विशेष टिप्पणी

लॉकडाउन के खोलने की दरपेश चुनौतियां

लॉकडाउन के खोलने की दरपेश चुनौतियां

कैलाश बनवासी

21 दिनों के अनिवार्य किन्तु अकस्मात घोषित लॉक डाउन के पश्चात् लाख टके का सवाल यह है कि आगे चार दिनों के बाद होगा क्या? लॉक डाउन जारी रहेगा, या इसमें कुछ छूट मिलेगी? ओडिशा सरकार ने दो दिन पहले ही अपने राज्य का लॉक डाउन 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया है.और विभिन्न चैनलों में इस बात की चर्चा है कि विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री—छत्तीसगढ़ समेत—इसके बढाए जाने के पक्ष में हैं. इस पर अभी विचारमंथन का दौर जारी है,जो कि सर्वाधिक उचित भी है कि ऐसे बेहद गंभीर,नाजुक और संवेदनशील मसले पर काफी गहराई से सोच-विचार कर ही निर्णय लिया जाए. इसे आनन-फानन में किसी देशभक्ति उत्सव या इवेंट में बदलने के विचार से कोसों दूर हटकर.

सूनी-सूनी गलियां और सड़कें,सन्नाटा,निर्जनता...यह सब देखते-देखते लॉक डाउन का एक लम्बा समय बीत जाने के बाद,सबके मन में  इससे जितनी जल्द हो उबर पाने की,और जीवन के पटरी पर लौट आने की बहुत स्वाभाविक इच्छा बनी हुई है. लेकिन दूसरी तरफ,इस समस्या की विकरालता और प्रकृति तत्काल भयभीत करती है. इस महामारी ने पूरे विश्व को,हमारे जन-जीवन को गहरे प्रभावित किया है. मरनेवालों की संख्या देश-विदेशों के मिलाकर एक लाख से ऊपर आ जाना इसकी भयावहता को बताने के लिए काफी है. इस पूरे दौर में बहुत अभावों के बीच भी जिस तरह से स्वास्थ्यकर्मी,पुलिस, प्रशासन, सेवाभावी एजेंसियां और संगठन इसका मुकाबला युद्धस्तर पर कर रहे हैं,देश-प्रदेश के लिए यह अत्यंत गौरव और गर्व का विषय है. ऐसे समय में इनके कर्तव्यनिष्ठता और सहयोग के लिए जितनी भी प्रसंशा की जाय,वह कम है. खासकर स्वास्थ्य विभाग जो कई तरह के अभावों,असुविधा के बाद इसमें जिस लगन और प्रतिबद्धता से,अपनी बीमारी का जोखिम लेकर भी डटा-जुटा हुआ है,उसे सलाम! ऐसी मिसाल संभवतः युद्धकाल में ही देखने को मिलती है.

अभी तक लॉक डाउन के अनतर्गत ज्यादातर लोगों को भी इसके खतरों की गंभीरता का,साथ ही इस दरमियान--मजबूरी में ही सही--उन्हें अपनी जिम्मेदारी का कुछ-कुछ अहसास हो गया है. यह अलग बात है कि कई लोग अभी भी इसे उस रूप में नहीं देख और समझ पा रहे हैं,जिसके कारण पुलिसिया/कानूनी  दबावों की जरूरत पेश आती है.सच्चाई यह भी है कि देश में विषम परिस्थितियों में लागू यह सर्वथा नए किस्म का जनता कर्फ्यू है,जिसकी व्यापक समझ नहीं बन सकी है. ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ की अवधारणा भी उनके लिए नयी है.इसलिए,लॉक डाउन में अगर रिलेक्सेशन मिलती है,तो यह सभी विभागों और प्रशासन के लिए जिम्मेदारी को और बढ़ानेवाला  काम होगा. इस छूट का मतलब दिनचर्या का फिर से पुराने ढर्रे पर लौट आने का तो कतई-कतई नहीं होगा. वहीं, इस लॉक डाउन से आज नही तो कल,बाहर आना ही है. तब प्रश्न है कि क्या, बहुत सतर्कता और जिम्मेदारी बरतते हुए विभिन्न राज्य सरकारें इसमें रिलेक्सेशन की तरफ बढ़ सकती हैं? जैसे हालात हैं उसमें फिर से उसी पटरी पर जीवन का कुछ हफ़्तों तो छोड़िये,महीनों में भी आ पाना असम्भव है ! देश की आर्थिक गति पर इससे सबसे बड़ा धक्का लगा है,जिसका आंकलन विषय विशेषग्य खरबों में कर रहे हैं. रेल,कल कारख़ाने बंद,ट्रक,टैक्सीयों,से लेकर इ-रिक्से सब बंद हैं. हैं, छोटे-मोटे उद्योग धंधे और निर्माण कार्य सब बंद हैं.जिसकी सबसे बड़ी मार दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ी है. बेरोजगारी में इन कामगारों की हालत बदतर हो गयी है. फिर कृषि में भी कम संकट और पीड़ा नहीं है.मजदूरों के अभाव में कटाई को तैयार फसल चौपट हुई जा रही है. अपनी फसलों को जानवरों के लिए चरने को छोड़ने के लिए किसानों/मालिकों को विवश होना पड़ रहा है.देश पर आ पड़े इस आर्थिक सुनामी से उबर पाना आसान नहीं होगा. असंगठित मजदूर,जो कुल मजदूरों की संख्या का 90 प्रतिशत हैं,जिनकी अनुमानित संख्या 35-40 करोड़ है, रास्ट्रीय स्तर पर इन्हें देखें तो इनमें से लाखों जीविकोपार्जन की अनिश्चिंतता के कारण अपने गाँव-घरों की ओर लौट गए हैं. इसलिए छोटे-मोटे दुकानों,व्यापारियों से लेकर उद्योग-धंधों को भी सँभालने में लंबा वक्त लगेगा. देश की सोयी आर्थिक स्थिति में कुछ बदलाव लाने.जन-जीवन को फिर गति देने  के लिए आवश्यकता अनुरूप  और सावधानीपूर्वक शुरुआत की जा सकती है.इन्हें दुबारा उनका जीवन लौटाना है,लेकिन उनका जीवन ले लेने की शर्त पर तो बिलकुल नहीं. इसलिए एक दीर्घकालिक सुनियोजित कार्यप्रणाली और व्यवस्था बनाने के बाद, क्रमशः छोटे-छोटे पॉकेट्स में ही इन्हें छूट दी जा सकती है.

अपने राज्य छत्तीसगढ़ में देखें, तो अभी दर्ज हुए कटघोरा के नए सात केस के अलावा बड़े पैमाने पर इससे संक्रमण की सूचना नहीं है.और कोरोना पॉजिटिव मरीजों के स्वस्थ होने की प्रगति शानदार है,जिसके लिए निश्चय ही मुख्यमंत्री सहित पूरा अमला ढेरों बधाई का हक़दार है. एहतियातन ऐसे  चिन्हित गहरे संवेदनशील क्षेत्रों को पूरी तरह सील किया जाकर अप्रभावित क्षेत्रों में सावधानीपूर्वक,नजर रखते हुए छूट दी जा सकती है.जैसे गांवों में अभी मनरेगा कार्य चलाये जा रहे हैं.यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बेघरबार,या कहीं फंसे हुए मजदूरों या काम न होने की स्थिति में उनके भोजन-राशन की व्यवस्था वैसे ही बरकरार रहे,वे आश्वस्त रहें, जिससे किसी किस्म की अफरा-तफरी ना मचे. और यहीं दानदाताओं,सेवाभावी लोगों,संगठनों से इस सम्बन्ध में यह कहना उचित लगता है,कि उनकी मदद की जरूरत ऐसे जरूरतमंद लोगों को अभी आगे बहुत लम्बे समय तक पड़ने वाली है.इसलिए केवल इसी फेस में उनकी उत्साही सहायता कर लेने से समस्या समाप्त नहीं होने वाली है.इस जज्बे को लम्बे समय तक निरंतर बरकरार रखने की जरूरत है. शासन सहित ऐसे सभी समाज सेवी संगठनों को इनके मदद की एक दीर्घकालिक योजना बनानी होगी, क्योंकि उनकी असली समस्या तो लॉक डाउन के इन फेसेज़ से बाहर आने के बाद शुरू होगी.आवश्यक सेवाओं के लिए ही सरकारी कार्यालय खोले जाएँ,जिसमें लॉक डाउन जैसी स्थिति निरंतर बनाकर रखी जाए. अप्रभावित क्षेत्रों,जिलों में इसमें किश्तों में धीरे-धीरे छूट दे देने से,और इनसे हासिल अनुभवों के आधार पर, आगे बड़े दायरे को छूट देने की ठोस रणनीति बनाने में मदद मिलेगी.

सबको जन-जीवन सामान्य होने का इन्तजार है.और उस दिशा में कदम बढ़ें,तो स्वभाविक है,सबको ख़ुशी होगी. ऐसे में महाकवि निराला की ये काव्य-पक्तियां कितनी प्रासंगिक हैं—

  अभी न होगा मेरा अंत

  पुष्प-पुष्प से तन्द्रालस लालसा खींच लूँगा मैं

  अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूंगा मैं

  द्वार दिखा दूंगा फिर उनको

  हैं मेरे वे जहां अनंत

  अभी न होगा मेरा अंत

 

 - लेखक का संपर्क नंबर- 9827993920   

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