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क्या एक लड़की को पगली-सगली और फंस जबे कहना उसके वजूद का अपमान नहीं है...?

क्या एक लड़की को पगली-सगली और फंस जबे कहना उसके वजूद का अपमान नहीं है...?

रायपुर. गुरू घासीदास सेवादार संघ और लोक समता शिक्षण समिति के बैनर तले राजधानी रायपुर में आयोजित एक विचार गोष्ठी में मंगलवार को प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और फिल्मकार रिनचिन ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति को दरकिनार कर  फिल्म बनाने वाले फिल्मकारों को जमकर आड़े हाथों लिया. रिनचिन ने कहा कि कोई फिल्म बनाए और करोड़ों रुपए कमाए हमें उससे आपत्ति नहीं है, लेकिन किसी भी फिल्मकार को छत्तीसगढ़ की लड़कियों और स्त्रियों को अपमानित करने का अधिकार नहीं है. रिनचिन ने कहा कि जब हम किसी लड़की को हंस मत पगली... फंस जबे कहते हैं तो उसके वजूद को चुनौती देते हैं. क्या किसी लड़की को हंसने का अधिकार नहीं है? और फिर फंस जबे शब्द क्या एक लड़की को अपमानित करने वाला शब्द नहीं है? रिनचिन ने कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति किसी को अपमानित करने की नहीं है.

पत्रकार राजकुमार सोनी ने सवाल उठाया कि क्या छत्तीसगढ़ी फिल्मों में हमें संस्कृति के नाम पर मुंबई का कचरा ही देखने को मिलता रहेगा? क्या छत्तीसगढ़ के फिल्मकार कभी शंकरगुहा नियोगी, तीजनबाई, हबीब तनवीर, लाल श्याम सिंह, रितु वर्मा, सूरुज बाई खांडेकर, झाडूराम देवांगन, बिलासपुर के लाल खदान मस्तूरी के श्रमिक नेता दरसराम साहू जैसे मूर्धन्यों के जीवन संघर्ष और माओवाद की समस्या से निदान के लिए भी कोई फिल्म बनाएंगे ? सोनी ने कहा कि पंडवानी गायिका तीजनबाई बाई पर अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्धकी की पत्नी फिल्म बना रही है, लेकिन छत्तीसगढ़ के फिल्मकारों ने इस महान शख्सियत पर फिल्म बनाने की जहमत उठाने की जरूरत नहीं समझी है. प्रसिद्ध फिल्मकार सतीश जैन ने कहा कि वे केवल मनोरंजन के लिए फिल्म बनाते है और मनोरंजन को ही अपना ध्येय मानते हैं. उन्होंने कि कहा जनता की पसंद पर किसी भी दूसरी तरह की पसंद को थोपना उचित नहीं है.उन्होंने बताया कि उनकी नई फिल्म हंस झन पगली फंस जबे रिकार्ड तोड़ बिजनेस कर रही है और आगे भी तगड़ा व्यवसाय होगा इसकी पूरी संभावना है.

फिल्मकार अजय टीजी ने कहा कि छत्तीसगढ़ की अधिकांश फिल्मों पर मुंबईयां फिल्मों की छाप देखने को मिलती है. किसी फिल्म से प्रेरणा लेना अलग बात हैं और नकल करना अलग मसला है.उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के फिल्मकारों को मौलिक विषय पर फिल्म निर्माण करने के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए.

फिल्मकार योग मिश्रा ने कहा कि सब कुछ एकाएक नहीं हो जाता है. बंबई की फिल्म इंडस्ट्री भी धीरे-धीरे खड़ी हुई थीं और छत्तीसगढ़ की इंडस्ट्री भी अपने बूते पर खड़ी हो रही है. 

फिल्मकार संतोष जैन ने कहा कि पहले धार्मिक और ऐतिहासिक फिल्में बनती थीं. महाराष्ट्र में दादा कोड़के का वर्चस्व रहा...मगर अब जाकर अच्छी फिल्में बनने लगी है. जैन ने कहा कि आज पब्लिक की जेब से पैसा निकालना कठिन हो गया है. छत्तीसगढ़ में लोग अपनी जेब से पैसा लगाकर फिल्म बना रहे हैं. जैन ने कहा कि छत्तीसगढ़ के फिल्मकारों को भी सरकार की ओर से सब्सिडी मिलनी चाहिए.

पीयूसीएल के पूर्व अध्यक्ष लाखन सिंह ने कहा कि जो फिल्म लोगों के भीतर जागृति पैदा करती है वहीं फिल्म जिंदा भी रहती है. उन्होंने कहा कि फिल्मों में महिलाओं और बच्चों के सम्मान का खास ख्याल रखा जाना चाहिए. प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गा झा ने भी अपने वक्तव्य में सामाजिक सरोकार को बढ़ावा देने की बात कही. उन्होंने कहा कि किसी भी टूरी को आइसक्रीम खाकर फरार नहीं होने देना है. यह एक निष्कृष्ट सोच को बढ़ावा देने वाला गाना है.

गोष्ठी में कवियित्री एवं अभिनेत्री नीलू मेघ ने दर्शक दीर्घा से कहा कि छत्तीसगढ़ की माटी कला,संस्कृति और नैसर्गिक कलाकारों से अटी पड़ी है.राज्य बनने के बाद फ़िल्मकारों  ने भली बुरी सब तरह की फ़िल्में बनाई और अपनी तिजोरी को भरने का काम किया है. अफसोस इस बात का है कि यहां के कलाकारों को न यथायोग्य मेहनताना मिलता है न यश .यह कलाकारों का सीधा सीधा अपमान और शोषण है. लाखों करोड़ों  का मुनाफा कमा रहे फिल्मकार छत्तीसगढ़ के भोले भाले कलाकारों को चांस देने के बहाने पारिश्रमिक न देकर आर्थिक शोषण ही करते हैं. फ्री में काम करवा कर करोड़ो रूपये कमाना यह छोटी बात नहीं हैं. छत्तीसगढ़ की फिल्मों का यह स्याह पक्ष है जिस पर संज्ञान लेने के बजाय मुद्दा ही गायब कर दिया जाता है. रंगकर्मी निसार अली ने सवाल उठाया कि हाल के दिनों में धमतरी के एक छबिगृह में फिल्म की टिकट को लेकर चाकूबाजी हो गई थी. इस घटना का जिम्मेदार किसे माना जाना चाहिए.

 

छत्तीसगढ़ी सिनेमा के सामने चुनौतियां और निदान विषय पर आयोजित यह गोष्ठी  वृंदावन हाल में आयोजित की गई थीं. इस गोष्ठी में खास तौर पर छत्तीसगढ़ी सिनेमा के जनक मनु नायक मौजूद थे. इस मौके पर उन्होंने अपने अनुभव से भी जनसमूह को समृद्ध किया. 

सभाकक्ष में कुछ ऐसे तत्वों का भी प्रवेश हो गया था जो विचारहीन सवालों के जरिए गोष्ठी की दशा और दिशा बदलना चाहते थे. ऐसे तत्वों के सवाल साफ तौर पर प्रायोजित लग रहे थे. इन तत्वों ने बेमतलब के सवालों के जरिए हंगामा मचाने की कोशिश भी की, लेकिन गुरूघासीदास सेवादार संघ के केंद्रीय  अध्यक्ष लाखन सुबोध और उनके जिम्मेदार सदस्य तामेश्वर अनंत, एनडी सतनाम, दिनेश सतनाम तथा अपार जनसमूह की वजह माहौल बिगाड़ने वाले तत्वों की कोशिश नाकाम हो गई. सारे विघ्नकारी तत्वों को सभाकक्ष से खदेड़ दिया गया. गोष्ठी के अंत में छत्तीसगढ़ी सिनेमा के जनक मनु नायक को पदमभूषण देने की मांग भी की गई.

   

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