साहित्य
मितरों...
योगिनी राउल
पांच तारीख को
रात के ठीक नौ बजे
आप ने दीए जलाए या नहीं...
आप ने उर्जा महसूस की या नहीं?
की....
तो मितरों
चलो आज
सर्वश्रेष्ठ भक्त की जयंती पर
पूरी दुनिया को दिखाते हैं कि
दवाईयां कैसे दी जाती है मरीज को ?
क्या दिखाना है?
दवाईयां....
किस को देनी है?
मरीज को....
कैसे देंगे?
आप सब मिल कर,
हम सब मिल कर
आज आठ तारीख को
रात को ठीक आठ बजे
याद रहे रात को आठ बजकर आठ मिनट पर
अपनी अपनी बालकनी में
कहां?....
बालकनी में....
सब के घर को बालकनी है या नहीं है?
है ना...
तो
अपनी-अपनी बालकनी में
खड़े रह के
अपनी छोटी से छोटी
उंगली उठा के...
याद रहें,
हाथ की उंगली.
दाहिने हाथ की... बाए हाथ की नहीं.
छोटी से छोटी
उंगली उठा के
उस पर
संजीवनी परबत की कागज की प्रतिमा चिपकाएंगे.
कागज तो अपने घर में होता ही है,
नहीं है तो
अपने बच्चों की कापियां फाड़े
रद्दी में से निकाले,
कबाडी से उधार मांगे...
लेकिन संजीवनी परबत की छवि जरूर बनाए...
हमारी परंपरा में
संजीवनी परबत का बडा योगदान है,
अगर हम नहीं समझते
असली दवाई क्या है,
हम पूरे परबत को खोजेंगे
पूरे विश्व की छलांग लगाएंगे
जब तक हमें सही दवाई नहीं मिलती
हम सर्वश्रेष्ठ भक्त का जाप करेंगे
और उस वक्त
आठ मिनट के लिए
आप के हाथ में क्या होगा?
संजीवनी परबत !
सब देशवासियों के हाथ में क्या होगा?
एक संजीवनी परबत...
जरा सोचो मेरे मितरों
जिस रफ्तार से संकट बढ रहा है
क्या एक-एक टेस्टिंग किट से काम चलेगा?
नहीं चलेगा...
हमें दवाई का परबत चाहिए... परबत...
वो कौन लाएगा ?
हम लाएंगे,
सब साथ मिलकर लाएंगे !
कैसे लाएंगे?
आसान है....
अपनी-अपनी बालकनी में
अपनी-अपनी उंगली पर
एक कागज का संजीवनी परबत हमें उठाना है
ठीक आठ बजे...
आज लाइट चालू रखें
दुनिया को देखने दे
हमारे पास कितनी संजीवनी है...
दवाईयों के परबत है !
दुनिया आज हंसेगी
कल आपसे इस महान परंपरा का रहस्य पूछेगी.
हम जरूर बताएंगे
हमारा ज्ञान बांटने के लिए हैं,
छुपाने के लिए नहीं.
चलो विश्व को ज्ञान बांटते है
अपनी-अपनी बालकोनी को
विश्वविद्यालय बनाते हैं.
अपनी छोटी से छोटी उंगली का
सही इस्तेमाल करते हैं.
जगत के सर्वश्रेष्ठ भक्त का
उचित सम्मान करते हैं.
वो दिन दूर नहीं मितरों...
जब यहां सिर्फ दवाईयां ही दवाईयां होगी
और एक भी मरीज नहीं बचेगा !
जयहिंद !