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अगर वे ईसाई है तो क्या जीना हराम कर देंगे उनका ?

अगर वे ईसाई है तो क्या जीना हराम कर देंगे उनका ?

कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम का संज्ञान लेना बेहद जरूरी

रायपुर. छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिले कोण्डागांव के माकड़ी थाने के अधीन एक गांव है मोहन बेड़ा. इस गांव में गत चार महीनों से ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों पर प्रताड़ना का दौर चल रहा है. जाहिर सी बात है कि जब भी इस तरह की स्थिति पैदा होती है तो सबसे पहले अतिवादी संगठन से जुड़े लोग सक्रिय होते हैं. इस गांव में भी वही लोग सक्रिय हुए और उनका साथ दिया ग्राम पंचायत ने.

देश का संविधान इस बात की इजाजत देता है कि कोई भी व्यक्ति अपनी निजी स्वतंत्रता के तहत किसी भी धर्म को स्वीकार कर सकता है. संविधान का सम्मान करते हुए ही इस गांव के राम वट्टी, लक्ष्मण वट्टी, पगनी वट्टी, तिहारिन वट्टी, लक्ष्मी वट्टी और चमारिन बाई वट्टी ने लगभग छह साल पहले ईसाई धर्म को अंगीकार कर लिया था. गांव के उक्त लोगों ने जब ईसाई धर्म स्वीकार किया तब किसी ने किसी भी तरह की आपत्ति नहीं जताई, लेकिन अचानक एक दिन उक्त सभी लोगों को पंचायत ने बुलाकर इस बात की धमकी दी कि यदि उन्होंने ईसाई धर्म को नहीं छोड़ा तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा. पंचायत का साफ-साफ कहना था कि या तो धर्म को छोड़ना होगा या फिर गांव ?

सामाजिक बहिष्कार

जब गांव उक्त लोगों ने पंचायत का फरमान मानने से इंकार कर दिया तो पंचायत ने सामाजिक बहिष्कार का फरमान सुना दिया. उन्हें गांव के हैडपंप से पानी लेने से रोक दिया गया. किराना दुकान वालों ने राशन व अन्य सामाग्री को बेचने से मना कर दिया. यहां तक जो किसान अपनी खेती पर अनाज उगाना चाहते थे उन्हें ऐसा नहीं करने दिया गया. प्रताड़ना से परेशान उक्त लोगों ने कई मर्तबा कलक्टर, पुलिस अधीक्षक व तहसीलदार को लिखित में शिकायत भेजी... लेकिन इस शिकायत का कोई असर नहीं हुआ. अभी हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ क्रिश्चयन फोरम की फैक्ट फाइडिंग टीम ने गांव का दौरा किया तब पता चला कि अधिकारी भी प्रताड़ित लोगों को ही ईसाई धर्म छोड़ने की धमकी-चमकी देते रहे हैं.

भाजपा शासनकाल से चल रहा है प्रताड़ना का दौर

कोण्डागांव में जो कुछ हुआ वह केवल एक बानगी है. मसीही समाज के साथ प्रताड़ना का यह दौर तब से चल रहा है जब प्रदेश में भाजपा की सरकार थीं. कांग्रेस की सरकार बनने के बाद यह उम्मीद थी कि प्रदेश में रहने वाले सभी लोगों को अपने-अपने हिसाब से धर्म को चुनने और उसे मानने की आजादी रहेगी, लेकिन लगता तो यही है कि सरकार को बदनाम करने के लिए अफसर अतिवादी संगठनों की ही मदद कर रहे हैं. कोण्डागांव से मोहन मरकाम प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और विधायक भी है. उनकी छवि एक निर्विवाद और जुझारू नेता के तौर पर बनी हुई है. कोण्डागांव के ग्राम मोहन बेड़ा की घटना से जाहिर होता है कि कतिपय अतिवादी संगठन अफसरों के साथ मिली-भगत कर छवि को बट्टा लगाने के फेर में हैं. गांव में प्रताड़ित लोग अब भी अपनी खेती-बाड़ी करना चाहते हैं, लेकिन अतिवादी लोग घातक हथियारों से लैस होकर उन्हें रोकते हैं. पीड़ित लोगों ने थोड़ा प्रयास भी किया तो उनके साथ मारपीट की गई. उनका घर तोड़ दिया गया. यहां तक घर की महिला सदस्यों के साथ अभद्रता की गई. फैक्ट फाइड़िंग टीम ने सारे तथ्यों को एकत्र कर पीड़ित लोगों के साथ थाने जाकर रिपोर्ट करनी चाही तो वहां मौजूद थानेदार ने कह दिया- गांव का मामला है. गांव वाले आपस में निपट लेगें. आप लोग काहे नेतागिरी करते हो. जब टीम के सदस्यों ने रिपोर्ट के लिए जोर दिया तब भी कोई बात नहीं बनी. फोरम के सदस्यों की शिकायत एक सादे कागज में ले ली गई और कह दिया गया कि जांच करके बताएंगे. इस गांव में इसी महीने एक जुलाई को पीड़ित लोगों पर जयलाल,जगत,कौशल, जगदेव, मधली सहित कुछ और लोगों ने हमला किया था. पीड़ित पक्ष और फोरम की शिकायत के बाद भी पुलिस ने अब किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की है.

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ क्रिश्चन फोरम ने प्रदेश के बस्तर सहित अन्य इलाकों के 17 से ज्यादा मामलों में उच्च न्यायालय में याचिका लगाई थीं. फोरम की याचिका के बाद उच्च न्यायालय ने मसीही समाज के अधिकार को सुनिश्चित करने का आदेश दिया था. फोरम ने इस आदेश की प्रति प्रदेश के सभी थानों और पुलिस विभाग के प्रमुख अफसरों को भेजी है, बावजूद इसके ईसाई समुदाय पर प्रताड़ना का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. अभी कुछ समय पहले ही कोण्डागांव में ईसाई धर्म को मानने वाली एक महिला के साथ दुष्कर्म की घटना सामने आई थीं. पुलिस ने इसे जंगली जानवरों का हमला बताकर रफा-दफा कर दिया. ग्राम सोनाबेड़ा में भी कुछ लोगों को इसलिए प्रताड़ित किया गया क्योंकि वे ईसाई धर्म को मानने वाले है.छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल का आरोप है कि शासन के अधिकारी जान-बूझकर प्रताड़ना के मामलों में गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं. उनका कहना है जो भी अधिकारी इस तरह के कृत्य में लिप्त हैं उन्हें अदालत का सामना करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.

 

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