साहित्य
जीवन जीने की कला है "योग"
"योग स्वयं की स्वयं के माध्यम से स्वयं तक पहुँचने की यात्रा है, गीता "
योग के विषय में कोई भी बात करने से पहले जान लेना आवश्यक है कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आदि काल में इसकी रचना, और वर्तमान समय में इसका ज्ञान एवं इसका प्रसार स्वहित से अधिक सर्व अर्थात सभी के हित को ध्यान में रखकर किया जाता रहा है। अगर हम योग को स्वयं को फिट रखने के लिए करते हैं तो यह बहुत अच्छी बात है लेकिन अगर हम इसे केवल एक प्रकार का व्यायाम मानते हैं तो यह हमारी बहुत बड़ी भूल है। आज जब 21 जून को सम्पूर्ण विश्व में योग दिवस बहुत ही जोर शोर से मनाया जाता है, तो आवश्यक हो जाता है कि हम योग की सीमाओं को कुछ विशेष प्रकार से शरीर को झुकाने और मोड़ने के अंदाज़, यानी कुछ शारीरिक आसनों तक ही समझने की भूल न करें। क्योंकि इस विषय में अगर कोई सबसे महत्वपूर्ण बात हमें पता होनी चाहिए तो वह यह है कि योग मात्र शारीर को स्वस्थ रखने का साधन न होकर इस से कहीं अधिक है।