देश

धवलपुर के दंतेश्वरी मंदिर के लिए पक्का रास्ता की मांग

गरियाबंद. गरियाबंद जिले के वनग्राम धवलपुर में दंतेश्वरी माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है. श्रद्धालुओं की आस्था है यहां पूजा-अर्चना से जीवन की बहुत सी दिक्कतों का समाधान हो जाता है, लेकिन मंदिर जाने के लिए श्रद्धालुओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यहां पहुंचने का मार्ग काफी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. इसके अलावा रास्ता बेहद संकीर्ण यानी सकरा भी है. धवलपुर और उसके आसपास के ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन से कई मर्तबा पक्का मार्ग बनाने की मांग की है, लेकिन उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया है. प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद एक बार फिर ग्रामीणों ने जिले के जिम्मेदार अधिकारियों से पक्का मार्ग निर्माण करने की अपील की है.

 

विशेष टिप्पणी

भूपेश बघेल की कार्यशैली से छत्तीसगढ़ के नारंगी पत्रकारों के पेट में उठा दर्द

जनता को दी जाने वाली राहत से परेशान है छत्तीसगढ़ के नारंगी पत्रकार

छत्तीसगढ़ के नारंगी पत्रकार ( थोड़े-बहुत कथित बुद्धिजीवी भी ) इस बात से परेशान चल रहे हैं कि भूपेश बघेल अपनी सभाओं में जनता को फौरी राहत देने की बात क्यों करते हैं ? नारंगी पत्रकार राहत को रेवड़ी तो नहीं कहते… लेकिन अपनी खबरों और इधर-उधर के प्रचार में यह जरूर कहते हैं कि जनता को मुफ्तखोरी की आदत से बचाना राजनीति का धर्म होना चाहिए. नारंगी पत्रकारों और कथित बुद्धिजीवियों का पका-पकाया यह भी तर्क है कि जो कुछ भी फ्री में वितरित होता है उसका पैसा हमारे आपके टैक्स से ही वसूला जाता है.

नारंगी पत्रकार जनता को भूखमरी और गरीबी में लिथड़ी जनता बनाए रखने के पक्ष में दिखाई देते हैं और चाहते हैं कि लंबा राजनीतिक विमर्श चलता रहे. विमर्श के लिए स्वयंसेवी संस्थाएं कार्यशालाएं आयोजित करती रहे. कार्यशाला का खर्च…सरकार के किसी विभाग से वसूला जाता रहे और फिर तरह- तरह के पकवान वाले सत्रों के बीच इस बात पर मंथन चलता रहे कि जनता मुफ्तखोर क्यों है?

नारंगी पत्रकारों को कांग्रेस की राहत में तो मुफ्तखोरी दिखाई देती है, लेकिन वे कभी इस बात पर चर्चा नहीं करते कि अस्सी करोड़ जनता को फ्री में राशन देने का ऐलान करने वाली मोदी सरकार कौन सा तीर मार रही है? छत्तीसगढ़ में बड़े-बड़े विज्ञापनों के जरिए जारी की गई मोदी की गांरटी को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए ? राहत को रेवड़ी कल्चर बताने वाली मोदी सरकार क्या हर मतदाता को पनीर-चिल्ली या चिकन टिक्के का वितरण करने जा रही है ?

खुद को लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रहरी बताने वाले नारंगी गैंग ने जनता को कभी यह नहीं बताया कि जिस अखबार समूह या चैनल से वे जुड़े हुए हैं उसके मालिकों ने चुनाव में राजनीतिक दलों से किस तरह का पैकेज वसूला है ? छत्तीसगढ़ की जनता को कभी यह तो बताना ही चाहिए कि मीडिया के मालिक और विज्ञापन प्रबंधक किस तरह से लैपटाप लेकर राजनीतिक दलों के पास जाते हैं और यह बताते हैं कि देखिए… हम आपका प्रचार इस भयानक तरीके से करने वाले है कि सामने वाला चित्त हो जाएगा. सच तो यह है कि छत्तीसगढ़ की मीडिया को दिया जाने वाला विज्ञापन ही बंद कर दिया जाय तो एक नहीं बल्कि पूरे दो चुनाव में किसानों का कर्ज माफ किया जा सकता है.

इस देश में कई ऐसे औद्योगिक घराने हैं जिनका कर्ज केंद्र की मोदी सरकार ने माफ कर दिया है. यदि भूपेश सरकार किसानों का कर्ज माफ कर रही है. महिलाओं को पंद्रह हजार रुपए सालाना देने की घोषणा कर रही है तो पेट में दर्द क्यों उठ रहा है? जनता को थोड़ी राहत मिल जाएगी तो परेशानी क्यों होनी चाहिए ?

छोटे-बड़े लगभग पचास उद्योगपति ऐसे हैं जो अरबो-खरबों का चूना लगाकर देश छोड़कर भाग चुके हैं. छत्तीसगढ़ ही नहीं देश के किसी भी नारंगी पत्रकार ने कभी यह नहीं लिखा कि ऐसे तमाम लोगों को घसीटकर देश लाना चाहिए और उनसे पाई-पाई वसूलना चाहिए.

लेकिन… नहीं साहब… जनता को रसोई गैस में पांच सौ रुपए की सब्सिडी देने की घोषणा से ही नारंगियों की जान निकल रही है.

पवित्रता सीधे तौर पर पवित्रता होती है. पवित्रता का कोई पाखंड नहीं होता और पाखंड वाली कोई पवित्रता नहीं होती. नारंगी गैंग को पाखंड के आवरण में लिपटी पवित्रता छोड़ देनी चाहिए. जनवाद के जिस कंबल को ओढ़कर वे सोते हैं उसमें इतने ज्यादा छिद्र है कि सबको…सब कुछ दिखता है.

सबको यह साफ तौर पर दिखता है कि कौन सा पत्रकार सांप्रदायिक ताकतों के साथ खड़ा है और कौन सा तटस्थ या निष्पक्ष रहने का ढोंग करते हुए मलाई छान रहा है.

 

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध

-दिनकर

देश एक भयावह दौर से गुजर रहा है. नफरत की राजनीति ने हम सबका कुछ न कुछ छीन ही लिया है. यह समय तटस्थ और निष्पक्ष रहने का बिल्कुल नहीं है. सांप्रदायिकता सबसे बड़ी चुनौती है और इस चुनौती के खिलाफ जंग एक जरूरी मसला है. युद्ध में यह आवश्यक नहीं होता है कि आपके पास तेजधार हथियार हो. कई बार युद्ध शोषक पक्ष का हथियार छीनकर भी लड़ा जाता है.

इस भयावह समय में तटस्थ या निष्पक्ष रहने की बात वहीं कर सकता है जिसके पास कोई रीढ़ नहीं है. ये वहीं लोग है जिनके पूर्वज सावरकर के कामों को जायज ठहराते थे और मानते थे कि अंग्रेज यदि माफी के बाद सावरकर पेंशन देते थे तो बिल्कुल सही देते थे क्योंकि सावरकर भी एक इंसान था. ऐसे लोगों की नजरों में एक निहत्थे बुर्जुग पर गोली दागने वाला गोड़से भी एक मानव ही है.

नारंगी पत्रकारों की क्या पहचान ?

नारंगी पत्रकारों की फौज देश के हर मीडिया संस्थानों में मौजूद है. छत्तीसगढ़ के अमूमन हर मीडिया संस्थानों में नारंगी चंपादक और पत्रकारों की उपस्थिति कायम है. प्रदेश के आधे से ज्यादा वेबसाइट या पोर्टल चलाने वाले लोग नारंगी गैंग का हिस्सा है. आप इनकी खबरों के कंटेंट से यह समझ सकते हैं कि वे कितना कुछ भयानक सोच रहे हैं. सांप्रदायिकता इनके लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं है. इनके लिए सबसे बड़ा मसला है कि राम मंदिर का निर्माण नरेंद्र दामोदार दास मोदी किस शिद्दत के साथ कर रहे हैं. जैसे मोदी के अलावा कोई और दूसरा राम मंदिर को बना ही नहीं सकता था. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राम गमन पथ के निर्माण पर जोर देते हैं तो इन्हें खराब लगता है. नारंगियों को लगता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम राम का नाम तो दूसरा कोई और ले ही नहीं सकता. इनके लिए रोजी-रोजगार कोई मसला नहीं है. इनकी चिन्ता का विषय यह है कि छत्तीसगढ़ में खूब धर्मान्तरण हो रहा है. नारंगी पत्रकारों को फलने-फूलने के लिए आर्थिक मदद देने में वे दल भी शामिल हैं जो आपदा में अवसर को प्रमुख मानते हैं.

नारंगी वे ही नहीं है जो एक खास दल से जुड़े हुए हैं. नारंगी वे लोग भी है जो जाने-अनजाने में ही सही...छत्तीसगढ़ में सांप्रदायिक ताकतों को फलने-फूलने का अवसर देने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं. ये वे लोग हैं जो अपनी खबरों या यू ट्यूब चैनलों के जरिए यह नैरेटिव बना रहे हैं कि छत्तीसगढ़ का पूरा चुनाव फंसा हुआ है. ऐसे तमाम लोगों ने दिल्ली के पत्रकारों के साथ बकायदा बैठक कर गलत फीडबैक प्रेषित किया है. कई चंपादकों के दफ्तर में नारंगी समूह के लिए काम करने वालों की बैठक होने की भी सूचना है.

अपने आसपास देखिएगा... कहीं आपका कोई दोस्त... या पत्रकार नारंगी तो नहीं है ?

यदि हैं तो.... सावधान

 

राजकुमार सोनी

98268 95207

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

फिल्म

हमारे हिस्से का इरफ़ान

“अबे तरसते हैं लोग मुझसे acting सीखने के लिए, और तेरे पास टाइम नहीं है”

कुछ ऐसे ही शब्दों थे इरफान साहब के, जब बाबिल उन्हें ‘आज नहीं बाबा कल, कल पक्का’ कहके गच्चा दे रहा था।

बाबिल की परवरिश आम सेलेब्रिटी बच्चों से नहीं हुई थी। उसको इरफान साहब स्कूल नहीं भेजते थे। वो होम ट्यूशन पढ़ता था। वो नदी में तैरना सीखता था, वो पेड़ों पर चढ़ता-उतरता था। इनशॉर्ट, इरफान साहब के घर एक मोगली रहता था। इस मोगली को एक रोज़ एहसास हुआ कि उसके पिता क्या चीज़ हैं, क्या ग़जब फ़नकार हैं।

मोगली ने अपने बाबा से गुज़ारिश की कि वो actor बनना चाहता है।

इरफ़ान साहब ये सुना और कहा “धत्त तेरे की, बेटा जी, लग गए आपके”

इसके बाद बाबिल की ट्रैनिंग तो शुरु हुई, पर इरफ़ान साहब खुद दुनिया भर की फिल्मों में इतने मसरूफ़ रहने लगे कि घर में उनकी हाज़िरी घटती चली गई। छोटा बाबिल अपने जंगल का मोगली बना, कुछ समय तो उछल-कूद से दिल बहलाता रहा, पर एक उम्र बाद उसे भी संगी-साथियों की ज़रूरत महसूस होने लगी।

नतीजतन बाबिल लड़कपन की उम्र में पहुँचते ही मुंबई के टॉप स्कूल में एजुकेशन के साथ-साथ बढ़िया एसयूवी गाड़ी का भी मालिक बन गया। अब पासा घूम गया, इरफ़ान साहब उसके पीछे भागने लगे कि “अबे सुन ले, सीख ले, आ जा एक सीन है इसको ब्रेक करते हैं” पर बाबिल है तो लड़का ही, और लड़के जब हमउम्र लड़कों की दोस्ती और लड़कियों की संगत में आते हैं तो अनजाने में ही घर-परिवार को किनारे करने लगते हैं।

हालाँकि बाबिल आम बच्चों से ज़रा बेहतर है, इसलिए अचानक स्कूल में मिली पॉपुलरिटी से जल्द ही ऊबने लगा। पर तबतक वो मनहूस घड़ी आ चुकी थी, इरफ़ान साहब को बीमारियों के भेड़िये ने दबोच लिया था। इलाज चलता रहा, पहले घर पर, फिर अमेरिका में! इस दौरान बाबिल से जितना बन पड़ा, वो अपने बाबा के साथ ही रहा।

फिर कैंसर सुधरने लगा। घर वापसी हो गई। हालात उम्मीदज़दा लगने लगे पर आह-री किस्मत, पेट में एक इन्फेक्शन हो गया! डॉक्टर ने अंदाज़न कहा कि मैक्सिमम 3 दिन के लिए एडमिट कर दीजिए। हमें उम्मीद है कि उससे पहले ही हम घर वापस भेज देंगे।

इरफ़ान साहब घर से निकलने से पहले बोले “3 दिन में आता हूँ, फिर सिखाऊँगा तुझे, बस तीन दिन और इंतेज़ार कर...”

पर मगर अफ़सोस, इरफ़ान साहब लौटकर नहीं आए और अपना अर्बन मोगली, एक बार फिर अकेला रह गया।

CUT TO:

मैं रेलवे मैन से जुड़ा एक इंटरव्यू देख रहा था। चंद बातों के बाद ही बाबिल ने बड़ी मासूमियत से कहा कि “केके सर के सेट पर होने से, मुझे एक पल भी ऐसा नहीं लगा कि बाबा नहीं हैं, मैं इनसे जो पूछता था, वो झट से बता देते थे”

इसके साथ ही बाबिल बोला “मेरी हिन्दी बहुत अच्छी नहीं है और मुझे इस बात पर शर्म आती है, मैं सीख रहा हूँ और बेहतर कर रहा हूँ”

इसके तुरंत बाद ही ऑडियंस में से किसी ने इरफ़ान साहब की एक फिल्म के बारे में कुछ कहा तो बाबिल बच्चों की तरह उछलकर अपना इक्साइट्मेंट दिखाने लगा।

एक बात गौर करिए कि हम उस दौर में हैं जहाँ दुनिया की, साथी कलाकारों की, यहाँ तक की अपने बाप तक की इज्ज़त भी फॉर्मैलिटी में की जा रही है क्योंकि इंडस्ट्री में ये सब कूल नहीं लगता है।

ऐसे माहौल के बीच, एक 25 साल का लड़का, बिना किसी फूँ-फाँ के, बॉय नेक्स्ट डोर सूरत वाला, जो दिल में है वही मुँह पर लाने में संकोच न करता, जिसकी मुस्कुराहट में इरफ़ान साहब झलक बसती हो, वो इंडस्ट्री में आता है और तुरंत सबका लाड़ला बन जाता है।

सबसे अच्छी बात ये है कि बाबिल acting करते वक़्त इरफ़ान खान बनने की कोशिश नहीं करता। पर फिर भी, हम सिनेमा दीवाने लोग, उसको देखकर अपने हिस्से का इरफ़ान खान जी लेते हैं।

#सहर