साहित्य
नथमल शर्मा की तीन कविताएं
चिड़िया
देखो बहेलिया
फिर आया है
और
दाना डाल कर
जाल बिछाया है
पर इस बार तुम
दाने के लालच में न आओ
और
सारा का सारा
जाल लेकर ही उड़ जाओ ।
सफर
चारों तरफ हरियाली
झरनों के बहने का शोर
दूर तक दिखता
बेहद साफ़ चमकता रास्ता
पर सारा रास्ता
और सारा जंगल बिलकुल सूनसान
ख़त्म हो चुके
जानवरों के अस्थि पंजर
पांवों के निशान
छोड़ते चले जा रहा था इंसान
यह रास्ता कहां जाता है ?
इस प्यारी दुनिया में मगर
एक दिन जब
इस बहुत प्यारी दुनिया में
बहुत प्यार करने वाले
नहीं रह जाएंगे
तब तुम करोगे क्या
प्यार करने की बात
और प्यार न करने की चिंता
मित्र रामकुमार की बात
जल में मगर के डर से
ज़्यादा भयावह है
जल में मगर के न होने का डर
कहते तो ठीक है
मित्र रामकुमार
लेकिन सच कहना
अब जल में मगर से
डरते हैं क्या लोग ?
अब तो लोग खुद ही
मगर के और ज़्यादा
करीब हो गए हैं
और
दोस्ती के स्वांग से
शुरू हुई दोस्ती को ही
दोस्ती मान बैठे हैं
पर
स्वांग तो कुछ देर ही सुहाता है
और फ़िर
दोस्ती का स्वांग करने वाले
ये क्यों भूल रहे हैं कि
मगर भी तो
भूलने का स्वांग कर सकता है
यानी
मित्र रामकुमार के
मगर के न होने के डर के साथ ही
चिंता अब मगर को
पहचानने की भी है ।
- नथमल शर्मा ( यहां प्रस्तुत कविताएं उनके संग्रह "उसकी आंखों में समुद्र ढूंढता रहा " से )
-सप्रतिः बिलासपुर मोबाइल- 9617166655