साहित्य
संतोष श्रीवास्तव की कविताएं
मध्यप्रदेश के जबलपुर में जन्मी संतोष श्रीवास्तव की काव्य यात्रा काफी लंबी है. उनकी कविताओं में हमारे आसपास की विडंबनाओं का गहन चित्रण देखने को मिलता है. वे स्रियों के पक्ष में विमर्श तो करती है, लेकिन नारेबाजी से दूर रहती है. उनकी कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वे हमें सचेत करती है.
एक-कब तक छली जाओगी द्रौपदी
तुम समय सीमा से
परे हो द्रौपदी
द्वापर युग से अनवरत
चलते चलते
आधुनिक युग में
आ पहुंची हो
इतने युगों बाद भी
तुम अपनी मर्जी से
अर्जुन का वरण कहाँ कर पाती हो खाप अदालत का ख़ौफ़ तुम्हें
पुरुष सत्ता के आगे
बिखेर देता है
तुम बिखर जाती हो द्रौपदी
दुर्योधन की जंघा पर
बलपूर्वक बिठाई जाकर
रिश्तो की हार ,क्रूरता की जीत
देखने पर विवश हो द्रौपदी
गलता है तुम्हारा शरीर
आहिस्ता आहिस्ता
स्वर्ग की राह पर
एक प्रतिरोध गुजरता है
तुमसे होकर
पर तुम अपने इंद्रप्रस्थ
अपने पांचों पति ह्रदय में धारे
पूरी तरह
गल भी नहीं पातीं द्रौपदी
आज भी कितने समझौतों से
गुजरती हो तुम
तब बख्शी जाती है पहचान
आज भी क्रूरता का तांडव जारी है
चीर हरण का तांडव जारी है
अनचाहे रिश्तो का बोझ
आज भी ढो रही हो तुम
कब तक छली जाओगी द्रौपदी ?
दो-नमक का स्वाद
देखा है कभी
नमक के खेतों के बीच
उन कामगारों को
जो घुटने तक प्लास्टिक चढ़ाए
चिलचिलाती धूप में
ढोते हैं नमक
दूर-दूर तक कहीं
साया तक नहीं होता
पल भर बैठ कर सुस्ताने को
अगर साया होता
तो क्या बनता नमक
तो क्या मिलती कामगारों को
दो वक्त की सूखी रोटी
शाम के धुंधलके में
अपने गले हुए पांवों को सिकोड़
चखता है वह
हथेली पर रखी रोटी
और रोटी के संग
नमक की डली का स्वाद
सत्ता ने जो बख्शा है उसे
दूसरों के भोजन को
सुस्वादु बनाने के एवज
मरहूम रखकर सारे स्वादों से
तीन- गीत चल पड़ा है
मेरे मन के कोने में
इक गीत कब से दबा हुआ है
सुना है
जल से भरे खेतों में
रोपे जाते धान के पौधों की कतार से
होकर गुजरता था गीत
बौर से लदी आम की डाल पर
बैठी कोयल के
कंठ से होकर गुजरता था गीत
गाँव की मड़ई में
गुड़ की लईया और महुआ की
महक से मतवाले ,थिरकते
किसानों के होठों से
होकर गुजरता था गीत
अब गीत चल पड़ा है
सरहद की ओर
प्रेम का खेत बोने
ताकि खत्म हो बर्बरता
अब गीत चल पड़ा है
अंधे राजपथ और
सत्ता के गलियारों की ओर
ताकि बची रहे सभ्यता
चार-नदी तुम रुको
नदी तुम रुको
तो मैं लहरों पे लिख दूँ
सँदेशे सभी
लेके उस पार तुम
देना प्रिय को मेरे
कहना कदमों को उनके भिगोते हुए
इस बरस खिल न पाई है सरसों यहाँ
इस बरस बिन तुम्हारे हूँ गुमसुम यहाँ
नदी तुम रुको
क्यों हो आतुर बहुत
जानती हूँ मिलन के हैं अँदाज़ ये
जानती हूँ समँदर की दीवानगी
जाते जाते बताना
पिया को मेरे
हथेली पे मेरे
जो मेंहदी रची
नाम तेरा लिखा
आस अब भी बँधी
नदी तुम रुको
सुनो तो ज़रा
चाँद का अक्स
मुझको उठाने तो दो
सितारों से बिंदिया
सजाने तो दो
नदी तुम रुको
बस, ज़रा सा
पांच-किसे आवाज़ दूं
जिंदगी किस मोड़ पर लाई मुझे
मैं किसे अपना कहूं
किसको पुकारुं?
है दरो-दीवार
पर यह घर नहीं है
सूनी सूनी जिंदगी की
अब कोई सरहद नहीं है
है यहां सब कुछ मगर कुछ भी नहीं है
जिंदगी के मायने बदले हुए हैं
मैं किसे आवाज़ दूं किसको पुकारूं?
रात आती है दबे पांव यहां
और नींदों को लिए
करती प्रतीक्षा सुबह तक
सुबह आती है सहन में कांपती सी
मैं किसे अपना कहूं किसको पुकारूं?
आज वीरां हैं मेरे शामो सहर
हीर सा मन और मैं हूं दरबदर
बांसुरी चुप है
मेरा रांझा कहां है
मैं कहां ढूंढू उसे कैसे बुलाऊं?
जिंदगी छलती रही
हर पल मेरा ठगती रही
अब हुआ दिन शेष
मेला भी खतम
मै किसे आवाज़ दूं किसको पुकारूं ?
छह-बंद लिफाफा
उन दिनों
हम मिला करते थे
चर्च के पीछे
कनेरों के झुरमुट में
विदाई के वक्त
हमारी अपार खामोशी में
तुमने दिया था लिफाफा
इसे तब खोलना जब
हरकू के खेतों में
धान लहलहाए
उदास चूल्हे में
रोटी की महक हो
फाकाकशी से कंकाल काल हुए
बच्चों की आँखों में
तृप्ति की चमक हो
ठिठुरती सर्दियों में
गर्म बोरसी हो
बरसात में टूटे छप्पर पर
नई छानी हो
बस तभी खोलना इसे
बंद लिफाफे को खोलने की
जद्दोजहद में
उम्र गुज़र गई
आज जब खुला तो
उसमें तुम्हारे जाते हुए
कदमों की केवल पदचाप दर्ज़ थी
परिचय-
संतोष श्रीवास्तव
जन्म....23 नवम्बर जबलपुर
शिक्षा...एम.ए(हिन्दी,इतिहास) बी.एड.पत्रकारिता में बी.ए
कहानी,उपन्यास,कविता,स्त्री विमर्श पर अब तक पन्द्रह किताबें प्रकाशित।
दो अंतरराष्ट्रीय तथा सोलह राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित
डीम्ड विश्वविद्यालय राजस्थान से पीएचडी की मानद उपाधि। "मुझे जन्म दो मां "रिफरेंस बुक के रुप में सम्मिलित।
कहानी " एक मुट्ठी आकाश "SRM विश्वविद्यालय चैन्नई में बी.ए. के कोर्स में ।
महाराष्ट्र के एसएससी बोर्ड में 11 वीं के कोर्स में लघुकथाएं और कविताएं शामिल
राही सहयोग संस्थान रैंकिंग 2018 में वर्तमान में विश्व के टॉप 100 हिंदी लेखक लेखिकाओं में नाम शामिल।
भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा विश्व भर के प्रकाशन संस्थानों को शोध एवं तकनीकी प्रयोग( इलेक्ट्रॉनिक्स )हेतु देश की उच्चस्तरीय पुस्तकों के अंतर्गत "मालवगढ़ की मालविका " का चयन
विभिन्न भाषाओं में रचनाएँ अनूदित,पुस्तकों पर कई विश्वविद्यालयों में एम फिल तथा शाह्जहाँपुर की छात्रा द्वारा पी.एच.डी,रचनाओ पर फिल्माँकन,कई पत्र पत्रिकाओ में स्तम्भ लेखन व सामाजिक,मीडिया,महिला एवँ साहित्यिक सँस्थाओ से सँबध्द
22 वर्षीय कवि पुत्र हेमंत की स्मृति में हेमंत फाउंडेशन की स्थापना "प्रतिवर्ष हेमंत स्मृति कविता सम्मान तथा "विजय वर्मा कथा सम्मान" का मुम्बई में आयोजन।
अंतरराष्ट्रीय संस्था " विश्व मैत्री मंच "की संस्थापक अध्यक्ष।
केंद्रीय अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार मित्रता संघ की मनोनीत सदस्य । जिसके अंतर्गत 25 देशो की प्रतिनिधि के तौर पर हिंदी के प्रचार,प्रसार के लिए यात्रा ।
सम्प्रति स्वतंत्र पत्रकारिता.
सम्पर्क 09769023188 [email protected]
505 सुरेन्द्र रेज़िडेंसी, दाना पानी रेस्टारेंट के सामने,
बावड़ियां कलां, भोपाल 462039 (मध्य प्रदेश)