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ऊर्जा विभाग में ओएसडी रहे रत्नम ने किया वेतन घोटाला... मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से शिकायत

ऊर्जा विभाग में ओएसडी रहे रत्नम ने किया वेतन घोटाला... मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से शिकायत

रायपुर. छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन को सत्रह महीने बीत चुके हैं. इस बीच पुरानी सरकार के एक से बढ़कर एक घोटाले सामने आते रहे. घोटालों के उजागर होने का सिलसिला अब भी थमा नहीं  है. अभी हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जनरेशन कंपनी के सेवानिवृत मुख्य अभियंता वीरेंद्र बिलैया ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मय दस्तावेज जानकारी भेजकर आरोप लगाया है कि ऊर्जा विभाग में विशेष सचिव की हैसियत से पदस्थ रहे एमएस रत्नम ने अपने चहेतों को उपकृत करने के लिए वेतन निर्धारण में बड़ा घोटाला किया है.

शिकायतकर्ता  जो जानकारी भेजी है उसके अनुसार एसबी अग्रवाल स्टेट पावर जनरेशन कंपनी में एमडी बनाए गए थे. इस कंपनी में एमडी बनने के पहले वे एनटीपीसी में पदस्थ थे और वर्ष 2010 में सेवानिवृत हो चुके थे, लेकिन एमएस रत्नम ने मार्च 2014 के वेतन को आधार बनाकर उसका निर्धारण किया जो पूरी तरह से गलत था. एनटीपीसी के कार्यपालक निदेशक को मई 2015 में 3,09,654 वेतन मिलता था जबकि श्री अग्रवाल को प्रतिमाह 3,75,000 रुपए ( तीन साल तक का भुगतान किया जाता रहा. इतना ही नहीं रत्नम ने बिजली बोर्ड के एक दूसरे एमडी केआरसी मूर्ति की संविदा नियुक्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उनके वेतन निर्धारण में सारा रिकार्ड ही तोड़ दिया था. मूर्ति भी एनटीपीसी से आए थे. उन्हें सेवानिवृति के समय मूल वेतन, महंगाई भत्ता, परफार्मेश लिंकड, मकान भत्ता, अवकाश नगदीकरण, अटेन्डेट एलाउंस सहित प्रतिमाह 5 लाख 54 हजार 755 रुपए का भुगतान किया जाता रहा. छत्तीसगढ़ में सेवानिवृत होने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों को संविदा नियुक्ति दिए जाने की स्थिति में वेतन निर्धारण के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं. बिजली कंपनी से सेवानिवृत हुए व्हीके श्रीवास्तव, एनटीपीसी से सेवानिवृत हुए अरुण शर्मा को सरकार ने छत्तीसगढ़ नियामक आयोग का सदस्य बनाया था. यहां तक सेवानिवृत न्यायाधीश आरबी सिंह भी लोकपाल बनाए गए थे. इन सभी को छत्तीसगढ़ राज्य संविदा नियुक्ति के अनुसार ही वेतन दिया जाता था, लेकिन एसबी अग्रवाल और केआरसी मूर्ति के वेतन निर्धारण के दौरान संविदा नियम के तहत होने वाले वेतन निर्धारण की धज्जियां उड़ा दी गई. जबकि जनरेशन कंपनी के एमडी पद के लिए अखबारों में जो विज्ञापन प्रकाशित किया गया वह 45900-76300 +5000 था.

नहीं था वेतन निर्धारण का अधिकार 

शिकायत में इस बात का भी उल्लेख है कि एमएस रत्नम बिजली उत्पादन कंपनी के अधिकारी थे. सरकार ने अपनी सुविधा के लिए उन्हें ऊर्जा विभाग में विशेष सचिव का ओहदा दिया था. नियमानुसार मूल रुप से ऊर्जा विभाग का ही कोई अधिकारी वेतन निर्धारण का काम कर सकता था, लेकिन रत्नम ने अवैधानिक ढंग से अपने चहेतों का वेतन निर्धारण किया. बिलैया का आरोप है कि रत्नम ने यह सब कुछ इसलिए किया क्योंकि वे अग्रवाल और मूर्ति के माध्यम से बिजली बोर्ड से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों का प्रमोशन व तबादला कर भ्रष्टाचार करते थे. एसबी अग्रवाल वर्ष 2014 से वर्ष 2017 तक प्रबंध निदेशक बने रहे. इसी दौरान मड़वा प्रोजेक्ट की लागत कई गुणा बढ़ गई. इस प्रोजेक्ट के चलते कई हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. शिकायतकर्ता का कहना है कि रत्नम ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर सरकार के कोष को चूना लगाने का काम किया है. जिन अधिकारियों को अतिरिक्त राशि का भुगतान किया गया है उनसे ब्याज सहित वसूली कर कठोर कार्रवाई अवश्य होनी चाहिए.

19 साल तक मंत्रालय में पदस्थापना का रिकार्ड

मंत्रालय में 19 साल तक प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ रहने का रिकार्ड भी एमएस रत्नम के नाम पर है. राज्य निर्माण से लेकर अब तक कई तरह के सचिव, मुख्य सचिव सेवानिवृत होकर घर बैठ गए,लेकिन रत्नम का कोई बाल बांका नहीं कर पाया. जब वे बिजली बोर्ड से मंत्रालय भेजे गए थे तब कार्यपालन अभियंता बनकर गए थे लेकिन जल्द ही उन्हें विशेष सचिव का दर्जा मिल गया. बिजली बोर्ड के कर्मचारियों और अधिकारियों का कहना है कि रत्नम कभी खुद को पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड का करीबी बताकर बचते रहे हैं तो कभी शिवराज सिंह का करीबी बनकर. उन पर संविदा में पदस्थ एक ऐसे अधिकारी का भी वरदहस्त रहा है जो इन दिनों सब कुछ छोड़-छाड़कर दिल्ली जा बसा है. प्रदेश में ठीक लोकसभा चुनाव से पहले जगह- जगह बिजली कटौती का खेल चला था तब इस खेल में रत्नम की भूमिका को लेकर भी सवाल उठे थे. बिजली बोर्ड अभियंता संघ के एक प्रमुख पदाधिकारी का कहना है कि छत्तीसगढ़ जब अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा था तब बस्तर के बारसूर प्रोजेक्ट में एमएस रत्नम की तैनाती की गई थी. रत्नम मुख्य रुप से सिविल इंजीनियर है जबकि बिजली विभाग का कामकाज समझने के लिए इलेक्ट्रिक इंजीनियर होना अनिवार्य है. पदाधिकारी का कहना है कि एक सिविल इंजीनियर की वजह से ऊर्जा विभाग को कई बार आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो और सीबीआई की जांच प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ा है.

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