विशेष टिप्पणी

क्या कर रहे हो आजकल ?

क्या कर रहे हो आजकल ?

राजकुमार सोनी

इस खाली समय में बहुत से लोग खाली है. बेरोजगार तो खाली थे ही, लेकिन जिनके पास रोजगार हैं वे भी इन दिनों खाली है.

हालांकि यह कहना सही नहीं है कि बहुत से लोग खाली है. बहुत से लोग मैसूर पाक बना रहे हैं. कुछ ने पाव-भाजी बनाना सीख लिया है. कुछेक को आगे चलकर गुपचुप का ठेला लगाना है, इसलिए वे खट्टे पानी के साथ गुपचुप की फोटो फेसबुक पर लोड़ कर रहे हैं. कुछेक ने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बहुत महत्वपूर्ण मानते हुए काढ़ा बनाना सीख लिया है. कुछेक इसी चिंता में मरे जा रहे हैं कि घर की बनी हुई मिठाई खाकर शुगर पर कंट्रोल कैसे किया जा सकता है. बहुत से लोगों ने इन दिनों ऐसी-ऐसी मिठाईयों का निर्माण किया हैं जिसका नाम बाप जन्म में किसी ने नहीं सुना है. एक भक्त ने एक नई मिठाई ईजाद की है. नाम रखा है- मोको. पूछने पर पता चला कि मोदी से मो लिया है और कोरोना से को.

बहुत से लोग बेहद पारदर्शी है. आखिर वे आपके हमारे दोस्त है. ऐसे तमाम दोस्त लगातार बता रहे हैं कि वे सुबह चार बजे उठ जाते हैं. राजश्री गुटखे का मिलना दूभर हो चला है इसलिए एक गिलास गर्म पानी पीते हैं ताकि प्रेशर बन जाय. प्रेशर बनते ही निवृत होने के लिए दौड़ लगाते हैं और फिर पीटी ( मतलब व्यायाम ) करते हैं. थोड़ा रुककर नहा लेते हैं. नहा लेने के बाद पूरे बदन को टॉवेल से रगड़-रगड़कर पौंछते हैं. फिर सरसो का तेल लगाते हैं. सरसो का तेल कड़वा होता है. मजाल है कि कोरोना कड़वे तेल से निपट लें. तेल मालिश के बाद नाश्ता होता है. कभी अंडा-आमलेट तो कभी इडली. कभी दोसा तो कभी कटलेट. ऐसे तमाम मित्रों का कहना है कि जीवन एक ही बार मिला है. हम जीते क्यों है... खाने के लिए. इसलिए तमाम तरह के पकवान खाओ और मर जाओ.

बहुत से लोग टीवी पर रामायण देखते हैं. महाभारत देखते हैं. बहुत से लोग नहीं देखते. जो नहीं देखते वे ऑनलाइन तीन पत्ती खेलते हैं. बहुत सी महिलाएं साड़ी चेंज करो प्रतियोगिता में शामिल है तो कुछ लोगों की दिलचस्पी इस बात में हैं कि वे पिछले जन्म में क्या थे?

मेरे एक साहित्यकार मित्र ने फेसबुक पर पोस्ट साझा की. पोस्ट में लिखा हुआ था- आप पिछले जन्म में राजा थे और अपनी प्रजा के हर सुख-दुख में शामिल रहते थे. मित्र की पोस्ट पर कमेंट आए- वाह भैय्या क्या बात है. आप तो अभी भी चंदेरी के राजा लगते हो. मित्र के चक्कर में मुझे भी अपना पिछला जन्म जानने की जिज्ञासा हुई. ( यह जन्म तो मोदी के कारण बुरी तरह से खराब हो रहा है ) फेसबुक ने बताया कि मैं पिछले जन्म में लोहार था. ( अभी सुनार हूं )

जो लोग राजनीति में रुचि रखते हैं उन्हें फेसबुक से यह सुविधा भी मिली हुई है कि वे जान सकते हैं उनका व्यक्तित्व किस नेता से मिलता है. एक मित्र ने पोस्ट साझा की जिससे यह पता चला कि वह आगे चलकर मोदी बनने वाला है. फेसबुक पर इन दिनों कई तरह के मोदी दिख रहे हैं. फेसबुक से ही यह जानकारी मिली है कि बहुत से लोग अमित शाह भी बनना चाहते हैं.

बहुत से लोग घर में नाच रहे हैं. उनके टिक-टॉक वाले वीडियो को देखकर लग रहा है कि अगर वे बंबई चले गए होते तो मिथुन चक्रवर्ती और गोविंदा की वॉट लगा सकते थे.

कुछ लोग शाम को मोटा सा रजिस्टर लेकर कोरोके में अड़ियल-सड़ियल सा गाना गा रहे हैं. घर से बाहर नहीं निकलने के लिए जागरूकता अभियान चल रहा है तो सड़क पर पुलिस वाले भी अपनी खुजली मिटाने में लगे हुए हैं. बहुत से लोग रात को लूड़ो खेलते हैं. इधर अपन को अब जाकर पता चल रहा है कि लूडो से भी जुआ खेला जा सकता है. बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं. जब मास्टरजी के प्रश्नों का उत्तर नहीं देना होता है तो कह देते हैं- नेट स्लो हो गया है. बहुत से साधन-संपन्न दरूवे अब रात को एक टाइम ही दारू का सेवन कर पा रहे हैं. ऐसे तमाम दरूवे इस बात को लेकर दुखी है कि अगर जल्द ही लॉकडाउन नहीं खुला तो स्टॉक खत्म हो जाएगा. कुछेक मोदी सरकार को सुझाव दे रहे हैं कि वे कम से कम नाई की दुकान खोल दें अन्यथा उन्हें जामवंत बन कर घूमना पड़ जाएगा.

मीडिया के पास भी खूब काम है. अभी उनके पास सबसे बड़ा काम यहीं है कि हर समाचार में मस्जिद खोजनी है. टोपी पहने और दाढ़ी बढ़ाए लोगों को कव्हर करना कोई आसान काम नहीं है भाई ? बहुत दिमाग लगाना पड़ता है. कुत्ते की माफिक सूंघना पड़ता है तब जाकर एगंल मिल पाता है. आज की तारीख में मालिक दो रोटी तभी डालता है जब कई लोग मौत की आगोश में सो जाते हैं.

 

हो सकता है कि बहुत से वैधानिक / अवैधानिक कामों का जिक्र नहीं हो पाया हो. अगर आपकी नजर में कुछ छूट गया हो तो मुझे बता दीजिएगा. आपके कामों को भी शामिल कर लूंगा.

अपने रोजगार के बारे में अवश्य बताइगा.

अपनी बेकारी के दिनों में जब हॉफ चाय के साथ एक ब्रेड के टुकड़े को चबाकर... और मां के आंचल में बंधे पांच रुपए के मुड़े-तुड़े नोट को लेकर जब काम की तलाश में घर से बाहर निकलता था तब यह सवाल अक्सर मेरा पीछा करता था- क्या कर रहे हो आजकल ?

यह सवाल आत्मा को छलनी कर जाता था और भीतर ही भीतर कांप जाता था मैं.

मैं नहीं चाहता कि आपको कंपकंपी छूटे. इस चित्र को देखिए और सोचिए कि क्या आपके लायक इसमें कोई काम है?

 

 

 

 

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