पहला पन्ना

बघेल ने खाया सोटा...कांपा विरोधियों का पोटा

बघेल ने खाया सोटा...कांपा विरोधियों का पोटा

राजकुमार सोनी

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बड़ी दीवाली के ठीक दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के मौके पर एक बैगा से चाबुक ( सोटा ) खाकर देशव्यापी वाह-वाही लूट ली है. ग्राम जंजगिरी में सोटा खाने का वीडियो जिस तेजी से वायरल हुआ उसके बाद भाजपाइयों के साथ-साथ उनके ही अपनी पार्टी में जलन रखने वालों का पोटा ( पेट ) कांप गया है. आपको बता दें कि दिल धड़कता है. दिल में धुकधुकी होती है. मन में डर लगता है... जैसे मुहावरे यूं ही नहीं बने हैं. छत्तीसगढ़ में जब कुछ अजीब और अनोखा सा घट जाता है तो लोगों के मुंह से बरबस निकल पड़ता है- ये ले साले... तोर तो पोटा कांप गे हे बे...

मुख्यमंत्री बघेल ग्राम जंजगिरी में गौरा-गौरी पूजा के एक आयोजन में शरीक हुए थे. ऐसी मान्यता है कि पूजा के दरम्यान कुछ अदृश्य शक्तियों का धावा होता है तो उत्पात मचता है. आसपास खड़े लोगों पर देवता चढ़ जाते हैं. गांव का बैगा सोटा मारकर कंट्रोल करता है. यह भी मान्यता है कि जो व्यक्ति सोटा खाता है वह सभी तरह की परेशानियों को अपने ऊपर ले लेता है और अपने साथ-साथ आसपास के लोगों के कष्टों का निवारण कर देता है. तर्क और विज्ञान इस युग में कोई भी सोच सकता है कि यह सोटा-फोटा की परम्परा एक तमाशे के अलावा कुछ भी नहीं है, लेकिन यह शायद ठीक नहीं है. परम्पराएं बनती इसलिए ताकि उसका निर्वहन किया जाय और परम्पराएं होती भी इसलिए है कि उसे तोड़ दिया जाय. मुख्यमंत्री बघेल ने पूजा के मौके पर परम्परा का निर्वाह भी किया और बड़ी ही शालीनता से उसे तोड़ा भी.

जनता के कोड़े का ख्याल

मुख्यमंत्री जब सोटा के वार सह रहे थे तब उनके चेहरे पर एक खास तरह की मुस्कान थीं. एक तरफ तो वे वर्षों पुरानी सोटा परम्परा का निर्वाह कर रहे थे तो दूसरी तरफ यह संदेश भी दे रहे थे कि चाहे कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो जाय...उसे जनता के कोड़े का ख्याल रखना चाहिए. जो लोग शिकवा-शिकायत और जनता के कोड़े का ख्याल रखते हैं वे लंबे समय तक दिलों में राज करते हैं. डाक्टर रमन सिंह की सरकार यहीं बात समझ नहीं आ पाई थीं.उस सरकार में बैठे लोग जनता पर कोड़े बरसा रहे थे. लाठियां भांज रहे थे. शिक्षाकर्मियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा जा रहा था. खुद को तुर्रमखां बताने वाले दो अफसरों की वजह से रमन सिंह की तुलना हिटलर से की जाने लगी थीं. पाठकों को शायद याद हो कि चुनाव के अंतिम दिनों में रमन सिंह को साइलेंट किलर ( खामोश हत्यारा ) और हिटलर बताती हुई तस्वीरें सोशल मीडिया में  वायरल हुई थीं. यह सब स्वस्फूर्त था.. इसके लिए किसी को कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ी थीं.

बहरहाल कल मुख्यमंत्री के सोटा खाने लेने वाले प्रकरण के बाद अब विरोधी इस चर्चा में तल्लीन है कि आखिर करें तो क्या करें. ये आदमी कभी भौरा चलाता है. तो कभी गेंड़ी में चढ़कर नाचता है. कभी मांदर बजाता है तो कभी एक हाथ से बच्चे को उठा लेता है. काजू-कतली खाकर नेतागिरी करने वाले लोगों को यह समझ नहीं आ रहा है कि चौलाई और लालभाजी का मुकाबला कैसे किया जाय ?  सत्ता के अपने प्रारंभिक दिनों में अजीत जोगी ने राह चलते मुनगा भांजी और चनाबूट खाकर खुद को ठेठ छत्तीसगढ़िया बताने की कवायद की थीं, लेकिन जल्द ही वे विवादों से घिर गए और एक बड़े वर्ग ने उन्हें अस्वीकार कर दिया.बघेल को अपनी स्वीकार्यता के लिए गैर-स्वाभाविक ढंग कुछ भी नहीं करना पड़ रहा है. उन्होंने बचपन में पत्थरों के पीछे बिच्छुओं का डंक तोड़कर प्रतियोगिता जीती है तो बैल के साथ खुद को लहुलूहान भी किया है. वे यह सारी चीजें स्वाभाविक ढंग से इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी पृष्ठभूमि खेती-किसानी की है. वे बेशकीमती हीरे को हड़पने के लिए ( देवभोग ) और उसके आसपास जमीन खरीदकर खुद को किसान बताने वाले सिंघानिया सेठ नहीं है. बघेल के देशी अंदाज का फिलहाल तो कोई तोड़ नहीं दिख रहा है.

देसी गिफ्ट ने भी लुभाया

हर दीवाली पर मुख्यमंत्री निवास से प्रदेश के पत्रकारों को तोहफा दिए जाने की एक परम्परा चली आ रही है. पूर्व के दो मुख्यमंत्रियों के तोहफों में कभी टीवी शामिल रहता था, कभी फ्रिज... कभी लैपटाप तो कभी फटने वाला मोबाइल. लेकिन पहली बार इस दीवाली पर मुख्यमंत्री निवास से पत्रकारों को जो तोहफा मिला है उसकी तारीफ हर कोई कर रहा है.

इस बार सीएम हाउस से खादी एवं ग्रामोद्योग की ओर से उत्पादित सामग्री वितरित की गई है. माटी कला बोर्ड की ओर से चाय के बर्तन, लघु वनोपज सहकारी संघ का शहद, महिला स्वसहायता समूह द्वारा निर्मित साबुन, दुग्ध महासंघ की ओर से बनाया गया देसी घी, गोबर से निर्मित दीये और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के अंतर्गत वित्तपोषित अगरबत्ती का वितरण किया गया है. इस देसी तोहफे में एक संदेश यह छिपा है कि अगर अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है ग्रामीण हाथों को रोजगार देने की जरूरत है. अब यह देसी गिफ्ट पत्रकारों के अलावा प्रदेश के अफसरों और प्रमुखजनों को भी वितरित किए गए होंगे. जो भी हो... इनकी खरीददारी तो हुई. कुछ घरों का अंधेरा दूर हुआ. वहां दीवाली तो मनी.

 

 

ये भी पढ़ें...