अंदरखाने की बात

मामा के चलते कहीं डूब न जाय लुटिया भांजे की !

मामा के चलते कहीं डूब न जाय लुटिया भांजे की !

सोशल मीडिया में खबर तैर रही है कि मामाजी 15 साल तक सत्ता पर काबिज थे, लेकिन उन्होंने अपने सगे भांजे के लिए कभी कुछ नहीं किया. ( हालांकि यह सच नहीं है.) नाम न छापने की शर्त पर कुछ नेता कहते हैं कि मामाजी अपने भांजे को उपचुनाव में हारते हुए देखना चाहते थे इसलिए वे भांजे को टिकट दिलवाने के लिए जबरदस्त ढंग से प्रयासरत थे.भांजे को जब यह बात कुछ युवा नेताओं ने समझायी तो वे समझ गए. टिकट लोधी समाज से जुड़े एक नेता को मिली और वे चुनाव हार गए.

इधर आचार संहिता लगने के पूर्व टिकट का वितरण तो हो गया है तो एक बार फिर इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया है कि क्या बदली हुई परिस्थितियों में मामाजी अपने भांजे की नैय्या पार लगा पाएंगे ?

राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि यदि मामाजी ने भांजे का साथ दिया तो मामाजी और उनके पुत्र को मांझी नैय्या ढूंढे किनारा जैसा गीत गाना पड़ेगा.

और अगर भांजे ने मामाजी के नाम की माला जपी तो भांजे की लुटिया डूबना तय है. प्रेक्षक मानते हैं कि मामाजी की इमेज बेहद खराब है. यदि इमेज अच्छी होती तो पार्टी 15 सीट पर नहीं सिमटती. इमेज थोड़ी बहुत भी सुधरी रहती तो पनामा पुत्र को लोकसभा के चुनाव में रिपीट कर दिया जाता. मार्केट में हवा है कि मामाजी और उनके परिवार से धीरे-धीरे किनारा किया जा रहा है. वैसे भांजे के सामने दो तरह की परेशानी है. पहली परेशानी मामाजी के खेमे से ही आनी है. दूसरी दुविधा तब शुरू होगी जब सामने लोधी समाज का कोई तगड़ा प्रत्याशी ललकारेगा. जानकार बताते हैं कि जैसे ही टिकट का ऐलान हुआ वैसे ही लोधी समाज एकजुट हो गया है. आनन-फानन में एक बैठक भी हो गई और यह फैसला कर लिया गया कि अब इलाका राजपरिवार को ढो नहीं पाएगा. सोशल मीडिया में वंशवाद-वंशवाद की गूंज भी होने लगी है.

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