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पांच अप्रैल को दीया और टार्च जलाने वाले भक्तों...जरा यह भी सोचना कि गरीब के घर का चूल्हा कैसे जलेगा ?

पांच अप्रैल को दीया और टार्च जलाने वाले भक्तों...जरा यह भी सोचना कि गरीब के घर का चूल्हा कैसे जलेगा ?

सोशल मीडिया में हो रही है जमकर आलोचना 

रायपुर. देश लॉकडाउन के भयावह दौर से गुजर रहा है. अब यह निश्चित नहीं है कि खाली हाथों को काम का सवाल जो चमगादड़ की तरह उलटा लटक गया है कब तलक सीधा हो पाएगा ? देश कब पटरी पर लौटेगा इसकी कोई अवधि तय नहीं है ? इन सारे सवालों से परे देश के प्रधान सेवक ने खाली-पीली बैठे हुए लोगों को दीया-मोमबत्ती और टार्च जलाने का एक नया काम थमा दिया है. हालांकि प्रधान सेवक के इस काम से वे लोग गदगद हो गए हैं जो थाली-ताली और शंख फूंकने वाले इंवेट का हिस्सा थे. ऐसे लोगों को देश की एक बड़ी आबादी भक्त मानती हैं. बहरहाल नई जिम्मेदारी मिलते ही भक्तों की टोली सक्रिय हो गई है. वैसे तो प्रधान सेवक के हर भक्त को लालबत्ती का दर्जा प्राप्त है फिर कुछ भक्त विशिष्ट से भी ज्यादा विशिष्ट है. ऐसे सभी अतिविशिष्ट भक्तों ने सोशल मीडिया में राष्ट्रद्रोहियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. ( यह प्रचारित है कि जो कोई भी प्रधान सेवक की चमचागिरी में शामिल नहीं है वह राष्ट्रद्रोही है. भक्तगण ऐसे तमाम देशद्रोहियों को दिन में दस-बीस बार पाकिस्तान भेजते रहते हैं. ) भक्तों को मोर्चा खोलने की जरूरत इसलिए भी आन पड़ी है क्योंकि प्रधान सेवक के नए इंवेट की जमकर आलोचना हो रही है. यहां हम कुछ तार्किक और गैर तार्किक टिप्पणियों को शामिल कर रहे हैं. इन टिप्पणियों के बाद अब आपको तय करना है कि पांच अप्रैल को आप किस भूमिका में रहेंगे ? अगर आपने प्रधान सेवक की बातों का अनुसरण करने का मन बना लिया है तब भी एक बार जरूर सोचिएगा कि क्या आपके एक दिन की दीया-बाती से गरीब के घर का अंधेरा दूर हो जाएगा. क्या गरीब के घर का चूल्हा जलने लगेगा ? क्या उसके घर से रोटी और दाल पकने की गंध आने लगेगी ?

एक भक्त ने लिखा है- हम अजर- अमर और अविनाशी आत्माएं है. हमारे असली स्वरूप में लाइट ही लाइट है... इसलिए दीया जलाने में कोई बुराई नहीं है. हम जो दीया जलाएंगे वह कोई मामूली दीया नहीं बल्कि प्रेम का दीया होगा.

एक भक्तन मंजू का विचार है- पांच तारीख को नौ बजे नौ मिनट के लिए दीया जलाने का सबसे बड़ा कारण यह है कि उस रोज आमद एकादशी है. जब मेघनाथ का वध नहीं हो पा रहा था तो इसी आमद एकादशी के दिन घी का दीपक जलाकर ऊर्जापूंज का निर्माण किया गया था. हमें अगर ऊर्जापूंज का निर्माण करना है तो दीया जलाना ही होगा.

एक भक्त का विचार कुछ इस तरह से वायरल हो रहा है- अगर हमारे प्रधान सेवक जी ने नौ बजे नौ मिनट के लिए मोमबत्ती जलाने को कहा है तो यूं ही नहीं कहा. विरोधियों को इसका सांइस हजम नहीं होगा. दरअसल कैंडल्टन यूर्निवर्सिटी के रिसर्चर कैंडलीन कलैंडर ने यह खोज काफी पहले कर ली थीं कि पिघलते हुए मोम में एक खास तरह का रसायन इवांकापेप्टाइट निकलता है. ये रसायन घातक कीटाणुओं को अपनी चपेट में ले लेता है. कल्पना कीजिए अगर करोड़ों मोमबत्ती एक साथ जलेगी तो कोरोना वायरस की लाश भी नहीं बचेगी. हमारे प्रधान सेवक जी भले ही स्कूल नहीं गए, लेकिन उनका दिमाग किसी प्रयोगशाला से कम नहीं है.

एक अन्य भक्त के महान उदगार है- 22 मार्च को जनता कर्फ्यू और पांच अप्रैल के बीच 14 दिन का अंतराल आता है. 22 तारीख को ताली-थाली बजाने से जो ध्वनि तरंग उत्पन्न हुई थी उससे 882 HZ फ्रीक्वेंसी की क्षमता वाले वायरस तो मर गए थे, लेकिन पांच प्रतिशत ऐसे वायरस बच गए हैं जो केवल प्रकाश तरंग से ही मरते हैं. ऐसे सभी वायरस को लाइट जला-जलाकर मारना है. हमारे प्रधानसेवक जी कोई भी निर्णय भावुकता में नहीं लेते बल्कि उनके हर निर्णय के पीछे विज्ञान छिपा होता है.

हमेशा की तरह बहुत से भक्तों ने यह मान लिया है कि प्रधान सेवक जी जो कहेंगे वे उनकी हर बात का पूरे मनोयोग से पालन करेंगे इसलिए  अब कुछ तार्किक टिप्पणियां-

राजेश बिजारणियां लिखते हैं- यह फासिज्म का लिटमस टेस्ट है. 22 मार्च के थाली-ताली बजाओ अभियान की सफलता के बाद यह देखा जाएगा कि दिमाग को हाईजैक करने में कितने प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. आपत्ति को अगर इंवेट में नहीं बदला तो फिर क्या मतलब....। इस अभियान की यही टैगलाइन ताकि स्मृतियों से आपत्ति का लोप हो जाय और इंवेट कायम रहे.

अरुण खामख्वाह ने पुष्या मित्रा की एक पोस्ट शेयर की है- मेरी तरह कुछ बेवकूफ सोच रहे थे कि टेस्ट की संख्या बढ़ाने की बात होगी. डाक्टरों की पीपीई संख्या बढ़ने का ऐलान होगा. लॉकडाउन की समीक्षा और आगे की योजना पर बात होगी. ठप पड़े रोजगार और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के बारे में बात होगी. और ज्यादा नहीं तो जिनके चश्मे का शीशा टूट गया है. बाल बढ़ गए हैं. नल की टोंटी टूट गई है. पंखा बिगड़ गया है. चप्पल का फीता टूट गया है. रेफ्रिजरेटर खराब हो गया है उनके लिए कुछ बात होगी... लेकिन पंडित जी तो एक और कर्मकांड थमा गए. हर चतुर सरकार बेवकूफ जनता के साथ यही व्यवहार करती है. उसे इंवेट और एंटरटेनमेंट में उलझा देती है ताकि उसकी कमजोरियों पर कम बात हो.

देश के चर्चित कवि कुमार अंबुज ने लिखा है- ध्वनि और प्रकाश अमर है. बाकी दुनिया तो फानी है. बसंत त्रिपाठी की एक पोस्ट पर कवि राजेश जोशी ने लिखा है- शायद प्रधान सेवक जी ने देशवासियों से दिमाग की बत्ती बंद करने को कहा है.

एक सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है- देश को पागलपन की तरफ लेकर जाने की कवायद चल रही है. इस  इंवेट के जरिए यह देखा जाएगा कि लोग उनकी बात को कितना मानते हैं और फिर किसी एक दिन लोगों को कहा जाएगा कि गरीब की झोपड़ी में आग लगा दो. जो लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं वे ऐसा कर सकते हैं. तानाशाह ऐसे ही हथकंडे अपनाता है.

अजय कुमार लिखते हैं- भला बताइए... जब सारा देश त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा है तो कहा जा रहा है कि दीपदान करके दीवाली मनाइए. हद है तमाशे की. शैलेश नितिन त्रिवेदी ने लिखा है- तूफान आने पर शुतुरमुर्ग अपनी गर्दन रेत में डूबो लेता है और सोचता है कि उसे कुछ नहीं होगा. बत्ती बुझाना भी रेत में गर्दन डुबोने जैसा है. देवेश तिवारी अमोरा ने लिखा है- भक्तों पिछली बार ताली बजाने को कहा था तो आप लोग ड्रम पीटने निकल गए थे. इस बार मशाल रैली मत निकाल लेना. सुशील आनंद शुक्ला का कहना है- मानवता पर विपदा आन खड़ी है और प्रधान सेवक को नौटंकी सूझ रही है. श्री कुमार मेनन की एक विचारणीय टिप्पणी है- अगर सारे लोग एक साथ एक ही समय में बिजली गुल कर देंगे तो पॉवर ग्रिड का क्या होगा ? कहीं ऐसा न हो कि फिर दोबारा बत्ती ही न जलें. यह विचार कई लोगों ने व्यक्त किए हैं- अगली बार तेंदू की लकड़ी में काला धागा लपेटकर फेंकना है. दस तारीख को दस बजे... दस मिनट तक. मनजीत कौर बल ने लिखा है- थाली-ताली बजाने के बाद मोमबत्ती का आइडिया नया है. ऐसे नए-नए आइडिया लाते कहां से हो साहब. कहीं ऐसा न हो कि देश में मोमबत्ती की कमी हो जाय. जितेंद्र नारायण ने लिखा है- देश के किसी नामी मनोरोग चिकित्सक से प्रधान सेवक के दिमाग की जांच बेहद आवश्यक हो गई है. संजय पराते ने लिखा है- टोने-टोटके से केवल भूत भागते हैं. कोरोना नहीं. यह बताइए कि पीड़ितों के इलाज के लिए क्या तैयारियां चल रही है ?

पीसी रथ ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा है- कल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने दीवाली तक कोरोना से सतर्कता बरतने की बात कही थी, लेकिन हमारे प्रधान सेवक ने कहा है कि दीवाली मनाओ. क्यों गरीबों और अर्थव्यवस्था का दीवाला निकाला जा रहा है ? चित्रकार रवींद्र कुंवर लिखते हैं- क्या मूर्खता वायरस से ज्यादा खतरनाक होता है कोरोना वायरस ? राजीव ध्यानी ने लिखा है- एक बात सीरियसली बताइए कि साहेब का दिमाग पूरी तरह से फिर गया है या फिर उन्हें किसी ने नया टोटका बताया है. दिनेश ध्रुव की टिप्णणी है- ताली और थाली इंवेट के बाद साहेब ने पेश किया है- अंधेरी रात में दीया तेरे हाथ में. भूलिएगा नहीं पांच अप्रैल ठीक रात के नौ बजे.

एक फेसबुकिए ने कुछ साधुओं और एक वरिष्ठ राजनेता की फोटो शेयर करते हुए लिखा है- देश के महान वैज्ञानिकों के साथ बैठक चल रही है. जल्द ही कोरोना की दवा मार्केट में आ जाएगी. महेश कुमार का कहना है- साहेब जी आप बोलने के पहले थोड़ा हिन्ट दे दिया करो. टीवी के एंकर एक से बढ़कर एक ऐलान करते रहते हैं और आप हो कि उनको जलील कर देते हो. कमल शुक्ला ने अपनी पोस्ट पर लिखा है- मूर्खों अगर इस बार भी इसकी बात मान लिए तो तय है कि अगले चरण में तुमको उलटा लटकाएगा. अमित कुमार चौहान- मित्रों.... केवल मोमबत्ती, टार्च और दीया जलाना है. ऐसा न हो कि चालीस रुपए वाली चायना की लाइट टांगने लग जाओ. सुशांत कहते हैं- जैसे ही अंधेरा होगा कोरोना घबरा जाएगा कि अरे साला... ये क्या हो गया. अंधेरे में कोरोना किसी को देख नहीं पाएगा और तभी हम बत्ती जला लेंगे और फिर उसको खोज-खोजकर मारेंगे. मनोज पांडेय ने लिखा है- अगली बार 12 तारीख को रात 12 बजे हम सबको 12 बार पड़ोसी की कुंडी खटखटानी है. पड़ोसी आपके भीतर के कोरोना की ऐसी-तैसी कर देगा. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक लिखते हैं- माना कि अंधेरा घना है... पर बेवकूफ बनाना कहां मना है. दीया जलाएंगे... कोरोना भगाएंगे. व्यंग्यकार विनोद साव ने लिखा है- ये लोग कैंडल लाइट डिनर वाले लोग है.  किशोर साहरिया ने लिखा है- अब लगने लगा है कि किसी आसुरी शक्ति ने द्वारपाल की बुद्वि हर ली है. प्रभात सिंह का कहना है- आज का ज्ञान यहीं है कि चिलम में गांजा नौ मिनट में ही खत्म हो जाता है. बम-बम भोले. आरपी सिंह ने लिखा है- देखना भाई... अस्पताल की लाइट मत बंद कर देना, वरना वेंटिलेटर वाले निपट जाएंगे. अजीत कुमार कहते हैं- क्या देश है अपना. टॉयलेट कहां करना है. हाथ कैसे धोना है. थाली इतने बजे पीटना है. दीया जलाना है. अरे कोई  बताएगा कि विश्वगुरू बनने में और कितना दिन लगेगा. वहीद ने लिखा है- लगता है साहेब किसी बंगाली बाबा के चक्कर में पड़ गए है. ऐसी बकलोली कौन करता है भाई. प्रमोद बेरिया ने कहा है- वाह क्या बात है. मुझसे भी ज्यादा मूर्ख एक आदमी है इस देश में.

प्रधान सेवक के नए आदेश के बाद किसी को निर्मल बाबा की याद आ रही है तो किसी को बापू आशाराम की. एक ने लिखा है- हे बाबा... सीधे-सीधे बता दो कृपा कहां पर अटकी है. तरूण बघेल ने कहा है- ताली-थाली ग्रुप डांस के बाद अब अंधभक्त दीप नृत्य प्रस्तुत करने की तैयारी में हैं. पत्रकार शिवशंकर सारथी ने लिखा है- प्रभु को बता दिया जाय कि अभी देश के हर घर में बिजली नहीं पहुंची है. आरिफा एविस कहती है- शहर में आग लगाने वाले अब घर को रौशन करने का हुक्म दे रहे हैं.

भूपेंदर चौधरी ने लिखा है- पहले थाली और दीया-मोमबत्ती. हंसिए मत, हल्के में मत लीजिए. महामारी का इस्तेमाल कर भेड़ मानसिकता का निर्माण किया जा रहा है. संकट के समय लोग-बाग तार्किक सोच को खो बैठते हैं. ऐसा समाज संकट के समय एक गॉडफादर को तलाशता है. कल इन्हीं भेड़ों को भेड़ियों को में बदलकर उन लोगों पर छोड़ा जाएगा जो आज भेड़ बनने से इंकार कर रहे हैं. कवि पथिक तारक का भी मानना है कि हम सब एक भेड़तंत्र में बदले जा रहे हैं. यह सब एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. नीलोत्पल शुक्ला की टिप्पणी सबसे ज्यादा गौर करने लायक है. उन्होंने लिखा है- वाह रे कॉन्फिडेंस... बत्ती चमकाने के लिए दो दिन का नोटिस और लॉकडाउन के लिए महज चार घंटे ?

 

 

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