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सोया मिल्क, बिस्किट और केटलफिड की खरीदी में करोड़ों का वारा-न्यारा

सोया मिल्क, बिस्किट और केटलफिड की खरीदी में करोड़ों का वारा-न्यारा

नियंत्रक महालेखा परीक्षक की आपत्तियों को दरकिनार कर बीज निगम ने की करोड़ों की खरीदी

रायपुर. भाजपा के शासनकाल में एक से बढ़कर एक कारनामे होते रहे हैं और इन कारनामों को अंजाम देने वाले लोग अब भी खामोश नहीं बैठे हैं. पिछले शासनकाल में सोया मिल्क, बिस्कुट और केटलफिड की बिक्री के नाम पर करोड़ों की चपत लगाने वाले मनीष शाह को लोग भूले नहीं है. मनीष शाह वहीं है जिन्होंने पिछली सरकार में बच्चों के कुपोषण को दूर करने के लिए सरकार को सोया मिल्क बांटने का प्रस्ताव दिया था. सरकार की रजामंदी के बाद शाह ने केंद्रीय और राज्य स्तरीय प्रयोगशाला से जांच करवाए बगैर बच्चों को दूध का पैकेट वितरित कर दिया था. कई स्कूलों में जब बच्चे बीमार पड़ने लगे तब थोड़े समय के लिए पैकेट के वितरण में रोक लगाई गई. शाह इन दिनों फिर से सक्रिय है.मंत्रालय के कई आला-अफसरों के कक्ष में उनकी आमद देखी जा सकती है.

रमन सिंह की सरकार में बीज निगम ने जन निजी भागीदारी ( पीपीपी मोड ) के तहत सोया बिस्कुट, सोया मिल्क और केटलफिड की खरीदी की थी. इसके लिए शाह की कंपनियों से अनुबंध किया गया था. इन चीजों की खरीदी के लिए सबसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य शर्त यह थीं कि कंपनी को अपनी  ईकाई छत्तीसगढ़ में स्थापित करनी होगी और प्रदेश के किसानों या बाजार से कच्चे माल की खरीददारी करनी होगी. अनुबंध में इस शर्त को रखे जाने के पीछे का मकसद यह था कि स्थानीय बाजार और किसान दोनों को मजबूती मिलेगी.

नहीं स्थापित हुई ईकाई

बीज निगम के अधिकारियों ने यह जांचे-परखे कि किसी तरह की कोई ईकाई स्थापित की है या नहीं...शाह को करोड़ों का काम सौंप दिया.जाहिर सी बात है कि जब ईकाई स्थापित नहीं हुई हो तो स्थानीय बाजार और किसानों से खरीददारी भी नहीं हुई होगी. ऐसा ही हुआ. शाह ने सोया मिल्क के लिए कच्चा सामान पड़ोसी राज्यों से खरीदा और स्कूल शिक्षा विभाग तथा महिला बाल विकास विभाग की ओर से संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में इसकी जमकर सप्लाई की. शाह ने पशु आहार के लिए भी किसी तरह की कोई ईकाई स्थापित नहीं की और गौशालाओं में पशु आहार पहुंचाया जाता रहा. बिस्कुट की ट्रेडिंग नागपुर के सुंदर इंडस्ट्रीज से की गई और स्कूल तथा आंगनबाड़ी केंद्रों में वितरण होता रहा.

महालेखाकार ने जताई आपत्ति

एक शिकायत के बाद महालेखाकार ( कैग ) ने 31 मई 2015 को आपत्ति जताते हुए बीज निगम को नियमों के खिलाफ की जा रही खरीदी और भुगतान पर रोक लगाने को कहा. निगम ने कैग की तमाम आपत्तियों को उस दौरान रद्दी की टोकरी में डाल दिया और बड़े पैमाने पर खरीदी और भुगतान का खेल जारी रखा. वर्ष 2015 से वर्ष 2018 तक यह क्रम जारी रहा. वर्ष 2018 में कैग ने एक बार फिर बीज निगम को खरीदी और पर रोक लगाने को कहा तब बीज निगम ने 11 जनवरी 2019 को खानापूर्ति करते मनीष शाह को एक पत्र लिखा और कहा कि वे जल्द से जल्द प्लांट स्थापित कर लें. अब तक न तो प्लांट लगा है और न ही स्थानीय स्तर पर कच्चे माल की खरीदी होती है. सारा कुछ बाहर से नियंत्रित होता है. अधिकारियों की सांठगांठ से शासन को चूना लगाने का खेल अब भी निर्बाध गति से चल रहा है. नियमानुसार स्कूलों में सोया मिल्क और बिस्कुट की सप्लाई के लिए विधि विभाग से अनुमति ली जानी थीं. खबर है कि मनीष शाह को उपकृत करने के लिए विधि विभाग से अनुमति लेना भी अनिवार्य नहीं समझा गया.

अब राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में काम हथियाने की जुगत

खबर है कि प्रदेश के एक प्रमुख अफसर से सांठगांठ होने की वजह से मनीष शाह ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में भी काम हथियाने की जुगड़ बिठा ली है. मंत्रालय में पदस्थ एक अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सामान्य तौर पर किसी भी निजी व्यक्ति को सरकारी बैठकों में उपस्थित रहने की अनुमति नहीं रहती, लेकिन मनीष शाह प्रमुख अफसर से करीबी होने  का रौब दिखाते हुए हर बैठक में मौजूद रहता है. सूत्र बताते हैं कि शाह के करीबी अफसर ने पिछले दिनों राष्ट्रीय विकास योजना भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा है. मनीष शाह को कौन सा काम दिया जाना उचित होगा इसका खाका भी अफसर ने अपने कमरे में बनाया है. खबर है कि शाह... भारत सरकार और राज्य सरकार के अंश से फूड प्रोसेसिंग का कोई प्रोजेक्ट लांच करना चाहता हैं. शाह को यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि नई सरकार का जोर खेती-किसानी पर केंद्रित है सो प्रोजेक्ट भी कुछ उसी ढंग का तैयार किया गया है. एक और प्रोजेक्ट यूनिर्विसटी से संबंधित है. 

 

 

 

 

 

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