पहला पन्ना
गिरोह का खेल...कुशाभाऊ ठाकरे की प्रतिमा बनाने वाले मूर्तिकार से मांगी गई थी एक लाख की रिश्वत
राजकुमार सोनी
रायपुर. छत्तीसगढ़ के काठाडीह में स्थापित कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम अब चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता विश्वविद्यालय कर दिया गया है. यह अलग बात है कि विश्वविद्यालय के परिसर में अब भी संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े ठाकरे की प्रतिमा स्थापित है. पिछले दिनों एक गिरोह विशेष के सदस्यों ने यह कहते हुए हो-हल्ला मचाया था कि जिस जगह पर प्रतिमा स्थापित है भला उस जगह का नाम कैसे और किस आधार पर बदला जा सकता है? इधर ठाकरे की प्रतिमा का निर्माण करने वाले मूर्तिकार नेलसन ने अपना मोर्चा डॉट कॉम को बताया कि विश्वविद्यालय के तात्कालिक रजिस्ट्रार ने प्रतिमा बनाने के एवज में एक लाख रुपए की रिश्वत मांगी थीं. यह चढ़ावा उन्हें इसलिए भी देना पड़ा क्योंकि पांच लाख का भुगतान तो अग्रिम मिल गया था, लेकिन चार लाख रुपए अटके पड़े थे.
रजिस्ट्रार खुद आए थे पैसा लेने
पद्मश्री मूर्तिकार नेलसन का नाम देश में अंजाना नहीं है. उनके हाथों से निर्मित अनेक प्रतिमाएं छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में स्थापित है. वर्ष 2010 से कुछ पहले उन्हें कुशाभाऊ ठाकरे की प्रतिमा बनाने का काम सौंपा गया था. इस काम के लिए उन्होंने कुल नौ लाख रुपए का व्यय बताया था. विश्वविद्यालय प्रबंधन इसके लिए तैयार भी हो गया था, लेकिन जब भुगतान की बारी आई तब विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार ने साफ शब्दों में कहा कि भुगतान तो हो जाएगा... लेकिन कुलपति महोदय को एक लाख रुपए का चढ़ावा देना होगा. नेलसन ने बताया कि रजिस्ट्रार चढ़ावे को लेकर इतनी हड़बड़ी में थे कि वे खुद ही उनसे मिलने के लिए उस जगह ( भिलाई ) चले आए जहां प्रतिमा का निर्माण हो रहा था. मूर्तिकार ने बताया कि रजिस्ट्रार साहब अपने साथ शेष बाकी रकम ( चार लाख ) का चेक लेकर आए थे और भुगतान हासिल करने के लिए उनके साथ स्टेट बैंक तक गए थे. उन्होंने एक लाख रुपए नगद उनके हाथों में थमाया था. इस तरह प्रतिमा को बनाने के एवज में मात्र आठ लाख का भुगतान ही मिल पाया.नेलसन ने बताया कि 28 जून 2010 को प्रतिमा का काम पूरा हो गया था. अब विश्वविद्यालय परिसर में यह प्रतिमा किस तिथि को स्थापित हुई और किसने अनावरण किया इसकी जानकारी उनके पास नहीं है.
स्व. शुक्ल के कार्यकाल को भी किया याद
मूर्तिकार ने छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष स्व. राजेंद्र प्रसाद शुक्ल और सचिव भगवान देव इसरानी के कार्यकाल को भी याद किया. नेलसन ने बताया कि भगवान देव इसरानी तो सचमुच भगवान ही थे. जब यह तय हुआ विधानसभा में महात्मा गांधी की प्रतिमा लगायी जानी है तब उनके द्वारा काम हासिल करने के लिए महज सात लाख रुपए में कोटेशन भर दिया गया था. बाद में स्व. शुक्ल यानी बाबूजी ने बुलाकर कहा कि इतनी कम धनराशि में भला प्रतिमा कैसे बन पाएगी. नेलशन बताया कि निश्चिच रुप से सात लाख में प्रतिमा का निर्माण करना कठिन होता. तब इस दुविधा को भांपकर स्व. शुक्ल ने 12 लाख रुपए स्वीकृत किए. इस काम में विधानसभा के सचिव भगवान देव इसरानी ने भी खूब मदद की. बाद में भी उनका व्यवहार सहयोगात्मक रहा. नेलशन ने बताया कि उनके हाथों ने विधानसभा के दो मोनो, अशोक स्तंभ और विवेकानंद की प्रतिमा का निर्माण भी किया है. अशोक स्तंभ के लिए उन्हें 13 लाख और विवेकानंद की प्रतिमा के लिए 16 लाख रुपए का भुगतान किया गया. इसके एवज में किसी भी शख्स ने उनसे कोई चढ़ावा नहीं मांगा.
( नेलशन से की गई बातचीत का रिकार्ड उपलब्ध है. )