देश
क्या सच में पत्रकार मुकेश चंद्रकार का हत्यारा मुख्यमंत्री निवास गया था ?
हत्याकांड में अफसरों की भूमिका को लेकर भी उठ रहे हैं सवाल... लेकिन अब तक कार्रवाई सिफर ?
रायपुर. छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने एक्स हैंडल में लिखा है-बड़े दुखी मन से कहना पड़ रहा है कि मुकेश चंद्रकार की मृत्यु के बाद भी सरकार ने अब तक उनके परिवार के लिए किसी भी प्रकार की सहायता राशि, नौकरी इत्यादि की घोषणा नहीं की है. सरकार को संवेदनशील होना चाहिए.पूर्व मुख्यमंत्री ने आगे लिखा है- जनता को अब तक यह जवाब भी नहीं मिला है कि ठेकेदार सुरेश चंद्रकार 15 दिन पहले मुख्यमंत्री निवास आया था या नहीं ? क्या पिछले 15 दिन के मुख्यमंत्री निवास के सीसीटीवी फुटेज और आगंतुक सूची को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए ?
मुकेश चंद्रकार की हत्या के बाद प्रदेश के गृहमंत्री विजय शर्मा ने हत्या में शामिल ठेकेदार सुरेश चंद्रकार को कांग्रेस का पदाधिकारी बताया था जबकि कांग्रेस के मीडिया प्रभारी सुशील आनंद शुक्ला का कहना था कि कुछ समय के लिए सुरेश को कांग्रेस का पदाधिकारी अवश्य बनाया गया था लेकिन प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के साथ ही वह भाजपा में शामिल हो गया था. उसे बस्तर में तीन जिलों के संगठन प्रभारी जी वेंकटेश ने बकायदा फूलमाला पहनाकर प्रवेश दिलवाया था. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी यह माना है कि सुरेश चंद्रकार जब तक कांग्रेस से जुड़ा था तब-तक उसने किसी पत्रकार की हत्या नहीं की थी, लेकिन भाजपा में शामिल होते ही उसने पत्रकार की हत्या करने की ताकत हासिल कर ली थीं क्योंकि उसे राजनीतिक संरक्षण मिल गया था.
बहरहाल पूर्व मुख्यमंत्री के इस गंभीर आरोप के बाद भाजपा में सन्नाटा पसर गया है. सीसीटीवी फुटेज की बात तो छोड़िए...कोई भी जिम्मेदार यह बताने को तैयार नहीं है कि आखिरकार ऐसी कौन सी परिस्थिति थी जिसकी वजह से अपराधिक गतिविधियों में लिप्त ठेकेदार को शुचिता का दावा करने वाली भाजपा में शामिल करना पड़ा था ?
सवाल-दर-सवाल
इधर पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या को एक हफ्ते होने जा रहे हैं लेकिन कई तरह के सुगबुगाते सवाल अब भी मुंह बाए खड़े हैं.
सबसे बड़ा सवाल तो यहीं है कि क्या पूरी जांच और कार्रवाई केवल सुरेश चंद्रकार और उसके भाई रितेश चंद्रकार तक ही सिमटी रहेगी.जबकि इस हत्या को राजनीति और प्रशासन का गठजोड़ माना जा रहा है.
1-बीजापुर के अलावा घटनास्थल का मुआयना करके लौटने वाले देश-प्रदेश के तमाम पत्रकार मानते हैं कि मुकेश की हत्या के पीछे परोक्ष या अपरोक्ष ढंग से बीजापुर के पुलिस कप्तान जितेंद्र यादव और वहां के थाना प्रभारी दुर्गेश शर्मा का अहम रोल रहा है...लेकिन सरकार ने अब तक दोनों पुलिस अफसरों को जिले से नहीं हटाया है. अफसरों पर यह मेहरबानी समझ से परे हैं?
2- जब सलवा जुडूम अभियान प्रारंभ हुआ था तब प्रदेश में भाजपा की ही सरकार थीं और सुरेश चंद्रकार स्पेशल पुलिस आफीसर यानि एसपीओ बनाया गया था. उसे किस अफसर ने एसपीओ बनाया था ?
3- एसपीओ बनने के बाद जब सुरेश ने वरिष्ठ पुलिस अफसरों से नजदीकियां बढ़ाई तब माओवादी उन्मूलन के नाम पर उसे थाने में कटीली तार यानी बारबेड़ वायर लगाने का ठेका दिया जाता रहा. इन ठेकों के पीछे कौन सा पुलिस अफसर शामिल था ?
4- एसपीओ की नौकरी छोड़ने के बाद जब सुरेश चंद्रकार सड़कों का निर्माण करने वाला ठेकेदार बना तब उसे किस अफसर की मेहरबानी से ए केटेगरी का लायसेंस मिला... जबकि उसने कभी भी सड़क बनाने का काम नहीं किया था. यह भी जांच का विषय है.
5- वर्ष 2015 में जब सुरेश को सड़क निर्माण का पहला ठेका मिला तब भी प्रदेश में भाजपा की सरकार थीं और लोकनिर्माण विभाग के अफसर उस पर विशेष रुप से मेहरबान थे. सुरेश को 54 करोड़ का एकमुश्त ठेका देने के पीछे मंत्रालय और बीजापुर के किन अफसरों अहम भूमिका निभाई थीं ?
6- यह देखें बगैर कि वर्ष 2015 में सौंपा गया काम गुणवत्ता के साथ संपन्न हुआ है या नहीं... सुरेश चंद्रकार की फर्म को मार्च 2024 में फिर से 195 करोड़ के सड़क निर्माण का नया काम ( कुटरू-फरसगढ़ ) सौंप दिया गया. इस मेहरबानी के पीछे लोक निर्माण विभाग के कौन से अफसर शामिल थे ?
7- बीजापुर में यह चर्चा आम है कि पत्रकार मुकेश चंद्रकार की हत्या से पहले सुरेश चंद्राकर ने लोक निर्माण विभाग के एक अफसर को तीन लाख रुपए देकर मामले को सुलटाने के लिए कहा था. सवाल यह है कि सरकार के बजाय हत्यारे ठेकेदार के लिए काम करने वाला वह अफसर कौन है और उस पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई ?
8- बीजापुर के एक इलाके की लगभग पांच एकड़ जमीन पर जहां सुरेश चंद्रकार ने अवैध ढंग से कब्जा कर रखा था उसे प्रशासन ने अब जाकर ध्वस्त कर दिया है. सवाल यह उठता है कि छह साल से कब्जे वाली इस जगह पर वन विभाग के अफसरों की पहले नजर क्यों नहीं पड़ी ?
9- सरकार के जीएसटी विभाग ने घटना के बाद अब जाकर सुरेश चंद्रकार के ठिकानों पर छापामार कार्रवाई कर लगभग दो करोड़ की कर चोरी पकड़ी है. विभाग के अफसर अब तक सो क्यों रहे थे ?
10- मौका-मुआयना से लौटने वाले पत्रकार बताते हैं कि जिस जगह पर मुकेश चंद्रकार की हत्या हुई है वह थाने से महज कुछ कदम की दूरी पर स्थित है और इस इलाके के आसपास नशे का कारोबार खूब फलता-फूलता रहा है. लगभग 12 हजार स्केवेयर फीट जमीन पर ठेकेदार ने अपने निजी कर्मचारियों के रहने के लिए आवास बनाया था. यह जमीन भी किस अफसर की मेहरबानी से मिली यह भी जांच का विषय है.
देशभर में देखने को मिल रहा है प्रतिवाद
मुकेश चंद्रकार की हत्या के बाद देशभर में आम नागरिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओ, लेखकों और पत्रकारों का प्रतिवाद देखने को मिल रहा है. इधर राजधानी रायपुर प्रेस कल्ब के सदस्यों ने जहां राजभवन तक मार्च किया तो आयोजित की गई एक विचार गोष्ठी में अमूमन सभी सदस्यों ने यह माना कि घटना के दौरान पुलिस अफसरों की भूमिका बेहद संदिग्ध थीं. वरिष्ठ पत्रकारों के एक प्रतिनिधि मंडल ने उचित जांच और कार्रवाई की मांग को लेकर मुख्यमंत्री से मुलाकात कर मामले की विस्तार से जानकारी दी है और अफसरों की संदिग्ध भूमिका के बारे में बताया है. खबर है कि जल्द ही जगदलपुर प्रेस कल्ब के वरिष्ठ सदस्य भी एसआईटी इंचार्ज मयंक गुर्जर से मुलाकात कर जांच के कुछ नए बिन्दुओं को शामिल करने की मांग करने वाले हैं. देश की राजधानी दिल्ली से भी पत्रकार संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बीजापुर आने की खबर है.
राजकुमार सोनी
98268 95207
विशेष टिप्पणी
छत्तीसगढ़ में छलिया और छैला बाबू अफसरों की भरमार !
नफरत के इस भयावह दौर में
मोहब्बत करना तो अच्छी बात है
लेकिन...पद और प्रभाव के जरिए
छलिया और छैला बाबू
बन जाने वाली लंपटई को
क्या जायज माना जा सकता है ?
इसे समाचार समझ लीजिए...टिप्पणी या खाली-पीली में दी जाने वाली कोई अनावश्यक सी सूचना...
इस टिप्पणी को लिखने वाला मोहब्बत का दुश्मन नहीं है. लिखने वाले का मानना है कि जो कोई भी मोहब्बत करता है... उसकी आंखे खूबसूरत हो जाती है और फिर वह अपने साथ-साथ दुनिया को बेहतर बनाने का ख्वाब देखने लगता है.
प्रेम करना अपराध नहीं है.
लेकिन...टिप्पणी लिखने वाला यह भी मानता है कि दो चीजें एक साथ नहीं हो सकती. पवित्रता का कोई पाखंड नहीं हो सकता और पाखंड वाली कोई पवित्रता नहीं हो सकती है.
छत्तीसगढ़ में कई आला अफसरों के बीच प्रेम के नाम पर जो कुछ भी चल रहा है उसे पाखंड वाली पवित्रता की श्रेणी में ही रखा जा सकता है.
छत्तीसगढ़ में एक आरटीआई एक्टिविस्ट है कुणाल शुक्ला. उन्होंने अपने एक्स हैंडल में छत्तीसगढ़ में पदस्थ अफसरों के कथित प्रेम प्रसंग को लेकर कई पोस्ट शेयर की है. उनकी पोस्टों के बाद तरह-तरह की चर्चाएं चल रही है. कुछ लोग अफसरों के प्रेम को जायज ठहरा रहे हैं तो कुछ का मानना है कि विवाहित अफसरों को सिविल आचरण सेवा अधिनियम का ख्याल रखते हुए ही कदम उठाना चाहिए.
अपनी एक पोस्ट में कुणाल ने बगैर नाम लिए लिखा है- छत्तीसगढ़ में फिलहाल दो कलेक्टर प्रेम के पंछी बने हुए है. प्रेम का पंछी बन जाना बुरी बात नहीं है...लेकिन माजरा यह है कि साहब पहले से ही शादी-शुदा है जबकि मेमसाब कुंवारी है. इश्क का आलम यह है कि मीटिंग के दौरान भी दोनों अफसरों के बीच वाट्सअप पर लव बर्ड्स का आदान-प्रदान चलते रहता है. कुणाल शुक्ला ने अपनी इस पोस्ट में और भी ज्यादा खुलकर जानकारी चस्पा की है... जिसे यहां लिखा नहीं जा सकता है.
कुणाल ने दूसरी पोस्ट भी एक जिले में पदस्थ कलेक्टर के बारे में है. इस पोस्ट में उन्होंने इशारों-इशारों में यह तो बताया ही है कि कलेक्टर साहब को साइकिल चलाकर रिकार्ड बनाने का शौक रहा है. एक्स हैंडल में दी गई सूचना में उल्लेखित है कि साइकिल चलाने वाले कलेक्टर साहब ने अपने एक मातहत की बीवी को ही हड़प लिया है.
चूंकि कुणाल शुक्ला आरटीआई एक्टिविस्ट है... इसलिए बीवी को खोने वाले शख्स ने उनसे मिलकर गुहार लगाई है कि वे आरटीआई लगाकर यह जानकारी हासिल करें कि उनकी बीवी कब-कब... कहां-कहां कलेक्टर के साथ आती-जाती रही है.
कुणाल की तीसरी पोस्ट के राडार में भी एक कलेक्टर ही है. इस पोस्ट में उन्होंने लिखा है-जब लोकसभा का चुनाव चल रहा था तब केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों ने बिना नंबर वाली एक गाड़ी को पकड़ा था. जवानों को लगा था कि बिना नंबर वाली गाड़ी से नगदी बरामद होगी. जब गाड़ी की डिक्की खोली गई तब नगदी की जगह इच्छाधारी नागिन निकली. मसला यह था कि कलेक्टर साहब अपनी प्रेयसी को डिक्की में छिपाकर घूमने निकले थे. पोस्ट में इस बात का भी जिक्र है कि कलेक्टर साहब की पत्नी भी एक अधिकारी है. उन्हें कलेक्टर की करतूतों के बारे में पता है इसलिए आए दिन उनके बीच जूतम-पैजार होते रहती है. ( बहुत अधिक विस्तार से जानकारी के लिए पाठकगण कुणाल शुक्ला के एक्स हैंडल को खंगाल सकते हैं.)
अभी हाल के दिनों में जशपुर जिले में पदस्थ वनमंडलाधिकारी जितेंद्र उपाध्याय पर भी एक महिला रेंजर ने गंभीर आरोप लगाए हैं. महिला रेंजर ने मुख्यमंत्री को भेजी गई शिकायत में साफ तौर पर कहा है कि एक बार वनमंडलाधिकारी सरकारी काम के बहाने उसे बिठाकर बाहर ले गए थे. वाहन में गलत काम करने की कोशिश की थीं लेकिन वह किसी तरह बच निकली. फिलहार वन अफसर की गिरफ्तारी नहीं हुई है. पुलिस का कहना है जांच चल रही है. जांच कब तक चलेगी पता नहीं. कोई साधारण इंसान होता तो पुलिस अब तक ठोंक-पीटकर सलाखों के पीछे कर देती.
इधर पुलिस ने मोहब्बत के नाम पर शादी का झांसा देने वाले कांकेर में पदस्थ रेंजर विजयंत तिवारी को दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार कर लिया है. बताते हैं कि विजयंत ने एक सहायक प्राध्यापक से पहले फेसबुक के जरिए दोस्ती गांठी. प्यार के जाल में फंसाया और फिर रायपुर शहर के एक नामी होटल में संबंध बनाया. जब महिला गर्भवती हुई तो आरोपी ने शादी करने से मना कर दिया और उसका गर्भपात करवा दिया.
कुछ समय पहले दिल्ली की एक महिला ने छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अधिकारी युवराज मरमट पर यौन शोषण का आरोप लगाया था. महिला का कहना था अफसर ने उसे पति से तलाक लेने के लिए मजबूर किया और फिर लगातार शारीरिक शोषण करता रहा जबकि आईएएस अफसर का कहना था कि महिला से उसकी जान-पहचान अवश्य थीं लेकिन अब महिला ब्लैकमेल कर रही है और डेढ़ करोड़ रुपए मांग रही है.
पाठकों को जांजगीर जिले में पदस्थ रहे कलेक्टर जनक प्रसाद पाठक का प्रकरण भी याद होगा. पाठक ने भी एक महिला को स्वयं के चैंबर में हवस का शिकार बनाया था. महिला का कहना था कि वह किसी काम के सिलसिले में कलेक्टर साहब से मिली थीं जब जान-पहचान हो गई कलेक्टर ने उसके साथ दुष्कर्म किया और उसके शिक्षक पति को नौकरी से निकालने की धमकी देता रहा. पुलिस लंबे समय तक पाठक को गिरफ्तार नहीं कर पाई. फिलहाल यह मामला कोर्ट में हैं और पाठक जमानत पर. इसी संगीन केस के चलते उनका प्रमोशन अटक गया है जबकि उनकी बैच के सारे अधिकारी प्रमोट हो गए हैं.
खबर तो यह भी है कि सरकार ने हाल के दिनों में प्रजातंत्र के चौथे प्रहरियों के विभाग का कामकाज देख रहे एक अफसर को भी सिर्फ इसलिए चलता कर दिया है क्योंकि वे सरकार का चेहरा चमकाने के बजाय संविदा में पदस्थ दो महिलाकर्मियों के चेहरे पर जरूरत से ज्यादा क्रीम- पाउडर लगा रहे थे. बताते है कि मुंबई की रहने वाली किसी डिम्पल ने भी ( अभिनेत्री कपाड़िया नहीं ) बड़े सिम्पल तरीके से अच्छा-खासा वारा-न्यारा कर दिया है.
छलिया और छैला बाबू अफसरों की करतूतों से किसकी छवि मलिन हो रही है यह बताने की जरूरत नहीं है. इधर प्रदेश का आम छत्तीसगढ़िया इस बात के लिए हैरान और परेशान है कि सभ्यताओं के सौम्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में ये सब क्या हो रहा है ?
राजकुमार सोनी
98268 95207
फिल्म
हमारे हिस्से का इरफ़ान
“अबे तरसते हैं लोग मुझसे acting सीखने के लिए, और तेरे पास टाइम नहीं है”
कुछ ऐसे ही शब्दों थे इरफान साहब के, जब बाबिल उन्हें ‘आज नहीं बाबा कल, कल पक्का’ कहके गच्चा दे रहा था।
बाबिल की परवरिश आम सेलेब्रिटी बच्चों से नहीं हुई थी। उसको इरफान साहब स्कूल नहीं भेजते थे। वो होम ट्यूशन पढ़ता था। वो नदी में तैरना सीखता था, वो पेड़ों पर चढ़ता-उतरता था। इनशॉर्ट, इरफान साहब के घर एक मोगली रहता था। इस मोगली को एक रोज़ एहसास हुआ कि उसके पिता क्या चीज़ हैं, क्या ग़जब फ़नकार हैं।
मोगली ने अपने बाबा से गुज़ारिश की कि वो actor बनना चाहता है।
इरफ़ान साहब ये सुना और कहा “धत्त तेरे की, बेटा जी, लग गए आपके”
इसके बाद बाबिल की ट्रैनिंग तो शुरु हुई, पर इरफ़ान साहब खुद दुनिया भर की फिल्मों में इतने मसरूफ़ रहने लगे कि घर में उनकी हाज़िरी घटती चली गई। छोटा बाबिल अपने जंगल का मोगली बना, कुछ समय तो उछल-कूद से दिल बहलाता रहा, पर एक उम्र बाद उसे भी संगी-साथियों की ज़रूरत महसूस होने लगी।
नतीजतन बाबिल लड़कपन की उम्र में पहुँचते ही मुंबई के टॉप स्कूल में एजुकेशन के साथ-साथ बढ़िया एसयूवी गाड़ी का भी मालिक बन गया। अब पासा घूम गया, इरफ़ान साहब उसके पीछे भागने लगे कि “अबे सुन ले, सीख ले, आ जा एक सीन है इसको ब्रेक करते हैं” पर बाबिल है तो लड़का ही, और लड़के जब हमउम्र लड़कों की दोस्ती और लड़कियों की संगत में आते हैं तो अनजाने में ही घर-परिवार को किनारे करने लगते हैं।
हालाँकि बाबिल आम बच्चों से ज़रा बेहतर है, इसलिए अचानक स्कूल में मिली पॉपुलरिटी से जल्द ही ऊबने लगा। पर तबतक वो मनहूस घड़ी आ चुकी थी, इरफ़ान साहब को बीमारियों के भेड़िये ने दबोच लिया था। इलाज चलता रहा, पहले घर पर, फिर अमेरिका में! इस दौरान बाबिल से जितना बन पड़ा, वो अपने बाबा के साथ ही रहा।
फिर कैंसर सुधरने लगा। घर वापसी हो गई। हालात उम्मीदज़दा लगने लगे पर आह-री किस्मत, पेट में एक इन्फेक्शन हो गया! डॉक्टर ने अंदाज़न कहा कि मैक्सिमम 3 दिन के लिए एडमिट कर दीजिए। हमें उम्मीद है कि उससे पहले ही हम घर वापस भेज देंगे।
इरफ़ान साहब घर से निकलने से पहले बोले “3 दिन में आता हूँ, फिर सिखाऊँगा तुझे, बस तीन दिन और इंतेज़ार कर...”
पर मगर अफ़सोस, इरफ़ान साहब लौटकर नहीं आए और अपना अर्बन मोगली, एक बार फिर अकेला रह गया।
CUT TO:
मैं रेलवे मैन से जुड़ा एक इंटरव्यू देख रहा था। चंद बातों के बाद ही बाबिल ने बड़ी मासूमियत से कहा कि “केके सर के सेट पर होने से, मुझे एक पल भी ऐसा नहीं लगा कि बाबा नहीं हैं, मैं इनसे जो पूछता था, वो झट से बता देते थे”
इसके साथ ही बाबिल बोला “मेरी हिन्दी बहुत अच्छी नहीं है और मुझे इस बात पर शर्म आती है, मैं सीख रहा हूँ और बेहतर कर रहा हूँ”
इसके तुरंत बाद ही ऑडियंस में से किसी ने इरफ़ान साहब की एक फिल्म के बारे में कुछ कहा तो बाबिल बच्चों की तरह उछलकर अपना इक्साइट्मेंट दिखाने लगा।
एक बात गौर करिए कि हम उस दौर में हैं जहाँ दुनिया की, साथी कलाकारों की, यहाँ तक की अपने बाप तक की इज्ज़त भी फॉर्मैलिटी में की जा रही है क्योंकि इंडस्ट्री में ये सब कूल नहीं लगता है।
ऐसे माहौल के बीच, एक 25 साल का लड़का, बिना किसी फूँ-फाँ के, बॉय नेक्स्ट डोर सूरत वाला, जो दिल में है वही मुँह पर लाने में संकोच न करता, जिसकी मुस्कुराहट में इरफ़ान साहब झलक बसती हो, वो इंडस्ट्री में आता है और तुरंत सबका लाड़ला बन जाता है।
सबसे अच्छी बात ये है कि बाबिल acting करते वक़्त इरफ़ान खान बनने की कोशिश नहीं करता। पर फिर भी, हम सिनेमा दीवाने लोग, उसको देखकर अपने हिस्से का इरफ़ान खान जी लेते हैं।
#सहर