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अंडा है या बम !

अंडा है या बम !

राजकुमार सोनी

छत्तीसगढ़ में इन दिनों अंडा राजनीति चल रही है. दरअसल छत्तीसगढ़ की सरकार आंगनबाड़ी केंद्रों और स्कूलों में दिए जाने वाले मध्यान्ह भोजन में गर्भवती माताओं और बच्चों को पोषक आहार के रुप में अंडा देना चाहती है. प्रदेश के आदिवासी और प्रगतिशील जनसंगठन सरकार के इस फैसले का जोरदार ढंग से समर्थन कर रहे हैं, लेकिन विपक्ष को इस बात की आशंका है कि अगर किसी बच्चे ने अंडे को आलू समझकर खा लिया तब क्या होगा? कहने-सुनने में यह बात हास्यास्पद तो लगती है, मगर यही हास्यास्पद स्थिति फिलहाल छत्तीसगढ़ में विरोध की राजनीति का सच है.

भाजपा ने इस बार मानसून सत्र में स्कूलों में अंडा परोसने के सैद्धांतिक फैसले के खिलाफ काम रोको प्रस्ताव प्रस्तुत किया. यहां यह बताना लाजिमी है कि काम रोको प्रस्ताव तब लाया जाता है जब वास्तव में कोई बड़ी घटना घटित हो जाती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में विपक्ष का काम रोको प्रस्ताव अंडे के खिलाफ था. विपक्ष के सदस्य बृजमोहन अग्रवाल ने सदन में आरोप लगाया कि बच्चों की थाली में अंडा परोसने के कार्यक्रम से अंडे का कारोबार करने वाले चंद व्यापारियों को लाभ पहुंचेगा और बच्चों में मांसाहार की प्रवृति पैदा होगी. बृजमोहन अग्रवाल ने सदन में यह भी बताया कि कबीरपंथी, जैन, अग्रवाल, वैष्णव, मारवाड़ी, माहेश्वरी समाज के लोग ज्ञान के मंदिर में अंडा वितरण किए जाने के खिलाफ है. भाजपा विधायक अग्रवाल यह तक कह गए कि सावन के महीने में सरकार ने अंडा बांटने का फैसला लिया है इसलिए इंद्रदेव नाराज हो गए हैं... पानी नहीं गिर रहा है.

भाजपा विधायक के इस बयान के बाद कांग्रेस के मंत्री कवासी लखमा ने यह कहते हुए विरोध जताया कि छत्तीसगढ़ में जब पन्द्रह साल तक भाजपा की सरकार थीं तब तो मुर्गी पालन और मछली पालन पर खूब जोर दिया गया, लेकिन अब भाजपा बेमतलब का विरोध कर रही है. शोर-शराबा और हो-हल्ले के बीच कांग्रेस के सदस्यों ने यह भी कहा कि कई राज्यों में जहां भाजपा की सरकार है वहां के सरकारी स्कूलों में अंडा परोसा जा रहा है.

स्कूलों में अंडा परोसने को लेकर सरकार का तर्क है कि छत्तीसगढ़ के 38 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार है और अनुसूचित जनजाति के बच्चों में कुपोषण की यह दर 44 फीसदी है.अंडे में विटामिन सी जैसे एक- दो तत्व छोड़कर सभी तरह के पोषक तत्व मिलते हैं.अगर बच्चों को अंडा मिलेगा तो वे स्वस्थ्य रहेंगे और उनकी पढ़ाई-लिखाई भी अच्छी होगी. अपना मोर्चा डॉट कॉम से बातचीत में स्कूली शिक्षा मंत्री प्रेमसाय सिंह कहते हैं- अंडा मांसाहार है या शाकाहार इसे लेकर बहुत सा भ्रम काफी पहले टूट चुका हैं. कौन सा बच्चा अंडा खाएगा और कौन सा बच्चा अंडा नहीं खाएगा... इसे लेकर कोई बाध्यता नहीं रखी गई है. जो बच्चे अंडा खाना चाहेंगे उन्हें अंडा दिया जाएगा और जो बच्चे अंडा नहीं चाहेंगे उन्हें दूध- केला या उतनी ही कैलोरी का अन्य प्रोटीनयुक्त पदार्थ परोसा जाएगा. प्रेमसाय ने बताया कि स्कूलों में अंडा बंटेगा या नहीं इसका फैसला शाला विकास समिति तय करेगी. जहां की समिति अंडा परोसने के पक्ष में होगी वहां स्कूलों में अंडा दिया जाएगा. जहां समिति नहीं चाहेगी वहां बच्चों के घर अंडा पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी, लेकिन बच्चों को अंडा अवश्य दिया जाएगा.

इधर अंडा परोसे जाने के फैसले के खिलाफ आंदोलन करने वाले कबीरपंथियों के गुरु प्रकाश मुनि का कहना है कि ज्ञान के मंदिर में अंडा नहीं परोसा जाना चाहिए. सरकार को स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों में अंडा वितरण करने से पहले एक सर्वे करा लेना चाहिए था. जो बच्चे अंडा खाना चाहते हैं सरकार उनके परिजनों को अंडा दे दें ताकि वे अपने बच्चों को घर पर ही अंडा खिला सकें. बहुत से धार्मिक संगठन अंडा वितरण योजना को धर्म और आस्था के खिलाफ भी मान रहे हैं. इस बारे में पीयूसीएल के पूर्व अध्यक्ष लाखन सिंह का कहना है कि अंडे का विरोध करने वाले लोग बच्चों के कुपोषण को कैसे दूर करें... इस विषय पर बातचीत के लिए तैयार नहीं है. धर्म-कर्म और आस्था से तो बच्चों का कुपोषण दूर नहीं होगा. अगर एक सस्ता और सुलभ प्रोटीन बच्चों के भोजन का हिस्सा बनता है तो इससे अच्छी बात कोई दूसरी नहीं हो सकती. क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच के महासचिव तुहिन देव का कहना है कि भोजन में शाकाहार और मांसाहार दोनों का महत्व होता है. केवल कुछ लोगों की आस्था या धार्मिकता के नाम पर एक बड़ी आबादी के खानपान पर प्रतिबंध लगाने की कवायद किसी भी स्तर पर जायज और प्रजातांत्रिक नहीं मानी जा सकती है. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं- सरकार ने बम नहीं ब्लकि अंडा बांटने की योजना बनाई है. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब बच्चों को अगर भोजन में अंडा मिलता है तो उसका हर स्तर पर स्वागत होना चाहिए. जो लोग आज अंडे का विरोध कर रहे हैं वे लोग कल मछली का विरोध करेंगे. फिर चिकन का विरोध करेंगे और फिर इस बात का भी विरोध होगा कि हमें क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं पहनना चाहिए. फासीवाद को प्रश्रय देने वालों का विरोध कुछ इसी तरह का होता है. वे धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं.

अंडा विरोध की राजनीति के बीच लोरमी के विधायक धर्मजीत सिंह का बयान भी काफी दिलचस्प है. वे कहते हैं- मैं अंडा खाता हूं. चिकन खाता हूं. मटन खाता हूं...लेकिन अगर बहुत से लोगों की भावनाएं आहत होती है तो चाहूंगा कि स्कूलों में अंडे का वितरण न हो. बहरहाल छत्तीसगढ़ में इन दिनों हर कोई एक-दूसरे को अंडे का फंडा... समझाने की कवायद कर रहा है. एक फुटकर अंडा व्यापारी लालजी का कहना है-जबसे विरोध हो रहा है अंडा खूब बिक रहा है. सोशल मीडिया में एक मजेदार टिप्पणी चल रही है- बड़े दिनों के बाद विपक्ष को एक मुद्दा मिला.... मगर मिला क्या... अंडा !

 

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