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राजीव गांधी फाउंडेशन के सदस्यों ने दस्तक दी बस्तर के कोंडागांव में....और अवलोकन किया राजाराम त्रिपाठी की आधुनिक खेती का

राजीव गांधी फाउंडेशन के सदस्यों ने दस्तक दी बस्तर के कोंडागांव में....और अवलोकन किया राजाराम त्रिपाठी की आधुनिक खेती का

रायपुर. राजीव गांधी फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विजय महाजन और उनके सात सदस्यीय दल ने चंद दिनों पहले कोंडागांव के प्रगतिशील कृषक राजाराम त्रिपाठी के चिखलपुटी गांव में स्थित मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म हाउस पहुंचकर आधुनिक खेती पद्धति का अवलोकन किया. गौरतलब है कि राजीव गांधी फाउंडेशन वह महासंगठन है जिसकी अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी है. इस संगठन में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, चिदंबरम सहित अन्य कई अर्थशास्त्री जुड़े हुए हैं.

बीते रविवार को दल के विशेषज्ञों ने पेड़ों पर लगी हुई काली मिर्च को देखा तथा काली मिर्च की खेती से  होने वाली,प्रति एकड़ आय का  व्यवहारिक आंकलन किया. इतना ही नहीं पेड़ों पर लगी पकी हुई काली मिर्च तोड़कर चखी और काली मिर्च  की खेती तथा स्वाद दोनों की  तारीफ की. दल के सदस्य यह जानकर खुश हुए कि काली मिर्च की विशिष्ट प्रजाति जो बस्तर में ही विकसित की गई है वह साल - महुआ ,आम, नीम,इमली सहित सभी पेड़ों पर चढ़कर बहुत अच्छा उत्पादन दे रही है. इससे बस्तर के बचे-खुचे जंगलों को काली मिर्च लगाकर कटने से बचाया जा सकता है तथा स्थानीय जनजातीय समुदाय की आमदनी को दुगुनी तिगुनी करके उनका जीवन स्तर ऊंचा उठाया जा सकता है. इस बारे में काली मिर्च की त्रिस्तरीय जैविक खेती की पद्धति के बारे मे मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के अनुराग त्रिपाठी ने विस्तार पूर्वक जानकारी दी.

कृषक राजाराम त्रिपाठी ने आने वाली सदी की फसल के नाम से जाने वाली स्टीविया यानी की मीठी तुलसी के बारे में बताया. उन्होंने सदस्यों से कहा कि आने वाले दिनों में बस्तर पूरे देश में स्टीविया की खेती के लिए भी जाना जाएगा. उन्होंने कहा कि बस्तर में स्थानीय  प्रगतिशील किसानों को इसकी खेती से जोड़ते हुए स्टीविया को  बड़े पैमाने पर लगाने की कोशिश चल रही है. उन्होंने कहा कि स्टीविया की पत्तियों से बिना कैलोरी वाली शक्कर भी बस्तर के कोंडागांव में ही तैयार की जाएगी. गौरतलब हैं कि  यह जैविक शक्कर बाजार में बिकने वाली आम केमिकल शक्कर की तुलना में 250  गुना मीठी होगी और शक्कर को  डायबिटीज के मरीज भी आसानी उपयोग में ला सकेंगे. यह शक्कर मोटापे और हृदय रोग में भी कारगर होगी.

यह बताना लाजिमी है कि जापान तथा अमेरिका जैसे दर्जनों देशों में बहुत बड़ी संख्या में लोग इस शक्कर का प्रयोग करने लगे हैं. बस्तर के लिए गौरव की बात यह भी है कि कि सीएसआईआर आईएचबीटी, भारत सरकार के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित कड़वाहट रहित स्टीविया की नई  प्रजाति के पौधों की खेती तथा इसके पौधों की पत्तियों से शक्कर तैयार करने के लिए भारत सरकार की सीएसआईआर से मां दंतेश्वरी हर्बल समूह  से भी अनुबंध किया है. 

इसी कड़ी में इस दल ने ऑस्ट्रेलियन टीक के वृक्षारोपण का खेतों पर निरीक्षण, परीक्षण किया तथा मौके पर खड़े पेड़ों से प्राप्त होने वाली इमारती लकड़ी की मात्रा का आकलन कर वर्तमान बाजार भाव से आकलन कर प्रति एकड़ लाभदायकता को व्यावहारिक रूप से परखा. उन्होंने इस पौधे के द्वारा वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर जमीन में जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण के द्वारा जमीन की उपजाऊ क्षमता को दोगुना करने के प्रयोगों को बेहद सराहा. इस दल ने खेतों पर ही जैविक खाद,दवाई तैयार करने प्रयोगों को भी देखा.  जैविक पद्धति से खाद तथा कीटाणु नाशक जैविक दवाई बनाने की प्रक्रिया के बारे में मां दंतेश्वरी  हर्बल समूह की महिला दल की प्रमुख जसवती नेताम ने विस्तार से जानकारी प्रदान की. मां दंतेश्वरी हर्बल समूह की गुणवत्ता तथा प्रमाणीकरण विभाग की प्रमुख अपूर्वा त्रिपाठी ने बताया कि हमारे समूह के द्वारा उत्पादित जड़ी बूटियां , हर्बल चाय, सफेद मूसली, काली मिर्च  आदि पूरी तरह से जैविक पद्धति से तैयार की जाती है तथा इससे विश्व के 7 सात सर्वश्रेष्ठ प्रमाणीकरण संस्थाओं ने गुणवत्ता प्रमाण पत्र से नवाजा है. इन्हें देश -विदेश से सैकड़ों प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिल चुके हैं. यही कारण है कि ये उत्पाद यूरोप तथा अमेरिका भी जा रहे हैं.

दल के क्षेत्र भ्रमण-आकलन के अंत में राजीव गांधी फाउंडेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री विजय महाजन  ने कहा कि उच्च लाभदायक समेकित -जैविक खेती की यह अवधारणा तथा इसका यह जमीन पर खड़ा यह कोंडागांव  मॉडल पूरी तरह से सफल तथा व्यवहारिक है, जिसके तहत किसान बहुत कम लागत में अपनी आमदनी भी बढ़ा सकता है तथा अपने आसपास अन्य लोगों के लिए रोजगार का सृजन भी इस कोंडागांव मॉडल के जरिए कर सकता है.

 

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