास छत्तीसगढ़ में है। छत्तीसगढ़ में नदियों के उद्गम स्थल होने के साथ ही देश के वृहद प्रवाह क्रम गंगा, नर्मदा, महानदी एवं गोदावरी प्रवाह क्रम के बीच महत्वपूर्ण जल विभाजक का कार्य करता है। छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मण्डल द्वारा प्रदूषण को रोकने अनेक कार्य कर रहे हैं। प्रदूषणकारी उद्योगों को ‘ऑन लाइन कन्सेट मैनेजमेंट एण्ड मॉनिटरिंग सिस्टम’ के तहत उद्योगों में यह स्थापना हो चुकी है। 
सारी दुनिया अब यह मानने लगा है कि पर्यावरण  और विकास एक ही सिक्के दो पहलू हैं और उन्हें प्रतियोगी नहीं बल्कि पूरक के रूप में देखने की आवश्यकता है। पर्यावरण विशेषज्ञ तो यह मानने लगा है कि पर्यावरण एवं जैव विविधता में हुए हृस के कारण आए दिन हमें नई-नई बीमारियों का सामना करना पड़ा है। क्योंकि ऐसे रोगों के प्रतिरोधक अंश हमें जिन जीवों एवं वनस्पतियों से प्राप्त होते थे, वह अब समाप्त हो चुके हैं। यदि इस पर अब भी गम्भीरतापूर्वक ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति बद से बदतर होती जाएगी। इस बात की कोई चिंता नहीं कि आने वाले पीढ़ी हमें क्या कहेंगे, किसे दोष देंगे? अब हमें चेत ही जाना चाहिए कि यह पर्यावरण हमारे लिए, जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है।।. कवि अभय कुमार जी का वह कविता को याद करना चाहूंगा, जो पृथ्वी गान पर लिखा था-

ब्रह्मांड की नीली मोती, धरती
ब्रह्मांड की अदभुत ज्योति, धरती 
सब महाद्वीप, महासागर संग -संग 
सब वनस्पति, सब जीव संग -संग 
संग -संग पृथ्वी की सब प्रजातियाँ
काले, सफेद, भूरे, पीले, अलग-अलग रंग
इंसान हैं हम , धरती हमारा घर 

आइये हम सब अपने हिस्से के पौधा जरूर लगाएं और इसकी देखभाल भी करें, कुछ वर्षों बाद यह बड़ा होगा तो दिल को सुकून देगा, नई पीढ़ी को छांव मिलेगा, आइए लहलहाएँ अपने हिस्से की हरियाली।
 

 

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जलवायु परिवर्तन के नाम पर आदिवासियों के भोजन पर सीधा हमला

रायपुर. भोजन के अधिकार अभियान सम्मेलन में छत्तीसगढ़ वनाधिकार मंच की ओर से आयोजित परिचर्चा में भोजन सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और वन अधिकार विषय पर चर्चा की गई. इस परिचर्चा में  बैगा, पहाड़ी कोरवा महापंचायत व अन्य आदिवासी समाज ने अपनी हिस्सेदारी दर्ज की.

वनाधिकार मंच के संयोजक विजेंद्र अजनबी ने बताया कि सम्मेलन में विभिन्न प्रदेशों में भोजन के अधिकार अभियान से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता चर्चा करने के लिए राजधानी रायपुर में एकत्रित हुए हैं. इस सम्मेलन में एक सत्र जंगल से भोजन और पोषण की सुरक्षा तथा वन अधिकार पर आसन्न चुनातियों पर केन्द्रित रखा गया था. इस सत्र में मध्यप्रदेश के नरेश बिश्वास ने बहुत रोचक अंदाज में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जंगल से वननिर्भर समुदाय 163 किस्म के खाद्य पदार्थ हासिल करते हैं. इनमे से बहुत से खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले पोषक तत्व, बाज़ार में बिकने वाले या खेतों में उगने वाले अन्न के मुकाबले कहीं ज्यादा होते है. जंगल में खाना, सिर्फ कंद-मूल में ही नहीं, बल्कि, फूल, कली, बीज, गोंद, बेलें और कवकों के रूप में भी होते हैं. सिर्फ आदिवासी ही है, जो इनका महत्त्व समझ सकते हैं, और इन्हें बचाकर ही जंगल को बचाया जा सकता है. 

महाराष्ट्र के शोषित जनांदोलन से जुड़ी मुक्ता श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 1927 में बने भारतीय वन कानून में प्रस्तावित संशोधन वनों पर अपने भोजन और आजीविका पर निर्भर समुदाय के लिए बेहद खतरनाक है. एक तरफ वन अधिकार कानून होने के बावजूद उक्त संशोधन, आदिवासियों को जंगल में प्रवेश करने से रोकेगा और उन पर अत्याचार बढ़ जाएंगे. उन्होंने कहा कि वन विभाग के पास आधुनिक हथियार रखने और किसी के शक के आधार पर बंदी बनाने की गैर-जरुरी शक्तियां आ जाएगी.    

झारखण्ड वनाधिकार मंच से  संबंद्ध मिथिलेश कुमार ने बताया कि झारखण्ड में भी वनाधिकार कानून का बदहाल है. लोगों को जंगल पर बेहद कम अधिकार मिले हैं, और उनके ज्यादातर दावे लटकाए रखे गए हैं. उन्होंने पलामू जिले का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां रेल परियोजना के लिए वनभूमि का बगैर ग्रामसभा की सहमति के आसानी से डाइवर्ट कर दिया गया पर वही, वनाधिकार के लंबित दावों को नहीं निपटाया गया. ऐसी परिस्थिति में आदिवासी समाज अपनी भोजन की जरूरतों के लिए जंगल से विमुख होने के लिए मजबूर हो गया है. 

विजेंद्र ने बताया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने की कार्ययोजना में जंगलों को निजी भागीदारी से सिर्फ लकड़ी उत्पादन करने वाली ईकाई के रूप में बदले जाने का खतरा बढ़ गया है, जिससे वहां की जैव-विविधता संकट में पड़ जाएगी और वन-निर्भर समाज पर बेदखली की तलवार लटकने लगेगी, जिसके परिणामस्वरूप, उनके भोजन की स्वतंत्रता और स्वायत्ता ख़त्म हो जाएगी. सिर्फ प्राकृतिक जंगलों से और सामुदायिक प्रबंधन से ही जंगलों से खाद्य सुरक्षा मिल सकती है. 

परिचर्चा में गढ़चिरोली, महाराष्ट्र में ग्रामसभाओं के वन-प्रबंधन के प्रयोग से जुड़े केशव गुरनुले, खोज-गरियाबंद के बेनीपुरी, कवर्धा से इतवारी बैगा ने भी अपने विचार प्रकट किए.

 

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विश्व का सबसे लंबा तिरंगा लहराया जाएगा रायपुर में

रायपुर.देशभक्ति वह नहीं है जो हर रोज टीवी चैनलों पर खबरों के जरिए दिखाई जा रही है. लोगों को आपस में बांटने, कांटने और छांटने की वजह से यह देश एक संक्रमण काल से गुजर रहा है. इस विशाल देश को अक्षुण्ण बनाए रखने की नीयत से ही कुछ लोगों ने विश्व का सबसे लंबा तिरंगा लहराने के बारे में विचार किया है. अंतरराष्ट्रीय  पर्यावरणविद ,जैविक एवं हर्बल खेती के लिए विख्यात डॉ राजाराम त्रिपाठी के साथ छत्तीसगढ़ चेंबर ऑफ कॉमर्स की उपाध्याय भरत बजाज, साहित्यकार समाजसेवी लक्ष्मी नारायण लाहोटी, युवा समाजसेवी रोहित सिंह, अमजीत जुनेजा और सरोज सिंह ने पिछले दिनों वृंदावन हॉल में आयोजित एक बैठक में तय किया कि लोगों में देशभक्ति की नवभावना का संचार करने के लिए तिरंगा लहराया जाय. बैठक में इस बात पर मंथन किया गया कि आयोजन की सफलता के लिए किन-किन संगठनों और लोगों को जोड़ना महत्वपूर्ण होगा. सभी ने यह तय किया कि रायपुर के हर सामाजिक संगठन और नागरिकों से आयोजन में जुड़ने का अनुरोध किया जाए. विश्व का सबसे बड़ा तिरंगा लहराने की योजना को मूर्तरुप देने का बीड़ा फिलहाल वसुधैव कुटुंबकम फाउंडेशन ने उठाया है. आयोजन के मुख्य कर्ताधर्ता राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि हमारे लिए देश और देश के लोग और उनकी एकता बेहद महत्वपूर्ण है. उन्होंने बताया कि इस आयोजन में शहीद परिवारों को भी आमंत्रित किया जाएगा.

 

 

 

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लूट सको तो लूट लो... कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में भी चल रहा था गजब का खेल

रायपुर. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक खास प्रचारक के रुप में विख्यात कुशाभाऊ ठाकरे का पत्रकारिता में क्या योगदान है इसकी जानकारी देश के अच्छे खासे नामचीन लेखकों और पत्रकारों के पास नहीं है. ( इस खबर के रिपोटर के पास भी नहीं है क्योंकि आज तक पत्रकारिता के किसी भी मूर्धन्य ने इस रिपोटर से यह नहीं कहा कि जीवन में अगर कुछ बनना चाहो तो कुशाभाऊ ठाकरे जैसा पत्रकार बनना.) जब भी कभी श्रेष्ठ पत्रकार बनने या बनाने की बात होती रही तो गणेश शंकर विद्यार्थी के बाद माखनलाल चर्तुवेदी, राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी का नाम लिया जाता रहा. बहरहाल यहां छत्तीसगढ़ के  कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय का जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि यह विश्वविद्यालय इन दिनों सुर्खियों में है. सुर्खियों की एक वजह यह है कि भूपेश सरकार ने यहां पढ़ने-लिखने और साहित्य से गहरा अनुराग रखने वाले एक कुल सचिव आनंद शंकर बहादुर की तैनाती कर दी है. अब नए कुल सचिव ने तैनात होते ही गंदगी पर चूना छिड़कने का काम बंद कर दिया है. कुल सचिव ने हाल के दिनों में विश्वविद्यालय के अधीन शोधपीठों के चार अध्यक्षों से कामकाज का हिसाब मांग लिया है जिसे लेकर हडकंप मचा हुआ है.

बताइए तो सही क्या किया आपने

कुल सचिव ने माधवराव सप्रे राष्ट्रवादी पत्रकारिता शोधपीठ की अध्यक्ष आशा शुक्ला को पत्र जारी कर पूछा है कि आप 17 मार्च 2015 से 7 मार्च 2018 तक पदस्थ थीं. अब आप बताइए कि आपने कब-कब मासिक, छमाही या वार्षिक प्रतिवेदन तैयार किया है. पत्र में यह भी उल्लेखित है कि बतौर अध्यक्ष आशा शुक्ला को 32 लाख 37 हजार 97 रुपए का मानदेय दिया गया. उन्होंने राष्ट्रवादी पत्रकारिता शोधपीठ की अध्यक्ष बने रहने के दौरान कुछ आयोजन भी किए थे जिन पर 3 लाख 90 हजार 826 रुपए का खर्च आया. इसी तरह दीनदयाल उपाध्याय मानव अध्ययन शोध पीठ के अध्यक्ष प्रवीण मैशरी एक जुलाई 2017 से 22 दिसम्बर 2018 तक बतौर अध्यक्ष पदस्थ थे. इस अवधि में उन्हें कुल 12 लाख 75 हजार रुपए का मानदेय दिया गया और उन्होंने जो आयोजन किए उस पर 3 लाख 24 हजार 826 रुपए का व्यय हुआ. श्री मैशरी से भी उनके द्वारा किए गए कामकाज का लेखा-जोखा मांगा गया है. भाजपा नेता चंद्रशेखर साहू के अत्यंत करीबी समझे जाने वाले प्रभात मिश्रा हिन्द स्वराज पीठ के अध्यक्ष थे. वे 26 मई 2018 से 22 दिसम्बर 2018 तक पदस्थ थे. इस दौरान उन्हें चार लाख 64 हजार 516 रुपए का मानदेय दिया गया. उनसे भी पूछा गया है कि बताइए प्रतिवेदन कहां है. कबीर विकास संचार अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष मनोज चतुर्वेदी 5 अक्टूबर 2018 से 22 दिसम्बर 2018 तक तैनात थे. उन्हें भी कुल एक लाख 93 हजार 549 रुपए का मानदेय दिया गया. खबर है कि चारों अध्यक्ष ने अब तक अपने कामकाज का लेखा-जोखा यानी प्रतिवेदन विश्वविद्यालय को अब तक नहीं सौंपा है. अभी यह साफ नहीं है कि विश्वविद्यालय प्रशासन अध्यक्षों पर कोई कानूनी कार्रवाई करेगा या नहीं, लेकिन भूपेश सरकार को एक्शन लेने वाली सरकार माना जाता है इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि सभी अध्यक्ष देर-सबेर नप जाएंगे.

पूर्व अध्यक्षों पर भी गिरेगी गाज

माधव राव सप्रे शोधपीठ पर श्रीमती आशा शुक्ला से पहले परितोष चक्रवर्ती नाम के एक शख्स तैनात थे. खबर है कि उनके कार्यकाल में भी किसी तरह का कोई कामकाज नहीं हुआ. सूत्र बताते हैं कि जल्द ही उन्हें भी प्रतिवेदन देने के लिए नोटिस भेजा जाएगा. इसी तरह कबीर विकास संचार अध्ययन केंद्र में दिल्ली के भाजपा कार्यालय में रहने वाले डाक्टर आर बाला शंकर नियुक्त किए गए थे. वे भी  कभी-कभार ही विश्वविद्यालय में आया करते थे. विश्वविद्यालय में कई तरह के प्रोफेसरों की नियुक्ति भी कर दी गई थी जो महीने में केवल एक बार तनख्वाह लेने के लिए आते थे. पूर्व सरकार ने एक हास्य कवि के पुत्र को भी इस विश्वविद्यालय में स्थायी प्रोफेसर बना दिया है जो इन दिनों अपनी सेवाएं कहीं और दे रहा है.

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दादागिरी का चरम... एक भी बार पीएचक्यू दर्शन देने नहीं पहुंचे मुकेश गुप्ता

रायपुर. देश के सबसे ज्यादा विवादास्पद पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता इसी साल 9 फरवरी को निलंबित कर दिए गए थे. सरकार ने निलंबन अवधि के दौरान जीवन निर्वाह भत्ता देने के साथ आदेश में साफ तौर पर कहा था कि उन्हें पुलिस मुख्यालय ( पीएचक्यू ) में आमद देनी होगी, लेकिन निलंबन के तीन महीने पूरे होने जा रहे हैं और उन्होंने एक भी बार पीएचक्यू में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाई है. जबकि उनके साथ ही निलंबित किए गए आईपीएस रजनेश सिंह केवल एक मर्तबा पीएचक्यू आए थे और फिर वे भी गायब है.वैसे जो कर्मचारी या अफसर निलंबित कर दिए जाते हैं उनका कर्तव्य स्थल पर उपस्थित रहना अनिवार्य नहीं होता, लेकिन पुलिस की नौकरी में ऐसा नहीं है. यहां एक प्रचलित और मान्य परम्परा यह रही है कि कर्मचारी या अफसर को सिविल ड्रेस में सरकार द्वारा निर्धारित किए गए स्थल पर आमद देनी होती है.

नहीं जा सकते मुख्यालय छोड़कर

नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि निलंबित कर्मचारी या अफसर अपने जीवन-यापन के लिए किसी भी तरह के  व्यवसाय या काम-धंधे को करने के लिए स्वतंत्र होते हैं, लेकिन आमद देने के लिए जो स्थान निर्धारित किया जाता है वहां हाजिरी देनी ही होती है. निलंबन अवधि के दौरान उन्हें मुख्यालय छोड़ने की अनुमति भी नहीं होती. यदि किसी विशेष परिस्थिति में मुख्यालय से बाहर जाने की आवश्यकता होती है तो विभाग प्रमुख से अनुमति अनिवार्य होती है. इधर निलंबन के बाद से  मुकेश गुप्ता का  ज्यादातर समय दिल्ली ही बीत रहा है. एक बार तो दिल्ली के खान मार्केट में उन्हें सुपर सीएम की उपाधि से विख्यात अमन सिंह के साथ भी देखा गया था. पुलिस अफसर का कहना है कि जब सरकार ने मुकेश गुप्ता को शासकीय आवास आवंटित किया है तो उन्हें अपनी सभी कानूनी कार्रवाई शासकीय आवास से ही संपादित करनी चाहिए, लेकिन कानूनी प्रक्रियाओं में उनका पता किसी दूसरी जगह का दिख रहा है. हाल के दिनों में जब वे ईओडब्लू में अपना बयान देने के लिए पहुंचे तो यह कहते हुए पाए गए थे कि वे दिल्ली से बयान देने के लिए रायपुर आए हैं. यहां तक उनके केस की पैरवी करने के लिए भी दिल्ली से महंगे वकील छत्तीसगढ़ पहुंचे थे. वैसे यह जांच का विषय है कि पुलिस का एक अफसर अपनी तयशुदा कमाई से कितने और किस तरह के महंगे वकीलों की सेवाएं ले सकता है. महंगे वकीलों की फीस कौन दे रहा है. गौरतलब है कि सरकार ने मुकेश गुप्ता को कई बिन्दुओं पर आरोप पत्र थमा दिया है. सूत्र कहते हैं कि उनकी गैर- मौजूदगी को लेकर भी उनसे जल्द ही जवाब मांगा जा सकता है.

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गुटखे का पैसा खाओगे तो परिवार में कैंसर हो जाएगा... और फिर...कहर बनकर टूटी पुलिस

रायपुर. अगर आप सरकारी अफसर है तो आपको अपने मातहतों को ऊर्जा से लबरेज कर सकारात्मक काम लेने का हुनर आना चाहिए. हर जगह अपनी पदस्थापना के दौरान नवाचार के लिए मशहूर रहे पुलिस अफसर हिमांशु गुप्ता ( अब दुर्ग आईजी ) को मालूम था कि अन्य जिलों की तरह  दुर्ग की पुलिस भी गुटखे के कारोबारियों से उपकृत होते रहती है. बस... उन्होंने अपने मातहत पुलिस कर्मचारियों की एक बैठक ली और बेहद संवेदनात्मक ढंग से कहा- क्या आप जानते हैं कि जो कुछ भी हम बुरा करते हैं उसका असर हमारे परिवार पर होता है. याद रखो... अगर गुटखे का पैसा खाओगे तो एक न एक दिन परिवार के किसी न किसी सदस्य को कैंसर हो जाएगा. उनकी यह टिप्पणी एक पंच लाइन थीं और फिर पुलिसकर्मियों ने छापामार कार्रवाई को अंजाम देकर यह साबित कर दिया कि वे अपने परिवार को कैंसर से मुक्त रखना चाहते हैं.

पिछले महीने 29 अप्रैल को गुटखा कारोबारियों को धरपकड़ की सबसे पहली कार्रवाई जेवरा-सिरसा पुलिस ने की. पुलिस को यह सूचना मिल गई थी कि एक पिकअप क्रमांक सीजी 07 बीजी 2279 में पानराज गुटखा भरकर भिलाई ले जाया जा रहा है. पुलिस टीम ने तत्काल अलर्ट होकर घेराबंदी की और पिकअप को पकड़ लिया. जांच के दौरान पिकअप से हरे रंग की आठ बोरियों में छह कट्टा जर्दायुक्त गुटखा मिला. जप्त गुटखे की कीमत तीन लाख 45 हजार छह सौ रुपए आंकी गई है. पुलिस ने इस मामले में पंचम सिंह परिहार, नफीस अहमद, राजेंद्र पंडा,  मोहम्मद बिसमिल्लाह को आरोपी बनाया है, लेकिन खबर है कि ये सारे लोग साजिद खान नाम के व्यक्ति के लिए काम करते हैं. पुलिस ने जेवरा-सिरसा में साजिद खान के गोदाम में भी दबिश देकर लगभग 40 लाख रुपए मूल्य के गुटखे का कच्चा मटेरियल जप्त किया है. यहां यह बताना लाजिमी है कि पूरे प्रदेश में जर्दायुक्त गुटखे के विक्रय में प्रतिबंध है बावजूद हर जगह इसकी बिक्रीधड़ल्ले से होती है. छत्तीसगढ़ की राजधानी में भी गुटखा कारोबारी पुलिस की मिली-भगत से करोड़ों का अवैध व्यापार संचालित कर रहे हैं. फिलहाल तो जर्दायुक्त गुटखा बेचने के नाम पर जहर बेचने वाले कारोबारियों पर जेवरा-पुलिस ने ही शिकंजा कसा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में दुर्ग जिले की पुलिस की तरह सभी थानों की पुलिस गुटखा कारोबारियों पर कहर बनकर टूटेगी.

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बैगा आदिवासी ने डीएम अवस्थी से कहा- कैसे उतार पाऊंगा आपका अहसान

रायपुर. आम जनता के कठिन से कठिन काम को कैसे सरल बनाया जा सकता है इसे अगर सही ढंग से जानना है तो कभी आपको छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक दुर्गेश माधव अवस्थी की कार्यप्रणाली को नजदीक से देखने- समझने की चेष्टा अवश्य करनी चाहिए. सामान्य तौर पर यह धारणा कायम रही है कि जो कोई भी पुलिस की वर्दी पहन लेता है वह खुद को भीतर से पत्थर का बना लेता हैं, लेकिन पुलिस महानिदेशक अवस्थी इस धारणा को अक्सर तोड़ते रहते हैं. पुलिस परिवार को राहत देने के लिए वे हर सप्ताह अपने दफ्तर में समस्या निवारण शिविर लगाते हैं. इस शिविर में अब तक हजारों लोगों को राहत मिल चुकी है. इसके अलावा वे हर रोज आमजन से मुलाकात करते हैं और उनकी समस्याओं का तुरन्त निराकरण भी करते हैं. अगर कोई सही है तो उनसे मिलना बेहद आसान है, लेकिन अगर कोई गलत है तो फिर उनसे मिलने में मुसीबत खड़ी हो सकती है. वैसे उनके पुलिस महानिदेशक बनने से लिखने-पढ़ने वालों के अलावा समाज का एक बड़ा वर्ग बेहद खुश भी है. उनके पहले जितने भी पुलिस महानिदेशक हुए उन सबने खुद को जनता से काट लिया था. एक पुलिस महानिदेशक तो मिलने-जुलने वालों के सामने ही सिगरेट पर सिगरेट फूंकते रहते थे. आधी जनता तो कैंसर होने के भय से ही भाग जाती थीं. एक पुलिस महानिदेशक छोटा सा चवन्नी छाप मोबाइल लेकर घूमते थे और केवल रमन सिंह और उनके रिश्तेदारों का ही फोन अटैंड करते थे. फिर चाहे कोई भी फोन लगाए... घंटी बजती रहती है और सबको सुनना पड़ता था- ओम जय जगदीश हरे... स्वामी जय जगदीश हरे.

बहरहाल इस खबर में डीएम अवस्थी का जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि अभी हाल के दिनों में उन्होंने बैंगलोर में पदस्थ एक पत्रकार मंजू साईनाथ की सूचना के बाद जो कार्रवाई की हैं उसकी चौतरफा प्रशंसा हो रही है. मंजू साईनाथ ने उन्हें फोन पर अवगत कराया कि मध्यप्रदेश के शहडोल के रहने वाले बैगा आदिवासी केशव प्रसाद की पत्नी का सेक्टर 9 भिलाई में देहांत हो गया है. केशव की पत्नी बर्न यूनिट में भर्ती थी और केशव अपनी प्रापर्टी बेचकर उसकी चिकित्सा करवा रहा था. मंजू साईनाथ ने जानकारी दी कि पैसों की तंगी की वजह से केशव जैसे-तैसे इलाज करवा रहा था, लेकिन अब 80 हजार रुपयों का भुगतान करने में उसे दिक्कत पेश आ रही है. पुलिस महानिदेशक ने इस सूचना के बाद तुरन्त आईजी दुर्ग रेंज हिमांशु गुप्ता से संपर्क किया और सेक्टर 9 अस्पताल प्रबंधन से मानवीय आधार पर बात करने का आग्रह किया. दुर्ग आईजी गुप्ता भी मानवीय कामों के लिए अग्रणी रहते हैं सो उन्होंने भी तत्काल प्रबंधन को बकाया राशि माफ करने का अनुरोध किया. अस्पताल प्रबंधन ने सारी औपचारिकताएं पूरी की और जल्द ही रिजनों को शव सौंप दिया गया. इस पूरी कार्रवाई में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक दुर्ग रोहित झा और निरीक्षक प्रमिला मंडावी ने भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई. इस मानवतापूर्ण कार्रवाई के लिए बैगा आदिवासी केशव प्रसाद और उसके परिवार ने पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी के प्रति आभार जताया है. 

हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी

जिसको भी देखना कई बार देखना

हार और जीत तो मुकद्दर की बात है

टूटी है किसके हाथ में तलवार देखना

 

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मुंह खोलेगी.. वो बोलेगी... तभी जमाना बदलेगा

बिलासपुर. चार मार्च को छत्तीसगढ़ की न्यायधानी में अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए युवतियों और महिलाओं ने एक जबरदस्त मार्च निकालकर अपना प्रतिवाद दर्ज किया. यह मार्च मिनी माता चौक, तालापारा से होते हुए मगरपारा पहुंचा. इस दौरान महिलाओं ने जमकर नारेबाजी की और जनगीत गाकर मौजूदा व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश जताया. कार्यक्रम की संयोजक प्रियंका शुक्ला ने बताया कि घृणा और हिंसा से भरे वर्तमान सरकार की नीति सबसे ज्यादा महिलाओं के अधिकारों का हनन कर रही है.उन्होंने कहा कि फासी और मनुवादी ताक़तों में बढ़ोतरी की वजह से दलित, ईसाईयों, मुस्लिमों और अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हुए हैं. हर नागरिक असुरक्षित है. जाहिर सी बात है महिलाएं भी अछूती नहीं है. इस दौरान महिलाओं ने बराबरी का अधिकार दिए जाने को लेकर आवाज बुलंद की.  

मार्च में अधिवक्ता रजनी सोरेन, साहित्यकार सत्यभामा अवस्थी, सविता गंधर्व, रिजवाना, रुखसार, सम्पा, सरिता सबिया, आशा साहू, प्रियंका, सिम्पल रजक, ज्योति, कुलबीर सतपथी, राधा श्रीवास सहित सैकड़ों महिलाएं, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे. मार्च में महिला अधिकार मंच, ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन, पीयूसीएल, जगलग, आम आदमी पार्टी, छत्तीसगढ़, वसुधा महिला समिति, इप्टा बिलासपुर, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, एचआरएलएन, जन स्वास्थ्य अभियान, जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ सहित अन्य कई महत्वपूर्ण संगठन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया.

 

 

 

 

 

 

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डोंट वान्ट मोदी... नहीं मांगता है अपुन को नहीं मांगता मोदी

 इस गाने को नाट्य संस्था कोरस भिलाई के साथी जय प्रकाश नायर, संतोष बंजारा, जावेद और अमित के साथ मिलकर गाया है. ईयरफोन लगाकर सुनिए यह गीत... शायद आपको अच्छा लगे. गाना सुनने के लिए नीचे दिए गए वीडियो पर क्लिक करें.

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शंकरलाल का जीवन बचाने आगे आया मसीही समाज

रायपुर. छत्तीसगढ़ क्रिश्चयन फोरम के प्रदेश अध्यक्ष अरुण पन्नालाल की अगुवाई में मंगलवार को एक प्रतिनिधि मंडल  ने पुलिस महानिदेशक डीएम अवस्थी से मुलाकात की. फोरम के सदस्यों ने बताया कि जिला जांजगीर चांपा की तहसील नवागढ़ के ग्राम गोधना के रहने वाले 40 वर्षीय शंकरलाल साहू ने तीन साल पहले विधिवत तरीके से धर्म परिवर्तन कर लिया था, लेकिन इसके बाद उसके चचेरे भाइयों ने उसे प्रताड़ित करना प्रारंभ कर दिया. फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने कहा कि शंकरलाल के घर के सामने बाधा खड़ी कर दी गई है. इतना ही नहीं चचेरे भाई उसे न तो खेती करने देते हैं और न ही हैंडपंप से पानी निकालने देते हैं. आए दिन उसके परिवार के साथ मारपीट की जा रही है. उन्होंने बताया कि शंकरलाल अपने साथ हुई ज्यादती की शिकायत थाने में करता रहा है, लेकिन उचित कार्रवाई के अभाव में उसे और उसके परिवार को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. फोरम के सदस्यों ने पुलिस प्रमुख को एक-दो अन्य घटनाओं के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि समाज से बहिष्कृत व्यक्ति समय पर न्याय नहीं मिल पाने की दशा में खुद को अपमानित महसूस करते हुए घातक कदम उठा लेता है. पुलिस महानिदेशक ने प्रतिनिधि मंडल को उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि आवश्यकता होने सभी पक्षों को बुलाकर सामाजिक बैठक की जाएगी और समस्या का हल ढूंढ लिया जाएगा.

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शराबबंदी के लिए गठित होने वाले अध्ययनदल में ममता शर्मा को शामिल करने की मांग

रायपुर.छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार शराब बंदी के पक्ष में हैं, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि यह एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला होगा सो समाज के सभी वर्गों से सलाह-मश्विरा बेहद अनिवार्य है.अभी हाल के दिनों में नशामुक्ति अभियान के सदस्यों ने जब मुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री से मुलाकात की तो उन्होंने आश्वस्त किया कि  शराबबंदी अवश्य होगी, लेकिन यह भी देखना होगा कि बंद के बाद घर पहुंच सेवा प्रारंभ न हो जाए. प्रतिनिधि मंडल में शामिल अभिषेक सिंह, ब्यास मुनि, कन्हैया अग्रवाल, रफीक सिद्दकी, मोहम्मद आरिफ, पकंज दास सहित अन्य सदस्यों ने मुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री से यह आग्रह भी किया कि अभियान की प्रदेश संयोजक ममता शर्मा ने शराब बंदी के मसले पर काफी काम किया है सो उन्हें अध्ययनदल में अवश्य शामिल करें.मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया कि उनकी सरकार सभी पक्षों से बातचीत के आधार पर आगे बढ़ना चाहती है सो योग्य और क्षमतावान लोगों को सुझाव के लिए अवसर प्रदान किया जाएगा. मुख्यमंत्री ने इस बारे में अधिकारियों को आवश्यक निर्देश भी दिए.सदस्यों ने शराब बंदी करने वाले राज्यों के अध्ययन, नशामुक्ति के क्षेत्र में काम करने वाले सामाजिक संस्थाओं को शामिल करने के अलावा अस्पतालों में हेल्प डेस्क स्थापित करने की मांग भी की. सदस्यों का कहना था कि बिहार में शराब को लेकर सख्त कानून है. अगर कानून कठोर होगा तो अन्य नशीले पदार्थों की रोकथाम भी हो सकेगी.

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भाजपा के प्रतिशोध का शिकार हुए प्रगतिशील कृषक राजाराम

राजेश ( संपादक कल्ट करंट )

अगर फुरसत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना

हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है.

देश के प्रसिद्ध शायर बशीर भद्र का यह शेर आज सत्तासीनों को थोड़ी करवट बदलकर जमीनी हकीकत से रू-ब-रू होने को कहता है. आमतौर पर देखा गया है कि सत्ता में आने के बाद सत्ताधारी दल जनता के लिए जनपक्षीय नहीं रह जाते हैं. अभी हाल में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद नई सरकारें बनी, लेकिन क्या व्यवस्था में कोई नयापन आएगा यह देखना अभी बाकी है.

दरअसल, सत्ता का उदासीन रवैया देखना हो तो उदाहरणों की कमी नहीं है. अविभाजित मध्य प्रदेश की सरकारी पत्रिका उद्यमिता समाचार का प्रकाशन उद्योग विभाग करता था. वर्ष 2000 के अंक में मुखपृष्ठ पर देश के सर्वश्रेष्ठ हर्बल किसान के रूप में डॉ राजाराम त्रिपाठी का फोटो छपा था तथा पूरी आवरण कथा उन पर ही केंद्रित थी. इसी क्रम में केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय की पत्रिका साइंस टेक इंटरप्रेन्योर ने भी अपने मुखपृष्ठ पर लिखा था कि देश का सर्वश्रेष्ठ हर्बल फार्म बस्तर में आकार ले रहा है. वर्ष 2001 में मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी और अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने तब उन्हें बस्तर के किसान डॉ राजाराम त्रिपाठी के बारे में पता चला कि उन्होंने बैंक अधिकारी की नौकरी छोड़कर खेती में सफलताएं हासिल की है. उनकी इस सफलता को जानने के लिए जोगी स्वयं डॉ त्रिपाठी के कोंडागांव स्थित फार्म आए. उनके कार्य ,माडल को जमीन पर देखा और समझा तथा प्रदेश को हर्बल स्टेट घोषित किया. कुछ समय बाद राज्यपाल भी फार्म पर पहुंचे. धीरे-धीरे मंत्री अधिकारी सभी उनकी खेती के तौर-तरीकों को देखने समझने लिए कोंडागांव आने लगे.

 

जमकर चला राजनीतिक प्रतिशोध

राजनेताओं के आवागमन का परिणाम यह हुआ यह कि बीएससी,एल एल बी, हिंदी साहित्य, अंग्रेजी भाषा, इतिहास तथा अर्थशास्त्र सहित चार विषयों में एम ए तथा पीएचडी डाक्टरेट  की सर्वोच्च उपाधियों से विभूषित, प्रदेश के  सबसे ज्यादा शिक्षित किसान राजाराम त्रिपाठी को प्रगतिशील उच्च शिक्षित किसान का प्रदेश का चेहरा माना जाने लगा. राज्य बनने के लगभग डेढ़ साल बाद ही चुनाव हुए, भाजपा सत्ता में आई तब से लगातार 15 वर्षों तक राज्य में भाजपा का शासन रहा. लेकिन सत्ता में आते ही भाजपा राजनीतिक प्रतिशोध के अपने एजेंडे पर चल निकली. हांलाकि डॉ त्रिपाठी कभी किसी राजनीतिक दल के ना तो कभी सदस्य रहे हैं और ना ही किसी राजनीतिक दल से उनका कभी कोई सीधा जुड़ाव रहा है, लेकिन सत्ता में आई भाजपा उन्हें कांग्रेस समर्थक मानते हुए लगातार उपेक्षित और प्रताड़ित करती रही. न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि पूरे देश में कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए कम दर पर बिजली का कनेक्शन किसानों को दिया जाता है, लेकिन डॉ त्रिपाठी को राजनीतिक साजिश के तहत कमर्शियल बिजली कनेक्शन दिया गया और और बढ़ा-चढ़ा कर बिल आरोपित किया गया. बाद में बिजली का कनेक्शन भी काट दिया गया. अंततः न्यायालय की शरण लेने के बाद डॉ त्रिपाठी को राहत मिली. डाक्टर त्रिपाठी कोंडागांव में हर्बल उत्पाद से औषधि बनाने के लिए एक कारखाना स्थापित करना चाहते थे, लेकिन टालमटोल करते हुए बिजली विभाग ने तीन वर्ष तक बिजली का कनेक्शन नहीं दिया, जिसकी वजह से कारखाना अपने निर्धारित समय में पूरा नहीं हो सका और व्यवसाय प्रारंभ होने के पूर्व ही समाप्त हो गया. तीन साल की टालमटाल के बाद जब कनेक्शन मिला तो कारखाना शुरु करने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो श्रम कानून के विभिन्न पेंचों में फंसा कर कई तरह के मुकदमें दर्ज कर दिए गए.

झूठे मुकदमों की बाढ़

केंद्र में भाजपा के शासन में आने के तत्काल बाद डॉ. त्रिपाठी और उनके परिवार के सदस्यों पर दर्जनों झूठे आयकर के मुकदमें दर्ज कर दिये गये. हालांकि सभी शत-प्रतिशत मुकदमों में उन्हें ससम्मान जीत मिली और आयकर विभाग को हार का सामना करना पड़ा यहां तक कि न्यायालय ने अपने फैसलों में संबंधित आयकर अधिकारियों के विरुद्ध टीप भी लिखा। इस दौरान डॉ राजाराम त्रिपाठी जैविक खेती और औषधिय खेती के विशेषज्ञ के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके थे. देश के राष्ट्रपति एपीजे कलाम साहब भी उनके फार्म पर आए व पीठ ठोंकी, फिर राष्ट्रपति भवन भी बुलाया. देश के विभिन्न हिस्सों में तथा दुनिया के 34  देशों में डॉ त्रिपाठी ने अपनी विशेषज्ञता से कृषि को लाभान्वित करने के प्रयास में लगे रहे. लेकिन पिछले 15 वर्षों में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सैकड़ों आयोजन जैविक खेती, उन्नत कृषि, पर्यावरण संरक्षण तथा आयुर्वेदिक उत्पाद आदि पर किए गए लेकिन किसी भी आयोजनों में इस अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ को आमंत्रित नहीं किया गया. इतना ही नहीं जिला स्तरीय सेमिनार ,वर्कशॉप आदि  में भी इन्हें बुलाने से भरसक परहेज किया गया. राजनीतिक भेदभाव और प्रताड़ना का ऐसा उदाहरण मिलना मुश्किल है. किसी राजनीतिक दल तथा सक्रिय राजनीति से  न जुड़े होने के बावजूद इन्हें हर स्तर पर कांग्रेस समर्थक ही माना जाता रहा, लेकिन अब जब कि राज्य में कांग्रेस पुनः सत्ता में लौटी है, तो ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेसी सरकार डॉ राजाराम त्रिपाठी की विशेषज्ञता का लाभ प्रदेश के कृषि के उत्थान के लिए करेगी तथा उन्हें उनका सम्मान दिलाएगी. चुनाव के दौरान कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी की घोषणा की थी, लेकिन यह सभी जानते हैं कि किसानों की समस्याओं का समाधान कर्ज माफी नहीं है. उन्हें समस्याओं के दुष्चक्र से निकालने के लिए उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने की आवश्यकता है और यह स्वावलंबन डॉ त्रिपाठी के कृषि मॉडल से आ सकता है. डॉ त्रिपाठी के द्वारा विकसित किए गए उच्च मूल्य, उच्च गुणवत्ता की चयनित फसलें, न्यूनतम कृषि लागत, खेतों पर ही प्राथमिक प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन तदुपरांत न्यूनतम लागत पर प्रभावी विपणन तथा वितरण नेटवर्क इनके सफल प्रायोगिक  मॉडल में  सन्निहित हैं.

कौन हैं राजाराम

एक ऐसा व्यक्तित्व जिसे भारत का हरित योद्धा कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा. दरअसल,  डॉ त्रिपाठी ने भारतीय कृषि की बनी बनाई लीक तोड़ी है और वैज्ञानिक तत्व निहित खेती को परिभाषित किया है. उन्होंने विलुप्त हो रही जड़ी-बुटियों के संरक्षण के लिए न केवल महत्वपूर्ण कार्य किया है बल्कि इसके लिए उन्होंने इथिनो मेडिको गार्डेन के रूप में हर्बल फारेस्ट भी विकसित किया है, जहां इन विलुप्त होती प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ के अति पिछड़े व अतिसंवेदनशील क्षेत्र के रूप में बस्तर को जाना जाता है, वहीं डॉ त्रिपाठी जन्मे और पले बढ़े.  इस पिछड़े इलाके में उन्होंने वहां उम्मीद की एक नई पौध का रोपण किया है और वहां के 400 से अधिक आदिवासी परिवार मां दंतेश्वरी हर्बल समूह ( www.mdhherbals.com) के साथ हर्बल फार्मिंग से जुड़ कर न केवल अपनी आजीविका चला रहे हैं बल्कि भारत की विरासती जड़ी-बुटियों को संजो रहे हैं इसके अलावा सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन (CHAMF www.chamf.org) के माध्यम से देश के 50 हजार से अधिक आर्गेनिक फार्मर्स डॉ त्रिपाठी के इस अभियान में कदम ताल कर रहे हैं.बी.एससी,  एलएलबी , हिंदी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, इतिहास, अर्थशास्त्र सहित चार विषयों में एम. ए.तथा दो विषयों में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त डॉ त्रिपाठी को  देश का सबसे ज्यादा शिक्षा प्राप्त किसान माना जाता है. अभी हाल ही में डा. त्रिपाठी को  देश के ४५ किसान संगठनों के  महासंघ अखिल भारतीय किसान महासंघ (आईफा )  का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया है। डॉ त्रिपाठी के नेतृत्व में मां दंतेश्वरी हर्बल  को देश का पहला आर्गेनिक (जैविक) सर्टिफाइड उत्पाद बनाने वाली कंपनी के रूप में 18 साल पहले वर्ष 2000 में मान्यता मिली. दो दशकों से  वे अपने उत्पादों का यूरो,अमेरिका सहित कई देशों में निर्यात भी कर रहे हैं और वहां इसे काफी पसंद भी किया जा रहा है. उन्हें  बेस्ट एक्सपोर्टर का अवार्ड भी मिल चुका है. अभी हाल में ही भारत सरकार के सबसे बड़े कृषि क्षेत्र के संगठन सी .एस .आई. आर. CSIR के साथ करार कर स्टिविया की खेती और  इससे  कड़वाहट रहित स्टिविया की शक्कर बनाने के लिए कारखाना लगाने के लिए २- दो   करार किया है।  उल्लेखनीय है हर्बल या आर्गेनिक व्यवसाय से जुड़ी देश की बड़ी कंपनियां जंगली जड़ी-बुटियों का भारी मात्रा में दोहन तो कर रही हैं लेकिन उनके संरक्षण की दिशा में उनका योगदान नगण्य है, इसकी वजह से जुड़ी बुटियों की ढेर सारी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है. ऐसी विलुप्त हो रही जुड़ी-बुटियों को संरक्षित करने का महती कार्य वे कर रहे हैं. उनके इन योगदान को देखते हुए उन्हें की अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कार जिनमें ग्रीन वारियर भी शामिल हैं, से नवाजा गया हैं.अब तक देश-विदेश से उन्हें 150 से अधिक अवार्ड मिले हैं.

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