साहित्य
कवितानुमा कुछ...
छत्तीसगढ़ के दुर्ग में रहने वाले कैलाश बनवासी मूलतः कथाकार है, लेकिन इसी महीने 11 जून 2019 को उन्होंने एक कविता लिखी और फिर उसे कविता मानने से इंकार भी कर दिया. सच भी है. जो कुछ भी उन्होंने लिखा है वह सिर्फ कविता नहीं बल्कि हमारे भयावह समय का भयावह सच है.
यहां एक हत्या हुई है
--सरासर हत्या!
खून से लिथड़ी लाश आंगन में पड़ी है
मौके पर चीख-पुकार मची है
(टीवी स्क्रीन पर लाइव रिपोर्ट)
लेकिन अंदाजा लगाना मुश्किल है
कितना है आक्रोश और कितनी है खुशी
क्योंकि अभी-अभी मकतूल और क़ातिल के धर्मों की पहचान हो गई है
और यह खोज फरार हत्यारे की खोज से कहीं ज़्यादा बड़ी है
और ज़रूरी
यहां तक कि उसे सज़ा दिलाने से भी ज़्यादा ज़रूरी!
मृतक के पास एक दल का झंडा मिला है
हत्यारे के घर पर दूसरे दल का
दोनों जगहों के प्रत्यक्ष गवाह कैमरे में कह रहे हैं--यह साजिश है!
भरोसा किस पर करना है- यह आप तय करें
भीड़ अपना फैसला तय कर चुकी है।
- कैलाश बनवासी