साहित्य
विजय मानिकपुरी की कविता पत्थर
हे पत्थर
तू नादान है,
तू भोला है,
तू सीधा है,
तू सरल है,
तू कठोर होकर भी
नरम है,
हे पत्थर,
इस कथित इंसान का दिल
तुझ से कठोर है,
वो ज्यादा निष्ठुर है,
वो ज्यादा मतलबी है,
वो ज्यादा फरेबी है...!
हे पत्थर,
वो क्या जाने
तेरी वजह से
करोड़ों पेट की
आग बुझती है,
करोड़ों लोग
तुम्हारे सामने शीश झुकाते हैं...!
हे पत्थर,
तू सचमुच
नादान है,
कठोर दिल के
सामने तू
भोला है....।
हे पत्थर,
इस बात पर
मत रो कि
तू पत्थर है,
बल्कि इस बात पर
खुश हो कि
पथरली पग का
मुकाम है तू,
बहते आंसू की
मुस्कान है तू,
मंदिर-मस्जिद की नींव है तू
चर्च, गुरुद्वारा का आधार है तू
हे पत्थर,
तू परवाह मत कर
तू चट्टान तो है,
लेकिन उम्मीद की
बरसात हो तुम,
ऋषि-मुनियों का
वास हो तुम..।
हे पत्थर,
हिमालय की चोटी है तू,
महासागर का भरोसा है तू
हे पत्थर,
तू घबरा मत,
तू डर मत
तेरा साथ तो
तेरा वजूद है,
तेरा ईमान है..!!
विजय मानिकपुरी रायपुर