सियासत

यूपी में भाजपा की होगी करारी हार... बनेगी सपा और कांग्रेस सरकार
नई दिल्ली. वैसे तो अधिकृत तौर पर यह 10 मार्च को ही साफ हो पाएगा कि उत्तर प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, लेकिन हाल- फिलहाल वैकल्पिक और सोशल मीडिया ने भाजपा की करारी हार सुनिश्चत कर दी है. चुनाव को यू ट्यूब चैनल और अन्य मीडिया के लिए कव्हर कर रहे पत्रकारों और राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि इस बार उत्तर प्रदेश में बदलाव की बयार बह रही है. यूपी में सपा और कांग्रेस ने मिल-जुलकर सरकार बनाने वाली स्थिति को हासिल कर लिया है.
यूपी में चुनाव के चार चरण हो चुके हैं. पहले चरण के चुनाव के बाद ही यह साफ हो गया था कि भाजपा की राह आसान नहीं रहने वाली है. दूसरे-तीसरे और चौथे चरण तक पहुंचते-पहुंचते फिजा ऐसी बनी है कि लोग-बाग खाली डिब्बा... खाली बोतल ले-ले मेरे यार... जैसा गाना गुनगुनाने लगे हैं. भाजपा को यह अहसास हो गया है कि चार चरणों के चुनाव में वह बुरी तरह से पिछड़ गई है. भाजपा अब इसकी भरपाई शेष बचे तीन चरणों पर पूरी ताकत के साथ लड़कर करना चाहती है. भाजपा अब काशी प्रांत की 71 सीटों पर जोर लगा रही है जहां उसे बढ़त मिलने की उम्मीद है. भाजपा मायावती की तारीफ कर उसे अपनी तरफ लाना चाहती है. क्योंकि उसे पता है कि अगर पूर्ण बहुमत नहीं मिला तो बसपा का समर्थन लिया जा सकता है. यही एक वजह है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह को एक सभा में यह कहना पड़ा है कि अभी बसपा का जनाधार खत्म नहीं हुआ है. हालांकि पूरे चुनाव में बसपा उस जोशों-खरोश के साथ नहीं लड़ रही है जैसा वह लड़ती रही है. राजनीति के धुंरधरों का कहना है कि इस चुनाव में बसपा के प्रत्याशी पिछले चुनाव की अपेक्षा थोड़े कमजोर है.
सोशल मीडिया में जहां देखिए वहां जनता भाजपा के प्रत्याशियों को दौड़ा-दौड़ाकर मारते हुए नजर आ रही है तो कुछ प्रत्याशी भरी सभा में कान पकड़कर उठक-बैठक करते हुए भी नजर आ रहे हैं. यूपी चुनाव को कव्हरेज कर रहे एक स्वतंत्र पत्रकार का दावा है कि इस चुनाव में भाजपा सौ सीटों को भी क्रास नहीं कर पाएगी. राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबेमानते हैं है कि तीन चरण के मतदान में भाजपा को पचास फ़ीसदी का नुक़सान हो चुका है. यह आगे भी बरकरार रहने वाला ही दिखता है. वैसे राजनीति के गलियारों में यह चर्चा भी आम है कि मोदी और अमित शाह ही योगी आदित्यनाथ की लुटिया डुबोने में लगे हुए हैं. यह बात भी लंबे समय से प्रचारित हैं कि संघ अगले पीएम के तौर पर अब योगी आदित्यनाथ को देखना चाहता है. इस प्रचार से मोदी समर्थक नाराज बताए जाते हैं. वैसे तो बंगाल चुनाव में ममता बेनर्जी के हाथों पराजय के बाद से ही भाजपा ढलान पर आ गई थीं. बंगाल चुनाव को जीतने के लिए मोदी और उनकी टीम ने पूरा लाव-लश्कर झोंक दिया था. वहां यूपी पैर्टन आजमाने की भरपूर कोशिश की गई, लेकिन बंगाल के पढ़े-लिखे समझदार मतदाताओं ने यूपी पैर्टन को खारिज कर दिया. प्रेक्षक मानते हैं कि यूपी चुनाव में अब खुद यूपी का पैर्टन चल नहीं पा रहा है. इस चुनाव के बाद सही मायनों में भाजपा की उलटी गिनती प्रारंभ हो जाएगी जिसका असर वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव में देखने को मिलेगा. यूपी चुनाव की एक खास बात यह भी है कि कल तक जो मुख्यधारा का मीडिया ( मतलब गोदी मीडिया ) अखिलेश और प्रियंका गांधी को सही ढंग से कव्हरेज नहीं करता था. अब वही मीडिया दोनों नेताओं को ठीक-ठाक जगह दे रहा है. कुछ बड़े अखबार और पत्रिकाओं ने तो बकायदा विशेष अंक भी प्रकाशित कर दिए हैं. द वीक और इंडिया टुडे ने अभी से स्थिति भांप ली है.गोदी मीडिया के बदलते व्यवहार को लेकर देश के प्रख्यात पत्रकार रवीश कुमार ने अपने फेसबुक वॉल पर एक बेहद जोरदार टिप्पणी लिखी है. यह टिप्पणी यह बताने के लिए काफी है कि ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है.
कवरेज से गायब विपक्ष कवर पर आने लगा है... अखिलेश आ रहे हैं क्या ?
विपक्ष कवर पर आने लगा है. पूरे चुनाव के दौरान यूपी के दो अख़बारों का कवरेज देखता रहा. ऐसा लगता था कि सपा के अखिलेश यादव पाँच सीट पर ही चुनाव लड़ रहे हैं. गोदी मीडिया ने अखिलेश को ग़ायब कर दिया. अगर अखिलेश चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें इन अख़बारों को मंगा कर पढ़ना चाहिए. उससे पता चलेगा कि वे यूपी में इतने बड़े नेता नहीं थे कि अख़बार उनकी पार्टी को जगह देते और यह भी पता चलेगा कि बिना मीडिया के चुनाव जीत सकते हैं. अगर नए मुख्यमंत्री में यह आत्मविश्वास आ जाएगा तो सरकार के पैसे से गोदी मीडिया का लालन पालन बंद हो जाएगा और जनता का पैसा बचेगा.
सबक योगी के लिए भी है. हारने पर भी और जीतने पर भी. गोदी मीडिया के एंकरों ने घटिया सवाल पूछ कर जनता की नज़र में उनकी हैसियत गिरा दी. योगी को यह खेल तब समझ नहीं आया होगा. उन्हें लगा होगा कि गोदी को चेक चला गया है तो ऐंकर हंसी ठिठोली कर रही है लेकिन इससे मोदी से भी बड़ा नेता बनने का सपना देखने वाले योगी की छवि ख़राब हो गई. गोदी एंकरों के सवालों ने फ़िक्स कर दिया कि उनके इंटरव्यू से कुछ ठोस न निकले. योगी का क़द छोटा होता रहे.
योगी को भी पता है कि परीक्षा में अच्छे अंक मुश्किल सवालों को हल करने पर मिलते हैं न कि अंदाज़ी टक्कर टिक मार्क करने पर. अगर योगी नहीं जीतते हैं तो सबसे पहले उन्हें गोदी मीडिया के हमले का ही सामना करना होगा. गोदी मीडिया उनकी हार को मोदी शाह का मास्टर स्ट्रोक बताएगा. कहेगा कि मोदी ने अपनी राह से काँटा निकाल दिया. योगी को यक़ीन नहीं होगा कि जिस गोदी मीडिया को इतने टुकड़े फेंके वह उनका मज़ाक़ उड़ा रहा है. योगी की हार पर पाला बदल रहा है.
अगर योगी जीत गए तब तो कोई बात नहीं. गोदी मीडिया को लेकर अपनी ग़लतियाँ जारी रखेंगे. फिर भी मुख्यमंत्री बनने पर योगी इतना तो समझ सकेंगे कि उनके विज्ञापनों का क्या हुआ. कवरेज से ग़ायब विपक्ष कवर पर कैसे आ गया?
क्या अखिलेश आ रहे हैं ?
पत्रकार प्रदीप कुमार लिखते हैं-
यही इंडिया टुडे है जिसने 10 साल पहले अखिलेश यादव पर कवर स्टोरी की थी और तफसील से बताया था की कैसे अखिलेश यादव उन दिनों कैबिनेट की मीटिंग में भी स्मार्ट फोन लेकर बिजी रहते थे.
कैसे बताया था कि लगभग तीन साल उन्हें समझ ही नही आया कि चल क्या रहा है सरकार में. सब नौकरशाह करते रहे . सब कुछ उनके इर्द गिर्द घेरा बनाए चापलूस मंडली निर्धारित करती रही.
आज उसी इंडिया टुडे ने अखिलेश यादव पर पॉजिटिव कवर स्टोरी की है तो लगता है बदलाव तय है इस बार.
जैसे मौसम बदलने का अंदाजा पशुओं पक्षियों के बरताव से लगाया जाता है उसी तरह इन मीडिया वाले चूहों से राजनीति की दिशा का अंदाजा लगाना कोई खास मुश्किल नहीं है.