साहित्य

विद्रूपताओं से टकराने वाला मानवता का कवि

विद्रूपताओं से टकराने वाला मानवता का कवि

देश के सुप्रसिद्ध कवि श्रीकांत वर्मा की पुण्यतिथि के मौके पर श्रीकांत वर्मा शोध पीठ की तरफ से 25 मई को बिलासपुर में उनके साहित्यिक अवदान को लेकर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस मौके पर श्री कांत वर्मा की पुत्रवधु एन्का वर्मा, नामचीन कवि नरेश सक्सेना, आलोचक जयप्रकाश उनके समकालीन सहचर विनोद भारद्वाज, चर्चित युवा लेखक गीत चतुर्वेदी, कवि शरद कोकाश, विनय साहिब, विश्वासी एक्का, जोशना बैनर्जी आडवानी के अलावा अनेक साहित्यकार और संस्कृतिकर्मियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की. कार्यक्रम में रंगकर्मी राजकमल नायक के निर्देशन में श्रीकांत वर्मा की कविताओं पर शानदार रंग प्रस्तुति दी गई. पीठ के अध्यक्ष रामकुमार तिवारी ने अतिथियों का स्वागत किया.साहित्य परिषद के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने स्मृति चिन्ह प्रदान किया. कार्यक्रम का कुशल संचालन महेश वर्मा ने किया.इस मौके पर साहित्यकार एवं बिलासपुर के आयुक्त संजय अलंग ने उन्हें विद्रूपताओं से टकराने वाला कवि बताते हुए महत्वपूर्ण अध्यक्षीय टिप्पणी की. अपना मोर्चा डॉट कॉम के पाठकों के लिए यहां हम उनकी वह टिप्पणी प्रस्तुत कर रहे हैं. 

 

श्रीकांत वर्मा समकालीन कविता, विशेषकर मुक्तिबोध के समय के उपरांत आए कवियों में,  अत्यधिक झकझोरने और उद्वेलित करने वाले माने जाते हैं। उनकी कविताएं अपने समय से सीधे टकराती हैं और अंदर तक तिलमिलाते हुए मन के माध्यम से प्रत्येक मानवता विरोधी ताकतों  और गतिविधियों से सीधे साक्षात्कार करती हैं। रविंद्र नाथ टैगोर के सम्पूर्ण मानवता वाद को सीधे आपके सामने प्रत्यक्ष रूप में खड़ा कर देती हैं। यह सीधे खड़ा करना मात्र टकराना नहीं है, यह विरोध में पश्चाताप के साथ मानवता की पुनःस्थापना की पहल भी है।

अधिकांश कविताएं और कवि जब समय और उसकी विद्रूपताओं से टकराते हैं तो वे मुखर होते हैं, पर हल बताने और समस्या को पछाड़ देने के उपाय करने में वे थोड़े पीछे हो जाते हैं। यहीं पर श्रीकांत वर्मा पूरी  ताकत और शिद्दत के साथ न सिर्फ समस्या से टकराते हैं, वरन उसके हल के साथ सामने नजर आते हैं।  यह उनकी कविताओं की अप्रतिम सफलता है। साथ ही यह सफलता आपको भी उद्वेलित कर सहमत करने में सफल होती है, बावजूद इसके कि, उनकी कविता में नाराजगी, असहमति और विरोध का स्वर अधिक तेज और मुखर है । उनकी कविता हर अमानवीयता, झूठ, फरेब आदि के विरुद्ध न सिर्फ प्रतिरोध का सार्थक वक्तव्य है, बल्कि थोड़ा धीरज विहीन हो कर हिंसक प्रतिशोध भी है। यह हड़बड़ी, उत्तेजना और उद्वेलन हृदय से कविता के रूप में व्यक्त होते हुए भी निर्ममता को दूर ही रखता है तथा मानवता, मानव कल्याण और प्रकृति से समन्वय के साथ आगे बढ़ता रहता है।  

उनकी कविता जनता की आवाज और जनता की कविता है। यह कवि समय से सीधा संवाद करता है। कवि की कविताएं मानव के जर्रे – जर्रे में मानवता को समेटती है। प्रकृति से सीधा जुड़ती है। अपने उद्देश्य और कर्म को सफल बनाती है। गालिब ने .....रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताये क्यों.... कह कर इस संवाद को एक अलग तरीके से सामने रखा था, जिसे श्रीकांत वर्मा ने नए आयाम और मुखर आवाज दी। वे, विगत शताब्दी के पचास के दशक में सामने आए नई कविता आंदोलन के प्रमुख कवियों में से एक थे।

श्रीकांत वर्मा की कविता विश्व और भारत के समाज और विशेषकर राजनीति के अंदर स्थित और व्याप्त व्याधि ग्रस्त अमानवीय व्यवहार, कार्यों और प्रवृत्तियों को पूरी ताकत से नंगा कर तीखे स्वर में अभिव्यक्त करती है। उन्होंने कविता में इतिहास से पर्याप्त प्रतीकों और बिम्बों को लिया। इतिहास पुरुषों और इतिहास के स्थलों के माध्यम से, आधुनिक जीवन के तीव्र द्वंद्वों को, निशाना बनाया और सफलता के साथ अभिव्यक्त और सम्प्रेषित किया। वे अंदर की आग और उससे तप्त बहते लावे को अभिव्यक्त करने में सफल रहे। वे सफल साहित्यकार के रूप में स्थापित हुए और जाने गए। 

यहाँ उनकी प्रसिद्ध कविता ‘कलिंग’ याद आती है।

कलिंग

केवल अशोक लौट रहा है

और सब

कलिंग का पता पूछ रहे हैं

केवल अशोक सिर झुकाए हुए है

और सब

विजेता की तरह चल रहे हैं

केवल अशोक के कानों में चीख़

गूँज रही है

और सब

हँसते-हँसते दोहरे हो रहे हैं

केवल अशोक ने शस्त्र रख दिए हैं

केवल अशोक

लड़ रहा था।

श्रीकांत वर्मा छत्तीसगढ़ के माटी पुत्र थे। उनका जन्म बिलासपुर में 18 सितम्बर 1931 को हुआ और मृत्यु 25 मई 1986 को।

 वे साहित्य के क्षेत्र में कवि - गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में ख्यात हुए और राजनीति से भी आए तथा राज्य सभा के सदस्य रहे। बिलासपुर में उनके नाम पर एक प्रमुख मार्ग का नाम है।

1957 में प्रकाशित 'भटका मेघ', 1967 में प्रकाशित 'मायादर्पण' और 'दिनारम्भ', 1973 में प्रकाशित 'जलसाघर' और 1984 में प्रकाशित 'मगध' और तदुपरांत ‘गरुड़ किसने देखा है’  इनकी काव्य-कृतियाँ हैं। वे 'मगध' काव्य संग्रह के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित हुए और यह पुस्तक अत्यधिक लोकप्रिय भी हुई।

दूसरी बार, अश्वत्थ और ब्यूक इनके उपन्यास हैं।

झाड़ी, संवाद, घर, ठंड, बांस तथा  साथ इनके कहानी-संग्रह है।

'अपोलो का रथ' यात्रा वृत्तान्त और आलोचना की पुस्तक ‘जिरह’ है। ‘बीसवीं शताब्दी के अंधेरे में' साक्षात्कार ग्रंथ है।

श्रीकांत वर्मा को प्रतिष्ठित सम्मान भी मिले। 1973 में मध्य प्रदेश सरकार का 'तुलसी सम्मान', 1984 में 'आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी पुरस्कार', 1981 में 'शिखर सम्मान', 1984 में कविता और राष्ट्रीय एकता के लिए केरल सरकार का 'कुमारन् आशान' राष्ट्रीय पुरस्कार, 1987 में 'मगध' नामक कविता संग्रह के लिये मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किए गए।

उनकी प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर तथा रायपुर में हुई। नागपुर विश्विद्यालय  से 1956 में हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।

इसके बाद वह दिल्ली चले गये और वहाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग एक दशक तक पत्रकार के रूप में कार्य किया। 1966 से 1977 तक दिनमान के विशेष संवाददाता रहे। 

1976 में राज्य सभा के सदस्य बने। कांग्रेस की टिकट पर। सत्तर के दशक के उत्तरार्ध से अस्सी के दशक के पूर्वार्ध तक इसी पार्टी के प्रवक्ता के रूप में कार्य करते रहे। 1980 में इंदिरा गांधी के राष्ट्रीय चुनाव अभियान के प्रमुख प्रबंधक रहे और 1984 में राजीव गांधी  के परामर्शदाता तथा राजनीतिक विश्लेषक के रूप में कार्य करते रहे। कांग्रेस को अपना "गरीबी हटाओ" का नारा दिया।

1970-71 और 1978 में आयोवा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित 'अन्तर राष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम' में 'विजिटिंग पोएट' के रूप में आमंत्रित हुए।

यहाँ उनकी सर्वकालीन प्रतिनिधि कविता ‘कोसल में विचारों की कमी है

का उल्लेख और समीचीन होगा।

 

कोसल में विचारों की कमी है

महाराज बधाई हो! महाराज की जय हो।

युद्ध नहीं हुआ—  लौट गए शत्रु।

वैसे हमारी तैयारी पूरी थी!

चार अक्षौहिणी थीं सेनाएँ, दस सहस्त्र अश्व,

लगभग इतने ही हाथी।

कोई कसर न थी!

युद्ध होता भी तो, नतीजा यही होता।

न उनके पास अस्त्र थे, न अश्व, न हाथी,

युद्ध हो भी कैसे सकता था?

निहत्थे थे वे।

उनमें से हरेक अकेला था

और हरेक यह कहता था

प्रत्येक अकेला होता है!

जो भी हो, जय यह आपकी है!

बधाई हो!

राजसूय पूरा हुआ, आप चक्रवर्ती हुए—

वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गए हैं

जैसे कि यह—

कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता,

कोसल में विचारों की कमी है।

 

 

संपर्क-

डॉ. संजय अलंग ( भाप्रसे ) 

बी – 48 आयुक्त निवास, लिंक रोड, सिविल लाइंस,

बिलासपुर, छत्तीसगढ़, पिनकोड- - 495001

[email protected] , 9425307888

 

 

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